सुम/sum

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सुम  : पुं० [सं०] १. पुष्प। फूल। २. चन्द्रमा। ३. आकाश। पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़ जो असाम में होता है और जिस पर ‘मूगा’ (रेशम) के कीड़े पाले जाते हैं। पुं० [फा०] चौपायों का खुर। टाप।
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सुम-खारा  : पुं० [फा० सुम+खार] ऐसा घोड़ा जिसकी एक (आँख की) पुतली बेकार हो गई हो।
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सुम-फटा  : पुं० [फा० सुम+हिं० फटना] घोड़ों का एक प्रकार रोग जो उनके खुर के ऊपरी भाग से तलवे तक होता है।
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सुम-सायक  : पुं० [सं० सुमन+सायक] कामदेव। (डिं०)
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सुम-सुखड़ा  : वि० [फा० सुम+हिं० सूखना] (घोड़ा) जिसके खुर सूख कर सिकुड़ गये हों। पुं० घोड़ों का एक रोग जिसमें उनके सुम या खुर सूखने लगते हैं।
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सुमख  : पुं० [सं०] आनन्दोत्सव।
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सुमंगल  : वि० [सं०] १. अत्यंत शुभ। कल्याणकारी। २. सदाचारी। पुं० एक प्रकार का विष।
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सुमंगला  : स्त्री० [सं०] १. कार्तिकेय की एक मातृका। २. एक प्राचीन नदी। ३. मकड़ा नामक घास।
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सुमंगली  : स्त्री० [सं० सुमंगला] १. विवाह के समय सप्तपदी पूजा करने के उपलक्ष्य में पुरोहित को दी जानेवाली दक्षिणा। २. नव-विवाहिता स्त्री। वधू।
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सुमंगा  : स्त्री० [सं०] एक पौराणिक नदी।
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सुमंत  : पुं०=सुमंत्र।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सुमत  : वि०=सुमति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुमति  : वि० [सं०] सुन्दर मति (बुद्धि या विचार) वाला। २. बुद्धिमान्। होशियार। स्त्री० १. अच्छी मति या बुद्धि। २. लोगों में आपस में होनेवाला मेल-जोल और सद्भाव। उदा०–जहाँ सुमति तहँ संपति नाना।–तुलसी। ३. राजा सगर की पत्नी जिससे ६॰ हजार पुत्र उत्पन्न हुए थे। (पुराण) ४. मैना पक्षी। पुं० १. वर्तमान अवसयर्पिणी के पाँचवें अर्हत। (जैन) २. भरत का एक पुत्र। ३. जनमेजय का एक पुत्र।
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सुमंतिजय  : पुं० [सं०] विष्णु।
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सुमंत्र  : पुं० [सं०] १. राजा दशरथ के मंत्री और सारथि का नाम। २. प्राचीन भारत में राज्य के आय-व्यय की व्यवस्था करनेवाला मंत्री। अर्थमंत्री।
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सुमंत्रित  : भू० कृ० [सं०] १. जिसे अच्छी सलाह मिली या दी गई हो। जो विचार-विमर्श के उपरान्त प्रस्तुत किया गया हो। जैसे–सुमंत्रित योजना।
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सुमंथन  : पुं० [सु+मंथ=पर्वत] मंदर पर्वत।
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सुमद  : वि० [सं०] मदोन्मत्त। मतवाला।
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सुमदन  : पुं० [सं०] आम का पेड़ और फल।
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सुमदना  : स्त्री० [सं०] एक पौराणिक नदी।
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सुमंदर  : पुं०=समुद्र।
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सुमंदा  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार की दिव्य शक्ति।
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सुमंद्र  : पुं० [सं०] एक प्रकार का छन्द या वृत्त।
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सुमधुर  : वि० [सं०] बहुत अधिक मधुर या मीठा। पुं० जीव शाक।
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सुमध्य  : वि० [सं०] [स्त्री० सुमध्या] १. जिसका मध्य भाग सुन्दर हो। २. पतली कमरवाला।
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सुमध्यमा  : वि० स्त्री० [सं०] सुन्दर कमरवाली (स्त्री)।
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सुमन  : वि० [सं० सुमनस्] १. अच्छे मन या ह्वदय वाला। सह्वदय। २. मनोहर। सुन्दर। पुं० १. देवता। २. पण्डित। विद्वान। ३. पुष्प। फूल। ४. पुराणानुसार प्लक्ष द्वीप का एक पर्वत। ५. मित्र और सहायक। (डिं०) ६. गेहूँ। ७. धतूरा। ८. नीम। ९. घृतकरंज।
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सुमन-चाप  : पुं० [सं०] कामदेव जिसका धनुष फूलों का माना गया है।
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सुमन-प्रध्वज  : पुं० [सं० सुमनस्+ध्वज] कामदेव।
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सुमनस् (नस्)  : वि० [सं०] १. अच्छे ह्वदयवाला। सहृदय। २. सदा प्रसन्न रहनेवाला। पुं० १. देवता २. फूल।
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सुमनस्क  : वि० [सं०] १. प्रसन्न। खुश।। २. सुखी।
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सुमना  : स्त्री० [सं०] १. चमेली। २. सेवती। ३. कबरी गाय। ४. दशरथ की पत्नी कैकेयी का वास्तविक नाम।
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सुमनायन  : पुं० [सं०] एक गोत्र प्रर्वतक ऋषि।
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सुमनिका  : स्त्री०=एक प्रकार का छन्द या वृत्त।
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सुमनित  : भू० कृ० [सं० सुमणि+त (प्रत्य०)] सुन्दर मणियों से युक्त किया हुआ। उत्तम मणियों से जड़ा हुआ। वि० [सं० सुमन से] फूलों से युक्त।
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सुमनोत्तरा  : स्त्री० [सं०] राजाओं के अन्तःपुर में रहनेवाली स्त्री।
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सुमनौकस  : स्त्री० [सं०] देवलोक। स्वर्ग।
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सुमन्यू  : वि० [सं०] अत्यन्त क्रोधी। बहुत गुस्सेवर।
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सुमर  : पुं० [सं०] १. वायु। हवा। २. स्वाभाविक रूप से होनेवाली मृत्यु।
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सुमरन  : पुं०=स्मरण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=सुमरनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुमरना  : सं०=सुमिरना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुमरनी  : स्त्री०=सुमिरनी।
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सुमरा  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की मछली जो नदियों और विशेष कर गरम झरनों में पाई जाती है।
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सुमरीचिका  : स्त्री० [सं०] पाँच बाह्य तुष्टियों में से एक। (सांख्य)
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सुमर्मग  : वि० [सं०] (तीर या वाण) जो मर्मस्थान के अन्दर तक घुस जाता हो।
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सुमल्लिक  : पुं० [सं०] एक प्राचीन जनपद।
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सुमात्रा  : पुं० मलय द्वीप-पुंज का एक प्रसिद्ध बड़ा द्वीप जो बोर्नियो के पश्चिम और जावा के उत्तर-पश्चिम में है।
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सुमानस  : वि० [सं०] अच्छे मनवाला। सहृदय।
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सुमानी (निन्)  : वि० [सं०] १. बहुत बड़ा अभिमानी। २. प्रतिष्ठित। सम्मानित। उदा०–ये हमारे मार्ग के तारे सुमानी।–मैथिलीशरण।
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सुमान्य  : वि० [सं०] विशेष रूप से मान्य और प्रतिष्ठित। पुं० १. आज-कल कलकत्ते, बम्बई आदि बड़े नगरों में एक विशिष्ट अवैतनिक राजपद, जिस पर वियुक्त होनेवाले व्यक्ति को शान्ति, रक्षा और न्याय संबंधी कछ अधिकार प्राप्त होते हैं। २. इस पद पर नियुक्त होनेवाला व्यक्ति। (शेरिफ़)
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सुमाय  : वि० [सं०] १. माया से युक्त। २. बहुत बुद्धिमान।
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सुमार  : स्त्री० [हिं० सु+मारना] अच्छी तरह पड़नेवाली मार। गहरी मार। उदा०–‘हूठयौ’ दै इठलाय हम करै गँवारि सुमार।–बिहारी। पुं०=शुमार (गिनती)।
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सुमार्ग  : पुं० [सं०] उत्तम और श्रेयस्कर रास्ता।
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सुमार्गी  : वि० [सं०] अच्छे मार्ग पर चलनेवाला।
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सुमाल  : पुं० [सं०] एक प्राचीन जनपद। (महाभारत)
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सुमालिनी  : स्त्री० [सं०] एक प्रकार का वर्णवृत्त।
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सुमाली (लिन्)  : पुं० [सं०] एक राक्षस जो सुकेश का पुत्र था। २. राम की सेना का एक वानर। पुं० [फा० शुमाल] एक अरब जाति जो अफ्रीका के उत्तर-पूर्वी सिरे पर और अदन की खाड़ी के दक्षिणी भाग में रहती है।
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सुमाल्यक  : पुं० [सं०] एक पौराणिक पर्वत।
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सुमावलि  : स्त्री० [सं०] १. फूलों की अवली या कतार। २. फूलों की माला।
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सुमित्र  : पुं० १. पुराणानुसार श्रीकृष्ण का एक पुत्र। २. अभिमन्यु का सारथि। ३. मगघ का एक राजा जो अर्हत सुव्रत का पिता था। ४. इक्ष्वाकु वंश के अंतिम राजा सुरथ के पुत्र का नाम।
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सुमित्रभू  : पुं० [सं०] १. जैनियों के चक्रवर्ती राजा सगर का नाम। २. वर्तमान अवसर्पिणी के बीसवें अर्हत का नाम।
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सुमित्रा  : स्त्री० [सं०] १. राजा दशरथ की एक पत्नी जो लक्ष्मण तथा शत्रुध्न की माता। २. मार्कण्डेय ऋषि की माता का नाम।
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सुमित्रा-नंदन  : पुं० [सं०] रानी सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न।
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सुमित्र्य  : वि० [सं०] उत्तम मित्रोंवाला। जिसके अच्छे मित्र हों।
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सुमिरण  : पुं० १. स्मरण। २.=सुमरन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुमिरना  : स० [सं० स्मरण] १. स्मरण करना। चिंतन करना। ध्यान करना। २. सुमिरनी फेरते हुए देवता आदि का बार बार नाम लेते रहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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सुमिरनी  : स्त्री० [हिं० सुमरना+ई (प्रत्य०)] १. नाम जपने की छोटी माला जो सत्ताइस दानों की होती है। २. हाथ में पहनने का एक प्रकार का दानेदार गहना।
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सुमिराना  : सं० [हिं० सुमिरना] किसी को सुमिरने में प्रवृत्त करना।
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सुमिरिनिया  : स्त्री०=सुमिरनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुमुख  : वि० [सं०] [स्त्री० सुमुखी] १. सुन्दर मुखवाला। २. मनोहर। सुन्दर। ३. प्रसन्न। ४. अनुकूल। ५. अत्यन्त नुकीला (तीर)। पुं० १. शिव। २. गणेश। ३. पण्डित। विद्वान। ४. गरुड़ का एक पुत्र। ५. द्रोण का पुत्र। ६. एक प्रकार का जलपक्षी। ७. एक प्रकार का साग। ८. तुलसी। ९. राई।
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सुमुखा  : स्त्री० [सं०] सुन्दरी स्त्री। वि० स्त्री० जिसका प्रवेश द्वार अच्छा हो।
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सुमुखी  : स्त्री० [सं० सुमुख-ङीष्] १. सुन्दर मुखवाली स्त्री। २. दर्पण। ३. संगीत में एक प्रकार की मूर्च्छना। ४. सवैया छंद का तीसरा भेद जिसके प्रत्येक चरण में सात जगण और तब लघु और गुरु वर्ण होता है। मदिरा सवैया के आदि में लघु वर्ण जोड़ने से यह छंद बनता है। इसमें ११ और १२ वर्णों पर यति होती है। ५. नीली अपराजिता। नीली कोयल। ६. शंखपुष्पी। शंखाहुलि।
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सुमूर्ति  : पुं० [सं०] शिव का एक गण।
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सुमूल  : वि० [सं०] १. (वृक्ष) जिसकी जड़े अच्छी हों। दीर्घ तथा पुष्ट जड़ोंवाला। २. उत्तम आधार वाला। ३. जिसका मूल अर्थात् आरम्भ अच्छा हो। पुं० १. उत्तममूल। २. सफेद सहिजन।
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सुमूलक  : पुं० [सं०] गाजर।
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सुमूला  : स्त्री० [सं०] १. सरिवन। शालपर्णी। २. पिठवन।
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सुमृग  : पुं० [सं०] १. श्रेष्ट जानवर। २. वन या वनस्थली जिसमें बहुत से जंगली जानवर रहते हों। ३. वह स्थान जहाँ शिकार के लिए जंगली जानवर मिलते हों।
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सुमृति  : स्त्री०=स्मृति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुमेखल  : पुं० [सं०] मूँज। मुंजतृण।
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सुमेड़ी  : स्त्री० [?] खाट बुनने का बाध।
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सुमेद्य  : पुं० [सं०] रामायण के अनुसार एक पर्वत।
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सुमेध  : वि०=सुमेधा।
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सुमेधा (धस्)  : [सं०] जिसकी मेद्या-शक्ति अर्थात बुद्धि बहुत अच्छी हो। मेधावी। पुं० १. चाक्षष मन्वन्तर के एक ऋषि। २. पाँचवें मन्वन्तर के विशिष्ट देवता।। ३. पितरों का एक वर्ग या गण। स्त्री० मालकंगनी।
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सुमेध्य  : वि० [सं०] अत्यन्त पवित्र। बहुत पवित्र।
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सुमेर  : पुं० [सं० सुमेरु] १. गंगाजल रखने का बड़ा पात्र। २. दे० ‘सुमेरु’।
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सुमेर  : पुं० [सं०] १. एक कल्पित पर्वत जो पुराणों में सब पर्वतों का राजा और सोने का कहा गया है। कहते हैं कि अस्त होने पर सूर्य इसी की औट में हो जाता है। २. जप करने की माला में सबके ऊपर वाला अपेक्षाकृत कुछ बड़ा दाना। ३. उत्तरी ध्रुव। (नार्थ पोल) ४. दक्षिणी इराक का पुराना नाम। ५. पिंगल में एक प्रकार का छन्द जिसके प्रत्येक चरण में १९ मात्राएँ होती हैं। अंत में यगण होता है, १२ मात्राओं पर यति होती है, तथा पहली आठवीं और पन्द्रहवीं मात्राओं का लघु होना आवश्यक होता है। ६. शिव। वि० १. सबसे अच्छा। सर्वश्रेष्ठ। २. बहुत अधिक ऊँचा। ३. बहुत सुन्दर।
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सुमेरु-ज्योति  : स्त्री० [सं०] सुमेरु अर्थात उत्तरी ध्रुव के आस-पास के क्षेत्रों में कभी-कभी रात के समय दिखाई पड़नेवाली एक विशेष ज्योति या विद्युत् का प्रकाश। ‘कुमेरु ज्योति’ का विपर्याय। (आरोरा बोरियालिस)
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सुमेरु-वृत्त  : पुं० [सं०] वह रेखा जो उत्तर ध्रुव से २३।। अक्षांस पर स्थित है।
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सुमेरु-समुद्र  : पुं० [सं०] उत्तर महासागर का एक नाम।
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सुमेरुजा  : स्त्री० [सं०] सुमेरु पर्वत से निकली हुई नदी।
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सुम्मा  : पुं० [स्त्री० सुम्मी] दे० ‘सुंबा’। पुं० [देश०] बकरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुम्ह  : पुं० [सं० सुम्म] एक प्राचीन जाति। पुं० सुम (खुर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुम्हार  : पुं० [?] एक प्रकार का धान।
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