शब्द का अर्थ
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सुध :
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स्त्री० [सं० सुधी] १. अच्छी बुद्धि। २. सचेतनता। होश। क्रि० प्र—खोना।—बिसरना। ३. स्मृति। याद। मुहावरा-सुध दिलाना=याद दिलाना। सुध बिसारना या भूलना=याद न रखना। सुध लेना= (क) किसी का हाल-चाल पूछने के लिए उसके पास जाना। (ख) किसी बात की ओर ध्यान देना। |
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सुध-बुध :
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स्त्री० [सं० शुद्ध+बुद्धि] १.होश-हवाश। चेतना। संज्ञा। २. ज्ञान। क्रि० प्र०—ठिकाने न रहना।—भूलना।—मारी जानी। |
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सुध-मना :
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वि० [हि० सुध=होश+मना] [स्त्री० सुधमनी] जिसे होश हो। सचेत। |
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सुधंग (गा) :
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वि० [हि० सीधा+अंग या सु+ढंग] १.सरल या सीधे स्वभाववाला। २. सीधा। पुं० अच्छा या सुन्दर ढंग। |
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सुधनु :
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पुं० [सं०] १.राजा कुरु का एक पुत्र जो सूर्य की पुत्री तपसी के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। २. गौतम बुद्ध के एक पूर्वज। |
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सुधन् (स्) :
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वि० [सं०] बहुत धनी। बड़ा अमीर। |
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सुधन्वा (न्वन्) :
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वि० [सं० ब० स०] १.उत्तम धनुष धारण करनेवाला। २. अच्छा धनुर्धर। होशियार तीरन्दाज। पुं० १.विष्णु। २. विश्वकर्मा। ३.अंगिरा। ऋषि। ५. पुराणानुसार एक प्राचीन जाति जिसकी उत्पत्ति व्रात्य वैश्य और सवर्णा स्त्री से कही गई है। ५. शेषनाग। |
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सुधर :
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पुं० [सं०] १.जैनों के एक अर्हत। २. बया पक्षी (डि०)। |
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सुधरना :
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अ० [हि० सुधारना] १. खराब होने या बिगड़ी हुई चीज का मरम्मत आदि होने पर ठीक होना। त्रुटि, दोष आदि का दूर होना। जैसे—हालत सुधरना। २. व्यक्ति के संबंध में अच्छे आचरणों की ओर प्रवृत्त होना तथा बुरे आचरणों की पुनरावृत्ति न करना। जैसे—लड़के का सुधरना। |
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सुधरपन :
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पुं०=सुघड़पन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुधरमा :
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वि० स्त्री०=सुधर्मा। |
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सुधराई :
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स्त्री० [हि० सुधरना+आई (प्रत्यय)] सुधरने की क्रिया, भाव या मजदूरी। |
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सुधर्मा :
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वि० [सं० सुधर्मन्] अपने धर्म पर दृढ रहनेवाला। धर्म-परायण। पुं० १. कुटुब से युक्त व्यक्ति। गृहस्थ। २. क्षत्रिय। ३. जैनों के एक गणाधिप। स्त्री० देवताओं की सभा। देव-सभा। |
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सुधर्मी (र्मि्न्) :
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वि० [सं०] धर्मपरायण। धर्मनिष्ठ। स्त्री० देवताओं की सभा। |
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सुधर्म् (न्) :
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वि० [सं०] धर्मपरायण। धर्मात्मा। पुं० [सं०] १. अच्छा और उत्तम धर्म। २. जैन तीर्थकर महावीर के दस शिष्यों में से एक। |
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सुधवाना :
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स० [हि० सुधरना का प्रे०] १. सोधने या ठीक करने का काम किसी से कराना। ठीक या दुरुस्त कराना। २. मुहुर्त आदि के संबंध में निकलवाना। |
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सुधा :
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स्त्री० [सं०] १. अमृत। पीयूष। २. जल। पानी। ३. गंगा ४. दूध। ५. किसी चीज का निचोड़ा हुआ रस। ६. पृथ्वी। ७. बिजली। विद्युत। ८. जहर। विष। ९. चूना। १॰. ईंट। ११. रुद्र की पत्नी। १२. एक प्रकार का छन्द या वृत्त। १३. पुत्री। बेटी। १४ . वध। १५. शहद। १६. घर। मकान। १७. मकरन्द। १८. आँवला। १९. हर्रे। २॰ मरोड़ फली। २१. गिलोय। गुडुच। २२. सरिवन। शालपर्णी। |
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सुधा-कंठ :
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वि० [सं०] मधुर-भाषी। पुं० कोकिल। कोयल। |
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सुधा-क्षार :
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पुं० [सं०] चूने का खार। |
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सुधा-गेह :
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पुं० [सं०] चन्द्रमा। |
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सुधा-घट :
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पुं० [सं० सुधा+घट] चन्द्रमा। |
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सुधा-दीधिति :
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पुं० [सं० ब० स०] सुधांशु। चन्द्रमा। |
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सुधा-धवल :
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वि० [सं०] १. चूने के समान सफेद। २. जिस पर चूना पुता हुआ हो। |
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सुधा-धाम :
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पुं० [सं० सुधा+धाम] चन्द्रमा। |
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सुधा-धौत :
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वि० [सं०] चूना या सफेदी किया हुआ। |
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सुधा-नजर :
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वि० [हि० सुधा=सीधा+नजर] दयावान्। कृपालु। (डिं०)। |
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सुधा-निधि :
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पुं० [सं०] १. चन्द्रमा। २. कपूर। ३. समुद्र। सागर। ४. दंडक वृत्त का एक प्रकार का भेद। |
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सुधा-पाणि :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसके हाथ में अमृत हो। २. (चिकित्सक) जिसकी दवा से सबको तुरन्त लाभ होता हो। पुं० देवों के वैद्य। धन्वन्तरि। |
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सुधा-भवन :
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पु० [सं०] अस्तर, कारी किया हुआ मकान। |
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सुधा-मयूख :
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पुं० [सं०] चन्द्रमा। |
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सुधा-मूली :
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स्त्री० [सं०] सालम मिस्री। सालब मिस्री। |
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सुधा-योनि :
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पुं० [सं०] चन्द्रमा। |
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सुधा-रश्मि :
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पुं० [सं०] चन्द्रमा। |
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सुधा-लता :
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स्त्री० [सं०] एक प्रकार की गिलोय। |
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सुधा-वर्षी (र्षिन्) :
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वि० [सं०] सुधा अर्थात् अमृत बरसानेवाला। पुं० १. ब्रह्मा। २. बुद्ध का एक नाम। |
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सुधा-सदन :
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पुं० [सं० सुधा+सदन] चन्द्रमा। |
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सुधा-स्पर्धी :
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वि० [सं० सुधा-स्पर्धिन्] १. अमृत की बराबरी करनेवाला। २. अमृत के समान मधुर (भाषण आदि)। |
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सुधाई :
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स्त्री० [हि० सुधा+आई (प्रत्यय)] सिधाई। सरलता। स्त्री० [हि० सोधना] सोधने की क्रिया या भाव। |
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सुधाकर :
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पुं० [सं०] चन्द्रमा। |
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सुधाकार :
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पुं० [सं०] १. चूना पोतने या सफेदी करनेवाला मजदूर। २. मकान बनानेवाला मिस्तरी। राज। |
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सुधांग :
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पुं० [सं० ब० स०] चन्द्रमा। |
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सुधाजीवी (विन्) :
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पुं० [सं०] सुधाकार (दे०)। |
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सुधाता (तृ) :
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वि० [सं०] सुव्यवस्थित करनेवाला। |
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सुधातु :
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पुं० [सं०] सोना। |
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सुधातु-दक्षिण :
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पुं० [सं०] वह जो यज्ञादि में अथवा यों ही दक्षिणा में सुधातु अर्थात् सुवर्ण देता हो। |
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सुधाधर :
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वि० [सं० ष० त०] चन्द्रमा जिसके अधरों में अमृत हो। पुं० चन्द्रमा। |
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सुधाधरण :
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पुं० [सं० सुधाधर] चन्द्रमा डिं०)। |
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सुधाधार :
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पुं० [सं०] १. वह बरतन जिसमें अमृत रखा हो। २. चन्द्रमा। |
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सुधाधी :
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वि० [सं०] सुधा के समान। अमृत के तुल्य। |
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सुधाना :
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स० [हि० सुध+आना (प्रत्य)] स्मरण कराना। याद दिलाना। स० सुधवाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुधापाषाण :
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पुं० [सं०] सफेद खली। |
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सुधाभित्ति :
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स्त्री० [सं०] दीवार,जिस पर चूना पुता हुआ हो। |
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सुधाभुज :
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पुं० [सं०] =सुधा-भोजी (देवता)। |
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सुधाभृत्रि :
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पुं० [सं०] १. चन्द्रमा। २. यक्ष। |
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सुधाभोजी (जिन्) :
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वि० [सं०] अमृत भोजन करनेवाले। पुं० अमृत खानेवाला, देवता। |
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सुधाम :
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पुं० [सं०] अच्छा घर या स्थान पुं०=सुधामा। |
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सुधामय :
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वि० [सं०] [स्त्री० सुधामयी] १. जिसमें अमृत हो। अमृत से युक्त। २. सुधा से भरा हुआ। अमृत-स्वरूप। ३.चूने का बना हुआ। पुं० राज-प्रासाद। महल। |
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सुधामा (मन्) :
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पुं० [सं०] चन्द्रमा। |
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सुधार :
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पुं० [हि० सुधारना] १. वह तत्त्व जो किसी के सुधरने या सुधरे हुए होने पर लक्षित होता है। २. वह प्रक्रिया जो किसी के दोष विकार आदि दूर करने के लिए की जाती है। ३. वह काट-छाँट या संशोधन-परिवर्तन जो रचना को अच्छा रूप देने के लिए किया जाता है। |
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सुधारक :
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वि० [हि० सुधार+क (प्रत्य)०] (कार्य) जो सुधार के उद्देश्य या विचार से हो। (रिफ़ार्मेटरी)। पुं० १. दोषों या त्रुटियों का सुधार करनेवाला। संशोधक। २. धार्मिक या सामाजिक सुधार के लिए प्रयत्न करनेवाला। (रिफ़ार्मर) |
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सुधारना :
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स० [सं० शोधन] १. बिगड़ी हुई वस्तु को इस प्रकार ठीक करना कि वह फिर से काम करने या काम में आने के योग्य हो जाय। २. दोषों विकारों आदि का उन्मूलन कर अथवा उनमें परिवर्तन लाकर किसी स्थिति में सुधार करना। ३. लेख आदि की गलतियाँ दूर करना। |
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सुधारा :
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वि०=सूधा (सीधा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुधारालय :
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पुं० [हि० सुधार+सं० आलय] वह स्थान जहाँ पर अपराधियों के जीवन सुधार की व्यवस्था की जाती है। (रिफ़ार्मेटरी)। |
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सुधारू :
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वि० [हि० सुधारना+ऊ (प्रत्यय)] सुधारनेवाला। सुधारक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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सुधाव :
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पुं० [हि० सुधरना+आव (प्रत्य)] सोधने या सुधारने की क्रिया या भाव। सुधार। |
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सुधावास :
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पुं० [सं०] १. चन्द्रमा। २. खीरा। |
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सुधांशु :
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पुं० [सं०] १.चन्द्रमा। २. कपूर। |
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सुधांशु-रक्त :
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पुं० [सं०] मोती मुक्ता। |
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सुधाश्रवा :
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वि० [सं० सुधा+स्रवण] अमृत बरसानेवाला। |
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सुधासित :
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भू० कृ० [सं०] जिस पर चूना पोतकर सफेदी की गई हो। |
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सुधासू :
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पुं० [सं०] चन्द्रमा। |
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सुधासूति :
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पुं० [सं०] १. चन्द्रमा। २. यज्ञ। ३. कमल। |
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सुधास्रवा :
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स्त्री० [सं०] १. गले के अंदर की घंटी। मोटी जीभ। कौआ। २. रुदंती या रुद्रवंती नामक वनस्पति। |
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सुधाहर :
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पुं० [सं०] गरुड़। |
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सुधि :
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स्त्री० [सं० सुद्ध या शोध] १. चेतना। होश। २. ज्ञान। ३. याद। स्मृति। विशेष दे० ‘सुध’। ४. ‘दोहा नामक’ छंद का दूसरा नाम। ५. दे० ‘सुध’। |
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सुधित :
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भू० कृ० [सं०] १. सुधा से युक्त किया हुआ। २. सुधा जैसा फलतः मधुर। ३. जो सुधा या अमृत के रूप में लाया गया हो। ४. सुव्यवस्थित। |
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सुधी :
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वि० [सं०] १. अच्छी बुद्धिवाला। २. बुद्धिमान्। समझदार। पुं० १. पण्डित। विद्वान। २. धार्मिक व्यक्ति। |
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सुधीर :
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वि० [सं०] जिसमें यथेष्ट धैर्य हो। बहुत धैर्यवान्। |
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सुधुम्नानी :
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स्त्री० [सं०] पुराणानुसार पुष्कर द्वीप के सात खंडों में से एक। |
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सुधूपक :
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पुं० [सं०] चन्द्रमा। |
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सुधूम्र-वर्णा :
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स्त्री० [सं०] अग्नि की सात जिह्वाओं में से एक। |
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सुधोद्भव :
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पुं० [सं०] धन्वन्तरि। |
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सुधोद्भवा :
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स्त्री० [सं०] हरीतकी। हर्रे। |
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