शब्द का अर्थ
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सिंदूर :
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पुं० [सं०] १. ईगुर को पीसकर बनाया हुआ एक प्रकार का लाल चूर्ण जो सौभाग्यवती हिंदू स्त्रियाँ अपनी माँग में भरती हैं। गणेश और हनुमान की मूर्तियों पर भी यह घी में मिलाकर पोता जाता है। (वर्मिलियन) मुहा०—सिंदूर चढ़ना=कुमारी का विवाह होना। सिंदूर भरना या देना=विवाह के समय वर का कन्या की माँग में सिंदूर डालना। २. बबूल की जाति का एक पहाड़ी पेड़ जो हिमालय के निचले भागो में पाया जाता है। वि०=सिंदूरी। |
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सिंदूर-तिलक :
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पुं० [सं० ब० स०] हाथी। |
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सिंदूर-तिलका :
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स्त्री० [सं० सिंदूर-तिलक-टाप्] सधवा स्त्री जिसके माथे पर सिंदूर रहता है। |
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सिंदूर-पुष्पी :
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स्त्री० [सं० ब० स०] एक पौधा जिसमें लाल फूल लगते हैं। वीर-पुष्पी। सदासुहागिन। सिदूरी। |
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सिंदूर-बंदन :
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पुं० [सं०] विवाह-संस्कार के समय एक रीति जिसमें वर कन्या की माँग में सिंदूर भरता है। |
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सिंदूर-रस :
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पुं० [सं०] रस सिंदूर नामक खनिज पदार्थ। रस कपूर। |
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सिंदूरदान :
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पुं० [सं०] विवाह के समय वर का कन्या की माँग में सिंदूर भरना। |
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सिंदूरिया :
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स्त्री० [सं० सिंदूर+हिं० इया (प्रत्य०)] सिंदू के रंग का। जैसे—सिंदूरिया आम। स्त्री० सिंदूरपुष्पी। सदासुहागिन। |
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सिंदूरिष्ठा :
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स्त्री० [सं० सिंदूर+कन-टाप्-इत्व] सिंदूर। |
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सिंदूरी :
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वि० [सं० सिंदूर+हिं० ई (प्रत्य०)] सिंदूर के रंग का। पीला मिला लाल। पुं० १. उक्त प्रकार का रंग जो पीलापन लिये चमकीला होता है । (वर्मिलियन) २. एक प्रकार का बढ़िया आम। ३. बलूत की जाति का एक प्रकार का छोटा पेड़। ४. लाल हलदी। ५. धव। धातकी। ६. सिंदूरपुष्पी। ७. लाल रंग का कपड़ा। |
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