सज्जा/sajja

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सज्जा  : स्त्री० [सं० सज्ज-अच्-टाप] १. सजाने की क्रिया या भाव। सजावट। २. वेष-भूषा। ३. कोई काम सुंदर रूप से प्रस्तुत करने के लिए सभी आवश्यक उपकरण, साधन आदि एकत्र करके यथा स्थान बैठाना या लगाना। ४. उक्त कार्य के लिए सभी आवश्यक और उपयोगी उपकरणों और साधनो का समूह। (ईक्विपमेन्ट, अंतिम दोनो अर्थों के लिए) स्त्री० [सं० शय्या] १. सोने की चारपाई शय्या। २. श्राद्ध आदि के समयमृतक के उद्देश्य से दान की जाने वाली शय्या जिसके साथ ओढ़ने, बिछाने आदि के कपड़े भी रहते हैं। वि० [सं० सव्य] दाहिना (पश्चिम)।
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सज्जाकला  : स्त्री० [सं०] चीजों, स्थानों आदि को अच्छी तरह सजाकर आकर्षक तथा मनोहर बनाने की कला या विद्या। (डेकोरेटिव आर्ट)
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सज्जाद  : वि० [अ०] सिंजदा करने वाला। पूजक। उपासक।
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सज्जाद नशीन  : पुं० [अ० सज्जादः+फा० नशीन] मुसलमानों में वह पीर या फकीर जो गद्दी और तकिया लगाकर बैठता हो।
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सज्जादा  : पुं० [अ० सज्जाद-] १. बिछाने का वह कपड़ा जिस पर मुसलमान नमाज पढ़ते हैं। मुसल्ला। २. पीर, फकीरों आदि की गद्दी। ३. आसन।
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सज्जान  : पुं० [सं० कर्म० स०, सत्+जन्] १. भला आदमी। सत्पुरुष। शरीफ। २. अच्छे कुल का व्यक्ति। ३. प्रिय व्यक्ति। ४. पहरेदार। संतरी। ५. जलाशय या घाट। ६. दे० ‘सज्जा’।
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