शब्द का अर्थ
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शोष :
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पुं० [सं०√शुष् (सोखना)+घञ्] १. सूखने की क्रिया या भाव। २. शुष्कता। खुश्की। ३. क्षीण होना। क्षय। ४. धीरे-धीरे शरीर का क्षीण य दुबला होना। ५. क्षय नामक रोग। तपेदिक। ६. बच्चों का सुखंडी नामक रोग। |
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शोष-कर्म :
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पुं० [सं० कर्म० स०] बावली या तालाब आदि से पानी निकलवाना और उससे खेत सिंचवाना। (जैन) |
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शोषक :
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वि० [सं०√शुष् (शोखना)+णिच्, ण्वुल—अक] १. सोखनेवाला। २. आर्द्रता, नमी आदि चूस या सोख लेनेवाला। ३. क्षीण करनेवाला। ४. अपने लाभ या स्वार्थ के लिए नष्ट करनेवाला। ५. दूर करने या हटानेवाला। पुं० १. वह जो दूसरों का धन हरण करता हो, तथा उनका पूरा पूरा वास्तविक देय भाग न देता हो। २. समाज का वह वर्ग जो धन खींचता तथा बटोरता चलता हो और गरीबों को और अधिक गरीब बनाता चलता हो। (एक्सप्लाइटर, उक्त दोनों अर्थों में) |
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शोषण :
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पुं० [सं०√शुष् (शोकना)+ल्युट्—अन] [वि० शोषी, शोषनीय] १. एक पदार्थ का किसी दूसरे पदार्थ में से उसका जलीय या तरल अंश धीरे धीरे खींचकर अपने अन्दर करना या लेना। सोखना। (ऐब्जार्पशन) २. सुखाना। ३. किसी चीज की ताजगी या हरापन धीरे धीरे कम यो दूर करना। ४. परोक्ष उपायों से किसी की कमाई या धन धीरे धीरे अपने हाथ में करना। (एक्सप्लाएटेशन) ५. न रहने देना। दूर करना। ६. क्षीण या दुबला करना। ७. कामदेव के पाँच बाणों में से एक जो मनुष्य को चिंतित करके उसका रक्त शोखनेवाला कहा गया है। ८. सोंठ। ९. सोना पाढ़ा। १॰. पिप्पली। |
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शोषणीय :
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वि० [सं०√शुष् (सोखना)+अनीयर्] जिसका शोषण हो सके या होने को हो। |
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शोषना :
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स० [सं० शोषण] शोषण करना। सोखना। |
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शोषयितव्य :
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वि० [सं०√शुष् (सोखना)+णिच्—तव्य]=शोषणीय। |
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शोषहा :
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वि० [सं० शोष√हन् (मारना)+क्विप्] शोष रोग का नाश करनेवाला। पुं० अपामार्ग। चिमड़ा। |
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शोषित :
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भू० कृ० [सं०√शुष् (शोखना)+णिच्—क्त] १. जिसका शोषण हुआ हो। सोखा हुआ। २. सूखा या सुखाया हुआ। ३. (व्यक्ति या वर्ग) जिसका देय भाग उसे पूरा पूरा न मिलता हो और इस प्रकार जिसकी दुर्बलता या असहाय अवस्था का दूसरे फायदा उठाते हों। |
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शोषी (षिन्) :
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वि० [सं०√शुष् (सोखना)+णिनि] [स्त्री० शोषिणी] १. शोषण करने या सोखने वाला। २. सुखानेवाला। |
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