शब्द का अर्थ
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शूल :
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पुं० [सं०√शूल+क] १. बरछे की तरह का एक प्राचीन अस्त्र। विशेष दे० ‘त्रिशूल’। २. बडा, लंबा और नुकीला काँटा। ३. वायु के प्रकोप से पेट या आँतों में होनेवाली एक प्रकार की प्रबल और विकट पीड़ा (काँलिक पेन) ४. किसी नुकीली चीज के चुभने की तरह की शारीरिक पीड़ा। ५. सूली जिस पर प्राचीन काल में लोगों को प्राण दंड दिया जाता था। ६. पीड़ा विशेषतः छाती और पेट में होनेवाली ऐसी पीड़ा जो बरछी की तरह चुभती हुई जान पड़ती है। ७. एक रोग जिसमें रह रहकर उक्त प्रकार की पीड़ा होती है। ८. छड़। सलाख। ९. मृत्यु। मौत। १॰. ज्योतिष में विष्कंभ आदि सत्ताईस योगों के अन्तर्गत नवाँ योग। ११. झंडा। पताका। १२. पोस्ते की पत्तियों की वह तह जो अफीम की चक्की चलाने के समय उसके चारों ओर ऊपर-नीचे लगाई जाती है (बंगाल)। वि०=नुकीला। |
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शूल-धन्वा (न्वन्) :
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पुं० [सं० ब० स०] शिव। |
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शूल-धर :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शिव। |
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शूल-धरा :
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स्त्री० [सं० शूलधर-टाप्] दुर्गा। |
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शूल-धारिणी :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] दुर्गा। |
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शूल-नाशन :
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पुं० [सं० शूल√नश्+णिच्-ल्यु-अन०] १. सौवर्चत्य लवण। २. हींग। ३. पुष्कर मूल। ४. वैद्यक में एक प्रकार का चूर्ण जिसका व्यवहार प्रायः शूल रोग में किया जाता है। |
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शूल-पन्नी :
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स्त्री० एक प्रकार की घास, जिसे शूली भी कहते हैं। |
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शूल-पाणि :
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पुं० [सं० ब० स०] शिव। |
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शूल-स्तूप :
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पुं० [सं० उपमि० स०] शूल के आकार-प्रकार का स्तूप। |
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शूल-हंत्री :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] अजवाइन। |
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शूलक :
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पुं० [सं० शूल+कन्] १. पुराणानुसार एक ऋषि का नाम। २. दुष्ट या पाजी घोड़ा। |
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शूलकार :
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पुं० [सं० शूल√कृ (करना)+अण्, उप० प० स०] पुराणानुसार एक नीच जाति। |
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शूलगव :
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पुं० [सं० ब० स०] शिव। |
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शूलगिरि :
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पुं० [सं० उपमि० मध्य० स० वा] मदरास राज्य का एक पर्वत। |
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शूलग्रह :
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पुं० [सं० शूल√ग्रह (रखना)+अच्] शिव। |
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शूलग्राही (हिन्) :
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पुं० [सं० शूल√ग्रह् (रखना)+णिनि] शिव। महादेव। |
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शूलघ्नी :
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स्त्री० [सं०] सज्जी मिट्टी। |
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शूलधारी (रिन्) :
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पुं० [सं० शूल√धृ (रखना)+णिनि] शिव। |
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शूलना :
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अ० [हि० शूल+ना] १. शूल की तरह गड़ना। २. शूल गडने के समान पीड़ा होना। स० शूल गड़ाना या चुभाना। |
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शूलहस्त :
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पुं० [सं० ब० स०] शिव। |
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शूला :
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स्त्री० [सं० शूल-टाप्] १. वेश्या। रंडी। २. छड़। सलाख। ३. दे० ‘सूली’। |
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शूलांक :
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पुं० [सं० ब० स०] शिव। महादेव। |
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शूलि :
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पुं० [सं० शूल-इनि] शिव का एक नाम। स्त्री०=सूली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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शूलिक :
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पुं० [सं० शूल+ठन्-इक] १. खरगोश। खरहा। २. वह जो लोगों को शूली पर चढ़ाता था। |
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शूलिका :
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स्त्री० [सं० शूलिक—टाप्] सीख में गोद कर भूना हुआ मांस। कबाब। |
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शूलिनी :
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स्त्री० [सं० शूलिन्—ङीष्] १. दुर्गा का नाम। २. नागवल्ली। पान। ३. पुत्रदात्री नाम की लता। |
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शूली (लिन्) :
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वि० [सं० शूल+इनि] शूल रोग से ग्रस्त। पुं० १. शिव। २. एक नरक। ३. खरगोश। स्त्री०=सूली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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शूल्य :
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पुं० [सं० शूल+यत्]=शूलिका। |
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शूल्यपाक :
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वि० [सं० ब० स०] सीख पर पकाया हुआ। पुं० कबाब। |
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शूल्यवाण :
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पुं० [सं० ब० स०] भूतयोनि। |
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