शब्द का अर्थ
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शिक्षा :
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स्त्री० [सं०√शिक्ष्+अ] [वि० शिक्षित, शैक्षणिक] १. किसी प्रकार का ज्ञान या विद्या प्राप्त करने के लिए सीखने-सिखाने का क्रम। तालीम। जैसे—किसी भाषा विज्ञान या शास्त्र की शिक्षा। २. उक्त प्रकार से प्राप्त किया हुआ ज्ञान या विद्या (एजूकेशन)। जैसे—आप अभी अमेरिका से चिकित्सा शास्त्र की शिक्षा प्राप्त कर लौटे हैं। क्रि०—प्र०—देना।—पाना।—मिलना।—लेना। विशेष—आज—कल शिक्षा के अन्तर्गत वे सभी बातें हैं जो किसी को किसी विषय का अच्छा ज्ञाता या उपयुक्त कार्यकर्ता बनाने के लिए पढ़ाई या सिखाई जाती हैं। शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को विद्या या विषय का ज्ञाता बनाने के सिवा नैतिक, मानसिक और शारीरिक सभी दृष्टियों से कर्मठ, योग्य, सदाचारी, समर्थ, स्वावलम्बी आदि बनाना भी होता है। ३. किसी प्रकार के अनुचित कार्य या व्यवहार से मिलनेवाला उपदेश या ज्ञान। नसीहत। जैसे—इस मुकदमेबाजी से तुम्हें तो शिक्षा मिली। ४. (क) छः वेदांगों में से एक जिसमें वैदिक साहित्य के वर्णों, मात्राओं, स्वरों आदि के उच्चारण—प्रकार का विवेचन है। (ख) आजकल व्याकरण का वह अंग जिसमें अक्षरों या वर्णों और उनके संयुक्त रूपों आदि के ठीक-ठीक उच्चारण स्वरूप और फलतः उनके लेखन-प्रकार (अक्षरी या हिज्जे) का विवेचन होता है। (आँर्थोग्रैफी) ५. नम्रता विनय। ६. दक्षता। निपुणता। ७. उपदेश। ८. मंत्रणा० सलाह। ९. शासन। दंड। सजा। |
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समानार्थी शब्द-
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शिक्षा-गुरु :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शिक्षा देने अर्थात् विद्या पढ़ानेवाला गुरु। |
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शिक्षा-दंड :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] वह दंड जो कोई बुरी आदत या चाल छुड़ाने के लिए दिया जाय। |
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शिक्षा-दीक्षा :
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स्त्री० [सं० मध्यम० स०] ऐसी शिक्षा जो चारित्रिक, बौद्धिक या मानसिक विकास के उद्देश्य से दी जाती हो। |
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शिक्षा-पद :
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पुं० [सं० ष० त० स०] १. उपदेश। २. बौद्धों में पंचशील के नियम जिनका लोगों को उपदेश दिया जाता है। |
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शिक्षा-पद्धति :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] शिक्षा देने का ढंग या तरीका। जैसे—भारतीय शिक्षा-पद्धति। |
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शिक्षा-परिषद् :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] १. प्राचीन भारत में किसी ऋषि का वह शिक्षालय जहाँ वैदिक ग्रन्थों की पढ़ाई होती थी। २. आजकल शिक्षा संबंधी व्यवस्था करनेवाली परिषद्। |
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शिक्षा-प्रणाली :
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स्त्री० [सं० ष० त० स०] विद्यार्थियों को शिक्षा देने की प्रणाली अर्थात् ढंग या तरीका। |
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शिक्षा-विभाग :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शिक्षा-संबंधी राजकीय विभाग। |
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शिक्षा-व्रत :
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पुं० [सं० मध्यम० स०] जैन धर्म के अनुसार गार्हस्थ्य धर्म का एक प्रधान अंग जो चार प्रकार का कहा गया है—सामयिक, देशावकाशिक, पौष और अतिथि संविभाग। |
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शिक्षा-शक्ति :
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स्त्री० [सं० ष० त०] शिक्षा ग्रहण करने का सामर्थ्य। |
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शिक्षाकार :
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पुं० [सं०√शिक्षा√कृ (करना)अच्] व्यास। |
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शिक्षाक्षेप :
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पुं० [सं० ब० स०] काव्य में एक प्रकार का अलंकार जिसमें प्रिय को किसी प्रकार की शिक्षा देकर अर्थात् अच्छी बात बतलाकर कही जाने से रोका जाता है। (केशव) |
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शिक्षार्थी (र्थिन्) :
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वि० [सं० शिक्षार्थ+इनि] १. जो शिक्षा प्राप्त करना चाहता हो। २. शिक्षा प्राप्त करनेवाला। |
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शिक्षालय :
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पुं० [सं० ष० त० स०] शिक्षणालय (दे०)। |
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