वप्र/vapr

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वप्र  : पुं० [सं०√वप्+रन्] १. मि्टटी का वह ऊँचा धुस्सा जो गढ़ या नगर की खाई से निकली हुई मिट्टी के ढेर के चारों ओर उठाया जाता है और जिसके ऊपर प्राकार या दीवार होती है। २. वह ढालुई वास्तुरचना जो मकान की कुरसी की रक्षा के लिए छोटी दीवार के रूप में बनाई जाती है। ३. नदी का किनारा। ४. खेत। ५. धूल। रेणु। ६. पहाड़ की चोटी या पहाड़ के ऊपर की समतल भूमि। ७. टीला। भीटा। ८. प्रजापति। ९. द्वापर युग के एक व्यास।
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वप्र-क्रिया  : स्त्री० [सं० ब० स०] वप्र-कीड़ा।
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वप्र-क्रीड़ा  : स्त्री० [सं० ष० त०] पशुओं का अपने दाँतों, नाखूनों, सीगों आदि से जमीन या टीले की मिट्टी कुरेदना।
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वप्रक  : पुं० [सं० वप्र+कन्] १. वृत्त की परिधि। गोलाई का घेरा। २. चक्कर।
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वप्रा  : स्त्री०[सं० वप्र+टाप्] १. जैनों के इक्कीसवें जिन नेमिनाथ की माता का नाम। २. मंजीठ।
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वप्रि  : पुं० [सं० वप्+क्रिन्] १. क्षेत्र। २. समुद्र। ३. स्थान की दुर्गमता।
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