राश/raash

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राश  : पुं० [अ० मि० सं० राशि] राशि। ढेर।
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राशन  : पुं० [अं० रैशन] १. खाने-पीने की वे चीजें जो अभी पकाई न गई हों, परन्तु उपयोग या व्यवहार के लिए एकत्र करके रखी या लोगों को दी गई हों। रसद। २. आज-कल वह व्यवस्था जिसके अनुसार उपयोग या व्यवहार की कुछ विशिष्ट वस्तुएँ लोगों को उनकी आवश्यकता के अनुसार नियमित रूप से और नियत मात्रा में बाँटी या दी जाती हों। ३. उक्त का वह अंश जो किसी विशिष्ट व्यक्ति को मिला या मिलता हो।
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राशि  : स्त्री० [सं०√राश् (शब्द)+इन्] १. किसी चीज के कणों, खंडों बिदुओं आदि की पुंज या समूह। जैसे—जलराशि, रत्नराशि। २. गणित में कोई ऐसी संख्या जिसके संबंध में जोड़, गुणा, भाग आदि क्रियाएँ की जाती हों। ३. कांति-वृत्त में पड़नेवाले विशिष्ट तारा समूह जिनकी संख्या बारह है और जिनके नाम इस प्रकार हैं—मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धन, मकर, कुंभ और मीन। विशेष—क्रांति-वृत्त अर्थात् पृथ्वी के परिभ्रमण मार्ग के दोनों ओर प्रायः ८0 अंश की दूरी तक लगभग सवा दो सौ बहुत बड़े तारे हैं जो प्रायः बहुत दूर होने के कारण हमें बहुत छोटे दिखाई देते हैं। हमें अपनी पृथ्वी तो चलती हुई दिखाई नहीं देती, और ऐसा जान पड़ता है कि चन्द्रमा और सूर्य ही इस क्रांति-वृत्त पर चल रहे हैं। चंद्रमा के परिभ्रमण के विचार से उक्त सब तारे २७ तारक पुंजों में विभक्त किये गये हैं, जिन्हें नक्षत्र कहते हैं। परन्तु सूर्य के परिभ्रमण के विचार से इन्हीं तारों के १२ विभाग किए गये हैं, जिन्हें राशि कहते हैं। प्रत्येक राशि में प्रायः दो या इससे अधिक नक्षत्र पड़ते हैं, और उनके योग से कुछ विशिष्ट प्रकार की कल्पित आकृतियों वाली ये राशियाँ मानी गई है, और उन्हीं आकृतियों के विचार से उन राशियों का नाम करण हुआ है। जैसे—तुला राशि की आकृति तराजू की तरह, मकर राशि की आकृति मगर की तरह, वृश्चिक राशि की आकृति बिच्छू की तरह, सिंह राशि की आकृति शेर की तरह आदि आदि। जब सूर्य एक राशि को पार करके दूसरी राशि में प्रवेश करता है, तब उस संधिकाल को संक्रांति कहते हैं। विशेष दे० ‘नक्षत्र’। मुहावरा—(किसी से किसी की) राशि बैठाना या मिलाना= (क) सामाजिक व्यवहार की दृष्टि से अनुकूलता होना। मेल बैठना। (ख) फलित ज्योतिष की दृष्टि से ऐसी स्थिति होना जिससे दोनों में वैवाहिक संबंध होने पर अच्छी तरह जीवन-यापन या निर्वाह हो सके। ४. वह स्थिति जिसमें कोई व्यक्ति किसी की धन-संपत्ति का उत्तराधिकारी होकर मालिक बनता है। रास। विशेष—इस अर्थ से संबंध रखनेवाले मुहा० के लिए दे० ‘रास’ के अंतर्गत मुहा०।
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राशि-चक्र  : पुं० [सं० ष० त०] आकाशस्थ बारह राशियों का वह मंडल जो सूर्य के परिभ्रमण के विचार से क्रांतिवृत्त में पड़ता है। (जोडियक)
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राशि-नाम (मन्)  : पुं० [सं० मध्य० स०] व्यक्ति के पुकारने के नाम से भिन्न वह नाम जो उसके जन्म के समय होनेवाली राशि के विचार से रखा जाता है। विशेष—ऐसे नामों का आरम्भ विभिन्न राशियों के विचार से विभिन्न वर्णों से होता है।
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राशि-भाग  : पुं० [सं० ष० त०] राशि-चक्र की किसी राशि का भाग या अंश। भग्नांश। (ज्योतिष)
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राशि-भोग  : पुं० [सं० ष० त०] १. किसी ग्रह के किसी राशि में स्थित होने का भाव। २. उतना समय जितना किसी ग्रह को एक राशि में स्थित रहना पड़ता है।
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राशिप  : पुं० [सं० राशि√पा (रक्षण)+क] किसी राशि का स्वामी या अधिपति देवता। (फलित ज्योतिष)
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राशी  : वि० [अ०] रिश्वत खानेवाला। घूसखोर। स्त्री०=राशि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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