मरण/maran

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मरण  : पुं० [सं०√मृ (मरना)+ल्युट्—अन] १. मरने की क्रिया या भाव। मौत। २. साहित्य में एक संचारी भाव जो विरही की उस अवस्था का सूचक होता है जब वह विरह में मरणासन्न-सा रहता है।
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मरण-गति  : स्त्री० [ष० त०] आबादी या जन-संख्या के विचार से उसके अनुपात में होनेवाली मृत्युओं की दर या हिसाब (डेथ रेट)। जैसे—अमुक देश की मरण-गति धीरे-धीरे घट (या बढ़) रही है।
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मरण-प्रमाणक  : पुं० [सं० ष० त०] व्यक्ति का मरण सूचित करनेवाला प्रमाण-पत्र।
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मरण-शील  : वि० [सं० ब० स०] मर जाना जिसका धर्म या स्वभाव हो। जो अन्त में अवश्य मरता हो। मरण-धर्मा।
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मरण-शुल्क  : पुं० [सं० ष० त०] दे० ‘मत्युकर’।
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मरणधर्मा  : वि०=मरणशील।
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मरणाशंसा  : स्त्री० [सं० मरण-आशंसा, ष० त०] शीघ्र मरने की इच्छा जल्दी मरने की कामना। (जैन)
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मरणाशौच  : पुं० [सं० मरण-अशौच, ष० त०] घर में किसी की मृत्यु होने के कारण सम्बन्धियों आदि की लगनेवाला सूतक। अशौच।
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मरणीय  : वि० [सं० मरण+छ-ईय] १. जो मरने को हो या मरने के समीप हो। मर्त्य। २. जिसका मरना अवश्यम्भावी हो।
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मरणोन्मुख  : वि० [सं० मरण-उन्मुख; ष० त०] जो मर रहा हो या जल्दी मरने को हो। मृत्युवाला।
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