भँवन/bhanvan

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भवन  : पुं० [सं०√भू (होना)+ल्युट-अन] १. अस्तित्व में आना। उत्पत्ति या जन्म। २. कोई वास्तु-रचना विशेषतः वास-स्थान। ३. प्रासाद। महल। ४. जगत्। संसार। ५. आधार या आश्रय का स्थान। जैसे—करुणाभवन। ६. छप्पय का एक भेद। पुं० [सं० भ्रमण] १. चारों ओर घूमने या चक्कर लगाने की क्रिया या भाव। भ्रमण। २. कोल्हू के चारों ओर का वह चक्कर जिसमें बैल घूमते हैं।
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भवन-कक्ष्या  : स्त्री० [सं०] महल या राजप्रासाद का आंगन या चौक।
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भवन-दीर्घिका  : स्त्री० दे० ‘गृह-दीर्घिका’।
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भवन-पति  : पुं० [सं० ष० त०] १. घर का मालिक। गृहपति। २. राशि चक्र में किसी ग्रह का स्वामी। ३. जैनियों के दस देवताओं का एक वर्ग जिनके नाम ये हैं—असुरकुमार, नागकुमार, तडित्कुमार, सुवर्णकुमार, बहिकुमार, अनिलकुमार, स्तनित्कुमार, उदधिकुमार, द्वीपकुमार, और दिक्कुमार।
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भवनवासी (सिन्)  : पुं० [सं० भवन√वस् (निवास करना)+णिनि] जैनों के अनुसार आत्माओं के चार भेदों में से एक।
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भवना  : अ० [सं० भ्रमण] घूमना। फिरना। चक्कर खाना।
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भवनी  : स्त्री० [सं० भवन] =गृहिणी।
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भवनीय  : वि० [सं०√भू (होना)+अनीयर] १. भविष्य में होनेवाला। २. आसन्न। सन्निकट।
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भवन्नाथ  : पुं० [सं० ष० त०] विष्णु।
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