शब्द का अर्थ
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नर :
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वि० [सं०√नृ (नय)+अच्] १. जिसमें वे सब शारीरिक अवयव हों जो किसी विशिष्ट वर्ग के वीर्यवान् जीवों में होते हैं। (रज युक्त जीवों को मादा कहते हैं) जैसे—नर व्यक्ति, नर हाथी। २. बहादुर। वीर। ३. जो अपने वर्ग में सबसे बढ़कर, बड़ा या श्रेष्ठ हो। जैसे—नर हीरा। पुं० [सं०] १. विष्णु। २. शिव। ३. अर्जुन। ४. एक प्रकार की देव-योनि। ५. पुराणानुसार एक ऋषि जिनके भाई का नाम नारायण था, और जो धर्मराज के पुत्र थे। ६. गय राक्षस का एक नाम। ७. पुरुष। मर्द। ८. नौकर। सेवक। ९. वह खूँटी जो छाया की दिशा, गति आदि जानने के लिए गाड़ी जाती है। लंब। शंकु। १॰. दोहे का एक भेद जिसमें १५ गुरु और १८ लघु होते हैं। ११. छप्पय का एक भेद जिसमें १॰ गुरु और १३ लघु होते हैं। १२. एक प्रकार का क्षुप जिसे गंधैल, राय-कपूर, रोहिस और सेंधिया भी कहते हैं। पुं० १.=नरकट। २.=नल। |
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नर हीरा :
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पुं० [हिं० नर=बड़ा+हिं० हीरा] वह बड़ा हीरा जिसके छः या आठ पहल हों। |
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नर-कटिया :
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वि० स्त्री० [हिं० नार+काटना] नवजात शिशु को नाल काटनेवाली (स्त्री)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री चमारिन। |
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नर-कूचर :
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पुं०=कूचर। |
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नर-केशरी :
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पुं० [सं० मयू० स०] १. वह जो पुरुषों में सिंह के समान वीर और साहसी हो। २. विष्णु का नृसिंह अवतार। |
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नर-केसरी :
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पुं०=नरकेशरी। |
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नर-केहरि :
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पुं० [सं० नर+हिं केहरि] नर केशरी (नृसिंह)। |
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नर-कौतुक :
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पुं० [सं० ब० स०] कोई चमत्कारपूर्ण या जादू-भरा खेल। |
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नर-गण :
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पुं० [सं० ब० स०] उत्तरा फाल्गुनी, उत्तराषाढ़, पूर्वभाद्रपद, रोहिणी, भरणी और आर्द्रा नक्षत्रों का एक गण जिसमें जन्म लेनेवाला बुद्धिमान तथा सुशील होता है। (फलित ज्यो०) |
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नर-तात :
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पुं० [सं० ष० त०] राजा। |
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नर-त्राण :
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पुं० [सं० ष० त०] १. मनुष्यों का रक्षक, राजा। २. श्रीकृष्ण। |
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नर-दारा :
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पुं० [सं० नर और दारा] १. जनखा। हिजड़ा। २. वह जो पुरुष हो जाने पर भी स्त्रियों के से हाव-भाव दिखाता या रूप-रंग रखता हो। जनाना। ३. डरपोक व्यक्ति। स्त्री०=नर-नारि (द्रौपदी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नर-देव :
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पुं० [सं० उपमि० स०] १. राजा। २. ब्राह्मण। |
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नर-नाथ :
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पुं० [सं० उपमि० स०] नरदेव। (दे०) |
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नर-नायक :
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पुं० [सं० उपमि० स०] राजा। |
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नर-नारायण :
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पुं० [सं० द्व० स०] नर और नारायण नामक दो भाई जो प्रसिद्ध ऋषि हुए हैं और विष्णु के अवतार माने जाते हैं। (महाभारत) |
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नर-नारि :
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स्त्री० [सं०] नर (अर्जुन) की स्त्री, द्रौपदी। |
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नर-नाहर :
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वि० [सं० नर+हिं० नाहर (सिंह)] जो पुरुषों में शेर के समान वीर और साहसी हो। पुं० नृसिंह नामक अवतार। |
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नर-पति :
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पुं० [सं० ष० त०] राजा। नृपति। |
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नर-पद :
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पुं० [सं० ष० त०] १. जनपद। २. देश। |
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नर-पशु :
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वि० [सं० उपमि० स०] जो मनुष्य होने पर भी पशुओं का-सा आचरण करता हो। पुं० १. आचार-विहीन हीन व्यक्ति। २. नृसिंह नामक अवतार। |
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नर-पिशाच :
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पुं० [सं० उपमि० स०] मनुष्य होने पर भी जो पिशाचों के से निकृष्ट कर्म करता हो। परम क्रूरतापूर्ण और हेय कर्म करनेवाला। व्यक्ति। |
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नर-पुर :
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पुं० [सं० ष० त०] मनुष्य-लोक। पृथ्वी। |
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नर-प्रिय :
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पुं० [सं० ष० त०] नील का पेड़। |
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नर-भू, नर-भूमि :
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स्त्री० [सं० ष० त०] भारतवर्ष। |
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नर-मेध :
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पुं० [सं० ब० स०] १. प्राचीन काल में होनेवाला एक प्रकार का यज्ञ जिसमें मनुष्य के मांस की आहुति दी जाती है। २. बहुत अधिक मनुष्यों का प्रायः एक साथ होनेवाला संहार या हत्या। |
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नर-यंत्र :
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पुं० [सं०] ज्योतिष में एक प्रकार का शंकु-यंत्र जिसकी सहायता से धूप की छाया देखकर समय का बोध होता था। |
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नर-लोक :
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पुं० [सं० ष० त०] मनुष्य लोक। मृत्यु-लोक। संसार। |
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नर-वध :
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पुं० [सं० ष० त०] मनुष्य को मार डालना। नर-हत्या। |
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नर-वाहन :
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पुं० [सं० मयू० स०] १. ऐसी सवारी जिसे मनुष्य खींचता या ढोता हो। जैसे—डोली, पालकी आदि। २. [ब० स०] कुबेर। ३. किन्नर। |
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नर-व्याघ्र :
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पुं० [सं० उपमि० स०] १. वह जो मनुष्यों में व्याघ्र की तरह वीर और साहसी हो। २. वह जो मनुष्यों में परम श्रेष्ठ हो। ३. राजा। नृपति। ४. एक समुद्री जंतु जिसका निचला भाग मनुष्य के आकार का और ऊपरी भाग सिंह के आकार का होता है। |
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नर-शक्र :
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पुं० [सं० उपमि० स०] राजा। |
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नर-सार :
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पुं० [सं० ब० स०] नौसादार। |
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नर-सिंह :
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पुं० [सं० उपमि० स०]=नृसिंह। |
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नर-हत्या :
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स्त्री० [ष० त०] १. मनुष्य की हत्या। २. विधिक क्षेत्र में, किसी के द्वारा अनजाने में होनेवाली मनुष्य की ऐसी हत्या जो कानून की दृष्टि में विशेष अपराधपूर्ण नहीं होती। (होमीसाइड) |
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नर-हरि :
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पुं० [सं० उपमि० स०] नृसिंह भगवान जो दस अवतारों में से चौथे अवतार हैं। नृसिंह (अवतार)। |
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नरई :
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स्त्री० [?] १. वनस्पति का कोई ऐसी डंठल जो अंदर से खोखला या पोला हो। २. जलाशयों के पास होनेवाली एक प्रकार की घास। |
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नरक :
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पुं० [सं०√नृ (कलेश लेना)+अच्] [वि० नारकीय] वह स्थान जहाँ मृत्यु के उपरांत दुष्ट जीवों की आत्माओं को रहना तथा यातनाएँ सहनी पड़ती हैं। (पुराण) क्रि० प्र०—भोगना। २. बहुत गंदा और दुर्गंधपूर्ण स्थान। ३. ऐसा स्थान जहाँ अनेक प्रकार के कष्ट होते हों। ४. किसी चीज का बहुत ही गंदा और मैला अंश। ५. पुराणानुसार कलि के पौत्र का नाम जो कलि के पुत्र भय और पुत्री मृत्यु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था और जिसने अपनी बहन यातना के साथ विवाह किया था। ६. विप्रचित दानव के एक पुत्र का नाम। ७. ‘नरकासुर’। पुं० [सं०] राजा। |
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नरक-गति :
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स्त्री० [स० त०] वह दूषित कर्म जिसके फलस्वरूप नरक में वास होता है। (जैन) |
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नरक-चतुर्दशी :
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स्त्री० [मध्य० स०] कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी जिस दिन घर का सारा कूड़ा-कतवार निकालकर बाहर फेंका जाता है। विशेष—नरकासुर इसी दिन मारा गया था। |
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नरक-चौदस :
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स्त्री०=नरक-चतुर्दशी। |
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नरक-भूमिका :
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स्त्री० [ष० त०] नरक। (जैन) |
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नरकगामी (मिन्) :
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वि० [सं० नरक√गम् (जाना)+णिनि] जिसे अपने पापों का फल भोगने के लिए नरक जाना पड़े। |
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नरकट :
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पुं० [हिं०] बेत की जाति का एक प्रसिद्ध पौधा जिसके डंठल मजबूत किंतु खोखले होते हैं और अनेक प्रकार के कामों में लाये जाते हैं। |
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नरकंत :
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पुं०=नरकांत (राजा)। |
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नरकल :
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पुं०=नरकट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरकस :
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पुं०=नरकट। |
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नरकस्था :
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स्त्री० [सं० नरक√स्था (स्थित होना)+क—टाप्] वैतरणी नदी। |
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नरका :
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पुं० [सं० नरकट] हल के पीछे की वह नली जिसमें बोने के लिए बीज डाले जाते हैं। |
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नरकांतक :
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पुं० [सं० नरक-अंतक ष० त०] विष्णु। |
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नरकामय :
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पुं० [सं० नरक-आमय, ब० स०] प्रेत। |
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नरकारि :
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पुं० [सं० नरक-आमय, ष० त०] श्रीकृष्ण। |
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नरकावास :
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वि० [सं० नरक-आवास, ब० स०] नरक में रहनेवाला। पुं० नरक में होनेवाला वास या निवास। |
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नरकासुर :
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पुं० [सं० नरक-असुर मध्य स०] एक प्रसिद्ध राक्षस जो पृथ्वी का एक पुत्र था तथा जिसे विष्णु ने प्रागज्योतिषपुर का राज्य दिया था। इसके अत्याचारों से क्षुब्ध होकर भगवान कृष्ण ने इसका सिर सुदर्शन से काटा था। |
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नरकी :
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वि०=नारकी। वि० [सं० नारकिन्] बहुत बड़ा पापी जो नरक में जाने योग्य कर्म करता हो। |
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नरकुल :
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पुं०=नरकट। |
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नरखड़ा :
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पुं० [?] गला। |
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नरंग :
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पुं० [सं० नारंग] नारंगी का पेड़। |
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नरगा :
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पुं० [यू० नर्ग] १. शिकारी पशुओं को घेरने के लिए बनाया जानेवाला मनुष्यों का घेरा। २. जन-समूह। ३. विपत्ति। |
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नरगिस :
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स्त्री० [फा० नर्गिस] १. एक प्रकार का पौधा जो ठीक प्याज के पेड़ का-सा होता है। २. उक्त पौधे का फूल जो कटोरी के आकार का गोल तथा काला धब्बा लिये सफेद रंग का होता है। ३. आँख जिसका उक्त फूल उपमान माना जाता है। |
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नरगिसी :
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वि० [फा० नर्गिस] १. नरगिस-संबंधी। २. नरगिस के आकार-प्रकार, रूप-रंग आदि का। पुं० १. पुरानी चाल का एक प्रकार का कपड़ा जिस पर नरगिस के फूलों के आकार की बूटियाँ होती थीं। २. एक तरह का कवाब जो अंडों पर कीमा चढ़ाकर बनाया जाता है। |
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नरचा :
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पुं० [सं०] पटसन की एक जाति। |
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नरजना :
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[फा० नाराज़] नाराज होना। स० [अ० नज़र से वि०] कोई चीज नापना या तौलना। |
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नरजा :
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पुं० [हिं० नरजना] पलड़ा (तराजू का)। |
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नरजी :
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पुं० [हिं० नरजना] वह जो अनाज तौलने का काम करता हो। बया। |
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नरतक :
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पुं०=नर्तक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरत्व :
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पुं० [सं० नर+त्व] नर होने की अवस्था, गुण या भाव। नरता। |
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नरद :
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स्त्री० [फा० नर्द] १. चौसर का खेल। २. चौसर खेलने की गोटी। पुं० [सं० नर्द्द] नाद। शब्द। |
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नरदन :
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पुं० [सं० नर्द्दन] शब्द करने की क्रिया या भाव। |
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नरदमा :
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पुं० [?] नाबदान। पनाला। |
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नरदँवा :
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पुं०=नरदमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरदा :
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पुं०=नाबदान (पनाला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरंधि :
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पुं० [सं० नर√धा (धारण)+कि, पृषो० मुम्] लौकिक या सांसारिक जीवन। |
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नरंधिप :
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पुं० [सं०] विष्णु। |
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नरनाह :
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पुं० [सं० नरनाथ] राजा। |
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नरनी :
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स्त्री० [देश०] एक प्रकार का पौधा। |
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नरपाल :
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पुं० [सं० नर√पाल् (बचाना)+णिच्+अण्] राजा। भूपति। |
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नरपालि :
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पुं० [सं० नर√पाल्+णिच्+इन्] छोटा शंख। |
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नरबदा :
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स्त्री०=नर्मदा। |
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नरभक्षी (क्षिन्) :
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वि० [सं० नर√भक्ष् (खाना)+इनि] मनुष्यों को खानेवाला। पुं० दैत्य। राक्षस। |
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नरम :
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वि० [फा० नर्म] १. (पदार्थ) जिसमें कड़ापन न हो। जो दबाये जाने पर सहज में न दब सके। मुलायम। २. जिसमें उग्रता या कठोरता न हो। जैसे—नरम स्वभाव। कोमल। मृदुल। ३. पिलपिला या लचीला। ४. मंद। धीमा। ५. जल्द पचनेवाला। ६. जिसमें पौरुष या पुंसत्व न हो। पुं० [सं० नर्मन्] १. हँसी-दिल्लगी। २. साहित्य में, सखाओं का एक प्रकार का भेद। दे० ‘नर्म-सचिव।’ |
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नरम-रोआँ :
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पुं० [हिं० नरम+रोआँ] बुनाई के लिए भेंड़-बकरियों का लाल या सफेद रंग का रोआँ जो प्रायः बहुत मुलायम होता है। |
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नरम-लोहा :
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पुं० [हिं० नरम+लोहा] आग में तपाया हुआ लोहा, जिसे पीटकर सहज में दूसरा रूप दिया जा सकता है। |
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नरमट :
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स्त्री० [हिं० नरम+मिट्टी] ऐसी जमीन जिसकी मिट्टी नरम हो। |
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नरमदा :
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स्त्री०=नर्मदा। |
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नरमा :
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स्त्री० [हिं० नरम] १. एक प्रकार का विदेशी पौधा जिसमें कपास होती है। २. उक्त पौधे की रूई। ३. सेमल का रूई। पुं० कान के नीचे का कोमल अंश। |
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नरमाई :
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स्त्री०=नरमी। |
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नरमाना :
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स० [हिं० नरम+आना (प्रत्य०)] १. नरम अर्थात् कोमल या मुलायम करना। २.धीमा, मद्धिम या शांत करना। अ० १. नरम अर्थात कोमल या मुलायम होना। २. धीमा, मद्धिम या शांत होना। |
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नरमानिका :
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स्त्री०=नरमानिनी। |
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नरमानिनी :
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स्त्री० [सं० नर√मन् (मनना)+णिनि—ङीष्] ऐसी स्त्री जिसके चेहरे पर मूँछ और दाड़ी के कुछ बाल हों। |
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नरमावड़ी :
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स्त्री० [हिं० नरमा] बन-कपास। |
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नरमाहट :
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स्त्री०=नरमी। |
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नरमी :
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स्त्री० [फा० नर्मी] १. नरम या नर्म होने की अवस्था, गुण या भाव। २. कठोरतापूर्ण व्यवहार न करने का गुण। पद—नरमी से=शांति तथा ठंढे स्वभाव से। |
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नरर्षभ :
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पुं० [सं० नर-ऋषभ, स० त०] राजा। |
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नरवरी :
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स्त्री० [?] क्षत्रियों की एक जाति। |
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नरवा :
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पुं० [देश०] एक प्रकार की चिड़िया। |
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नरवाई :
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स्त्री० [?] घास-फूस। |
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नरवै :
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पुं० =नरपति (राजा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरसल :
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पुं०=नरकट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरसिंग :
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पुं० [?] एक प्रकार का विलायती फूल। |
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नरसिंगा :
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पुं०=नरसिंहा। |
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नरसिंघ :
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पुं०=नृसिंह। |
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नरसिंघा :
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पुं० [हिं० नर=बड़ा+सिंघा] तुरही के आकार का फूँककर बजाया जानेवाला ताँबे का एक बाजा। |
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नरसिंह-ज्वर :
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पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का ज्वर जो एक-एक दिन का नागा कर लगातार तीन-तीन दिन तक चढ़ा रहता है। (वैद्यक) |
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नरसिंह-पुराण :
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पुं० [सं० मध्य० स०]=नृसिंह पुराण। |
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नरसी मेहता :
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पुं० [?] गुजरात के एक प्रसिद्ध भक्त (संवत् १४७२-१५३८ वि०) जो दिन-रात भगवान का कीर्तन किया करते थे। |
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नरसेज :
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पुं० दे० ‘तिधारा’ (वृक्ष)। |
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नरसों :
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अव्य० [हिं० परसों का अनु०] १. परसों के बाद आनेवाले दिन में। २. (बीते हुए) परसों के पहले वाले दिन में। दे० ‘अतरसों’। |
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नरहर :
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स्त्री० [हिं० नल] पैर की वह हड्डी जो पिंडली के ऊपर होती है। |
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नरहरी :
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पुं० [सं०] एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में १४ और ५ के विराम से १९ मात्राएँ और अंत में एक नगण और एक गुरु होता है। |
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नरहा :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का जंगली वृक्ष जिसे चिल्ला (देखें) भी कहते हैं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरा :
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पुं० [हिं० नल या नरकट] १. नरकट की वह छोटी नली जिसके ऊपर सूत लपेटा जाता है। २. खेत का वह गड्ढा जिसमें पानी भरा हो। |
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नराच :
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पुं० [सं० नाराच] १. तीर। बाण। २. चार चरणों का एक वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में जगण, रगण, जगण, रगण, जगण और अंत में एक गुरु होता है। इसे पंचचामर और नागराज भी कहते हैं। |
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नराज :
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वि०=नाराज। |
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समानार्थी शब्द-
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नराजगी :
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स्त्री०=नाराजगी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नराजना :
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स० [हिं० नराज] अप्रसन्न या नाराज करना। अ० अप्रसन्न या नाराज होना। |
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नराट :
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पुं० [सं० नरराट्] राजा। |
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नरांतक :
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पुं० [सं० नर-अंतक, ष० त०] रावण का एक पुत्र जो युद्ध में अंगद के हाथों मारा गया था। |
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नराधम :
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पुं० [सं० नर-अधम, स० त०] मनुष्यों में अधम या नीच व्यक्ति। बहुत बड़ा अधम या नीच। |
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नराधार :
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पुं० [सं० नर-आधार, ष० त०] महादेव। शिव। |
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नराधिप :
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पुं० [सं० नर-अधिप, ष० त०] राजा। |
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नरायन :
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पुं०=नारायण (विष्णु)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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नराश, नराशन :
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वि० [सं० नर√अश् (खाना)+अण्, नर-अशन, ब० स०] मनुष्यों को खानेवाला। पुं० राक्षस। |
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नरि :
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स्त्री०=नदी उदा०—दुसह जमुना नरि एलहुं भाँगि।—विद्यापति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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नरिंद :
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पुं०=नरेंद्र (राजा)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरियर :
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पुं०=नारियल। |
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नरियरि :
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स्त्री०=नरेली। |
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नरियल :
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पुं० =नारियल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरिया :
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पुं० [हिं० नाली] मिट्टी का एक प्रकार का बड़ा खपड़ा जो मकान की छाजन पर रखने के काम में आता है। यह अर्द्धवृत्ताकार और नली की तरह लंबा होता है और इसे ‘‘थपुआ’’ खपड़े की संधियों पर औंधाकर इसलिए रखते हैं कि उन संधियों में से पानी नीचे न चूने पावे। |
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नरियाना :
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अ०=नर्राना। |
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नरी :
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स्त्री० [?] १. बकरी या बकरे का रँगा हुआ चमड़ा। २. लाल रंग का चमड़ा। ३.सिझाया हुआ मुल्याम चमड़ा। स्त्री० [हिं० नल] १. नली। २. जुलाहों की ढरकी में की वह नली जिस पर सूत लपेटा जाता है। नार। ३. जलाशयों के किनारे होनेवाली एक प्रकार का घास। स्त्री० [फा०]=नरपन। स्त्री० [सं० नर=पुरुष] औरत। स्त्री। पुं० [?] एक प्रकार का बगला। |
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नरु :
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पुं०=नर (मनुष्य)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरुआ :
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पुं० [हिं० नल] [स्त्री० अल्पा० नरुई ] अनाज के पौधों का पतला डंठल जो अंदर से पोला होता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नरेतर :
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पुं० [सं० नर-इतर, पं० त०] मनुष्य से भिन्न श्रेणी का प्राणी अर्थात् जानवर या पशु। |
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नरेंद्र :
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पुं० [सं० नर-इंद्र, ष० त०] १. राजा। नरेश। २. वह जो बिच्छू, साँप आदि का विष दूर करने की कला या विद्या जानता हो। विष-वैद्य। ३. श्योनाक। सोना-पाढ़ा। ४. सार नामक छंद का दूसरा नाम। |
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नरेंद्र-मंडल :
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पुं० [ष० त०] अंग्रेजी शासन-काल में देशी रियासतों के राजाओं की एक संस्था जो देशी रियासतों की हितरक्षा के उद्देश्य से बनी थी। (चैम्बर ऑफ प्रिंसेज)। |
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नरेबी :
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स्त्री० [?] शिवसागर और सिलहट प्रदेशों में होनेवाला एक तरह का पेड़ जिसकी छाल से खाकी रंग निकलता है। |
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नरेली :
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स्त्री० [हिं० नारियल] १. छोटा नारियल। २. नारियल की खोपड़ी या उसका ऊपरी कड़ा आवरण। ३. नारियल की खोपड़ी का बना हुआ हुक्का। |
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नरेश :
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पुं० [सं० नर-ईश, ष० त०] मनुष्यों का स्वामी, राजा। |
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नरेश्वर :
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पुं० [सं० नर-ईश्वर, ष० त०] राजा। |
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नरेस :
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पुं०=नरेश। |
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नरों :
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अ० य०=नरसों (अतरसों)। |
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नरोत्तम :
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वि० [सं० नर-उत्तम, स० त०] नरों या मनुष्यों में उत्तम अर्थात् श्रेष्ठ। पुं० ईश्वर। |
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नर्ऋत्य :
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वि० [सं०] निर्ऋति संबंधी। पुं० निर्ऋति का वंशज। निशाचर। २. दक्षिण पश्चिम की दिशा। ३. मूल नक्षत्र। |
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नर्क :
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पुं० दे० ‘नरक’। |
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नर्कुट :
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पुं०=नरकट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नर्कुटक :
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पुं० [सं०] नासिका। नाक। |
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नर्ग :
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पुं० [सं० निर्√गम् (जाना)+ड] १. बाहर निकला या आया हुआ। २. दूर गया हुआ। ३. हटाया हुआ। |
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नर्गिस :
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स्त्री० [फा०] नरगिस। |
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नर्गिसी :
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वि० [फा०]=नरगिसी। |
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नर्त :
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पुं० [सं०√नृत् (नाचना)+अच्] नर्तक। |
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नर्तक :
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पुं० [सं०√नृत्त+ण्वुन्—अक] [स्त्री० नर्तकी] १. वह जो नाचता या नृत्य करता हो। नाचनेवाला व्यक्ति। नचनियाँ। २. नट। ३. चारण। ४. खड्ग की धार पर नाचनेवाला व्यक्ति। केलक। ५. राजा। ६. महादेव। शिव। ७. पुराणानुसार एक संकर जाति जिसकी उत्पत्ति धोबी पिता और वेश्या माता के कही गई है। ८. हाथी। ९. महुआ। १॰. नरकट। |
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नर्तकी :
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स्त्री० [सं० नर्तक+ङीष्] १. नाचने का पेशा करनेवाली स्त्री। २. नटी। ३. रंडी। वेश्या। ४. नली नामक गंध द्रव्य। |
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नर्तन :
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पुं० [सं√नृत्+ल्युट्—अन] १. नाचने की क्रिया या भाव। २. नाच। नृत्य। |
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नर्तन-शाला :
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स्त्री० [सं० ष० त०] नृत्यशाला। नाचघर। |
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नर्तना :
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अ० [सं० नर्तन] नाचना। उदा०—लरत कहूँ पायक सुभट कहुँ नर्तत नटराज।—केशव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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नर्तयिता (तृ) :
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पुं० [सं०√नृत्+णिच्+तृच्] १. नाचनेवाला। २. नाच सिखलानेवाला। |
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नर्तु :
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पुं० [सं०√नृतु+तुन् ] वह जो तलवार की धार पर नाचता हो। |
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नर्तू :
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स्त्री० [सं० नर्तु+ऊङ्] १. नर्तकी। २. अभिनेत्री। |
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नर्द :
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स्त्री० [फा०] १. चौसर का खेल। २. चौसर की गोटी। |
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नर्दकी :
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स्त्री० [देश०] एक तरह की कपास। इसे कटील-निभरी और बगई भी कहते हैं। |
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नर्दन :
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पुं० [सं०√नर्द् (शब्द)+ल्युट्—अन] भीषण ध्वनि या नाद। गरज। |
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नर्दबाज :
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पुं० [फा० नर्दबाज] चौसर का खिलाड़ी। |
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नर्दबाजी :
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स्त्री० [फा०] १. चौसर खेलने का व्यसन। |
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नर्दबान :
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पुं० [फा०] १. सीढ़ी, विशेषतः काठ की सीढ़ी। २. मार्ग। रास्ता। |
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नर्दमा :
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पुं० [हिं० नल] वह नल जिसमें से कीचड़ और मैला पानी बहता हो। गंदा नाला। |
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नर्दा :
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पुं०=नर्मदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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नर्दित :
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वि० [सं०√नर्द+क्त] १. गरजा हुआ। २. गरजता हुआ। पुं० १. एक तरह का पासा। २. पासा फेंकने का एक ढंग। |
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नर्बदा :
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स्त्री०=नर्मदा। |
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नर्म (न्) :
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पुं० [सं०√नृ (ले जाना)+मनिन्] १. परिहास। हँसी-ठट्ठा। मजाक। २. साहित्य, में नायक का ऐसा सखा जो हँसी-ठट्ठा करके उसे प्रसन्न रखता हो। वि० दे० ‘नरम’। |
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नर्म-द्युति :
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स्त्री० [सं०] नाट्यशास्त्र के अनुसार प्रतिमुख संधि के तेरह अंगों में से एक। |
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नर्म-सचिव, नर्म-सुहृद् :
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पुं० [सं० स० त०] राजा का वह सखा जो उसका मन बहलाने और उसे हँसाने के लिए उसके साथ-साथ रहता हो। विदूषक। |
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नर्मट :
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पुं० [सं० नर्मन+अटन्, पृषो० सिद्धि] सूर्य। |
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नर्मठ :
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पुं० [सं० नर्मन्+अठन्, पृषो० सिद्धि] १. वह जो परिहास आदि में कुशल हो। दिल्लगीबाज। ठठोल। २. स्त्री का उपपति या यार। ३. ठोढ़ी। ४. स्तन। |
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नर्मद :
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वि० [सं० नर्मन्√दा (देना)+क] १. आनंद देनेवाला। २. सुख देनेवाला। पुं० १. परिहास-प्रिय। दिल्लगीबाज। ठठोल। मसखरा। २. भाँड़। |
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नर्मदा :
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स्त्री० [सं० नर्मद+टाप्] १. अमर-कंटक से निकलनेवाली एक प्रसिद्ध नदी जो भड़ौच के पास खंभात की खाड़ी में गिरती है। २. पुराणानुसार एक गन्धर्व स्त्री जो केतुमती, वसुदा और सुन्दरी की माता थी। ३. असवर्ग या पृक्का नामक गंध द्रव्य। |
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नर्मदेश्वर :
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पुं० [सं० नर्मद-ईश्वर, मध्य० स०] एक प्रकार का अंडाकार शिवलिंग जो नर्मदा नदी में से निकलते हैं। |
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नर्मी :
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स्त्री०=नरमी। |
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नर्राना :
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अ० [हिं० नला (गले का)] गला फाड़कर चिल्लाना। |
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नर्री :
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स्त्री० [?] १. एक प्रकार का बारहमासी घास जो ऊसर जमीन में भी होती है। २. हिमालय में होनेवाला एक प्रकार का बाँस। |
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