दुःसंधान/duhsandhaan

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दुःसंधान  : पुं० [सं० ब० स०] १. दुःख साध्य कार्य का संधान। २. केशव के अनुसार काव्य में एक रस जो उस स्थल पर होता है जहाँ एक व्यक्ति तो अनुकूल होता है और दूसरा प्रतिकूल।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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