घ/gh

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शब्द का अर्थ

घ  : देवनागरी वर्णमाला के क-वर्ग का चौथा व्यंजन जो उच्चारण तथा भाषा-विज्ञान की दृष्टि से कंठय, स्पर्शी, महाप्राण तथा सघोष है।
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घउरी  : स्त्री०=घौरी।
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घँगोल  : पुं० [देश०] कुमुद। कोई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घघरबेल  : स्त्री० [हिं० घुघराला+बेल] बंदाल।
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घँघरा  : पुं० [स्त्री० घँघरी] घघरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घघरा  : पुं० [हिं० घन+घेरा] [स्त्री० अल्पा० घघरी] १. टखनों तक लंबा गोल तथा बड़े घेरेवाला एक प्रसिद्ध पहनावा जिसे स्त्रियाँ कमर में नाड़े से बाँधती है। २. वह लहँगा जो स्त्रियाँ धोती के नीचे पहनती हैं।
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घघराघोर  : पुं० [हिं० घँघरा+घोर] १. छुआछूत के विचार का अभाव। २. बहुत अधिक भ्रष्टाचार।
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घघरी  : स्त्री० [हिं० घघरा] छोटा घघरा या लहँगा।
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घँघोना  : स० =घँघोलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घँघोरना  : स०==घँघोलना।
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घँघोलना  : स०=[हिं० घन+घोलना] १. किसी पात्र में रखे हुए पानी में हाथ या और नीचे कोई चीज डालकर उसे इस प्रकार हिलाना-डुलाना कि उसमें नीचे या बैठी हुई कोई वस्तु पानी में अच्छी तरह घुल-मिल जाय। २. नदी, नाले आदि के तल की मिट्टी इस प्रकार पैर, लकड़ी आदि से हिलाना-डुलाना कि वह ऊपर उठकर पानी गँदला कर दे।
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घंट  : पुं० [सं० घट] १. घड़ा। २. पानी का वह घड़ा जो किसी के मरने पर उसकी आत्मा को जल पहुँचाने के लिए १॰. या १२. दिनों तक पीपल में बाँधकर लटकाते हैं। पुं०=घंटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घट  : पुं० [सं०√घट् (शब्द करना+अच्] १. जल भरकर रखने का बड़ा बरतन विशेषतः मिट्टी का बरतन। कलश। घड़ा। पद-मंगल घट=मांगलिक अवसर पर जल से भरकर रखा जानेवाला कलश या घड़ा। २. देह। शरीर। ३. अन्तःकरण। मन। मुहावरा–घट में बसना या बैठना=(क) हृदय में स्थापित होना। मन में बसना। (ख) ध्यान पर चढ़ा रहना। ४. कुंभ राशि। ५. हाथी का कुंभ। ६. २॰ द्रोण की तौल। ७. किनारा। वि० [हिं० घटना] किसी की तुलना में कुछ घटा हुआ,कम थोड़ा या हलका। उदाहरण–को घट वे वृषभानुजा ये हलधर के बीर।–बिहारी।
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घट-कंचुकी  : स्त्री० [मध्य० स०] तांत्रिकों की एक रीति जिसमें पूजा करने वाली सब स्त्रियों की कंचुकियाँ या चोलियाँ एक घड़े में भर देते है, और तब जिस पुरुष के हाथ में जिस स्त्री की कंचुकी या चोली आ जाती है, वह उसी स्त्री के साथ संभोग करता है।
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घट-कर्कट  : पुं० [सं० ?] संगीत में एक प्रकार का ताल।
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घट-कर्पर  : पुं० [ष० त०] १. कालिदास के सम-कालीन कवि जिनकी गिनती विक्रमादित्य की सभा के नवरत्नों में होती थी। २. घड़े आदि का टूटा हुआ अंश। ठीकरा।
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घट-कार  : पुं० [सं० घट√कृ (करना)+अण्, उप० स०] घट अर्थात् घड़े बनानेवाला कुम्हार।
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घट-घाट  : वि० [हि० घटना] किसी की अपेक्षा थोड़ा कम या हलका। घटकर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घट-दासी  : स्त्री० [सं०√घट्+णिच्-अन्-टाप्,घटा-दासी, कर्म० स०] १. नायक और नायिका को एक दूसरे के सन्देश पहुँचाने वाली दूती। २. कुटनी।
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घंट-धातु  : स्त्री० [सं० घंटा-धातु] ताँबें और टीन के योग से बनाई जानेवाली एक मिश्र धातु जिससे घंटे आदि बनते हैं। (बेल मेटल)
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घट-पल्लव  : पुं० [द्व० सं० घटपल्लव+अच् ?] वास्तु शास्त्र में, वह खंभा जिसका सिरा घड़े और पल्लव के आकार का बना हो।
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घट-बढ़  : स्त्री० [हिं० घटना+बढ़ना] १. घटने-बढ़ने अर्थात् कम या अधिक होने की अवस्था या भाव। कमी-बेशी। न्यूनाधिक्य। २. उतार-चढ़ाव। परिवर्तन। ३. नृत्य,संगीत आदि में आवश्यकतानुसार लट घटाने और बढ़ाने की क्रिया या भाव। वि० कभी अथवा कहीं कुछ कम और कभी अथवा कहीं कुछ अधिक।
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घट-बादन  : पुं० [ष० त०] संगीत में मिट्टी का घड़ा औंधा करके उसे तबले की तरह बजाने की क्रिया अथवा विद्या।
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घट-योनि  : पुं० [ब० स०] अगस्त्य मुनि।
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घट-राशि  : पुं० [मध्य० स०] एक द्रोण की नाप जो लगभग सोलह सेर की होती है।
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घट-संभव  : पुं० [ब० स०] अगस्त्य मुनि।
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घंटक  : पुं० [सं०√घण् (दीप्ति)+क्त+कन्] एक प्रकार का क्षुप।
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घटक  : वि० [सं०√घट्+णिच्+ण्वुल्-अक] [स्त्री० घटिका] १. कोई चीज घटित करने, बनाने या रचनेवाला (अंश या तत्त्व) २. कोई घटना या बात घटित या प्रस्तुत करनेवाला। (पदार्थ या व्यक्ति) ३. चतुर। चालाक। पुं० १. विवाह-संबंध स्थिर करानेवाला ब्राह्मण या कोई और व्यक्ति। बरेखिया। २. दलाल। ३. मध्यस्थ। ४. बीच में पड़कर काम पूरा करानेवाला चतुर व्यक्ति। ५. घड़ा। ६. बंगाल और मिथिला में एक प्रकार के ब्राह्मण जो सब गोत्रों और परिवारों का लेखा रखते और यह बतलाते हैं कि अमुक-अमुक पक्षों में विवाह संबंध हो सकता है या नहीं। ७. वह चीज या बात जो कोई दूसरी चीज या बात घटित करने या बनाने में मुख्य रूप से अथवा साधन की भाँति सहायक होती है। घटित करनेवाला अंश या तत्त्व। (फैक्टर)
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घटकना  : स०=टकना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घटका  : पुं० [सं० घटक=शरीर अथवा अनु० घर्र-घर्र] मृत्यु होने से पहले की मनुष्य की वह स्थिति जिसमें उसका साँस घर-घर शब्द करता तथा रुक-रुक जाता है। घर्रा। क्रि० प्र०–लगना।
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घटज  : पुं० [सं० घट√जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स० ] अगस्त्य मुनि, जिनके संबंध में कहा जाता है कि ये घड़े से उत्पन्न हुए थे। वि० घट से उत्पन्न।
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घटती  : स्त्री० [हिं० घटना] १. घटने अथवा कम होने की क्रिया या भाव० घटाव। बढ़ती का विपर्याय। २. उच्च स्तर से निम्न स्तर पर आने की अवस्था या स्थिति। ३. मात्रा, मान, मूल्य आदि में घटने या कम होने की अवस्था या भाव। पद-घटती से=बट्टे से। (देखें बट्टा के अंतर्गत) ४. अवनति। ह्लास। मुहावरा–घटती का पहरा=अवनति या दुर्दशा के दिन। बुरा जमाना। ५. कमी। न्यूनता। वि० जिसमें कुछ घटी, कमी या न्यूनता हो। (डेफिशिट) (विशेष दे० ‘अववर्त्त’)।
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घटन  : पुं० [सं०√घट्+ल्युट-अन] [वि० घटनीय,घटित] 1, घटित होने अर्थात् गढ़े या बनाये जाने की क्रिया या भाव। २. कोई घटना उपस्थित होने या सामने आने की क्रिया या भाव।
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घटना  : स्त्री० [सं०√घट्+णिच्+युच्,अन,टाप्] १. ऐसी बात जो घटित हुई अर्थात् अस्तित्व में आई अथवा प्रत्यक्ष हुई हो। कार्य या क्रिया के रूप में सामने आनेवाली बात। २. कोई अप्रत्याशित या विलक्षण बात जो हो जाय। वाकया। ३. कोई ऐसी अनिष्टकारक बात जो नियम, विधि, व्यवहार आदि के विरूद्ध हो। अ० [सं० घटन] १. घटित होना। अस्तित्व में आना। उदाहरण–घटई तेज बल मुख छवि सोई। तुलसी। २. कार्य के रूप में किया जाना। संपन्न होना। उदाहरण–कार्य वचन-मन सपनेहुँ कबहुँक घटत न काज पराये।–तुलसी। ३. ठीक आना, उतरना या बैठना। ४. चरितार्थ होना। सिद्ध होना। स० १. बनाना। रचना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) २. पूरा या संपन्न करना। उदाहरण–सब विधि काज घटब मैं तोरे।–तुलसी। अ० [सं० घृष्ट, प्रा० घट्ट] १. उच्च स्तर से निम्न स्तर पर आना। जैसे–(क) नदी का पानी घटना। (ख) किसी का मान या प्रतिष्ठा घटना। २. मात्रा, मान, मूल्य आदि में कम ठहरना। कम पड़ना। जैसे–(क) खाने की सामग्री घटना। (ख) पुस्तक का दाम घटना। ३. पूरा न रह जाना। ४. रोगी का अंत समय में मृत्यु के समीप पहुँचना। प्राणवायु का कम होना। ५. मृत होना। मरना। जैसे–उनका चार बरस का लड़का परसों घट गया।
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घटना-क्रम  : पुं० [ष० त०] एक के बाद एक कुछ घटनाएँ होते रहने का क्रम या भाव। घटनाओं का सिलसिला।
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घटना-चक्र  : पुं० [ष० त०] एक के बाद एक अथवा एक के साथ एक करके होनेवाली अनेक प्रकार की घटनाओं का समूह। जैसे–घटना-चक्र ने भी महायुद्ध की संभावना उत्पन्न कर दी।
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घटना-स्थल  : पुं० [ष० त०] घटना घटित होने का स्थान। (प्लेस आँफ अकरेन्स)
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घटनाई  : स्त्री० दे० ‘घड़नई’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घटनावली  : स्त्री० [घटना-आवली, ष० त०] बहुत-सी घटनाओं का सिलसिला या समूह।
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घटवाई  : पुं० [हिं० घाट+वाई] घाट का कर लेनेवाला। अधिकारी स्त्री० वह कर जो घाट का अधिकारी यात्रियों आदि से घाट पर उतरने-चढ़ने के बदले वसूल करता है। स्त्री० [हिं० घटवाना] घटवाने अर्थात् कम कराने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक।
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घटवाना  : स० [हिं० घटना का प्रे०] घटाने या कम करने का काम कराना।
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घटवार  : पुं० [हिं० घाट+पाल या वाला] १. घाट का महसूल लेनेवाला। २. मल्लाह। केवट। ३. घाट का देवता। ४. दे० ‘घाटिया’।
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घटवारिया  : पुं०=घटवालिया।
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घटवाल  : पुं० घटवार।
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घटवालिया  : पुं० [हिं० घाट+वाला] १,.तीर्थ स्थानों में दान लेनेवाला पंडा। तीर्थ-पुरोहित। २. नदी आदि के घाट पर दान लेनेवाला ब्राह्मण। घाटिया।
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घटवाह  : पुं० [हिं० घाट+वाह(प्रत्यय)] घाट का ठेकेदार जो घाट पर महसूल लेता है।
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घटवाही  : स्त्री० दे० ‘घट्ट-कर’।
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घटहा  : पुं० [हिं० घाट+हा (प्रत्यय)] १. घाट का ठेकेदार। घटवाह। २. वह नाव जो घाट पर से सवारियाँ लेकर दूसरी जगह या उस पार ले जाती है। वि० [स्त्री० घटही] घाट पर का। घाटवाला।
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घंटा  : पुं० [सं०√घंट् (शब्द करना)+अच्-टाप्] [स्त्री० अल्पा० घंटी] १. घंट धातु का बना हुआ गोलाकार टुकड़ा जिसे लकड़ी, लोहे आदि के डंडे या हथौड़े से पीटने या मारने पर जोर की आवाज होती है। विशेष–हमारे यहाँ इसकी गिनती बाजों में होती है और मंदिरों में आरती आदि के समय यह बजाया जाता है। मुहावरा–(किसी को) घंटे मोरछल से उठाना=किसी वृद्ध का शव बाजे-गाजे और धूम-धाम से शमशान पर ले जाना। २. उक्त बाजा बजाने से उत्पन्न शब्द। क्रि० प्र०–बजना। बजाना। ३. प्राचीन काल में पहर-पहर पर घंटा बजाकर समय की दी जानेवाली सूचना। ४. आज-कल दिन-रात का चौबीसवाँ भाग जो ६॰ मिनट का होता है। ५. कोई काम करने की वह निश्चित अवधि या भोगकाल जो ६॰ मिनटों या कभी-कभी इससे कुछ कम होता है। जैसे–स्कूल में पहले घंटे में हिसाब सिखाया जाता है। और दूसरे घंटे में हिन्दी पढ़ाई जाती है। ६. उक्त अवधि की घंटा बजाकर दी जानेवाली सूचना। ७.पूर्ण अस्वीकृति, विफलता व्यर्थता आदि का सूचक निराशाजनक शब्द। ठेंगा। मुहावरा (किसी को) घंटा दिखाना-ऐसा उत्तर देना या मुद्रा बनाना जिससे कोई अर्थी पूरी तरह से निराश हो जाय। घंटा हिलाना=(क) व्यर्थ बैठे रहना। (ख) व्यर्थ का काम करना। ८. लिगेंद्रिय। (बाजारू)
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घटा  : स्त्री० [सं०√घट्+अङ्-टाप्] १. आकाश में उमडे़ या छाये हुए घने बादलों की राशि या समूह। मेघवाला। २. ढेर। राशि। ३. झुंड। समूह। ४. गोष्ठी। ५. एक प्रकार का ढोल।
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घंटा-कर्ण  : पुं० [ब० स०] शिव का एक प्रसिद्ध उपासक जो कानों में इसलिए घंटे बाँधे रहता था कि राम या विष्णु का नाम उसके कानों में न पहुँचने पाये।
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घटा-टोप  : पुं० [सं० घटा-आटोप,तृ० त०] १. घने बादलों की गहरी और चारों ओर छाई हुई घटा जिससे प्रायः बहुत अधेरा हो जाता है। २. चारों ओर से ढकने के लिए गाड़ी, पालकी आदि के ऊपर डाला जानेवाला ओहार। ३. चारों ओर से खूब घेरनेवाला दल या समूह। वि० चारों ओर से पूरी तरह से घिरा हुआ। उदाहरण–घटाटोप करि चहुँदिसि घेरी।–तुलसी।
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घटा-धूम  : स्त्री० [हिं० घटा+धूम] किसी काम या बात की अधिकता के कारण मचनेवाली धूम या हलचल। जैसे–सप्ताह के प्रारंभ में व्यापार कुछ ढीला था, बाद को घटा-धूम के कारण बाजार सँभल गया।
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घटाई  : स्त्री० [हिं० घटना+ई(प्रत्य०)] १. घटने या घटाने की क्रिया, भाव या पारिश्रमिक। २. घटे हुए अर्थात् हीन होने की अवस्था या भाव। हीनता। ३. अप्रतिष्ठा। बेइज्जती।
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घंटाकरन  : पुं० [सं० घंटाकर्ण] १. बड़े पत्तोंवाली एक प्रकार की घास। २. दे० ‘घंटा-कर्ण’।
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घटाकाश  : पुं० [घट-आकाश, मध्य० स०] तर्क या न्याय में घड़े के अन्दर का अवकाश अर्थात् खाली स्थान।
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घटाग्र  : पुं० [घट-अग्र,ष० त०] वास्तु शास्त्र में खंभे के नौ विभागों में से आठवाँ विभाग।
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घंटाघर  : पुं० [हिं० घंटा+घर] वह ऊँची मीनार जिस पर बड़ी धर्मघड़ी लगी रहती है जिसके घंटे का शब्द दूर तक सुनाई पड़ता है।
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घटाना  : स० [हिं० घटना (प्रा०घट्ट] १. हिन्दी ‘घटना’ क्रिया का स० रूप। २. उच्च स्तर से निम्न स्तर पर लाना। जैसे–मान घटाना। ३. मात्रा, मान, मूल्य आदि में कमी करना। कम करना। कम करना। जैसे–दाम घटाना। ४. गणित में, किसी बड़ी राशि में से छोटी राशि निकालना। स० [हिं० घटना(सं० घटन)] १. घटित करना। २. किसी एक बात के तथ्य या तथ्यों का दूसरी बात पर पूरा उतारना या आरोपित करना।
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घंटापथ  : पुं० [ष० त०] चौड़ी या बड़ी सड़क। राजमार्ग।
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घटाव  : पुं० [हिं० घटना] १. घटने अर्थात् कम होने की अवस्था या भाव। कमी। २. मात्रा, मान, आदि घटने अर्थात् उतरने या कम होने की अवस्था या भाव। ‘चढ़ाव’ या ‘बढ़ाव’ का विपर्याय। उतार। ३. अवनति। पद-घटाव-चढ़ाव=कभी घटने और कभी बढ़ने की अवस्था, क्रिया या भाव। ४. दे० ‘घटती’।
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घटावना  : स०=घटाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घटि  : वि० [हिं० घटना] किसी की तुलना में घटिया या कम। क्रि० वि०=घटकर। स्त्री०=घटी(कमी)
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घंटिक  : पुं० [सं० घंटा+कन्-इक] घड़ियाल या मगर। (जल-जंतु)।
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घटिक  : पुं० [सं० घट+ठन्-इक] वह व्यक्ति जो विशिष्ट समयों पर लोगों को जानकारी के लिए घंटे बजाता हो।
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घंटिका  : पुं० [सं० घंटा+कन्-टाप्, इत्व] १. छोटा घंटा। २. घुँघरू। ३. वे छोटे घड़े जो रहट में बाँधे जाते हैं। क्षुद्र-घंटिका।
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घटिका  : स्त्री० [सं०√घट्+णिच्+ण्वुल्-अक, टाप्, इत्व] समय का मान बतलानेवाला कोई छोटा यंत्र। घड़ी। २. समय का एक मान जो आज-कल के २४ मिनटों के बराबर होता है। ३. [घट्+ङीपकन्-टाप्,ह्रस्व] छोटा घड़ा। गगरी।
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घटिका-यंत्र  : पुं० [ष० त०]=घटी यंत्र।
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घटिकावधान  : पुं० [घटिका-अवधान, ब० स०] घड़ी भर में ही बहुत से काम एक साथ कर डालने की कला, विद्या अथवा शक्ति।
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घटिकाशतक  : पुं० [ब० स०] १. वह व्यक्ति जो घड़ी भर में सौ अर्थात् बहुत से काम कर सकता हो। २. वह जो घड़ी भर में सौ श्लोक या पद्य बना सकता हो।
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घटित  : भू० कृ० [सं०√घट्+णिच्+क्त] १. जो घटना के रूप में उपस्थित या वर्तमान हुआ हो। २. अर्थ आदि के विचार से ठीक या पूरा उतरा हुआ। घटा हुआ। ३. जो गढ़कर अथवा और किसी रूप में बनाया गया हो अथवा किसी रूप में बना हो। निर्मित। रचित।
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घटिताई  : स्त्री० [हिं० घटित] घटित होने की अवस्था या भाव। स्त्री० [हिं० घटना=कम होना] १. कमी। न्यूनता। उदाहरण–इनहूँ में घटिताई कीन्हीं।–सूर। २. त्रुटि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घटिया  : वि० [हिं० घट+इया(प्र्तयय)] १. जो औरों की तुलना में घटकर अर्थात् खराब या हीन हो। २. जो गुण, धर्म आदि की दृष्टि से प्रसम या मानक स्तर से घटकर हो। जैसे–घटिया कपड़ा, घटिया पुस्तक। ‘बढ़िया’ का विपर्याय। ३. अधम। नीच।
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घंटियार  : पुं० [हिं० घंटी] पशुओं का एक प्रकार का रोग जिसमें उनके गले में काँटे निकल आते हैं और उनसे कुछ खाया नहीं जाता।
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घटियारी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास जिसे खवी भी कहते हैं। इसमें अदरक की-सी महक होती है।
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घटिहा  : वि० [हिं० घात+हा (प्रत्यय)] १. घात या धोखे-बाजी करनेवाला। २. घात पाकर अपना स्वार्थ साधनेवाला। ३. चालाक। धूर्त। ४. दुष्ट और लंपट या व्यभिचारी। ५. नीच। वाहियात।
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घंटी  : स्त्री० [सं० घंटा] १. घंटे की तरह बजाया जानेवाला धातु का वह उपकरण जो औंधे मुँह के अर्ध गोलाकार पात्र की तरह होता है तथा जिसके बीच में बजाने के लिए कोई धातु का टुकड़ा (लोलक) बँधा रहता है और जिसके ऊपरी भाग में डाँड़ी होती है जिसे हाथ में पकड़कर उसे बजाते हैं। २. कोई ऐसा छोटा उपकरण जिस पर आघात करने से शब्द उत्पन्न होता है। जैसे–साइकिल या मेज पर की घंटी। ३. उक्त उपकरणों के बजने का शब्द। ४. छोटी लुंटिया। ५. घुँघरू। ६. गले का वह बाहरी बीचवाला भाग जिसमें हड्डी कुछ उभरी हुई होती है। ७. गले में अन्दर को आगे बढ़ा हुआ मांस-पिंड। कौआ। घाँटी। मुहावरा–घंटी उठाना या बैठाना=घंटी के बढ़ या लटक जाने् पर कोई दवा लगाकर उसे मलते हुए बैठाना।
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घटी  : स्त्री० [सं० घट+अच्-ङीष्] १. २४ मिनट का समय। घड़ी। २. छोटा घड़ा। गगरी। ३. प्राचीन काल का वह छोटा घड़ा जिसमें जल भरकर और उसमें छेददार कटोरा रखकर उसमें भरनेवाले पानी के हिसाब से समय का मान स्थिर करते थे। ४. आज-कल समय बतलाने-वाला किसी प्रकार का यंत्र। घड़ी। ५. रहट में बाँधी जानेवाली छोटी गगरी या हँड़िया। पुं० [सं० घट+इनि=घटिन्] १. कुंभ राशि। २. शिव। स्त्री,. [हिं० घटना] १. घटने अर्थात् कम होने की क्रिया या भाव। कमी। न्यूनता। २. घाटा। टोटा। ३. क्षति। नुकसान। हानि। ४. मूल्य, महत्व आदि में होनेवाली कमी। विशेष दे० ‘छीज’।
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घटी-यंत्र  : पुं० [ष० त०] १. प्राचीन काल का समय सूचक यंत्र जो छोटे घड़े की तरह होता था और जिसमें भरे हुए जल में डूबनेवाले कटोरे की सहायता से समय का स्थिर करते थे। २. रहट। ३. संग्रहणी नामक रोग का एक प्रकार या भेद।
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घंटील  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास जो चारे के काम में आती और जमीन पर दूर तक फैलती है।
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घंटु  : पुं० [सं०√घंट्+उन्] १. ताप। २. प्रकाश। ३. गजघंटा वाली चाँड़। टेक। थूनी। वि० [सं० गंभीर] बहुत अधिक गहरा।
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घटूका  : पुं०=घटोत्कच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घटोत्कच  : पुं० [घट-उत्कच, ब० स०] हिंडिंबा के गर्भ से उत्पन्न भीम सेन का पुत्र जिसे महाभारत के युद्ध में कर्ण ने मारा था।
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घटोद्भव  : पुं० [घट-उद्बव, ब० स०] अगस्त्य मुनि।
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घटोर  : पुं० [सं० घटोदर] मेढ़ा। मेष। (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घट्ट  : पुं० [सं०√घट्ट (चलाना)+घञ्] १. घाट। २. वह स्थान जहाँ चुंगी या महसूल लिया जाता था। *पुं०=घट।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घट्ट-कर  : पुं० [मध्य० स०] वह कर जो किसी घाट पर नदी पार करने वालों से लिया जाता है। (फेरी टोल)
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घट्टन  : पुं० [सं० घट्ट-ल्युट-अन] १. चलाना या हिलाना-डुलाना। २. घोटना। ३. संघटन।
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घट्टना  : स्त्री० [सं०√घट्ट+युच्-अन,टाप्] १. हिलाना-डुलाना। २. रगड़ना। ३. पेशा। वृत्ति।
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घट्टा  : पुं० १. दे० ‘घाटा’। २. दे० ‘घट्ठा’।
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घट्टित  : पुं० [सं०√घट्ट+क्त] नृत्य में पैर चलाने का एक प्रकार जिसमें एड़ी को जमीन पर दबाकर पंजा नीचे-ऊपर हिलाते हैं।
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घट्टी  : स्त्री०=घटिका।
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घट्ठ  : पुं० [सं० गोष्ठ] परामर्श आदि के लिए होनेवाला जमावड़ा। (राज०)
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घट्ठा  : पुं० [सं० घट्ट] चोट, रगड़ आदि के कारण शरीर के किसी अंग में होनेवाली कड़ी उभारदार गाँठ जैसे–बरतन माँजने से हाथ में या लाठी की चोट लगने से सिर पर घट्ठा पड़ गया। मुहावरा–(किसी काम या बात का) घट्ठा पड़ना=पूरा पूरा अनुभव और ज्ञान होना।
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घड़  : स्त्री० [सं० घट्ट] सेना। (राज०) उदाहरण– दाटक अवड़ दंड नह दीधो, दोयण घड़ सिर दाव दियो।–दुरसाजी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=घटा। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घड़घड़  : स्त्री० [अनु०] किसी प्रकार का उत्पन्न होनेवाला घड़घड़ शब्द।
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घड़घड़ाना  : अ० [अनु०] गड़गड़ या घड़घड़ शब्द होना। गड़गड़ाना। जैसे–गाड़ी या बादलों का घड़घड़ाना। स० घड़घड़ शब्द उत्पन्न करना।
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घड़घड़ाहट  : स्त्री० [अनु० घड़घड़] घड़घड़ होने की ध्वनि या भाव।
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घड़त  : स्त्री० दे० ‘गढ़त’।
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घड़न  : स्त्री० [सं० घटन] घड़ने या गढ़ने की क्रिया, प्रकार या भाव। गढ़न।
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घड़नई  : स्त्री० [हिं० घड़ा+नैया (नाव)] घडों में बाँस बाँधकर बनाया हुआ वह ढाँचा जिस पर चढ़कर लोग छोटी-छोटी नदियां, नाले पार करते हैं।
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घड़ना  : स० दे० ‘गढ़ना’।
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घड़नैल  : स्त्री० दे० ‘घड़नई’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घड़ा  : पुं० [सं० घट, पा० घटो, प्रा० घड़ग, गड़, बँ० घरा० सिं० घरो, गुं० घड़ो, मरा० घड़ा] १. धातु,मिट्टी आदि का बना हुआ एक प्रसिद्ध गोलाकार पात्र जो प्रायः पानी भरने या अनाज आदि रखने के काम आता है। कलसा। गगरा। मुहावरा–(किसी पर) घड़ों पानी पड़न=अपनी त्रुटि या भूल सिद्ध होने पर दूसरों के सम्मुख लज्जित होना। पद–चिकना घड़ा=ऐसा व्यक्ति जो दूसरों द्वारा लज्जित किये जाने पर भी संकुचित न होता हो। बहुत बड़ा निर्लज्ज।
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घड़ाई  : स्त्री० दे० ‘गढ़ाई’।
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घड़ाना  : स० दे० ‘गढ़ाना’।
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घड़ामोड़ा  : वि० [हिं० गढ़+मोड़ना] शूर-वीर। (डिं०)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घड़िया  : स्त्री० [सं० घटिका, हिं० घड़ी] १. छोटी घड़ी, कलसी या गगरी। २. मिट्टी के छोटे वे बरतन जो रहट में बाँधे जाते हैं। ३. गर्भाशय। बच्चेदानी। ४. शहद का छत्ता। ५. मिट्टी का वह छोटा प्याला जिसमें आँच देने से उसमें धातु की मैल कटकर ऊपर आ जाती है। (सुनार)।
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घड़ियाल  : पुं० [सं० घटिकालि, प्रा० घड़ियालि=घंटों का समूह] वह बड़ा घंटा जो पूजा में या समय की सूचना के लिए बजाया जाता है। पुं० [सं० ग्राह ?] छिपकली की जाति का, परंतु उससे बहुत बड़ा, भीषण तथा हिंसक एक प्रसिद्ध जलजंतु जिसकी त्वचा कँटीली होती है और मुँह बहुत अधिक लंबा होता है। ग्राह।
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घड़ियाली  : पुं० [हिं० घड़ियाल] समय की सूचना देने के लिए घड़ियाल बजानेवाला व्यक्ति। स्त्री० एक प्रकार का छोटा घड़ियाल या घंटा जो प्रायः देव-पूजन के समय बजाया जाता है। विजय-घंट।
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घड़ी  : स्त्री० [सं० घटी] १. काल का एक प्राचीन मान जो दिन-रात का ३२ वाँ भाग और ६॰ पलों का होता है। आज-कल के हिसाब से यह २४ मिनट का समय होता है। पद-घड़ी-घड़ी=रह-रहकर थोड़ी देर पर। बार-बार। घड़ी पहर=थोड़ी देर। उदाहरण–घड़ी पहर बिलबौरे भाई जरता है।–कबीर। मुहावरा–घड़ी या घडियां गिनना= (क) बहुत उत्सुकतापूर्वक और समय पर ध्यान रखते हुए किसी बात की प्रतीक्षा करना। (ख) मरने के निकट होना। (किसी का) घड़ी सायत पर होना=ऐसी स्थिति में होना कि थोड़ी देर में प्राण निकल जायँगे। मरणासन्न अवस्था। २. किसी काम या बात के घटित होने का अवसर या समय। जैसे–जब इस काम की घड़ी आवेगी तब यह आप ही हो जायगा। मुहावरा–घड़ी देना=ज्योतिषी का मुर्हुत या सायत बतलाना। ३. आज-कल, वह प्रसिद्ध छोटा या बड़ा यंत्र जो नियमित रूप से घंटा, मिनट आदि अर्थात् समय का ठीक मान बतलाता है। यह यंत्र कई प्रकार का होता है। जैसे–जेब घड़ी, दीवार, घडी, धूप घड़ी आदि। ४. पानी रखने का छोटा घड़ा। पद-घड़ी-दीया (देखें)। स्त्री० [हिं० घड़ना] कपड़ों आदि की लगाई जानेवाली तह।
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घड़ी-दीया  : पुं० [हिं० घड़ी+दीया=दीपक] हिन्दुओँ में, कर्मकांड का एक कृत्य जो किसी के मरने पर १॰, १२, या १३. दिनों तक चलता है। इसमें एक छेददार घड़े में जल भरकर उसे चूने या टपकने के लिए कहीं रख दिया जाता है और उसके पास एक दीया रखा जाता है जो रात-दिन जलता रहता है।
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घड़ीसाज  : पुं० [हिं० घड़ी+फा० साज] घड़ियों की मरम्मत करनेवाला कारीगर।
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घड़ीसाजी  : स्त्री० [हिं० घड़ी+फा० साजी] घड़ी (यंत्र) की मरम्मत करने का काम।
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घड़ोला  : पुं० [हिं० घड़ा+ओला(प्रत्यय)] छोटे आकार का घड़ा। छोटा घड़ा।
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घड़ौंची  : स्त्री० [हिं० घड़ा+औंची (प्रत्यय)] लकड़ी की बनी हुई वह चौकी या चौखटा जिस पर पानी से भरे हुए घड़े रखे जाते हैं।
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घण  : पुं० दे० गन। वि० दे० ‘घना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घणा  : वि० [स्त्री० घणी] दे० ‘घना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घत  : पुं० [हिं० घात] १. दे० घात। २. ठीक और पूरा ढंग या रीति। उदाहरण–मैं जानत या व्रत के घत कौं।–सूर।
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घतर  : पुं० [?] तड़का। प्रभात का समय।
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घतिया  : पुं० [हिं० घात+इया (प्रत्यय)] १. घात करनेवाला। २. विश्वासघात करनेवाला। धोखेबाज।
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घतियाना  : स० [हिं० घात] १. अपनी घात या दाँव में लाना। मतलब पर चढ़ाना। २. कोई चीज चुरा, छिपा या दबाकर रख लेना।
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घत्ता  : पुं० [?] अपभ्रशं का एक प्रसिद्ध मात्रिक अर्द्धसम छंद जिसके विषम चरणों में १८-१९ और सम चरणों में १३ मात्राएँ तथा तीन लघु होते हैं।
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घत्तानंद  : पुं० [?] एक मात्रिक अर्द्धसम छंद।
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घन  : पुं० [सं०√हन् (हिंसा)+अप्, घनादेश] १. मेघ। बादल। २. लोहा पीटने का बहुत बड़ा हथौड़ा। ४. झुंड। समूह। ५. कपूर। ६. अभ्रक। ७. बजाने का बड़ा घंटा। घड़ियाल। ८. एक प्रकार की सुगंधित घास। ९. कफ। श्लेष्मा। १॰. नृत्य का एक प्रकार या भेद। ११. संगीत में धातु का ढला हुआ वह बाजा जो केवल ताल देने के काम आता हो। जैसे–झाँझ, मँजीरा आदि। १२. किसी चीज या बात की अधिकता या यथेष्ठ मान। जैसे–आनन्द-घन। उदाहरण–पवन के घन घिरे पड़ते ये बने मधु अंध।–प्रसाद। 1३. मुख। (डिं०) १४. गणित में किसी अंक को किसी अंक के वर्ग से गुणा करने पर निकलनेवाला गुणनफल। जैसे–४ का घन (४´×१६=) ६४ होगा। १५. पदार्थों के मान का वह रूप जिसमें उनकी लंबाई (या ऊँचाई) चौड़ाई (या गहराई) और मोटाई के कुल विस्तारों का अंतर्भाव होता है। 1६. ज्यामिति में वह पदार्थ जिसके छः समान वर्गित पक्ष हों। १७. वैज्ञानिक क्षेत्रों में, पदार्थ की तीन स्थितियों में से एक जिसमें उसके अणु एक साथ इस प्रकार सटे होते हैं कि वे अलग तथा अकेले क्रियाशील या गतिशील नहीं हो सकते हैं। वि०१. घना (देखें)। पद-घन का=(क) देखने में बहुत अधिक घना जैसे–घन का बादल। (ख) मात्रा या मान में बहुत अधिक। जैसे–घन की विपत्ति। २. (पदार्थ) जिसमें अणु इस साथ एक प्रकार सटे हुए हों कि वे अलग-अलग क्रियाशील या गतिमान न हो सकते हों। ठस या ठोस। ३. भारी। ४. दृढ़। पक्का। पुं०=शत्रुघन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) उदाहरण–रघुनंदन बिनु बंधु कुअवसर जद्यपि घनु दूसरे हैं।–तुलसी।
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घन-काल  : पुं० [ष० त० ] वर्षा ऋतु। बरसात।
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घन-कोदंड  : पुं० [ष० त०] इन्द्रधनुष।
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घन-क्षेत्र  : पुं० [ष० त०] किसी चीज की गहराई, चौड़ाई और लंबाई का समूचा विस्तार।
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घन-फल  : पुं० [ष० त०] १. वह गुणनफल जो किसी संख्या को उसी संख्या से दो बार गुणा करने से निकलता है। घन। २. वह जो किसी ठोस चीज की लंबाई, चौड़ाई और मोटाई (या गहराई) के मानों को एक दूसरे से गुणा करने पर निकलता है।
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घन-बेला  : पुं० [हिं० घन+बेला] [स्त्री० अल्पा० घन-बेली] एक प्रकार के बेले का पौधा और उसका फूल।
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घन-मान  : पुं० [ष० त०] किसी वस्तु की लंबाई, चौड़ाई और मोटाई का सम्मिलित मान। (क्यूब मेजर)।
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घन-मूल  : पुं० [ष० त०] गणित में किसी घन (राशि) का मूल अंक। (क्यूब रूट) जैसे–२७ का घन-मूल ३ होता है, क्योकि ३ को ३ से दो बार गुणा करने पर ही २७ होता है।
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घन-रस  : पुं० [ष० त०] १. जल। पानी। २. कपूर। ३. हाथियों का एक रोग जिसमें उनका खून बिगड़ जाता और नाखून गलने लगते हैं।
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घन-वर्धन  : पुं० [तृ० त०] [वि० घनवर्धनीय, भाव० घनवर्धनीयता] धातुओं आदि को हथौड़े से पीटकर बढ़ाना।
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घन-वाह  : पुं० [घनं√वह (ले जाना)+णिच्+अण्,उप० स०] वायु।
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घन-वाही  : स्त्री० [हिं० घन+वाही(प्रत्यय)] १. किसी चीज को घन या हथौड़े से कूटने का काम। घन चलाना। २. वह गड्ढा या स्थान जहाँ खड़े होकर घन (हथौड़ा) चलाया जाता है।
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घन-श्याम  : वि० [उपमि० स०] जिसका रंग बादल के समान श्याम हो। हल्का नीलापन लिये हुए काला। पुं० १. काला बादल। २. श्रीकृष्ण का एक नाम।
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घन-सार  : पुं० [ष० त०] १. कपूर। २. चंदन। ३. जल। ४. सुंदर बादल। ५. [ब० स०] पारा।
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घनक  : स्त्री० [सं० घन] १. गर्जन। २. गड़गड़ाहट। ३. चोट। प्रहार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घनकना  : अ० [हिं० घनक] जोर की आवाज करना। गरजना। स० चोट या प्रहार करना।
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घनकफ  : पुं० [ष० त०] ओला।
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घनकारा  : वि० [हिं० घनक] ऊँची आवाज करने या गरजने वाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घनगरज  : स्त्री० [हिं० घन+गर्जन] १. बादल के गरजने की ध्वनि। २. खुभी की जाति का एक छोटा पौधा जिसकी तरकारी बनती है। ढिंगरी। ३. एक प्रकार का तोप।
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घनघटा  : स्त्री० [हिं० घन+घटा] बादलों की गहरी या घना घटा।
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घनघनाना  : अ० [अनु०] घन घन शब्द होना। घंटे की ऐसी ध्वनि निकलना। स० घन-घन शब्द उत्पन्न करना।
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घनघनाहट  : स्त्री० [अनु०] घन-घन शब्द निकलने की धव्नि या भाव।
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घनघोर  : वि० [हिं० घन+घोर] १. बहुत अधिक घना। जैसे–घनघोर बादल। २. भीषण या विकट। जैसे–घनघोर युद्ध। ३. (कलन या गणित) जिसमें लंबाई, चौड़ाई और मोटाई तीनों का योग या विचार हों। (क्यूब)। पुं० १. तुमुलनाद । भीषण ध्वनि। २. बादलों की गरज।
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घनचक्कर  : पुं० [हिं० घन+चक्र] १. वह व्यक्ति जिसकी बुद्धि सदा चंचल रहे। बहुत चंचल बुद्धि का आदमी। २. बेवकूफ। मूर्ख। ३. वह जो बराबर इधर-उधर व्यर्थ घूमता फिरे। ४. जंजाल। झंझट। ५. एक प्रकार की आतिशबाजी जो चक्कर के रूप में होती और बहुत जोर का शब्द करती है। ६. सूरजमुखी (पौधा और फूल)।
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घनता  : स्त्री० [सं० घन+तल्-टाप्] १. घने होने की अवस्था या भाव। घनापन। २. अणुओं आदि की पारस्परिक ठोस गठन। ठोसपन। ३. दृढ़ता। मजबूती। ४. किसी पदार्थ की सारी लंबाई, चौड़ाई और मोटाई का समूह।
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घनताल  : पुं० [सं० घनता√अल् (पर्याप्ति)+अच्] १. चातक। पपीहा। २. [घन-ताल, कर्म० स०] करताल की तरह का एक बड़ा बाजा।
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घनतोल  : पुं० [सं० घन√तुल् (तोलना)+अणु, उप० स०] चातक। पपीहा।
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घनत्व  : पुं० [सं० घन+त्व]=घनता।
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घननाद  : पुं० [ष० त०] १. बादलों की गरज। २. मेघनाद (रावण का पुत्र)।
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घनपति  : पुं० [ष० त०] मेघों के अधिपति, इन्द्र।
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घनप्रिय  : वि० [ब० स० वा ष० त०] बादल जिसे प्रिय हों अथवा जो बादलों का प्रिय हो। पुं० १. मोर। मयूर। २. मोरशिखा नाम की घास।
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घनबहेड़ा  : पुं० [हिं० घन+बहेड़ा] अमलतास।
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घनबान  : पुं० [हिं० घन+बाण] १. एक प्रकार का बाण।
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घनवाहन  : पुं० [ब० स०] इन्द्र, जिसका वाहन मेघ माना गया है।
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घनहर  : पुं० [सं० घन=बादल] बादल। मेघ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घनहस्त  : वि० [ब० स०] जो लंबाई, चौड़ाई और मोटाई या गहराई तीनों आयामों में एक-एक हाथ भर हो। पुं० १. क्षेत्र या पिंड जो एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा या मोटा हो। २. अन्न आदि नापने का एक पुराना मान जो एक हाथ लंबा, एक हाथ चौड़ा और एक हाथ गहरा होता था। खारी। खारिका।
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घना  : वि० [सं० घन] [स्त्री० घनी] १. (वस्तु) जिसके विभिन्न अंश, अवयव या कण इस प्रकार आपस में मिल या सट गये हों कि वह अविभिन्न समूह जान पड़े। जैसे–घना कोहरा,घना बादल। २. (अवकाश या स्थान) जिसमें बहुत सी वस्तुएँ सट-सटकर खड़ी, पड़ी या रहती हों। जैसे–घना जंगल, घना शहर। ३. (वस्त्र आदि) जिसकी बुनावट के ताने-बाने आपस में खूब सटे हो। गफ। गझिन। ४. जिसमें गाढ़ता या प्रखरता बहुत अधिक हो। जैसे–घना अंधकार, घनी नीलिमा। ५. जिसमें आपसदारी या समीपता बहुत अधिक हो घनिष्ठ। गहरा। जैसे–घना संबंध। ६. बहुत अधिक। अतिशय। जैसे–घनी पीड़ा। जैसे–जिनके लाड़ बहुतेरे, उनके दुःख भी घनेरे। (कहा०) स्त्री० [सं० गन+अच्-टाप्] १. माषपर्णी। २. रूद्रजटा। जटाधारी लता। ३. एक प्रकार का पुराना बाजा।
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घनाकर  : पुं० [घन-आकार, ष० त०] वर्षाऋतु।
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घनाक्षरी  : स्त्री० [घन-अक्षर, ब० स० ङीष्] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में ३१ वर्ण होते हैं और अंत में प्रायः गुरु वर्ण होता है। इसे कवित्त भी कहते हैं।
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घनागम  : पुं० [घन-आगम, ष० त०] वर्षाऋतु का आरम्भ।
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घनाघन  : पुं० [सं०√हन्(हिंसा)+अच्, नि० सिद्धि] १. देवताओं का राजा इंद्र। २. बरसनेवाला बादल। उदाहरण–गगन अंगन घनाघन ते सघन तम।–सेनापति। ३. मस्त हाथी। क्रि० वि० लगातार घन-घन शब्द करते हुए।
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घनांजनी  : स्त्री० [घन-अंजन, ब० स० ङीष्] दुर्गा।
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घनांत  : पुं० [घन-अंत, ब० स०] वर्षा की समाप्ति पर आनेवाली शरद् ऋतु।
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घनात्मक  : वि० [सं० घन-आत्मन्, ब० स० कप्] १. (पदार्थ) जिसकी लंबाई, चौडाई और मोटाई या गहराई बराबर हो। २. (क्षेत्रफल) जो लंबाई, चौड़ाई और मोटाई को गुणा करने से निकला हो।
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घनात्यय  : पुं० [घन-अत्यय, ब० स०]=घनांत।
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घनानंद  : पुं० [घन-आनंद,ब० स० ] गद्य काव्य का एक भेद।
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घनामय  : पुं० [घन-आमय, ब० स०] खजूर।
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घनाली  : स्त्री० [सं० घन-अवली] बादलों की पंक्ति या समूह। उदाहरण–चंचला थी चमकी घनाली घहराई थी।–मैथिलीशरण।
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घनाश्रय  : पुं० [घन-आश्रय, .ष० त०] आकाश।
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घनिष्ठ  : वि [सं० घन+इष्ठन्] जिसके साथ बहुत अधिक या घना हेल-मेल, मित्रता, संबंध या सहचार हो। जैसे–घनिष्ठ मित्र।
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घनिष्ठता  : स्त्री० [सं० घनिष्ठ+तल्-टाप्] १. घनिष्ठ होने की अवस्था,गुण या भाव। २. वह स्थिति जिसमें दो व्यक्तियों में पारस्परिक इतना मेल या स्नेह होता कि वे एक दूसरे के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझने लगते हैं।
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घनीभवन  : पुं० [सं० घन+च्वि ईत्व√भू (होना)+ल्युट-अन] किसी तरल या द्रव पदार्थ का जमकर गाढ़ा, घना या ठोस होना।
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घनीभाव  : पुं० [सं० घन+च्वि,ईत्व√भू+घञ्] =घनीभवन।
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घनीभूत  : भू० कृ० [सं० घन+च्वि, ईत्व√भू+क्त] १. जो गाढ़ा होकर या जमकर घना हो गया हो। २. जो किसी प्रकार बढ़कर बहुत अधिक या घोर हो गया हो। जैसे–जो घनीभूत पीड़ा थी।–प्रसाद।
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घनेतर  : वि० [घन-इतर,पं० त०] १. जो घन न हो, बल्कि उससे भिन्न हो। २. तरल।
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घनेरा  : वि० [हिं० घना] १. मान, संख्या आदि में बहुत अधिक या बहुत सा। २. घना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घनोदधि  : पुं० [घन-उदधि, ब० स०] एक नरक।
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घनोदय  : पुं० [घन-उदय,ब० स०] वर्षाऋतु का आरम्भ।
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घनोपल  : पुं० [घन-उपल, ष० त०] ओला।
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घन्नई  : स्त्री० दे० ‘घड़नई’।
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घपचिआना  : अ० [हिं० घपची] १. असमंजस में पड़कर चकपकाना। चक्कर में आना। २. व्याकुल होना। घबराना। स० १. किसी को असमंजस या चक्कर में डालना। २. घबराहट पैदा करना।
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घपची  : स्त्री० [हिं० घन+पंच] वस्तु को पकड़ रखने के लिए दोनों हाथों के पंजों की गठा। दोनों हाथों की मजबूत पकड़। क्रि० प्र०-बाँधना।
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घपला  : पुं० [अनु०] १. बिना क्रम की मिलावट। २. ठीक प्रकार से कोई काम न करने के कारण होनेवाली अव्यवस्था या गड़बड़ी। ३. वह कार्य जिसके कारण कोई गड़बड़ी विशेषतः अधिक आर्थिक गड़बड़ी हुई हो। गोल-माल।
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घपलेबाज  : वि० [हिं०+फा०] घपला करने की प्रवृत्ति वाला।
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घपलेबाजी  : स्त्री० [हिं० +फा०] घपला करने की अवस्था, गुण या भाव।
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घपुआ  : वि०=घप्पू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घप्पू  : वि० [अनु०] निरा मूर्ख। निर्बुद्धि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घबड़ाना  : अ०=घबराना।
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घबड़ाहट  : स्त्री०=घबराहट।
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घबराना  : अ० [सं० गह्रर या हिं० घड़बड़ाना] १. आशंका या भय उत्पन्न होने पर मन में धुकधुकी होने लगना। डर के कारण हृदय काँपने लगना। कुछ विकल होना। जैसे–(क) अधिकारी के नाम से ये कर्मचारी घबराते हैं। (ख) इन बीमारियों से शहर वाले घबरा गये हैं। २. कोई काम करने से भय आदि के कारण हिचकना। जैसे–थाने जाने से वह न जाने क्यों घबराता है। ३. आश्चर्य आदि के कारण भौचक्का होना। सकपकाना। जैसे–इतने आदमियों को एक साथ देखकर वह घबरा गया। ४. कोई काम करते-करते उससे जी उकता,उचट या ऊब जाना। जैसे–यहाँ रहते-रहते वह घबरा गये हैं। ५. किसी व्यक्ति, समाचार आदि की प्रतीक्षा करते-करते बहुत अधिक बेचैन या विकल होना। जैसे–आपके समय से न पहुँचने से सारा घर घबरा रहा था। स० १. ऐसी स्थिति उत्पन्न करना कि कोई अधीर या विकल होकर यह निश्चय न कर सके कि क्या करना चाहिए और क्या न करना चाहिए। २. इतना उद्विग्न करना कि दूर होने या हट जाने को जी चाहने लगे। ३. किसी के मन में आतुरता और चंचलता उत्पन्न करना।
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घबराहट  : स्त्री० [हिं० घबराना] घबराने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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घम  : पुं० [अनु०] कोमल तल पर कड़ा आघात लगने से उत्पन्न होनेवाला शब्द। जैसे–पीठ पर घम से मुक्का लगना।
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घम-निधि  : पुं०=सूर्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घमकना  : अ० [अनु० घम] १. घम-घम शब्द होना। २. जोर का शब्द करना। गरजना। जैसे–बादलों का घमकना। स० १. घम-घम शब्द उत्पन्न करना। २. ऐसा आघात करना जिसमें घम शब्द हो। जैसे–मुक्का घमकना।
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घमंका  : पुं० [अनु०] १. आघात आदि से उत्पन्न होनेवाला घम् शब्द। २. घूँसा। मुक्का।
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घमका  : पुं० [अनु०] १. आघात आदि से उत्पन्न होनेवाला घम शब्द। घमंका। २. दे० ‘उमस’।
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घमकाना  : स० [हिं० घमकना] १. घम घम शब्द उत्पन्न करना २. बजाना।
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घमखोर  : वि० [हिं० घाम+फा० खोर(खानेवाला)] १. घाम या धूप खानेवाला। २. जो धूप में रह सके या धूप सह सके।
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घमघमा  : पुं० [हिं० घाम=धूप] दिन का ऐसा समय जिसमें धूप निकली हो।
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घमघमाना  : अ० [अनु० घम घम] घम-घम शब्द होना। स० [अनु०] घम-घम शब्द उत्पन्न करते हुए कोई आघात या प्रहार करना। जैसे–दस-पाँच घूँसे या मुक्के घमघमाना।
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घमंड  : पुं० [?] अहं भावना का वह अनुचित तथा उग्र रूप जिसमें मनुष्य अपने बुद्धि-बल सामर्थ्य आदि को बहुत अधिक महत्व देता हुआ दूसरों को अपने सामने तुच्छ या नगण्य समझने लगना। अभिमान। शेखी। क्रि० प्र०-करना।-टूटना।–होना।
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घमंडी  : वि० [हिं० घमंड] [स्त्री० घमंडिन] जिसे घमंड हो। घमंड करनेवाला।
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घमर  : पुं० [अनु०] १. नगाड़े, ढोल आदि का भारी शब्द। २. गंभीर ध्वनि।
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घमरा  : पुं० [सं० भृंगराज] भृंगराज नाम की बूटी। भँगरैया।
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घमरौल  : स्त्री० [अनु० घम-घम] घाल-मेल की ऐसी स्थिति जिसमें किसी चीज या बात का कुछ भी पता न चले। बहुत बड़ी अव्यवस्था। गड़बड़ी।
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घमस  : स्त्री० दे० ‘घमसा’।
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घमसा  : पुं० [हिं० घाम] १. वर्षा काल की वह गरमी जोहवा न चलने के कारण होती है। उमस। २. घनापन। घनता।
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घमसान  : वि० पुं०=घमासान।
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घमाका  : पुं० [अनु० घम] भारी आघात से होनेवाला घम शब्द।
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घमाघम  : क्रि० वि० [अनु०] घम-घम शब्द के साथ। भारी आघात करते हुए। जैसे–उसने घमाघम चार घूँसे लगा दिये। स्त्री०=घमाघमी।
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घमाघमी  : स्त्री० [अनु०] १. निरंतर घम-घम होनेवाली ध्वनि या जोर का शब्द। २. गहरी या भारी मार-पीट। ३. ऐसी भीड़-भाड़ जिसमें खूब धक्कम-धक्का होता हो। ४.धूम-धाम।
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घमाना  : अ० [हिं० घाम] सरदी से बचने के लिए घाम या धूप में बैठना। धूप खाना या सेंकना। स० सुखाने आदि के लिए कोई चीज धूप में रखना। धूप दिखाना।
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घमायल  : वि० [हिं० घमाना] घाम या धूप की गरमी से पका हुआ (प्रायः फलों के लिए)
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घमासान  : पुं० [अनु० घम+सान (प्रत्यय)] घोर और भीषण मार-काट अथवा युद्ध। गहरी और भारी लड़ाई। वि० बहुत ही घोर, भीषण या विकट (उपद्रव या मार-काट) जैसे–घमासान युद्ध।
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घमाह  : पुं० [हिं० घाम] ऐसा बैल जो गरमी में हल जोतने से जल्दी थक जाता हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घमीला  : वि० [हिं० घाम-धूप] घाम खाया हुआ। घाम से मुरझाया हुआ।
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घमूह  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास जो प्रायः करील आदि की झाड़ियों के पास होती और चारे के काम आती है।
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घमोई  : स्त्री० [देश०] बाँस का एक प्रकार का रोग जिससे बाँस की जड़ों में बहुत से पतले और घने अंकुर निकलकर उसकी बाढ़ और नये किल्लों का निकलना रोक देते हैं। २. दे० ‘घमोय’।
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घमोय  : स्त्री० [देश०] गोभी की तरह का एक छोटा पौधा जिसके पत्ते कटावदार तथा काँटों से भरे होते हैं। भड़भाड़। स्वर्णक्षीरी।
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घमौरी  : स्त्री०=अँभौरी।
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घर  : पुं० [सं० गृहम्, पा० प्रा० घरम्, उ० गु० ने० पं० बँ० मरा० घर० सिं० घरु० कन्न० सिंह० गर] [वि० घरु, घराऊ, घरेलू] १. ईट, पत्थर, मिट्टी, लकड़ी आदि की वह विशिष्ट वास्तु रचना जो प्रायः दीवारों से घिरी और छतों से पटी हुई होती है और जिसमें लोग अपने परिवार या बाल-बच्चों के साथ रहते हैं, और इसी लिए जिसमें गृहस्थी का भाव भी सम्मिलित है। मकान। (हाउस) मुहावरा–घर आँगन हो जाना=घर का टूट-फूटकर खँडहर या मैदान हो जाना। जैसे–ऐसा सुन्दर घर अब आँगन हो गया। घर का आँगन होना=घर या उसमें रहनेवाले परिवार के सुख-सौभाग्य आदि का ऐसा विस्तार या वृद्धि होना जो सब प्रकार से अभीष्ट तथा शुभ हो। घर घर के हो जाना=अपने रहने का घर न होने के कारण कभी किसी के घर और कभी किसी के घर में जाकर रहना। इधर-उधर मारे-मारे फिरना। उदाहरण– तेरे मारे यातुधान भये घर-घर के।–तुलसी। घर सिर पर उठाना-बहुत कोलाहल करना या शोर मचाना। हो हल्ला करना। २. (क) उक्त प्रकार के भवन या रचना का कोई ऐसा अलग खंड या विभाग जिसमें स्वतंत्र रूप से कोई परिवार रहता हो। किसी परिवार का निवास-स्थान। (ख) उक्त खंड या विभाग में रहनेवाला परिवार। जैसे–इस मकान के चारों घरों से एक-एक रुपया मिला है। ३. उक्त में एक साथ रहनेवालों की पूरी समाजिक इकाई। एक ही मकान या उसके विभाग में एक साथ रहनेवाले परिवार या रिश्ते-नाते के सब लोग। जैसे–(क) आज घर भर मेला देखने जायगा। (ख) घर के सब प्राणियों को ब्याह न्योता मिला है। (ग) हैजे में घर के घर तबाह हो गये। मुहावरा–घर करना= (क) बसने या स्थायी रूप से रहने के लिए अपना निवास स्थान बनाना। जैसे–जंगल में घर बनाना। (ख) घर-गृहस्थी का ऐसा ठीक और पूरा प्रबंध करना कि परिवार के सब लोगों का ठीक तरह से निर्वाह होता रहे। (ग) पुरुष और स्त्री का पति-पत्नी के रूप में रहकर गृहस्थी चलाना। जैसे–आओ मीता,घर करें, आया सावन मास।–स्त्रियों का गीत। (किसी काम को) घर का रास्ता समझना= (क) बहुत ही सरल या सुगम समझना। (ख) सामान्य और सुपरिचित समझना। घर के घर=अंदर-ही अंदर और गुप्त रूप से। बिना औरों को या बाहरी लोगों को जतलाये। जैसे–सब झगड़े घर के घर तै हो गये। घर के घर रहना=लेन-देन,व्यवहार,व्यापार आदि में ऐसी स्थिति में रहना कि न तो कुछ आर्थिक लाभ हो और न ही हानि। (किसी का) घर चलान=(क) किसी को इस, प्रकार नष्ट या बरबाद करना कि उसकी बहुत बड़ी आर्थिक हानि हो अथवा मान-मर्यादा नष्ट हो जाय। (ख) किसी परिवार में अशांति,कष्ट,वैमनस्य आदि उत्पन्न करना। घर चलाना=घर के व्यय आदि का निर्वाह और प्रबंध करना। घर जमाना=घर-गृहस्थी की सभी उपयोगी चीजें एकत्र करना जिसमें सब आवश्यकताएँ पूरी होती रहें। (किसी के) घर तक पहुँचना=किसी को माँ-बहन तक की गालियाँ देना। (किसी का) घर देख पाना या देख लेना=एक बार कहीं से उद्देश्य-सिद्धि या फल प्राप्ति हो जाने पर परच जाना और प्रायः उसी ओर प्रवृत्त होना। जैसे– अब तो इन्होंने घर देख लिया है, नित्य पहुँचा करेगे। (किसी स्त्री का किसी के) घर पड़ना=किसी के घर जाकर पत्नी भाव से रहना। (दर,लागत या भाव के विचार से कोई चीज) घर पड़ना=भाव,लागत,व्यय आदि के विचार से किसी चीज की दर या दाम ज्ञात या स्थिर होना। जैसे–ये मोजे दस रूपये दरजन तो घर पड़ते हैं, यदि ग्यारह रुपये दरजन भी न बिकें तो हमें क्या बचेंगा। (दूकानदार) (किसी का) घर फोड़ना=किसी परिवार में उपद्रव, कलह या लड़ाई झगड़ा खड़ा करना। जिसमें उसी घर के रहनेवाले एक दूसरे से अलग हो जाना चाहें। (अपना) घर बनाना=आर्थिक दृष्टि से अपना घर संपन्न और सुखी करना। (किसी का) घर बसना=विवाह हो जाने और घर में पत्नी के आ जाने के कारण घर आबाद होना। (किसी का) घर बिगाड़ना= (क) किसी के घर की समृद्धि नष्ट करना। घर तबाह करना। (ख) घर में फूट फैलाना। घर के लोगों में परस्पर लड़ाई कराना। (ग) किसी की बहू-बेटी को बुरे मार्ग पर ले जाना। (स्त्री का किसी पुरुष के) घर बैठना=किसी के घर जाकर पत्नी भाव से रहने जाना। घर बैठे=बिना कोई विशेष परिश्रम या प्रयास किये। जैसे–अब सारा काम घर बैठे हो जायगा। (अपना या किसी का) घर भरना=घर को धन-धान्य से पूर्ण करना। जैसे–इन्होंने जन्म भर अपना (या अपने मालिक का) घर भरने के सिवा किया ही क्या है। (किसी स्त्री को) घर में डालना=उपपत्नी या रखेली बनाकर अपने घर में रख लेना। घर से-अपने पास से। पल्ले से। जैसे–हमें तो घर से सौ रुपये निकाल कर देने पड़े। घर सेना-घर में चुपचाप और व्यर्थ पड़े रहना,बाहर न निकलना। घर से बाहर पाँव या पैर निकालना=किसी प्रकार के कुमार्ग या दुष्कर्म में प्रवृत्त को काम करना। पद-घर का= (क) निज का। अपना। जैसे–घर का मकान या बगीचा, घर के लोग।(ख) आपस के लोगों का। जिससे परायों या बाहरवालों का कोई संबंध न हो। जैसे–घर का झगड़ा, घर की पूँजी। (ग) स्त्री की दृष्टि से उसका पति या स्वामी। उदाहरण–घर के हमारे परदेस को सिधारे यातें दया करि बूझीए हम रीति राहवारे की।–कविंद। घर का अच्छा= (क) कुल, शील आदि के विचार से श्रेष्ठ। (ख) आर्थिक दृष्टि से संपन्न और सुखी। घर का उजाला=परिवार, वंश आदि की मान-मर्यादा बढ़ानेवाला व्यक्ति। घर का न घाट का=जिसके रहने का ठीक-ठिकाना या कोई निश्चित स्थान न हो। जैसे–धोबी का कुत्ता घर का न घाट का। (कहा०) घर का बहादुर, मर्द या शेर=वह जो अपने घर के अंदर या घर के लोगों के सामने ही बहादुरी की डींग हाँकता हो, बाहरी लोगों के सामने दब जाता हो। घर की खेती=ऐसा काम,चीज या बात जो अपने घर में आप से आप या अपने साधारण परिश्रम से यथेष्ट परिमाण में मिल या हो सकती हो। घर के बाढ़े-जो अपने घर में ही रहकर बड़ा हुआ हो, परन्तु जिसे अभी बाहरवालों के सामने कुछ कर दिखाने का अवसर न मिला हो अथवा ऐसी शक्ति न आई हो। घर ही का बहादुर या शेर। उदाहरण–द्विज देवता घरहिं के बाढ़।–तुलसी। घर में= (क) स्त्री०। जोरू। घरवाली। जैसे–उनके घर में बीमार हैं। (ख) पति। स्वामी। जैसे–हमारे घर में परसों बाहर गये हैं। (स्त्रियाँ) घरवाला=स्त्री के विचार से, उसका पति। जैसे–अपने घरवाले को भी साथ ले आती। घरवाली=पति के विचार से, उसकी पत्नी। जैसे–जरा घरवाली से भी पूछ लो। घर से= (क) पति के विचार से ,उसकी पत्नी। घरवाली। जैसे–उनके घर से भी साथ आयी हैं। (ख) स्त्री के विचार से, उसका पति। घरवाला। अँधेरे घर का उजाला= (क) वह जिससे किसी छोटे या साधारण घर की मर्यादा, शोभा आदि भी बहुत अधिक बढ़ जाती हो। (ख) परम रूपवान या सुन्दर (अथवा सुन्दरी)। ४. किसी परिवार के रहने के स्थान की सब चीजें। गृहस्थी की सब सामग्री। घर का सारा समान। मुहावरा–घर फूँककर तमाशा देखना=अपना सब कुछ नष्ट करके किसी प्रकार आनंद लेना या सुख भोगना। (ऐसे अनुचित और निंदनीय कार्यों के संबंध में प्रयुक्त जो बहुत अधिक व्यय साध्य हों) ५. प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा, वैभव आदि के विचार से कोई गृहस्थी या परिवार। खानदान। घराना। जैसे–अब भी वहाँ कई पुराने रईसों के घर बचें है। ६. स्थायी रूप से गृहस्थी या परिवार बनाकर रहने के लिए उपयुक्त स्थान। जैसे–लड़की (के विवाह) के लिए कोई अच्छा घर ढूँढ़ना। उदाहरण–जो घर बर कुल होय अनूपा।–तुलसी। ७. वह स्थान जहाँ रहने पर वैसा ही सुख और सुभीते मिलते हों, जैसा सुख और सुभीते स्वयं अपने घर या निवास स्थान पर मिलते हैं। जैसे–(क) इसे भी आप अपना घर समझें। (ख) सब बच्चों को उन्होंने सदा घर की तरह रखा था। ८. पशु-पक्षियों आदि के रहने की जगह। जैसे–चूहे जमीन के अन्दर और तोते पेडों पर अपना घर बनाते हैं। ९. केला, बाँस, मूँज आदि के पौधों का एक जगह और बहुत पास-पास या एक साथ उगा हुआ समूह। झुरमुट। जैसे–उनके बगीचे में केले के ५-६ घर हैं। १॰. वह स्थान जहाँ कोई काम,चीज या बात की अधिकता या प्रचुरता से देखने में आती अथवा होती हो। जैसे–(क) कश्मीर शोभा और सौन्दर्य का घर है। (ख) यहाँ का जंगली क्षेत्र मलेरिया (या साँपों) का घर है। (ग) नगर का वह भाग गुडों और बदमाशों का घर है। ११. वह चीज या बात जिससे कोई दूसरी चीज या बात निकलती या पैदा होती हो। जैसे–रोग का घर खाँसी, लड़ाई का घर हाँसी। (कहा०) १२. वह स्थान जहाँ किसी मनुष्य अथवा उसके पूर्वजों का जन्म, पालन-पोषण आदि हुआ हो। जन्म-भूमि या स्वदेश। जैसे–घर तो उनका पंजाब में था पर वे बहुत दिनों से बंगाल में जाकर बसे थे। १३. वह स्थान जो किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति या कार्य की सिद्धि के लिए उपयुक्त या ठीक हो, अथवा उसके लिए बनाया या रक्षित किया गया हो। जैसे– कल-घर (जिसमें पानी या नल लगा हो), पूजा-घर(जहाँ देवता की मूर्ति और पूजन की सामग्री रहती हो।) रसोई घर आदि। १४. वह स्थान जहाँ जनता को कुछ विशिष्ट चीजें या बातें अपने उपयोग या व्यवहार के लिए नियमित रूप से और सुगमतापूर्वक प्राप्त होती हों। जैसे–टिकटघर, रेलघर। १५. वह स्थान जहाँ किसी विशिष्ट प्रकार का उत्पादन कार्य नियमित और व्यवस्थित रूप से होता हो। जैसे–पुतलीघर, बिजलीघर। 1६. वह स्थान जहाँ किसी विशिष्ट प्रकार का सार्वजनिक काम करने के लिए अनेक कर्मचारी एकत्र होते हों। जैसे– डाकघर, तारघर। १७. किसी अलमारी, संदूक आदि में अलग-अलग चीजें रखने के लिए बने हुए चौकोर खाने। जैसे–इस संदूक में कागज-पत्र, गहने, रुपये-पैसे आदि रखने के लिए अलग-अलग घर बने हैं। १८. कोई चीज रखने का डिब्बा या चोंगा। खाना। (केस) जैसे– अँगूठी, चश्मे या तलवार का घर। १९. किसी तल पर खड़ी और बेड़ी रेखाओं से किये हुए खंड या विभाग। कोण। खाना। जैसे– चौसर या शतरंज की बिसात के घर। २॰. कोई चीज जमाकर बैठने, ऱखने या लगाने के लिए बना हुआ चौखटा, छेद या स्थान। जैसे–अँगूठी में नगीने का घर, तसवीर का घर (अर्थात् चौखटा)। २१. आकाश में क्षितिज के उत्तर दक्षिण वृत्त के मुख्य बारह विभागों में से हर एक जो फलित ज्योतिष में जन्म कुंडली बनाने के समय ग्रहों की स्थिति दिखाने के काम आता है। ये विभाग राशि-चक्र के सूचक होते हैं और इनमें से प्रत्येक में किसी ग्रह के पहुँचने का अलग-अलग प्रकार या प्रभाव या फल माना जाता है। जैसे–चौथा, छठा या नवाँ घर। २२. किसी वस्तु के टिके, ठहरे या रुके रहने की कोई जगह। जैसे–पानी ने छत में स्थान-स्थान पर घर कर लिया है। मुहावरा–(किसी चीज का कही) घर करना=किसी वस्तु का अपने जमने या ठहरने के लिए उपयुक्त स्थान बनाना। जैसे–दो-चार दिनों में जूते में पैर घर कर लेता है। (किसी चीज का) चित्त या मन में घर करना=अपने गुण,रूप आदि के कारण किसी को इतना पसंद आना कि उसका ध्यान सदा बना रहे। अत्यन्त प्रिय होना। २३. किसी बात या व्यक्ति का उपयुक्त तथा नियत स्थान या स्थिति। मुहावरा–(कोई काम या बात) घर तक पहुँचाना=पूर्णता या समाप्ति तक पहुँचाना। जैसे–जो काम हाथ में लिया है, पहले उसे घर तक पहुँचाओ। (किसी व्यक्ति को उसके) घर तक पहुँचाना=ऐसी स्थिति में पहुँचाना या ले जाना कि उसका वास्तविक स्वरूप सब लोगों पर प्रकट हो जाए। जैसे–झूठे को उसके घर तक पहुँचाना चाहिए। (अर्थात् उसे झूठा सिद्ध कर देना चाहिए।) (आग या दीया) घर करना=ठंढ़ा करना। बुझाना।(मंगल-भाषित) २४. आघात, प्रहार या वार करने अथवा उससे बचने या उसे रोकने का कोई विशिष्ठ ढंग या प्रकार। दाँव। पेंच। जैसे–वह कुश्ती (तलवार या पटा-बनेठी) के सब घर जानता है। पद-घर-घाट। (देखें)। मुहावरा–(प्रहार में) घर खाली छोड़ना या देना=वार करते हुए भी आघात या प्रहार न करना बल्कि जान-बूझकर खाली जाने देना। (बार का) घर बनाना=अपने कौशल या चातुरी से प्रहार या वार विफल करना। जैसे– कई घर तो तुम बचा गये, पर इस बार जरा सँभलकर रहना। २५. संगीत में, किसी तान, बोल या स्वर की नियत और मर्यादित सीमा। जैसे–(क) यह तान ठीक नहीं आई, जरा फिर से और ठीक घर में कहो। (ख) यह चिड़िया कई घर बोलती है। 2६. गुदा या भग (बाजारू)
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घर-गृहस्थ  : पुं० [हिं० घर+सं० गृहस्थ] वह व्यक्ति जो अपने परिवार के साथ रहता हो और गृहस्थी के निर्वाह के लिए सब काम-काज करता हो।
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घर-गृहस्थी  : स्त्री० [हिं० घर+गृहस्थी] १. घर में रहनेवाले परिवार के सदस्य और उनकी सब वस्तुएँ। जैसे–घर-गृहस्थी यहाँ से उठाकर अब कहाँ जाएँ। २. परिवार के लोग।
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घर-घराना  : पुं० [हिं० घर+घराना] १. आर्थिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार। २. कुल या वंश और उसकी मर्यादा आदि। जैसे–पहले उनका घर-घराना देख लेना तब विवाह की बात करना।
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घर-घाट  : पुं० [हिं०] १. किसी काम या बात के वे महत्वपूर्ण अंग या पक्ष जिनकी ठीक और पूरी जानकारी होनेपर वह काम या बात अच्छी तरह और सुगमतापूर्वक पूरी या संपन्न होती है। जैसे– कुश्ती, चित्रकारी, रोजगार या संगीत के घर-घाट। २. किसी चीज की बनावट के विचार से उसके उतार-चढ़ाव या सुडौल गठन। जैसे–कटार या तलवार का घर-घाट। ३. अपनी विशिष्ट प्रकार की मनोवृत्ति के अनुसार किसी व्यक्ति का कार्य अथवा व्यवहार करने का कौशल, ढंग या प्रणाली। जैसे–पहले यह तो समझ लो कि वह किस (या कैसे) घर-घाट का आदमी है। ४. उचित और उपयुक्त स्थिति। ठौर-ठिकाना। जैसे–पहले अपना पेट पालने का तो घर-घाट कर लो, फिर ब्याह भी होता रहेगा।
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घर-घालक  : वि० [हिं० घर+घालक=घालनेवाला] १. दूसरों का घर घालने या बिगाड़ने वाला। २. अपने कुल या वंश को कलंकित या बरबाद करनेवाला।
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घर-घालन  : पुं० [हिं० घर+घालना] अपना या दूसरों का घर कलंकित या बरबाद करना। वि०=घर-घालक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घर-घुसड़ू  : वि०=घर-घुसना।
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घर-घुसना  : वि० [हिं० घर+घुसना=घुसा रहनेवाला] [स्त्री० वि० घर-घुसनी] (व्यक्ति) जो प्रायः घर में और विशेषतः स्त्रियों के पास बैठा रहता हो, बाहर घूमता-फिरता या काम-काज न करता हो अथवा कम रहता हो।
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घर-घुसा  : वि०=घर-घुसना।
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घर-चित्ता  : पुं० [हिं० घर+चीतर] घरों आदि में रहनेवाला एक प्रकार का साँप।
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घर-जँवाई  : पुं० [हिं० घर+जँवाई=जामाता] वह जँवाई या दामाद जिसे ससुर ने अपने ही घर में रख लिया हो। ससुराल में स्थायी रूप से रहनेवाला दामाद। घर-दमाद।
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घर-जाया  : पुं० [हिं० घर+जाया=पदा] [स्त्री० घर-जायी] गृह-स्वामी की दृष्टि से, उसके घर में उत्पन्न होनेवाला दासी-पुत्र।
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घर-जुगत  : स्त्री० [हिं० घर+सं० युक्ति] घर-गृहस्थी के सब काम-कम या थोड़े खर्च में अच्छी तरह चलाने की युक्ति या योग्यता।
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घर-झँकना  : वि० [हिं० घर+झाँकना] [स्त्री० घर-झँकनी] बारी-बारी से लोगों के घर व्यर्थ जाकर तुरन्त ही लौट आनेवाला।
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घर-दमाद  : पुं०=घर-जंवाई।
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घर-दासी  : स्त्री० [हिं० घर+सं० दासी] गृहिणी। २. पत्नी।
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घर-द्वार  : पुं०=घर-बार।
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घर-फोड़ा  : वि० [हिं० घर+फोड़ना] [स्त्री० वि० घर-फोड़ी] १. (व्यक्ति) जो दूसरों के घरों में कलह या विरोध उत्पन्न कराता हो अथवा उसके सदस्यों को आपस में लड़ाता हो। २. अपने ही परिवार के सदस्यों से लड़-झगड़ कर उन्हें अलग रहने के लिए विवश करनेवाला।
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घर-फोरा  : वि०=घर-फोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घर-बंद  : वि० [हिं०] १. घर में बंद किया हुआ। २. पूर्णतया अधिकार में लिया हुआ। जैसे–विद्या किसी के घर बंद नहीं है।
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घर-बसा  : पुं० [हिं० घर+बसना] [स्त्री० घर-बसी] १. स्त्री की दृष्टि से उसका पति या स्वामी जिसके कारण उसका घर बसा हुआ माना जाता अथवा रहता है। उदाहरण–एहो घर-बसे,आजु कौन घर बसे हो।–घनानंद। २. उपपति। यार।
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घर-बार  : पुं० [हिं० घर+बार=द्वार] १. वह स्थान जहाँ कोई स्थायी रूप से रहता या काम-काज करता हो। जैसे– आपका घर-बार कहाँ है ? २. घर और घर के सब काम-काज। जैसे– अपना घर-बार अच्छी तरह से देखो। ३. घर-गृहस्थी की सब सामग्री।
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घरऊ  : वि०=घराऊ (घरू)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरघराना  : अ० [अनु० घर० घर] [भाव० घरघराहट] कफ के कारण गले से साँस लेते समय घर-घर शब्द निकलना या होना। स० घर-घर शब्द उत्पन्न करना।
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घरघराहट  : स्त्री० [अनु० घर्र० घर्र] घर-घर शब्द होने की क्रिया या भाव। जैसे–कफ के कारण गले में होने वाली घरघराहट।
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घरट्ट(क)  : पुं० [सं०√घृ (सींचना) +विच्, घर्√अट्ट (गति)+ अण्, उप० स०] [घरट्ट+कन्] [स्त्री० अल्पा० घर्राट्टिका] हाथ से चलाई जानेवाली चक्की। जाँता।
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घरण(णि)  : स्त्री०=घरनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरदारी  : स्त्री० [हिं० घर+फा. दारी] घर में रहकर किया जानेवाले गृहस्थी के काम-काज।
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घरद्वारी  : स्त्री० १. दे० ‘घर-पत्ती’। २. दे० ‘घर-बारी’।
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घरन  : स्त्री० [देश०] पहाड़ी भेड़ों की एक जाति। जुँबली।
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घरनई  : स्त्री०=घड़नई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरनाल  : स्त्री० [हिं० घर+नाली] पुरानी चाल की एक प्रकार की तोप। रहकला।
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घरनी  : स्त्री० [सं० गृहिणी] १. गृह-स्वामिनी। २. पत्नी। भार्या। जैसे–बिन घरनी घर भूत का डेरा।(कहा०)
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घरपत्ती  : स्त्री० [हिं० घर+पत्ती=भाग] किसी जातीय या सार्वजनिक कार्य की अभिपूर्ति के लिए संबंधित घरों या परिवारों से लिया जानेवाला सहांश। चंदा। बेहरी।
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घरपरना  : पुं० [हिं० घर+परना=बनाना] कच्ची मिट्टी का गोल पिंडा जिस पर ठठेरे घरिया बनाते हैं।
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घरबंदी  : स्त्री० [हिं० घर+बंदी=बाँधना] १. अपराधी या अभियुक्त को उसके घर में कैद करने की आज्ञा, क्रिया या भाव। २. चित्रकला में, अलग-अलग पदार्थ दिखाने के लिए पहले छोटे-छोटे बिन्दुओं से उनका स्थान घेरकर उनके विभागों के लिए स्थान नियत करना।
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घरबसी  : वि० स्त्री० [हिं० घर+बसना] १. घर बसाने वाली (अर्थात् पत्नी)। २. घर की समृद्धि बढ़ानेवाली। भाग्यवती। ३. उपपत्नी। रखेली।
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घरबारी  : पुं० [हिं० घर+बार] स्त्री, बाल-बच्चों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहने तथा उनका भरण-पोषण करनेवाला व्यक्ति। गृहस्थ।
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घरबैसी  : स्त्री० [हिं० घर+बैठना] वह स्त्री जो पत्नी बनाकर घर में बैठा या रख ली गई हो। उपपत्नी। रखेली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरम  : पुं० [सं० घर्म] घाम। धूप।
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घरमकर  : पुं०=घर्मकर (सूर्य)।
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घरयार  : पुं०=घड़ियाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरर-घरर  : पुं० [अनु०] वह शब्द जो किसी कड़ी वस्तु को दूसरी कड़ी वस्तु पर रगड़ने से होता है। रगड़ का शब्द।
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घररना  : स० [अनु० घरर० घरर] १. घरर-घरर शब्द उत्पन्न करना। २. किसी कड़ी चीज को किसी दूसरी कड़ी चीज पर इस प्रकार रगड़ना कि घरर-घरर शब्द उत्पन्न करने लगे। अ० घरर-घरर शब्द होना।
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घरवात  : स्त्री० [हिं० घर+वात (प्रत्यय)] घर-गृहस्थी का सामान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरवाला  : पुं० [हिं० घर+वाला (प्रत्यय)] १. घर का मालिक। गृह-स्वामी। २. स्त्री की दृष्टि से उसका पति। जैसे–तुम्हारा घरवाला क्या काम करता है ?
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घरवाली  : स्त्री० [हिं० घर+वाली (प्रत्यय)] १. घर की मालकिन। गृह-स्वामिनी। २. पति की दृष्टि से उसकी पत्नी या स्त्री। जैसे–आज-कल आपकी घरवाली शायद कहीं गई है।
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घरवाहा  : पुं० [हिं० घर+वा या वाहा (प्रत्य)] १. छोटा-मोटा घर। २. घरौंदा।
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घरसा  : पुं० [सं० घर्ष] =घिस्सा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरहाँई  : वि० [हिं० घरहाया का स्त्री रूप] १. अपने घर अथवा दूसरों के घरों में झगड़ा लगाने या फूट डालनेवाली (स्त्री)। २. अपने अथवा दूसरों के घरों की फूट या लड़ाई-झगड़े की बातें इधर-उधर कहने वाली।
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घरहाया  : वि० [हिं० घर+घात] [स्त्री० घरहाई] घर में मत-भेद उत्पन्न करने, फूट डालने या लड़ाई-झगड़ा करानेवाला।
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घरा  : पुं०=घड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घराऊ  : वि० [हिं० घर+आऊ (प्रत्यय)] घर में होने अथवा उससे संबंध रखनेवाला। जैसे– घराऊ कलह।
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घराट  : वि० [?] भीषण। विकट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घराड़ी  : स्त्री० [हिं० घर+आड़ी (प्रत्यय)] वह स्थान जहाँ कोई व्यक्ति और उसके पूर्वज बहुत दिनों से रहते चले आये हों। डीह।
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घराती  : पुं० [हिं० घर+आती (प्रत्यय)] विवाह में, कन्या पक्ष के लोग। ‘बराती’ का विपर्याय।
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घराना  : पुं० [हिं० घर+आना(प्रत्यय)] कुल। खानदान। वंश। (विशेषतः प्रतिष्ठित और सम्पन्न।
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घराँव  : पुं० [हिं० घर] घर का-सा संबंध। मेल-जोल। घनिष्ठता। उदाहरण– दोनों परिवारों में इतना घराँव था कि इस संबंध का हो जाना कोई आसाधारण बात न थी।–प्रेमचन्द्र।
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घरिआर  : पुं०=घड़ियाल।
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घरिआरी  : वि०=घड़ियाली।
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घरिणी  : स्त्री० [सं० घर+इनि-ङीष्] घरनी (पत्नी)।
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घरियक*  : क्रि० वि० [हिं० घरी (घड़ी)+सं० एक] घड़ी भर। बहुत थोड़े समय तक।
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घरिया  : स्त्री० [हिं० घरा (घड़ा)+इया(प्रत्यय)] १. छोटा घड़ा। २. मिट्टी का प्याला या हाँड़ी। ३. मिट्टी का वह छोटा प्याला जिसमें आँच देने से धातु की मैल कटकर ऊपर आ जाती है। घड़िया।
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घरियाना  : स० [हिं० घरी] कागज, कपड़े आदि की तह लगाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरियार  : पुं० =घड़ियाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरियारी  : पुं०=घड़ियाली (घंटा बजानेवाला व्यक्ति)।
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घरी  : स्त्री० [?] तह। परत। स्त्री०=घड़ी।
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घरीक  : क्रि० वि० [हिं० घर+एक] घड़ी भर अर्थात् बहुत थोड़े समय के लिए।
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घरुआ  : पुं० [हिं० घर+वा (प्रत्य०)] घर-गृहस्थी का अच्छा प्रबंध। वि० घर का। घर-संबंधी।
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घरुआदार  : पुं० [हिं० घर+फा० दार] [स्त्री० घरुआ-दारिन, भाव घरुआदारी] १. घर या गृहस्थी का उत्तम प्रबंध करनेवाला व्यक्ति। २. वह जो समझ-बूझकर गृहस्थी का खर्च चलाता हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरुआदारी  : स्त्री० [हिं० घर+दारी] घर का उत्तम प्रबंध करने का भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरुमना  : अ० १. =घुमड़ना। २. =घूमना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरुवा  : पुं०=घरुआ।
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घरू  : वि० [हिं० घर+ऊ(प्रत्यय)] घर का। १. जिसका संबंध स्वयं अपने घर या गृहस्थी से हो। घरेलू। २. आपसदारी का। निजी।
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घरेला  : वि०=घरेलू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरेलू  : वि० [हिं० घर+एलू(प्रत्यय)] १. घर का। घर-संबंधी। जैसे– घरेलू झगड़ा। २. (कार्य या व्यवहार) जो अपने घर या आपसदारी से संबंध रखता हो। निजी। ३. (धंधा) जो घर के अंदर बैठकर किया जाय। जैसे–घरेलू उद्योग-धन्धे। ४. (पशु) जो घर में रखकर पाला-पोसा गया हो। पालतू।
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घरैया  : वि०=घराऊ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० १. अपने घर का आदमी। २. बहुत ही निकट का संबंधी।
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घरोप  : पुं० [हिं० घर+ओप(प्रत्यय)] घर के लोगों का सा आपसी व्यवहार। घनिष्ठ संबंधी।
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घरौंदा  : पुं० [हिं० घर+औंदा (प्रत्यय)] १. छोटा घर। २. कागज, मिट्टी आदि का छोटा घर जिससे बच्चे आदि खेलते हैं। ३. लाक्षणिक अर्थ में कोई अस्थायी या नश्वर वस्तु।
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घरौना  : पुं० दे० ‘घरौंदा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घर्घर  : पुं० [सं० घर्घ√रा(दान)+क] पुरानी चाल का ताल देने का एक प्रकार का बाजा। पुं० [अनु०] किसी भारी चीज के चलने से होनेवाली कर्कश ध्वनि। जैसे–गाड़ी,चक्की या मशीन की घर्घर।
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घर्घरक  : पुं० [सं० घर्घर+कन्] घाघरा नदी।
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घर्घरा(री)  : स्त्री० [सं० घर्घर+टाप्] [घर्घर+ङीष्] १. एक प्रकार की वीणा। २. घुँघरूदार करधनी। ३. घुँघरू या छोटी घंटी।
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घर्म  : पुं० [सं०√घृ (क्षरण)+मक्] १.अग्नि या सूर्य का ताप। गरमी। २. धूप। ३. गरमी के दिन। गीष्मकाल। ४. पसीना। ५. पतीला। ६. एक प्रकार का यज्ञ।
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घर्म-बिंदु  : पुं० [ष० त० ] पसीना।
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घर्माक्त  : वि० [घर्म-अक्त,तृ० त०] पसीने से तर या लथ-पथ।
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घर्माबु  : पुं० [घर्म-अंबु,ष० त०] पसीना।
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घर्मार्द्र  : वि० [घर्म-आर्द्र,तृ० त० ] पसीने से लथ-पथ।
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घर्माशु  : पुं० [घर्म-अंशु, ब० स०] सूर्य।
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घर्मोदक  : पुं० [घर्म-उदक, ष० त०] पसीना।
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घर्रा  : पुं० [अनु० घरर-घरर =घिसने या रगड़ने का शब्द] १. एक प्रकार का अंजन जो आँख आने पर लगाया जाता है। २. गले में कफ रुकने के कारण होनेवाली घरघराहट। मुहावरा–घर्रा चलना या लगना=मरने के समय गले में कफ रुकने के कारण साँस का घर-घर करते हुए रुक-रुककर चलना। घुँघुरू बोलना। घटका लगना। ३. जेल के कैदियों को दिया जानेवाला वह कठोर दंड जिसमें उन्हें मोट खींचने या कोल्हू पेरने में लगाया जाता है।
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घर्राटा  : पुं० [अनु० घर्र+आटा (प्रत्यय)] १. घर्र-घर्र का शब्द। २. गहरी नींद के समय कुछ लोगों की नाक में से निकलनेवाला शब्द। खर्राटा। मुहावरा– घर्राटा मारना या लेना=गहरी नींद में नाक से घर्र-घर्र शब्द निकालना। गहरी नींद सोना।
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घर्रामी  : पुं० [?] वह राज या मिस्त्री जो छप्पर छाने का काम करता हो। छपरबंद।
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घर्ष  : पुं० [सं०√घृष् (घिसना)+घञ्] १. रगड़। घर्षण। २. टक्कर। ३. संघर्ष। ४. पसीना।
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घर्षण  : पुं० [सं०√घृष्+ल्युट-अन] [भू० कृ० घृष्ट] १. रगड़ने की क्रिया या भाव। घिस्सा। रगड़ (फ्रिक्शन) २. लाक्षणिक अर्थ में, दो व्यक्तियों या विचारधाराओं में होनेवाला पारस्परिक विरोधजन्य संघर्ष।
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घर्षणी  : स्त्री० [सं० घर्षण+ङीष्] हरिद्रा। हलदी।
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घर्षित  : भू० कृ० [सं० घृष्ट] १. घिसा, पिसा या रगड़ा हुआ। २.अच्छी तरह माँजा हुआ।
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घलना  : अ० [हिं० घालना] १. हिं० घालना का अकर्मक रूप। घाला जाना। २. किसी पर शस्त्र या हथियार चलाया या छोड़ा जाना। अस्त्र का प्रहार होना। ३. मार-पीट या गहरी लड़ाई होना।
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घलाघल(ली)  : स्त्री० [हिं० घलना] १. गहरा आघात-प्रतिघात० २. मार-पीट।
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घलुआ  : पुं० [हिं० घाल] वह वस्तु जो दुकानदार किसी खरीददार को प्रसन्न करने के लिए तौल से अधिक या सौदे से अतिरिक्त देता है। वि० घालनेवाला। पु० दे० घोलुआ।
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घवद  : स्त्री०=घौद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घवरि  : स्त्री०=घौद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घसकना  : अ०=खिसकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घसखुदा  : वि० [हिं० घास+खोदना] १. घास खोदनेवाला। २. किसी काम में घसियारों की तरह बहुत ही अनाड़ी या मूर्ख। पुं० घसियारा।
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घसत  : पुं० [?] बकरा। (डि०)
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घसना  : स० [सं० घसन] रखाना। भक्षण करना। (डि०) अ० स०=घिसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घसिटना  : अ० हि० घसीटना का अकर्मक रूप। घसीटा जाना।
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घसियारा  : पुं० [हिं० घास+आरा (प्रत्यय)] [स्त्री० घसियारी वा घसियारिन] घास खोदकर लाने और बेचनेवाला व्यक्ति।
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घसीट  : स्त्री० [हिंम० घसीटना] १. घसीटने की क्रिया या भाव। २. जल्दी-जल्दी लिखने की क्रिया या भाव। ३. बहुत जल्दी में और अक्षर आदि घसीट कर लिखी हुई लिखावट। ४. वह पट्टी या फीता जिससे उड़ते हुए पालों को मस्तूल से बाँधा जाता है।
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घसीटना  : स० [सं० घृष्ट, प्रा० घिस्ट+ना(प्रत्यय)] १. जमीन पर पड़ी या खडी हुई वस्तु, व्यक्ति आदि को इस प्रकार खींचकर आगे ले चलना कि वह जमीन पर गिरता पड़ता तथा जमीन से रगड़ खाता हुआ खींचने वाले के पीछे खिंचता चला जाय। २. लाक्षणिक अर्थ में, किसी व्यक्ति को बलपूर्वक किसी कार्य या व्यापार में शामिल करना या फँसाना। जैसे– हमें आप ही तो यहाँ घसीट लाये थे। ३. बहुत जल्दी-जल्दी तथा अस्पष्ट लिखावट लिखना।
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घसीटा-घसीटी  : स्त्री० [हिं० घसीटना] बार-बार इधर-उधर या अपनी ओर घसीटने की क्रिया या भाव।
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घस्मर  : वि० [सं०√घस् (खाना)+कुमरच्] भक्षक। खानेवाला। पुं० वह जिसका ध्यान सदा खाने की ओर रहे। पेटू।
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घस्सा  : पुं०=घिस्सा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घहनना  : अ०=घहनाना।
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घहनाना  : अ० [अनु०] १. घंटा बजने का शब्द होना। घंटे आदि से ध्वनि निकलना। २. जोर से ध्वनि होना। गरजना। स० उक्त प्रकार की ध्वनि उत्पन्न करना।
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घहरना  : अ०=घहराना।
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घहराना  : अ० [अनु०] १. गरजने का-सा भीषण नाद होना। २. वेगपूर्वक या घोर शब्द करते हुए कहीं आकर गिरना या पहुँचना। सहसा आ उपस्थित होना। टूट पड़ना। ३. चारों ओर से घेरना या छाना। स० १. भीषण शब्द करना। २. घेरना या छाना।
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घहरारा  : पुं० [हिं० घहराना] [स्त्री० अल्पा० घहरारी] घोर शब्द। गंभीर ध्वनि। गरज। वि० १. घोर शब्द करने या गरजनेवाला। २. घहराकर अथवा जोर से आकर गिरने या पड़नेवाला।
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घहाना  : अ० स०=घहराना।
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घाँ  : स्त्री० [सं० ख, या घाट=ओर।] १. दिशा। दिक्। २. ओर। तरफ। ३. जगह। स्थान।
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घा  : स्त्री० [सं० ख अथवा घाट-ओर] १. ओर। तरफ। जैसे– चहूँघा। २. दिशा।
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घाइ  : पुं०=घाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि०=घायल।
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घाइल  : वि०=घायल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घाई  : स्त्री० [हिं० घाँ या घा] १. ओर। तरफ। २. दो चीजों के बीच की जगह। अवकाश। ३. बार। दफा। ४.पानी में का चक्कर भंवर। अव्य० =तरह। नाई (बुन्देल०)।
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घाई  : स्त्री० [सं० गभस्ति=उँगली] १. दो उँगलियों के बीच की संधि। अंटी। २. कोई ऐसा कोना जहाँ दो रेखाएँ आकर मिलती हों। जैसे–पौधे की पेड़ी और डाल के बीच की घाई। ३.अँगीठी के ऊपरी सिरे पर का उबार। स्त्री० [सं० घात] १. आघात। प्रहार। वार। जैसे– बनेठी या सोटे की घाई। २. चोट लगने से होनेवाला घाव। जैसे– कुठार की घाई। ३.चालाकी या धोखे की चाल। मुहावरा–(किसी को) घाइयाँ बताना=धोखा देने के लिए इधर-उधर की बातें करना। झाँसा पट्टी या दम-बुत्ता देना। स्त्री०=गाही।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाऊ  : पुं० [सं० घात] १. आघात। चोट। उदाहरण– यह सुनि परा निसानहिं घाऊ।–तुलसी। २. घाव। जखम।
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घाऊघम  : वि० [हिं० खाऊ+गप वा घप] १. गुप्त रूप से या चुपचाप दूसरों का माल उड़ाने, खाने या हजम करनेवाला। २. सब कुछ खा-पी या फूँक-तापकर नष्ट करनेवाला। ३. बहुत बड़ा चालाक या धूर्त।
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घाग  : पुं०=घाघ।
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घागही  : स्त्री० [देश] पटसन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाघ  : पुं० [?] १. गोंडे के रहनेवाले एक बहुत चतुर और अनुभवी कवि जिसकी कही हुई बहुत सी कहावतें उत्तरीय भारत में प्रसिद्ध हैं। ये कहावतें खेती-बारी ऋतु-काल तथा लग्न,मुहूर्त आदि के संबंध में हैं और देहातों में बहुत प्रचलित हैं। २. उल्लू की जाति का एक बड़ा पक्षी। घाघरा
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घाँघरा  : पुं० [स्त्री,.घाँघरी] १. =घाघरा। २. =लोबिया (फली)।
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घाघरापलटन  : स्त्री० [हिं०] स्काँटलैंड देश के पहाड़ी गोरों की सेना जिनका पहनावा कमर से घुटने तक लहँगे की तरह का होता है।
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घाँघल  : स्त्री० [?] बखेड़ा। झंझट। (राज०)
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घाघस  : पुं० [?] १. बटेर की जाति का भूरे रंग का पक्षी जिसका मांस खाया जाता है। २. एक प्रकार की मुरगी। पुं०=घाघ (उल्लू की जाति का बड़ा पक्षी)।
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घाघी  : स्त्री० [सं० घर्घर] मछलियाँ फाँसने का एक प्रकार का बड़ा जाल।
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घाँची  : पुं० [हिं० घान+ची] तेली। (डिं०)।
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घाट  : पुं० [सं० घट्ट] १. जलाशय,नदी आदि के तट पर वह स्थान जहाँ लोग विशेष रूप से नहाते, धोते, जल भरते, नावों पर चढ़ते-उतरते, अथवा उन पर सामान आदि लादते उतारते हों मुहावरा– घाट नहाना=किसी के मरने पर उदक क्रिया करना। (नाव का) गाट लगना=नाव का सवारियाँ चढ़ाने या उतारने,सामान लादने या उतारने के लिए घाट पर पहुँचना या किनारे पर लगना। (लोगों का) घाट लगना=नाव द्वारा नदी पार जाने के इच्छुक व्यक्तियों का घाट पर इकट्ठा होना। २. तालाब, नदी आदि के तट के आस-पास का वह स्थान जहाँ सीढ़ियाँ आदि बनी होती है तथा जिस पर से होकर लोग जल तक पहुँचते हैं। ३. चढ़ाव-उतार का पहाड़ी मार्ग। ४. पहाड़। जैसे– पूर्वी तट। ५. किसी चीज की बनावट में वह अंश जिसमें कुछ चढ़ाव उतार या गोल रेखा का सा रूप हो। पद-घर घाट।(देखे)। ५. कोई काम पूरा होने की जगह या स्थान। ठिकाना। मुहावरा–घाट-घाट का पानी पीना= (क अनेक स्थानों को देख आना अथवा वहाँ रह आना। (ख) अनेक तथा तरह-तरह की चीजों के स्वाद लेना अथवा तरह-तरह के काम करना। ६. ओर। तरफ। दिशा। ७. चाल-चलन। रंग-ढंग। ८. तलवार की धार। ९. जौ की गिरी। १॰. दुलहिन का लहँगा। ११. रहस्य संप्रदाय में, घट का हृदय। स्त्री० [हिं० घटिया=बुरा] १. धोखा। छल। कपट। २. कुकर्म। बुराई। स्त्री० [हिं,.घटना] घटने या घटकर होने की अवस्था या भाव। वि० [हिं० घट] १. कम। थोड़ा। २. घटिया। क्रि० वि० घटकर। पुं० [सं०√घट्+घञ्+अच्] [स्त्री० घाटी,घाटिका] १. गरदन का पिछला भाग। २. अंगिया में का गला।
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घाट-पहल  : पुं० [हिं०] गढ़ या तरासकर बनाई जानेवाली चीज में उसकी बनावट का उतार-चढ़ाव और पार्श्व जो उसे सुड़ौल बनाते हैं। जैसे– इस हीरे का घाट-पहर बहुत बढ़िया है।
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घाट-बंदी  : स्त्री० [हिं० घाट+बंदी] १. घाट पर नाव लाने-ले जाने अथवा माल आदि चढ़ाने या उतारने का निषेध या रुकावट। (एम्बार्गो) २. घाट बाँधने अर्थात् बनाने की क्रिया, ढंग भाव या रूप।
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घाटना  : अ०=घटना।(कम होना)।
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घाटवाल  : पुं० [हिं० घाट+वाला (प्रत्य)] १. घाट का अधिकारी, मालिक या स्वामी। २. वह ब्राह्मण जो घाट पर बैठकर स्नान करनेवाले से दान-दक्षिणा लेता हो। घाटिया।
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घाटा  : पुं० [हिं० घटना] १. घटने की क्रिया या भाव। २. वह (धन या सामग्री) जो कुछ घंटे या कम पड़े। ३. लेन-देन व्यापार आदि में होनेवाली आर्थिक हानि। टोटा। नुकसान। (लाँस)। क्रि०प्र०-आना।–उठाना।–खाना।–देना।–पड़ना।–भरना।–सहना।–होना। पुं० [हिं० घाटी] पहाड़ी मार्ग।
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घाटारोह  : पुं० [हिं० घाट+सं० रोध] घाट पर का आवागमन बंद करना। घाट पर किसी को आने-जाने उतरने-चढ़ने न देना। घाट रोकना।
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घाटि  : वि० [हिं० घटना] कम। न्यून। क्रि० वि० किसी की तुलना में कम,थोड़ा या हलका। स्त्री० [सं० घात] अनुचित और निंदनीय कर्म। दुष्कर्म।
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घांटिक  : वि० [सं० घंटा+ठक्-इक] घंटा या घंटी बजानेवाला। पुं० १. स्तुति-पाठक। २. धूतरा।
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घाटिका  : स्त्री० [सं० घाट+कन्-टाप्,इत्व] गले का पिछला भाग। गरदन।
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घाटिया  : पुं० [सं० घाट+इया(प्रत्यय)] १. वह ब्राह्मण जो घाट पर बैठकर नहाने वालों से दान-दक्षिणा आदि लेता हो। २. घाट का स्वामी।
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घाँटी  : स्त्री० [सं० घंटिका] १. गले के अंदर की घंटी। कौआ। २. कंठ। गला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाटी  : स्त्री० [सं० घाट] १. दो पर्वत-श्रेणियों के बीच का तंग या सकरा मार्ग। २. पर्वतीय प्रदेशों के बीच में पड़नेवाला मैदान। जैसे– कश्मीर की घाटी। ३. चढ़ाव या उतार का पहाड़ी मार्ग। पहाड़ की ढाल। ४. वह पत्र जिसमें यह लिखा रहता है कि घाट पर आने या वहाँ से जानेवाले माल का महसूल चुका दिया गया है। स्त्री० [सं० घाटिया] गले का पिछला भाग।
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घाटी-मार्ग  : पुं० [हिं० घाट+सं० मार्ग] १. पहाड़ियों के बीच में नदी की धारा आदि से बना हुआ संकीर्ण पथ। २. दर्रा।
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घाँटो  : पुं० [?] चैती की तरह का एक प्रकार का लोक-गीत जो चैत-वैसाख में गाया जाता है। (पूरब)
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घाटो  : पुं०=घाटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [हिं० घटना] दरिद्र। गरीब। पुं० [हिं० घाट] १. एक प्रकार का गीत जो घाट पर पानी भरने के समय स्त्रियाँ गाती थी। २. दे० ‘घाँटो’।
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घात  : पुं० [सं०√हन् (हिंसा)+घञ्, कुत्व, त० आदेश] [वि० घाती] १. अस्त्र-शस्त्र अथवा हाथ-पैर आदि से किसी पर की जानेवाली चोट। प्रहार। मार। २. जान से मार डालना। वध। हत्या। जैसे–गोघात। ३.धोखे में रखकर किया जाने वाला अहित या बुराई। ४. गणित में किसी संख्या को उसी संख्या से गुणा करने से निकलनेवाला गुणनफल। (पावर) स्त्री० १. अपना स्वार्थ सिद्ध करने का उपयुक्त अवसर। मुहावरा– घात ताकना=उपयुक्त अवसर की ताक में रहना। (किसी के) घात पर चढ़ना या घात में आना=ऐसी अवस्था में होना जिससे कोई दूसरा आसानी से अपना मतलब गाँठ सके। (किसी को) घात में पाना= किसी को ऐसी स्थिति में पाना जिससे कोई स्वार्थ सिद्ध होता हो। (किसी की) घात में फिरना,रहना या होना=किसी को हानि पहुँचाने का अवसर ढूँढ़ते रहना। (किसी की) घात में बैठना=ऐसी जगह छिपकर बैठना जहाँ से किसी पर सहज में आघात या वार किया जा सके। घात लगना=ऐसा इष्ट और उपयुक्त अवसर मिलना जिससे कोई दुष्ट उद्देश्य या स्वार्थ सहज में सिद्ध हो सके। घात लगाना=कोई काम करने (विशेषतः अपना मतलब साधने) की युक्ति निकालना। २. वह स्थान या स्थिति जिसमें कोई व्यक्ति ऐसे उपयुक्त अवसर की प्रतिक्षा में हो जिसमें कोई काम बन या उद्देश्य सिद्ध हो सकता हो। ३. दाँव। पेच। छल। ४. रंग-ढंग। तौर-तरीका। वि,.अमंगल या हानि करनेवाला। अशुभ। जैसे– घात तिथि, घात नक्षत्र,घात वार।
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घात-स्थान  : पुं० [ष० त०] वह स्थान जहाँ पर प्रहार किया गया हो या होता हो। वध-स्थान।
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घातक  : वि० [सं०√हन्+ण्वुल्-अक,कुत्व, त० आदेश] १. घात या प्रहार करनेवाला। २. मार डालनेवाला। बधिक। ३. कष्ट या हानि पहुँचानेवाला। जैसे– घातक विचार। ४. जिसके कारण या द्वारा कोई मर सकता हो या मर जाए। (फैटल) जैसे– घातक रोग। पुं० १. हिंसक। २. हत्यारा। ३. फलित ज्योतिष में, वह योग जिसके फलस्वरूप आदमी मर सकता हो। ४. दुश्मन। शत्रु।
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घातकी  : वि० पुं०=घातक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घातन  : पुं० [सं०√हन्+णिच्+ल्युट्-अन,कुत्व,.त० आदेश] १. घात करने की क्रिया या भाव। २,. मारना।
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घाता  : पुं० [?] १. वह चीज जो ग्राहक को तौल या गिनती के ऊपर दी जाए। घाल। २. कोई काम करते समय बीच में अनायास होनेवाला लाभ। जैसे–पुस्तक तो वापस मिली ही,तिस पर जलपान मिल गया घाते में।
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घाति  : पुं० [सं०√हन्+क्तिन्,कुत्व,त० आदेश] पक्षियों को फँसाना या मारना। स्त्री० चिड़िया फँसाने का जाल।
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घातिक  : वि०=घातक।
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घातिया  : वि०=घाती।
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घाती(तिन्)  : वि० [सं०√हन्+णिनि, कुत्व,. त० आदेश] [स्त्री० घातिनी] १. घात या प्रहार करने वाला। २. मार डालने या वध करनेवाला। ३. नाश करनेवाला।
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घातुक  : वि० [सं०√हन्+उकञ्, कुत्व० त० आदेश] १. घातक। २. हानि करनेवाला। ३. क्रूर। निर्दय।
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घात्य  : वि० [सं०√हन्+ण्यत्,कुत्व० त० आदेश] १. जिसका या जिसे घात किया जा सके या किया जाने को हो। २. नष्ट किये या मारे जाने के योग्य।
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घान  : पुं० [सं० घना-समूह] १. किसी वस्तु की उतनी मात्रा जितनी एक बार कड़ाही, कोल्हू, चक्की आदि में तलने,पेरने,पीसने आदि के लिए डाली जाय। २. उतना अंश जितना एक बार में पकाया, बनाया या तैयार किया जाय। ३. हर बार क्रमशः उक्त प्रकार के या ऐसे ही और काम करने की क्रिया या भाव। जैसे– दूसरा या चौथा घान। मुहावरा– घान उतरना=उक्त प्रकार से एक बार काम ठीक उतरना या पूरा होना। घान डालना=उक्त प्रकार का कोई काम शुरू करना। घान पड़ना या लगना=उक्त प्रकार का कोई काम आरंभ होना। पुं० [हिं० घन=बड़ा हथौड़ा] १. बड़ा हथौड़ा। घन। २. बहुत बड़ा आघात या प्रहार। पुं० [सं० घ्राण] १. सूँघने की क्रिया या भाव। २. गंध। बू। उदाहरण– जहाँ न राति न दिवस है, जहाँ न पौन न घानि।–जायसी।
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घाना  : स० [सं० घात,प्रा० घाय+ना (प्रत्य)] १,.घात या प्रहार करना। २. नाश या संहार करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स० गहना (पकड़ना)।
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घानि  : स्त्री० १=घान (गंध)। २. =घानी।
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घानी  : स्त्री० [हिं० घान] १. वह स्थान जहाँ कोई काम करने के लिए एक-एक करके घान डाले जाते हों। २. ऊख,तेल आदि पेरने का कोल्हू या उसकी जगह। ३. ढेर। राशि। ४. दे० घान। मुहावरा– घानी करना=पीसना,पेरना या ऐसा ही और कोई काम करना। घानी की सवारी-स्त्री० [हिं०] मालखंभ की एक जिसमें एक हाथ में मोंगरा पकड़कर माल खंभ के चारों ओर घानी या कोल्हू की तरह चक्कर लगाते हैं।
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घाप  : स्त्री० [?] बादलों की घटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाम  : पुं० [सं० घर्म, प्रा० घम्म,पा.गिहन] १. सूर्य या ताप युक्त प्रकाश। धूप। मुहावरा– घाम खाना= (क) सरदी दूर करने के लिए धूप में रहना। (ख) धूप के अधिक या तीव्र प्रभाव में पड़ना। घाम लगना=लू लगना। २. कष्ट। विपत्ति। संकट। मुहावरा–(कहीं या किसी पर) घाम आना=कठिनाई या संकट आना। घाम बचाना या बराना-कष्टदायक बात से बचना। ३. पसीना।
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घामड  : वि० [हिं० घाम] १. (पशु) जो अधिक घाम या धूप लगने के कारण विकल हो गया हो। २. ना-समझ। मूर्ख। ३. आलसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घामरी  : स्त्री० [हिं० घामड़ी] १. धूप आदि न रह सकने के कारण होनेवाली विकलता। २. प्रेम के कारण होनेवाली विह्ललता।
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घाय  : पुं०=घाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घायक  : वि०=घातक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घायल  : वि० [हिं० घाय] १. जिसे घाव या चोट लगी हो, विशेषतः ऐसी चोट लगी हो जिसके कारण उसके शरीर का कोई अंग कट या फट गया हो और रक्त बहने लगा हो। जख्मी। २. (व्यक्ति) जिसे किसी के कुव्यवहार से क्लेश हुआ हो। दूसरे के अनुचित व्यवहार से अपने को अपमानित समझनेवाला। (व्यक्ति) ३. जुए में हारा हुआ (जुआरी) पुं० कनकौआ या गुड्डी लड़ाने का एक ढंग य़ा प्रकार।
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घार  : स्त्री० [सं० गर्त्त] पानी के बहाव से कटकर बना हुआ गड्ढा या नाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घारी  : स्त्री० दे० ‘खरिक’।
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घार्षणिक  : वि.[सं० घर्षण+ठक्-इक] घर्षण संबंधी। घर्षण का।
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घाल  : पुं० [हिं० घालना=डालना] १. किसी चीज का वह थोड़ा सा अंश जो सौदा बिक चुकने पर उचित गिनती या तौल के अतिरिक्त अन्त में ग्राहक के माँगने पर दुकानदार उसे प्रसन्न रखने के लिए देता है। घलुआ। २. उक्त के आधार पर बहुत ही तुच्छ या हेय पदार्थ। मुहावरा–घाल न गिनना=कुछ भी न समझना। तुच्छ समझना। उदाहरण–सरग न घालि गनै बैरागा।–जायसी। ३ आघात। प्रहार. उदाहरण–को न गएउ एहि रिसि कर घाला।–जायसी। क्रि.वि.बे-फायदा। व्यर्थ। स्त्री० घालने की क्रिया या भाव। उदाहरण–तिसकी घाल अजोई जाए।–कबीर।
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घाल-मेल  : पुं० [हिं० घालना+मेलना] १. विभिन्न प्रकार की वस्तुओं की ऐसी मिलावट अथवा विभिन्न बातों का ऐसा सम्मिश्रण जो देखने अथवा सुनने में भला प्रतीत न होता है। २. अनुचित संबंध । ३. मेल-जोल।
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घालक  : वि० [हिं० घालना] [स्त्री० घालिका] १. मारने या वध करने वाला। २. नाशक। ३. बहुत अधिक अपकार या हानि करनेवाला।
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घालकता  : स्त्री० [घालक+ता(प्रत्यय)] घालक होने की अवस्था,गुण या भाव.
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घालना  : स० [प्रा० अप० घल्ल,मरा.घालगें] १. कोई चीज किसी के अंदर डालना या रखना। उदाहरण–को अस हाथ सिंह मुख घालै।–जायसी। २. कोई चीज किसी दूसरी चीज पर बैठाना,रखना या लगाना। उदाहरण–(क) राजकुँवरि घाली वर-माल।–नरपति नाल्ह। (ख) घालि कचपची टीका सजा।–जायसी। ३. (अस्त्र या शस्त्र किसी पर) चलाना,छोड़ना या फेंकना। ४. कोई कार्य संपन्न या संपादित करना। ५. बुरी तरह से चौपट या नष्ट करना। बिगाड़ना। जैसे–किसी का घर घालना। ६. वध या हत्या करना। मार डालना।
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घाव  : पुं० [सं० घात,पा० घातो,प्रा० घाअ,गु० पं० घा० सि० घाऊ,मरा० घाव,घाय] १. शरीर के किसी अंग पर किसी वस्तु का आघात लगने से होनेवाला कटाव या पडनेवाली दरार। क्षत। जख्म। मुहावरा–घाव खाना=आघात या प्रहार सहने के कारण घायल होना। घाव पूजना या भरना=क्षत या घाव में नया मांस भर आने के कारण उसका अच्छा होना। २. शरीर का वह अंग या अंश जो कटने-फटने,सड़ने-गलने आदि के कारण विकृत हो गया हो। ३. मानसिक आघात आदि के कारण होनेवाली मन की दुःखपूर्ण स्थिति। मुहावरा– घाव पर नमक छिड़कना=दुःखी या पीड़ित को और अधिक दुःख या पीड़ा पहुँचाना।
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घाव-पत्ता  : पुं० [हिं० घाव+पत्ता] एक प्रकार की लता जिसके पत्ते घाव पर बाँधने से घाव जल्दी भरता है।
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घावरा  : पुं० [देश] एक प्रकार का ऊँचा सुंगधित वृक्ष जिसकी छाल चिकनी और लकड़ी मजबूत तथा चमकीली होती है।
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घावरिया  : पुं० [हिं० घाव+वरिया(वाला)] घावों की चिकित्सा करनेवाला व्यक्ति। जर्राह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घावा  : वि०=घायल। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घास  : स्त्री० [सं०√घस् (खाना)+ घञ्, पा० घास,पं० घाह,सिं० गाहु,गु० घास्,ने० घाँसू,उ० मरा० घास] १. छोटी हरी वनस्पतियों में से कोई हर एक जिसके पत्ते चरने वाले पशु खाते है। तृण। पद-घास-पात या घास-फूस-(क) तृण और वनस्पति। (ख) कूड़ा-करकट। घास-भूसा= (क) पशुओं का चारा। (ख) व्यर्थ की रद्दी चीजें। मुहावरा– घास काटना,खोदना,गढ़ना या छीलना=तुच्छ या व्यर्थ का काम करना। २. घास की आकृति के कटे हुए कागज,पन्ना आदि के पतले लंबोत्तरे टुकडे। ३. एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
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घासलेट  : पुं० [अं.गैस लाइट] १. मिट्टी का तेल। २. तुच्छ या अग्राह्रा वस्तु।
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घासलेटी  : वि० [हिं० घासलेट+ई.प्रत्यय] १. हलके किस्म का। साधारण या निम्न कोटि का। २. अश्लील या गंदा और रद्दी। जैसे– घासलेटी साहित्य।
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घासी  : स्त्री० [हिं० घास] घास। चारा। तृण। पुं० घसियारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाँह  : स्त्री० =घा(ओर या तरफ)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घाह  : स्त्री० [सं० ख=ओर] ओर। दिशा। उदाहरण–उतरि समुद्द अथाह,घाह लंका घर धुज्जिय।–चंदवरदाई। स्त्री०=घाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिअ  : पुं०=घी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिआ  : स्त्री०=घीया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिआँड़ा  : पुं० [हिं० घी+हंडा] वह बरतन जिसमें घी रखा जाता हो।
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घिऊ  : पुं०=घी।
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घिग्घी  : स्त्री० [अनु.] १. अधिक देर तक रोने से थकावट आदि के कारण साँस में होनेवाली वह रुकावट जिसमें आदमी घी-घी शब्द करने लगता है। २. भयभीत होने पर मुँह से ठीक प्रकार से शब्द न निकलने की स्थिति। क्रि० प्र०-बँधना।
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घिघिआना  : अ [हिं० घिग्घी] १. असहाय तथा दीन बनकर करुण स्वर से बार बार विनती करना। २. चिल्लाना।
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घिचपिच  : स्त्री० [सं० घृष्ट-पिष्ट] १. लिखावट तथा लेख जिसके अक्षर या शब्द इस प्रकार आपस में सटे हों कि पाठक सुविधापूर्वक उसे पढ़ न पाता हो। २. अपेक्षाकृत थोड़े में अत्यधिक वस्तुओं के बिना क्रम से रखे जाने की स्थिति। वि.अस्पष्ट (लिखावट)।
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घिन  : स्त्री० [सं० घृणा] [क्रि० घिनाना, वि० घिनौना] किसी गंदी अथवा सड़ी-गली वस्तु को देखने पर मन में होनेवाली अरुचिपूर्ण भावना जिसके फल-स्वरूप मनुष्य उस वस्तु से घबराकर दूर भागना चाहता है। घृणा। नफरत। क्रि.प्र-आना।–खाना।–लगना।
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घिनावना  : वि० [स्त्री० घिनावनि] घिनौना। उदाहरण–देखत कोइलरि घिनावनि बोलत सोहावनि हो।–ग्रा० गी०।
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घिनौची  : स्त्री=घड़ौची।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिनौना  : वि० [हिं० घिन+औना(प्रत्यय)] [स्त्री० घिनौनी] जिसे देखने पर मन में घिन्न उत्पन्न होती हो। घृणित।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिनौरी  : स्त्री० [हिं० घिन] ग्वालिन नामक कीड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिन्नी  : स्त्री०=घिरनी। स्त्री०=गिन्नी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिय  : पुं०=घी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिया  : स्त्री० घीया।
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घियाकश  : पुं०=घीयाकश।
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घियाँड़ा  : पुं० [हिं० घी+हँड़ा] घी रखने का पात्र। घृत-पात्र।
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घियातरोई  : स्त्री०=घीयातोरी।
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घिरत  : पुं०=घृत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिरना  : अ० [सं० ग्रहण] १. किसी के घेरे में आना। जैसे–शेर गिर गया। २. सब दिशाओं से किसी वस्तु द्वारा ढक लिया जाना। जैसे–बादलों से आकाश घिरना। ३. चारों ओर से आकर उपस्थिति होना। जैसे– घटाएँ घिरना।
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घिरनी  : स्त्री० [सं० घूर्णन] १. गराड़ी। चरखी। २. चक्कर। फेरा। मुहावरा–घिरनी खाना=चारों ओर चक्कर लगाना। ३. रस्सी बटने की चरखी। ४. लट्टू नामक खिलौना। ५. दे० ‘घिन्नी’। स्त्री०=गिनी या गिन्नी। (सोने का अंगरेजी सिक्का)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] १. किलकिला या कौड़ियाला नामक जलपक्षी। २. लोटन कबूतर।
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घिरवाना  : स० [हिं० घेरना का प्रेर] घेरने का काम किसी से कराना।
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घिराई  : स्त्री० [हिं० घेरना] १. घेरने की क्रिया,भाव या पारिश्रमिक। २. पशु चराने का काम या पारिश्रमिक।
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घिरायँद  : स्त्री०=खरायँद (मूत्र की दुर्गन्ध)।
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घिराव  : पुं० [हिं० घेरना] १. घेरने या घेरे जाने की क्रिया या भाव। २. घेरा।
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घिरावना  : स० १. दे० घिरवाना। २. दे० ‘घेरना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घिरित  : पुं०=घृत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घिरिन परेवा  : पुं० [हिं० घिरनी+परेवा] गिरहबाज कबूतर।
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घिरिया  : स्त्री० [हिं० घिरनी] १. शिकार को घेरने के लिए बनाया जानेवाला मनुष्यों का घेरा। २. बहुत असमंजस या संकट की स्थिति।
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घिरौची  : स्त्री०=घड़ौची।
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घिरौरा  : पुं० [देश०] घूस नामक जन्तु का बिल।
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घिर्तकाँदौ  : पुं० [?] चम्पारन में होनेवाला एक प्रकार का जड़हन धान। उदाहरण– घिर्तकाँदी औ कुँवर वेरासू।–जायसी।
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घिर्राना  : स० [अनु.घिर घिर] घसीटना। (पुं० हिं०) अ० दे० ‘घिघियाना’।
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घिर्री  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की घास। स्त्री० [हिं० घेरा] एक ही घेरे में बार-बार घूमने या चक्कर लगाने की क्रिया। मुहावरा–घिर्री खाना=कोई काम पूरा करने के लिए बार-बार कहीं आना-जाना। स्त्री०=घिरनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिव  : पुं०=घी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिसकना  : अ०=खिसकना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिसकाना  : स०=खिसकाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिसघिस  : स्त्री० [हिं० घिसना] जान-बूझकर और सुस्ती से किया जानेवाला ऐसा काम जिसमें उचित से बहुत अधिक समय लगे। जैसे– तुम्हारी यह घिस-घिस हमें अच्छी नहीं लगती।
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घिसटना  : अ० [हिं० घसीटना का अ.] १. घसीटा जाना। २. जमीन पर रेंगते या उससे रगड़ खाते हुए बहुत धीरे-धीरे चलना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिसन  : स्त्री० [हिं० घिसना] १. घिसने की क्रिया या भाव। २. घिसने के कारण होनेवाली कमी या छीज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिसना  : स० [सं० घर्षण,प्रा.घसण] १. किसी वस्तु को जोर लगाकर किसी दूसरी चीज पर इस प्रकार रगड़ना कि वह छीजने लगे। जैसे–पत्थर पर चन्दन या बादाम घिसना। २. किसी बरतन आदि पर जमी हुई काई,मैल आदि छुड़ाने के लिए उस पर कोई चीज मलना,रगड़ना या लगाना। माँजना। ३. संभोग करना। अ.उपयोग,व्यवहार में आते-आते अथवा अन्य वस्तुओं से रगड़ खाते-खाते किसी वस्तु का क्षीण हो जाना। जैसे–लोटा घिस गया है।
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घिसपिस  : स्त्री० [अनु.] १. =मेल-जोल। २. =घिस-घिस। वि०=घिसपिच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिसवाना  : स० [हिं० घिसना का प्रे.] घिसने का काम किसी दूसरे से कराना। रगड़वाना।
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घिसाई  : स्त्री० [हिं० घिसना] घिसने या घिसे जाने की क्रिया ,भाव या मजदूरी।
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घिसाव  : पुं० [हिं० घिसना] घिसने या गिसे जाने की क्रिया या भाव।
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घिसावट  : स्त्री०=घिसाव।
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घिसिआना  : स०=घसीटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घिसिर-पिसिर  : स्त्री० दे० ‘घिस-पिस’।
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घिस्ट-पिस्ट  : स्त्री०=घिस-पिस।
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घिस्समघिस्सा  : पुं० [अनु.] १. बार-बार घिसने या रगडने की क्रिया। २. बच्चों का एक खेल जिसमें एक दूसरे की डोरी या नख में डोरी या नख फँसाकर इस प्रकार झटका दिया जाता है कि दूसरे की डोरी या नख टूट जाय। ३ रेल-पेल।
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घिस्सा  : पुं० [हिं० घिसना] १. रगड़। २. धक्का। ३. टक्कर। ४. चकमा। धोखा। ५. कलाई या कोहनी से गरदन पर किया जानेवाला आघात। (पहलवान) ६. दे० ‘घिस्समघिस्सा’।
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घी  : पुं० [सं० घृत, पा० घत, प्रा० उ० घिअ, मरा० गु० बं० घी,पं० ध्यो,ने.घिउ] मक्खन को तपाकर बनाया हुआ प्रसिद्ध चिकना पदार्थ जो रोटी आदि पर लगाया और तरकारियों आदि में डाला जाता है। मुहावरा–घी का कुप्पा लुढ़कना= (क) किसी धनी का गुजर या मर जाना। (ख) बहुत बडी़ क्षति या हानि होना। घी का डोरा देना= परोसी हुई दाल,सब्जी आदि में ऊपर से धार बाँधकर घा डालना। घी के कुप्पे से जा लगना=किसी ऐसे व्यक्ति के पास अथवा किसी ऐसे स्थान पर पहुँचना कि खूब लाभ हो। घी के चिराग या दीये जलाना=मनोरथ पूर्ण होने पर खुशी मनाना। घी खिचड़ी होना=परस्पर अत्यधिक घनिष्ठता या मेल-जोल होना। पाँचों उँगलियों घी में होना= ऐसी सुखद स्थिति में होना कि किसी बात की कमी न रह जाय।
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घीउ  : पुं०=घी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घीकुआर  : पुं० [सं० घृतकुमारी] ग्वारपाठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घीकुवाँर  : पुं० [सं० घृतकुमारी] ग्वारपाठा।
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घींच  : स्त्री० [हिं० घीचना वा सं० ग्रीव] (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) गरदन। ग्रीवा। स्त्री०=खींच।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घींचना  : स०=खींचना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घीया  : स्त्री० [हिं० घी ?] १. एक प्रसिद्ध लता जिसमें लंबोत्तरे फल लगते हैं और जिनकी सब्जी बनाई जाती है। लौकी। २. उक्त लता का फल।
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घीया-कश  : पुं० [हिं० घीया+कश] पीतल, लोहे आदि का एक प्रसिद्ध दाँतेदार चौकोर उपकरण जिस पर घीया, पेठा आदि रगड़ने से उसके छोटे-छोटे टुकड़े हो जाते हैं।
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घीया-तोरी  : स्त्री० [हिं० घीया+तोरी] १. एक प्रसिद्ध लता जिसके छोटे लंबोत्तरे फलों की तरकारी बनाई जाती है। २. उक्त लता का फल।
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घीस  : स्त्री०=घूस। (जंतु)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घीसना  : स०=घसीटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घीसा  : पुं०=घिस्सा। (रगड़ा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुआ  : पुं०=घूआ।
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घुँइँयाँ  : स्त्री० [देश०] अरुई नामकी तरकारी।
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घुइयाँ  : स्त्री० [?] अरुई या अरवी नामक तरकारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुइरना  : स० १. दे० ‘घूरना’। २. दे० ‘घुड़कना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुइस  : स्त्री०=घूस। (जन्तु)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुकुआ  : पुं० [हिं० घूका] तंग मुँह की बाँस आदि की टोकरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुग्घी  : स्त्री० [?] पंडुक या फाख्ता नाम का पक्षी। स्त्री=घोघी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुग्घू  : पुं० [सं० घूक] १. उल्लू नामक पक्षी। २. मूर्ख व्यक्ति। ३. मिट्टी का एक प्रकार का खिलौना जो फूँककर बजाया जाता है।
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घुँघ(घु)वारा  : वि० दे० ‘घुँघराला’।
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घुँघची  : स्त्री० [सं० गुंजा, प्रा० गुंचा] १. एक प्रकार की जंगली बेल जिसमें लाल-लाल रंग के छोटे-छोटे बीज होते हैं। गुंजा। २. उक्त बेल के बीज।
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घुँघनी  : स्त्री० [अनु०] भिंगोकर तला हुआ अन्न (चना, मटर आदि)।
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घुँघरारा  : वि०=घुँघराला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घुँघराला  : वि० [हिं० घूँघर+वाला] जिसमें कई घुँमाव या घूँघर पड़े हों। जिसमें छल्ले की तरह के कई बल पड़े हों। छल्लेदार (बाल)।
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घुँघरू  : पुं० [अनु० घुन, घुन+सं, खवारू] १. पीतल आदि की बनी हुई गोल और पोली गुरिया जिसमें कंकड़, लोहे आदि का छोटा टुकड़ा रहता है और जिसके हिलने से घन-घन ध्वनि होती है। २. पैरों में पहना जानेवाला एक गहना। जिसमें छोटे-छोटे अनेक घुँघरू लगे रहते हैं। मुहावरा–घुँघरू बाँधना= नाचने के लिए तैयार होना। ३. गले का वह घुर-घुर शब्द जो मरते समय कफ छेंकने के कारण निकलता है। घुटका। मुहावरा–घुँघरू बोलना=मरने के समय गले से घुर-घुर शब्द निकलना।
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घुँघरू-मोतिया  : पुं० [हिं० घुँघरू+मोतिया] एक प्रकार का मोतिया (पौधा और फूल)।
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घुँघरूदार  : वि० [हिं० घुँघरू+फा० दार] (आभूषण या बाजा) जिसमें घुँघरू लगे हुए हों। वि०-‘घुँघराला’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुँघरूबंद  : स्त्री० [हिं० घुँघरू+फा० बंद] (पैरों में घुँघरू बाँधकर) नाचनेवाली वेश्या।
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घुघुआ  : पुं० दे० ‘घुग्घू’।
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घुघुआना  : अ० [हिं० घुग्घू] १. उल्लू पक्षी का बोलना। २. उक्त पक्षी की तरह अस्पष्ट स्वर में बोलना। ३. दे० ‘गुर्राना’।
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घुघुरी  : स्त्री० दे० ‘घुँघनी’। स्त्री० [हिं० घुँघरू] छोटा घुँघरू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुघ्घू  : पुं०=घुग्घू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुंट  : पुं० [देश०] एक जंगली पेड़ जिसकी छाल और फलियों से चमड़ा सिझाया जाता है।
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घुटकना  : स० [सं० घुट्० प्रा० घोट्ट] १. घूँट-घूँट करके कोई तरल पदार्थ पीना। २. दे० ‘गुटकना’।
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घुटकी  : स्त्री० [हिं० घुटकना] १. गले की वह नली जिसमें से होकर खाद्य पदार्थ पेट में जाते हैं। २. गले में रुक-रुककर साँस आने-जानेवाला साँस। मुहावरा– घुटकी लगना=मरने के समय रुक-रुककर साँस आना-जाना।
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घुटन  : स्त्री० [हिं० घुटना] १. दम घुटने की सी अवस्था या भाव। २. ऐसी अवस्था जिसमें कर्त्तव्य न सूझने पर मन में बहुत घबराहट होती हो ।(सफोकेशन)
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घुँटना  : अ० पुं०=घुटना।
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घुटना  : पुं० [सं० घुंटक, दे० प्रा० गोड्डक, प्रा० गोड्ड, गोड, बं० गोर, उ० गोरो, पं० गोड्डा, सिं० गोडो, मरा० घुडगा, गुडगा] १. पैर के बीच का वह जोड़ जिसके ऊपर जाँघ और नीचे टाँग होती है। मुहावरा–घुटना टेकना=सुस्ताने के लिए घुटनों के बल बैठना। (किसी के आगे) घुटना या घुटने टेकना=अपनी अधीनता या पराजय मानकर किसी के आगे सिर झुकाना। घुटनों (के बल) चलना=हाथों और घुटनों के बल उस प्रकार धीरे-धीरे खिसकते हुए चलना जिस प्रकार छोटे बच्चें चलते हैं। घुटनों में सिर देना= (क) सिर नीचा किये चिंतित या उदास होकर बैठना। (ख) लज्जित होना। सिर नीचा करना। (किसी के) घुटनों से लगकर बैठना=सदा पास और लगकर बैठे रहना। २. उक्त गाँठ के आस-पास का स्थान। अ० [हिं० घोटना] १. हिं० ‘घोटना’ क्रिया का अ० रूप। घोटा जाना। २. गले में साँस का रुकना। जैसे–धूएँ या धूल से दम घुटना। ३. बहुत अधिक मानसिक कष्ट या वेदना के कारण जीवन बिताना कठिन होना। मुहावरा– घुट-घुटकर मरना=बहुत अधिक मानसिक या शारीरिक कष्ट भोगते हुए और कठिनता से मरना। ४. किसी चीज का बहुत कस या जकड़कर अटकना, फँसना या बंद होना। जैसे–डोरी या रस्सी की गाँठ घुटना। उदाहरण–आन गाँठ घुटि जाय त्यौ, मान गाँठ छुटि जाय।–बिहारी। ५. अच्छी तरह पीसा या मिलाया जाना। खूब पिसना या मिलना। जैसे–(क) भंग घुटना। (ख) उबलने के बाद अच्छी तरह गलकर दाल का घुटना। पद-घुटा हुआ=बहुत ही अनुभवी या चालाक। (आदमी।) ६. घिसे जाने पर चिकना होना। ७. आपस में बहुत ही घनिष्ठ संबंध होना। जैसे–आज-कल उन दोनों में खूब घुटती हैं। ८. आपस में गुप्त अथवा घनिष्ठतापूर्वक बातें होना। जैसे–जब मैं वहाँ पहुँचा, तब उन दोनों में खूब घुट रही थी। ९. बार-बार करते रहने से किसी काम या बात का पूरा अभ्यास होना। हाथ बैठना। जैसे–लिखने के समय बच्चों की पट्टी घुटना। १॰ उस्तरे से बालों का अच्छी तरह मूँड़ा जाना। जैसे–दाढ़ी घुटना। स० जकड़ने, बाँधने आदि के लिए अच्छी तरह कसना। बंधन कड़ा करना। जैसे–घुटकर बाँधना।
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घुटनी  : स्त्री० हिं० घुटना का स्त्री अल्पा० रूप।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुटन्ना  : पुं० [हिं० घुटना] १. घुटनों तक पहुँचने वाला पायजामा। २. तंग मोहरीवाला पायजामा।
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घुटरूँ  : क्रि० वि० [हिं० घुटना] घुटनों के बल, उसी प्रकार घिसटकर जिसप्रकार छोटे बच्चे चलते हैं।
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घुटरू  : पुं० [हिं० घुटना] छोटा घुटना। बच्चे का घुटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुटवाना  : स० [हिं० घोटने का प्रे०] १. घोटने का काम दूसरे से कराना। २. दाढ़ी, मूँछ आदि मुँड़ाना। स० [हिं० घुटना] घुटने दबवाना।
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घुटाई  : स्त्री० [हिं० घुटना या घोटना] १. घोटने या घोटे जाने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. खूब रगड़-रगड़कर किसी चीज को चिकना बनाने का काम। ३. दाढ़ी मूँछ आदि मुँड़ने या मुँड़वाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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घुटाना  : स० [हिं० घोटना का प्रे०] १. घोटने का काम किसी से कराना। २. कोई चीज रगड़वाकर चमकीला बनवाना। घटवाना। ३. दाढ़ी मूँछ आदि मुंड़ाना।
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घुटाला  : पुं०=घोटाला।
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घुटुरुन  : पुं० [हिं० घुटरू+अन (प्रत्यय)] घुटनों के बल चलने की क्रिया या भाव। क्रि० वि० घुटनों के बल। घुटरू।
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घुटुरू  : पुं०=घुटरू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) क्रि० वि०=घुटरू।
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घुटुवा  : पुं०=घुटना (पैर का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुट्टा  : पुं०=घोटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुट्टी  : स्त्री० [हिं० घूँट या घोटना] देशी दवाओँ का एक प्रकार का घोल जो बहुत छोटे बच्चों को उसकी पाचन शक्ति को ठीक करने के लिए पिलाया जाता है। क्रि० प्र०-देना।–पिलाना। मुहावरा–(कोई चीज या बात) घुट्टी में पड़ना=बहुत छोटी अवस्था से ही प्रकृति का अंग बनना या स्वभाव बनना। जैसे– कह कर मुकर जाना तो उनकी घुट्टी में पड़ा है।
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घुठी  : स्त्री०=घुट्टी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुड़  : पुं० [हिं० घोड़ा] हिन्दी घोड़ा का वह संक्षिप्त रूप जो उसे यौगिक शब्दों के आरम्भ में लगने से प्राप्त होता है। जैसे–घुड़-चढ़ा, घुड़-दौड़, घुड़-मुंहा आदि।
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घुड़कना  : स० [अनु० घुर घुर] खीझने अथवा क्रुद्ध होने पर खिझाने अथवा क्रोध दिलानेवाले को डाँटते हुए यह कहना कि ऐसा काम मत करो जिसमें हम खीझें या क्रुद्ध हों।
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घुड़की  : स्त्री० [हिं० घुड़कना] १. घुड़कने की क्रिया या भाव। २. क्रुद्ध होकर अथवा खींझकर डाँटते हुए किसी को कही जानेवाली बात। पद-बंदर घुडकी (देखें)।
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घुड़चढ़ा  : पुं० [हिं० घोड़ा+चढ़ना] १. वह जो घोड़े पर चढ़ा हो। घुड़ सवार। अश्वारोही। २. एक प्रकार का स्वाँग जिसमें घोड़े की सी आकृति बनाकर उसके बीच में सवार की तरह चलते हैं।
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घुड़चढ़ी  : स्त्री० [हिं० घोडा़+चढ़ना] १. हिंदुओं में विवाह की एक रीति जिसमें वर घोड़े पर चढ़कर दुल्हिन के घर जाता है। २. गाँवों में रहनेवाली वेश्या, जो घोड़े पर चढ़कर एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाती है। ३. घोड़े की पीठ पर रख या लादकर चलाई जाने वाली एक प्रकार की छोटी तोप। घुड़नाल।
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घुड़दौड़  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+दौड़] १. घोड़ों की दौड़। २. एक प्रतियोगिता जिसमें घोड़ों को खूब तेज दौड़ाया जाता है और सबसे तेज दौड़ने वाले घोड़े (अथवा उसके स्वामी को) पुरस्कृत किया जाता है। ३. चलने में घोड़ों की तरह की बहुत तेज चाल। ४. एक प्रकार की बड़ी नाव जिसके अगले भाग पर घोड़े का मुँह बना होता है। ५. घुड़सवार सेना की कवायद। क्रि० वि० घोड़ों की तरह तेजी से आगे बढ़ते या दौड़ते हुए।
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घुड़नाल  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+नाल] घोड़े की पीठ पर रखकर चलाई जानेवाली एक प्रकार की पुरानी चाल की तोप।
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घुड़बहली  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+बहल+ई] एक प्रकार का रथ जिसमें घोड़े जुतते हों।
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घुड़मक्खी  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+मक्खी] भूरे रंग की वह मक्खी जो घोड़ो को काटती है।
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घुड़मुँहा  : वि० [हिं० घोड़ा+मुँह] जिसका मुख घोड़े की तरह लंबा हो। पुं० एक कल्पित मनुष्य जाति जिसका धड़ मनुष्य का-सा और मुँह घोड़े का-सा माना गया है।
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घुड़ला  : पुं० [हिं० घोड़ा+ला (प्रत्यय)] १. बच्चों के खेलने के लिए बनाया हुआ काठ, पत्थर, मिट्टी आदि का छोटा घोड़ा। २. छोटा घोड़ा. ३. छोटी रस्सी या सिकड़ी। (लश०)
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घुड़सवार  : पुं० [हिं० घोड़ा+सवार] [भाव० घुड़सवारी] वह जो घोड़े पर सवार हो। अश्वारोही।
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घुड़सवारी  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+सवारी] घोड़े पर सवार होने की क्रिया या भाव।
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घुड़सार  : स्त्री०=घुड़साल।
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घुड़साल  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+सं० शाला] वह जगह या बाड़ा जहाँ घोड़े बाँधे जाते हैं। अस्तबल।
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घुड़िया  : स्त्री० [हिं० घोड़ी का अल्पा०] बहुत छोटी घोड़ी। विशेष दे० ‘घोडिआ’।
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घुंड़ी  : स्त्री० [सं० गुठ से] १. कपड़े की बनी हुई छोटी गोली जिसे अंगरखे, कुरते आदि का पल्ला बंद करने के लिए टाँकते हैं। कपड़े का गोल-बटन। गोपक। क्रि० प्र०-खोलना।–टाँकना।–लगाना। २. कपड़े सूत आदि का कोई गोलाकार फुँदना जो शोभा के लिए लगाया जाता है। ३. किसी चीज के सिरे पर बनी हुई गोलाकार छोटी आकृति या रचना। जैसे– हाथ में पहनने के कड़े या जोशन की घुंडी। ४. द्वेष, राग, वैर आदि के कारण मन में रहनेवाली गाँठ या दुर्भाव। मुहावरा– जी या मन की घुंडी खोलना=मन में दबी हुई बात कहकर या रोष प्रकट करके दुर्भाव दूर करना। ५. कोई पेचीली बात। ६. धान का अंकुर जो खेत कटने पर जड़ से फूटकर निकलता है। दोहला। ७. एक प्रकार की घास।
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घुंडीदार  : वि० [हिं० घुंडी+फा० दार] १. (चीज) जिसमें घुंडी टँकी, बना या लगी हो। २. पेचीला। पुं० एक प्रकार की सिलाई जिसमें एक टाँगे के बाद दूसरा टाँका फंदा डालकर लगाते और जगह-जगह उसे घुंडी का रूप देते चलते हैं।
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घुड़ुकना  : स०=घुड़कना।
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घुण  : पुं० [सं०√घुण् (घूमना)+क] घुन।
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घुण-लिपि  : स्त्री० [मध्य० स०] =घुणाक्षर।
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घुणाक्षर  : पुं० [घुण-अक्षर,मध्य० स०] लिखे हुए अक्षरों की तरह के वे चिन्ह्र जो पत्ते, लकड़ी आदि पर घुन लगने से बन जाते हैं।
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घुणाक्षर-न्यास  : पुं० [ष० त०] एक प्रकार का न्यास जिसका प्रयोग उस अवस्था में होता है जिसमें कोई घटना संयोगवश वैसे ही हो जाती है जैसे–लकड़ी आदि पर घुन लगने से यों ही कुछ अक्षर से बन जाते हैं।
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घुन  : पुं० [सं० घूण; प्रा० मरा० घूण; बं० घुन्, उ० घूण, पं० घुण्] १. एक प्रकार का लाल रंग का छोटा कीड़ा जो अनाज के दानों का भीतरी अंश खाकर उन्हें खोखला कर देता है। २. सफेद रंग का एक प्रकार का छोटा पतला कीड़ा जो कागज लकड़ी आदि खाता है। मुहावरा–घुन लगना=चिन्ता, रोग, शोक आदि के कारण मनुष्य की ऐसी स्थिति होना कि उसका शरीर दिन पर दिन क्षीण होता जाय।
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घुनघुना  : पुं० [अनु०] बच्चों का झुनझुना नामक खिलौना।
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घुनना  : अ० [सं० घुण] १. घुन आदि के द्वारा लकड़ी आदि का खाया जाना। जैसे–अनाज या लकड़ी घुनना। २. चिन्ता, रोग आदि के कारण मनुष्य का शरीर दिन-पर दिन क्षीण होना।
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घुनाक्षरन्याय  : पुं०=घुणाक्षरन्याय।
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घुन्ना  : वि० [अनु०] [स्त्री० घुन्नी] (व्यक्ति) जो अपने क्रोध, दुःख द्वेष आदि के भाव मन में उपयुक्त अवसर पर किसी से बदला लेने के लिए छिपाये रखता हो।
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घुप  : वि० [सं० कूप या अनु०] गहरा। (अँधेरा)। निविड़। (अंधकार)।
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घुमक  : स्त्री०=घुमड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुमक्कड़  : वि० [हिं० घूमना+अक्कड़(प्रत्यय)] बहुत अधिक घूमनेवाला (व्यक्ति)।
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घुमची  : स्त्री०=घुँघची।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुमटा  : पुं० [हिं० घूमना+टा(प्रत्य०)] सिर में चक्कर आने का एक रोग। इसमें प्रायः मनुष्य का सिर चकराने लगता है, उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा जाता है और वह गिर पड़ता है। क्रि० प्र०=आना।
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घुमड़  : स्त्री० [हिं० घुमड़ना] बरसनेवाले बदलों का घेर-घार।
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घुमँड़ना  : अ०=घुमड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुमड़ना  : अ० [हिं० घूम+अटना] १. बादलों का उमड़-उमड़ तथा घूम-घूमकर इकट्ठा होना। गहरे बादल छाना। २. इकट्ठा होना। छा जाना।
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घुमड़ी  : स्त्री० [हिं० घुमड़ना=घूमना] १. किसी केन्द्र पर स्थिर रहकर चारों ओर फिरने की क्रिया। २. किसी केन्द्र के चारों ओर घूमते रहने की क्रिया। ३. उक्त प्रकार से घूमते रहने के कारण सिर में आनेवाला चक्कर। ४. एक प्रकार का रोग जिसमें सिर में चक्कर आते हैं। ५. पानी का भँवर। ६. चौपायों का घुमनी नामक रोग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुमंतू  : वि० [हिं० घूमना] जो बराबर इधर-उधर यों ही घूमता-फिरता रहता हो।
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घुमना  : वि० [हिं० घुमना] [स्त्री० घुमनी] १. बराबर घूमता रहनेवाला। २. घुमक्कड़। अ०=घूमना।
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घुमनी  : स्त्री० [हिं० घुमना] १. पशुओं का एक रोग जिसमें उनके पेट में पीड़ा होती है और वे चक्कर खाकर गिर जाते हैं।
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घुमरना  : अ,. [हिं० घूमना] १. चक्कर खाना। घूमना। २. भ्रम में पड़ना। अ० दे० ‘घुमड़ना’।
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घुमराना  : अ०=घुमड़ना।
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घुमरी  : स्त्री०=घुमड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुमाँ  : पुं० [हिं० घूमना] जमीन की एक नाप जो आठ बीघों के बराबर होती है। (पंजाब)
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घुमाऊ  : वि० [हिं० घुमाना] घुमानेवाला। पुं० दे० ‘घुमाव’। ४।
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घुमाना  : स० [हिं० घूमना का स०] १. किसी को घूमने में प्रवृत्त करना। जैसे– आँखे घुमाना। २. चक्कर या फेरा देना। जैसे–घड़ी की सुई घुमाना। ३. कुछ दिखाने या सैर कराने के लिए इधर-उधर ले जाना। जैसे–किसी को शहर घुमाना। ४. एक ओर से हटाकर दूसरी ओर ध्यान प्रवृत्त करना या लगाना। ५. एक दिशा से दूसरी दिशा में ले जाना। ६. वापस करना। लौटाना। अ० [हिं० घूम=नींद] शयन करना। सोना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुमारा  : वि० [हिं० घूमना] १. घूमनेवाला। २. घूमता हुआ। वि० [हिं० घूम=नींद] १. जिसे नींद आ रही हो। उनींदा। २. मतवाला। मत्त।
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घुमाव  : पुं० [हिं० घुमाना] १. घूमने या घूमाने की क्रिया या भाव। २. वह स्थान या स्थिति जहाँ से कुछ घूमकर किसी ओर जाता हो। जैसे–रास्ते या सड़क का घुमाव। ३. किसी बात, वाक्य आदि में होनेवाला पेचीलापन या जटिलता। चक्कर। फेर। पद–घुमाव-फिराव (देखें)। ४. उतनी भूमि जितनी दिन भर में एक हल से जोती जाती हो। ५.दे० ‘घुमाँ’।
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घुमाव-फिराव  : पुं [हिं० घूमना-फिरना] १. घूमने या फिरने की क्रिया या भाव। २. बात-चीत या व्यवहार में होनेवाला ऐसा पेचीलापन या जटिलता जिसमें कुछ कपट या छल भी हो। जैसे–हमें घुमाव-फिराव की बातें अच्छी नहीं लगती।
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घुमावदार  : वि० [हिं० घुमाव+दार] १. जिसमें कुछ घुमाव हो। २. चक्करदार।
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घुम्मरना  : अ० १. =घुमड़ना। २. =घूमना।
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घुरकना  : अ०=घुड़कना।
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घुरका  : पुं० [हिं० घुरघुराना] चौपायों का एक रोग।
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घुरकी  : स्त्री०=घुड़की।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुरघुर  : पुं० [अनु०] १. बिल्ली सूअर आदि के गले से तथा साँस लेते समय कफ अटकने के कारण मनुष्य के गले से निकलनेवाला शब्द। २. किसी के कान के पास मुँह ले जाकर बहुत ही धीमें स्वर में कहीं जानेवाली बात।
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घुरघुरा  : पुं० [अनु०] गले में होनेवाला कंठमाला नामक रोग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुरघुराना  : अ० [अनु० घुर घुर] गले से घुर-घुर शब्द निकलना। स० गले के घुर-घुर शब्द उत्पन्न करना।
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घुरघुराहट  : स्त्री० [हिं० घुरघुराना] घुर-घुर शब्द निकालने की क्रिया या भाव।
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घुरचा  : पुं० [देश०] एक प्रकार की चरखी जिसमें कपास ओटी जाती है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुरण  : पुं० [सं०√घुर (शब्द)+ल्युट-अन] घुर-घुर शब्द करने की क्रिया या भाव।
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घुरना  : अ० [अनु०] घुर-घुर शब्द होना। स० १. घुर-गुर शब्द करना। उदाहरण–घुरत परेवा गीवँ उवाचा।–जायसी। २. बजना या बोलना। जैसे–डंका या मृदंग घुरना। उदाहरण–घुरै नीसाण सोइ घनघोर।–प्रिथीराज। अ०=घुलना। उदाहरण–तब पिय उर घुरि सोयो चहै।–नंददास। अ० [सं० घूर्णन] १. घूमना। २. (आँख) झपकना। ३. (झंडे आदि का) फहराना। उदाहरण–घर घर घुरत निसान कहि न जात कछु आज की।–नंददास।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घुरबिनिया  : स्त्री० [हिं० घूरा+बीनना] कूड़े-करकट के ढेर पर से दान आदि चुन या बीनकर एकत्र करने की क्रिया या भाव। पुं० वह जो उक्त प्रकार से दाने आदि एकत्र करके उन्हीं से अपना निर्वाह करता हो। (अर्थात् परम दरिद्र)।
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घुरमना  : अ०=घूमना। उदाहरण–घुरमि घुरमि घायल महि परहीं।–तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घुरला  : स्त्री० [हिं० घुरना=घूमना] लोगों के आने-जाने से बना हुआ मार्ग। कच्चा छोटा रास्ता। पगडंडी। उदाहरण–नेह नेह की बहल मैं घुरला जानत नाह।–रसनिधि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घुरहरी  : स्त्री० दे० ‘खुरहरी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुराना  : अ० [हिं० घुरना] चारों ओर से आकर छा या भर जाना। स० शब्द उत्पन्न करना। बजाना। स० १. =घुलाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) २. =घुमाना। ३. =फहराना। (झंडा आदि)
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घुरुहरी  : स्त्री० [हिं० खुर+हर (प्रत्य०)] १. जंगल में पशुओं के चलने से बना हुआ तंग रास्ते का-सा निशान या पगदंडी। २. बहुत ही छोटा और पतला या सँकरा रास्ता। पगदंडी।
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घुर्मित  : वि० [सं० घूर्णित] घूमता हुआ। चक्कर खाता हुआ।
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घुर्राना  : अ=गुर्राना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुर्रूवा  : पुं० [देश०] जानवरों का एक संक्रामक रोग।
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घुलंच  : पुं० [सं०√घुर्+क्विप्,घुर√अञच् (गति)+अण्, उप० स०] गवेधु नामक कदन्न।
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घुलना  : अ० [सं० घूर्घन, प्रा० घुलन] १. किसी कड़ी या ठोस चीज का तरल पदार्थ में गलकर अच्छी तरह मिल जाना। जल के संयोग से संयोजक अणुओं का अलग-अलग होना। जैसे–दूध या पानी में चीनी घुलना। २. आँच आदि की सहायता से गलकर, नरम होकर या मुलायम पड़कर तरल पदार्थ में मिल जाना। जैसे–दाल जरा और घुलने दो। ३. किसी में या किसी के साथ बहुत अच्छी तरह या खूब मिल जाना। जैसे– किसी के साथ आँखे घुलना। उदाहरण–तब पिय उर घुरि सोयी यहँ।–नंददास। मुहावरा–(किसी से) घुल घुलकर बातें करना=प्रेम पूर्वक खूब मिलकर बातें करना। बहुत घनिष्ठता से बातें करना। घुल-मिलकर=बहुत अच्छी तरह मिलकर। बहुत मेल-जोल से। ४. पकन आदि के कारण ठोस, न रहकर मुलायम पड़ा जाना। जैसे–ये आम खूब घुल गये हैं। ५. बुढापें, रोग शोक आदि के कारण शारीरिक दृष्टि से बहुत ही क्षीण या दुर्बल हो जाना। मुहावरा–घुल-घुलकर मरना=बहुत दिनों तक मानसिक या शारीरिक कष्ट भोगते हुए बहुत क्षीण तथा दुर्बल होकर मरना। ६. जुए में दाँव का किसी कारण व्यर्थ हो जाना। जैसे–कौड़ी या कौड़ी टिकने से दाँव घुल गया। ७. समय का व्यर्थ हाथ से निकलना या बीतना। जैसे–कचहरी में जरा-जरा सी बातों में बरसों घुल जाते हैं।
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घुलवाना  : स० [हिं० घुलाना का प्रे०] १. घोलने का काम किसी दूसरे से कराना। २. आँख में काजल या सुरमा लगवाना।
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घुलाना  : स० [हिं० घुलना] १. किसी तरल पदार्थ में कोई कड़ी या ठोस चीज छोड़कर उसे इस प्रकार हिलाना,मिलाना या उबालना कि वह उसमें घुल जाय। २. मुँह में रखी हुई चीज या रस चूसते हुए उसे खा जाना। ३. गरमी या ताप पहुँचाकर नरम करना। ४. शरीर तीक्ष्ण या दुर्बल करना। ५. यंत्रणा देना। ६. अपनी ओर प्रवृत्त करने का प्रयत्न करना। ७. (सुरमा या काजल) लगाना। सारना। ८. (काल या समय) बिताना। गुजारना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घुलावट  : स्त्री० [हिं० घुलना] १. घुलने या घुलाने की क्रिया या भाव। २. पारस्परिक स्नेहपूर्ण व्यवहार की घनिष्ठता।
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घुवा  : पुं०=घूआ।
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घुस-पैठ  : स्त्री० [हिं० घुसना+पैठना] १. घुसने और पैठने की क्रिया या भाव। २. गति। पहुंच। प्रवेश। ३. प्रयत्न करके बलपूर्वक कहीं पहुँच कर अपने लिए स्थान बनाने की क्रिया या भाव।
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घुसड़ना  : अ०=घुसना।
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घुसना  : अ० [सं० गुध, पं० घुसणा, गु० घुसबूँ, ने० घुस्नु, मरा० घुसणें] १. बलपूर्वक और सामने के निषेधक अथवा बाधक तत्त्वों को इधर-उधर हटाते हुए अन्दर जाना, प्रवेश करना या आगे बढ़ना। जैसे–(क) दरवाजा तोड़कर (अथवा और किसी प्रकार) किसी के मकान के अन्दर घुसना। (ख) तमाशा देखने के लिए धक्कम-धक्का करते हुए भीड़ में घुसना। (ग) पेट में तलवार या तीर घुसना। क्रि० प्र०-आना।–जाना।–पड़ना।–बैठना। पद-घुस-पैठ। (देखें)। मुहावरा–(किसी जगह) घुसकर बैठना= (क) आस-पास के लोगों को दबाते या हटाते हुए कहीं जाकर बैठना। (ख) लोगों की दृष्टि से बचने के लिए आड़ में छिपकर बैठना। जैसे–सिपाहियों का नाम सुनते ही वह घर में घुसकर बैठ गया। २. अनावश्यक अथवा अनुचित रूप से परंतु बलपूर्वक या हठात् किसी कार्य या चर्चा में सम्मिलित होना। जबरदस्ती किसी के बीच में पड़ना। जैसे–दूसरों की बातों में जबरदस्ती घुसने की आदत अच्छी नहीं है। ३. किसी बात या विषय की पूरी जानकारी प्राप्त करने के लिए मनोनिवेशकपूर्वक उसके अंगों-उपांगों आदि का अध्ययन या विचार करके उसकी तह तक पहुँचना। जैसे–किसी विषय में अच्छी तरह घुसे बिना कभी उसका पूरा ज्ञान नहीं होता। ४. किसी चीज या बात का इस प्रकार पूरी तरह से दबना या दूर होना कि सहसा वह दिखाई न दो। जैसे–मुकदमें की पहली पेशी में ही उनकी सारी अकड़ और शेखी घुस गई।
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घुसवाना  : स० [हिं० घुसाना का प्रे०] घुसने या घुसाने का काम किसी से कराना।
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घुंसा  : पुं० [देश०] वह लकड़ी जिसके सहारे जाठ उठाकर कोल्हू में डालते हैं।
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घुसाना  : स० [हिं० घुसना] १. हिं० घुसना का स० रूप। किसी को घुसने में प्रवृत्त करना। २. कोई चीज गड़ाना, चुभाना या धँसाना। ३. किसी अवकाश या स्थान में किसी वस्तु या व्यक्ति को ढकेलना, पहुँचाना या प्रविष्ठ करना।
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घुसेड़ना  : स०=घुसाना।
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घूआ  : पुं० [देश०] १. काँस, मूँज या सरकंडे आदि का रूई की तरह का फूल जो लंबे सीकों में लगता है। २. कीचड़, मिट्टी आदि में होनेवाला एक प्रकार का छोटा कीड़ा। रेवाँ। ३. दरवाजे के पास का वह छेद जिसमें किवाड़े की चूल धँसी रहती है।
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घूक  : पुं० [सं० घू√कै (शब्द)+क] [स्त्री० घूकी] उल्लू पक्षी। घुग्घू।
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घूक-नादिनी  : स्त्री० [घूक√नद् (शब्द)+णिनि-ङीष्,उप० स०] गंगा।
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घूका  : पुं० [हिं० घूआ] १. बाँस। बेंत। २. मूँज आदि की बनी हुई सँकरे मुँहवाली डालिया।
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घूँगची  : स्त्री०=घुँगची।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूगस  : पुं० [देश०] ऊंचा बुर्ज। गरगज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूघ  : स्त्री० [हिं० घोघी] धातु की वह टोपी जो लडा़ई में सिर को चोट से बचाने के लिए पहनी जाती है। पुं० [सं० घूक] उल्लू।
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घूँघट  : पुं० [सं० गुंठ] १. स्त्रियों की चुंदरी धोती साड़ी आदि का वह भाग जिसे वे सिर पर से कुछ नीचे खींचकर अपना मुँह ढँकती हैं। क्रि० प्र०-उठाना।–उलटना।–करना।–काढ़ना।–खोलना।–डालना।–निकालना।–मारना। २. वह दीवार जो बाहरी दरवाजे के सामने इसलिए बनी रहती है जिसमें चौक या आँगन बाहर से दिखाई न पड़े। गुलामगर्दिश। ओट। ३. सैनिक-क्षेत्र में युद्ध के समय सेना का दबकर किसी ओर मुड़ना। मुहावरा–घूँघट खाना=(क) सेना का युद्धस्थल से पीछे की ओर अथवा दाहिने बाएँ मुड़ना। (ख) किसी चीज या सामने से हटकर इधर-उधर मुड़ना या लौटना।
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घूँघर  : पुं० [हिं० घुमरना] बालों में पड़ा हुआ मरोड़। छल्ला।
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घूँघरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का बाजा।
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घूघरा  : पुं०=घूँघुरू।
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घूँघरि  : स्त्री० [हिं० घुमड़ना] ? बादलों का समूह। उदाहरण–घूँघरि दिसनि देखि मय बाढ़ी।–नंददास। २. दे० ‘घूँघर’।
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घूँघरी  : स्त्री० [हिं० घूँघरू] छोटा घुँघरू। नुपुर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूँघरू  : पुं०=घुँघरू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूघस  : पुं० [?] किले के फाटक से अन्दर जाने के लिए बना हुआ चक्करदार रास्ता। (राज०)
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घूघी  : स्त्री० [देश०] १. थैली। २. जेब। खीसा। ३. पंडुक या फाख्ता नाम का जल-पक्षी।
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घूघू  : पुं०=घूग्घू।
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घूँचा  : पुं०=घूँसा।
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घूँट  : पुं० [अनु० घुट-घुट=गले के नीचे पानी आदि उतरने का शब्द] १. तरल पदार्थ की उतनी मात्रा जितनी एक बार में भरकर गले के नीचे उतार दी जाती है। मुहावरा– घूँट लेना=घूँट-घूँट करके या थोड़ा-थोड़ा करके पीना। पुं० [सं० घूँट] एक प्रकार का पहाड़ी टट्टू। गुंठा। गूँठ। २. एक प्रकार का झाड़ या छोटा पेड़।
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घूँटना  : स० [हिं० घूँट] पानी या और कोई तरल पदार्थ घूँट-घूँट या थोड़ा थोड़ा करके गले के नीचे उतारना।
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घूटना  : स० १. =घूँटना। २. =घोटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूँटा  : पुं० [सं० गुंफ] पैर के बीच का जोड़। घुटना।
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घूंटी  : स्त्री० दे० ‘घुट्टी’।
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घूठन  : पुं०=घुटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूड़ा  : पुं० =घूर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूनस  : स्त्री० [?] पाग (ब्याह की पगड़ी) में लटकनेवाला झब्बा या झालर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूना  : वि० =घुन्ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घूँबना  : अ०=घूमना। उदाहरण– महिं घूँबिअ पाइअ नहिं बारू।–जायसी।
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घूम  : स्त्री० [हिं० घूमना] १. घूमने की क्रिया, भाव या स्थिति। घुमाव। २. चक्कर। घेरा। ३. मोड़। स्त्री० [बँ० मिलाओ हिं० ऊँघ] १. निद्रा। नींद। (पूरब) उदाहरण– न इस मोह की घूम से विरो।–मैथिलीशरण। २. नशा।
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घूम-घुमारा  : वि० [हिं० घूमना] १. घूमता या चक्कर खाता हुआ। २. अलसता, मद आदि से भरा हुआ। उदाहरण–कृष्ण रसामृत-पान अलस कछु घूम-घुमारे।–नंददास।
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घूमना  : अ० [सं० घूर्णन, प्रा० घुम्मइ] १. किसी केन्द्र पर स्थित वस्तु का चारों ओर चक्कर लगाना। जैसे–चक्की के पाट,घड़ी की सुई अथवा रथ के पहियों का घूमना। २. किसी एक वस्तु का किसी दूसरी वस्तु को केन्द्र बनाकर उसके चारों ओर चक्कर लगाना। जैसे–चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घूमती है। ३. किसी वस्तु का अपने अक्ष या धुरी पर चारों ओर फिरना। जैसे–लट्टू का घूमना। ४. किसी ओर चलते-चलते दाहिने या बाएँ बढ़ना। जैसे–यह रास्ता आगे चलकर दाहिनी ओर घूम गया है। ५.चलते-चलते पीछे की ओर फिरना। लौटना। जैसे–मैंने घूमकर देखा तो वह भी मेरे पीछे-पीछे आ रहा था। मुहावरा–(किसी को) घूम घुमाना=टाल-मटोल या हीला-हवाला करते हुए किसी को किसी काम के लिए बार-बार दौड़ाना। ६. मन बहलाने या सैर करने के लिए इधर-उधर जाना। जैसे–रोज सबेरे वह घूमने निकलता है। ७. अनेक देशों या स्थानों में सैर-सपाटे के लिए अथवा किसी विशिष्ट उद्देश्य से जाना। जैसे–(क) वे अमेरिका या यूरोप घूम आये हैं। (ख) गाँव-गाँव घूमकर गाँधी ने सोये भारतीयों को जगाया था। ८. अचानक एक ओर से किसी दूसरी ओर प्रवृत्त होना। मुहावरा–(किसी की ओर) घूम पड़ना=आवेश या क्रोध में आकर किसी दूसरे से बातें करने लगना। जैसे– उनसे बातें करते-करते वे अचानक मुझ पर घूम पड़े। ९. किसी चीज का घेर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पद-घूम-घुमारा। (देखे)। अ० [बँ ०घूम=नींद] १. निद्रा में होना। सोना। २. उन्मत्त या मतवाला होना। ३. तन्मय या लीन होना। उदाहरण–बिहंसि बुलाय विलोकि उत्त प्रौढ़ तिया रस घूमि।–बिहारी।
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घूमनी  : स्त्री०=घुमरी (चक्कर)।
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घूमा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का साग जिसमें सफेद फूल लगते हैं।
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घूर  : पुं० [सं० कूट] १. कूड़े-करकट का ढेर। २. वह स्थान जहाँ पर उक्त ढेर लगा हो। ३. पोले गहने को भारी करने के लिए उसके अन्दर भरा हुआ बालू, सुहागा आदि। (सुनार)
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घूरघार  : स्त्री०=घूरा-घारी।
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घूरना  : अ० [सं० घूर्णन] इस प्रकार आँखें निकालकर क्रोधपूर्वक किसी की ओर देखना जिससे वह कोई कार्य करने या न करने को विवश होता हो। जैसे–पिता जी के घूरते ही लड़के घर चले आये।
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घूरा-घारी  : स्त्री० [हिं० घूरना+अनु०] १. घूरने की क्रिया या भाव। २. एक दूसरे के ओर देखने अथवा नजर मिलाने का कार्य।
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घूर्ण  : पुं० [सं०√घूर्ण (चक्कर काटना)+घञ्] १. इधर-उधर घूमना। २. किसी वस्तु को चारों ओर घूमना। वि० घूमता हुआ।
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घूर्णन  : पुं० [सं०√घूर्ण+ल्युट-अन] घूमने या चक्कर लगाने की क्रिया या भाव।
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घूर्णिका  : स्त्री० [सं०√घूर्ण+ण्वुल्-अक,टाप्,इत्व] एक प्रकार का वैज्ञानिक यंत्र जिसकी सहायता से घूमने या चक्कर लगाने वाले पदार्थों या पिंडों के बल, वेग आदि मापे जाते हैं। (जाइरोस्टेड)
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घूर्णित  : वि० [सं०√घूर्ण+क्त] घूमा, घूमता या घुमाया हुआ।
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घूर्णी (र्णिन्)  : वि० [सं० घूर्ण+इनि] घूमनेवाला।
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घूर्ण्य  : वि० [सं०√घूर्ण+ण्यत्] १. जो घूम सकता या घुमाया जा सकता हो। २. घूमता हुआ।
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घूँस  : स्त्री०=घूस (रिश्वत)। पुं०=घूस। (जंतु)।
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घूस  : स्त्री० [सं० गुहाशय=चूहा] चूहे के वर्ग का एक बड़ा जंतु जो प्रायः पृथ्वी के अन्दर बिल खोदकर रहता है। घुँइस। पुं० [सं० गुह्याशय या हिं० घुसना] १. किसी अधिकारी को कोई अनुचित, अवैध या कर्त्तव्य-विरूद्ध कार्य करने के लिए दिया जानेवाला धन। २. अपना काम जल्दी कराने के लिए किसी अधिकारी को दिया जानेवाला धन जो अवैध या अविधिक होता है। रिश्वत।
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घूस-खोर  : वि० [हिं० घूस+फा० खोर] [भाव० घूसखोरी] घूस या रिश्वत लेनेवाला। रिश्वती।
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घूँसा  : पुं० [हिं० घिस्सा] १. बँधी हुई मुट्ठी का वह रूप जो किसी को मारने के लिए बनाकर उठाया या ताना जाता है। मुक्का। २. उक्त प्रकार से किया जानेवाला प्रहार।
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घूँसेबाज  : पुं० [हिं० घूँसा+फा० बाज] वह खिलाड़ी जो घूँसेबाजी के खेल में भाग लेता हो।
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घूँसेबाजी  : स्त्री० [हिं० घूँसा+फा० बाजी] १. आपस में घूँसों या मुक्कों के प्रहार से होनेवाली लड़ाई। २. एक खेल जिसमें दो खिलाड़ी एक दूसरे को घूँसे मारकर परास्त करते हैं।
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घृणा  : स्त्री० [सं०√घू (सींचना)+नक्-टाप्] [वि० घृणित] १. अनुचित या मर्यादा के विरूद्ध कार्य करनेवाले व्यक्ति अथवा उसके किये हुए कार्य या कृति के प्रति होनेवाली घोर स्वाभाविक अरुचि। जैसे–अश्लील साहित्य से मुझे घृणा है। २. दया।
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घृणित  : वि० [सं०√घृणा+इतच्] देखने-सुनने से जिसके प्रति मन में घृणा होती या हो सकती हो। घृणा के योग्य। घृण्य।
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घृणी (णिन्)  : वि० [सं० घृणा+इनि] १. घृणा करनेवाला। २. दयालु। ३. दीप्ति।
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घृण्य  : वि० [सं० घृणा+यत्] =घृणित।
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घृत  : पुं० [सं०√घृ+क्त] १. मक्खन को तपाकर तैयार किया जानेवाला एक प्रसिद्ध खाद्य द्रव्य। घी। २. पानी। वि० तर किया या सींचा हुआ।
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घृत-कुमारी  : स्त्री० [तृ० त०] घी-कुँवार। ग्वार-पाठा।
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घृत-धारा  : स्त्री० [ष० त०] १. घी की धारा। २. [घृत√धृ (धारण करना)+णिच्+अण्, उप० स० टाप्] पुराणानुसार कुशद्वीप की एक नदी।
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घृत-पूर  : पुं० [घृत√पूर् (पूर्ण करना)+अप्, उप० स०] घेवर नाम की मिठाई।
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घृत-प्रमेह  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का प्रमेह जिसमें मूत्र घी के समान चिकना और गाढ़ा होता है।
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घृताची  : स्त्री० [सं० घृत√अंच् (गति)+क्विप्, ङीप्] १. स्वर्ग की एक अप्सरा। २. यज्ञ में आहुति देने का स्रुवा।
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घृतान्न  : पुं० [घृत-अन्न, मध्य० स०] १. घी में पकाया या तला हुआ अन्न या खाद्य पदार्थ। २. [ब० स० ] अग्नि।
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घृतार्चि(स्)  : पुं० [घृत-अर्चिस्, ब० स०] अग्नि।
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घृती(तिन्)  : वि० [सं० घृत+इनि] जिसमें घी पड़ा हो।
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घृतोद  : पुं० [घृत-उदक, ब० स०, उद आदेश] घी का समुद्र। (पुराण)
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घृष्ट  : वि० [सं०√घृष् (घिसना)+क्त] घिसा या रगड़ा हुआ।
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घृष्टि  : स्त्री० [सं०√घृष्+क्तिन्] १. घिसने या रगड़ने की क्रिया या भाव। २. संघर्ष। ३. स्पर्धा। पुं० [√घृष्+क्तिच्] [स्त्री० धृष्टी] सूअर।
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घेंघ  : पुं० [देश०] १. एक प्रकार का भोजन जो भुने हुए चने को चावलों में मिलाकर पकाने से बनता है। पुं०=घेघा (रोग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घेंघा  : पुं०=घेघा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घेघा  : पुं० [देश०] १. गले की नली जिसमें से होकर खाद्य पदार्थ पेट में पहुँचता है। २. गला। ३. एक प्रकार का रोग जिसमें गले के चारों ओर बहुत अधिक सूजन हो जाती है और मांस बढ़ जाता है।
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घेंट  : पुं० [हिं० घाँटी] गला। गरदन।
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घेंटा  : पुं० [अनु० घें घें] [स्त्री० घेंटी] सूअर का बच्चा।
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घेंटी  : स्त्री० [?] चने की फली जिसके अन्दर बीज रूप से चना होता है।
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घेंटुला  : पुं० [हिं० घेंटा] [स्त्री० घेंटुली या घेंटुलिया] सूअर का छोटा बच्चा।
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घेंड़ी  : स्त्री० [हिं० घी+हंडी] मिट्टी की वह हाँड़ी जिसमें घी रखा जाता है।
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घेतला  : पुं० [देश०] [स्त्री० अल्पा० घेतकी] एक प्रकार का भद्दा जूता जिसका पंजा चपटा और मुड़ा हुआ होता है। (महाराष्ट्र)।
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घेपना  : पुं० [देश०] १. हाथ या पैर से रौंदकर मिलाना। एक में लथ-पथ करना। २. खुरचना। ३. स्त्री के साथ प्रसंग या संभोग करना। (बाजारू)
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घेर  : पुं० [हिं० घेरना] १. घेरने की क्रिया या भाव। जैसे– घेर-घार। २. चारों ओर से घेरनेवाली चीज का फैलाव या विस्तार। घेरा। मंडल। ३. परिधि। घेरा।
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घेरघार  : स्त्री० [हिं० घेरना] १. चारों ओर से घेरने की क्रिया या भाव। जैसे–बादलों की घेर-घार। २. अपना काम निकालने के लिए किसी को प्रायः घेरते और उससे अनुनय-विनय करते रहना। ३. घेरा। फैलाव।
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घेरदार  : वि० [हिं० घेर+फा० दार] जिसका घेरा या फैलाव अधिक हो। जैसे–घेरदार पायजामा।
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घेरना  : स० [हिं० घिर्, बं० घेरा, उ० घेरिबा, गु० घेरवूँ० मरा० घेरणें] १. किसी वस्तु के चारों ओर पंक्ति के रूप में कोई चीज या कुछ चीजें खड़ी करना। जैसे–दीवार आदि बनाकर अथवा पेड़-पौधे उगाकर कोई स्थान घेरना। २. किसी वस्तु, विन्दु आदि के चारों ओर घेरा या वृत्त बनाना। जैसे–लाल स्याही से घेरे हुए शब्दों की वर्तनी अशुद्ध है। ३. रेखाओँ आदि की सहायता से किसी क्षेत्र की सीमा निर्धारित करना। ४. आरक्षी (पुलिस) अथवा सेना का इस प्रकार किसी मकान या स्थान के चारों ओर खड़े हो जाना कि उस मकान या स्थान से कोई बाहर न निकलने या भागने पावे। छेकना। ५. चारों ओर बिखरी हुई वस्तुओं अथवा चरते हुए पशुओं को एक स्थान पर इकट्ठा करना। ६. किसी वस्तु का चारों ओर से आकर किसी दूसरी वस्तु पर इस प्रकार छा जाना कि वह ढक जाय। जैसे–कई दिनों से बादलों ने आकाश घेर रखा है। ७. चारों ओर से बंधन या रुकावट में लाना। जैसे–कष्टों या रोगों का आकर घेरना। ८. कहीं बैठ या रुककर कोई स्थान इस प्रकार भरना कि औरों के लिए अवकाश या जगह न रह जाय। जैसे–आगे की सारी कुरर्सियाँ तो लड़कों ने घेर रखी हैं। ९. किसी को चारों ओर से बहुत दबाव डालकर, कोई काम करने के लिए विवश करना। जैसे–वे मुझे भी घेरकर वहाँ ले गये। १॰. बहुत अनुनय, आग्रह या खुशामद करना।
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घेरनी  : स्त्री० [?] एक प्रकार का पक्षी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घेरा  : पुं० [हिं० घेरना] १. किसी वस्तु, स्थान आदि को चारों ओर से घेरने की क्रिया या भाव। २. किसी वस्तु या वस्तुओं का वह मंडलाकार रूप या समूह जो किसी दूसरी वस्तु के चारों ओर से घेरे हुए हो। जैसे–दीवार या बाँसों का घेरा। ३. परिधि तथा परिधि का मान। जैसे–गोपियों के घेरे में कृष्ण का नाच। ४. दीवार, बाढ़ आदि से घिरा हुआ स्थान। अहाता। (एन्क्लोजर) ५. आरक्षी (पुलिस) सेना आदि के इस प्रकार किसी स्थान को घेरकर खड़े होने की स्थिति जिसमें उस स्थान के निवासी उस स्थान से बाहर न निकल सकें। जैसे–किले के चारों ओर मराठा सैनिकों का घेरा पड़ा था। ६. पहनने के कपड़ो़ में शरीर के चौड़ाई के बल का कुल विस्तार। जैसे–कमीज या कुरते का घेरा। ७. किसी घन पदार्थ की चौड़ाई और मोटाई का कुल विस्तार। जैसे–इस पेड़ का घेरा चार हाथ है।
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घेरा-बंदी  : स्त्री० [हिं० घेरा+फा० बंदी] १. किसी के चारों ओर घेरा डालने की क्रिया या भाव। २. आधुनिक राजनीति में, वह स्थिति जिसमें कुछ राज्य मिलकर किसी दूसरे देश अथवा राज्य के चारों ओर इस उद्देश्य से घेरा बनाते हैं कि वह देश उभरने न पावे अथवा अपना प्रभाव या शक्ति बढ़ा न सके। (एन्सर्किलमेंट)
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घेराई  : स्त्री०=घिराई।
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घेराव  : पुं०=घिराव।
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घेलौना  : पुं०=घाल। (घलुआ)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घेवर  : पुं० [सं० घृतपूर, घृतवर; प्रा० घेऊर, घेवर, गु० ने० घेवर, मरा० घीवर] मैदे की बनी हुई एक प्रकार की मिठाई जिसमें घी बहुत अधिक पड़ता या लगता है।
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घेवरना  : स० [?] तना। लगाना। उदाहरण– पुरुखन्ह खरग संभारे चंदन घेवरे देह।–जायसी।
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घैंटा  : पुं०=घेंटुला।
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घैया  : स्त्री० [हिं० घी या सं० घात] १. गौ के थन से निकली हुई दूध की धार जो मुँह लगाकर पीई जाय। २. ताजे और बिना मथे हुए दूध के ऊपर उतराते हुए मक्खन को काछकर इकट्ठा करने की क्रिया। ३. वृक्ष के तनों आदि में रस या स्राव निकालने के लिए उस पर लगाया हुआ क्षत। छेव। स्त्री०=घा (ओर)।
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घैर  : पुं० [देश०] १. निन्दामय चर्चा। बदनामी। उदाहरण–घैर तें डरपि सखी घर लाई।–नंददास। २. चुगली। शिकायत। ३.चर्चा।
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घैरनी  : स्त्री० [?] एक प्रकार का कीड़ा जो दीवारों पर मिट्टी के घर बनाता है।
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घैरा, घैरु  : पुं०=घैर।
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घैला  : पुं० [सं० घट] [स्त्री० अल्पा० घैली] मिट्टी का घड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घैंसाहर  : स्त्री० [?] फौज। सेना। (डिं०)।
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घैहल  : वि०=घायल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घैहा  : वि० [हिं० घाव] घायल।
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घोखना  : स० [सं० घुष] याद रखने के लिए बार-बार पढ़ना या रटना। स्मरण रखने के लिए बार-बार उच्चारण करना। जैसे–पाठ घोखना।
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घोखवाना  : स० [हिं० घोखना का प्रे०] किसी को घोखने या रटने में प्रवृत्त करना।
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घोगर  : पुं० [देश०] खरपत नामक पेड़।
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घोंघ  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पक्षी।
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घोघ  : पुं० [देश०] वह जाल, जिसमें बटेर फँसाये जाते हैं।
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घोंघा  : पुं० [सं० कम्बुक] [स्त्री० घोंघी] १. शंख की तरह का एक कीड़ा जो प्रायः नदियों, तालाबों आदि में पाया जाता है। उदाहरण–भरे समुन्दर घोंघा हाथ।–कहा.। २. अनाजों के छिलके का वह कोश जिसके अन्दर दाना रहता है। ३. निरर्थक या व्यर्थ की वस्तु या व्यक्ति। वि.बेवकूफ । मूर्ख। पद-घोंघा बसंत=परम मूर्ख।
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घोघा  : पुं० [देश०] चने आदि की फसल को हानि पहुँचाने वाला एक प्रकार का कीड़ा।
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घोंघिल  : पुं० [?] लगभग की जाति का एक पक्षी।
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घोंघी  : स्त्री०=घुग्घी।
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घोघी  : स्त्री० दे० ‘घुग्घी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घोंचा  : पुं० [हिं० गुच्छा] [स्त्री० घोंची] १. फलों फूलों आदि का गुच्छा। घौद। स्तबक। २. ऐसा बैल जिसके सींग मुड़कर कानों तक जा पहुँचे हों।
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घोचिल  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की चिड़िया।
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घोंची  : स्त्री० [हिं० घोंचा] वह गाय जिसके सींग कानों की ओर मुड़ें हों।
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घोंचुआ  : पुं०=घोंसला।
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घोंचू  : पुं० [?] मूर्ख। बेवकूफ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घोंट  : पुं० [देश०] एक प्रकार का बहुत बड़ा जंगली वृक्ष जिसकी लकड़ी खेती के औजार बनाने के काम में आती है। पुं० [हिं० घोंटना] १. घोंटने की क्रिया या भाव। २. दे० ‘घूँट’।
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घोट  : पुं० [सं० घोटक] १. घोड़ा। २. ऐसा पुरुष, जिसमें घोड़े की सी शक्ति हो। उदाहरण– काय दहेसइ पोयणी, काय कुँवारा घोट।–ढोला मारु। पुं० [हिं० घोटना] घोटने की क्रिया या भाव।
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घोटक  : पुं० [सं०√घुट् (लौटना)+ण्वुल्-अक] घोड़ा। अश्व।
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घोटकारि  : पुं० [घोटक-अरि, ष० त०] भैंसा।
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घोंटना  : स० १ =घूँटना। २. =घोटना।
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घोटना  : स० [सं० घृष्ट√घृष्, घट्ट; उ० घोटिबा; पं० घोटणा; सिं० घोटणू, मरा० घोटणें] १. किसी कड़ी वस्तु को किसी दूसरी पर वस्तु पर इस प्रकार मलना या रगड़ना कि वह चमकीली या चिकनी हो जाय। जैसे–कपड़ा या दीवार घोटना। २. पत्थर, लकड़ी लोहे आदि के किसी उपरकरण से किसी वस्तु को इस प्रकार दबाना या रगड़ना कि वह चूर-चूर या बहुत महीन हो जाय। जैसे–भाँग घोटना, मोती घोटना। ३. किसी का गला इतने जोर से दबाना कि वह मर जाय या उसका दम घुटने अर्थात् रुकने लगे। ४. कुछ सीखने में किसी बात का अभ्यास या मश्क करना। जैसे–पटिया पर अक्षर घोटना। ५. मुँह जबानी याद करना। जैसे–पाठ घोटना। ६. उस्तरे, आदि से बाल साफ करना। जैसे–दाढ़ी घोटना। पुं० [सं० घोटनी] १. वह वस्तु जिससे कोई चीज घोटी जाय। घोटने का उपकरण। २. लकड़ी का वह कुंदा जो जमीन में कुछ गड़ा रहता है और जिस पर रखकर रँगे कपड़े घोटे जाते हैं। (रँगरेज)।
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घोटवाना  : स० [हिं० घोटना का प्रे०] रगड़वाना। घोटकर। चिकना कराना। घोटने का काम दूसरे से कराना। किसी को कुछ घोटने में प्रवृत्त करना। (दे० ‘घोटना’)।
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घोटा  : पुं० [हिं० घोटना] १. घोटने, पीसने अथवा रगड़ने की क्रिया या भाव। २. पत्थर, लकड़ी, लोहे आदि का वह उपकरण जिससे कोई चीज घोटने का काम किया जाय। (बर्निशर) ३. रँगरेजों का एक उपकरण जिसे वह रंगे हुए कपड़ों पर रगड़ते है जिससे कपड़े चमकीले हो जाते है। ४. घुटा हुआ चमकीला कपड़ा। ५. पाठ आदि मुँह जबानी याद करने के लिए उसे बार-बार कहने या पढ़ने का काम। जैसे–पाठशाला में लड़के घोटा लगाते हैं। ६. बाँस आदि का वह चोंगा जिसमें घोंड़ों, बैलों आदि को औषधि पिलाई जाती है। ७. नगजड़ियों का एक औजार जिससे वे डाँक को चमकीला करते हैं। ८. छुरे से बाल बनाने या बनवाने की क्रिया या भाव। हजामत। क्रि० प्र०=फिरवाना।
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घोटा-घोबा  : पुं० [देश०] रेवंद-चीनी की जाति का एक पेड़ जिसमें से एक प्रकार की राल निकलती है जो दवा, रँगाई आदि के काम में आती है।
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घोटाई  : स्त्री० [हिं० घोटना+आई (प्रत्य)] १. घोटने की क्रिया, भाव या मजदूरी। (सभी अर्थो में) २. चित्रकला में, पूरी तरह से चित्र अंकित हो जाने पर उसे शीशे पर उलटकर उसकी पीठ पर घोटे से रगड़ना जिससे चित्र में चमक आ जाय।
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घोटाला  : पुं० [मरा०] १. किसी काम या बात में होनेवाली बहुत बड़ी अव्यवस्था या गड़बड़ी। २. किसी कार्यालय, संस्था आदि के किसी अधिकारी, कर्मचारी द्वारा उसके हिसाब किताब में की हुई गड़बडी अथवा उसकी सामग्री, धन आदि का किया हुआ दुरुपयोग। मुहावरा–घोटाले में पड़ना=(क) किसी कार्य या बात का निपटारे या सुलझने की स्थिति में न होना। (ख) सामग्री,धन आदि का ऐसी स्थिति में होना कि उसका वापस मिलना बहुत कठिन हो।
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घोटिका, घोटी  : स्त्री० [सं० घोटी+कन्-टाप्,ह्रस्व] [√घुट्+अच्-ङीष्] घोड़ी।
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घोंटू  : वि० [हिं० घोंटना+ऊ (प्रत्यय)] घोंटने अर्थात् चारों ओर से कसकर दबानेवाला। जैसे–गलाघोंटू कानून।
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घोटू  : वि० [हिं० घोटना] १. घोटनेवाला। २. चारों ओर से कसकर दबाने वाला। जैसे–गल-घोटू नियम। पुं० १.=घोटा। २. =घुटना।
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घोड़  : पुं० दे० ‘घुड़’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घोड़-दौड़  : स्त्री० दे० ‘घुड़-दौड़’।
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घोड़-मुहाँ  : वि० दे० ‘घुड़-मुहाँ’।
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घोड़-रोज  : पुं० [हिं० घोड़ा+रोज] एक प्रकार की नीलगाय जो घोड़ों की तरह बहुत तेज दौड़ती है।
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घोड़-सन  : पुं० [हिं० घोड़ा+सन] एक प्रकार का सन।
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घोड़-सार, घोड़-साल  : स्त्री० दे० ‘घुड़-साल’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घोड़चढ़ा  : पुं० दे० ‘घुड़-चढ़ा’।
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घोड़रासन  : पुं० [हिं० घोड़ा+रासन] रास्ना नामक ओषधि का एक भेद।
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घोड़ा  : पुं० [सं० घोटक,प्रा० घोड़ा] [स्त्री० घोड़ी] १. तेज दौड़ने वाला एक प्रसिद्ध पालतू चौपाया जिस पर लोग सवारी करते हैं तथा जो गाड़ियाँ, टाँगे, रथ आदि भी खींचता है। मुहावरा–घोड़ा उठाना=घोड़े को तेज दौड़ाना। घोड़ा उलाँगना=किसी नये घोड़े पर पहले पहल सवारी करना। घोड़ा कसना=सवारी के लिए घोड़े पर जीन या चारजामा कसना। घोड़ा खोलना= (क) घोड़े का साज या चारजामा उतारना। (ख) घोड़े को बन्धन मुक्त करना। घोड़ा छोड़ना= (क) किसी के पीछे घोड़ा दौड़ाना। (ख) दिग्विजय के लिए अश्वमेघ का घोड़ा छोड़ना। (ग) घोड़े का साज या चारजामा उतारकर उसे चरने के लिए खुला छोड़ना। (किसी के पीछे) घोड़ा डालना=किसी को पकड़ने के लिए उसके पीछे तेजी से जाना। घोड़ा निकालना= (क) घोड़े के सिखलाकर सवारी के योग्य बनाना। (ख) दौड़ आदि में घोड़े को आगे बढ़ा ले जाना। घोड़े पर चढ़े आना=अपना काम पूरा कराने के लिए बहुत जल्दी मचाना। घोड़ा फेरना=घोड़े को दौड़ाने का अभ्यास कराने के लिए एक वृत्त में घुमाना। कावा देना। घोड़ा बेचकर सोना=निश्चित या बेफ्रिक होकर गहरी नींद सोना। २. बंदूक, मशीन आदि का वह खटका या पेंच जो घोड़े के मुख के आकार का होता है, और जिसे दबाने के लिए कोई विशिष्ट क्रिया होती है। ३. बच्चों के खेलने का घोड़े का आकृति का खिलौना। ४. शतरंज में घोड़े की आकृति का एक मोहरा जो २½ घर चलता है। ५. घोड़े के मुख के आकार का लकड़ी, पत्थर आदि का बना हुआ टोंटा जो भार संभारने के लिए छज्जे के नीचे दीवार में लगाया जाता है। ६. कसरत करने के लिए वह मोटा कुंदा जो चार पायों पर ठहरा होता है और जिसे लड़के दौड़कर लाँघते हैं। ७. दीवार में लगी हुई कपड़े टाँगने की खूँटी।
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घोड़ा-करंज  : पुं० [सं० घृतकरंज] एक प्रकार का करंज जो चर्मरोग और बवासीर को ठीक करता है तथा विष-नाशक माना जाता है।
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घोड़ा-गाडी  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+गाड़ी] वह गाड़ी जिसे घोड़ा या घोड़े खींचते हों।
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घोड़ा-बच  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+बच] बच नामक वनस्पति का एक भेद जिसका रंग सफेद और गंध उग्र होती है।
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घोड़ा-बाँस  : पुं० [हिं० घोडा़+बाँस] एक प्रकार का बड़ा और मोटा बाँस।
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घोड़ा-बेल  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+बेल] एक बेल जिसकी पत्तियाँ एक बालिश्त भर लंबे सींकों में लगती है।
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घोड़ाचोली  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+चोला=शरीर] वैद्यक की एक प्रसिद्ध ओषधि जो अनेक रोगों को दूर करनेवाली मानी गई है।
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घोड़ानस  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+नस] पिंडली के नीचे और एडी़ के पीछे की मोटी नस। कूँच। पै।
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घोड़ानीम  : स्त्री० [हिं० घोड+नीम] बकायन (वृक्ष)।
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घोड़ापलास  : पुं० [देश०] मालखंभ की एक कसरत जिसमें एक हाथ मालखंभ पर घुमाकर सामने रखते और दूसरे से मोंगरा पकड़ते हैं।
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घोड़िया  : स्त्री० [हिं० घोड़ा+या (प्रत्यय)] १. घोड़ी। २. छोटी घोड़ी। ३. दीवार में कपड़ा आदि टाँगने के लिए लगाई जानेवाली खूँटी। ४. जुलाहों का एक उपकरण।
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घोड़ी  : स्त्री० [हिं० घोड़ा] १. घोड़ा जाति के पशु की मादा। २. खेल में वह लड़का जिसकी पीठ पर दूसरे लड़के चढ़ते हैं। ३. विवाह की वह रस्म जिसमें वर घोड़ी पर चढ़कर कन्या के घर जाता है। मुहावरा– घोड़ी चढ़ना=विवाह के दिन वर का घोडी़ पर चढ़कर कन्या के घर जाना। ४. विवाह के दिनों में वर-पक्ष में गाये जानेवाले कुछ विशिष्ठ प्रकार के गीत। ५. हाथीदाँत आदि का वह छोटा लंबोतर टुकड़ा जो तंबूरे, सांरगी, सितार आदि में तूँबे के ऊपर लगा हुआ होता है तथा जिसपर उसके तार टिके या ठहरे रहते हैं। ६. दो जोड़ी बाँसों में रस्सी तानकर बनाया हुआ वह ढाँचा जिस पर धोबी गीले कपड़े सूखने के लिए फैलाते हैं। ७. काठ का एक प्रकार का आयताकार ढाँचा (जिसके नीचे चार पाये लगे रहते है) जिसे दौड़ आदि के समय दौड़नेवालों के मार्ग में बाधा उत्पन्न करने के लिए रखा जाता है। (हर्डल) ८. दे० ‘गोड़िया’।
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घोण  : पुं० [देश०] पुरानी चाल का एक प्रकार का सितार की तरह का बाजा।
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घोणा  : स्त्री० [सं०√घुण् (घूमना)+अच्-टाप्] १. नाक। (डिं०) २. थूथन।
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घोणी(णिन्)  : पुं० [सं० घोण+इनि] शूकर।
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घोंपना  : स० [अनु०घप] १. गड़ाना। चुभाना। धँसाना। २. भद्दी और मोटी सिलाई करना। ३. दे० ‘घेपना’।
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घोमस  : पुं० [?] सामुद्रिक।
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घोमसा  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास।
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घोर  : वि० [सं०√हन् (हिंसा)√अच्, घुर् आदेश] [स्त्री० घोरा] १. जो आकार, प्रकार, प्रभाव आदि की दृष्टि से विकराल या भीषण हो। डरावना। २. जो मान,मात्रा आदि के विचार से अति तक पहुँचा हुआ हो। जैसे–घोर तपस्या, घोर निन्द्रा, घोर वर्षा आदि। ३. (स्वर) जो बहुत ही कठोर और भय-उत्पादक हो। जैसे– घोर नाद। ४. बहुत बड़ा। उदाहरण– ऊँचे घोर मंदिर के अन्दर रहाती हैं।–भूषण। ५. बहुत ही बुरा। जैसे–घोर पाप। ६. बहुत ही घना या सघन। जैसे–घोर जंगल,घोर बियाबान। क्रि० वि० बहुत अधिक। अत्यन्त। पुं०=घोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=घोल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) उभ०=घोष। स्त्री० [फा० गोर] कब्र। उदाहरण–सज्यौ घोर हुस्सैन सथ करयो प्रवेश अपांन।–चंदवरदाई।
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घोरना  : अ० [सं० घोर] जोर का या भारी शब्द करना। गरजना। स० घोलना।
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घोरमारी  : स्त्री० दे० ‘महामारी’।
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घोरसार  : पुं०=घुड़साल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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घोरा  : स्त्री० [सं० घोर+टाप्] श्रवण, चित्रा, धनिष्ठा और शतविषा नक्षत्रों में बुध की गति। (ज्योतिष) पुं० [हिं० घोड़ा] १. घोड़ा। २. खूँटी। ३.टोड़ा।
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घोराघोरी  : क्रि० वि० सं० घोर से अनु०] खूब जोरों से। उदाहरण–घोरा-घोरी कीन्ह बटोरा।–कबीर। स्त्री० बहुत अधिक उग्रता, तीव्रता या विकटता।
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घोरारा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का गन्ना।
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घोरिया  : स्त्री०=घोड़िया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घोरिला  : पुं० [हिं० घोड़ी] १. बच्चों के खेलने का मिट्टी का घोड़ा। २. छोटे आकार का घोड़ा। ३. दीवार में लगी हुई खूँटी। उदाहरण– फूलन के विविध हार घोरिलन ओरमत उदार।–केशव।
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घोरी  : स्त्री० १.=अघोरी। २.=घोड़ी।
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घोल  : पुं० [सं०√घुड् (व्याघात)+घञ्, ड को ल] १. बिना पानी डाले मथा हुआ दही। २. लस्सी। ३. किसी तरल पदार्थ में कोई दूसरी (तरल अथवा घुलनशील) वस्तु मिलाकर तैयार किया हुआ मिश्रण। (सोल्यूशन)।
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घोल-दही  : पुं० [हिं० घोलना+दही] मट्ठा।
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घोलना  : स० [सं० घुण्, घोलय, प्रा० घोलेई, बं० घुलान, उ० घोरिबा, पं० घोलणा, सि० घोरणु, गु० घोड़वूँ, ने० घोल्नु, मरा० घोलणें] किसी तरल पदार्थ में कोई अन्य घुलनशील वस्तु मिलाना। जैसे–दूध में चीनी घोलना। मुहावरा–(कोई चीज) घोल कर पी जाना=किसी चीज का सम्पूर्णता अंत कर देना। जैसे–तुम तो लज्जा घोलकर पी गये। घोल पीना=घोल कर पी जाना।
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घोला  : पुं० [हिं० घोलना] १. किसी वस्तु को जल में घोलकर बनाया हुआ मिश्रण। जैसे–अफीम या भाँग का घोला। मुहावरा–घोले में डालना=(क) रोक या फँसा रखना। उलझन में डाल रखना। (ख) किसी काम में टाल-मटोल करना। घोले में पड़ना=झंझट या बखेड़े में पड़ना, ऐसे काम में फँसना जो जल्दी पूरा न हो। २. वह नाली जिससे खेत सींचने के लिए पानी ले जाते हैं। बरहा।
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घोलुआ(लुवा)  : वि० [हिं० घोलना+उवा (प्रत्यय)] घोला हुआ। जो घोल कर बनाया गया हो। पुं० १. सब्जी, मांस आदि का रसा या शोरबा। २. पीने की तरल ओषधि। ३. पानी में कोई चीज (जैसे–अफीम, भाँग, सीमेंट) घोल कर बनाया हुआ मिश्रण। ४. मिट्टी का पुरवा।
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घोष  : पुं० [सं०√घुष् (स्तुति आदि)+घञ्] १. अहीरों की बस्ती। आभीर-पल्ली। २. अहीर। ३. गोशाला। ४. छोटी बस्ती। गाँव। ५. बंगालियों की एक जाति। ६. शब्द। नाद। ७. जोर से की गई पुकार। घोर शब्द। गर्जन। ८.किसी विशेष दल, पक्ष या सिद्धान्त की वह पुकार या पद जो जन-साधारण को अपनी ओर आकृष्ट करने के लिए बनाया जाता है। नारा। (स्लोगान) ९. व्याकरण में शब्दों के उच्चारण में होनेवाला एक प्रकार का ब्राह्य प्रयत्न। ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व और ह का उच्चारण इसी प्रयत्न से होता है। १॰. ईशान कोण का एक प्राचीन देश। ११. ताल के ६॰ मुख्य भेदों में से एक। (संगीत)।
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घोषक  : पुं० [सं०√घुष्+ण्वुल्-अक] घोषणा करनेवाला अधिकारी या कर्मचारी। वि० घोष करनेवाला।
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घोषण  : पुं० [सं०√घुष्+ल्युट-अन] घोषणा करने की क्रिया या भाव।
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घोषणा  : स्त्री० [सं०√घुष्+णिच्+युच्-अन,टाप्] १. जन-साधारण को सुनाकर जोर से कही जानेवाली बात। २. सार्वजनिक रूप से निकली हुई राजाज्ञा। (प्रोक्लेमेशन) ३. मुनादी। डुग्गी।
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घोषणा-पत्र  : पुं० [ष० त०] १. वह पत्र जिस पर कोई राजाज्ञा लिखी हो। २. वह पत्र जिस पर कोई व्यक्ति किसी बात की सत्यता घोषित करता हो। (प्रोक्लेमेशन)
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घोषलता  : स्त्री० [कर्म० स०] कड़ुई तोरई।
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घोषवती  : स्त्री० [सं० घोषवत्+ङीष्]वीणा।
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घोषवत्  : वि० [सं० घोष+मतुप्० व आदेश] (शब्द) जिसमें घोष प्रयत्न वाले अक्षर अधिक हो।
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घोषा  : स्त्री० [सं० घोष] सौंफ।
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घोषाल  : पुं० [सं० घोष] बंगाली ब्राह्मणों की एक जाति।
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घोसना  : स्त्री०=घोषणा। स घोषणा करना।
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घोंसला  : पुं० [सं० कुलाय] १. तिनकों पत्तों आदि की वह कलापूर्ण रचना जिसमें पक्षी रहते तथा अंडे देते हैं। जैसे– बया का घोंसला। २. वह आला या ताखा जिसमें पक्षी रहते तथा बच्चे देते हों। जैसे– कबूतर का घोसला। ३. किसी व्यक्ति के रहने का तुच्छ तथा छोटा स्थान।
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घोसी  : पुं० [सं० घोष] अहीर या ग्वाला। (विशेषतः मुसलमान)।
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घोंसुआ  : पुं०=घोंसला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घौद  : पुं० [देश] फलों का बड़ा गुच्छा। गौद। जैसे–केले का घौद।
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घौंर (ा)  : पुं०=घौद।
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घौर (ा)  : पुं०=घौद।
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घौरी  : स्त्री० [फा० घूरी] १. कूड़े-कचरे की ढेरी। २. राशि। ढेर। ३. घोंदा। उदाहरण– काहूँ गही केश की घौरी।–जायसी।
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घौह (ा)  : पुं० [हिं० घाव] अमरूद, आम आदि का वह फल जिसमें दाग पड़ गया हो। चुटैल फल।
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घ्न  : वि० [सं० पूर्वपद के साथ] नष्ट करने वाला। (यौ० शब्दों के अंत में) जैसे–कृमिघ्न पापघ्न।
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घ्यूँट  : पुं०=घूँट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घ्यूँटना  : स०=घूँटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घ्राण  : स्त्री० [सं०√घ्रा (सूँघना)+ल्युट-अन] [वि० घ्रेय] १. सूँघने की इन्द्रिय। नाक। २. सूँघने की शक्ति। ३. सुंगध।
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घ्राणन्द्रिय  : स्त्री० [घ्राण-इन्द्रिय, ष० त०] सूँघने की इन्द्रिय अर्थात् नाक।
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घ्रांत  : भू० कृ० [सं०√घ्रा+क्त] सूँघा हुआ।
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घ्रातव्य  : वि० [सं०√घ्रा+तव्यम्] सूँघे जाने के योग्य।
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घ्राता(तृ)  : वि० [सं०√घ्रा+तृच्] सूँघनेवाला।
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घ्रांति  : स्त्री० [सं०√घ्रा+क्तिन्] सूँघने की क्रिया या भाव।
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घ्रेय  : वि० [सं०√घ्रा+यत्] सूँघे जाने के योग्य। जो सूँघा जा सके।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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