| शब्द का अर्थ | 
					
				| खेला					 : | स्त्री० [सं०√खेल्+अ-टाप्] १. खेल। २. जादू। | 
			
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				| खेला-खाया					 : | वि० [हिं० खेलना+खाना] [स्त्री० खेली-खाई] जिसने किसी के साथ विलासिता या संभोग के सुख का अनुभव और ज्ञान प्राप्त कर लिया हो। | 
			
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				| खेलाई					 : | स्त्री० [हिं० खेल] १. खेलने या खिलाने की क्रिया या भाव। जैसे–आज कल वहाँ शतरंज की खूब खेलाई हो रही है। २. खेलने या खिलाने के बदले में दिया जानेवाला पारिश्रमिक। स्त्री० दे० ‘खिलाई’। | 
			
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				| खेलाड़ी					 : | वि० [हिं० खेल+वार(प्रत्यय)] १. प्रायः या बराबर खेलता रहनेवाला। खेलवाड़ी। जैसे– खेलाड़ी लड़का। २. दुश्चरित्रा या पुंश्चली (स्त्री)। पुं० १. खेल में किसी पक्ष में सम्मिलित होनेवाला व्यक्ति। २. कुछ विशिष्ट प्रकार के खेल तमाशे करने या दिखानेवाला व्यक्ति। जैसे–महुअर या साँप का खेलाड़ी, गेंद का खिलाड़ी। | 
			
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				| खेलाना					 : | स० [हिं० खेलना का प्रे०] १. किसी को खेलने में प्रवृत्त करना। २. अपने साथ खेले या खेलने में सम्मिलित करना। ३.तरह-तरह की बातें करके इधर-उधर दौड़ाते रहना अथवा किसी काम या बात की झूठी आशा में फँसाये रखना। ४. किसी को त्रस्त, दुःखी या परास्त करने के लिए उसके साथ ऐसा आचरण या व्यवहार करना कि वह बिलकुल विवश और शिथिल हो जाए। जैसे–बिल्ली का चूहे को खेलाना। मुहावरा–खेला-खेलाकर मारना-दौड़ा-दौड़ाकर बहुत तंग, दुःखी या परेशान करना। उदाहरण–हतिहौं तोहिं खेलाई खेलाई।–तुलसी। | 
			
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				| खेलार					 : | पुं०=खेलवार। (खिलाड़ी) | 
			
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