क्षा/ksha

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क्षा  : स्त्री० [सं०√क्षि (क्षय)+ड—टाप्] पृथिवी।
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क्षांत  : वि० [सं० क्षम्+क्त] [स्त्री० क्षांता] १. क्षमा करने वाला। क्षमाशील। २. सहनशील। पुं० १. एक ऋषि। २. एक व्याघ जिसे अपने गुरु गर्ग मुनि की गौएँ मार डालने के कारण शाप मिला था।
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क्षांता  : स्त्री० [सं० क्षांत+टाप्] पृथ्वी।
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क्षांति  : स्त्री० [सं० क्षम्+क्तिन्] १. क्षमा। २. सहिष्णुता। सहन-शीलता।
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क्षात्र  : वि० [सं० क्षत्र+अण्] क्षत्रिय-संबंधी। क्षत्रियों का। पुं०=क्षत्रियत्व।
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क्षात्रि  : पुं० [सं० क्षत्र+इञ्] क्षत्रिय पुरुष तथा किसी अन्य वर्ण की स्त्री से उत्पन्न होनेवाली संतान।
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क्षाम  : वि० [सं०√क्षै (नाश)+क्त, त=म] १. क्षीण। दुबला-पतला। २. बलहीन। ३. अल्प। थोड़ा। पुं० १. विष्णु का एक नाम। २. क्षय।
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क्षामा  : स्त्री
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क्षाम्य  : वि० [सं०√क्षम्+णिच्+यत्]= क्षम्य।
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क्षार  : पुं० [सं०√क्षर् (टपकना)+ण] १. दाहक, जारक आदि खनिज पदार्थों के योग से तथा रासायनिक प्रक्रिया द्वारा तैयार की हुई राख का नमक जो ओषधि के रूप में काम आता है। इस नमक के घोल से तेजाब का प्रभाव नष्ट किया जाता है। खार। (एलकली) २. उक्त से बनी हुई कोई ओषधि अथवा उसका कोई रूप-विकार। ३. नमक। ४. जवाखार। ५. शोरा। ६. सुहागा। ७. काला नमक। ८. कांच। ९. भस्म। १॰. रस या सत। ११. गुड़। १२. जल। १३. ठग। धूर्त्त। १४ दुष्ट। पाजी। वि० १. जो रसता हो। क्षरणशील। २. खारा।
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क्षार-कर्द्दम  : पुं० [ब० स०] एक नरक।
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क्षार-गुड  : पुं० [मध्य० स०] पांडु, प्लीहा आदि रोगियों को दी जानेवाली एक ओषधि।
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क्षार-गुण  : पुं० [कर्म० स०] खारापन।
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क्षार-त्रय  : पुं० [सं० ष० त०] सज्जी, शोरे और सुहागे का समूह।
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क्षार-दशक  : पुं० [ष० त०] सहिजन, मली, पलास आदि दस क्षारों का वर्ग।
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क्षार-द्रु  : पुं० [मध्य० स०] मोरवा नाम का वृक्ष।
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क्षार-नदी  : स्त्री० [मध्य० स०] नरक में खारे पानी की एक नदी। (पुराण)
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क्षार-पत्र  : पुं० [ब० स०] बथुआ नामक साग।
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क्षार-पत्रा  : स्त्री० [सं० क्षारपत्र+टाप्] चिल्ली नामक साग।
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क्षार-पाक  : पुं० [ष० त०] वैद्यक में मोरवा पौधे से बना हुआ एक पाक जिसका प्रयोग फोड़ों का मवाद बहाने में होता है।
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क्षार-पाल  : पुं० [सं० क्षार√पाल् (बचाना)+णिच्+अच्] एक प्राचीन ऋषि।
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क्षार-भूमि  : स्त्री० [मध्य० स०] ऊसर।
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क्षार-मिति  : स्त्री० [ष० त०] वह रासायनिक प्रक्रिया जिससे यह जाना जाता है कि किसी पदार्थ में क्षार का अंश कितना है। (एलकैलिमेट्री)
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क्षार-मृत्तिका  : स्त्री० [मध्य० स०] रेह मिट्टी।
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क्षार-मेह  : पुं० [मध्य० स०] प्रमेह रोग का एक प्रकार या भेद।
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क्षार-लवण  : पुं० [कर्म० स०] खारा नमक।
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क्षार-वर्ग  : पुं० [ष० त०] सज्जीखार, सोहागे और शोरे का वर्ग या समूह।
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क्षार-श्रेष्ठ  : पुं० [स० त०] १. वज्रक्षार। खारी मिट्टी। रेह। २. मोरवा नामक वृक्ष। ३. पलाश। ढाक।
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क्षार-षट्क  : पुं० [ष० त०] धव, अपामार्ग, कोरैया, लांगलो, तिल और मोरवा, क्षारतत्त्ववाली इन छह औषधियों का समूह।
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क्षारक  : पुं० [सं०√क्षर्+ण्वुल्—अक] १. क्षार करने या जलाने वाला। दाहक। २. सेंद्रिय ऊतकों या तंतुओं को जलाने या नष्ट करने वाला। (कास्टिक) ३. सज्जी। ४. कलिका। ५. धोबी। ६. चिड़ियाँ फाँसाने का जाल। ७. चिड़ियों का पिंजड़ा। ८. मछलियाँ पकड़ने की खाँची या दौरी।
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क्षारक-रजत  : पुं० [कर्म० स०] चाँदी में से निकला हुआ एक विशेष तत्त्व जो चमड़ा जला देता है। (कास्टिक सिल्वर)
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क्षारण  : पुं० [सं०√क्षर्+णिच्+ल्युट्—अन] १. पारे का पन्द्रहवाँ संस्कार (दसेश्वर)। २. व्यभिचार आदि का अभियोग या कलंक लगाना। ३. तेजाब को प्रभावहीन करना। ४. दवारा करना या बनाना। ५. टपकाना।
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क्षाराक्ष  : पं० [सं० क्षार-अक्षि, मध्य० स०] काँच की बनी हुई नकली आँख। वि० [ब० स०] जो उक्त प्रकार की आँख लगाये हुए हो।
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क्षारागद  : पुं० [सं० क्षार-अगद, मध्य० स०] एक प्रकार की औषधि विशेष। (वैद्यक)।
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क्षाराष्टक  : पुं० [सं० क्षार-अष्टक, ष० त०] आठ विशिष्ट प्रकार के क्षारों का समूह।
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क्षारिका  : स्त्री० [सं०√क्षर्+ण्वुल्—अक, टाप्, इत्व] भूख।
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क्षारित  : भू० कृ०, [सं०√क्षर्+णिच्+क्त] १. जिसका क्षरण हुआ हो। २. जो क्षार के रूप में किया या लाया गया हो। ३. जिसे अपवाद या कलंक लगाया गया हो।
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क्षारीय  : वि० [सं० क्षार+छ—ईय] [भाव० क्षारीयता] क्षार से संबंध रखने या उससे युक्त रहनेवाला। (एलकलाइन)।
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क्षारीयता  : स्त्री० [सं० क्षारीय+तल्—टाप्] क्षारीय होने की अवस्था, गुण या भाव। (एलकलाइटी)।
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क्षारोद  : पुं० [सं० क्षार-उदक्, ब० स०, उदक्=उद ब० स०] १. खारा समुद्र। लवण समुद्र। २. ऐसा पदार्थ जिसमें क्षार का अंश हो। (अलकलायड)
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क्षालन  : पुं० [सं०√क्षल् (शोधन)+णिच्+ल्युट्—अन] १. पानी से कपड़े, बरतन आदि धोने की क्रिया या भाव। धुलाई। २. साफ़ करने का काम।
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क्षालित  : भू० कृ० [सं०√क्षल्+णिच्+क्त] १. धोया हुआ। २. साफ़ किया हुआ।
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