कर्ष/karsh

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कर्ष  : पुं० [सं०√कृष् (खींचना) +अच् वा घञ्] अपनी ओर खींचना या घसीड़ना। २. आपस में होनेवाला दुर्भाव या तनातनी। मन-मुटाव। ३. कोध। रोष। ४. खेत की जोताई। ५. रेखा या लकीर खींचना। ६. बहेड़ा। ७. एक प्रकार का पुराना सिक्का जिसे ‘दूण’ भी कहते थे। ८. एक पुरानी तौल जो १६ माशे की होती थी।
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कर्ष-कर्म (न्)  : पुं० [सं० ष० त०] चित्रकला में घोटाई नाम की किया विशेष दे० घोटाई।
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कर्ष-फल  : पुं० [ब० स०] १. बहेड़ा। २. आँवला।
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कर्षक  : वि० [सं०√कृष (खींचना) +ण्वुल्—अक्] १. खींचने या घसीटनेवाला। २. हल जोतनेवाला।
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कर्षक  : वि० [सं० कृष्+उकञ् बा०] खींचनेवाला। पुं० दे० ‘चुबक’।
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कर्षण  : पुं० [सं०√कृष्+ल्युट्—अन] [वि० कर्षित, कर्षी, कर्षक, कर्षणीय, कर्ष्य] १. किसी वस्तु को अपनी ओर या अपने पास खींच या घसीटकर लाने की किया या भाव। २. खरोंचकर लकीर बनाना। ३. खेत में हल जोतना। ४. खेती-बारी का काम।
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कर्षणि  : स्त्री० [सं०√कृष्+अनि] व्यभिचारिणी स्त्री। कुलटा।
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कर्षना  : सं० [सं० कर्षण] खींचना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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कर्षित  : भू० कृ० [सं०√कृष्+णिच्+क्त] [स्त्री० कर्षिता] १. अपनी ओर खींच या घसीटकर लाया हुआ। २. खींचा या खिचा हुआ। ३. जोता हुआ (खेत)।
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कर्षी (र्षिन्)  : वि० [सं०√कृष+णिनि] [स्त्री० कर्षिणी] १. कर्षण करने या खींचनेवाला। २. (खेत) जोतनेवाला।
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कर्षुकीय  : वि० [सं० कर्षुक+छ—ईय] कर्षुक या चुंबक से संबंध रखनेवाला। चुंबकीय (देखें)।
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कर्षू  : पुं० [सं०√कृष्+ऊ] १. कंडे की आग। २. खेती-बारी। ३. जीविका। स्त्री० १. छोटा ताल। २. नदी। ३. नहर। ४. यज्ञकुंड।
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