करण-कारक/karan-kaarak

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करण-कारक  : पुं० [सं० मयु० स०] व्याकरण में एक कारक जो वाक्य में आई हुई ऐसी संज्ञा के रूप तथा स्थिति का बोधक होता है जिससे वाक्य में बतलाई हुई क्रिया पूरी या संपन्न होती हो। इसके आगे ‘से’ विभक्ति लगती है। (इन्स्ट्रुमेण्टल केस) जैसे—‘हम पैर से चलते और हाथ से खाते हैं’ में ‘पैर’ और ‘हाथ’ करण कारक में हैं, क्योंकि चलने और खाने की क्रियाएँ उनके द्वारा होती हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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