आन/aan

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आन  : स्त्री० [फा० या० सं० आणि-मर्यादा] १. परंपरा प्रतिज्ञा संकल्प सिद्धांत आदि के निर्वाह या पालन की वह दृढ़ भावना जिसके भूल में अपनी या अपनी जाति वर्ग समाज आदि की प्रतिष्ठा या मर्यादा की रक्षा का विचार प्रधान होता है। जैसे—(क) वीर लोग अपनी आन पर प्राण देते है। (ख) वह आनवाला रोजगारी है, सहज में नहीं दबेगा। २. किसी की उक्त भावना या गौरव के आधार पर या उसका स्मरण कराते हुए दी जानेवाली दुहाई या मचनेवाली पुकार। मुहावरा—आन फेरना=(क) दुहाई फिरना। (ख) पुकार मचना। उदाहरण—मेरे जान जनकपुर फिरिहै रामचंद्र की आन।—सूर। आन फेरना-चारों ओर अपने प्रभुत्व विजय आदि की डुग्गी या ढिढोरा पिटवाना। उदाहरण—आन आन फेरी मदम करी मान तजि मान।—विक्रम सतसई। ३. उक्त के आधार पर दी जानेवाली शपथ या सौगंध। जैसे—तुम्हें भगवान की आन है, वहाँ मत जाना। ४. प्रतिष्ठा। मर्यादा। सम्मान। ५. जिद। टेक। हठ। ६. अकड़। ऐँठ। स्त्री० [सं० आणि=मर्म-स्थान] किसी काम या बात का ऐसा ढंग प्रकार या स्वरूप जो अनोखा या निराला होने के सिवा आकर्षक तथा हृदयग्राही हो। लुभावनी अंग भंगी या मनोहर हाव-भाव। जैसे—उसने ऐसी आन से ठुमरी गाई कि सब लोग वाह-वाह करने लगे। स्त्री० [अ०मि०सं० आन=साँस] १. बहुत ही थोड़ा समय। क्षण। पल। पद—आन की आन में-बहुत थोड़े समय में। बात ही बात में। पलक मारते। जैसे—उस भूकंप में आन की आन में प्रलय का दृष्य उपस्थित कर दिया। २. काल। समय। उदाहरण—मिलिकै बिछुरन मरन की आना-जायसी। स्त्री० [सं० अत्यन्त, प्रा० अण्ण, गुज० आण, आन० अना, मरा० आणि, आणरवी० सिं० अनुम, आनिक] और कोई। अन्य। दूसरा। (पूरब) पद—आन की आन या आन का तान-जो हो उसके स्थान पर उससे भिन्न। और का और। स्त्री० [हिं० आन=दूसरा] निषिद्ध चीजों या बातों से बचने का ध्यान या विचार। उदाहरण—ठंढियाँ निकली है बच्चें के पड़ा फिरता है। कुछ किसी बात की भी आन है। गोइयाँ तुमको।—कोई शायर। प्रत्यय-[?] एक प्रत्यय जो कुछ धातुओं के अंत में लगकर उन्हें भाव वाचक संज्ञाओं का रूप देता है। जैसे—
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आन-तान  : स्त्री० [हिंआन+तान=खिंचाव] १. आन या प्रतिष्ठा और तान का खिचाव का भाव या विचार। ठसक। २. टेक। हठ। ३. अभिमानपूर्ण और बेतुका आचरण या व्यवहार।
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आनक  : पुं० [सं० आ√अन् (जीना)+णिच्+ण्वुल्-अक] १. एक प्रकार का बहुत बड़ा सैनिक नगाड़ा। २. गरजता हुआ बादल।
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आनक-दृंदुभि  : पुं० [कर्म० स०] १. बहुत बड़ा नगाड़ा। २. [ब० स०] कृष्ण के पिता वासुदेव।
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आनत  : वि० [सं० आ√नम् (झुकना)+क्त] १. जो झुका हुआ या नत हुआ हो। २. जो किसी को नम्रतापूर्वक प्रणाम करने के लिए झुका हो। ३. नम्र। सुशील। ४. जिसका झुकाव या प्रवृत्ति किसी ओर हो। पुं० -एक जैन देवता।
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आनंतर्य  : पुं० [सं० अनन्तर+ष्यञ्] अनंतर होने की अवस्था या भाव।
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आनति  : स्त्री० [सं० आ√नम्+क्तिन्] १. आनत होने की अवस्था या भाव। २. झुकाव। नति। ३. प्रणाम।
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आनंत्य  : पुं० [सं० अनन्त+ष्यञ्] अनंत होने की अवस्था या भाव। अनंतता।
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आनंद  : पुं० [सं० आ√नन्द् (समृद्धि)+घञ्] [वि० आनंदित,आनंदी] १. मन में होनेवाली ऐसी अनुकूल तथा प्रिय अनुभूति जो अभीष्ट तथा सुखद परिस्थितियों में होती है तथा जिसमें अभाव, कष्ट, चिंता आदि नाम को भी नही होतें। (हैपिनेस) पद—आनंद बधाई, आनंद मंगला (दे०)। २. मद्य। शराब। ३. ब्रह्म। ४. विष्णु। ५. शिव। ६. एक प्रकार का छंद। वि० [आनंद+अच्] आनंदपूर्ण। प्रसन्न और सुखी। (क्व०)
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आनंद-कोश  : पुं० [ष० त०]=आनंदमय कोश।
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आनंद-बधाई  : स्त्री० [सं० आनन्द+हिं० बधाई] शुभ अवसरों पर या मांगलिक उत्सव के समय (क) दी जानेवाली बधाई और (ख) होनेवाला राग और रंग।
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आनंद-बधावा  : पुं० =आनंद बधाई।
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आनंद-भैरव  : पुं० [कर्म० स०] १. शिव का एक रूप। २. आयुर्वेद में एक रस।
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आनंद-भैरवी  : स्त्री० [कर्म० स०] भैरव राग की एक रागिनी।
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आनंद-मंगल  : पुं० [द्व०स०] १. शुभ तथा सुखद अवसर पर मनाया जानेवाला आनंद और होनेवाला राग रंग। २. सुख और चैन।
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आनंद-मत्ता  : स्त्री० [तृ० त०] आनंद सम्मोहिता (नायिका)।
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आनंद-सम्मोहिता  : स्त्री० [तृ० त०] साहित्य में वह नायिका जो संभोग के आनंद में मग्न या मुग्ध हो रही हो।
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आनंदक  : वि० [सं० आ√नन्द्+ण्वुल्-अक] आनंद करने या मनानेवाला।
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आनंदन  : पुं० [सं० आ√नन्दं+णिच्+ल्युट्-अन] आनंदित करने की क्रिया या भाव। वि०=आनंददायक।
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आनंदना  : अ० [सं० आनन्द] आनंदित या प्रसन्न होना। स० आनंदित या प्रसन्न करना।
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आनंदमय कोश  : पुं० [सं० आनंद+मयट्, आनंदमय-कोश, कर्म० स०] आत्मा को आवृत्त करनेवाले पाँच कोशों में से अंतिम जो कारण शरीर या सुषुप्ति के रूप में माना गया है। (वेदांत)
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आनंदाश्रु  : पुं० [सं० आनंद-अश्रु, मध्य० स०] बहुत अदिक आनंद के समय आँखों से निकलने वाले आँसू या भर आनेवाला जल।
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आनंदित  : भू० कृ० [सं० आ√नन्द्+क्त] जिसे आनंद हुआ हो। हर्षित। प्रसन्न।
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आनंदी (दिन्)  : पुं० [सं० आ√नन्द्+णिनि] वह जो सदा आनंद मनाता रहता हो।
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आनद्ध  : भू० कृ० [सं० आ√नह् (बाँधना)+क्त] १. बँधा हुआ। बाधा आदि के कारण रुका हुआ। ३. किसी चीज से ढका या मढ़ा हुआ। ४. सजाया हुआ। पुं० १. कोई ऐसा बाजा जो चमड़े से मढ़ा हो। जैसे—ढोल, मृदंग आदि। २. सजावट।
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आनंद्रातिरेक  : पुं० [सं० आनंद-अतिरेय, ष० त०] अत्यानंद।
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आनन  : पुं० [सं० आ√अन्+ल्युट्-अन] १. मुख। मुँह। २. मुख की आवृत्ति या बनावट। ३. चेहरा। मुखड़ा। पुं० [सं० आनक] दृदुभी। उदाहरण—कर पद पत्र धनुख्ख ढाल आनन सुचक्क रक।—चंदबरदाई।
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आनन-फानन  : अष्य० [अ०] १. बात की बात में। २. अतिशीघ्र। तुरंत।
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आनना  : स० [सं० आनयन, प्रा० आणणें, सिं० आअणु का० अनुन्० मरा० आइणणो] कहीं से (वस्तु आदि) ले आना। लाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आनबान  : स्त्री० [हिं० आन+अनु० बान] १. ठाट-बाट। सजधज। २. ठसक।
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आनमन  : पुं० [सं० आ√नम्+ल्युट्-अन] [भू० कृ० आनमित] १. झुकने या नत होने की क्रिया या भाव। २. नम्रतापूर्वक किसी के आगे सिर झुकाना।
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आनम्य  : वि० [सं० आ√नम्+यत् बा०णइच्+यत्] [भाव० आनम्यता] १. झुकनेवाला। २. जो झुक सके या झुकाया जा सके। (प्लाइएबुल) ३. जो आवश्यकता होने पर हर नई स्थिति के अनुकूल बनाया जा सके। (फ्लेक्सिबुल) जैसे—आनम्य-संविधान।
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आनयन  : पुं० [सं० आ√नी (पहुँचना)+ल्युट्-अन] १. ले आना। लाना। २. उपनयन संस्कार।
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आनरेरी  : वि० [अ०] १. केवल कर्त्तव्य के विचार से अपनी मर्यादा का ध्यान रखते हुए बिना वेतन लिये काम करनेवाला। (व्यक्ति) २. उक्त प्रकार से होनेवाला (कार्य या पद)
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आनर्त  : पुं० [सं० आ√नृत् (नाचना)+घञ्] [वि० आनर्त्तक] १. आधुनिक सौराष्ट्र देश का पुराना नाम। २. उक्त देश का निवासी। ३. नृत्यशाला। नाच-घर। ४. युद्ध। ५. जल।
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आनर्तक  : वि० [सं० आनर्त+वुञ्-अक] १. आनर्त संबंधी। २. [आ√नृत्+ण्वुल्-अक] नर्त्तक।
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आनर्तन  : पुं० [सं० आ√नृत्+ल्युट्-अन] नाचना। नर्तन।
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आनर्त्त-नगरी  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] द्वारकापुरी।
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आनर्थक्य  : पुं० [सं० अनर्थक+ष्यञ्] अनर्थक या निरर्थक होने की अवस्था या भाव।
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आना  : अ० [सं० आगमन, पुं० हिं० आगवन, आवना] १. किसी चीज का कहीं से चलकर इस ओर (अर्थात् वक्ता की ओर) उपस्थित, प्राप्य या वर्त्तमान होना। आगमन होना। जैसे—अतिथि आना, बरसात आना, हवा आना आदि। मुहावरा—आ धमकना=अचानक या सहसा आ पहुँचना। आ पड़ना=(क) सहसा आ पहुँचना। (ख) सहसा गिर पड़ना। आ पड़ना=(क) टूट पड़ना। (ख) विपत्ति या संकट आना। आ बनना=(क) घटना के रूप में उपस्थित होना। घटित होना। उदाहरण—आइ बना भल सकल समाजू।—तुलसी। (ख) लाभ उठाने का अच्छा अवसर हाथ आना। आ लगना=किसी स्थान या ठिकाने पर पहुँचना। आ लेना=(क) पकड़ लेना। (ख) पास पहुँचना। पद—आता जाता=इधर या इस ओर आने तथा उधर या उस ओर जानेवाला। आना-जाना=(क) जन्म-मृत्यु। (ख) मिलना जुलना। आया गया=(क) वह जो किसी काम से आय और चला जाए। (ख) अतिथि। २. उत्पन्न होकर सामने उपस्थित होना। घटित होना। जैसे—पौधे में फल या फूल आना। ३. गुण योग्यता आदि की अभिवृद्धि या विकास होना। जैसे—जवानी आना। ४. ज्ञान या जानकारी होना। जैसे—अँगरेजी या हिन्दी आना। ५. अनुभूति होना। जैसे—यह नया विचार अभी मस्तिष्क में आया है। ६. किसी अवस्था या स्थिति में पहुँचना या होना। जैसे—गाड़ी के नीचे आना। किसी निश्चय पर आना। पुं० [सं० आणक] १. रुपयें का सोलहवाँ अंश या भाग। २. किसी चीज का सोलहवाँ अंश या भाग। जैसे—व्यापार में चार आने का हिस्सा। प्रत्यय-[फा०आन] होनेवाला। अवधि पर होनेवाला। जैसे—रोज़ाना, सलाना।
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आनाकारी  : स्त्री० [सं० अनाकर्णन] १. कोई बात सुनकर भी न सुनी के समान करना। २. टाल-मटोल या हीला-हवाला। स्त्री०-काना-फूसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आनाथ्य  : पुं० [सं० अनाथ+ष्यञ्] अनाथ होने की अवस्था या भाव। अनाथता।
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आनाय  : पुं० [सं० आ√नी+घञ्] जाल। फंदा।
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आनाह  : पुं० [सं० आ√नह् (बाँधना)+घञ्] [वि० आनाहिक] १. बाँदना। २. मलावरोध से पेट फूलने का एक रोग। कब्जियत। ३. (कपड़े आदि की) लंबाई।
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आनि  : स्त्री० =आन।
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आनिल  : वि० [सं० अनिल+अण्] अनिल या (वायु) से संबंध रखनेवाला। पुं० १. हनुमान। २. भीम। ३. स्वाति नक्षत्र।
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आनीत  : भू० कृ० [सं० आ√नी+क्त] [भाव० आनीति] जिसका आनयन हुआ हो। लाया हुआ।
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आनुकूलित  : वि० [सं० अनुकूल+ठक्-इक] अनुकूल होने का भाव। अनुकूलता।
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आनुक्रमिक  : वि० [सं० अनुक्रम+ठक्-इक] १. किसी अनुक्रम के अनुसार होनेवाला। २. अनुक्रम से लगा या लगाया हुआ।
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आनुगतिक  : वि० [सं० अनुगत+ठक्-इक] अनुगत या अनुगति से संबंध रखनेवाला।
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आनुगत्य  : पुं० [सं० अनुगत+ष्यञ्] १. अनुगत होने की अवस्था या भाव। २. अनुगमन। ३. घनिष्ठ परिचय।
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आनुग्रहिक  : वि० [सं० अनुग्रह+ठक्-इक] १. अनुग्रह संबंधी। २. अनुग्रह (कृपा दया आदि) के रूप में होनेवाला।
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आनुतोषिक  : पुं० [सं० अनुतोष+ठक्-इक] वह धन जो किसी को किसी कार्य या सेवा के बदले में उसे संतुष्ट या प्रसन्न करने के लिए (उसके वेतन आदि के अतिरिक्त) विशेष रूप से दिया जाए। (ग्रेचुइटी)
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आनुदानिक  : वि० [सं० अनुदान+ठक्-इक] अनुदान से संबंध रखने अथवा अनुदान के रूप में मिलने या होनेवाला।
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आनुपातिक  : वि० [सं० अनुपात+ठक्-इक] अनुपात के विचार या दृष्टि से होनेवाला। अनुपात संबंधी। (प्रपोर्शनल) जैसे—आनुपातिक प्रतिनिधित्व।
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आनुपूर्व  : वि० [सं० अनुपूर्व+अण्] एक के बाद एक या क्रम में होनेवाला।
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आनुपूर्वी  : स्त्री० [सं० अनुपूर्व+ष्यञ्-ङीष्,यलोप] आगे-पीछे के क्रम से होने की क्रिया या भाव। जैसे—वाक्य में शब्दों की आनुपूर्वी।
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आनुभविक  : वि० [सं० अनुभव+ठक्-इक] अनुभव निरीक्षण प्रयोग आदि से प्राप्त होनेवाला। (एम्पिरिकल्) जैसे—आनुभविक ज्ञान।
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आनुमानिक  : वि० [सं० अनुमान+ठक्-इक] अनुमान से संबंध रखने या उसके आधार पर माना या समझा जानेवाला। जैसे—आनुमानिक व्यय।
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आनुवंशिक  : वि० [सं० अनुवंश+ठक्-इक] १. [भाव० आनुवंशिकता] वंश परम्परा से प्राप्त। पुश्तैनी। २. जो किसी वंश में बराबर होता आया हो। और जिसके आगे भी उस वंश में होने रहने की संभावना हो। वंशानुक्रमिक। (हेरिडेटरी) जैसे—आनुवंशिक हठ या आनुवंशिक रोग।
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आनुवंशिकता  : स्त्री० [सं० आनुवंशिक+तल्-टाप्] १. आनुवंशिक होने की अवस्था परंपरा या भाव। २. जीव-विज्ञान में वे गुण या तत्त्व जो प्राकृतिक रूप से जीवों को अपने-अपने पूर्वजों से प्राप्त होते है। (हेरेडिटी)
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आनुवेश्य  : पुं० [सं० अनुवेश+ष्यञ्] पड़ोसी। प्रतिवेशी।
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आनुश्रविक  : वि० [सं० अनुश्रव+ठक्-इक] जिसे परंपरा से सुनते चले आए हो।
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आनुषंगिक  : वि० [सं० अनुषंग+ठक्-इक] १. आप से आप या यों ही घटित होनेवाला। (एक्सीडेण्टल)। २. अनावश्यक रूप से अथवा गौण रूप से किसी के साथ या पीछे होनेवाला। (इनसीडेण्टल)
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आनूप  : वि० [सं० अनूप+अण्] १. अनूप देश में होने या उससे संबंध रखनेवाला। २. प्रायः जल में या उसके पास रहने या होनेवाला। जैसे—भैसे, मछलियाँ आदि आनूप प्राणी हैं। पुं० १. ऐसा देश या प्रदेश जिसमें जल की अधिकता हो। २. दलदल।
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आनृत  : वि० [सं० अनृत+अण्] १. सदा झूठ बोलनेवाला। २. झूठ से भरा हुआ। जैसे—आनृत कथन।
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आनृशंस्य  : वि० [सं० अनृशंस+ष्यञ्] दे ‘आनृशंस’।
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आनेता  : (तृ) वि० [सं० आ√नी(ले जाना)+तृच्] आनयन करने अर्थात् लानेवाला।
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आनैपुण  : वि० [सं० अनिपुण+अण्] अनिपुण होने की अवस्था या भाव।
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आनैपुण्य  : पुं० [सं० अनिपुण+ष्यञ्] दे० ‘आनैपुण’।
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आनैश्वर्य  : पुं० [सं० अनीश्वर+ष्यञ्] ऐश्वर्य का अभाव।
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आन्न  : वि० [सं० अन्न+अण्] १. अन्न संबंधी। अन्न का। २. जिसके पास अन्न हो। ३. जिसमें अन्न मिला हो। ४. अन्न से बना या बनाया हुआ।
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आन्वयिक  : वि० [सं० अन्वय+ठक्-इक] १. व्यवस्थित। २. कुलीन।
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आन्वीक्षिणी  : स्त्री० [सं० अन्वीक्षा+ठञ्-इक-ङीष्] १. आत्म विद्या। २. तर्कशास्त्र। न्याय।
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