आचार/aachaar

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आचार  : पुं० [सं० आ√चर्+घञ्] [वि० आचारिक] १. आचरण। २. आचरण या व्यवहार का वह परिष्कृत नैतिक रूप जो कुछ नियमों, रूढियों, सिद्धान्तों आदि के आधार पर स्थित होता है। और जिसका अनुसरण या पालन लोक में आवश्यक समझा जाता है। ३. उक्त के आधार पर लोक में प्रचलित रीति व्यवहार आदि। जैसे—लोकाचार, शास्त्रोक्त आचार आदि। ४. उत्तम चरित्र शील और स्वभाव। ५. बहुत दिनों से चली आई परिपाटी, प्रथा या रीति। रूढ़ व्यवहार। ६. एक जगह से दूसरी जगह आने जाने की क्रिया या इसी प्रकार का और कोई अन्योन्याश्रित या पारस्परिक व्यवहार। जैसे—पत्राचार-पत्र व्यवहार।
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आचार-तंत्र  : पुं० [ष० त०] बौद्धों के चार तंत्रों में से एक।
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आचार-दीप  : पुं० [ष० त०] आरती की दीया।
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आचार-विचार  : पुं० [द्वं० द्व० स०] लौकिक क्षेत्र में किया जानेवाला आचरण और उनसे संबंध रखनेवाला विचार।
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आचार-वेदी  : स्त्री० [ष० त०] १. पुण्य भूमि। २. आर्यावर्त्त।
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आचार-शास्त्र  : पुं० [ष० त०] नीति शास्त्र (देखें)।
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आचार-हीन  : वि० [तृ० त०] १. शास्त्रों में बतलाये हुए आचार न करनेवाला। २. आचरण भ्रष्ट।
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आचारज  : पुं० =आचार्य।
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आचारजी  : स्त्री० [सं० आचार्य] १. आचार्य होने की अवस्था या भाव। २. आचार्य का कार्य या पद। ३. पुरोहित का कर्म या व्यवसाय। पुरोहिताई।
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आचारवान्  : वि० [सं० आचार+मतुप्, वत्व] [स्त्री० आचारवती] १. जो अच्छे और शुद्ध आचार का पालन करता हो। २. अच्छे तथा शुद्ध आचरणवाला।
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आचारिक  : वि० [सं० आचार+ठक्-इक] १. आचार संबंधी। २. (प्रथा या रीति) जो किसी कुल समाज आदि में बहुत दिनों से आचार के रूप में चली आ रही हो। (कस्टमरी)
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आचारी (रिन्)  : वि० [सं० आचार+इनि] [स्त्री० आचरिणी] अच्छे आचरण और शुद्ध आचार-विचार वाला। पुं० रामानुज संप्रदाय का वैष्णव आचार्य।
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आचार्य  : पुं० [सं० आ√चर्+ण्यत्] [स्त्री० आचार्यानी] १. वह जो आचार (नियमों सिद्धातों आदि) का अच्छा ज्ञाता हो और दूसरों को उसकी शिक्षा देता हो। २. वह जो कर्मकाण्ड का अच्छा ज्ञाता हो और यज्ञों आदि में मुख्य पुरोहित का काम करता हो। ३. यज्ञोपवीत संस्कार के समय गायत्री मंत्र का उपदेश करनेवाला। ४. प्राचीन भारत में, वेद शास्त्रों आदि का बहुत बड़ा ज्ञाता या पंडित। जैसे—शंकराचार्य, वल्लभाचार्य आदि। ५. आज-कल किसी महाविद्यालय का प्रधान अधिकारी और अध्यापक। (प्रिंसिपल) ६. किसी विषय का बहुत बड़ा ज्ञात या पंडित। जैसे—आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल आदि।
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आचार्या  : स्त्री० [सं० आचार्य+टाप्] १. स्त्री आचार्य या गुरु। २. पूजनीय तथा विदुषी स्त्री। ३. स्त्री।
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आचार्यानी  : स्त्री० [सं० आचार्य+ङीष्, आनुक्] आचार्य की पत्नी।
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