अवितत्-करण/avitat-karan

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अवितत्-करण  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. पाशुपत दर्शन के अनुसार ऐसे कर्म करना जो अन्य मतवालों के विचार से गर्हित या निंदनीय हों। २. जैन शास्त्रों में विवेक, रहित होकर निंदनीय कार्य करना। ३. कोई अनुचित काम करना।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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