अगह/agah

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अगह  : वि० [सं० अग्राह्य] १. जिसे ग्रहण करना या पकड़ना कठिन हो। २. जिसे धारण करना, समझना या कहना कठिन हो। ३. कठिन। दुस्तर। ५. दे० ‘अग्राह्य'।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अगहन  : पुं० [सं० अग्रहायण] कार्तिक और पूस के बीच का महीना। मार्गशीर्ष।
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अगहनिया  : वि०=अगहनी।
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अगहनी  : वि० [सं० अग्रहायणी] अगहन महीने में होनेवाला। जैसे— अगहनी धान या फसल। वि०=अगह।
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अगहर  : क्रि० वि० [सं० अग्र० पा० अग्ग+हि० हर (प्रत्यय) १. आगे। २. पहले।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अगहाट  : वि० [सं० अग्र या हिं० आगे] १. बहुत दिनों का। पुराना। २. जो बहुत दिनों से किसी के अधिकार में चला आ रहा हो। जैसे—अगहाट खेत या भूमि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अगहार  : वि०=अगहाद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अगहु  : क्रि० वि० =आगे।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अगहुँड़  : वि० [सं० अग्र, पा० अग्ग+हुँत (प्रत्यय) आगे चलने या होने वाला। क्रि० वि० —अगले भाग में। ‘पिछहुँड़’ का विपर्याय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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