सुरत/surat

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सुरत  : पुं० [सं०] १. रति-क्रीड़ा। काम-केलि। संभोग। मैथुन। २. दे० ‘सुरति’ स्त्री०[सं० स्मृति] १. याद। स्मृति। २. ध्यान। सुध। मुहा०– (किसी पर) सुरत धरना=किसी की ओर ध्यान देना। जैसे–पराये धन पर सूरत नहीं धरनी चाहिए। (किसी) की सुरत बिसराना या बिसारना=किसी को बिल्कुल भूल जाना और उसे याद न करना। (किसी ओर) सुरत लगाना=किसी ओर ध्यान बाँधना या लगाना। सुरत सँभालना=होश सँभालना। चेतन अवस्था में आना।
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सुरत-ग्लानि  : स्त्री० [सं० मध्य० स०] रति या संभोग के उपरांत होने वाली ग्लानि या ग्लानिजन्य विरक्ति।
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सुरत-बंध  : पुं० [सं० च० त०] संभोग का एक आसन। (कामशास्त्र)
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सुरता  : स्त्री० [सं० सुर+तल्–टाप्] १. सुर अर्थात देवता होने की अवस्था या भाव। २. वह गुण जिसके कारण देवताओं की प्रतिष्ठा मानी जाती है। देवत्व। ३. देवताओं का समूह। ४. रति-सुख। स्त्री० [सं० स्मृति, हिं० सुरत] १. चेत। सुध। २. किसी की ओर लगा रहने वाला ध्यान। वि० समझदार और सयाना। होशियार।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [?] बाँस की वह नली जिसमें डालकर बीज बोने के लिए छिड़के जाते हैं।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुरतान  : स्त्री० [हिं० सुर+तान्] संगीत में सुर के आधार पर ली जाने वाली तान। पुं०= सुलतान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुरति  : स्त्री० [सं०] १. पति पत्नी का वह प्रेम जो काम-वासना की तृप्ति से उत्पन्न होता है। २. मैथुन। संभोग। ३. दे० ‘रति’। स्त्री० [सं० श्रुति] १. अपौरुषेय ज्ञान का भंडार, वेद। श्रुति। उदा०–सुरति, स्मृति दोउ को विसवास।–कबीर। २. हठयोग के अनुसार अंतःकरण में होनेवाला अन्तर्नाद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० दे० ‘सुरति-निरति’। उदा०–सुरति समानी निरति में निरत रही निरधार।–कबीर। स्त्री० १.=सुरत। २. सूरत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुरति-कमल  : पुं० [सं० च० त०] हठ-योग में आठ कमलों या चक्रों में से अंतिम चक्र जिसका स्थान मस्तक में सहस्त्रार के ऊपर माना गया है।
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सुरति-गोपना  : स्त्री० [सं०] साहित्य में ऐसी नायिका जो रति क्रीड़ा करके आई हो और अपनी सखियों आदि से यह बात छिपाती हो।
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सुरति-निरति  : स्त्री० [सं० श्रुति+निऋति] परवर्ती हठ-योगियों की परिभाषा में अन्तर्नाद सुनना और उसी में लीन हो जाना। (अर्थात् ससीम का असीम में या व्यक्त का अव्यक्त में समा जाना।)
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सुरति-रव  : पुं० [सं० मध्य० स०] रति-क्रीड़ा के समय होने वाली भूषणों की ध्वनि।
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सुरति-विचित्रा  : स्त्री० [सं० ब० स०] साहित्य में ऐसी मध्या नायिका जिसकी रति-क्रिया विचित्र हो।
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सुरतिवंत  : वि० [सं० सुरत+वान्] कामातुर।
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सुरती  : स्त्री० [सूरत (नगर)+ई (प्रत्य०)] १. तंबाकू का पत्ता। २. उक्त पत्तों का वह चूरा, जो पान के साथ यों हा चना मिलाकर खाया जाता है। खैनी।
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सुरत्त  : स्त्री०=सुरति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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सुरत्न  : पुं० [सं० प्रा० स०] १. उत्तम या बढ़िया रत्न। २. मणिक। लाल। ३. स्वर्ण। सोना। वि० १. उत्तम रत्नों से युक्त। २. सब में श्रेष्ठ।
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