सहो/saho

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सहो  : पुं० [अ० सहव] १. अपराध। दोष। २. भूल-चूक। गलती।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
सहोक्ति  : स्त्री० [सं०] साहित्य में, एक अलंकार जिसमें ‘सह’ ‘संग’ ‘साथ’ आदि शब्द इस प्रकार प्रयुक्त होते हैं कि किसी क्रिया के (क) एक कार्य के साथ और भी कई कार्यों का होना सूचित होता है। जैसे—रात्रि के समय तुम्हारे मुख के साथ ही चंद्रमा भी सुशोभित हो जाता है अथवा (ख) कोई श्लिष्ट शब्द इस प्रकार प्रयुक्त होता है कि अलग अलग प्रसंगों में अलग अलग अर्थ देता है। (कनेक्टेड डेस्क्रिप्शन) जैसे—यौवन में उसके ओष्ठ तथा प्रिय दोनों साथ ही रागयुक्त (क्रमात् लाल और प्रेमपूर्ण या अनुरक्त) हो गये। उदा०—बल प्रताप वीरता बड़ाई। नाक पिनाकी संग सिधाई।—तुलसी।
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सहोढ़  : पुं० [सं०] १. वह चोर जो चोरी के माल के साथ पकड़ा गया हो। २. धर्मशास्त्र में, बारह प्रकार के पुत्रों में से वह जो गर्भवती कन्या के सात विवाह करने पर विवाह के उपरांत उत्पन्न होता है।
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सहोदक  : वि० [सं० ब० स०] समानोदक।
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सहोदर  : वि० [सं० ब० स०] [स्त्री० सहोदरा] १. (जन्म के विचार से वे) जो एक ही माता के उदर या गर्भ से उत्पन्न हुए हों। २. सम्बन्ध के विचार से अपना और सगा। पुं० १. सगा भाई। २. वैज्ञानिक क्षेत्रों में, वे सब जो एक ही मूल से उत्पन्न हुए हों और जिनमें परस्पर रक्त या वंश का सम्बन्ध हो। एक ही कुल या वंश के सदस्य।
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सहोपमा  : स्त्री० [सं० ब० स०, मध्य० स० वा] साहित्य में, उपमा अलंकार का एक प्रकार या भेद।
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सहोर  : पुं० [सं० शाखोट] एक प्रकार का जंगली वृक्ष।
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