संकट/sankat

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संकट  : पुं० [सं० सम√ कट् (बरसना या ढकना)+अच्] १. सँकरा रास्ता। तंग राह। २. विशेषतः जल या स्थल के दो भागों को जोड़नेवाला तंग रास्ता। जैसा—गिरि-संकट,जल-संकट, स्थल-संकट। ३. दो पहाड़ों के बीच का रास्ता। दर्रा। ४. ऐसी स्थिति जिसमें दोनों ओर कष्टों या विपत्तियों का सामना करना पड़ता हो और बीच में निश्चितता या सुखपूर्वक रहने के लिए बहुत ही थोड़ा अवकाश रह गया हो। ५. आफत। विपत्ति। वि० सँकरा। जैसा—संकट मुख।
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संकट-चौथ  : स्त्री० [सं० सकंट+हिं० चौथ] माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी।
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संकट-मुख  : वि० [सं०] जिसका मुँह सँकरा हो।
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संकट-संकेत  : पुं० [सं० ष० त०] विपत्ति या संकट में पड़े हुए लोगों का वह सांकेतिक संदेश जो आस-पास के लोगों को अपनी रक्षा या सहायता के लिए भेजा जाता है (एस० ओ० एस) जैसा—डूबते या जलते हुए जहाज का संकट-संकेत।
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संकटा  : स्त्री० [सं० संकट-टाप्] १. एक प्रसिद्ध देवी जो संकट या विपत्ति का निवारण करनेवाली मानी जाती है। २. फलित ज्योतिष में अष्ट योगिनियों में से एक।
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संकटापन्न  : भू० कृ० [सं० द्वि० त०] १. संकट या कष्ट में पडा हुआ। २. संकटपूर्ण।
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