शंख/shankh

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शंख  : पुं० [सं०√शम्+ख] १. एक प्रकार का बड़ा समुद्री घोंघा (जल-जंतु) जिसका ऊपरी आवरण या खोल फूँककर बजाने के काम आता है। २. उक्त जल-जंतु का खोल जिसके ऊपरी छेद में मुँह से जोर से हवा भरने पर एक विशेष प्रकार का जोर का शब्द होता है। यह दो प्रकार का होता है—दक्षिणावर्त्त और वामावर्त्त। पद-शंख का मोती=एक प्रकार का कल्पित मोती जिसकी उत्पत्ति शंख के गर्भ से मानी जाती है। मुहावरा—शंख बजना=विजय या आनंदोत्सव होना। शंख बजाना= (क) आनंद मनाना। (ख) वंचित रहना। (व्यंग्य)। ३. एक लाख करोड़ या दस खर्व की संख्या। ४. हाथी का गंडस्थल। ५. कनपटी। ६. पुराणानुसार एक निधि का नाम। ७. कुबेर की निधि के देवता। ८. चरम चिन्ह। ९. नखी नामक गंध द्रव्य। १॰. छप्पय छंद का एक भेद जिसमें १५२ मात्राएँ या १4९ वर्ण होते हैं जिनमें से ३ गुरु और शेष लघु होते हैं। ११. दंदक वृत्त का एक भेद जिसके प्रत्येक चरण में दो तगण और चौदह रगण होते हैं। 1२. कपाल। मस्तक। १३. हवा चलने से होनेवाला शब्द। १४. दे० ‘शंखासुर’।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
शंख-चूड़  : पुं० [सं० ब० स०] १. एक प्रकार का बहुत जहरीला नाग या साँप जिसके शरीर पर काली बिदियाँ होती हैं। २. एक प्राचीन तीर्थ। ३. पुराणानुसार एक राक्षस जिसे कंस ने कृष्ण को मारने के लिए भेजा था, पर जो कृष्ण के हाथों स्वयं मारा गया था।
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शंख-द्राव  : पुं० [सं०] वैद्यक में एक प्रकार का बहुत तीक्ष्ण अरक जो उदर रोगों के लिए उपकारी माना गया है। कहते हैं कि यह धातुओं, शंखों आदि तक को गला देता है, इसीलिए यह काँच या चीनी के बरतन में रखा जाता है।
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शंख-धर  : [सं० ष० त०] विष्णु।
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शंख-नारी  : स्त्री० [सं०] सोमराजी नामक वृक्ष का एक नाम।
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शंख-पलीता  : पुं० [हिं०] ज्वालामुखी पर्वतों में से निकलनेवाला एक प्रकार का रेशेदार खनिज पदार्थ जिसका उपयोग गैस के भट्ठे बनाने में होता है। इस पर ताप तथा विद्युत का प्रभाव बहुत कम और देर में होता है।
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शंख-पुष्पी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] १. सफेद अपराजिता। २. जूही। ३. शंखाहुली।
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शंख-लिखित  : वि० [द्व० स०] दोष रहित। बे-ऐब। पुं० १. शंख और लिखित नाम के दो ऋषि जिन्होंने एक स्मृति बनाई थी। २. उक्त ऋषियों की बनाई हुई स्मृति। ३. न्यायशील और पुण्यात्मा राजा।
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शंख-वात  : पुं० [ष० त०] वायु के प्रकोप से सिर में होनेवाली पीड़ा।
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शंख-विष  : पुं० [मध्य० स०] संखिया।
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शंखक  : पुं० [सं०√शंख+वुन्-अक] १. शंख की बनी हुई चूड़ी। सांख। २. वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का विकट रोग जिसमें कनपटी के पास लाल गिलटी निकलती है और शरीर में बहुत जलन होती है। ३. शंख नामक निधि। ४. हीरा कसीस। ५. मस्तक। माथा।
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शंखकार  : पुं० [सं० शंख√कृ+अण्] १. वह जो शंख से तरह-तरह की चीजें बनाता हो। २. पुराणानुसार एक संकर जाति जो उक्त प्रकार का काम करती थी।
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शंखज  : वि० [सं० शंख√जन्+ड] शंख से निकला या बना हुआ। पुं० एक प्रकार का कल्पित मोती जिसकी उत्पत्ति शंख के गर्भ से मानी गई है।
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शंखपाणि  : पुं० [सं० ब० स०] विष्णु।
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शंखवटी  : स्त्री० [सं०] वैद्यक में एक प्रकार की बटी या गोली जो पेट के रोगों के लिए गुणकारी कही गई है।
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शंखावर्त्त  : पुं० [सं० शंख-आवर्त, ब० स०] भगंदर रोग का एक शंबुकावर्त नामक भेद।
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शंखासुर  : पुं० [सं० शंख-असुर, कर्म० स०] एक प्रसिद्ध राक्षस जिसका वध विष्णु ने मस्त्यावतार में किया था। कहते है कि यह ब्रह्मा के यहाँ से वेद चुराकर समुद्र में जा छिपा था।
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शंखिनी  : स्त्री० [सं० शंख+इनि+ङीष्] १. एक प्रकार की वनौषधि। २. कामशास्त्र में वह नायिका जो न अधिक मोटी हो न पतली, जिसका सिर तथा स्तन छोटे पैर बड़े और बाहें लंबी होती हैं। यह काम से अधिक पीड़ित परपुरुष से रमण की इच्छुक कर्कश तथा चुगलखोर स्वभाववाली होती है।
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