वरद/varad

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वरद  : वि० [सं० वर√दा (देना)+क] [स्त्री० वरदा] १. वर देनेवाला। २. अभीष्ट सिद्ध करनेवाला।
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वरद-मुद्रा  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] दूसरों को यह जतानेवाली शारीरिक मुद्रा कि हम तुम्हें मनचाहा वर देने या तुम्हारी सब कामनाएँ पूरी करने को प्रस्तुत हैं। (इसमें देने का भाव सूचित करने के लिए हथेली ऊपर या सामने रखकर कुछ नीचे झुकाई जाती है)।
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वरदा  : स्त्री० [सं० वरद+टाप्] १. कन्या। लड़की। २. असगंध। ३. अड़हुल।
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वरदा चतुर्थी  : स्त्री० [सं० व्यस्त पद अथवा, मध्य० स०] माघ शुक्ल चतुर्थी। वरदा चौथ।
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वरदाता (तृ)  : वि० [सं० ष० त०] [स्त्री० वरदात्री] वर देनेवाला। व़रद।
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वरदानी (निन्)  : वि० [सं० वरदान+इनि] १. वरदान करनेवाला। २. मनोरथ पूर्ण करनेवाला।
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वरदी  : स्त्री० [अ० वर्दी] किसी विशिष्ट कार्यकर्ता वर्ग का पहनावा। जैसे–खेलाड़ियों, चपरासियों, फौजियों या सिपाहियों की वरदी।
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