वंद/vand

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शब्द का अर्थ

वद  : वि० [सं० पूर्वपद के साथ आने पर] बोलनेवाला। (समासांत) जैसे–प्रियंवद।
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वद-दान  : पुं० [सं० ष० त०] १. देवता, महापुरुष आदि के द्वारा दिया हुआ वर जिससे अनेक प्रकार के सुख-सुभीते प्राप्त होते हैं और कष्टों संकटों आदि का निवारण होता है। २. किसी की कृपा या प्रसन्नता से होनेवाली फल-सिद्धि। ३. वह वस्तु जो शुभ फलदायिनी हो। जैसे–उनका शाप मेरे लिए वरदान सिद्ध हुआ।
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वदंती  : स्त्री० [सं०√वद् (कहना)+झि-अन्त,+ङीष्] कही हुई बात। कथन।
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वदतोव्याघात  : पुं० [सं० अलुक] तर्क में कथन संबंधी एक दोष जो वहाँ माना जाता है जहाँ पहले कोई बात कह कर फिर ऐसी बात कही जाती है जो उस पहली बात के विरुद्ध होती है।
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वदन  : पुं० [सं०√वद् (कहना)+ल्युट-अन] कोई बात कहने की क्रिया या भाव। कहना। बोलना। २. मुँह। मुख। ३. किसी चीज के आगे या सामने का भाग।
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वदर  : पुं०=बदर (बेर)।
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वदान्य  : वि० [सं०] १. वाग्मी। २. बात से सन्तुष्ट करनेवाला।
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वदाल  : पुं० [सं०√वद्+क, घञर्थ=वद√अल (पूर्ण होना)+अच्] १. पाठीन मत्स्य। पहिना मछली। २. आवर्त। भँवर।
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वदि  : अव्य० [सं०√वद्+इन्] चांद्र मास के कृष्ण पक्ष में। बदी में। पुं० कृष्ण पक्ष।
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वदितव्य  : वि० [सं०√वद् (कहना)+तव्य] कहे जाने के योग्य। जो कहा जा सके।
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वदी  : पुं० दे० ‘वदि’ (कृष्ण पक्ष)।
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वदीतना  : अ० स०=वतीतना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वदुसना  : स० [सं० विदूषण] १. दोष मढ़ना। २. आरोप करना। ३. भला बुरा कहना। खरी-खोटी सुनाना।
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वद्य  : वि० [सं०√वद्+यत्] १. कहने योग्य। २. अनिंद्य। पुं० १. कथन। बात। २. कृष्णपक्ष। बदी।
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