मूर्च्छन/moorchchhan

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मूर्च्छन  : पुं० [सं०√मुर्च्छ (मोह)+ल्युट-अन] [भू० कृ० मूर्च्छित] १. किसी की चेतना या संज्ञा का कुछ विशिष्ट अवस्थाओं में अस्थायी रूप से लोप करने की क्रिया या भाव। बेहोश करना या बेहोशी लाना। २. प्राचीन काल का एक विशिष्ट तांत्रिक प्रयोग जिससे किसी व्यक्ति की चेतना या संज्ञा नष्ट कर दी जाती थी। ३. आज-कल प्रायः इच्छाशक्ति के प्रयोग से किसी को इस प्रकार चेतनाहीन करना कि उसे शारीरिक कष्टों का अनुभव न हो और उसके स्नायविक तंत्र प्रायः बेकाम हो जाय। (मेस्मेरिज़्म)। विशेष—इस प्रक्रिया का आविष्कार आस्ट्रिया के मेस्मर नामक चिकित्सा ने रोगियों की चिकित्सा के लिए किया था। ४. उक्त के आधार पर वह प्रक्रिया जिसमें आत्मिक बल के द्वारा किसी को कुछ समय के लिए संज्ञाशून्य करके उससे कुछ असाधारण और विलक्षण कार्य कराये जाते हैं और जिसकी गणना इंद्रजाल में होती है। (मेस्मेरिज़्म) ५. वैद्यक में वह प्रक्रिया जिसके द्वारा पारा शुद्ध करने या उसका भस्म तैयार करने के लिए उसकी चंचलता नष्ट करके उसे स्थिर कर देते हैं। ६. कामदेव के पाँच वाणों में से एक, जिसके प्रभाव या प्रहार से प्रेमासक्त व्यक्ति कभी-कभी अपनी चेतना या संज्ञा खो देता है।
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मूर्च्छना  : स्त्री० [सं०√मूर्च्छ+युच्-अन, टाप्] १. संगीत में किसी स्वर से आरम्भ करके सातवें स्वर तक आरोह कर चुकने के उपरांत उन्हीं स्वरों से होनेवाला अवरोह। २. उक्त प्रक्रिया के फलस्वरूप होनेवाला शब्द या निकलनेवाला स्वर।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
 
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