मान/maan

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मान  : पुं० [सं०√मान् (पूजा)+घञ्] १. प्रतिष्ठा। सम्मान। इज्जत। पद—मान-महत, मान-हानि। मुहावरा—(किसी का) मान रखना=ऐसा काम करना जिससे किसी की प्रतिष्ठा बनी रहे। २. अपनी प्रतिष्ठा या सम्मान अथवा गौरव का उचित अभिमान या ध्यान। आत्म-गौरव या आत्मप्रतिष्ठा का मन में रहनेवाला भाव या विचार। ३. अनुचित और निंदनीय रूप में होनेवाला अभिमान। घमंड। शेखी। मुहावरा—(किसी का) मान मथना= अच्छी तरह दबाकर या पीड़ित करके अभिमान और प्रतिष्ठा नष्ट करना। ४. मन में होनेवाला विकार जो अपने प्रिय व्यक्ति को अनुचित तथा फलस्वरूप उस व्यक्ति के प्रति उदासीनता होने लगती है रूठने की क्रिया या भाव। विशेष—स्त्रियाँ प्रायः ईर्ष्यावश अपने पति या प्रेमी के प्रति रूठे हुए होने का जो भाव व्यक्त करती हैं, साहित्य में विशिष्ट रूप से वही मान कहलाता है। पद—मान-मोचन। मुहावरा—मान मनाना=रूठे हुए व्यक्ति का मान दूर करके उसको मनाना। मान मोड़ना=मान का त्याग करना। रूठा न रहना। पुं० [सं०√मा (मापना)+ल्युट-अन] १. मापने या नापने की क्रिया या भाव। २. मापने या नापने पर ज्ञात होनेवाला परिमाण। मापफल। ३. वह मानक दंड या पात्र जिसके द्वारा कोई चीज तौली या नापी जाती है। तौल, नाप आदि जानने का साधन। जैसे—गज, सेर आदि। ४. ऐसा काम या बात जिससे कोई चीज या बात प्रमाणिक अथवा सिद्ध हो जाती है। ५. तुल्यता। समानता। ६. किसी काम या बात के संबंध में ऐसी योग्यता या शक्ति जिससे वह काम या बात पूरी उतर सके या उस पर ठीक तरह से वश चल सके। जैसे—यह काम उनके मान का नहीं हैं, अर्थात् इस काम के लिए जिस योग्यता या शक्ति की अपेक्षा है उसका उनमें अभाव है। मुहावरा—(किसी के) मान रहना=किसी के आश्रय या भरोसे में रहना। किसी के बल या सहारे पर अच्छी तरह जीवन-निर्वाह करना या समय बिताना। जैसे—यदि आज उन्हें कुछ हो जाता तो मैं किसके मान दिन बिताती। (स्त्रियाँ)। ७. पुष्कर द्वीप का एक पर्वत। ८. उत्तर दिशा का एक देश। ९. ग्रह। १॰. मंत्र। ११. संगीत शास्त्र के अनुसार ताल में का विराम जो सम, विषम, अतीत और अनागत चार प्रकार का होता है।
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मान कच्चू  : पुं० =मानकंद।
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मान-चित्र  : पुं० [सं० ष० त०] किसी चिपटे तल पर किया हुआ रेखाओं का ऐसा अंकन जिसमें किसी भू-भाग की नदियों, पहाड़ों, नगरों आदि के स्थान, विस्तार आदि दिखाये गये हों। किसी स्थान का बना हुआ नक्शा (मैप)। जैसे—एशिया का मानचित्र।
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मान-चित्रक  : पुं० [सं०] वह जो मानचित्र बनाता या मान-चित्रण करता हो।
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मान-चित्रण  : पुं० [सं०] मानचित्र अर्थात् नक्शे बनाने की कला या विद्या (मैपिंग)।
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मान-दंड  : पुं० [सं० ष० त०] १. मान नापने का कोई उपकरण। २. लाक्षणिक रूप में कोई ऐसा कल्पित परिमाण जिससे दूसरी बातों का महत्त्व या मूल्य आँका जाता हो।
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मान-देय  : पुं० [सुप्सुपा स०] किसी काम या सेवा के बदले में आदरपूर्वक दिया जानेवाला धन। (आनरेरियम)।
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मान-धन  : पुं० [ब० स०] १. वह जो अपने मान या प्रतिष्ठा को सबसे अधिक मूल्यवान समझता हो। आत्म-सम्मान या ध्यान रखनेवाला। २. अभिमानी। घमंडी।
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मान-भाव  : पुं० [ष० त०] १. वह अवस्था जिसमें कोई मान करके या रूठकर बैठा हो। २. चोंचला। नखरा।
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मान-मंदिर  : पुं० [स० त०] १. दे० ‘मानगृह’। २. वह स्थान, जिसमें ग्रहों आदि का वेध करने के यंत्र तथा सामग्री हों। वेधशाला। विशेष—जयपुर के महाराज मानसिंह ने काशी, दिल्ली, उज्जैन आदि में अपने नाम पर कुछ वेधशालाएँ बनवायी थी, उन्हीं के आधार पर अब वेधसाला मात्र को मान-मंदिर कहने लगे हैं।
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मान-मनौअल  : स्त्री० [हिं० मान=अभिमान+मनाना] रूठकर बैठनेवाले या रूठे हुए को मनाने की क्रिया या भाव।
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मान-मनौती  : स्त्री०[हिं० मान+मनौती] १. मानता। मनौती। २. पारस्परिक प्रेमपूर्वक सम्बन्ध। ३. दे० ‘मान-मनौअल’।
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मान-मरोर  : स्त्री० दे० ‘मन-मुटाव’।
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मान-महत  : पुं० [सं० मान-महत्व] प्रतिष्ठा और बड़प्पन।
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मान-महत्  : वि० [ब० स०] बहुत बड़ा अभिमानी या घमंडी।
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मान-मोचन  : पुं० [ष० त०] (साहित्य में) मान करनेवाले प्रिय को मनाकर समझा-बुझाकर उसका मान छुड़ाना और उसे अपने प्रति प्रसन्न करना।
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मान-रंध्रा  : स्त्री० [सं० ब० स+टाप्] प्राचीन काल की जल-घड़ी जिसका व्यवहार समय जानने के लिए होता था।
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मान-हंस  : पुं० [सं० ष० त०] एक प्रकार का वर्ण वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में स, ज, ज, भ, र होते हैं।
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मान-हानि  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. कोई ऐसा काम या बात जिसमें किसी का अपमान या अप्रतिष्ठा होती हो और जो सामाजिक आदि दृष्टियों से अनुचित और निन्दनीय हो। २. इस प्रकार होनेवाली मानहानि। (डिफेमेशन)।
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मानक  : पुं० [स० मान+कप्] मानकच्चू। मानकंद। पुं० [सं० मान से] विशिष्ट वस्तुओं के आकार, प्रकार महत्त्व आदि जाँचने का कोई आधिकारिक आदर्श, मानदंड या रूप। (स्टैन्डर्ड)।
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मानक समय  : पुं० [सं०] दिन-रात आदि के समय का वह विभाजन जो किसी क्षेत्र या देश में आधिकारिक रूप से मानक माना जाता हो। (स्टैंडर्ड टाइम)।
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मानक-काल  : पुं० [सं०] दे० ‘मानक समय’।
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मानकंद  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. एक तरह का कंद। मानकच्चू। २. सालिब मिश्री नामक कंद।
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मानकित  : भू० कृ० [हिं० मानक से] मानक के रूप में किया या लाया हुआ। (स्टैंडर्डाइज़ड)।
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मानकीकरण  : पुं० [सं०] एक ही प्रकार या वर्ग की बहुत सी वस्तुओं के गुण, महत्त्व आदि का मानक रूप स्थिर करने की क्रिया या भाव। (स्टैण्डर्डाइजेशन)। जैसे—बटखरों का मानकीकरण, जजों का मानकीकरण।
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मानगृह  : पुं० [सं० ष० त०] १. प्राचीन राजमहलों में वह कमरा जिसमे राजा से रूठी हुई रानी मान करके बैठती थी। २. साहित्य में वह स्थान जहाँ पर नायिका मान करके बैठी हुई हो।
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मानचित्रांकन  : पुं० [सं० मानचित्र-अंकन, ष० त०] मानचित्र बनाने और रेखाचित्र अंकित करने की कला या विद्या।
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मानचित्रावली  : स्त्री० [सं० मानचित्रा-अवली, ष० त०] पृथ्वी, भीखण्डों, देशों, प्रांतो आदि के भौगोलिक चित्रों का पुस्तकाकार समूह। मानचित्रों का संकलन या संग्रह। (एटलस)।
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मानज  : पुं० [सं० मान√जन् (उत्पत्ति)+ड] क्रोध। वि० मान से उत्पन्न।
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मानतरू  : पुं० [सं० मध्यम०स०] खेतपापड़ा।
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मानता  : स्त्री०=मनौती। क्रि० प्र०—उतारना।—चढ़ाना।—मानना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मानद  : पुं० [सं० मान√दा (देना)+क] विष्णु। वि० मान या प्रतिष्ठा देने या बढ़ानेवाला।
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मानधाता  : पुं० =मांघाता (एक सूर्यवंशी राजा)।
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मानन  : पुं० [सं०√मान्+ल्युट-अन] १. मान करने की क्रिया या भाव। २. आदर या सम्मान करना।
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मानना  : अ० [सं० मानन] १. मन से यह समझ लेना कि जो कुछ कहा या किया गया है, अथवा जो कुछ प्रस्तुत है वह उचित है ठीक समझकर अंगीकृत या गृहीत करना। जैसे—मैं मानता हूँ कि इसमें आपका की दोष नहीं है। २. मन में किसी प्रकार की धारणा या विचार स्थिर करना। जैसे—आप तो जरा सी बात में बुरा मान गये। ३. किसी प्रकार की आज्ञा, आदेश, विधान आदि को ठीक समझकर उसके अनुकूल आचरण या व्यवहार करना। जैसे—वह सीधी तरह से नहीं मानेगा। स० १. किसी बात को अंगीकृत, ग्रहण या स्वीकार करना। जैसे—किसी की बात मानना। २. किसी काम बात या विषय के संबंध में तर्क के निर्वाह के लिए कुछ समय के लिए वस्तु-स्थिति के विपरीत कामना करना। जैसे—मान लीजिए कि उसने आकर आपसे क्षमा माँग ली, तो फिर क्या होगा। ३. किसी को पूज्य या श्रेष्ठ समझकर उसके प्रति मन में आदर, श्रद्धा या विश्वास रखना। जैसे—आर्य-समाजी हो जाने पर भी वे सनातन धर्म की बहुत सी बातें मानते थे। ४. किसी को विशिष्ट रूप से गुणी, योग्य या समर्थ समझना। जैसे—(क) मैं तो उसे बहादुर मानूँगा जो यह काम पूरा कर दिखलाये। (पूरब)। (ख) ऐसे गैरे लोगों को मैं कुछ नही मानता। ५. किसी प्रकार के आचरण, विधान आदि को निर्वाह या पालन के योग्य समझना और उसका अनुसरण करना। जैसे—(क) किसी का अनुरोध या आग्रह मानना। (ख) जन्माष्टमी या शिवरात्रि मानना। ६. मनौती या मन्नत के रूप में प्रतिज्ञा या संकल्प करना। जैसे—(क) काली जी को बकरा मानो तो लड़का जल्दी अच्छा हो जायेगा। (ख) मैंने हनुमान जी को सवा सेर लड्डू माना है, अर्थात् यह संकल्प किया है कि अमुक काम हो जाने पर सवा सेर लड्डू चढ़ाऊँगा। ७. श्रृंगारिक क्षेत्र में, किसी के प्रति यथेष्ट अनुराग या प्रेम रखना। किसी पर आसक्त होना। जैसे—दुश्चरित्रा स्त्रियाँ कभी एक को मानती है तो कही दूसरे को मानने लगती हैं। (बाजारू)। ८. सहन करना। सहना। उदाहरण—उपजत दोष नैन नहिं सूझत, रवि की किरन उलूक न मानत।—सूर। ९. किसी बात या स्थिति को अपने लिए अनुकूल, ठीक या हितकर समझते हुए शांति और सुखपूर्वक रहना। जैसे—कुत्ते या बिल्ली का पोस मानना। उदाहरण—कबहूँ मन विश्राम न मान्यो।—तुलसी।
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माननीय  : वि० [सं०√मान्+अनीयर] जिसका मान सम्मान करना आवश्यक या उचित हो। आदरणीय। पुं० बड़े लोगों के नाम या पद के पहले उपाधि के रूप में प्रयुक्त पद। (आँनरेबुल) जैसे—माननीय मंत्री महोदय।
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मानपत्र  : पुं० [ष० त०] वह पत्र जो किसी का आदर या सम्मान करने के लिए उसे भेट किया जाता है और जिसमें उसके सत्कार्यों, सद्गुणों आदि की स्तुति रहती है। अभिनन्दन पत्र।
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मानपात  : पुं० =मानकंद।
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मानव  : वि० [सं० मनु+अण्] मनु से संबंधित अथवा उससे उत्पन्न। पुं० १. मनुष्य। २. मनुष्य जाति। ३. १४ मात्राओं के छंदों की संज्ञा। इनके ६१० भेद हैं।
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मानव-देव  : पुं० [सं० ष० त०] राजा।
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मानव-पति  : पुं० [सं० ष० त०] राजा।
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मानव-भूगोल  : पुं० [सं० ] भूगोल शास्त्र का वह अंग जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि प्राकृतिक और भौगोलिक परिस्थितियों का मानव जाति पर क्या प्रभाव पड़ता है। (एन्थ्रोपोजिएग्रेफी)।
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मानव-वर्जित  : वि० [सं० तृ० त०] जिसका कुछ भी मान या प्रतिष्ठा न हो अर्थात् तुच्छ या नीच।
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मानव-विज्ञान  : पुं० =मानव-शास्त्र।
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मानव-व्यापार  : पुं० [ष० त०] मनुष्यों को बेचने-खरीदने का काम।
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मानव-शास्त्र  : पुं० [ष० त०] १. मनुष्यों की उत्पत्ति, उनकी जातियों उनके स्वाभावों आदि का विवेचन करनेवाला शास्त्र। (एन्थ्रोपालोजी) २. अर्थशास्त्र, इतिहास, दर्शन, पुरातत्व, मनोविज्ञान, राजनीति, संगीत, संस्कृति, साहित्य आदि से संबंध रखनेवाले वे सभी शास्त्र जो मुख्यतः मानव-जाति की उन्नति, विकास आदि में सहायक होते हैं। (ह्यू-मैनिटिक्स)।
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मानव-शास्त्री (स्त्रिन्)  : पुं० [सं० मानवशास्त्र+इनि] मानव शास्त्र का ज्ञाता या पंडित। (एन्थ्रोपालोजिस्ट)।
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मानव-शास्त्रीय  : वि० [सं० मानवशास्त्र+छ-ईय] मानव-शास्त्रपर्वत।
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मानवक  : पुं० =माणवक।
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मानवता  : स्त्री० [सं० मानव+तल्+टाप्] १. मनुष्य जाति। २. मानव होने की अवस्था या भवा। ३. मनुष्य के आदर्श तथा स्वाभाविक गुणो, भावनाओं आदि का प्रतीक या समूह।
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मानवतावाद  : पुं० [ष० त०] [वि० मानवतावादी] वह लौकिक सिद्धान्त जिसमे यह माना जाता है कि संसार के सभी मनुष्यों का समान रूप में कल्याण होना चाहिए और सबको उन्नत करके संतुष्ट तथा सुखी रखने की व्यवस्था होनी चाहिए। (ह्यू-मैनिज़्म)
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मानवतावादी (दिन्)  : वि० [सं० मानवतावाद+इनि] मानवतावाद संबंधी। (ह्यू मैनिस्ट)। पुं० वह जो मानवतावाद के सिद्धान्तों का अनुयायी और पोषक या समर्थक हो। (ह्यू मैनिटेरियन)।
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मानवती  : स्त्री० [मानवत्+ङीष्] साहित्य में वह नायिका जो नायक से रुष्ट या असंतुष्ट होने पर मान करती हो या मान करके बैठी हो।
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मानवत्  : पुं० [सं० मान+मतुप्, म-व] [स्त्री० मानवती] रूठा हुआ।
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मानवाचल  : पुं० [सं० मानव-अचल, मध्य, स०] पुराणानुसार एक पर्वत।
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मानवी  : स्त्री० [सं० मानव+ङीष्] १. मानव-जाति की स्त्री। नारी। २. पुराणानुसार स्वयंभुव मनु की कन्या का नाम। वि० =मानवीय।
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मानवीकरण  : पुं० [सं० मानव+च्वि, इत्व, दीर्घ√कृ+ल्युट—अन] १. किसी वस्तु को मानव अर्थात् मनुष्य का रूप देने की क्रिया या भाव। मानुषीकरण। (ह्यूमेनिजेशन)। जैसे—कथा-कहानियों में पशु-पक्षियों आदि का होनेवाला मानवीकरण। २. कला, धर्म आदि के क्षेत्र में यह मानकर कि पदार्थों में राग-द्वेष आदि मानव-गुण होते हैं, उन्हें मानव के रूप में कल्पित और प्रस्थापित करना।
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मानवीय  : वि० [सं० मानव+छ—ईय] १. मानव-संबंधी। मानव या मनुष्य का। २. मनुष्योचित (ह्यू मेन)।
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मानवेंद्र, मानवेश  : पुं० [सं० मानव-इंद्र, मानव-ईश, ष० त०] राजा।
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मानःशिल  : वि० [सं० मनःशिल+अण्] १. मनःशिला या मैनसिल सम्बन्धी। २. मैनसिल के रंग में रँगा हुआ।
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मानस  : वि० [सं० मानस+छ-ईय] १. मन से उत्पन्न। मनोभव। २. मन में सोचा या विचारा हुआ। जैसे—मानस चित्र। क्रि० वि० मन के द्वारा। मन से। पुं० १. आधुनिक मनोविज्ञान में, मनुष्य की वह आंतरिक सत्ता जिसमें अनुभूतियाँ, विचार और संवेदनाएँ होती है। इसी का सबसे अधिक चेतन, परिचित तथा प्रत्यक्ष रूप चेतना कहलाता हैं। मन। (माइंड) विशेष—इसके चेतन, अवचेतन, अतिचेतन आदि कुछ और अंग या पक्ष भी माने गये हैं। २. मन में होनेवाला संकल्प-विकल्प। ३. मानसरोवर। ४. कामदेव। ५. संगीत में एक प्रकार का राग। ६. आदमी। मनुष्य। ७. चर। दूत। ८. शाल्मली द्वीप का एक वर्ष। ९. पुष्कर द्वीप का एक पर्वत।
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मानस-तीर्थ  : पुं० [कर्म० स०] ऐसा मन जो राग, द्वेष आदि से बिलकुल रहित हो गया हो।
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मानस-पुत्र  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह संतान जिसकी उत्पत्ति मात्र इच्छा से हुई हो, शारीरिक सम्भोग से न हुई हो। जैसे—सनक आदि ब्रह्मा के मानस-पुत्र कहे जाते हैं।
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मानस-पूजा  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] पूजा के दो प्रकारों में से वह जिसमें मन से ही सब कृत्य किये जाते हैं, लौकिक उपचारों या साधनों का साहार नहीं लिया जाता है।
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मानस-विज्ञान  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह विज्ञान या शास्त्र, जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि मनुष्य का मन किस प्रकार अपने काम करता है। (मेन्टल साइन्स)।
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मानस-व्रत  : पुं० [सं० मध्य० स०] अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य आदि व्रत जिनका पालन मन से ही होता है।
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मानस-शास्त्र  : पुं० [सं० मध्य० स०] मनोविज्ञान।
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मानस-संन्यासी (सिन्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] दशनामी संन्यासियों का एक उपभेद।
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मानस-सर (स्)  : पुं० [सं० कर्म० स०] मानसरोवर।
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मानस-हंस  : पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का वृत्त जिसके प्रत्येक चरण में स, ज, ज, भ, र होता है। इसे मानहंस तथा रणहंस भी कहते हैं।
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मानसचारी (रिन्)  : पुं० [सं० मानस√चर् (गति)+णिनि] मानसरोवर के आसपास रहनेवाला हंस।
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मानसता  : स्त्री० [सं०] १. मन का भाव या स्थिति। २. वह विशेष स्थिति या वृत्ति जिसके वशवर्ती होकर मनुष्य किसी कार्य या विचार में प्रवृत्त होता है। मनोवृत्ति। (मेन्टैलिटी)।
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मानसर  : पुं० =मानसरोवर।
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मानसरोवर  : पुं० [सं० मानस-सरोवर] १. तिब्बत के क्षेत्र में एक प्रसिद्ध झील जो कैलास पर्वत के नीचे हैं और जो बहुत पवित्र तथा बड़े तीर्थों में मानी जाती है। २. हठयोग में सहस्रार चक्र जिसे कैलास भी कहते हैं और इसी दृष्टि से जिसमें उस भाव सरोवर की भी कल्पना की गयी जिसमें निर्लिप्त चित्तरूपी हंस विहार करता है।
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मानसालय  : पुं० [सं० मानस-आलय, ब० स०] हंस।
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मानसिक  : वि० [सं० मानस+ठक्—इक] १. मन की कल्पना से उत्पन्न। २. मन में होने या मन से संबंध रखनेवाला। जैसे—मानसिक रोगी, मानसिक कष्ट। ३. जिसमें सोच-विचार तथा मनन की अधिक अपेक्षा हो। (शारीरिक से भिन्न)। जैसे—मानसिक कार्य। पुं० विष्णु का एक नाम।
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मानसिक-चिकित्सालय  : पुं० [सं० कर्म० स०] वह चिकित्सालय जहाँ पर मानसिक रोगियों का उपचार किया जाता है। (मेन्टल हॉस्पिटल)।
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मानसिकी  : स्त्री०=मानस-विज्ञान। (मनोविज्ञान)।
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मानसी  : स्त्री० [सं० मानस+ङीप्] १. वह पूजा जो मन ही मन की जाय। मानसपूजा। २. एक विद्या देवी का नाम। वि० =मानसिक।
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मानसी-गंगा  : स्त्री० [सं०] ब्रज में गोवर्धन पर्वत के पास का एक सरोवर।
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मानसूत्र  : पुं० [सं० कर्म० स०] करघनी।
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मानसून  : पुं० दे० ‘मानसून’।
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मानहुं  : अव्य० =मानो। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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माना  : पुं० [इब] कुछ विशिष्ट प्रकार के वृक्षों बांसों आदि का गोंद या निर्यास जो चिकित्सा के काम आता है। मन्ना। स० [सं० मान] १. नापना, मापना या तौलना। २. जाँचना। पुं० अन्न आदि नापने का पात्र। अ०=अमाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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माना-मथ  : पुं० =महना-मथन।
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मानांकन  : पुं० दे० ‘मूल्यांकन’।
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मानाथ  : पुं० [सं० कर्म० स०] लक्ष्मी के पति। विष्णु।
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मानाभिषेक  : पुं० [सं०] किसी बड़े अधिकारी या प्रधान व्यक्ति के अधिकारारूढ़ होने की क्रिया अथवा उससे संबंध रखनेवाला सामारोह। (इन्वेस्टिचर)।
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मानिक  : पुं० [सं० माणिक्य] १. लाल रंग के एक मणि के नाम। कुरुविंद। पदमराग। ३. आठ पल की एक पुरानी तौल।
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मानिक-खंभ  : पुं० [हिं० मानिक+खम्भा] १. वह खूँटा जो कांतर के किनारे गड़ा रहता है। मरखम। २. विवाह के समय मंडप के बीच में गाड़ा जानेवाला खम्भा। ३. दे० ‘मालखंभ’।
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मानिक-जोड़  : पुं० [हिं० मानिक+जोड़] एक प्रकार का बगुला जिसकी चोंच और टाँगे अधिक लम्बी होती हैं।
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मानिक-रेत  : स्त्री० [हिं० मानिक+रेत] मानिक का चूरा, जिससे गहने साफ किये जाते हैं।
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मानिकचंदी  : स्त्री० [सं० मानिकचंद] एक तरह की छोटी सुपारी।
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मानिका  : स्त्री० [सं०√मन् (गर्व करना)+णिच्+ण्वुल्-अक+टाप्, इत्व] १. मद्य। शराब। २. आठ पल या साठ तोले की एक पुरानी तौल।
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मानित  : भू० कृ० [सं० मान+इतच्] जिसका मान होता हो। प्रतिष्ठित। सम्मानित।
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मानिता  : स्त्री० [सं० मानित+टाप्] १. मानित्व। सम्मान। २. गौरव ३. अहंकार। घमंड।
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मानिंद  : वि० [फा०] सदृश। वि० =माननीय या मान्य। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मानिनी  : वि० स्त्री० [सं० मान+इनि+ङीष्] सं० ‘मानी’ का स्त्री। मान (अभिमान या गर्व) करनेवाली। स्त्री० साहित्य में वह नायिका जो नायक का दोष देखकर उससे रूठ गयी हो या मान कर रही हो।
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मानी (निन्)  : वि० [सं० मान+इनि] [स्त्री० मानिनी] १. जिसमें मान हो। मानवाला। २. अपने मान या प्रतिष्ठा का अधिक या यथेष्ठ ध्यान रखनेवाला ३. किसी गुण या बात का अभिमान करनेवाला। अभिमानी। घमंडी। ४. मान करने या रूठनेवाला। ५. जिसका लोग मान या सम्मान करते हों माननीय। जैसे—शहर के सभी धनी-मानी वहाँ आये थे। ६. मन लगाकर काम करनेवाला। मनोयोगी। पुं० [सं०] साहित्य में श्रृंगार रस का आलम्बन वह नायक जो बहुत बड़ा अभिमानी हो। स्त्री० [सं०] १. घड़ा। २. चक्की के नीचेवाले पाट के बीचो-बीच लगी रहनेवाली वह लकड़ी जिसके चारों ओर ऊपरवाला पाट घूमता है। ३. कुदाल, वसूले आदि का वह छेद जिसमें बेंट लगायी जाती है। ४. किसी चीज में बनाया हुआ वह छेद जिसमें कुछ जड़ा जाय। ५. किसी तरह का छेद या सूराख। ६. अन्न नापे का एक मान या तौल जो सोलह सेर की होती थी। पुं० [अ० मानो] १. पद, वाक्य, शब्द आदि का अभिप्राय या आशय। अर्थ। माने। २. भेद या रहस्यमूलक तत्त्व का आशय। तात्पर्य। मतलब। ३. उद्देश्य। प्रयोजन।
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मानुख  : पुं० =मनुष्य। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मानुष  : वि० [सं० मनु+अञ्, षुक्] [स्त्री० मानुषी] मनुष्य संबंधी। मनुष्य का। पुं० १. आदमी। मनुष्य। २. प्रमाण के तीन भेदों में से एक।
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मानुषक  : वि० [सं० मनुष्य+वुञ्-अक] मनुष्य-संबंधी। मनुष्य का।
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मानुषता  : स्त्री० [सं० मानुष+तल्+टाप्] मनुष्य होने की अवस्था या भाव। आदमीयत। मनुष्यत्व।
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मानुषिक  : वि० [सं० मनुष्य+ठञ्, बुद्धि, य-लोप] १. मनुष्य सम्बन्धी। २. मनुष्यों का। (असुरों, देवताओं आदि की तरह का नहीं)।
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मानुषी  : स्त्री० [सं० मानुष+ङीष्] स्त्री। औरत। वि० =मानुषीय। जैसे—मानुषी चिकित्सा।
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मानुषी-चिकित्सा  : स्त्री० [सं० न्यस्तपद] वैद्यक में तीन प्रकार की चिकित्साओं में से एक। मनुष्यों के उपयुक्त चिकित्सा।
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मानुषीकरण  : पुं० =मानवीकरण।
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मानुषीय  : वि० [सं० मानुष+छ-ईय] मनुष्य-संबंधी।
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मानुष्य  : वि० [सं० मनुष्य+अण्, वृद्धि] १. मनुष्य-संबंधी। २. मनुष्य या मनुष्यों में पाया जाने या होनेवाला।
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मानुष्यक  : वि० [सं० मनुष्य+वुञ्-अक] मनुष्य-संबंधी।
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मानुस  : पुं० =मनुष्य। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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माने  : पुं० [अ० मानी] अर्थ। आशय।
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मानो  : अव्य० [हिं० मानना] एक अव्यय जिसका प्रयोग नीचे लिखे अर्थ या भाव सूचित करने के लिए होता है। (क) अनुरूपता या तुल्यता के विचार से यह समझ लो कि। जैसे—वह मनुष्य क्या था मानों देवता था (ख) स्थिति आदि के विचार से कल्पना करो या मान लो कि। जैसे—हम लोग समझ लें कि मानो हम वही बैठे हैं।
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मानोखी  : स्त्री० [देश] एक प्रकार की चिड़िया।
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मानोपाधि  : स्त्री० [सं० मान+उपाधि] वह उपाधि या खिताब जो किसी का मान बढ़ाकर उसे सम्मानित करने के लिए दिया जाय। (टाइटिल ऑफ आनर)।
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मानौ  : अव्य० =मानो। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मान्य  : वि० [सं०√मान्+ण्यत्] [स्त्री० मान्या] १. (बात) जिसे मान सकें। माने जाने के योग्य। २. (व्यक्ति) जिसका मान या सम्मान करना आवश्यक या उचित हो। मान या सम्मान का अधिकारी या पात्र। ३. प्रार्थना के रूप में उपस्थित किये जाने के योग्य। प्रार्थनीय। पुं० १. विष्णु २. शिव। ३. मैत्रावरुण।
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मान्य औषध कोश  : पुं० [सं०] दे० ‘भेषज संग्रह’।
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मान्य-व्यक्ति  : पुं० दे० ‘ग्राह्य-व्यक्ति’।
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मान्य-स्थान  : पुं० [सं० ष० त०] आदर या मान्य का कारण।
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मान्यता  : स्त्री० [सं० मान्य+तल्+टाप्] १. मान्य होने की अवस्था या भाव। २. किसी विषय में माने और स्थिर किये हुए तत्त्व या सिद्धांत। जैसे—कविता के स्वरूप के सम्बन्ध में उनकी कुछ मान्यताएँ बहुत ही अनोखी (या नयी) हैं। ३. सिद्धांत प्रथा आदि के रूप में मानने योग्य कोई तत्व, तथ्य या बात। ४. किसी बड़ी संस्था द्वारा किसी दूसरी छोटी संस्था के संबंध में यह मान लिया जाना कि वह प्रामाणिक है और उसके किये हुए कार्य ठीक समझे जायँगे। ५. वह अवस्था जिसमें उक्त प्रकार की बातें मान ली जाती है और उसके अनुसार छोटी संस्था को बड़ी संस्था के अंग के रूप में काम करने का अधिकार मिल जाता है। (रिकाग्निशन)।
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मान्सून  : पुं० [अ० मौसिम] १. भारतीय महासागर और दक्षिणी एशिया में चलनेवाली एक हवा जो अप्रैल से अक्तूबर तक दक्षिण-पश्चिम की ओर से तथा अक्तूबर से अप्रैल तक उत्तर-पश्चिम की ओर से बहती है। २. वह समय जब यह हवा दक्षिण-पश्चिम की ओर से बहती है और जिसके फलस्वरूप पृथ्वी के अधिकतर भागों में खूब वर्षा होती है। पावस।
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