मस/mas

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मस  : स्त्री० [सं० श्मश्रु] मूँछ निकलने के पहले उसके स्थान पर की बालों की हलकी रेखा या रोमावली। क्रि० प्र०—निकलना। मुहावरा—मस भींजना या भीनना=ऊपरी होंठ पर मूँछों का उगना आरंभ होना। पुं० [सं० मास] हिं० ‘मास’ का संक्षिप्त रूप जो उसे यौगिक पदों के आरम्भ में लगने से प्राप्त होता है। जैसे—मसवास=मसोपवास। पुं०=मशक (मच्छर) स्त्री०=मसि (स्याही लिखने की) उदाहरण—धरती समुद्र दुहै मस भरई।—जायसी। पुं० [सं०] १. तौल। २. माप। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस-खवा  : पुं० [हिं० मांस+खाना] वह जो मांस खाता हो मांसाहारी।
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मसऊद  : वि० [अ०] १. भाग्यवान। २. प्रसन्न। ३. पवित्र।
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मसक  : स्त्री० [हिं० मसकना] १. मसकने की क्रिया या भाव। २. किसी चीज के मसकने के कारण उस पर बननेवाला चिन्ह या पड़नेवाली दरार। स्त्री०=मशक (पानी भरने की)। पुं० =मशक (मच्छर)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसकत  : स्त्री०=मशक्कत। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसकना  : स० [अनु] १. खिंचाव या दबाव में डालकर कपड़े को इस प्रकार विकृत करना कि उसकी बुनावट के सूत-टूटकर अलग या दूर हो जायँ। २. किसी चीज को इस प्रकार दबाना कि वह बीच में ही फट जाय या उसमें दरार पड़ जाय। ३. इस प्रकार जोर से दबाना कि बीच में से कुछ खंड अलग हो जायँ। ४. दे० ‘मसलना’। संयो० क्रि०—डालना।—देना। अ० १. कपड़े आदि का (दबाव पड़ने के कारण) बीच-बीच में कुछ फट य टूट जाना। २. अपने स्थान से खिसकना या हटना। जैसे—तुमसे मसका भी जाता नहीं, तुम काम क्या करोगे। ४. चिंतित या दुखी होना। संयो क्रि०—जाना।
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मसकरा  : पुं० =मसखरा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसकला  : पुं० [अ० मिस्कल] [स्त्री० अल्पा० मसकली] १. लोहे का वह उपकरण जिससे रगड़कर तलवारें आदि चमकायी जाती है। २. तलवार आदि चमकाने की क्रिया या भाव।
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मसकली  : स्त्री०=मसकला।
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मसका  : पुं० [फा० मस्कः] १. नवनीत। मक्खन। २. ताजा निकाला हुआ घी। ३. दही का पानी। ४. बँधा हुआ पारा। तु० [हिं० मसकना] १. चूने की बरी का वह चूर्ण जो उस पर पानी छिड़कने पर हो जाता है। २. सुनारों की परिभाषा में, कायस्थ।
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मसखरा  : पुं० [अ० मस्खरः] १. वह जो अपनी क्रिया-कलापों, बातों आदि से दूसरों को बहुत हँसाता हो। हँसी-विनोद की बातें कहनेवाला व्यक्ति। २. वह जो दूसरों की नकलें उतारता हो।
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मसखरापन  : पुं० [अ० मसखरा+हिं० पन (प्रत्यय)] मसखरा होने की अवस्था या भाव।
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मसखरी  : स्त्री० [अ० मसखरा+ई (प्रत्यय)] वह क्रिया, चुहुल या हँसी की बात जिसका उद्देश्य दूसरों को हँसाना हो। ठट्ठा। दिल्लगी।
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मसजिद  : स्त्री० [फा० मसजिद] १. सिजदा करने अर्थात् ईश्वर के आगे सिर झुकाने का स्थान। २. वह भवन या स्थान जिसमें मुसलमान नमाज पढ़ते तथा ईश्वर की वंदना करते हैं। मसीत।
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मसटि  : स्त्री० दे० ‘मष्ट’। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मसड़ी  : स्त्री० [देश] एक प्रकार का पक्षी। स्त्री०=मिसरी। (डिं०) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसती  : पुं० [हिं० मस्त] हाथी। (डिं०) स्त्री०=मस्ती। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसन  : पुं० [सं०] १. तौल। २. माप। ३. औषधि। ४. चोट० पुं० [देश] एक प्रकार का टकुआ जिससे ऊन के कई तागे एक साथ मिलाकर बँटे जाते हैं।
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मसनद  : स्त्री० [अ० मस्नद] १. एक प्रकार का गोल, लंबोतरा तथा बड़ा तकिया। गाव-तकिया। २. वह स्थान जहाँ उक्त प्रकार का तकिया रखा रहता है। ३. अमीरों और बड़े आदमियों के बैठने की गद्दी।
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मसनद-नशीन  : पुं० [अ० मसनद+फा० नशीं] १. मसनद पर बैठनेवाला अर्थात् अमीर, रईस या राजा। २. तख्तनशीं। सिंहासनासीन।
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मसनवी  : स्त्री० [अ० मस्नवी] उर्दू साहित्य में वह कविता जिसमें कई शेर होते हैं। इन शेरों में अंत्यानुप्रास नहीं होता।
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मसना  : स० [हिं० मसलना] १. मसलना। २. गूँधना।
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मसनूई  : वि० [अ० मस्नुई] १. कृत्रिम। बनावटी। २. अप्राकृतिक। ३. मिथ्या।
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मसमुंद  : वि० [हिं० मस्त+मुंड] ऐसी खींचा तानी जिसमें धक्कम-धक्का भी हो।
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मसयारा  : पुं० [हिं० मशाल] १. वह जो मशालें जलाता हो। २. मशालची। ३. मशाल। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मसरफ  : पुं० [अ० मस्रफ़] उपयोग। प्रयोजन।
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मसरू  : पुं० =मशरू (देशी कपड़ा)।
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मसरूका  : वि० [अ० मसरूकः] चोरी किया या चुराया हुआ। जैसे—माल मसरूका।
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मसरूफ  : वि० [अ० मस्रूफ] काम में लगा हुआ। निरत। संलग्न।
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मसरूफफियत  : स्त्री० [अ० मस्रूफ़ियत] मसरूफ होने की अवस्था या भाव।
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मसल  : स्त्री० [अ०] कहावत। लोकोक्ति।
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मसलति  : स्त्री०=मसलहत। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसलन  : स्त्री० [हिं० मसलना] मसलने की क्रिया या भाव। उदाहरण—मैं वह हलकी सी मसलन हूँ जो बनती कानों की लाली।—प्रसाद। अव्य० [अ० मस्लन] उदाहरण के रूप में। उदाहरणार्थ। जैसे। यथा।
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मसलना  : स० [हिं० मलना] १. किसी नरम चीज को हाथ, हथेली या उँगलियों से दबाते हुए रगड़ना। मलना। २. जोर से इस प्रकार कोई चीज दबाना कि वह टूट-फूट जाय। ३. गूँथना। ४. सानना। संयो० क्रि०—डालना।—देना।
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मसलहत  : स्त्री० [अ० मस्लहत] १. किसी काम या बात का ऐसा बुद्धिमत्तापूर्ण शुभ उद्देश्य या हेतु जो ऊपर से देखने पर समझ में न आता हो। २. परामर्श। ३. हित। भलाई।
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मसलहतन्  : अव्य० [अ०] छिपे हुए शुभ उद्देश्य या हेतु से। जैसे—हमने मसलहतन् तुम्हें वहाँ भेजा था।
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मसला  : पुं० [अ० मस्सलः] १. कहावत। लोकोक्ति। २. समस्या। मुहावरा—मसला हल होना=समस्या का निराकरण होना।
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मसवास  : पुं० [हिं० मास+वास (प्रत्यय)] वह स्थान जहाँ प्रसूता स्त्री प्रसव के बाद एक मास रहती हो।
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मसवास  : पुं० [हिं० मास+वास] विरक्तों, संन्यासियों आदि का वह नियम या व्रत जिसके अनुसार किसी स्थान पर अधिक से अधिक एक मास तक रहते और तब वहाँ से दूसरी जगह चले जाते हैं। पुं० दे० ‘मासोपवास’। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसवासी  : पुं० [सं० मासवासी] एक स्थान पर केवल एक मास तक निवास करनेवाला विरक्त। स्त्री० वेश्या। पुं०=मासोपवासी (देखें)।
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मसविदा  : पुं० दे० ‘मसौदा’।
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मसहरी  : स्त्री० [सं० मसकहरी] १. जलीदार कपड़े का बना हुआ एक प्रकार का चौकोर आवरण जो खाट या पलंग के ऊपर इसलिए टाँगा जाता है कि मच्छर अन्दर आकर सोनेवाले को तंग न करे। २. ऐसा पलंग जिसके चारों पायों पर इस प्रकार का जालीदार कपड़ा टाँगने के लिए ऊँची लकड़ियाँ या छड़ लगे हों। ३. बड़ी खटिया। पलंग।
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मसहार  : पुं० =माँसाहारी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मसहुर  : वि० =मशहूर (प्रसिद्ध)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसा  : पुं० [सं० मशक] बिन्दु के आकार का शरीर पर होनेवाला काला चिन्ह। पुं० =मस्सा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसान  : पुं० [सं० श्मशान] १. शव जलाने का स्थान। मरघट। मुहावरा—मसान जगाना=श्मशान में बैठकर तांत्रिक प्रयोगों के द्वारा भूत-पिशाचों आदि वश में या सिद्ध करने का प्रयत्न करना। मसान पड़ना=श्मशान की सी उदासी और सन्नाटा छाना। २. श्मसान में रहनेवाले भूत-पिशाच आदि। ३. युद्ध भूमि या रण-क्षेत्र जिसमें श्मशान की तरह लाखों का ढेर लगा रहता है।
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मसाना  : पुं० [अ० मसानः] मूत्राशय। बस्ति। पुं० =मसान (श्मशान)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसानिया  : वि० [हिं० मसान+इया (प्रत्यय)] १. मसान-संबंधी। मसान का। २. मसानों में अथवा उनकी सहायता से सिद्ध किया हुआ। पुं० १. वह व्यक्ति विशेषतः डोम जो मसानों में रहता हो। २. मसान में रहकर भूत-प्रेत सिद्ध करनेवाला तांत्रिक। ३. अर्थ-पिशाची। कंजूस।
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मसानी  : स्त्री० [सं० श्मशानी] डाकिनी। पिशाचिनी।
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मसार  : पुं० [सं०] नीलम। इंद्रनीलमणि।
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मसाल  : स्त्री० १. =मशाल। २. =मिशाल।
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मसाल-दुम्मा  : पुं० [हिं० मशाल+दुम] एक प्रकार का पक्षी जिसकी दुम काली होती है।
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मसालची  : पुं० [हिं० मसाला+ची (प्रत्यय)] वह जो वाबर्चीखानों आदि में मिर्च-मसाले पीसने तथा इसी तरह के छोटे-मोटे काम करता हो। पुं० =मशालची।
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मसालहत  : स्त्री० [अ०] १. मेल-मिलाप। २. सुलह। २. समझौता।
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मसाला  : पुं० [फा० मसालह] १. चीजें जिनकी सहायता से कोई चीज तैयार होती हो। सामग्री। जैसे—किताब लिखने या मुकदमा चलाने के लिए ढूँढ़-ढूँढ़कर मसाला इकट्ठा करना। २. औषधियों, रासायनिक द्रव्यों आदि का तैयार किया हुआ वह मिश्रण जिसका उपयोग किसी विशिष्ट कार्य के लिए होता है। जैसे—पान का मसाला, मकान बनाने का मसाला (गारा, चूना आदि) ३. धनियाँ, मिर्च, लौंग, हींग आदि वे पदार्थ जिनका उपयोग दाल, तरकारी आदि को सुगंधित और स्वादिष्ट करने में होता है। ४. सलमा-सितारे बाँकड़ी, गोखरू आदि चीजें जो कपड़ों पर शोभा के लिए बेल-बूटों आदि के रूप टाँकी जाती है। जैसे—अँगिया, ओढ़नी, साड़ी आदि में लगाया जानेवाला मसाला। ५. किसी काम य बात का आधार-भूत साधन। जैसे—लोगों को दिल्लगी उड़ाने का अच्छा मसाला मिल गया। ६. आतिशबाजी जो कई तरह के मसालों से बनती है। ७. युवती और सुन्दरी परन्तु दुश्चरित्रा स्त्री। (बाजारू)। ८. मंगल-भाषित रूप में तेल। जैसे—लालटेन का मसाला खत्म हो गया है, लेते आना। विशेष—प्रायः किसी के चलते समय तेल का नाम लेना अशुभ समझा जाता है, इसीलिए प्रायः स्त्रियाँ इसे मसाला कहती हैं।
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मसाली  : स्त्री० [?] रस्सी। डोरी। (लश०)।
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मसाले का तेल  : पुं० [हि० मसाला+तेल] एक प्रकार का सुंगधित तेल जो साधारण तिल के तेल में कपूर, कचरी, बाल-छड़ आदि मिलाकर बनाया जाता है।
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मसालेदार  : वि० [हिं० मसाला+फा० दार] १. जिसमें मसाला पड़ा हुआ हो। जैसे—मसालेदार चना, मसालेदार तरकारी। २. झगड़ा आदि लगाने अथवा किसी को प्रसन्न करने के लिए बना-सँवार कर अथवा बढ़ा-चढ़ाकर किया जानेवाला (कथन या बात)।
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मसाहत  : स्त्री० [अ०] १. नापता। पैमाइश। २. क्षेत्रमिति।
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मसाहति  : स्त्री०=मसाहत।
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मसि  : स्त्री० [सं०√मस्+इन्] १. रोशनाई। २. काजल। ३. कालिख। ४. निर्गुड़ीं का फल।
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मसि-कूपी  : स्त्री० [सं० ष० त०] दावात।
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मसि-जल  : पुं० [सं० ष० त०] रोशनाई।
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मसि-धान  : पुं० [सं० ष० त०] दावात।
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मसि-पण्य  : पुं० [सं० ब० स०] लेखक।
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मसि-पथ  : पुं० [सं० ब० स०] कलम।
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मसि-बिंदु  : पुं० [सं० ष० त०] दावात।
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मसि-बिंदु  : पुं० [सं० ष०त] काजल, कालिख आदि की वह बिन्दी जो स्त्रियाँ बच्चों के गाल, माथे आदि पर उन्हें नजर से बचाने के लिए लगाती हैं। दिठौना।
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मसि-बुंदा  : पुं० [सं० मसिबिंदु] मसिबिंदु।
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मसि-मणि  : स्त्री० [सं० मध्य०स] दावात।
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मसि-मुख  : वि० [सं० ब० स०] १. जिसके मुँह पर कालिख पुती या लगी हो, अर्थात् कलमुँहा। २. दुष्कर्म करनेवाला।
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मसिऔरा  : पुं० [हिं० मांस+औरा (प्रत्यय)] मांस के योग से बना हुआ कोई खाद्य पदार्थ।
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मसिकर  : पुं० [सं० ष० त०] मसि अर्थात् स्याही बनानेवाला व्यक्ति।
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मसित  : भू० कृ० [सं०√मस् (परिवर्तन)+क्त, इत्व] चूर किया हुआ।
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मसिंदर  : पुं० [अ० मेसेंजर] जहाज में, लंगर उठाने का रस्सा। (लश०)।
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मसिदानी  : स्त्री० [सं० मसि+फा०दानी] दावात।
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मसियर  : स्त्री०=मशाल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसियाना  : अ० [हिं० मांस] शरीर का भली-भाँति मांस से भर जाना। शरीर का मांसल होना। स० ऐसी क्रिया करना जिसमें किसी का शरीर मांसल अर्थात् हृष्ट-पुष्ट हो जाय।
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मसियार  : स्त्री०=मशाल।
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मसियारा  : पुं० =मशालची।
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मसिल  : पुं० =मैनसिल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसी  : स्त्री०=मसि।
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मसीका  : पुं० [हिं० माशा] १. आठ रत्ती का मान। माशा। २. चवन्नी। (दलाल)।
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मसीत  : स्त्री०=मसजिद। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसीद  : स्त्री०=मसजिद। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसीना  : स्त्री० [सं०√मस् (परिवर्तन)+इनच्-दीर्घ, पृषो०+टाप्] अलसी। पुं० [?] मोटा अनाज। कदन्न। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसीला  : वि० [हिं० मस+ईला (प्रत्यय)] जिसकी मसें निकल अर्थात् भींज रही हों। नवयुवक। वि० [स्त्री० मसीली] दे० ‘मांसल’।
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मसीह  : पुं० [अ०] हजरत ईसा। मसीहा।
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मसीहा  : पुं० [अ० मसीह] १. वह जिसमें रोगियों को नीरोग करने और मृतकों को जीवित करने की शक्ति हो। २. ईसाई धर्म के प्रवर्त्तक ईसा-मसीह। ३. उर्दू, फारसी कविताओं में प्रेम-पात्र की संज्ञा या उसके लिए सम्बोधन।
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मसीहाई  : स्त्री० [अ०] १. मसीहा का काम या भाव। मसीहापन। २. मुर्दों को जिंदा करना। ३. मसीहा की सी वह अलौकिक शक्ति जिससे रोगी चंगे होते और मृतक जी उठते हैं।
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मसीही  : वि० [अ० मसोह+फा०ई (प्रत्यय)] ईसा मसीह सम्बन्धी। ख्रिप्टीय। पुं० ईसा मसीह का अनुयायी। ईसाई।
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मसुर  : पुं० =मसूर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसुरिया  : स्त्री०=मसूरिका। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसुरी  : स्त्री०=मसूर।
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मसू  : अव्य० [हिं० मरू, पं०मसाँ-मसाँ=कठिनता से] कठिनाई से। मुश्किल से। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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मसूड़ा  : पुं० [सं० श्मश्रु] मुँह का वह मांसल अंग जिसमें दाँत जमे होते हैं।
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मसूढ़ी  : स्त्री० [देश] धातु गलाने की भट्ठी।
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मसूर  : पुं० [सं०√मस्+ऊरन्] एक प्रकार का अन्न जो द्विदल और चिपटा होता है और जिसका रंग मटमैला होता है। इसकी प्रायः दाल बनती है।
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मसूरक  : पुं० [सं० मसूर+कन्] गोल तकिया।
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मसूरति  : पुं० =मुहुर्त्त। उदाहरण—म्लेच्छ मसूरति सत्ति कै बंच कुररनी बार।—चंदबरदाई।
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मसूरा  : स्त्री० [सं०√मस् (परिणाम)+ऊरन्+टाप्] १. वेश्या। रंडी। २. मसूर नामक अन्न। ३. उक्त अन्न की दाल। ४. उक्त दाल की बनी हुई बड़ी। पुं० =मसूड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसूरिका  : स्त्री० [सं० मसूरा+कन्+टाप्, इत्व] १. चेचक का एक भेद जिसमें शरीर पर मसूर के बराबर दाने निकलते हैं। खसरा। २. कुटनी। दूती।
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मसूरी  : स्त्री० [सं० मसूर+ङीष्] मसूरिका नामक रोग। पुं० [देश] एक प्रकार का पेड़ जो कद में छोटा होता है और शिशिर ऋतु में जिसके पत्ते झड़ जाते हैं। स्त्री०=मसूर। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसूल  : पुं० =महसूल। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसूला  : पुं० [देश] एक प्रकार की पतली लम्बी नाव।
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मसूस  : स्त्री० [हिं० मसूसना] १. मन मसूसने की क्रिया या भाव। २. मन में दबा रहनेवाला कष्ट या दुःख।
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मसूसन  : स्त्री० [हिं० मसूसना] मन मसूसने की क्रिया या भाव। आंतरिक व्यथा।
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मसूसना  : अ० [हिं० मरोड़ना, या फा० अफसोस, प्र० मसोस] १. मरोड़ना। ऐंठना। २. निचोड़ना। ३. मनोवेग को दबाना या रोकना। ४. अच्छी तरह भरा हुआ। उदाहरण—रस में मसूसी रही आलस निवारि कै।—भारतेंदु। अ०=मसोसना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसृण  : वि० [सं० मस्√ऋण (दीप्त होना)+क, पृषो० सिद्धि] १. चिकना। २. मुलायम। ३. चमकीला।
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मसृणा  : स्त्री० [सं० मसृण+टाप्] अलसी।
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मसेरा  : वि० [सं० मसि] [स्त्री० मसेरी] काले रंग का। काला। उदाहरण—वा कटाच्छ ते लिखै मसेरी-नूर मुहम्मद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मसेवरा  : पुं० =मसिऔरा।
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मसोढ़ा  : पुं० [देश] सोना, चाँदी आदि गलाने की घरिया (कूमाऊँ। पुं० =मसूड़ा।
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मसोसना  : अ० [फा० अफसोस] १. मन ही मन कुढ़ना। २. मनोवेग को दबाना या रोकना। अ०=मसूसना।
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मसोसा  : पुं० [फा० अफसोस, हिं, ०मसोसना] १. मन में होनेवाला दुःख या रंज। मानसिक दुःख। २. पश्चात्ताप। पछतावा।
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मसौदा  : पुं० [अ० मसव्विदः] १. लेख, ०लेख्या आदि का व आरम्भिक रूप जिसमें आगे चलकर कुछ काट-छाँट या परिवर्तन किया जाने को हो या किया जा सकता हो। पांडुलिपि। मसविदा। २. किसी काम या बात के संबंध में पहले से सोचा जानेवाला उपाय या युक्ति। क्रि० प्र०—निकालना। मुहावरा—मसौदा गाँठना या बाँधना=अच्छी तरह सोचकर तरकीब या युक्ति निकालना और योजना बनाना।
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मसौदेबाज  : पुं० [अ० मसौदा+फा० बाज (प्रत्यय)] १. अच्छी युक्ति सोचनेवाला। २. चालाक। धूर्त।
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मसौरा  : पुं० =मसिऔरा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस्कर  : पुं० [सं०√मस्क+अरच्] १. वंश। खानदान। २. गति। चाल। ३. ज्ञान। जानकारी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस्करा  : पुं० =मसखरा।
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मस्करी (रिन्)  : पुं० [सं० मस्कर+इनि] १. संन्यासी। २. भिक्षु। ३. चंद्रमा। स्त्री०=मसखरी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस्का  : पुं० =मसका।
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मस्कुर  : पुं० =मसूड़ा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस्खरा  : पुं० =मसखरा।
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मस्जिद  : स्त्री०=मसजिद।
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मस्त  : वि० [फा०] [भाव० मस्ती] १. जो नशे में चूर हो। मदोन्मत। २. जो मद या नशे से युक्त या प्रभावित हो। जैसे—मस्त आँखें। ३. किसी प्रकार के मद से युक्त। जैसे—अपनी जवानी में मस्त। ४. जो किसी पर रीझा हो। किसी के गुण, सौंदर्य आदि पर अनुरक्त। ५. किसी बात या विषय में पूरी तरह से लीन। ६. निश्चित और लापरवाह।
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मस्त-मौला  : पुं० =मस्तराम।
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मस्तक  : पुं० [सं०√मस्+तकन्] मनुष्य के शरीर का सबसे ऊपरी और पशु-पक्षियों के शरीर का सबसे आगेवाला भाग जिसमें आँखें, मुँह कान आदि होते हैं। भाल। मुहावरा—मस्तक ऊँचा रखना= (क) बहुत अच्छा और सम्मानपूर्ण कार्य करना। (ख) प्रतिष्ठा और सम्मानपूर्वक रहना।
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मस्तकी  : स्त्री०=मस्तगी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस्तगी  : स्त्री० [अ० मस्तकी] एक प्रकार का बढ़िया पीला गोंद जो कुछ सदाबहार पेड़ों के तनों को पोंछकर निकाला जाता है। रूमी मस्तगी।
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मस्तराम  : पुं० [फा०+हिं०] वह व्यक्ति जो अपने विचारों, कार्यों आदि में मस्त हो और सांसारिक झगड़ों-प्रपंचों में न पड़ता हो।
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मस्तरी  : स्त्री० [सं० भस्रा] धातु गलाने की भट्ठी (पश्चिम)।
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मस्तान  : वि० =मस्ताना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस्ताना  : वि० [फा० मस्तान] [स्त्री० मस्तानी] १. मस्तों का सा। जैसे—मस्ताना रंग-ढंग, मस्तानी चाल। २. मत्त। मस्त। अ० मस्ती में आना। मस्ती में भरना। स० मस्ती में लाना। मस्त करना।
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मस्तिक  : पुं० =मस्तिष्क। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस्तिकी  : स्त्री०=मस्तगी। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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मस्तिष्क  : पुं० [सं० मस्त√इष्+क, पृषो० सिद्धि] १. मस्तक के अन्दर का गूदा। २. वह मानसिक शक्ति जिसके द्वारा मनुष्य सोचने-समझने आदि का काम करता है। दिमाग। (ब्रेन)। वि० [सं०] १. मस्तिष्क संबंधी। मस्तिष्क का। २. मस्तिष्क में रहने या होनेवाला।
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मस्ती  : स्त्री० [फा०] १. मस्त होने की अवस्था या भाव। मतवालापन। क्रि० प्र०—आना।—उठना।—उतरना।—चढ़ना।—में आना। मुहावरा—मस्ती झड़ना=कष्ट आदि में पड़ने के कारण मस्ती दूर होना। मस्ती झाडना=इतना कष्ट देना कि मस्ती दूर हो जाय। २. सम्भोग की ऐसी प्रबल इच्छा या काम-वासना कि भले-बुरे का विचार न रह जाय। मुहावरा—मस्ती झाडना या निकालना=किसी के साथ प्रसंग करके काम वासना शान्त करना। ३. मद। जैसे—हाथी की मस्ती, ऊँट की मस्ती। क्रि० प्र०—टपकना।—बहना। ४. वह स्राव जो कुछ विशिष्ट वृक्षों, पत्थरों आदि में कुछ विशेष अवसरों पर होता है। जैसे—नीम की मस्ती, पहाड की मस्ती। क्रि० प्र०—टपकना।—बहना।
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मस्तु  : पुं० [सं०√मस् (परिणाम)+तुन्] १. दही का पानी। २. फटे हुए दूध का पानी।
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मस्तूरी  : स्त्री० [सं० भस्रा] धातु गलाने की भट्ठी।
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मस्तूल  : पुं० [पूर्त्त] बड़ी नावों आदि के बीच का वह बड़ा खम्भा जिसमें झंडा या पाल बाँधा जाता है।
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मस्सा  : पुं० =मसा।
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