भ्रम/bhram

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भ्रम  : पुं० [सं०√भ्रम (भ्रांत होना)+घञ्] १. भ्रमण करने की अवस्था या भाव। २. चारों और घूमना। ३. वह अवस्था जिसमें दृष्टिकोण अथवा पुरानी या बँधी हुई धारणा के कारण किसी चीज को कुछ का कुछ समझ लिया जाता है। ४. संदेह। संशय। ५. एक प्रकार का रोग जिसमें रोगी का शरीर चलने के समय चक्कर खाता है और प्रायः जमीन पर पड़ा रहता है। यह रोग मूर्च्छा के अन्तर्गत माना जाता है। ६. बेहोशी। मूर्छा। ७. नाबदान। पनाला। ८. कुम्हार का चाक। वि० १. चक्कर काटने या घूमनेवाला। २. चलने या भ्रमण करनेवाला। पुं० [सं० सम्भ्रम] प्रतिष्ठा। मान।
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भ्रम-मूलक  : वि० [सं० ब० स०, कप्] जिसके मूल में भ्रम हो। भ्रम के कारण उत्पन्न।
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भ्रमकारी (रिन्)  : वि० [सं० भ्रम√कृ (करना)+णिनि, उप० स०] जिससे भ्रम उत्पन्न होता है अथवा जो भ्रम उत्पन्न करता हो।
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भ्रमजाल  : पुं० [सं० ष० त०] सांसारिक मोह का पाश।
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भ्रमण  : पुं० [सं०√भ्रम (घूमना)+ल्युट्—अन] १. घूमना-फिरना। विचरण। २. आना-जाना। ३. देश-विदेश में जाना। देशाटन।( ४. यात्रा। सफर।
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भ्रमणकारी (रिन्)  : वि० [सं० भ्रमण√कृ (करना)+णिनि] भ्रमण करनेवाला।
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भ्रमणी  : स्त्री० [सं० भ्रमण+ङीप्] सैर या मनोविनाद के लिए चलना। घूमना-फिरना। २. जोंक नाम का कीड़ा।
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भ्रमणीय  : वि० [सं०√भ्रम्+अनीयर्] १. घूमनेवाला। २. चलने-फिरनेवाला।
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भ्रमत्कुटी  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] खपच्चियों आदि का बना हुआ बड़ा छाता।
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भ्रमद  : वि० [सं० भ्रम√दा (देना)+[क] [स्त्री० भ्रमदा] भ्रम उत्सन्न करनेवाला। उदा०—हतभागिनी कवित भ्रमदा वस्तुनि लौं भावै।—रत्नाकर।
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भ्रमन  : पुं०=भ्रमण।
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भ्रमना  : अ० [सं भ्रमण] १. घूमना-फिरना। २. चक्कर खाना। अ० [सं० भ्रम] १. भ्रम या धोखे में पड़ना। २. भूलकर इधर-उधर भटकना।
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भ्रमनि  : स्त्री०=भ्रमण। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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भ्रमर  : पुं० [सं०√भ्रम (घूमना)+अरन्] १. भौंरा नाम का फतिंगा। २. उद्धव का एर नाम। ३. दोहे का पहले भेद जिसमें २२ गुरु और ४ लघुवर्ण होते हैं। ४. छप्पय का तिरसठवाँ भेद जिसमें ८ गुरु, १३६ लघु, १४४ वर्ण या कुल और १५२ मात्राएँ होती हैं। ५. साहित्य में चंचल मन वाला वह नायक जो अनेक नायिकाओं से अनुराग अथवा संबंध रखता हो। ६. संत समाज में चंचल मन जो अनेक प्रकार की विषय-वासनाओं का रस लेता रहता है। वि० कामुक। लम्पट।
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भ्रमर सारंग  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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भ्रमर-कंडरक  : पुं० [ष० त०] प्राचीन भारत में मधुमक्खियों की वह पिटारी जिसे चोर साथ रखते थे और कहीं की रोशनी बुझाने के लिए खोल देते हैं।
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भ्रमर-कीट  : पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार की बर्रे।
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भ्रमर-गीत  : पुं० [मध्य० स०] वह गीत जिसमें उद्धव और गोपियों का संवाद हो।
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भ्रमर-गुफा  : स्त्री० [सं०] हठ योग में ब्रह्मरंध्र।
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भ्रमर-ध्वनि  : पुं० [सं० ष० त०] संगीत में, कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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भ्रमर-हंसी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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भ्रमर-हंसी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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भ्रमर-हस्त  : पुं० [सं० मध्य० स०] नाटक के चैदह प्रकार के हस्त-विन्यासों में से एक प्रकार का हस्त-विन्यास।
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भ्रमर-हासिनी  : स्त्री० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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भ्रमरक  : पुं० [सं० भ्रमर+कन्] १. माथे पर लटकनेवाले बाल। जुल्फ। २. भ्रमर। भँवर। ३. खेलने का गेंद।
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भ्रमरच्छली  : स्त्री० [सं० भ्रमर√छल् (धोखा देना)+अच्+ङीष्] एक प्रकार का बहुत बड़ा जंगली वृक्ष जिसके पत्ते बादाम के पत्तों के समान होते हैं और जिसमें बहुत पतली-पतली फलिया लगती हैं।
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भ्रमरपद  : पुं० [ष० त०] एक प्रकार का वृत्त।
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भ्रमरप्रिय  : पुं० [ष० त०] एक प्रकार का कदंब।
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भ्रमरमुखी  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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भ्रमरा  : स्त्री० [सं० भ्रमर+टाप्] भ्रमरछली नामक पौधा।
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भ्रमरातिथि  : पुं० [सं० भ्रमर-अतिथि, ब० स०] चंपा का वृक्ष।
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भ्रमरानंद  : वि० [सं० भ्रमर-आनंद, ब० स०] बकुल वृक्ष।
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भ्रमरावली  : स्त्री० [भ्रमर-आवली, ष० त०] १. भौंरों की पंक्ति या श्रेणी। २. छंद शास्त्र में नलिनी या मनहरण नाम का वृत्त।
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भ्रमरी  : स्त्री० [सं० भ्रमर+ङीष्] १, भ्रमर का स्त्री। भौंरे की मादा। २. पार्वती। ३. मिरगी नामक रोग। ४. जतुका नाम की लता। षटपदी।
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भ्रमरेष्ट  : पुं० [सं० भ्रमर-इष्ट, ष० त०] एक प्रकार का श्योनाक।
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भ्रमरेष्टा  : स्त्री० [सं० भ्रमर-इष्टा, ष० त०] १. भुँई जामुन। २. नारंगी।
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भ्रमवात  : पुं० [सं० मध्य० स०] आकाश का वह वायु-मंडल जो सर्वदा घूमा करता है।
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भ्रमात्मक  : वि० [सं० भ्रम-आत्मन्, ब० स०,+कप्] जिससे अथवा जिसके संबंध में भ्रम उत्पन्न होता हो। भ्रम से युक्त। संदिग्ध।
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भ्रमाना  : स० [हिं० भ्रमना का स०] १. घुमाना-फिराना। २. चक्कर देना। ३. भ्रम या धोखे में डालना।
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भ्रमासक्त  : पुं० [सं० भ्रम-आसक्त, स० त०] वह जो अस्त्र-शस्त्र आदि साफ़ करने का काम करता हो।
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भ्रमि  : स्त्री० [सं० भ्रम+इ]=भ्रमी।
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भ्रमित  : भू० कृ० [सं० भ्रम+इतच्] १. जिसे भ्रम हुआ हो। शंकित। २. जिसे भ्रम में डाला गया हो। ३. घूमता या चक्कर खाता हुआ। ४. जो घुमाया या चक्कर में डाला गया हो।
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भ्रमित-नेत्र  : वि० [सं० ब० स०] ऐंचा-ताना।
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भ्रमी  : स्त्री० [सं० भ्रमी+ङीष्] १. घूमना-फिरना। भ्रमण। २. चक्कर खाना या लगाना। ३. तेज बहते हुए पानी का भँवर। ४. कुम्हार का चाक। ५. एक प्रकार की सैनिक व्यूह-रचना जिसमें सैनिक मंडल बाँधकर खड़े होते हैं। वि० १. भ्रम में पड़ा हुआ। २. भौचक।
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भ्रमीन  : वि०=भाभी। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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