शब्द का अर्थ
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दित :
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भू० कृ० [सं०√दो (खण्डन करना)+क्त इत्व] १. कटा हुआ। २. विभक्त। ३. खंडित। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दितवार :
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पुं०=आदित्यवार (रविवार)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दिति :
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स्त्री० [सं०√दो+क्विच्, इत्व] १. कश्यप ऋषि की एक पत्नी जो दक्ष प्रजापति की कन्या और दैत्यों की माता थी। २.काटने, तोडने-फोड़ने आदि की क्रिया या भाव। वि० देनेवाला। दाता। |
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दिति-कुल :
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पुं० [ष० त०] दैत्यों का कुल या वंश। |
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दितिज :
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वि० [सं० दिति√जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] [स्त्री० दितिजा] दिति से उत्पन्न। पुं०=दैत्य। |
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दित्य :
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पुं० [सं० दिति+यत्] दैत्य। वि० काटे या छेदे जाने के योग्य। जो काटा या छेदा जा सके। |
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दित्सा :
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स्त्री० [सं०√दा (देना)+सन्+अ+टाप्] १. दान करने या देने की इच्छा। २. वह व्यवस्था जिसके अनुसार कोई अपनी संपति का बँटवारा अमुक-अमुक लोगों में अपने मरने के उपरांत चाहता है। (विल) |
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दित्साक्रोड़ :
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पुं० [ष० त०] १. दित्सापत्र के अंत में लिखा हुआ परिशिष्ट रूप में कोई संक्षिप्त लेख या टिप्पणी जो किसी प्रकार की व्यवस्था या स्पष्टीकरण के रूप में होती है। २. दित्सा पत्र का वह अंश जिसमें उक्त प्रकार का लेख हो। (कोडिसिल) |
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दित्सापत्र :
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पुं० [ष० त०] वह पत्र या लेख जिसमें यह निर्देश होता है कि मेरे मरने के उपरांत मेरी संपत्ति अमुक-अमुक लोगों को अमुक-अमुक मात्रा में दी जाय। वसीयतनामा। इच्छापत्र। (विल) |
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दित्सु :
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वि० [सं०√दा (देना)+सन्+उ] १. जो दान करने या देने को इच्छुक हो २. जिसने अपनी संपत्ति के संबंध में दित्सा पत्र लिखा हो। वसीयत करनेवाला। |
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दित्स्य :
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वि० [सं०√दा+सन्+ण्यत्] जो दान किया जा सके। किसी को दिये जाने के योग्य। |
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