घर/ghar

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घर  : पुं० [सं० गृहम्, पा० प्रा० घरम्, उ० गु० ने० पं० बँ० मरा० घर० सिं० घरु० कन्न० सिंह० गर] [वि० घरु, घराऊ, घरेलू] १. ईट, पत्थर, मिट्टी, लकड़ी आदि की वह विशिष्ट वास्तु रचना जो प्रायः दीवारों से घिरी और छतों से पटी हुई होती है और जिसमें लोग अपने परिवार या बाल-बच्चों के साथ रहते हैं, और इसी लिए जिसमें गृहस्थी का भाव भी सम्मिलित है। मकान। (हाउस) मुहावरा–घर आँगन हो जाना=घर का टूट-फूटकर खँडहर या मैदान हो जाना। जैसे–ऐसा सुन्दर घर अब आँगन हो गया। घर का आँगन होना=घर या उसमें रहनेवाले परिवार के सुख-सौभाग्य आदि का ऐसा विस्तार या वृद्धि होना जो सब प्रकार से अभीष्ट तथा शुभ हो। घर घर के हो जाना=अपने रहने का घर न होने के कारण कभी किसी के घर और कभी किसी के घर में जाकर रहना। इधर-उधर मारे-मारे फिरना। उदाहरण– तेरे मारे यातुधान भये घर-घर के।–तुलसी। घर सिर पर उठाना-बहुत कोलाहल करना या शोर मचाना। हो हल्ला करना। २. (क) उक्त प्रकार के भवन या रचना का कोई ऐसा अलग खंड या विभाग जिसमें स्वतंत्र रूप से कोई परिवार रहता हो। किसी परिवार का निवास-स्थान। (ख) उक्त खंड या विभाग में रहनेवाला परिवार। जैसे–इस मकान के चारों घरों से एक-एक रुपया मिला है। ३. उक्त में एक साथ रहनेवालों की पूरी समाजिक इकाई। एक ही मकान या उसके विभाग में एक साथ रहनेवाले परिवार या रिश्ते-नाते के सब लोग। जैसे–(क) आज घर भर मेला देखने जायगा। (ख) घर के सब प्राणियों को ब्याह न्योता मिला है। (ग) हैजे में घर के घर तबाह हो गये। मुहावरा–घर करना= (क) बसने या स्थायी रूप से रहने के लिए अपना निवास स्थान बनाना। जैसे–जंगल में घर बनाना। (ख) घर-गृहस्थी का ऐसा ठीक और पूरा प्रबंध करना कि परिवार के सब लोगों का ठीक तरह से निर्वाह होता रहे। (ग) पुरुष और स्त्री का पति-पत्नी के रूप में रहकर गृहस्थी चलाना। जैसे–आओ मीता,घर करें, आया सावन मास।–स्त्रियों का गीत। (किसी काम को) घर का रास्ता समझना= (क) बहुत ही सरल या सुगम समझना। (ख) सामान्य और सुपरिचित समझना। घर के घर=अंदर-ही अंदर और गुप्त रूप से। बिना औरों को या बाहरी लोगों को जतलाये। जैसे–सब झगड़े घर के घर तै हो गये। घर के घर रहना=लेन-देन,व्यवहार,व्यापार आदि में ऐसी स्थिति में रहना कि न तो कुछ आर्थिक लाभ हो और न ही हानि। (किसी का) घर चलान=(क) किसी को इस, प्रकार नष्ट या बरबाद करना कि उसकी बहुत बड़ी आर्थिक हानि हो अथवा मान-मर्यादा नष्ट हो जाय। (ख) किसी परिवार में अशांति,कष्ट,वैमनस्य आदि उत्पन्न करना। घर चलाना=घर के व्यय आदि का निर्वाह और प्रबंध करना। घर जमाना=घर-गृहस्थी की सभी उपयोगी चीजें एकत्र करना जिसमें सब आवश्यकताएँ पूरी होती रहें। (किसी के) घर तक पहुँचना=किसी को माँ-बहन तक की गालियाँ देना। (किसी का) घर देख पाना या देख लेना=एक बार कहीं से उद्देश्य-सिद्धि या फल प्राप्ति हो जाने पर परच जाना और प्रायः उसी ओर प्रवृत्त होना। जैसे– अब तो इन्होंने घर देख लिया है, नित्य पहुँचा करेगे। (किसी स्त्री का किसी के) घर पड़ना=किसी के घर जाकर पत्नी भाव से रहना। (दर,लागत या भाव के विचार से कोई चीज) घर पड़ना=भाव,लागत,व्यय आदि के विचार से किसी चीज की दर या दाम ज्ञात या स्थिर होना। जैसे–ये मोजे दस रूपये दरजन तो घर पड़ते हैं, यदि ग्यारह रुपये दरजन भी न बिकें तो हमें क्या बचेंगा। (दूकानदार) (किसी का) घर फोड़ना=किसी परिवार में उपद्रव, कलह या लड़ाई झगड़ा खड़ा करना। जिसमें उसी घर के रहनेवाले एक दूसरे से अलग हो जाना चाहें। (अपना) घर बनाना=आर्थिक दृष्टि से अपना घर संपन्न और सुखी करना। (किसी का) घर बसना=विवाह हो जाने और घर में पत्नी के आ जाने के कारण घर आबाद होना। (किसी का) घर बिगाड़ना= (क) किसी के घर की समृद्धि नष्ट करना। घर तबाह करना। (ख) घर में फूट फैलाना। घर के लोगों में परस्पर लड़ाई कराना। (ग) किसी की बहू-बेटी को बुरे मार्ग पर ले जाना। (स्त्री का किसी पुरुष के) घर बैठना=किसी के घर जाकर पत्नी भाव से रहने जाना। घर बैठे=बिना कोई विशेष परिश्रम या प्रयास किये। जैसे–अब सारा काम घर बैठे हो जायगा। (अपना या किसी का) घर भरना=घर को धन-धान्य से पूर्ण करना। जैसे–इन्होंने जन्म भर अपना (या अपने मालिक का) घर भरने के सिवा किया ही क्या है। (किसी स्त्री को) घर में डालना=उपपत्नी या रखेली बनाकर अपने घर में रख लेना। घर से-अपने पास से। पल्ले से। जैसे–हमें तो घर से सौ रुपये निकाल कर देने पड़े। घर सेना-घर में चुपचाप और व्यर्थ पड़े रहना,बाहर न निकलना। घर से बाहर पाँव या पैर निकालना=किसी प्रकार के कुमार्ग या दुष्कर्म में प्रवृत्त को काम करना। पद-घर का= (क) निज का। अपना। जैसे–घर का मकान या बगीचा, घर के लोग।(ख) आपस के लोगों का। जिससे परायों या बाहरवालों का कोई संबंध न हो। जैसे–घर का झगड़ा, घर की पूँजी। (ग) स्त्री की दृष्टि से उसका पति या स्वामी। उदाहरण–घर के हमारे परदेस को सिधारे यातें दया करि बूझीए हम रीति राहवारे की।–कविंद। घर का अच्छा= (क) कुल, शील आदि के विचार से श्रेष्ठ। (ख) आर्थिक दृष्टि से संपन्न और सुखी। घर का उजाला=परिवार, वंश आदि की मान-मर्यादा बढ़ानेवाला व्यक्ति। घर का न घाट का=जिसके रहने का ठीक-ठिकाना या कोई निश्चित स्थान न हो। जैसे–धोबी का कुत्ता घर का न घाट का। (कहा०) घर का बहादुर, मर्द या शेर=वह जो अपने घर के अंदर या घर के लोगों के सामने ही बहादुरी की डींग हाँकता हो, बाहरी लोगों के सामने दब जाता हो। घर की खेती=ऐसा काम,चीज या बात जो अपने घर में आप से आप या अपने साधारण परिश्रम से यथेष्ट परिमाण में मिल या हो सकती हो। घर के बाढ़े-जो अपने घर में ही रहकर बड़ा हुआ हो, परन्तु जिसे अभी बाहरवालों के सामने कुछ कर दिखाने का अवसर न मिला हो अथवा ऐसी शक्ति न आई हो। घर ही का बहादुर या शेर। उदाहरण–द्विज देवता घरहिं के बाढ़।–तुलसी। घर में= (क) स्त्री०। जोरू। घरवाली। जैसे–उनके घर में बीमार हैं। (ख) पति। स्वामी। जैसे–हमारे घर में परसों बाहर गये हैं। (स्त्रियाँ) घरवाला=स्त्री के विचार से, उसका पति। जैसे–अपने घरवाले को भी साथ ले आती। घरवाली=पति के विचार से, उसकी पत्नी। जैसे–जरा घरवाली से भी पूछ लो। घर से= (क) पति के विचार से ,उसकी पत्नी। घरवाली। जैसे–उनके घर से भी साथ आयी हैं। (ख) स्त्री के विचार से, उसका पति। घरवाला। अँधेरे घर का उजाला= (क) वह जिससे किसी छोटे या साधारण घर की मर्यादा, शोभा आदि भी बहुत अधिक बढ़ जाती हो। (ख) परम रूपवान या सुन्दर (अथवा सुन्दरी)। ४. किसी परिवार के रहने के स्थान की सब चीजें। गृहस्थी की सब सामग्री। घर का सारा समान। मुहावरा–घर फूँककर तमाशा देखना=अपना सब कुछ नष्ट करके किसी प्रकार आनंद लेना या सुख भोगना। (ऐसे अनुचित और निंदनीय कार्यों के संबंध में प्रयुक्त जो बहुत अधिक व्यय साध्य हों) ५. प्रतिष्ठा, मान-मर्यादा, वैभव आदि के विचार से कोई गृहस्थी या परिवार। खानदान। घराना। जैसे–अब भी वहाँ कई पुराने रईसों के घर बचें है। ६. स्थायी रूप से गृहस्थी या परिवार बनाकर रहने के लिए उपयुक्त स्थान। जैसे–लड़की (के विवाह) के लिए कोई अच्छा घर ढूँढ़ना। उदाहरण–जो घर बर कुल होय अनूपा।–तुलसी। ७. वह स्थान जहाँ रहने पर वैसा ही सुख और सुभीते मिलते हों, जैसा सुख और सुभीते स्वयं अपने घर या निवास स्थान पर मिलते हैं। जैसे–(क) इसे भी आप अपना घर समझें। (ख) सब बच्चों को उन्होंने सदा घर की तरह रखा था। ८. पशु-पक्षियों आदि के रहने की जगह। जैसे–चूहे जमीन के अन्दर और तोते पेडों पर अपना घर बनाते हैं। ९. केला, बाँस, मूँज आदि के पौधों का एक जगह और बहुत पास-पास या एक साथ उगा हुआ समूह। झुरमुट। जैसे–उनके बगीचे में केले के ५-६ घर हैं। १॰. वह स्थान जहाँ कोई काम,चीज या बात की अधिकता या प्रचुरता से देखने में आती अथवा होती हो। जैसे–(क) कश्मीर शोभा और सौन्दर्य का घर है। (ख) यहाँ का जंगली क्षेत्र मलेरिया (या साँपों) का घर है। (ग) नगर का वह भाग गुडों और बदमाशों का घर है। ११. वह चीज या बात जिससे कोई दूसरी चीज या बात निकलती या पैदा होती हो। जैसे–रोग का घर खाँसी, लड़ाई का घर हाँसी। (कहा०) १२. वह स्थान जहाँ किसी मनुष्य अथवा उसके पूर्वजों का जन्म, पालन-पोषण आदि हुआ हो। जन्म-भूमि या स्वदेश। जैसे–घर तो उनका पंजाब में था पर वे बहुत दिनों से बंगाल में जाकर बसे थे। १३. वह स्थान जो किसी विशिष्ट उद्देश्य की पूर्ति या कार्य की सिद्धि के लिए उपयुक्त या ठीक हो, अथवा उसके लिए बनाया या रक्षित किया गया हो। जैसे– कल-घर (जिसमें पानी या नल लगा हो), पूजा-घर(जहाँ देवता की मूर्ति और पूजन की सामग्री रहती हो।) रसोई घर आदि। १४. वह स्थान जहाँ जनता को कुछ विशिष्ट चीजें या बातें अपने उपयोग या व्यवहार के लिए नियमित रूप से और सुगमतापूर्वक प्राप्त होती हों। जैसे–टिकटघर, रेलघर। १५. वह स्थान जहाँ किसी विशिष्ट प्रकार का उत्पादन कार्य नियमित और व्यवस्थित रूप से होता हो। जैसे–पुतलीघर, बिजलीघर। 1६. वह स्थान जहाँ किसी विशिष्ट प्रकार का सार्वजनिक काम करने के लिए अनेक कर्मचारी एकत्र होते हों। जैसे– डाकघर, तारघर। १७. किसी अलमारी, संदूक आदि में अलग-अलग चीजें रखने के लिए बने हुए चौकोर खाने। जैसे–इस संदूक में कागज-पत्र, गहने, रुपये-पैसे आदि रखने के लिए अलग-अलग घर बने हैं। १८. कोई चीज रखने का डिब्बा या चोंगा। खाना। (केस) जैसे– अँगूठी, चश्मे या तलवार का घर। १९. किसी तल पर खड़ी और बेड़ी रेखाओं से किये हुए खंड या विभाग। कोण। खाना। जैसे– चौसर या शतरंज की बिसात के घर। २॰. कोई चीज जमाकर बैठने, ऱखने या लगाने के लिए बना हुआ चौखटा, छेद या स्थान। जैसे–अँगूठी में नगीने का घर, तसवीर का घर (अर्थात् चौखटा)। २१. आकाश में क्षितिज के उत्तर दक्षिण वृत्त के मुख्य बारह विभागों में से हर एक जो फलित ज्योतिष में जन्म कुंडली बनाने के समय ग्रहों की स्थिति दिखाने के काम आता है। ये विभाग राशि-चक्र के सूचक होते हैं और इनमें से प्रत्येक में किसी ग्रह के पहुँचने का अलग-अलग प्रकार या प्रभाव या फल माना जाता है। जैसे–चौथा, छठा या नवाँ घर। २२. किसी वस्तु के टिके, ठहरे या रुके रहने की कोई जगह। जैसे–पानी ने छत में स्थान-स्थान पर घर कर लिया है। मुहावरा–(किसी चीज का कही) घर करना=किसी वस्तु का अपने जमने या ठहरने के लिए उपयुक्त स्थान बनाना। जैसे–दो-चार दिनों में जूते में पैर घर कर लेता है। (किसी चीज का) चित्त या मन में घर करना=अपने गुण,रूप आदि के कारण किसी को इतना पसंद आना कि उसका ध्यान सदा बना रहे। अत्यन्त प्रिय होना। २३. किसी बात या व्यक्ति का उपयुक्त तथा नियत स्थान या स्थिति। मुहावरा–(कोई काम या बात) घर तक पहुँचाना=पूर्णता या समाप्ति तक पहुँचाना। जैसे–जो काम हाथ में लिया है, पहले उसे घर तक पहुँचाओ। (किसी व्यक्ति को उसके) घर तक पहुँचाना=ऐसी स्थिति में पहुँचाना या ले जाना कि उसका वास्तविक स्वरूप सब लोगों पर प्रकट हो जाए। जैसे–झूठे को उसके घर तक पहुँचाना चाहिए। (अर्थात् उसे झूठा सिद्ध कर देना चाहिए।) (आग या दीया) घर करना=ठंढ़ा करना। बुझाना।(मंगल-भाषित) २४. आघात, प्रहार या वार करने अथवा उससे बचने या उसे रोकने का कोई विशिष्ठ ढंग या प्रकार। दाँव। पेंच। जैसे–वह कुश्ती (तलवार या पटा-बनेठी) के सब घर जानता है। पद-घर-घाट। (देखें)। मुहावरा–(प्रहार में) घर खाली छोड़ना या देना=वार करते हुए भी आघात या प्रहार न करना बल्कि जान-बूझकर खाली जाने देना। (बार का) घर बनाना=अपने कौशल या चातुरी से प्रहार या वार विफल करना। जैसे– कई घर तो तुम बचा गये, पर इस बार जरा सँभलकर रहना। २५. संगीत में, किसी तान, बोल या स्वर की नियत और मर्यादित सीमा। जैसे–(क) यह तान ठीक नहीं आई, जरा फिर से और ठीक घर में कहो। (ख) यह चिड़िया कई घर बोलती है। 2६. गुदा या भग (बाजारू)
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घर-गृहस्थ  : पुं० [हिं० घर+सं० गृहस्थ] वह व्यक्ति जो अपने परिवार के साथ रहता हो और गृहस्थी के निर्वाह के लिए सब काम-काज करता हो।
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घर-गृहस्थी  : स्त्री० [हिं० घर+गृहस्थी] १. घर में रहनेवाले परिवार के सदस्य और उनकी सब वस्तुएँ। जैसे–घर-गृहस्थी यहाँ से उठाकर अब कहाँ जाएँ। २. परिवार के लोग।
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घर-घराना  : पुं० [हिं० घर+घराना] १. आर्थिक, सामाजिक आदि दृष्टियों से संपन्न और प्रतिष्ठित परिवार। २. कुल या वंश और उसकी मर्यादा आदि। जैसे–पहले उनका घर-घराना देख लेना तब विवाह की बात करना।
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घर-घाट  : पुं० [हिं०] १. किसी काम या बात के वे महत्वपूर्ण अंग या पक्ष जिनकी ठीक और पूरी जानकारी होनेपर वह काम या बात अच्छी तरह और सुगमतापूर्वक पूरी या संपन्न होती है। जैसे– कुश्ती, चित्रकारी, रोजगार या संगीत के घर-घाट। २. किसी चीज की बनावट के विचार से उसके उतार-चढ़ाव या सुडौल गठन। जैसे–कटार या तलवार का घर-घाट। ३. अपनी विशिष्ट प्रकार की मनोवृत्ति के अनुसार किसी व्यक्ति का कार्य अथवा व्यवहार करने का कौशल, ढंग या प्रणाली। जैसे–पहले यह तो समझ लो कि वह किस (या कैसे) घर-घाट का आदमी है। ४. उचित और उपयुक्त स्थिति। ठौर-ठिकाना। जैसे–पहले अपना पेट पालने का तो घर-घाट कर लो, फिर ब्याह भी होता रहेगा।
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घर-घालक  : वि० [हिं० घर+घालक=घालनेवाला] १. दूसरों का घर घालने या बिगाड़ने वाला। २. अपने कुल या वंश को कलंकित या बरबाद करनेवाला।
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घर-घालन  : पुं० [हिं० घर+घालना] अपना या दूसरों का घर कलंकित या बरबाद करना। वि०=घर-घालक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घर-घुसड़ू  : वि०=घर-घुसना।
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घर-घुसना  : वि० [हिं० घर+घुसना=घुसा रहनेवाला] [स्त्री० वि० घर-घुसनी] (व्यक्ति) जो प्रायः घर में और विशेषतः स्त्रियों के पास बैठा रहता हो, बाहर घूमता-फिरता या काम-काज न करता हो अथवा कम रहता हो।
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घर-घुसा  : वि०=घर-घुसना।
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घर-चित्ता  : पुं० [हिं० घर+चीतर] घरों आदि में रहनेवाला एक प्रकार का साँप।
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घर-जँवाई  : पुं० [हिं० घर+जँवाई=जामाता] वह जँवाई या दामाद जिसे ससुर ने अपने ही घर में रख लिया हो। ससुराल में स्थायी रूप से रहनेवाला दामाद। घर-दमाद।
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घर-जाया  : पुं० [हिं० घर+जाया=पदा] [स्त्री० घर-जायी] गृह-स्वामी की दृष्टि से, उसके घर में उत्पन्न होनेवाला दासी-पुत्र।
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घर-जुगत  : स्त्री० [हिं० घर+सं० युक्ति] घर-गृहस्थी के सब काम-कम या थोड़े खर्च में अच्छी तरह चलाने की युक्ति या योग्यता।
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घर-झँकना  : वि० [हिं० घर+झाँकना] [स्त्री० घर-झँकनी] बारी-बारी से लोगों के घर व्यर्थ जाकर तुरन्त ही लौट आनेवाला।
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घर-दमाद  : पुं०=घर-जंवाई।
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घर-दासी  : स्त्री० [हिं० घर+सं० दासी] गृहिणी। २. पत्नी।
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घर-द्वार  : पुं०=घर-बार।
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घर-फोड़ा  : वि० [हिं० घर+फोड़ना] [स्त्री० वि० घर-फोड़ी] १. (व्यक्ति) जो दूसरों के घरों में कलह या विरोध उत्पन्न कराता हो अथवा उसके सदस्यों को आपस में लड़ाता हो। २. अपने ही परिवार के सदस्यों से लड़-झगड़ कर उन्हें अलग रहने के लिए विवश करनेवाला।
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घर-फोरा  : वि०=घर-फोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घर-बंद  : वि० [हिं०] १. घर में बंद किया हुआ। २. पूर्णतया अधिकार में लिया हुआ। जैसे–विद्या किसी के घर बंद नहीं है।
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घर-बसा  : पुं० [हिं० घर+बसना] [स्त्री० घर-बसी] १. स्त्री की दृष्टि से उसका पति या स्वामी जिसके कारण उसका घर बसा हुआ माना जाता अथवा रहता है। उदाहरण–एहो घर-बसे,आजु कौन घर बसे हो।–घनानंद। २. उपपति। यार।
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घर-बार  : पुं० [हिं० घर+बार=द्वार] १. वह स्थान जहाँ कोई स्थायी रूप से रहता या काम-काज करता हो। जैसे– आपका घर-बार कहाँ है ? २. घर और घर के सब काम-काज। जैसे– अपना घर-बार अच्छी तरह से देखो। ३. घर-गृहस्थी की सब सामग्री।
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घरऊ  : वि०=घराऊ (घरू)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरघराना  : अ० [अनु० घर० घर] [भाव० घरघराहट] कफ के कारण गले से साँस लेते समय घर-घर शब्द निकलना या होना। स० घर-घर शब्द उत्पन्न करना।
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घरघराहट  : स्त्री० [अनु० घर्र० घर्र] घर-घर शब्द होने की क्रिया या भाव। जैसे–कफ के कारण गले में होने वाली घरघराहट।
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घरट्ट(क)  : पुं० [सं०√घृ (सींचना) +विच्, घर्√अट्ट (गति)+ अण्, उप० स०] [घरट्ट+कन्] [स्त्री० अल्पा० घर्राट्टिका] हाथ से चलाई जानेवाली चक्की। जाँता।
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घरण(णि)  : स्त्री०=घरनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरदारी  : स्त्री० [हिं० घर+फा. दारी] घर में रहकर किया जानेवाले गृहस्थी के काम-काज।
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घरद्वारी  : स्त्री० १. दे० ‘घर-पत्ती’। २. दे० ‘घर-बारी’।
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घरन  : स्त्री० [देश०] पहाड़ी भेड़ों की एक जाति। जुँबली।
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घरनई  : स्त्री०=घड़नई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरनाल  : स्त्री० [हिं० घर+नाली] पुरानी चाल की एक प्रकार की तोप। रहकला।
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घरनी  : स्त्री० [सं० गृहिणी] १. गृह-स्वामिनी। २. पत्नी। भार्या। जैसे–बिन घरनी घर भूत का डेरा।(कहा०)
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घरपत्ती  : स्त्री० [हिं० घर+पत्ती=भाग] किसी जातीय या सार्वजनिक कार्य की अभिपूर्ति के लिए संबंधित घरों या परिवारों से लिया जानेवाला सहांश। चंदा। बेहरी।
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घरपरना  : पुं० [हिं० घर+परना=बनाना] कच्ची मिट्टी का गोल पिंडा जिस पर ठठेरे घरिया बनाते हैं।
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घरबंदी  : स्त्री० [हिं० घर+बंदी=बाँधना] १. अपराधी या अभियुक्त को उसके घर में कैद करने की आज्ञा, क्रिया या भाव। २. चित्रकला में, अलग-अलग पदार्थ दिखाने के लिए पहले छोटे-छोटे बिन्दुओं से उनका स्थान घेरकर उनके विभागों के लिए स्थान नियत करना।
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घरबसी  : वि० स्त्री० [हिं० घर+बसना] १. घर बसाने वाली (अर्थात् पत्नी)। २. घर की समृद्धि बढ़ानेवाली। भाग्यवती। ३. उपपत्नी। रखेली।
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घरबारी  : पुं० [हिं० घर+बार] स्त्री, बाल-बच्चों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहने तथा उनका भरण-पोषण करनेवाला व्यक्ति। गृहस्थ।
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घरबैसी  : स्त्री० [हिं० घर+बैठना] वह स्त्री जो पत्नी बनाकर घर में बैठा या रख ली गई हो। उपपत्नी। रखेली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरम  : पुं० [सं० घर्म] घाम। धूप।
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घरमकर  : पुं०=घर्मकर (सूर्य)।
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घरयार  : पुं०=घड़ियाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरर-घरर  : पुं० [अनु०] वह शब्द जो किसी कड़ी वस्तु को दूसरी कड़ी वस्तु पर रगड़ने से होता है। रगड़ का शब्द।
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घररना  : स० [अनु० घरर० घरर] १. घरर-घरर शब्द उत्पन्न करना। २. किसी कड़ी चीज को किसी दूसरी कड़ी चीज पर इस प्रकार रगड़ना कि घरर-घरर शब्द उत्पन्न करने लगे। अ० घरर-घरर शब्द होना।
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घरवात  : स्त्री० [हिं० घर+वात (प्रत्यय)] घर-गृहस्थी का सामान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरवाला  : पुं० [हिं० घर+वाला (प्रत्यय)] १. घर का मालिक। गृह-स्वामी। २. स्त्री की दृष्टि से उसका पति। जैसे–तुम्हारा घरवाला क्या काम करता है ?
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घरवाली  : स्त्री० [हिं० घर+वाली (प्रत्यय)] १. घर की मालकिन। गृह-स्वामिनी। २. पति की दृष्टि से उसकी पत्नी या स्त्री। जैसे–आज-कल आपकी घरवाली शायद कहीं गई है।
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घरवाहा  : पुं० [हिं० घर+वा या वाहा (प्रत्य)] १. छोटा-मोटा घर। २. घरौंदा।
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घरसा  : पुं० [सं० घर्ष] =घिस्सा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरहाँई  : वि० [हिं० घरहाया का स्त्री रूप] १. अपने घर अथवा दूसरों के घरों में झगड़ा लगाने या फूट डालनेवाली (स्त्री)। २. अपने अथवा दूसरों के घरों की फूट या लड़ाई-झगड़े की बातें इधर-उधर कहने वाली।
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घरहाया  : वि० [हिं० घर+घात] [स्त्री० घरहाई] घर में मत-भेद उत्पन्न करने, फूट डालने या लड़ाई-झगड़ा करानेवाला।
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घरा  : पुं०=घड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घराऊ  : वि० [हिं० घर+आऊ (प्रत्यय)] घर में होने अथवा उससे संबंध रखनेवाला। जैसे– घराऊ कलह।
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घराट  : वि० [?] भीषण। विकट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घराड़ी  : स्त्री० [हिं० घर+आड़ी (प्रत्यय)] वह स्थान जहाँ कोई व्यक्ति और उसके पूर्वज बहुत दिनों से रहते चले आये हों। डीह।
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घराती  : पुं० [हिं० घर+आती (प्रत्यय)] विवाह में, कन्या पक्ष के लोग। ‘बराती’ का विपर्याय।
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घराना  : पुं० [हिं० घर+आना(प्रत्यय)] कुल। खानदान। वंश। (विशेषतः प्रतिष्ठित और सम्पन्न।
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घराँव  : पुं० [हिं० घर] घर का-सा संबंध। मेल-जोल। घनिष्ठता। उदाहरण– दोनों परिवारों में इतना घराँव था कि इस संबंध का हो जाना कोई आसाधारण बात न थी।–प्रेमचन्द्र।
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घरिआर  : पुं०=घड़ियाल।
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घरिआरी  : वि०=घड़ियाली।
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घरिणी  : स्त्री० [सं० घर+इनि-ङीष्] घरनी (पत्नी)।
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घरियक*  : क्रि० वि० [हिं० घरी (घड़ी)+सं० एक] घड़ी भर। बहुत थोड़े समय तक।
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घरिया  : स्त्री० [हिं० घरा (घड़ा)+इया(प्रत्यय)] १. छोटा घड़ा। २. मिट्टी का प्याला या हाँड़ी। ३. मिट्टी का वह छोटा प्याला जिसमें आँच देने से धातु की मैल कटकर ऊपर आ जाती है। घड़िया।
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घरियाना  : स० [हिं० घरी] कागज, कपड़े आदि की तह लगाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरियार  : पुं० =घड़ियाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरियारी  : पुं०=घड़ियाली (घंटा बजानेवाला व्यक्ति)।
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घरी  : स्त्री० [?] तह। परत। स्त्री०=घड़ी।
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घरीक  : क्रि० वि० [हिं० घर+एक] घड़ी भर अर्थात् बहुत थोड़े समय के लिए।
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घरुआ  : पुं० [हिं० घर+वा (प्रत्य०)] घर-गृहस्थी का अच्छा प्रबंध। वि० घर का। घर-संबंधी।
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घरुआदार  : पुं० [हिं० घर+फा० दार] [स्त्री० घरुआ-दारिन, भाव घरुआदारी] १. घर या गृहस्थी का उत्तम प्रबंध करनेवाला व्यक्ति। २. वह जो समझ-बूझकर गृहस्थी का खर्च चलाता हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरुआदारी  : स्त्री० [हिं० घर+दारी] घर का उत्तम प्रबंध करने का भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरुमना  : अ० १. =घुमड़ना। २. =घूमना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरुवा  : पुं०=घरुआ।
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घरू  : वि० [हिं० घर+ऊ(प्रत्यय)] घर का। १. जिसका संबंध स्वयं अपने घर या गृहस्थी से हो। घरेलू। २. आपसदारी का। निजी।
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घरेला  : वि०=घरेलू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घरेलू  : वि० [हिं० घर+एलू(प्रत्यय)] १. घर का। घर-संबंधी। जैसे– घरेलू झगड़ा। २. (कार्य या व्यवहार) जो अपने घर या आपसदारी से संबंध रखता हो। निजी। ३. (धंधा) जो घर के अंदर बैठकर किया जाय। जैसे–घरेलू उद्योग-धन्धे। ४. (पशु) जो घर में रखकर पाला-पोसा गया हो। पालतू।
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घरैया  : वि०=घराऊ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० १. अपने घर का आदमी। २. बहुत ही निकट का संबंधी।
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घरोप  : पुं० [हिं० घर+ओप(प्रत्यय)] घर के लोगों का सा आपसी व्यवहार। घनिष्ठ संबंधी।
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घरौंदा  : पुं० [हिं० घर+औंदा (प्रत्यय)] १. छोटा घर। २. कागज, मिट्टी आदि का छोटा घर जिससे बच्चे आदि खेलते हैं। ३. लाक्षणिक अर्थ में कोई अस्थायी या नश्वर वस्तु।
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घरौना  : पुं० दे० ‘घरौंदा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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घर्घर  : पुं० [सं० घर्घ√रा(दान)+क] पुरानी चाल का ताल देने का एक प्रकार का बाजा। पुं० [अनु०] किसी भारी चीज के चलने से होनेवाली कर्कश ध्वनि। जैसे–गाड़ी,चक्की या मशीन की घर्घर।
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घर्घरक  : पुं० [सं० घर्घर+कन्] घाघरा नदी।
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घर्घरा(री)  : स्त्री० [सं० घर्घर+टाप्] [घर्घर+ङीष्] १. एक प्रकार की वीणा। २. घुँघरूदार करधनी। ३. घुँघरू या छोटी घंटी।
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घर्म  : पुं० [सं०√घृ (क्षरण)+मक्] १.अग्नि या सूर्य का ताप। गरमी। २. धूप। ३. गरमी के दिन। गीष्मकाल। ४. पसीना। ५. पतीला। ६. एक प्रकार का यज्ञ।
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घर्म-बिंदु  : पुं० [ष० त० ] पसीना।
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घर्माक्त  : वि० [घर्म-अक्त,तृ० त०] पसीने से तर या लथ-पथ।
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घर्माबु  : पुं० [घर्म-अंबु,ष० त०] पसीना।
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घर्मार्द्र  : वि० [घर्म-आर्द्र,तृ० त० ] पसीने से लथ-पथ।
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घर्माशु  : पुं० [घर्म-अंशु, ब० स०] सूर्य।
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घर्मोदक  : पुं० [घर्म-उदक, ष० त०] पसीना।
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घर्रा  : पुं० [अनु० घरर-घरर =घिसने या रगड़ने का शब्द] १. एक प्रकार का अंजन जो आँख आने पर लगाया जाता है। २. गले में कफ रुकने के कारण होनेवाली घरघराहट। मुहावरा–घर्रा चलना या लगना=मरने के समय गले में कफ रुकने के कारण साँस का घर-घर करते हुए रुक-रुककर चलना। घुँघुरू बोलना। घटका लगना। ३. जेल के कैदियों को दिया जानेवाला वह कठोर दंड जिसमें उन्हें मोट खींचने या कोल्हू पेरने में लगाया जाता है।
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घर्राटा  : पुं० [अनु० घर्र+आटा (प्रत्यय)] १. घर्र-घर्र का शब्द। २. गहरी नींद के समय कुछ लोगों की नाक में से निकलनेवाला शब्द। खर्राटा। मुहावरा– घर्राटा मारना या लेना=गहरी नींद में नाक से घर्र-घर्र शब्द निकालना। गहरी नींद सोना।
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घर्रामी  : पुं० [?] वह राज या मिस्त्री जो छप्पर छाने का काम करता हो। छपरबंद।
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घर्ष  : पुं० [सं०√घृष् (घिसना)+घञ्] १. रगड़। घर्षण। २. टक्कर। ३. संघर्ष। ४. पसीना।
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घर्षण  : पुं० [सं०√घृष्+ल्युट-अन] [भू० कृ० घृष्ट] १. रगड़ने की क्रिया या भाव। घिस्सा। रगड़ (फ्रिक्शन) २. लाक्षणिक अर्थ में, दो व्यक्तियों या विचारधाराओं में होनेवाला पारस्परिक विरोधजन्य संघर्ष।
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घर्षणी  : स्त्री० [सं० घर्षण+ङीष्] हरिद्रा। हलदी।
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घर्षित  : भू० कृ० [सं० घृष्ट] १. घिसा, पिसा या रगड़ा हुआ। २.अच्छी तरह माँजा हुआ।
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