गढ़/gadh

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गढ़  : पुं० [सं० गड़=खाई] [स्त्री० अल्पा०गढ़ी] १. ऐसा किला जिसके चारों ओर खन्दक या खाई खुदी हों। २. किला। कीट। दुर्ग। मुहावरा–गढ़ जीतना या तोड़ना= (क) युद्ध में किसी किले पर अधिकार प्राप्त करना। (ख) कोई बहुत बड़ा या विकट संपन्न करना। ३. काठ का बड़ा सन्दूक जिसका उपयोग प्राचीन काल में युद्ध में होता था। ४. किसी विशिष्ट प्रकार के कार्य अथवा व्यक्तियों का केन्द्र अथवा प्रसिद्ध और मुख्य स्थान। बहुत बड़ा अडडा। जैसे–(क) यह मुहल्ला तो गुड़ों या बदमाशों का गढ़ है। (ख) कलकत्ता या बम्बई पूँजीपतियों के गढ़ हैं।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
गढ़कप्तान  : पुं० [हिं० गढ़+अं० कैप्टेन] गढ़ या किले का प्रधान अधिकारी।
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गढंत  : स्त्री० [हिं० गढ़ना] १. कोई चीज गढ़कर तैयार करने या बनाने की क्रिया या भाव। गढन। (देखें) २. अपने मन से गढ़कर कहीं जानेवाली बात। कपोल-कल्पित बात। जैसे–समय पर इनकी अनोखी गढंत ने हमें बचा लिया। ३. कुश्ती लड़ने के तीन प्रकारों में से एक, जिसमें लड़नेवाले पहलवान आपस में अच्छी तरह गठ या गुथ जाते हैं। वि० (कथन या विचार) जो वास्तविक न हो, बल्कि यों ही अपने मन से गढ़कर या तैयार किया या बनाया गया हो। कपोल-कल्पित। जैसे–इनकी सब बातें इसी तरह की गढ़ंत होती है।
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गढ़त  : स्त्री० १. गढ़न। २. गढ़ंत।
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गढ़न  : स्त्री० [हिं० गढ़ना] १. गढ़ने या गढ़े जाने की क्रिया, ढंग या भाव। २. बनावट। रचना।
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गढ़ना  : स० [सं० घटन,प्रा० घड़न,पश्चिमी हिं० घड़ना] १. कोई नयी चीज बनाने के लिए किसी स्थूल पदार्थ की काट, छील या तराशकार तैयार या दुरस्त करना। कारीगरी से निर्मित करना या बनाना। जैसे–पत्थर की मूर्ति या चाँदी-सोने के गहनें गढऩा। २. किसी को काट छाट या छील-तराशकर सुन्दर और सुडौल रूप में लाना। जैसे–दरवाजे का पल्ला गढ़ना। ३. परिश्रम तथा मनोयोग से अच्छी तरह और सुन्दर रूप में कोई काम करना। जैसे-गढ़-गढ़कर लिखना। ४. अपने मन से कोई कल्पित बात बनाकर अथवा कोई बात नमक-मिर्च लगाकर सुन्दर रूप में उपस्थित या प्रस्तुत करना। जैसे–गढ़-गढ़कर बातें करना। ५. किसी को ठीक रास्ते पर लाने के लिए खूब मारना पीटना। जैसे–मैं किसी दिन तुम्हें गढ़कर ठीक करूँगा। मुहावरा–(किसी की) हड्डी पसली गढ़ना=खूब मारना या पीटना।
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गढ़पति  : पुं० [हिं० गढ़+पति] १. गढ़ का मालिक या स्वामी। राजा। २. गढ़ का प्रधान अधिकारी।
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गढ़वाना  : स० [हिं० गढ़ना का प्रे०] गढ़ने का काम किसी से कराना।
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गढ़वार  : पुं० =गढ़वाल।
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गढ़वाल  : पुं० [हिं० गढ़+वाला] १. गढ़ का स्वामी अथवा प्रधान अधिकारी। २. उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग का एक पहाड़ी भू-खंड।
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गढ़वै  : पुं० [हिं० गढ़पति] गढ़ का प्रधान अधिकारी या रक्षक। किलेदार। उदाहरण–हठ दृढ़ गढ़ गढवै सुचलि लीजै सुरँग लगाय।–बिहारी। वि० [हिं० गढ़+वर्ती] आश्रय पाने के लिए सुरक्षित स्थान में छिपा या पहुँचा हुआ। उदाहरण–गरम भाजि गढ़वै भई, तिय-कुच अचल मवासु।–बिहारी।
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गढ़ा  : पुं० [स्त्री० गढ़ी] दे० ‘गड्ढा’।
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गढ़ाई  : स्त्री० [हिं० गढ़ना] गढ़ने की क्रिया ढंग भाव या मजदूरी।
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गढ़ाना  : स० [हिं० गढ़ना का प्रे० रूप] गढ़ने का काम किसी से कराना। गढ़वाना। अ० [हिं० गाढ़-संकट] अप्रिय, कष्टकर या भारी जान पड़ना। खलना। गड़ना। जैसे–तुम्हारी ऐसीं ही बातें तो सबको गढ़ाती है।
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गढ़ाव  : पुं० [हिं० गढ़ना] गढ़ने या गढ़ाने का काम, प्रकार या रूप। गढ़न।
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गढ़िया  : पुं० [हिं० गढ़ना] वह जो वस्तुओं को गढ़कर उन्हें सुडौल रूप देता हो। स्त्री० =छोटा गड्ढा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गढ़ी  : स्त्री० [हिं० गढ़] १. छोटा गढ़ या किला। २. ऊँचाई पर बनी हुई बड़ी और मजबूत इमारत। ३. छोटा गड्ढा।
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गढ़ीस  : पुं०=गढ़पति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गढ़ैया  : पुं० =गढ़िया (गढ़नेवाला)। स्त्री० =गड़ही (छोटा गड्ढा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गढ़ोई  : पुं० =गढ़पति।
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