ग/ga

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ग  : देवनागरी वर्णमाला में कवर्ग का तीसरा व्यंजन जो कंठद्य स्पर्शी अल्पप्राण तथा संघोष है। प्रत्यय कुछ शब्दों के अंत में प्रत्यय रूप में लगकर यह निम्नलिखित अर्थ देता है। (क) गानेवाला, जैसे–सामग। (ख) चलने या जानेवाला; जैसे–उरग, निम्नग, सवर्ग आदि। पुं० [सं० √गै(गाना)+क] १. संगीत में गांधार स्वर का संक्षिप्त रूप और सूचक वर्ण। २. छंद शास्त्र में गुरु मात्रा या उसके युक्त वर्ण का सूचक वर्ण। जैसे–यह दो जगण और ग, ल (अर्थात् गुरु और लघु मात्रा) का छंद है। ३. गीत। ४. गणेश। ५. गंधर्व।
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गइंद  : पुं० =गयंद =(हाथी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गइनाही  : स्त्री० [सं० गहन] १. गहनता। गंभीरता। २. किसी बात या विषय की पूरी जानकारी। गहन-ज्ञान।
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गइयर  : पुं० स्त्री० ==गैयर।
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गई  : वि० स्त्री० [हिं० गया का स्त्री रूप] १. जो बीत चुकी हो। बीती हुई। जैसे-गई रात। २. पुरानी। जैसे-गई बात। मुहावरा–गई करना या कर जानाकिसी अनुचित बात के संबंध में यह समझकर चुप हो जाना कि जाने दो, ध्यान मत दो।
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गईबहोर  : वि० [हिं० गया+बहुरि] १. बिगड़ा हुआ काम या बात बनानेवाला। २. कोई हुई चीज ला देनेवाला।
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गउमुख  : वि० पुं० =गोमुख।
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गउर  : पुं० =गौर (विचार)। वि० =गौर (गोरा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गउरव  : पुं० =गौरव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गउव  : पुं० [सं० गवय] १. नील गाय। २. गौ। गाय। उदाहरण–गउवं सिध रेगहिं एक बाटा।–जायसी।
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गऊ  : स्त्री० [सं० गो] गाय। गौ।
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गऊघाट  : पुं० [हिं०] गाय-बैलों आदि के पानी पीने के लिए बनाया हुआ ढालुआँ और बिना सीढियों का घाट।
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गकरिया  : स्त्री० गाकरी। (लिट्टी)।
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गक्खर  : पुं० [?] पुरानी चाल का एक प्रकार का हथियार।
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गंग  : पुं० [सं० गंगा] एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में ९ मात्राएँ और अंत में दो गुरु होते हैं। स्त्री० =गंगा (नदी)।
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गंगई  : स्त्री० [अनु० गेंगें से] मैना की तरह की एक भूरे रंग की चिड़िया। गलगलिया। सतभइया।
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गंगका  : स्त्री० [सं० गंगा+कन्–टाप्, अत्व]=गंगा।
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गंगकुरिया  : स्त्री० [सं० गंगा–कूल] एक प्रकार की हल्दी।(उड़ीसा)
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गंगतिरिया  : स्त्री० [हिं० गंगा+तीर] दलदलों में होनेवाला एक प्रकार का पौधा।
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गंगन  : पुं०=गगन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गगन  : पुं० [सं०√गम(जाना+युच्-अन,ग आदेश)] १. आकाश। आसमान। मुहावरा–गगन खेलनानदी आदि के बहते हुए पानी का रह-रहकर उछलना। (किसी चीज का) गगन होना उड़ते-उड़ते हुए बहुत ऊपर आकाश में चले जाना। जैसे–कबूतर या पतंग का गगन होना। २. आकाशस्थ ईश्वर या दैव। उदाहरण–गगन कटोरहिं जगत बँधाएउ।–जायसी। ३. शून्य-स्थान। ४. छप्पय नामक छंद का एक भेद। ५. अबरक। ६. रहस्य संप्रदाय में, (क) अंतःकरण या हृदय (ख) ब्रह्म के रहने का स्थान या हृदय रूपी कमल।
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गगन-कुसुम  : पुं० [मध्य० सं०] आकाश-कुसुम। कोई अलौकिक या अवास्तविक वस्तु।
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गगन-गति  : वि० [ब० स० ] आकाश में चलनेवाला। आकाशचारी। पुं० १. चन्द्रमा, सूर्य आदि ग्रह। २. देवता। ३. वायु। हवा ४. पक्षी।
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गगन-गिरा  : स्त्री० [मध्य० स०] आकाशवाणी।
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गगन-धूलि  : पुं० [सं० ष० त० ] १. कुकुरमुत्ते का एक भेद। २. केतकी या केवड़े पर की सुंगधित धूल।
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गगन-ध्वज  : पुं० [ष० त० ] १. सूर्य। २. बादल। मेघ।
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गगन-पति  : पुं० [ष० त०] इन्द्र।
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गगन-बिहारी(रिन्)  : [सं० गगन-वि.√हृ (हरण करना)+णिनि] आकाशचारी। गगनचर। पुं० १. सूर्य, चंद्रमा आदि ग्रह। २. देवता।
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गगन-भेड़  : स्त्री० [हिं० गगन+भेड़] कराँकुल या कूँज नामक जल-पक्षी।
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गगन-मंडल  : पुं० [ष० त० ] १. पृथ्वी के ऊपर का आकाश रूपी घेरा या मंडल। २. हठ-योग की परिभाषा में ब्रह्माण्ड (सिर में ऊपर की ओर की भीतरी भाग) और ब्रह्म-रध्रं।
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गगन-रोमंथ  : पुं० [ष० त० ] अनहोनी या असंभव बात।
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गगन-वाटिका  : स्त्री० [स० त० ] वैसी ही असंभव बात जैसी आकाश में वाटिका या बाग-बगीचे के होने की होती है। आकाश-कुसुम।
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गगन-सिंधुं  : स्त्री० [ष० त०] आकाश-गंगा।
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गगन-स्पर्शन  : पुं० [ष० त०] १. वायु। हवा। २. आठ मरुतों में से एक मरुत का नाम।
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गगन-स्पर्शी (शिन्)  : वि० [सं० गगन√स्पृश् (छूना)+णिनि] आकाश को स्पर्श करनेवाला। बहुत अधिक ऊँचा।
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गगन-स्पृक् (श्)  : वि० [सं०गगन√स्पृश्+क्विप्] गगनस्पर्शी।
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गगनगढ़  : पुं० [सं०+हिं०] बहुत ऊँचा किला या महल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गगनचर  : वि० [सं० गगन√चर (गति)+ट] आकाश में उड़ने या चलनेवाला। आकाशचारी। पुं० १. ग्रह, नक्षत्र आदि। २. देवता। ३. पक्षी।
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गगनचुंबी (बिन्)  : वि० [सं० गगन√चुंब् (चूमना)+णिनि] इतना अधिक ऊँचा कि आकाश को चूमता हुआ जान पड़े। बहुत ऊँचा। अभ्रकष। (स्काई स्क्रैपर)
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गगनभेदी (दिन्)  : वि० [सं० गगन√भिद(फाड़ना)+णिनि] १. आकाश को भेदने या फाड़नेवाला (शब्द या स्वर)। आकाशभेदी। २. बहुत अधिक ऊँचा।
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गगनवटी  : पुं० [सं० गगनवर्ती] सूर्य। (डिं० )
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गगनवाणी  : स्त्री० आकाशवाणी।
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गगनांगना  : स्त्री० [गगन-अंगना, मध्य० स० ] अप्सरा।
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गगनाध्वग  : वि० पुं० [गगन-अध्वग, ष० त० ] =गगनचर।
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गगनानंग  : पुं० [गगन-अनंग, स० त० ] एक प्रकार का मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में पच्चीस मात्राएं होती है।
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गगनापगा  : स्त्री० [गगन-आपगा, ष० त०] आकाश गंगा।
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गगनांबु  : पुं० [गगन-अंबु, मध्य० स०] आकाश से गिरा हुआ अर्थात् वर्षा का जल। बरसाती पानी।
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गगनेचर  : पुं० [अलुक् स०] १. ग्रह, नक्षत्र आदि। २. देवता। ३. चिडियाँ। पक्षी। वि० आकाश में उड़ने या चलनेवाला।
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गगनोल्मुक  : पुं० [गगन-उल्मुक,.स० त० ] मंगलग्रह।
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गंगबरार  : पुं० [हिं० गंगा+फा० बरार=बाहर या ऊपर लाया हुआ] किसी नदी की धारा के पीछे हटने से निकल आनेवाली जमीन।
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गगरा  : पुं० [सं० गर्गर-दही मथने का बर्तन] [स्त्री० अल्पा० गगरी] ताँबे, पीतल आदि का बना हुआ पानी रखने का बड़ा घड़ा। कलसा। गगरा।
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गगरिया  : स्त्री० गगरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गँगरी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की कपास।
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गगरी  : स्त्री० [हिं० गगरा का स्त्री० अल्पा० रूप] छोटा गगरा। मुहावरा–गगरी फोड़ना=मृतक के दाहकर्म की समाप्ति करना। उदाहरण–अंत की बार गगरिआ फोरी।–कबीर।
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गगल  : पुं० [सं० गरल] साँप का जहर। सर्प-विष।
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गंगला  : पुं० [?] १. एक प्रकार का शलजम। २. एक प्रकार का वृक्ष।
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गगली  : पुं० [देश०] एक प्रकार का अगर या अगरु।
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गंगशिकस्त  : पुं० [हिं० गंगा+फा० शिकस्त=तोड़ा हुआ] वह भूमि जो नदी की धारा के आगे बढ़ने के कारण जल-मग्न हो गयी हो। वह भूमि जिसे बरसात में नदी काट ले गयी हो।
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गंगा  : स्त्री० [सं०√गम्(जाना)+गन्–टाप्] १. भारतवर्ष की एक प्रधान और पवित्र नदी जो हरिद्वार के ऊपर से निकल कर कलकत्ते के पास बंगाल की खाड़ी में गिरती है। जाह्ववी। भागीरथी। मुहावरा–गंगा नहाना=किसी कर्त्तव्य का पालन करके उससे छुट्टी पाना या निश्चित होना। २. हठ-योग में, इड़ा (नाड़ी) का दूसरा नाम। ३. सहस्य संप्रदाय में, मन को शुद्ध करनेवाली पवित्र वाणी।
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गंगा जाल  : पुं० [हिं० गंगा+जाल] रीहा घास का बना हुआ मछुओं का जाल। (बंगाल)
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गंगा-गति  : स्त्री० [स० त० ] १. मृत्यु। २. मृत्यु के उपरांत होने वाली मुक्ति। मोक्ष।
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गंगा-चिल्ली  : स्त्री० [मध्य० स० ] जल-कुक्कुटी। (पक्षी)
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गंगा-जमनी  : वि० [हिं० गंगा+जमुना] १. गंगा और यमुना के मेल की तरह दो तरह का या दो रंगों का। जैसे–गंगा-जमुनी दाल=(केवटी दाल); गंगा जमुनी साड़ी। २. सोने चाँदी अथवा ताँबे और पीतल के मेल से बना हुआ, जैसे–गंगा-जमुनी कुरसी या लोटा। ३. सफेद और काला मिला हुआ। ४. अबलक। चितकबरा। स्त्री० कान में पहनने का एक प्रकार का गहना।
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गंगा-जल  : पुं० [ष० त०] १. गंगा नदी का जल जो बहुत पवित्र माना जाता है। २. पुरानी चाल का एक प्रकार का बढ़िया सूती कपड़ा जिसकी पगड़ियाँ बनती थीं।
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गंगा-दत्त  : पुं० [तृ० त०] भीष्म पितामह का एक नाम।
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गंगा-द्वार  : पुं० [ष० त०] हरिद्वार।
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गंगा-धर  : पुं० [ष० त०] १. महादेव। शिव। २. समुद्र। ३. वैद्यक में एक प्रकार का रस। ४. एक प्रकार का वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में आठ रगण होते हैं। इसे खंजन और गंगोदक भी कहते हैं।
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गंगा-पथ  : पुं० [ष० त०] आकाश। (डिं०)
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गंगा-पाट  : पुं० [हिं० गंगा+पाट] घोड़े की एक भौंरी जो उसके पेट के नीचे होती हैं।
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गंगा-पुजैया  : स्त्री० =गंगा पूजा।
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गंगा-पुत्र  : पुं० [ष० त० ] १. भीष्म। २. पुराणानुसार लेट पिता और तीवरी माता से उत्पन्न एक संकर जाति। ३. ब्राह्मणों की एक जाति जो पवित्र नदियों के किनारे घाटों पर बैठकर अथवा तीर्थस्थानों में रहकर दान लेती है। ४. उक्त जाति का व्यक्ति।
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गंगा-पूजा  : स्त्री० [ष० त०] विवाह के बाद की एक रीति जिसमें वर और वधू को किसी तालाब या नदी के किनारे ले जाकर उनसे पूजा कराई जाती है।
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गंगा-यात्रा  : स्त्री० [मध्य० स० ] १. मरणासन्न व्यक्ति को मरने के लिए गंगा-तट पर या किसी पवित्र जलाशय के किनारे ले जाने की पुरानी प्रथा। २. मृत्यु। स्वर्गवास।
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गंगा-लाभ  : पुं० [ष० त०] मृत्यु। स्वर्गवास।
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गंगा-सागर  : पुं० [मध्य० स० ] १. कलकत्ते के पास वह स्थान जहाँ गंगा नदी समुद्र में मिलती है और जो एक तीर्थ माना जाता है। २. एक प्रकार की बड़ी झाड़ी। ३. खद्दर की छपी हुई आठ-नौ हाथ लंभी जनानी धोती।
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गंगा-सुत  : पुं० [ष० त०]=गंगा-पुत्र।
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गंगाजली  : स्त्री० [सं० गंगाजल] शीशे या धातु की सुराहीनुमा लुटिया जिसमें यात्री तीर्थों से पवित्र जल लाते हैं। मुहावरा–गंगाजली उठाना=हाथ में गंगाजली लेकर शपथ पूर्वक कोई बात कहना। पुं० भूरे रंग का एक प्रकार का गेहूँ।
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गंगादह  : पुं०=गंगाजली।
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गंगाधार  : पुं० [गंगा√धृ (धारण करना)+अण्] समुद्र।
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गंगांबु  : पुं० [सं० गंगा-अंबु ष० त० ] १. गंगाजल। २. पवित्र तथा शुद्ध जल। ३. वर्षा का जल।
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गंगाराम  : पुं० [हिं० गंगा+राम] तोते को संबोधित करने का एक नाम।
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गंगाल  : पुं० [हिं० गंगा+आलय] पानी रखने का एक प्रकार का बड़ा पात्र। कंडाल।
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गंगाला  : पुं० [हिं० गंगा+आलय] वह भूमि जहाँ तक गंगा के चढ़ाव का पानी पहुँचता है। कछार।
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गंगावतरण  : पुं० [गंगा-अवतरण, ष० त०] वह अवस्था जिसमें गंगा जी स्वर्ग से उतरकर धरती प आयी थीं। गंगा का स्वर्ग से पृथ्वी पर आना।
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गंगावतार  : पुं० [गंगा-अवतार,ष० त० ] =गंगावतरण।
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गंगावासी(सिन्)  : वि० [सं०गंगा√वस्(बसना)+णिनि] गंगा के तट पर रहनेवाला।
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गंगिका  : स्त्री० [सं० गंगा+कन्+टाप्, इत्व] गंगा नदी।
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गँगेऊ  : पुं० [सं० गांगेय] १. भीष्म। २. कार्तिकेय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गँगेटी  : स्त्री० [सं० गंगाटी] दवा के काम आनेवाली एक प्रकार की जड़ी या बूटी।
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गंगेय  : वि० पुं० ==गांगेय।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गँगेरन  : स्त्री० [सं० गांगेरुकी] नागबला नाम का पौधा।
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गँगेरुआ  : पुं० [सं० गांगेरुक] एक प्रकार का पहाड़ी वृक्ष।
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गंगेरू  : स्त्री० गँगेरन।
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गंगेश  : पुं० [गंगा-ईश,ष० त० ] महादेव। शिव।
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गंगोझ  : पुं० =गंगोदक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गंगोत्तरी  : स्त्री० [सं० गंगावतार] उत्तर भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ जहाँ गंगा नदी ऊँचे पहाड़ों से निकलती है।
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गंगोदक  : पुं० [गंगा-उदक,ष० त०] १.गंगा नदी का जल जो बहुत पवित्र माना जाता है। २. गंगा-धर वर्ण-वृत्त का दूसरा नाम। दे० ‘गंगा-धर’।
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गगोरी  : पुं० [सं० गर्ग] एक प्रकार का छोटा कीड़ा।
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गंगोल  : पुं० [सं०] गोमेदक मणि।
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गंगौटी  : स्त्री० [हिं० गंगा+मिट्टी] गंगा के किनारे की मिट्टी या बालू।
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गँगौलिया  : पुं० [हिं० गंगाल] एक प्रकार का खट्टा नीबू।
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गच  : स्त्री० [अनु०] किसी नरम या मुलायम चीज में किसी कड़ी, नुकीली या पैनी चीज के धँसने अथवा धँसाने से होनेवाला शब्द। जैसे–कलेजे, तरबूज या लौकी में गच से छुरी धँसना या धँसाना। स्त्री० [चीनी कचु, तुर्की गज] १.चूने-सुर्खी का मसाला। २.चूने सुर्खी से कूटकर बनाई हुई पक्की और साफ-सुथरी जमीन या फर्श। ३.चूने-सुर्खी आदि से दीवारों पर किया हुआ पलस्तर या लेप। ४. साफ सुथरा तल या सतह। ५. संगजराहत या सिलखड़ी को फूँककर तैयार किया हुआ चूना। (प्लास्टर आँफ पेरिस)वि० बहुत ही चमकीले और साफ तलवाला। उदाहरण–ज्यौं गच काँच बिलोकि सेन जड़ छाँह आपने तन की।–तुलसी।
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गचकारी  : स्त्री० [हिं० गच+फा० कारी] १. चूने, सुर्खी आदि को मिलाकर तैयार किए हुए मसाले से दीवारों का पलस्तर, जमीन या फर्श आदि बनाने का काम। २. उक्त प्रकार की मिलावट के लिए गच पीटने का काम।
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गचगर  : पुं० [हिं० गच+फा० गर-बनानेवाला] वह कारीगर या राज जो गच बनाता हो। गच पीटने और बनाने वाला मिस्त्री।
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गचगीरी  : स्त्री० =गचकारी।
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गचना  : स० [अनु० गच] १. बहुत अधिक कस या ठूसकर भरना। स० दे० ‘गाँसना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गचपच  : वि० ==गिचपिच।
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गचाका  : पुं० [हिं० गच से अनु०] गच से गिरने या बोलने का शब्द। क्रि० वि० १. एकदम से। सहसा। २. पूरी तरह से। भरपूर। (बाजारू)
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गच्चा  : पुं० [अनु०] १. गड्ढा। गर्त्त। २. जोखिम, हानि आदि की संभावना या उसका स्थल। ३. ऐसा धोखा या भ्रम जिससे भारी हानि हो। मुहावरा–गच्चा खाना=धोखे में आकर अपनी हानि कर बैठना,
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गच्छ  : पुं ० [सं०√गम् (जाना)+क्विप्, तुक्, गत√छो (काटना)+क] १. पेड़। गाछ। २. जैन साधुओं के रहने का मठ। ३. जैन साधु का गुरु-भाई।
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गछना  : अ० [सं० गच्छ-जाना] चलना। जाना। सं० १. देन, निर्वाह, व्यवहार आदि के लिए अपने ऊपर या जिम्मे लेना। २. चलाना। निभाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गंज  : पुं० [सं० कंज या खंज] १. एक रोग जिसमें सिर के बाल सदा के लिए झड़ जाते हैं। खल्वाट। (बाल्डनेस) २. सिर में निकलमने वाली एक प्रकार की फुँसियाँ। पुं० [फा० ] १. खजाना। कोश। २. ढेर। राशि। ३. झुंड। समूह। ४. अनाज रखने का कोठा या खत्ता। ५. पालतू कबूतरों के रहने की अलमारी। दरबा। ६. मद्य-पात्र। ७. मद्य-शाला। ८. एक प्रकार की लता। ९. अवज्ञा। तिरस्कार। १॰. ऐसी चीज जिसके अंदर या साथ बहुत सी चीजें लगी हुई हों। जैसे–रंज-बाल्टी, गंज-चाकू। ११. कुछ नामों के अंत में प्रत्यय के रूप में लगकर ऐसी बस्तियों या बाजारों का वाचक शब्द जहाँ बनिये रहते हों अथवा व्यापार करते हों। जैसे-दारागंज, भारतगंज, महाराजगंज, विश्वेश्वर गंज आदि।
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गज  : पुं० [सं०√गज्(मत्त होना)+अच्] [स्त्री० गजी] १,. हाथी। २. दिग्गज। ३. आठ की संख्या। ४. दीवार के नीचे का पुश्ता। ५. महिषासुर का एक पुत्र। ६. राम की सेना का एक बंदर। ७. रहस्य संप्रदाय में, मन जो हाथी की तरह बलवान होता है और जल्दी वश में नहीं आता। पुं० [फा० गज] १. लंबाई नापने की एक माप जो सोलह गिरह, तीन फूट अथवा छत्तीस इंच के बराबर होती है। (लकड़ी नापने का गज अपवाद रूप से दो फुट या चौबीस इंच का माना जाता है) २. उक्त माप का वह उपकरण या साधन जो कपड़े, लकड़ी, लोहे आदि का बना होता है। ३. लोहे का वह छड़ जिससे पुरानी चाल की बंदूकों में बारूद भरते थे। ४. सारंगी बजाने की कमानी। ५. पुरानी चाल का एक प्रकार का तीर। ६. वह पतली लकड़ी जो बैलगाड़ी के पहिये में मूँडी से पुट्ठी तक लगाई जाती है। ७. इमारत में लकड़ी की वह पटरी जो घोड़िया के ऊपर रखी जाती है।
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गज-कंद  : पुं० [ब० स०] हस्तिकंद।
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गज-कुंभ  : पुं० [ष० त०] हाथी के माथे पर दोनों ओर उठे या उभरे हुए अंशु।
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गज-कुसुम  : पुं० [ब० स०] नागकेसर।
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गज-केसर  : पुं० [ब० स० ] एक प्रकार का बढिया धान।
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गज-गति  : स्त्री० [ष० त० ] १. हाथी की चाल। २. हाथी की सी मद और मस्त चाल। ३. एक प्रकार का वर्णवृत्त। ४. रोहिणी, मृगशिरा और आर्द्रा में शुक्र की स्थिति व गति। वि० हाथी की-सी मस्त चाल चलनेवाला। झूम-झूमकर चलनेवाला।
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गज-गती  : स्त्री० [फा० गज (नाप)+हिं० गति] कपड़ों की वह फुटकर बिक्री जो गज के हिसाब से नापकर होती हो। (पूरे थान या थोक की बिक्री से भिन्न)
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गज-गमन  : पुं० [ष० त०] हाथी की-सी मस्त और मंद चाल।
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गंज-गुठारा  : पुं० =गंजगोला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गज-घाव  : पुं० [सं० गज+हिं० घाव] एक प्रकार का हथियार जिससे युद्धक्षेत्र में हाथियों पर वार किया जाता था।
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गज-चर्म (र्मेन्)  : पुं० [ष० त० ] १.हाथी का चमड़ा. २. एक प्रकार का चर्म रोग जिससे शरीर का चमड़ा हाथी के चमड़े की तरह कड़ा और खुरदुरा हो जाता है।
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गंज-चाकू  : [हिं० गंज+फा० चाकू] वह चाकू जिसमें फल के अतिरिक्त कैची, मोचना आदि कई उपकरण एक साथ लगे रहते हैं।
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गज-चिर्भिटा  : स्त्री० [मध्य०स० ] इंद्रायन।
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गज-च्छाया  : स्त्री० [ष० त० ,] फलित ज्योतिष में एक प्रकार का योग।
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गज-ढक्का  : स्त्री० [मध्य० स०] हाथी पर रखकर बाजाया जानेवाला बड़ा धौंसा।
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गज-दंत  : पुं० [ष० त०] १. हाथी का दाँत। २. एक दाँत के ऊपर निकलनेवाला दूसरा दाँत। ३. वह पत्थर जो छज्जे का भार संभारने के लिए उसके नीचे लगाया जाता है। ४. दीवार में लगी हुई कपड़े टांगने की खूँटी। ५. एक प्रकार का घोड़ा। ६. नृत्य में एक प्रकार का भाव प्रकट करने की मुद्रा।
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गज-दान  : पुं० [ष० त० ] १. किसी को हाथी दान करके देना। २. हाथी के मस्तक पर बहनेवाला दान या मद।
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गज-नक्र  : पुं० [मध्य० स०] गैंडा।
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गज-नाल  : स्त्री० [ब० स०] १. पुरानी चील की एक प्रकार की तोप जो हाथी पर रखकर चलाई जाती थी। २. वह बड़ी तोप जिसे हाथी खींच कर ले जाते थे।
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गज-नासा  : स्त्री० [ष० त०] हाथी की नाक अर्थात् सूँड।
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गज-नीमीलिका  : स्त्री० [ष० त०] कोई चीज या बात देखते हुए भी यह प्रकट करना कि हम नहीं देख रहे हैं। जान-बूझकर अनजान बनना।
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गज-पति  : पुं० [ष० त० ] १. बहुत बड़ा हाथी। २. वह राजा जिसके पास बहुत से हाथी हों। ३. कलिंग देश के पुराने राजाओं की उपाधि।
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गज-पिप्पली  : स्त्री० [मध्य० स०] एक प्रकार का पौधा जिसके कुछ अंग दवा के काम आते हैं। गजपीपल।
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गज-पुट  : पुं० [मध्य० स०] धातुओं के फूँकने की एक रीति। (वैद्यक)
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गज-पुर  : [ष० त० ] हस्तिनापुर।
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गज-पुष्पी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] नाग-पुष्पी नामक पौधा।
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गज-प्रिया  : स्त्री० [ष० त० ] शल्लकी या सलई (वृक्ष और उसकी लकड़ी)
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गज-बंध  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का चित्रकाव्य जिसमें किसी छंद में अक्षरों की योजना इस प्रकार होती है कि वे हाथी के चित्र में बैठाये जा सकते हैं।
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गज-बंधन  : पुं० [ष० त० ] १. हाथी बाँधने का खूँटा। २. हाथी बाँधने का सिक्कड़।
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गज-बाँक  : पुं० =गज-बाग।
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गज-बाग  : पुं० [सं० गज+फा० बाग-लगाम] हाथी को चलाने का अंकुश।
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गंज-बाल्टी  : स्त्री० [फा० +हिं० ] वह बड़ी बाल्टी जिसके अन्दर और साथ कटोरे, कड़ाही, गिलास, थालियाँ आदि भी रहती हैं।
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गज-भक्षक  : पुं० [ब० स०] पीपल।
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गज-मणि  : उभय० [मध्य० स०] गज-मुक्ता।
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गज-मद  : पुं० [ष० त० ] मत्त हाथी के मस्तक से बहनेवाला दान या मद।
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गज-मुक्ता  : स्त्री० [मध्य० स०] एक प्रकार का कल्पित मोती जो हाथी के मस्तक में स्थित माना जाता है। गज-मणि।
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गज-मुख  : पुं० [ब० स०] वह जिसका मुख हाथी के समान हो, अर्थात् गणेशजी।
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गज-मोचन  : पुं० [ष० त० ] विष्णु का वह रूप जिसे धारण करके उन्होंने ग्राह से एक हाथी का उद्धार किया था।
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गज-मौक्तिक  : पुं० [मध्य० स०] गज-मुक्ता।
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गज-रथ  : पुं० [मध्य० स०] वह रथ जिसे हाथी खींचते हों।
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गज-वदन  : पुं० [ब० स०] गणेशजी।
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गज-विलसिता  : स्त्री० [ब० स०] एक प्रकार का छंद या वृत्त।
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गज-वीथी  : स्त्री० [ष० त० ] १. हाथियों की पंक्ति। २. शुक्र की गति के विचार से रोहिणी, मृगशिरा और आर्दा नक्षत्रों का वर्ग जिसके बीच से होकर शुक्र चलता है।
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गज-व्रज  : पुं० [सं० गज√व्रज (गति)+अच्, उप० स०] हाथियों पर चलने वाली सेना। वि० हाथी की-सी चाल वाला
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गज-शाला  : स्त्री० [ष० त० ] वह स्थान जहाँ हाथी बाँधे जाते हों। फीलखाना।
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गज-स्नान  : पुं० [ष० त० ] हाथियों की तरह किया जानेवाला स्नान जिसमें वे नहा चुकने के बाद फिर ढेर सी धूल और मिट्टी उड़ाकर अपना सारा शरीर गंदा कर लेते हैं। फलतः ऐसा काम जो कर चुकने के बाद न करने के समान कर दिया जाए।
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गजअसन  : पुं०=गजाशन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गज़इलाही  : पुं० [फा० गज+इलाही] अकबरी गज जो ४१ अंगुल का होता और इमारत के काम में आता है।
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गजक  : पुं० [फा० कज़क] १. नशीली वस्तु (जैसे-अफीम, भाँग, शराब आदि का सेवन करते समय मुँह का स्वाद बदलने के लिए खाई जानेवाली कोई चटपटी या स्वादिष्ट चीज। जैसे–कबाब, पापड़, समोसा आदि। २. गुड़ या चीनी का पाग बनाकर और उसमें अन्न के दाने, सूखे मेवे आदि डालकर जमाई जानेवाली एक प्रकार की पपड़ी। ३. तिल पपड़ी। ४. जलपान। विशेष–पूरब में यह शब्द प्रायः स्त्रीलिंग में बोला जाता है।
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गजकरनआलू  : पुं० [सं० गजक-र्णालु] अरुआ नामकी लता जिसमें लंबा कंद होता है।
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गजगा  : पुं० [सं० गज से] हाथियों का एक प्रकार का गहना।
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गजगामी (मिन्)  : वि० [सं० गज√गम्+णिनि] [स्त्री० गजगामिनी] हाथी की तरह झूम-झूमकर मस्ती से चलनेवाला।
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गजगाह  : पुं० [सं० गज-ग्राह से] हाथी या घोड़े पर डाली जाने वाली झूल। पाखर।
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गंजगोला  : पुं० [हिं० गंज+फा० चाकू] तोप का वह गोला जिसके अंदर छोटी-छोटी बहुत सी गोलियाँ भरी रहती हैं। (लश)
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गजगौन  : पुं० =गजगमन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गजगौनी  : वि० स्त्री०=गजगामिनी(गजगामी की स्त्री रूप)
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गजगौहर  : पुं० [हिं० गज+फा० गौहर] गजमोती। गजमुक्ता।
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गजट  : पुं० [अ० गजेट] वह राजकीय सामयिक पत्र जिसमें शासन संबंधी सूचनाएँ प्रकाशित होती है। वार्त्तायन ( दे० )।
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गजता  : स्त्री० [सं० गज+तल्-टाप्] १. हाथी होने की अवस्था या भाव। २. हाथियों का झुड या समूह।
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गजंद(दा)  : पुं० [सं० गजै] हाथी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गजदंती  : वि० [सं० गजदंत+हिं० ई (प्रत्यय)] हाथी दाँत का बना हुआ। जैसे-गजदंती चूडा या चूड़ियाँ।
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गजधर  : पुं० [फा० गज+हिं० धर] मकान बनाने वाला मिस्त्री। राज। मेमार।
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गंजन  : पुं० [सं०√गंज्(शब्द)+ल्युट्-अन] १. अवज्ञा। तिरस्कार। २. दुर्गत। दुर्दशा। ३. नष्ट, पद दलित, परास्त आदि करने की क्रिया या भाव। ४. संगीत में ताल के आठ मुख्य भेंदों में से एक। वि० [√गंज+णिच्+ल्यु-अन] १. अवज्ञा या तिरस्कार करनेवाला। २. नष्ट करनेवाला।
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गजनफर  : पुं० [अ०] शेर। सिंह।
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गजनवी  : वि० [फा०] १. गजनी नगर की रहनेवाला। जैसे–महमूद गजनवी। २. गजनी नगर से संबंध रखनेवाला।
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गँजना  : अ० [हिं० गाँज] १. गाँज या ढेर लगना। २. पूरित होना। भरा जाना।
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गंजना  : स० [सं० गंजन] १. गंजन अर्थात् अपमान या तिरस्कार करना। २. पूरी तरह से नष्ट-भ्रष्ट करना। ३. परास्त करना। हराना।
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गजना  : अ० [सं० गर्जन] =गाजना। (गरजना)।
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गंजनी  : स्त्री० [?] एक प्रकार की घास।
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गज़नी  : पुं० [फा० मि० सं० गज्जन] [स्त्री० गजनवी] अफगानिस्तान के एक नगर का नाम जो महमूद की राजधानी थी। स्त्री० एक प्रकार की चिकनी मिट्टी। गाजनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गजपाय  : पुं० =गजपाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गजपाल  : पुं० [सं० गज्√पाल्(रक्षा करना)+णिच्+अच्] महावत। हाथीवान।
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गजपाँव  : पुं० [हिं० गज+पाँव] एक प्रकार का जल पक्षी।
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गजपीपल  : पुं० =गज-पिप्पली।
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गंजफा  : पुं० =गंजीफ़ा।
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गजब  : पुं० [अ० ग़ज़ब] १. भीषण क्रोध। बहुत जेत गुस्सा। कोप। प्रकोप। पद-गजब इलाही==ईश्वर का या दैवी कोप। २. उक्त प्रकार के कोप के कारण पड़ने वाली बहुत बड़ी विपत्ति या संकट। मुहावरा–(किसी पर) गजब गुजरना=ऐसा काम करना जिससे किसी पर बहुत बड़ी विपत्ति पड़े। उदाहरण-गजब गुजारत गरीबन की धार पै।–पद्याकर। (किसी पर) गजब ढाना=किसी के लिए भीषण विपत्ति या संकट उत्पन्न करना। ३. बहुत बड़ा अनिष्ट। अनर्थ। ४.अन्याय। जुल्म। मुहावरा–गजब ढाना अन्याय या जुल्म करना। जैसे–ये आँखें गजब ढाती हैं। ५. बहुत ही अद्बुत या विलक्षण काम या चीज। पद-गजब काजो गुण, मात्रा आदि के विचार से बहुत बढ़-चढ़कर हो। बहुत अधिक और असाधारण। जैसे–गजब की शोखी।
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गजबीला  : वि० [हिं० गजब] [स्त्री० गजबीली] गजब करने या ढानेवाला।
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गजबेली  : स्त्री० [सं० गज+वल्ली] कांति-सार लोहा।
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गजमनि  : स्त्री० गज-मणि (गजमुक्ता)।
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गजमोती  : पुं० [सं० गजमौक्तिक, प्रा० गजमोत्तिअ]गज-मुक्ता।
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गजर  : पुं० [सं० गर्ज० हिं० गरज से वर्ण-विपर्यय] १. प्राचीन काल में, एक एक पहर पर समय-सूचक घंटा या घड़ियाल बजने का शब्द। पारा। २. बहुत तड़के या प्रभात के समय बजनेवाले घंटे या घड़ियाल का शब्द। उदाहरण–सुबह हुई, गजर बजा, फूल खिले हवा चली।–कोई शायर। मुहावरा–गजरदम या गजरबजे बहुत तड़के या सबेरे। ३. आज-कल चार, आठ और बारह बजने पर उतनी बार घंटा बज चुकने के बाद फिर उतनी ही बार परंतु जल्दी-जल्दी फिर उतने ही घंटे बजने का शब्द। ४. आज-कल की घड़ियों में कुछ विशिष्ट यांत्रिक क्रिया से जगाने आदि के लिए घंटी के जल्दी-जल्दी और गन-गन करके बजने का शब्द। पुं० [हिं० गजर बजर-मिला-जुला] लाल और सफेद मिला हुआ गेहूँ।
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गजर-दम  : क्रि० वि० [हिं० गजर+फा० दम] प्रभात के समय। बहुत सबेरे। तड़के।
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गजर-प्रबंध  : पुं० [हिं० गजर+सं० प्रबंध] नाच-गाना आरंभ करने से पहले गाने और बजानेवालों का अपना स्वर और बाजे ठीक करना या मिलाना।
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गजर-बजर  : वि० [अनु०] बिना समझे-बुझे यों ही एक दूसरे के साथ मिलाया या रखा हुआ। पुं० बेमेल चीजों की एक दूसरी में मिलावट।
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गजर-भत्ता  : पुं०=गजर-भात।
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गजरभात  : पुं० [हिं० गाजर+भात] गाजर और चावल उबालकर बनाया जानेवाला मीठा भात।
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गजरा  : पुं० [हिं० गंज-समूह] १. फूलों की घनी गुँथी हुई बड़ी माला। हार। २. उक्त प्रकार की एक छोटी माला जो कलाई पर गहने के रूप में पहनी जाती है। ३. मशरू नामका रेशमी कपड़ा। पुं० [हिं० गाजर] गाजर के पत्ते जो चौपायों को खिलाये जाते है।
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गजराज  : पुं० [ष० त० ] बहुत बड़ा हाथी।
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गजरी  : स्त्री० [हिं० गजरा] एक गहना जो स्त्रियाँ कलाई में पहनती है। स्त्री० [हिं० गाजर] एक प्रकार की छोटी गाजर।
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गजरौट  : स्त्री० [हिं० गाजर+औट(प्रत्यय)] गाजर की पत्ती। गजरा।
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गजल  : स्त्री० [फा० गजल] १. वह कविता जिसमें नायिका के सौन्दर्य और उसके प्रति प्रेम का वर्णन हो। २. फारसी ओर उर्दू में एक प्रकार का पद्य जिसमें दो-दो कड़ियों का एक-एक चरण होता है तथा प्रत्येक दूसरी कड़ी में अनुप्रास होता है। विशेष–(क) इसके गाने की पद्धति दिल्ली से चली थी। (ख) यह कई प्रकार के हलके रागों और धुनों में गाई जाती है। (ग) एक गजल के विभिन्न चरणों में एक-एक स्वतंत्र भाव होता है।
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गजलील  : पुं० [ब० स०] ताल के साठ मुख्य भेंदो में से एक।
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गजवान  : पुं० =हाथीवान (महावत)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गजही  : स्त्री० [हिं० गाज-फेन] वह मथानी जिससे कच्चा दूध मथकर मक्खन निकाला जाता है।
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गंजा  : पुं० [हिं० गंज] वह जिसके सिर के बाल झड़ गये हों। गंज रोग का रोगी।
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गजा  : पुं० [?] वह डंडा जिससे बड़ा ढोल या नगाड़ा बजाया जाता है।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गंजाई  : स्त्री० [हिं० गँजना] गाँज (ढेर या राशि) लगाने की क्रिया या भाव। (डम्पिंग)
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गजाजीव  : पुं० [सं० गज-आ√जीव् (जीना)+अप्] वह जिसकी जीविका हाथी पालने अथवा हाथी चलाने से चलती हो।
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गजाधर  : पुं० =गदाधर।
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गजानन  : पुं० [गज-आनन, ब० स०] गणेश जी, जिनका मुँह हाथी के समान है।
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गंजाना  : स० [हिं० गंजना] गाँजने का दूसरे से कराना। अच्छी या पूरी तरह से ढेर या राशि लगवाना। अ० =गँजना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गजायुर्वेद  : पुं० [गज-आयुर्वेद,ष० त० ] वह शास्त्र जिसमें हाथियों के रोगों और उनके निदान का विवेचन होता है।
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गजारि  : पुं० [गज-अरि,ष० त० ] १. हाथी का शत्रु अर्थात् शेर। सिंह। २. एक प्रकार का शाल वृक्ष।
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गजारी  : पुं० =गजारि।
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गजारोह  : पुं० [सं० गज-आ√रुह(चढ़ना)+अण्] १. हाथी पर चढना। २. महावत।
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गजाल  : पुं० [देश०] १. एक प्रकार की मछली। २. खूँटा या खूँटी।
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गजाशन  : पुं० [गज-अशन,ष० त० ] पीपल का पेड़।
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गजासुर  : पुं० [गज-असुर,मध्य० स० ] एक दैत्य जिसका वध शिवजी ने किया था।
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गजास्य  : पुं० [गज-आस्य,ब० स०] गणेशजी।
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गंजिका  : स्त्री० [सं०√गंज्+अ-टाप्+कन्-टाप्,हृस्व,इत्व] मदिरालय।
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गँजिया  : स्त्री० [सं० गंजिका] १. सूत की जालीदार थैली जिसमें रुपया-पैसा रखते हैं। २. घास बाँधने का जाल। ३. मिट्टी का एक प्रकार का छोटा बरतन।
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गजिया  : स्त्री० [हिं० गज] तारकशों और बिटाई करनेवालों का एक औजार।
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गंजी  : स्त्री० [हिं० गंज] १. ढेर। राशि। जैसे-अनाज की गंजी। २. शकर-कंद। स्त्री० [गर्नसी (स्थान नाम)] कमीज या कुरते के नीचे पहनी जानेवाली एक प्रकार की छोटी कुरती। बनियाइन। वि० [हिं० गाँजा] गाँजा पीनेवाला। जैसे–गंजी यार किसके, दम लगाया खिसके।–कहा०।
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गजी  : पुं० [फा० गज] एक प्रकार का देशी मोटा सस्ता कपड़ा। गाढ़ा। सल्लम। जैसे–गजी-गाढ़ा पहनना। (अर्थात् देशी, मोटा औस सस्ता कपड़ा पहनना) वि० पुं० [सं० गज+इनि] गजारोही। स्त्री० [सं० गज+ङीष्] हाथी की मादा। हथिनी।
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गंजीना  : पुं० [फा० गंजीनः] १. खजाना। कोश।
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गंजीफा  : पुं० [फा० गंजफः] १. ताश की तरह के एक पुराने खेल का उपकरण जिसमें ८, रंगों के ९६. पत्ते होते थे। ये पत्ते प्रायः लाख और कागज के योग से बनते थे और इन पर ताश के पत्तों की तरह बूटियाँ और तस्वीरें होती थीं। तास के पत्ते संभवतः इसी के अनुकरण पर बने थे। २. उक्त उपकरण से खेला जानेवाला खेल। ३. ताश की गड्डी और उससे खेला जानेवाला खेल।
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गँजेड़ी  : वि० [हिं० गाँजा+एड़ी(प्रत्यय)] प्रायः या बहुत गाँजा पीनेवाला। गंजी।
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गजेंद्र  : पुं० [गज-इंद्र,ष० त० ] १. हाथियों का राजा, ऐरावत। २. बहुत बड़ा हाथी। गजराज। ३. पुराणानुसार वह हाथी जिसे जल में ग्राह (घड़ियाल) ने पकड़ लिया था और जिसे भगवान कृष्ण ने आकर छुड़ाया था।
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गजेंद्र-गुरु  : पुं० [ष० त० ] रुद्रताल का एक भेद। (संगीत)
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गज्ज  : स्त्रीगरज (गर्जन)।
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गज्जन  : पुं० दे० ‘गजनी’।
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गज्जना  : अ० =गरजना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गज्जर  : पुं० [अनु०] ऐसी भूमि जिसमें कीचड़ होने के कारण पैर धसते हों। दलदल।
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गज्जल  : पुं० [?] अंजीर।
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गज्जूह  : पुं० [सं० गज+यूथ] हाथियों का झुंड़ या दल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गज्झा  : पुं० [सं० गज्ज=शब्द] तरल पदार्थ में होनेवाले बहुत से छोटे-छोटे बुलबुलों का समूह। गाज। फेन। मुहावरा–गज्जा छोड़ना देना या मारना=मछली का पानी के अंदर से बुलबुलें फेंकना। पुं० [सं० गंज, फा० गंज] १. ढेर। राशि। २. कोश। खजाना। ३. धन-संपत्ति। दौलत। मुहावरा–गज्झा मारना=अनुचित रूप से और एक साथ बहुत सा धन प्राप्त करना। ४. फायदा। मुनाफा।लाभ। (बाजारू)
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गझिन  : वि० [हिं० गजना] १. घना। सघन। २. गाढ़ा और मोटा (कपड़ा या उसकी बुनावट)।
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गट  : पुं० [अनु०] किसी तरल पदार्थ को पीते समय गले से होनेवाला शब्द। पद-गट से-एक दम से। एक बारगी। पुं० [सं० गण] १. ढेर। राशि। समूह। २. जत्था। झुंड।
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गटई  : स्त्री० [सं० कण्ठ या हिं० गट] गरदन। गला। स्त्री० १. =गिट्टी। २. =गोटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गटकना  : अ० [सं० कण्ट या हिं० गट] कोई चीज इस प्रकार खाना या पीना कि गले से गट शब्द हो। स० १. कोई चीज खाना, पीना, या निगलना। २. हड़पना।
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गटकीला  : वि० [हिं० गटक+ईला(प्रत्यय)] १. जो गटका जा सके। गटके जाने के योग्य। २. जिसे गटकने को स्वभावतः जी चाहे। उदाहरण–घर-घर माखन गटकीले।–नारायण स्वामी।
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गटगट  : पुं० [अनु०] तरल पदार्थ को निगलने या पीने के समय गले से उत्पन्न होने वाला शब्द। क्रि० वि०गले से उक्त प्रकार का सब्द करते हुए जल्दी-जल्दी और तेजी से । जैसे-गटगट सारी बोतल पी जाना।
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गटना  : स० [सं० ग्रन्थन, प्रा० गंठन] १.अच्छी तरह या कसकर पकड़ना। उदाहरण–अपनी रुचि जितही तित खैचति इंद्रिय ग्राम गटी।–सूर। २. किसी से युक्त या संबंद्ध करना। मिलना या लगाना। ३. गाँठ बाँधना या लगाना। अ० किसी से बँधा, मिला या लगा हुआ। युक्त होना।
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गटपट  : स्त्री० [अनु०] १. दो व्यक्तियों में होने वाली घनिष्ठता। २. संभोग। सहवास। ३. विभिन्न वस्तुओं में होने वाला मेल। मिलावट।
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गंटम  : पुं० [?] ताड़-पत्र पर लिखने की लोहे की कलम।
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गटर  : वि० [?] १. बड़ा। २. अधिक।
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गटरमाला  : स्त्री० [हिं० गटर+माला] बड़े दानों वाली माला।
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गटा  : पु० =गट्टा।
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गटागट  : क्रि० वि० =गटगट।
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गटापारचा  : पुं० [मलाया देश०] १. एक प्रकार का गोंद। २. उक्त गोंद का वह रूप जो उसे रासायनिक क्रियाओं से स्वच्छ तथा कड़ी करने पर होता है तथा जिससे विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ बनाई जाती है।
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गंटिठ्य  : वि० [सं० ग्रथिंत] जिसमें गाँठ पड़ी हुई हो। बाँधा हुआ।
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गटी  : स्त्री० [सं० ग्रन्थि, पा० गंठि] गाँठ। स्त्री० =गट (समूह)। क्रि० वि० [हिं० गट-समूह] बहुत अधिक।
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गट्ट  : पुं.=गट।
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गट्ट  : पुं० [हिं० गट्टा] दस्ता। मुठिया।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गट्टा  : पुं० [सं० ग्रन्थ,प्रा० गंठ, हिं० गाँठ] १. गाँठ। २. हथेली और पहुँचे के बीच का जोड़। कलाई। ३. पैर की नली और तलवे के बीच की गाँठ। ४. नैचे के नीचे की वह गाँठ जहाँ दोनों नये मिलती है और जो फरशी या हुक्के के मुँह पर रहती है। ५. किसी चीज का मोटा और कड़ा बीज। जैसे-कमल गट्टा। ६. एक प्रकार की देहाती मिठाई।
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गट्टी  : स्त्री० [देश०] १. जहाज या नाव में पाल बाँधने के खंभे के नीचे की चूल। (लश०) २. नदी का किनारा।
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गट्ठर  : पुं० [हिं० गाँठ] [स्त्री० अल्पा० गट्ठी, गठरी] १. बड़े कपड़े में रख, लपेट तथा गाँठ लगाकर बाँधा हुआ रूप। जैसे–धोबी के कपड़ो का गट्ठर। २. रस्सियों आदि से बँधा हुआ सामान। जैसे-घास या लकड़ियों का गट्ठर। मुहावरा–गट्टर साधना=घुटनों को छाती से लगा कर और ऊपर से हाथ बाँध कर अर्थात् सारे शरीर को गट्ठर का रूप देकर ऊँचाई पर से पानी में कूदना।
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गट्ठा  : पुं० [हिं० गाँठ] [स्त्री० अल्पा० गट्ठी, गठिया] १. गट्ठर (दे) २. प्याज, लहसुन आदि की गाँठ। ३. जरीब का बीसवाँ भाग जो तीन गज का होता है। कट्ठा।
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गट्ठी  : स्त्री० १. =गठरी। २. =गाँठ।
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गँठ  : स्त्री० [हिं० गाँठ] गाँठ का संक्षिप्त रूप जो यौगिक शब्दों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे-गँठ-जोड़ा, गँठ-बंधन आदि। स्त्री०=गाँठ।
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गँठ-छोरा  : पुं० [हिं० गाँठ+छोरना-छीनना] १. गठरी छीनकर ले भागनेवाला। उचक्का। २. दे० ‘गँठ-कटा’।
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गँठ-जोड़ा  : पुं० [हिं० गाँठ+जोड़ना] गँठ-बंधन(दे०)।
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गँठ-बंधन  : पुं० [हिं० गाँठ+बंधन] १. विवाह के समय वर के दुपट्टे के एक छोर को कन्या की चादर के एक छोर से गाँठ लगाकर बाँधने की रीति। २. कोई धार्मिक कृत्य करते समय उक्त प्रकार से पति-पत्नी के पल्लों में गाँठ लगाने की रीति। ३. लाक्षणिक अर्थ में दो चीजों बातों या व्यक्तियों में होनेवाला घनिष्ठ संग-साथ या संपर्क। ४. गुप्त संधि। साँठ-गाँठ।
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गँठकटा  : पुं० [हिं० गाँठ+काटना] वह व्यक्ति जो दूसरे की गाँठ में बँधे हुए रुपये-पैसे चोरी से खोल या काटकर निकाल लेता हो। गिरहकट।
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गठकटा  : वि०=गँठ-कटा।
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गठजोड़ा (जोरा)  : पुं०-गँठ-जोड़ा (गँठबंधन)।
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गठडंड  : पुं० [हिं० गड्ढा+डंड] एक प्रकार का डंड। (व्यायाम)।
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गठन  : स्त्री० [सं० घटन] १. गठे हुए होने की अवस्था या भाव। २. वह अवस्था या स्थिति जिसमें किसी वस्तु के विभिन्न अंग या अवयव किसी खास ढंग से बने हुए दिखाई पड़ते हो। बनावट। रचना।
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गठना  : अ० [हिं० गाँठना] १. दो वस्तुओं का परस्पर मिलकर एक होना। जुड़ना। सटना। पद-गठा-बदन=हृष्ट-पुष्ट शरीर। २. मोटी सिलाई होना। बड़े-बड़े टाँके लगना। जैसे–जूता गटना। ३. कपडो आदि की बुनावट। ४. गुप्त परामर्श, विचार, षड़यत्र आदि में सम्मिलित होकर उसके निश्चय से सहमत होना। ५. अच्छी तरह निर्मित होना या बनना। ६. आपस में खूब मेल-मिलाप और साहचर्य होना। ७. स्त्री० पुरुष या नर-मादा का संभोग होना।
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गठबंधन  : पुं०=गँठबंधन।
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गठरी  : स्त्री० [हिं० गट्ठर का स्त्री० और अल्पा०] १. किसी वस्तु या वस्तुओं को कपड़े से चारों ओर लपेटकर गाँठ बाँधने पर बननेवाला रूप। छोटा गट्ठर। मुहावरा–गठरी बाँधना= (असबाब बाँधकर) यात्री की तैयारी करना। (किसी को) गठरी कर देना-मार पीटकर या बाँधकर बेकाम कर देना। २. लाक्षणिक अर्थ में, कमाई या पूँजी। धन। जैसे–घबराओ मत, उस बुढिया की गठरी तुम्हीं को मिलेगी।
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गठरेवाँ  : पुं० [हिं० गाँठ] चौपायों का एक रोग।
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गठवाई  : स्त्री० [हिं० गाठना] (जूता) गठवाने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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गठवाना  : स० [हिं० गाठना] १. गठने या गाठने का काम दूसरे से कराना। २.बड़ी और मोटी गाँठे लगवाना। जैसे–जूता गठवाना। ३. जोड़ लगवाना। ४. प्रसंग या संभोग करना।
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गठवाँसी  : स्त्री० [हिं० गट्ठा+अंश] कट्ठे वा बिस्वे का बीसवाँ अंश। बिस्वांसी।
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गठा  : पुं० =गट्ठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गठाना  : स०=गठवाना। पुं० [हिं० घुटना] नदी का वह भाग जहाँ घुटने भर जल हो। कम गहरा स्थान। (माँझी)। स०=गठवाना।
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गठानी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का पुराना देहाती कर।
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गठाव  : पुं० [हिं० गठना] गठे होने का भाव । गठन।
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गठिआ  : स्त्री०=गठिया।
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गठित  : वि० [हिं० गठा] गटा हुआ। (असिद्धरूप)
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गठिबंध  : पुं० =गँठबंधन।
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गठिया  : स्त्री० [हिं० गाँठ] १. टाट का वह थैला या बोरा जिसमें घोड़ो बैलों आदि पर लादने के लिए अनाज भरा जाता है। खुरजी। २. कोरे कपड़ों आदि की वह बड़ी गठरी जो बाहर भेजने के लिए बाँधी जाती है। ३. शरीर के अंगों की गाँठों या जोड़ों में होनेवाला एक प्रकार का रोग जिसमें पीड़ा और सूजन होती है। (रियुमेटिज्म) ४. पौधों या वृक्षों में होनेवाला एक प्रकार का रोग।
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गठियाना  : स० [हिं० गाँठ] १. किसी वस्तु के दो छोरों अथवा दो विभिन्न वस्तुओं के दो छोरो को जोड़ने या बाँधने के लिए उनमें गाँठ लगाना। जैसे–टूटे हुए धागे को गठियाना। २. कोई चीज बाँधकर ऊपर से गाँठ लगाना। जैसे–धोती के पल्ले में पैसे गठियाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गँठिवन  : स्त्री०=गठिवन।
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गठिवन  : पुं० [सं० ग्रंथिपर्ण] मँझोले आकार का एक पहाड़ी पेड़ जिसकी पत्तियों में जगह-जगह गाँठे होती है। इसकी कलियाँ औषध के काम आती हैं।
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गठीला  : वि० [हिं० गाँठ+ईला(प्रत्यय)] [स्त्री० गठीली] जिसमें बहुत सी गाँठे पड़ी हों। गाँठोवाला। वि० [हिं० गठन] १. जिसकी गठन या बनावट अच्छी और सुन्दर हो। गठा हुआ। २. हृष्ट-पुष्ट। मजबूत।
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गँठुआ  : पुं० [हिं० गाँठ] कपड़ा बुनते समय टूटे हुए तागों को अथवा नई पाई के तागों को पुराने उतरे हुए कपड़ों के तागों से जोड़ने का काम।
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गठुआ  : पुं० [हिं० गाँठ] १. कपड़े का वह टुकड़ा जिससे जुलाहे ताने के ताँगों को गठकर ठस करते हैं।
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गठुआ  : पुं० =गठुआ।
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गठौत  : स्त्री० [हिं० गठना] १. गंठ-बंधन। २. मेल-मिलाप या संग-साथी। ३. आपस में अच्छी तरह सोच समझकर तै की हुई गुप्त बात। ४.किसी काम या बात की उपयुक्तता।
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गठौती  : स्त्री० गठौत।
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गठौंद  : स्त्री० [हिं० गाँठ+बध] १. गाँठ बाँधने की क्रिया या भाव। २. थाती। धरोहर।
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गंड  : पुं० [सं०√गंड़(मुख का एक भाग होना)+अच्] १.गाल। कपोल। २.कनपटी। ३.गले में पहनने का काला धागा। गंडा। ४. फोड़ा। ५. चिन्ह्र। निशान। ६. दाग। ७. गाँठ। ८. गैड़ा। ९. मंडलाकार चिन्ह्र या सकीर। गराड़ी। १॰. नाटक का एक अंग जिसमें सहसा प्रश्नोत्तर होने लगते हैं। ११.ज्येष्ठा, अश्लेषा और रेवती के अंत के पाँच दंड और मूल, मघा, तथा अश्विनी के आरंभ के तीन दंड। (ज्योतिष) वि.बहुत बड़ा या भारी। जैसे-गंड,मूर्ख, गंड शिला आदि।
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गड  : पुं० [सं०√गड्(सींचना)+अच्] १. ओट। आड़। २. घेरा। मंडल। ३. चार-दीवारी। प्राचीर। ४. गड्ढा। ५. खाई।
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गंड-गोपालिका  : स्त्री० [मध्य० स०] ग्वालिन नाम की कीड़ा।
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गंड-दूर्वा  : स्त्री० [कर्म० स०] १. गाँडर नामक घास जिसकी ज़ड़ खस कहलाती है। २. दूब नाम की घास।
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गंड-देश  : पुं० [ष० त०] =गंड-मंडल।
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गंड-मंडल  : पुं० [ष० त०] गंड-स्थल।
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गंड-मालक  : पुं० [ब० स० ] कंठमाला नामक रोग।
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गंड-माला  : स्त्री० [ब० स०] कंठमाला नामक रोग।
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गंड-मालिका  : स्त्री० [ब० स०] लज्जालु लता। लाजवंती।
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गंड-माली(लिन्)  : वि० [सं० गंडमाला+इनि] जिसके गले में कंठमाला नामक रोग की गिल्टियाँ निकली हुई हो।
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गड़-लवण  : पुं० [सं० गर्तलवण वा गडलवण] साँभर नामक।
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गंड-सूचि  : स्त्री० [ष० त० ] नृत्य में एक भाव बतलाने की एक मुद्रा।
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गंड-स्थल  : पुं० [ष० त० ] [स्त्री० गंडस्थली] कनपटी।
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गंडक  : पुं० [सं० गण्ड+कन्] १. गले में पहनने का गंडा या जंतर। २. गाँठ। ३. गैंड़ा। ४. चिन्ह्र। निसान। ५. वह प्रदेश जिसमें से होकर गंडकी नदी बहती है। ६. उक्त प्रदेश का निवासी। ७. गंडमाला नामक रोग। स्त्री० =गंडकी (नदी)।
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गडक  : पुं० [देश०] एक प्रकार की मछली।
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गड़कना  : अ० [अनु०] गड़-गड़ शब्द होना। अ० [अ० गर्क] १. डूबना। २. नष्ट होना। अ० =गरजना।
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गंडका  : स्त्री० [सं० गण्डक+टाप्] बीस वर्णों के एक वर्णवृत्त।
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गड़काना  : स० [अनु० गड़+क] गड़-गड़ शब्द उत्पन्न करना। गड़गड़ाना। स०= गरकाना (गरक करना या डुबाना)।
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गंडकी  : स्त्री० [सं० गण्डक+ङीष्] १. मादा गैंड़ा। २. उत्तर भारत की एक प्रसिद्ध नदी जो पटने के पास गंगा में मिलती है। पुं. सत्रह मात्राओं का एक ताल। (संगीत)
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गंडकी-शिला  : स्त्री० [ष० त० ] भगवान् विष्णु की गोल पत्थर की बनी हुई एक प्रकार की मूर्ति। शालग्राम की बटिया।
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गडक्क  : पुं० [अ० गर्क] १. डूबने या डुबाने से होनेवाला शब्द। २. पानी की उतनी गहराई जितने में आदमी डूब सकें।
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गडंग  : पुं० [हिं० गढ़+अंग] अस्त्र-शस्त्र, बारूद आदि रखने का स्थान। पुं० [सं०गर्व] १.घमंड। शेखी। २. आत्म-श्लाघा।
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गड़गज  : पुं० =गरगज।
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गड़गड़ा  : पुं० [गड़ गड़ शब्द से अनु०] लंबी नाली या सटकवाला हुक्का।
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गड़गड़ाना  : अ० [हिं० गड़गड़] १. गड़गड़ होना। जैसे–हुक्का गड़गड़ाना। २. गरजना। स० गड़-गड़ शब्द उत्पन्न करना।
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गड़गड़ाहट  : स्त्री० [हिं० गड़गड़ाना] गड़गड़ रूप में होने या गड़गड़ाने का शब्द। जैसे–गाड़ी या बादलों की गड़गड़ाहट।
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गड़गड़ी  : स्त्री० [हिं० गड़गड़] एक प्रकार की बड़ी डुग्गी या छोटा नगाड़ा।
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गडंगिया  : वि० [हिं० गडंग] १. डींग मारनेवाला। शेखीबाज। २. बहुत बढ़-बढ़कर बातें करनेवाला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गड़गूदड़  : पुं० [हिं० गूदड़] चिथड़ा। लत्ता।
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गड़च्चा  : पुं० ‘दे०’ गच्चा’।
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गड़ंत  : स्त्री० [हिं० गाड़ना] १. अभिचार या टोटके के लिए मंत्र आदि पढ़कर कोई चीज कहीं गाड़ने की क्रिया। २. उक्त प्रकार से गाड़ी जानेवाली चीज।
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गँड़तरा  : पुं० [हिं० गाँड़+तर-नीचे] छोटे बच्चों के नीचे का वह कपड़ा जो इसलिए बिछाया जाता है कि उनके मल-मूत्र बिचावन पर न लगे। गँतरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गँडदार  : पुं० [सं० गंड या हिं० गंड़ासा+फा० दार] १. महावत। हाथीवान। २. दे० ‘गड़दार’।
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गड़दार  : पुं० [हिं० गँडासा+फा० दार] १. वह व्यक्ति जो मतवाले हाथी को सँभालने के लिए हाथ में भाला लेकर उसके साथ-साथ चलता है। २. महावत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गड़ना  : अ० [सं० गर्त्त, प्रा० गड्ड-गड्ढा] १. हिन्दी गड़ना का अकर्मक रूप। २. जमीन के अंदर खोदे हुए गड्ढे में गाड़ा जाना। जैसे–तार या खंभा गड़ना, कब्र में मुरदा या लाश गड़ना। मुहावरा–गड़े मुरदा उखाड़ना=पुरानी या बीती हुई बातें फिर से उठाकर उनके संबंध में झगड़ना या तर्क-वितर्क या वाद-विवाद करना। ३. ऊपर से किसी प्रकार का दबाव पड़ने पर नीचेवाले तल में धँसना या प्रिविष्ट होना। मुहावरा–(लज्जा के मारे) जमीन में गड़ना=लज्जा के कारण ऐसी स्थिति में होना कि मुँह दिखाने या शिर उठाने का साहस न होता हो। जैसे–मैं तो उनकी बातें सुनकर लज्जा के मारे जमीन में गड़ गया। ४. किसी चीज का कुछ अंश जमीन के अन्दर इस प्रकार जमना या स्थापित होना कि वह चीज वहाँ स्थापित हो जाए। जैसे–किले पर झंडा गडऩा। ५. उक्त के आधार पर लाक्षणिक रूप में, कहीं प्रविष्ट होकर स्थापित या स्थित होना। उदाहरण–उर में माखन चोर गड़े। ६. किसी कड़ी या नुकीली चीज का शरीर के किसी अंग में कुछ छेद करते हुए उसेक अंदर धसना या पहुँचाना। चुभना। जैसे–पैर में काँटा या हाथ में सूई गड़ना। ७. किसी परकीय या बाह्य पदार्थ के शरीर में आने या होने के कारण उसके दबाव में किसी अंग में पीड़ा या कष्ट होना। जैसे–भोजन ना पचने के कारण पेट गड़ना, धूल का कण पड़ने के कारण आँख गड़ना। ८. लाक्षणिक रूप में, किसी अनुचित अनुपयुक्त या असोभन बात का मन में कुछ कसक या खटक उत्पन्न करना। खटकना। जैसे–इतने सुन्दर चित्रों के बीच में वह भद्दा चित्र तो हमें गड़ रहा था। ९. आँख या ध्यान के संबंध में, किसी विशिष्ट उद्देश्य से किसी चीज या बात पर स्थित या स्थिर होना। जमना। जैसे–(क) मेरी आँखें उसके चेहरे पर गड़ी थी। (ख) सबका ध्यान उसकी बातों पर गड़ा था।
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गंडनी  : स्त्री० [सं० गंडाली] सरकंडे की जाति की एक वनस्पति। सरपोका। सर्पाक्षी। सरहटी।
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गड़प  : स्त्री० [अनु०] १. पानी, कीचड़ आदि में किसी चीज के सहसा गिरने या डूबने का शब्द। २. किसी वस्तु को बिना चबाये निकल जाने की क्रिया या भाव। पद-गड़प से-चटपट। तुरन्त।
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गड़पंख  : पुं० [सं० गरुड़+हिं० पंख] १. एक प्रकार की बड़ी चिड़िया। २. लड़कों का एक प्रकार का खेल, जिसमें वे किसी को तंग करने के लिए पक्षी की तरह बनाकर बैठातें हैं।
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गड़पना  : स० [अनु० गड़प] १. किसी वस्तु को बिना चबाये निगल जाना। जल्दी में खा या निगल जाना। २. किसी की चीज लेकर पचा जाना। अनुचित रूप से दबा बैठना। हड़पना।
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गड़प्पा  : पुं० [हिं० गाड़] १. बड़ा गड्ढा। २. पशुओं को फँसाने के लिए बनाया हुआ गड्ढा। ३. बहुत बड़े धोखे की जगह।
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गड़बड़  : वि० [अनु०] १. जिसमें ठीक क्रम, परम्परा, व्यवस्था आदि का अभाव हो। विश्रृंखल। जैसे–तुम्हारा यह लेखा बहुत गड़बड़ हैं। २. बिना किसी क्रम, नियम या व्यवस्था के अथवा खराब या भद्दी तरह से आपस में मिला या मिलाया हुआ। जैसे–तुमने अलमारी की सब पुस्तकें गड़बड़ कर दीं। ३. बे-ठिकाने या बे-सिर पैर का। अंड-बंड। ऊट-पटाँग। जैसे–तुम्हारी इस तरह की गड़बड़ कारवाई यहाँ नहीं चलने पायगी। पुं० [स्त्री० गड़बड़ी, वि० गड़बड़िया] १. ऐसी अव्यवस्था जिसमें क्रम, नियमितता,व्यवस्था आदि का बहुत अधिक और खटकने वाला अभाव हो। जैसे–तुम जहाँ पहुँचते हो, वही कुछ न कुछ गड़बड़ करते हो। २. असावधानता, भूल, भ्रम आदि के कारण कुछ का कुछ कह देने की क्रिया या भाव। ३. उत्पात। उपद्रव।
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गड़बड़-घोटाला  : पुं० दे० ‘गड़बड़-झाला’।
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गड़बड़-झाला  : पुं० [अनु०] ऐसा काम, बात या स्थिति जिसमें बहुत अधिक गड़बड़ी हों।
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गड़बड़ा  : पुं०=गड़प्पा।
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गड़बड़ाध्याय  : पुं० दे० ‘गड़बड़-झाला’।
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गड़बड़ाना  : अ० [हिं० गड़बड़] १. गड़बड़ी, चक्कर या धोखे में पड़ना। २. क्रम आदि लगाने के समय भूल करना। भ्रम में पड़ना। ३. अस्त-व्यस्त या तितर-बितर होना। स० १. गड़बड़ी, चक्कर या धोखे में डालना। २. भ्रम में डालना। ३. क्रम आदि के विचार से आगे-पीछे या इधर-उधर करना। ४. अस्त-व्यस्त या तितर-बितर करना।
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गड़बड़िया  : वि० [हिं० गड़बड़] १. जो कोई काम ठीक ठिकाने अथवा व्यवस्थित रूप से न करता हो। क्रम, व्यवस्था आदि बिगाड़नेवाला। गड़बड़ करनेवाला। २.उपद्रव या दंगा करनेवाला। अशांति फैलानेवाला।
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गड़बड़ी  : स्त्री०=गड़बड़।
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गँडरा  : पुं० [सं० गंडाली] [स्त्री० गँडरी] १. मूँज की एक जाति की एक घास। २. एक प्रकार का धान।
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गड़रातवा  : पुं० [देश० गड़रा-गाढ़ा+हिं० तवा] एक प्रकार का लोहा जो किसी समय मध्यभारत की खानों में निकलता था।
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गड़रिया  : पुं० दे० ‘गड़ेरिया’।
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गड़री  : पुं० =गड़ेरिया।
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गड़रू  : पुं० दे० ‘गुड़रू’।
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गंडल  : पुं० =गंड-स्थल। (कनपटी)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गंडली  : स्त्री० [सं० गण्ड√ली(लीन होना)+क्विप्-ङीष्] छोटी पहाड़ी। पुं० शिव।
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गड़वा  : पुं० १. =गाड़ा। २. =गड़ुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गड़वाँत  : स्त्री० [हिं० गाड़ी+वाट]कच्ची सड़क पर बना हुआ गाड़ी के पहिए का चिन्ह्र। लीक।
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गड़वात  : स्त्री० [हिं० गाड़ना] १. कोई चीज जमीन में गाड़ने की क्रिया। २. गड्ढा खोदने का काम। ३. जमीन पर पड़ा हुआ गाड़ियों के पहिए का निशान।
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गड़वाना  : स० [हिं० गाड़ना का प्रे० रूप] गाड़ने का काम किसी से करवाना। गाड़ने में लगाना। स० [हिं० गड़ाना] गड़ाने का काम किसी दूसरे से कराना।
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गड़हन  : पुं० [हिं० जड़हन का अनु०?] एक प्रकार का धान। उदाहरण-गड़हन, जड़हन, बड़हन मिला।–जायसी।
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गड़हा  : पुं० [स्त्री० अल्पा० गड़ही]-गड्ढा।
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गंडा  : पुं० [सं० गंडक=गाँठ] १. तागे, रस्सी आदि में लगाई जाने वाली गाँठ। २. दैविक उपद्रवों, बाधाओं आदि से रक्षित रहने के लिए कलाई या गरदन में लपेटकर बाँधा जानेवाला मंत्र-पूत डोरा या सूत। ३. पशुओं के गले में बाँधा जानेवाला पट्टा। पुं० [सं० गंड-चिह्र] आड़ी, गोल या गोलाकार धारी या रेखा। जैसे-कनखजूरे की पीठ पर का गंडा, तोते के गले का गंडा। पुं. [?] चीजें गिनने में चार का समूह। जैसे–दो गंडे पैसे या चार गंडे आम।
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गड़ा  : पुं० [हिं० गड़] कटी हुई फसल के डंठलों का ढेर। गाँज। खरही। पुं० [गण-समूह] ढेर। राशि। पद-गड़ा-बँटाई-। (देखें)।
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गड़ा-बँटाई  : स्त्री० [हिं० गड़ा-गाँज+बँटाई] फसल की वह बँटाई जिसमें वह दाएँ जाने के पहले डंठलों आदि के सहित बाँटी जाती है। खाटकर रखी हुई फसल की बँटाई।
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गड़ाकू  : स्त्री० [सं० गल] एक प्रकार की मछली।
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गंडांत  : पुं० [सं० गंड-अंत, ष० त० ] ज्येष्ठा, अश्लेषा और रेवती के अंत में पाँच या तीन दंड तथा मूल, मघा और अश्विनी के अंत के तीन दंड। (ज्योतिष)
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गड़ाना  : स० [हिं० गड़ना] हिं० गड़ना का स० रूप। चुभाना। कोई नुकीली तथा कड़ी चीज किसी के अन्दर धँसाना। सं० दे० गड़वाना।
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गड़ाप  : पुं० [अनु०] जल में कोई भारी वस्तु फेकने या गिरने से होने वाला शब्द।
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गड़ापा  : पुं० =गड़प्पा।
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गड़ायत  : वि० [हिं० गड़ना] गड़ने, चुभने या धँसनेवाला।
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गंडारि  : स्त्री० [गंड-अरि, ष० त०] कचनार।
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गड़ारी  : स्त्री० [सं० गंड-चिन्ह] १. मंडलाकार रेखा। गोल लकीर। वृत्त। २.घेरा। मंडल। जैसे-गड़ारीदार पाजामा। ३. वृत्ताकार चिन्ह्र या धारी। आड़ी-तिरछी रेखाएँ। जैसे–रुपए के आँवठ पर की गड़ारियाँ। ४. वह छोटा गोल पहिया जो लोहे के छड़ के चारों ओर घूमता है और जिस पर मोटी रस्सी लगाकर नीचे से बारी चीजें उठाई या ऊपर खींची जाती है। घिरनी। (पुली) जैसे–कूएँ की गड़ारी। ५. उक्त के दोनों किनारों के बीच की दबी हुई जगह जिसमें रस्सी रखी जाती हैं। ६. एक प्रकार की घास।
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गड़ारीदार  : वि० [हिं० गड़ारी+फा० दार] १. जिस पर गड़ारियाँ अर्थात् गंडे या धारियाँ पड़ी हो। जैसे–गड़ारीदार रुपया, गड़ारीदार कसीदा। २. जिसमें छोटे-छोटे घेर हों या पड़ते हों। जैसे–गड़ारीदार पाजामा-चौड़ी मोहरी का पाजामा।
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गंडाली  : स्त्री० [सं० गंड√अल् (भूषित करना)+अण्-ङीप्] गाँडर घास।
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गड़ावन  : पुं० [संगड-लवण] एक प्रकार का नमक।
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गँडासा  : पुं० [हिं० गंड+आसा (प्रत्यय)] हँसिये की तरह का घास काटने का एक औजार।
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गड़ासा  : पुं० =गँड़ासा।
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गडि  : पुं० [सं०√गड्(मुख का एक देश होना)+इन] १. बच्चा। बछड़ा। २. जल्दी न चलनेवाला या मट्ठर बैल।
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गंडिनी  : स्त्री० [सं० गंड+इनि-ङीष्] दुर्गा।
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गँड़िया  : पुं० =गाँड़ू।
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गड़ियार  : वि० =गरियार।
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गड़िवारा  : पुं० [स्त्री० गड़िवारिन] =गाड़ीवान।
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गंडीर  : पुं० [सं०√गंड्+ईरन्] १. पोई नाम की लता। २. थूहर। सेंहुड़।
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गंडीरी  : स्त्री० [सं० गंडीर+ङीष्] =गंडीर।
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गंडु  : पुं० [सं०√गंड़+उन्] १. गाँठ। २. तकिया।
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गडु  : पुं० [सं०√गड्+उन] १. रोग के रूप में शरीर के किसी अंग में उठी हुई गाँठ। जैसे-कूबड़, बतौरी आदि। २. गंड़-माला नामक रोग। वि० [हिं० गड़ना] गड़ने या चुभनेवाला। वि० =गुरु (भारी)।
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गंडु-पद  : पुं० [ब० स०] फीलपाँव नामक रोग।
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गड़ुआ  : पुं० [सं०गडु] [स्त्री० अल्पा.गड़ई वा गडुई] एक प्रकार का टोटी दार लोटा।
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गडुई  : स्त्री० [हिं० गड़ुआ का स्त्री अल्पा.रूप] पानी रखने का लोटा गड़ुआ। झारी।
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गंडुक  : पुं० =गंडूष।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गडुक  : पुं० [सं० गडु√कै (प्रतीत होना)+क] टोंटीदार लोटा । गडुआ।
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गडुर  : पुं० दे० ‘गड़ुल’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =गरुड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गडुल  : पुं० [सं० गडु+ल] वह व्यक्ति जिसका कूबड़ निकला हो। वि० कुबड़ा। कुब्ज।
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गडुलना  : पुं०=गड़ोलना।
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गडुवा  : पुं० दे० ‘गडुआ’।
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गंडू  : पुं० =गाँड़ू।
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गंडू-पद  : पुं० [गंडू+ऊड़,गंड़ू-पद,ब.स०] केंचुआ।
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गंडूक  : पुं० =गंडूष।
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गंडूल  : वि० [सं०गंड√ला(लेना)+क]१. जिसमें गाँठें हो। गाँठदार। २. झुका हुआ। टेढ़ा।
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गंडूष  : पुं० [सं०√गंडू+ऊषन्] [स्त्री० गंडूषा] १. हथेली का गड्ढा। चुल्लू। २. पानी से किया जाने वाला कुल्ला। ३. हाथी के सूँड़ की नोक।
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गडेर  : पुं० [सं०√गड्+एरक्] बादल। मेघ।
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गड़ेरिया  : पुं० [सं० गड्डरिक, प्रा० गड्डरिअ] [स्त्री० गड़ेरिन] १. भेड़ें पालनेवाला एक प्रसिद्ध जाति। पद–गड़ेरियों पुराण=गड़ेरियों की सी या गँवारू बात-चीत और कथा-कहानियाँ। २. उक्त जाति का पुरुष। वह जो भेड़ें चराता या पालता हों। ३. रहस्य संप्रदाय में, ज्ञान जो मनुष्य को परमात्मा की ओर ले जाता है।
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गँडेरी  : स्त्री० [सं० गण्ड] १. ईख या गन्ने के छोटे टुकड़े जो कूल्हू में पिरने के लिए काटे जाते है। २. चूसने के लिए ईख या गन्ने को छीलकर काटे हुए छोटे टुकड़े। ३. किसी चीज के छोटे लंबोतरे टुकड़े।
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गड़ेरुआ  : पुं० [सं० गण्डोल-ग्रास] चौपायों का एक रोग।
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गड़ैता  : पुं० [देश०] खैरे रंग का एक प्रकार का लंबा साँप जिसकी पीठ पर गड़ारियाँ होती हैं।
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गड़ोना  : पुं० [?] एक प्रकार का पान। गड़ौना। स०=गड़ाना (चुभाना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गंडोपधान  : पुं० [गंड-उपधान ष० त०] गल-तकिया।
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गँडोरा  : पुं० [सं० गंडोल=ईख] हरी कच्ची खजूर।
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गंडोल  : पुं० [सं०√गंड्+ओलख्] १. गुड़। २. कच्ची या लाल शक्कर। ३. ईख या गन्ना। ४. कौर। ग्रास।
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गडोल  : पुं० [सं०√गड्+ओलच्] १. ग्रास। कौर। २. गुड़।
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गडोलना  : पुं० [हिं० गाड़ी+ओला,ओलना(प्रत्यय)] बच्चों के खेलने की छोटी गाड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गड़ौना  : पुं० [हिं० गाड़ना] एक प्रकार का पान जिसे पकाने के लिए जमीन में गाड़कर रखा जाता है। पुं० [हिं० गड़ना] गड़ने या चुभनेवाली चीज। जैसे–काँटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गड्ड  : पुं० [सं० गण] [स्त्री० गड्डी] १. एक ही तरह का आकार प्रकार की बहुत सी वस्तुओं का एक के ऊपर एक रखा हुआ समूह। गंज। थाक। जैसे–कागजों या पुस्तकों का गड्ड। २. मूल्य, लागत आदि के विचार से एक साथ रहनेवाली छोटी-बड़ी या कई तरह की चीजों का समूह। पद–गड्ड में-छोटी=बड़ी, महँगी-सस्ती या सब तरह की चीजें एक साथ और एक भाव लेने पर। पुं०=गड्ढा।
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गड्डना  : स०=गाड़ना। उदाहरण–को गड्डैं खोवेत्तिको, को विलसै करि भेव।–चन्द्रवरदाई।
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गड्डबड्ड,गड्डमड्ड  : वि० [हिं० गड्ड] १. अव्यवस्थित रूप से एक दूसरे में मिला हुआ। २. अंड-बंड या बेमेल।
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गड्डर  : पुं० [सं०√गड्+डर] [स्त्री० गड्डरी, वि० गड्डरिक] १. बेड़ा। मेष। २. भेड़।
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गड्डरि(लि)का  : स्त्री० [सं० गड्डरिक+टाप्] भेड़ों की पाँत।
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गड्डरिक  : पुं० [सं० गड्डर+ठन्–इक] गड़ेरिया। वि० भेड़-संबंधी। भेड़ का।
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गड्डरी  : पुं० =गड़ेरिया।
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गड्डलिका-प्रवाह  : पुं० [ष० त० ] भेड़िया-धसान। ( दे०)
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गड्डा  : पुं० [हिं० गड्ड] १. किसी चीज की बड़ी गड्डी। गड्ड। २. आतिशबाजी में चरखियों आदि में लगाया जानेवाला पटाखा जो आतिशबाजी छूटने के समय बहुत जोर का शब्द करता है। पुं० [देश०] बड़ी बैलगाड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =गड्ढा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गड्डाम  : वि० [अं० गाँड+डेम इट] [स्त्री० गड्डामी] १. पाजी। लुच्चा। २. नीच।
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गड्डी  : स्त्री० [हिं० गड्ड का स्त्री] १. प्रायः एक ही आकार तथा प्रकार की वस्तुओं का क्रमशः ऊपर-तले रखा हुआ समूह। गंज। जैसे-नये नोटों की गड्डी, ताश की गड्डी, पान की गड्डी आदि। २. ढेर। समूह। गाँज। जैसे–आमों की गड्डी।
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गड्डुक,गड्डूक  : पुं० [सं० गडुक, पृषो० सिद्धि] गडुआ। (पात्र)।
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गड्ढा  : पुं० [सं० गर्त,प्रा० गड्ड] १. वह जमीन जो प्राकृतिक क्रिया या रूप से आस-पास या चारों ओर की जमीन से बहुत कुछ गहरी या नीची हो। जमीन में वह खाली स्थान जिसमें लंबाई, चौड़ाई और गहराई हो। जैसे–मिट्टी धँसने के कारण जमीन में जगह-जगह गंड्डे पड़ गये थे। २. उक्त प्रकार की वह जमीन जो खोदकर आस-पास की जमीन से गहरी और नीची की गई हो। जैसे–पानी जमा करने के लिए गड्ढा खोदना। ३. किसी तल में वह अंश जो आस-पास के तल से कुछ गहरा या नीचा हो। जैसे–गालों में या आँखों पर गड्ढे पड़ना। ४. ऐसी अवस्था या स्थिति जो किसी दृष्टि से विपत्ति लाने, संकट में डालने या हानि करनेवाली हो। जैसे–अभी क्या है। आगे चलकर इस काम में और भी बड़े बड़े गड्ढे मिलेगें। मुहावरा–(किसी के लिए) गड्ढा खोदना=ऐसी स्थिति उत्पन्न करना, जिससे कोई विपत्ति में पड़े या किसी को संकट का सामना करना पड़े। जैसे–जो दूसरों के लिए गड्डा खोदता है वह आप गड्डे में पड़ता है। गड्ढा पाटना या भरना=विपत्ति या संकट की जो स्थिति उत्पन्न हुई हो उसे दूर करके फिर पहलेवाली और ठीक स्थिति लाना। ५. लाक्षणिक रूप में उदर। पेट। जैसे–किसी न किसी तरह सबको अपना गड्ढा भरना ही पड़ता है।
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गढ़  : पुं० [सं० गड़=खाई] [स्त्री० अल्पा०गढ़ी] १. ऐसा किला जिसके चारों ओर खन्दक या खाई खुदी हों। २. किला। कीट। दुर्ग। मुहावरा–गढ़ जीतना या तोड़ना= (क) युद्ध में किसी किले पर अधिकार प्राप्त करना। (ख) कोई बहुत बड़ा या विकट संपन्न करना। ३. काठ का बड़ा सन्दूक जिसका उपयोग प्राचीन काल में युद्ध में होता था। ४. किसी विशिष्ट प्रकार के कार्य अथवा व्यक्तियों का केन्द्र अथवा प्रसिद्ध और मुख्य स्थान। बहुत बड़ा अडडा। जैसे–(क) यह मुहल्ला तो गुड़ों या बदमाशों का गढ़ है। (ख) कलकत्ता या बम्बई पूँजीपतियों के गढ़ हैं।
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गढ़कप्तान  : पुं० [हिं० गढ़+अं० कैप्टेन] गढ़ या किले का प्रधान अधिकारी।
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गढंत  : स्त्री० [हिं० गढ़ना] १. कोई चीज गढ़कर तैयार करने या बनाने की क्रिया या भाव। गढन। (देखें) २. अपने मन से गढ़कर कहीं जानेवाली बात। कपोल-कल्पित बात। जैसे–समय पर इनकी अनोखी गढंत ने हमें बचा लिया। ३. कुश्ती लड़ने के तीन प्रकारों में से एक, जिसमें लड़नेवाले पहलवान आपस में अच्छी तरह गठ या गुथ जाते हैं। वि० (कथन या विचार) जो वास्तविक न हो, बल्कि यों ही अपने मन से गढ़कर या तैयार किया या बनाया गया हो। कपोल-कल्पित। जैसे–इनकी सब बातें इसी तरह की गढ़ंत होती है।
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गढ़त  : स्त्री० १. गढ़न। २. गढ़ंत।
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गढ़न  : स्त्री० [हिं० गढ़ना] १. गढ़ने या गढ़े जाने की क्रिया, ढंग या भाव। २. बनावट। रचना।
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गढ़ना  : स० [सं० घटन,प्रा० घड़न,पश्चिमी हिं० घड़ना] १. कोई नयी चीज बनाने के लिए किसी स्थूल पदार्थ की काट, छील या तराशकार तैयार या दुरस्त करना। कारीगरी से निर्मित करना या बनाना। जैसे–पत्थर की मूर्ति या चाँदी-सोने के गहनें गढऩा। २. किसी को काट छाट या छील-तराशकर सुन्दर और सुडौल रूप में लाना। जैसे–दरवाजे का पल्ला गढ़ना। ३. परिश्रम तथा मनोयोग से अच्छी तरह और सुन्दर रूप में कोई काम करना। जैसे-गढ़-गढ़कर लिखना। ४. अपने मन से कोई कल्पित बात बनाकर अथवा कोई बात नमक-मिर्च लगाकर सुन्दर रूप में उपस्थित या प्रस्तुत करना। जैसे–गढ़-गढ़कर बातें करना। ५. किसी को ठीक रास्ते पर लाने के लिए खूब मारना पीटना। जैसे–मैं किसी दिन तुम्हें गढ़कर ठीक करूँगा। मुहावरा–(किसी की) हड्डी पसली गढ़ना=खूब मारना या पीटना।
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गढ़पति  : पुं० [हिं० गढ़+पति] १. गढ़ का मालिक या स्वामी। राजा। २. गढ़ का प्रधान अधिकारी।
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गढ़वाना  : स० [हिं० गढ़ना का प्रे०] गढ़ने का काम किसी से कराना।
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गढ़वार  : पुं० =गढ़वाल।
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गढ़वाल  : पुं० [हिं० गढ़+वाला] १. गढ़ का स्वामी अथवा प्रधान अधिकारी। २. उत्तर प्रदेश के उत्तरी भाग का एक पहाड़ी भू-खंड।
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गढ़वै  : पुं० [हिं० गढ़पति] गढ़ का प्रधान अधिकारी या रक्षक। किलेदार। उदाहरण–हठ दृढ़ गढ़ गढवै सुचलि लीजै सुरँग लगाय।–बिहारी। वि० [हिं० गढ़+वर्ती] आश्रय पाने के लिए सुरक्षित स्थान में छिपा या पहुँचा हुआ। उदाहरण–गरम भाजि गढ़वै भई, तिय-कुच अचल मवासु।–बिहारी।
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गढ़ा  : पुं० [स्त्री० गढ़ी] दे० ‘गड्ढा’।
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गढ़ाई  : स्त्री० [हिं० गढ़ना] गढ़ने की क्रिया ढंग भाव या मजदूरी।
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गढ़ाना  : स० [हिं० गढ़ना का प्रे० रूप] गढ़ने का काम किसी से कराना। गढ़वाना। अ० [हिं० गाढ़-संकट] अप्रिय, कष्टकर या भारी जान पड़ना। खलना। गड़ना। जैसे–तुम्हारी ऐसीं ही बातें तो सबको गढ़ाती है।
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गढ़ाव  : पुं० [हिं० गढ़ना] गढ़ने या गढ़ाने का काम, प्रकार या रूप। गढ़न।
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गढ़िया  : पुं० [हिं० गढ़ना] वह जो वस्तुओं को गढ़कर उन्हें सुडौल रूप देता हो। स्त्री० =छोटा गड्ढा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गढ़ी  : स्त्री० [हिं० गढ़] १. छोटा गढ़ या किला। २. ऊँचाई पर बनी हुई बड़ी और मजबूत इमारत। ३. छोटा गड्ढा।
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गढ़ीस  : पुं०=गढ़पति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गढ़ैया  : पुं० =गढ़िया (गढ़नेवाला)। स्त्री० =गड़ही (छोटा गड्ढा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गढ़ोई  : पुं० =गढ़पति।
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गण  : पुं० [सं०√गण्(गिनना)+अच्] १. जत्था। झुंड। समूह। २. कोटि। वर्ग। श्रेणी। ३. किसी के आस-पास रहने वाले व्यक्तियों का वर्ग या समूह। अनुचरों या परिचायकों का वर्ग। ४. शिव के परिषद। प्रथम। ५. चर। दूत। ६. नौकर। सेवक। ७. ऐसे पदार्थों, प्राणियों, व्यक्तियों आदि का समुदाय जिनमें किसी में समानता हो। कोटि। वर्ग। जैसे–किसी आचार्य या अनुयायियों या शिष्यों का गण। ८. ऐसे आचार्य का निवास स्थान जो अपने शिष्यों को शिक्षा देता हो। ९. प्राचीन सैनिक विभाजन में तीन गुल्लों का वर्ग या समूह। १॰. नक्षत्रों की तीन चोटियों में से एक। ११.छन्दशास्त्र में तीन वर्णों का समूह या वर्ग। जैसे-जगम, तगण, नगण, भगण, यगण, सगण आदि। १२.व्याकरण में धातुओं व शब्दों के वे समूह जिनमें एक ही तरह के लोप,आगम, वर्ण विकार आदि बातों होती हों। १३.चोआ नामक गंध द्रव्य। १४. दे० गणराज्य।
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गण-गर्णिका  : स्त्री० [सं० गण-कर्ण,ब० स० कप्, टाप्, इत्व] इंद्रवारणी लता।
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गण-तंत्र  : पुं० [ष० त० ] वह राज्य या राष्ट जिसकी सत्ता जन-साधारण (विशेषतः मतदाताओं या निर्वाचकों) में निहित होती है। (रिपब्लिक) विशेष–गणतंत्र की सरकार जन-साधारण द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों की बनी होती है जो निर्वाचकों या मतदाताओं के प्रति उत्तरदायी होती है।
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गण-तंत्री (त्रिन्)  : वि० [सं० गणतंत्र+इनि] १. गणतंत्र संबंधी। २. गणतंत्र के सिद्धातों तो मानने तथा उनमें विश्वास रखनेवाला। (रिपब्लिकन) ३. (देश) जिसमें गणतंत्र हो।
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गण-देवता  : पुं० [ष० त० ] १. समूहचारी देवता। २. वे देवता जो गणों में विभक्त हैं अथवा जिनके गण बने हैं। जैसे–आदित्य जिनकी संख्या १२. है और इसी लिए जिनका स्वतंत्र गण है। इसी प्रकार मरूत् रूद्र, आदि भी गण देवता कहे जाते है।
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गण-द्रव्य  : पुं० [ष० त० ] वह संपत्ति जिस पर किसी वर्ग या समुदाय का सामूहिक अधिकार हो।
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गण-धर  : पुं० [ष० त० ] जैनों में एक प्रकार के आचार्य।
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गण-नाथ  : पुं० [ष० त० ] १. गणों का नाथ या स्वामी। २. गणेश। ३. शिव।
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गण-नायक  : पुं० [ष० त० ] १.गणेश। २. शिव।
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गण-नायिका  : स्त्री० [ष० त०] दुर्गा।
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गण-पति  : पुं० [ष० त० ] १. गण का स्वामी। २. गणेश। ३. शिव।
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गण-पर्वत  : पुं० [ष० त० ] शिव के गणों के रहने का पर्वत अर्थात् कैलास।
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गण-पाठ  : पुं० [ष० त० ] व्याकरण में एक ही नियम के अधीन रहने वालों शब्दों का वर्ग।
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गण-पुंगव  : पुं० [स० त०] किसी गण या वर्ग का प्रधान व्यक्ति। मुखिया।
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गण-पूर्ति  : स्त्री० [ष० त०] किसी सभा, समिति आदि की बैठक के कार्य संचालन के लिए आवश्यक मानी जाने वाली निर्धारित अल्पतम सदस्यों की उपस्थिति। इयता। (कोरम)
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गण-भोजन  : पुं० [ष० त० ] बहुत से लोगों को एक साथ बैठा कर कराया जाने वाला भोजन। सहभोज।
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गण-मुख्य  : पुं० [ष० त०] गण का प्रधान व्यक्ति। मुखिया।
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गण-राज्य  : पुं० [ष० त० ] १. प्राचीन भारत में एक प्रकार के राज्य, जिनमें किसी राजा का नहीं, बल्कि प्रजा के चुने हुए लोगों का शासन होता था। २. दे० ‘गण-तन्त्र’।
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गण-संख्या  : स्त्री० [ष० त०] गणना या गिनती की सूचक संख्या। (कार्डिनल नम्बर) जैसे–एक, दो, तीन, चार आदि।
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गणक  : वि० [सं०√गण्+णिच्+ण्युल्-अक] गिनने या गिनती करनेवाला। गणना करनेवाला। पुं० [स्त्री० गणकी] १. गणितज्ञ। २. ज्योतिषी।
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गणक-केतु  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार का धूमकेतु।
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गणकार  : वि० [सं० गण√कृ (करना)+अण्] १. गणों का संकलन करनेवाला। २. गणों में बाँटने तथा वर्गीकरण करनेवाला।
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गणकी  : स्त्री० [सं० गणक+ङीष्] ज्योतिषी की पत्नी।
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गणदीक्षी(क्षिन्)  : पुं० [सं० गण√दीक्ष् (यज्ञ करना)+णिनि] १. वह पुरोहित जो बहुत से लोगों को ओर से यज्ञ करता हो। २. वह जिसने गणेश या शिव की दीक्षा ग्रहण की हो।
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गणन  : पुं० [सं०√गण्+ल्युट्-अन] [वि० गणनीय, गणित, गण्य] १. गिनने या गिनती करने की क्रिया या भाव। गिनना। (काउंटिग) २. गिनती।
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गणना  : स्त्री० [सं०√गण्+णिच्+युच्-अन] १. गिनती करने की क्रिया या भाव। गणन। जैसे–आपकी गणना नगर के अच्छे वैद्यों में होती है। २. किसी प्रदेश,भूभाग या राज्य के जीवों मनुष्यों आदि की होनेवाली गिनती। (सेन्सस) जैसे–मनुष्य-गणना, पशु-गणना आदि। ३. गिनती। संख्या। ४. केशव के अनुसार एक अलंकार जिसमें एक-एक संख्या लेकर उससे संबंध रखनेवाले पदार्थों का उल्लेख होता है। जैसे–गंगा-मल,गंगेश-दृग,ग्रीव-रेख, गुण-लेखि। पावक, काल,त्रिशूल, बलि, संध्या तीनि बिसेखि।–केशव। (इसमें वही चीजें गिनाई गई हैं, जो तीन-तीन होती है)।
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गणनीय  : वि० [सं०√गण्+अनीयर्] १. गिनने मे आने के योग्य। गिने जा सकने के लायक। २. जो गिनी जाने को हो। ३. प्रतिष्ठित या मान्य वर्ग में आ सकने के योग्य।
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गणप  : पुं० [सं० गण√पा(रक्षाकरना)+क] गणेश।
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गणहास  : पुं० [सं०गण√हस्(हँसना)+णिच्+अण्] एक प्रकार का गंध-द्रव्य।
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गणाग्रणी  : पुं० [सं० गण-अग्रणी,ष० त० ] १. गण का अगुआ या मुखिया। २. गणेश।
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गणाचल  : पुं० [सं० अण-अचल,ष० त० ] कैलास, जहाँ शिव के गण रहते हैं। गण-पर्वत।
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गणाधिप  : पुं० [सं० गण-अधिप, ष० त० ] १. गण या गणों का अधिपति या स्वामी। २. गणेश। ३. जैनी साधुओं का प्रधान या मुखिया।
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गणाध्यक्ष  : पुं० [सं० गण-अध्यक्ष,ष० त० ] १.गणों का अध्यक्ष या स्वामी। २. गणेश। ३. शिव।
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गणान्न  : पुं० [सं० गण-अन्न, ष० त० ] बहुत से लोगों के लिए एक साथ बनाया जाने वाला भोजन।
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गणि  : स्त्री० [सं०√गण्√इन्] गणना।
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गणि-कारिका  : स्त्री० [ष० त०] गनियार का पेड़।
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गणिका  : स्त्री० [सं० गण+ठन्-अक,टाप्] १. रंडी। वेश्या। २. साहित्य में, वह नायिका जो केवल धन के लोभ से लोगों का मनोरंजन करती हो। वेश्या नायिका। ३. पुराणानुसार जीवंती नाम की एक परम दुराचारिणी वेश्या जो केवल अपने तोते को राम-राम पढ़ाते समय मरने के कारण मोक्ष की अधिरकारिणी हुई थी। ४. रहस्य संप्रदाय में, माया जो मनुष्यों को अपने जाल में फँसायें रखती है। ५. गनियारी नामक वृक्ष।
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गणिकारी  : स्त्री० [सं० गणि√कृ+अण्-ङीष्] गनियार का पेड़।
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गणित  : पुं० [सं०√गण्+क्त] वह शास्त्र जिसमें परिमाण, मात्रा संख्या आदि निश्चित करने की रीतियों का विवेचन होता है। हिसाब। पाटीगणित, बीजगणित और रेखागणित ये तीनों इसी प्रकार के भेद है। (मैथेमेटिक्स)
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गणितज्ञ  : वि० [सं० गणित√ज्ञा (जानना)+क] १. गणित शास्त्र का ज्ञाता या पंडित। २. ज्योतिषी।
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गणेरु  : पुं० [सं०√गण्+एरु] कर्णिकार वृक्ष। स्त्री० १. वेश्या। २. हथिनी।
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गणेरुका  : स्त्री० [सं० गणेरु√कै(शब्द करना)+क-टाप्] १. वेश्या। २. कुटनी। ३. हथिनी।
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गणेश  : वि० [सं० गण-ईश, ष० त० ] गणों का मालिक या स्वामी। गणों का प्रधान। पुं० हिदुओं के एक प्रसिद्ध देवता जो विद्या के अधिष्ठाता और विघ्नों के विनाशक माने गये हैं। गणपति। विनायक। विशेष-इनका मुँह और सिर बिल्कुल हाथी का माना गया है, इसी लिए इन्हें गजानन भी कहते है।
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गणेश-कुसुम  : पुं० [उपमि० स०] लाल कनेर।
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गणेश-क्रिया  : स्त्री० [ष० त०] हठ योग की एक क्रिया, जिससे गुदा के अन्दर का मल साफ करके निकाला जाता है।
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गणेश-चतुर्थी  : स्त्री० [मध्य० स०] भादों और माघ की शुक्ला चतुर्थियाँ जिनमें गणेश का पूजन और व्रत होता है।
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गणेश-चौथ  : स्त्री० =गणेश-चतुर्थी।
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गणेश-पुराण  : पुं० [मध्य० स०] एक उपपुराण जिसमें गणेश का माहात्म्य वर्णित हैं।
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गणेशभूषण  : पुं० [सं० गणेश√भूष्(अलंकृत करना)+णिच्+ल्यु-अन] सिंदूर।
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गण्य  : वि० [सं०√गण् (गिनना)+यत्] १. गण-संबंधी। २. जो गिना जाने को हो या गिना जा सकता हो। ३. जो महत्व योग्यता आदि के विचार से मान्य हो सकता हो। प्रतिष्ठित। जैसे–नगर के सभी गणमान्य वहाँ उपस्थित थे। पद-गण्य-मान्य-प्रतिष्टित।
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गत  : भू० कृ० [सं०√गम् (जाना)+क्त] १. जो सामने से होता हुआ पीछे चला गया हो। गया या बीता हुआ। जैसे–गत जीवन, गत दिवस। २. जो नष्ट या लुप्त हो चुका हो। जैसे–गत वैभव, गत यौवन। ३. रहित। विहीन। जैसे–गत चेतना, गत ज्ञाति, गत नासिका। ४. जो इस लोक से चला गया हो। मृत। स्वर्गीय। जैसे–गतात्मा। प्रत्यय-एक प्रत्यय जो कुछ शब्दों के अंत में लगकर ये अर्थ देता है–(क) संबंध रखनेवाला। जैसे–जातिगत, जीवनगत, व्यक्तिगत आदि और (ख) आया, मिला या लगा हुआ। जैसे–अंतर्गत, बहिर्गत आदि। स्त्री० [सं० .गति] १. अवस्था। दशा। दुर्दशा। मुहावारा–(किसी की) गत बनाना=दुर्दशा करना। ३. रूप। वेष। ४. उपयोग। प्रयोग। ५. विशिष्ट ताल और लय में बँधे हुए बाजों की धुन या बोल। ६. नाच में एक विशेष प्रकार की गति अथवा ऐसी गति से युक्त नाच का कोई टुकड़ा। मुहावरा–गत लेना=नाच में विशेष प्रकार की गति प्रदर्शित करना। ७. मृतक का क्रिया कर्म।
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गत-कुल  : पुं० [ब० स०] वह संपत्ति जिसका कोई अधिकारी न बचा हो। लावारिस जायदाद या माल।
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गत-चेतन  : वि० [ब० स०] जिसमें चेतना न रह गई हो। अचेतन।
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गत-जीव  : वि० [ब० स० ] मरा हुआ। मृत।
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गत-प्रत्यागता  : स्त्री० [कर्म० स०] वह स्त्री जो अपने पति का घर पहले तो अपनी इच्छा से छोड़कर चली गई हो और फिर आप से आप कुछ दिनों बाद लौट आई हो। (धर्मशास्त्र)
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गत-प्राण  : वि० [ब० स०] मरा हुआ। मृत।
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गत-प्राय  : वि० [सुप्सुपा स०] जो करीब करीब जा या बीत चुका हो। अन्त या समाप्ति के पास पहुँचा हुआ। जैसे–गत-प्राय रजनी।
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गत-भर्तृका  : स्त्री० [ब० स० ] १. विधवा स्त्री। २. स्त्री, जिसका पति विदेश गया हो।
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गत-वय(स्),वयस्क  : वि० [ब० स०] जिसका वय बहुत कुछ बीत चुका हो अर्थात् बुड्ढा। वृद्ध।
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गत-संग  : वि० न उदासीन। विरक्त।
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गत-सत्त्व  : वि० [ब० स०] १. सारहीन। निःसंत्व। २. मृत।
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गतक  : पुं० [सं० गत+कन्] गति।
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गतका  : पुं० [सं० गदा या गदक] १. एक प्रकार का डंडा जो हाथ में लेकर पटा-बनेठी की तरह खेला जाता है। २. उक्त डंडा हाथ में लेकर खेला जानेवाला खेल जिसमें वार करने और रोकने के ढंग सिखायें जाते हैं।
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गतकाल  : पुं० [कर्म० स०] बीता हुआ समय। भूत।
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गतंड  : पुं० [सं० गताण्ड] [स्त्री० गतंडी] हिजड़ा। नपुंसक। वि० बधिया। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गतर  : पुं० [सं०गति] १. अंग। २. शारीरिक बल या शक्ति। पौरुष। जैसे–अब हमारा गतर नही चलता। ३. रक्षा या शरण का स्थान।
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गंतव्य  : वि० [सं०√गम्(जाना)+तव्यम्] १. (स्थान) जहाँ किसी को जाना या पहुँचना हो अथवा जहाँ कोई जाने को हो। २. गम्य।
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गंता(तृ)  : पुं० [सं०√गम्+तृच्] [स्त्री० गंत्री] वह जो किसी स्तान की ओर जा रहा हो। जानेवाला।
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गतांक  : वि० [गत-अंक,ब० स०] (व्यक्ति) जो गया बीता या निकम्मा हो। पुं० [कर्म० स०] सामयिक पत्र का पिछला अर्थात् वर्त्तमान से पहले का अंक।
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गताक्ष  : वि० [गत-अक्षि,ब० स०] जिसकी आँखे न रह गई हों अर्थात् अंधा।
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गतागत  : वि० [गत-आगत,द्व० स०] १. गत और आगत। गया और आया हुआ। २. आत्मा का आवागमन अर्थात् जन्म और मरण। ३. साहित्य में एक प्रकार का शब्दालंकार जिसमें पदों या चरणों की रचना इस प्रकार की जाती है कि उन्हें सीधी तरह से पढ़ने से जो अर्थ निकलता है, उलटकर पढ़ने से भी वही अर्थ निकलता है। जैसे–माल बनी बल केशवदास सदा वश केल बनी बलमा।–केशव।
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गतागति  : स्त्री० [गत-आगति,द्व० स०] १.आना और जाना। २.मरना और फिर जन्म लेना।
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गतांत  : वि० [गत-अंत,ब० स०] जिसका अंत पास आ गया हो।
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गतानुगत  : पुं० [गत-अनुगत,ष० त० ] प्रथा का अनुसरण।
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गतानुगतिक  : वि० [सं०गतानुगत+ठक्-इक] १. आँख मूदकर दूसरों का अनुसरण करनेवाला। अंधानुयायी। २. पुरातन आदर्श देखकर उसी के अनुसार चलनेवाला।
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गतायात  : पुं० [सं० गत-आयात,द्व० स०] जाना और आना। यातायात।
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गतायु(स्)  : वि० [सं०गत-आयुस्,ब०स० ] १. जिसकी आयु समाप्त हो चुकी हो। २. वृद्ध।
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गतार  : स्त्री० [सं० गंत्री] १. बैल के जुएँ में वे दोनों लकड़ियां जो उपरौछी और तरौछी के बीच समानान्तर लगी रहती हैं। २.वह रस्सी जो जुएँ में बँधे हुए बैल के गले के नीचे ले जाकर बाँधी जाती है। ३. बोझ बाँधने की रस्सी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गतार्त्तवा  : वि० स्त्री० [सं० गत-आर्त्तव,ब०स०] १. (स्त्री०) जिसका रजोदर्शन बन्द हो चुका हो। २. बाँझ। बंध्या।
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गतार्थ  : वि० [सं० गत-आर्त्तव,ब० स०] १. (पद या शब्द) जिसका कुछ अर्थ न रह गया हो। २. (पदार्थ) जो काम के योग्य न रह गया हो। ३. (व्यक्ति) जिसके हाथ से अर्थ या धन निकल गया हो। जो अपनी पूँजी गँवाकर निर्धन हो गया हो।
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गति  : स्त्री० [सं०√गम् (जाना)+क्तिन्] १. किसी वस्तु व्यक्ति अथवा उसके किसी अंग या अवयव के स्पंदित या हिलते डुलते रहने की अवस्था या भाव। (मोशन) २. चलने अथवा चलते हुए अपना काम करते रहने की अवस्था या भाव। जैसे–गाड़ी या गड़ी की मन्द गति। ३. अवस्था। दशा। ४. बाना। ५. पहुँच। पैठ। ६. प्रयत्न की सीमा। अंतिम उपाय। ७. एक मात्र सहारा या अवलंब। उदाहरण–जाके गति है हनुमान की।–तुलसी। ८. चेष्टा। प्रयत्न। ९. ढंग। रीति। १॰. मृत्यु के उपरांत जावात्मा का दूसरे शरीर में होनेवाला गमन। जैसे–धर्मात्माओं को उत्तम गति प्राप्त होना। ११.मुक्ति। मोक्ष। १२. दे० गत (नृत्य और संगीत की)।
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गति-भंग  : पुं० [ष० त०] कविता पाठ, संगीत आदि की गति या लय का बीच में भंग या विकृत होना।
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गति-भेद  : पुं० [ष० त० ] =गतिभंग।
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गति-मंडल  : पुं० [ष० त० ] नृत्य में शरीर के विभिन्न अंगों की एक प्रकार की मुद्रा।
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गति-रोध  : पुं० [सं० ष० त० ] १. बीच में कठिनाई या बाधा आ पड़ने के कारण किसी चलते हुए काम या बात का रुक जाना। २. किसी प्रकार के झगड़े या बात-चीत के समय बीच में उत्पन्न होनेवाली ऐसी स्थिति जिसमें दोनों पक्ष अपनी-अपनी बातों पर अड़ जाते हैं और समझौते का कोई रास्ता निकलते नहीं दिखाई देता। (डेडलाँक)
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गति-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] विज्ञान का वह अंग जिसमें द्रव्यों की गति और उन्हें परिचालित करनेवाली शक्तियों का विवेचन होता है। (डायनामिक्स)
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गति-विद्या  : स्त्री० [ष० त०]=गति-विज्ञान।
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गति-विधि  : स्त्री० [ष० त०] आचरण-व्यवहार आदि करने अथवा रहने सहने का रंग-ढंग। जैसे–सेना की गति विधि की निरीक्षण करना।
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गति-शास्त्र  : पुं० [ष० त०]=गति-विज्ञान।
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गति-हीन  : वि० [पं० त०] १. जिसमें गति न हो। २. ठहरा या रुका हुआ। ३. जिसके लिए कोई गति या उपाय न हो। असहाय और दीन।
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गतिक  : पुं० [सं० गति+कन्] १. चलने की क्रिया या भाव। चाल। २. मार्ग। रास्ता। ३. आश्रय। वि० १. गति संबंधी। २. भौतिक गति या चाल से संबंध रखनेवाला। (डायनामिक)
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गतिमान्(मत्)  : वि० [सं० गति+मतुप्] १. जिसमें गति हो। जो चल अथवा हिल-डुल रहा हो। चलता हुआ। २. जो अपना कार्य ठीक प्रकार से निरंतर कर रहा हो।
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गतिया  : पुं० [हिं० गत+इया (प्रत्यय)] संगीत में गत या लय ठीक रखनेवाला, अर्थात् ढोलक, तबला या मृदंग बजानेवाला।
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गतिशील  : वि० [ब० स०] १. चलनेवाला या चलता हुआ। २. आगे की ओर बढ़नेवाला। उन्नतिशील। ३. जो स्वयं चलकर दूसरों को भी चलाता हो।
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गंतु  : पुं० [सं०√गम्+तुन्] १. पथिक। यात्री। २. पथ। मार्ग।
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गत्त  : स्त्री०=गति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गत्ता  : पुं० [सं० गात्रक] [स्त्री० गत्ती] कागज की कई तावों या परतों को एक दूसरी पर चिपका कर बनाई हुई दफ्ती।
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गत्तालखाता  : पुं० [सं० गर्त्त,प्रा० गत्त+हिं० खाता] १. डूबी हुई या गई बीती रकम का खाता या लेखा। बट्टाखाता। २. वह अवस्था जिसमें कोई चीज नष्ट या समाप्त मान ली जाती है और उसके संबंध में आदमी निराश हो जाता है।
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गत्थ  : स्त्री० दे० गथ (पूँजी)।
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गत्यवरोध  : पुं० [सं० गति-अवरोध,ष० त० ]=गतिरोध।
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गंत्रिका  : स्त्री० [सं० गंत्री+कन्-टाप्,हृस्व] बैलगाड़ी।
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गत्वर  : वि० [सं०√गम्+क्वरप्, मलोप, तुक्] [स्त्री० गत्वरी] १. गति में रहने या होनेवाला। चलनेवाला या चलता हुआ। गमनशील। २. नष्ट हो जानेवाला। नश्वर।
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गत्वरा  : स्त्री० [सं० गत्वर+टाप्] पुरानी चाल की एक प्रकार की नाव।
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गथ  : पुं० [सं० ग्रन्थ,प्रा० गत्थ] १. पास का धन। जमा। २. किसी कार्य या व्यापार में लगाया जाने वाला धन। पूँजी। ३. धन-संपत्ति। माल। ४. गरोह। झुंड। ५. समूह।
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गथना  : स० [सं० ग्रथन] १. एक साथ मिलाना। जोड़ना। २. बातें बनाना। अ० १. एक साथ मिलाया जाना। मिलकर इकट्ठा या एक होना। २. घुसना। पैठना। ३. दे० ‘गुथना’।
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गंद  : पुं० [सं० गंध से फा० गन्द] १. बुरी चीज। २. बुरी बात। मुहावरा–गंद बकना =गंदी बातें कहना या गालियाँ देना। ३. दे० गंदगी।
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गद  : पिं० [सं०√गद्(बोलना)+अच्] १. एक प्रकार का विष या जहर। २. बीमारी। रोग। ३. श्रीकृष्ण के छोटे भाई का नाम। ४. राम की सेना का एक बन्दर। ५. एक असुर का नाम। पुं० [अनु०] किसी मुलायम वस्तु पर किसी कड़ी वस्तु के आघात से होनेवाला शब्द।
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गदका  : पुं०=गतका।
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गदकारा  : वि० [अनु० गद+कार(प्रत्यय)] [स्त्री० गदकारी] १. गुदगुदा और मुलायम। २. मांसल।
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गदकारी  : स्त्री० [फा०] चित्रकला में चित्र अंकित करने से पहले स्थान-स्थान पर रंग भरने की क्रिया या भाव। रंगामेजी।
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गदगद  : वि०=गद्गद्।
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गदगदा  : पुं० [देश०] रत्ती नामक पौधा।
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गदगदिका  : स्त्री० [सं० गदगद+कन्-टाप्,इत्व] हकलाने की क्रिया भाव या रोग। हकलाहट।
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गंदगी  : स्त्री० [फा०] १.गंदे होने की अवस्था या भाव। मैलापन। २. खराब, मैली और सड़ी-गली चीजें। ३. गृह। मल। ४. बहुत ही निकृष्ट बातें, विचार या व्यवहार। जैसे–समाज या साहित्य में गंदगी फैलाना बहुत बुरा है। ५. अपवित्रता। अशुद्धता।
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गदचाम  : पुं० [सं० गदचर्म] हाथी का एक रोग।
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गदन  : पुं० [सं०√गद्+ल्युट्-अन] १. कथन। २. वर्णन।
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गंदना  : पुं० [सं० गंधन] १. लहसुन और प्याज की तरह का एक प्रकार का कंद जो तरकारी आदि में डाला जाता है। २. एक प्रकार की घास।
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गदना  : स० [सं० गदन] १. कहना। बोलना। २. वर्णन करना।
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गदबदा  : वि० [अनु०] भरे अथवा दोहरे शरीरवाला। उदाहरण–नंगेतन, गदबदे साँवले, सहज छबीले।–पंत।
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गंदम  : पुं० [देश०] [स्त्री० गंदमी] एक प्रकार की चिड़ियाँ। पुं० [पा० गंदुम] गेहूँ।
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गदम  : पुं० [देश०] वह लकड़ी जो नाव को एक बल पर खड़ी करने के लिए उसके पेंदे के नीचे लगाई जाती है। आड़। थाम।
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गदर  : पुं० [अ०] शासन को उलटने के लिए होनेवाला सैनिक विद्रोह। पुं० [हिं० गदराना] गदराने की क्रिया या भाव। वि० यथेष्ट मात्रा में सब जगह मिलने वाला। पुं० [हिं० गदकारा] पुष्टि मार्ग के अनुसार एक प्रकार की रूईदार बगलबंदी जो जाड़े में ठाकुर जी को पहनाते हैं।
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गदरा  : वि०=गद्दर।
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गदराना  : अ० [अनु०] १. जवानी में शरीर के अंगों का भरकर सुन्दर और सुडौल होना। जैसे–गदराया हुआ बदन। २. फलों आदि का पकने पर होना। ३. आँख की कीचड़ से भरना। ४. बहुत या अधिक मात्रा में होना या पाया जाना।
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गँदला  : वि० [हिं० गंदा+ला(प्रत्यय)] १. (जल) जो स्वच्छ या निर्मल न हो। जिसमें धूल-मिट्टी आदि मिली हो। २. मलिन। मैला।
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गदला  : वि०=गँदला।
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गदलाना  : स० [हिं० गदला] गँदला करना। अ० गँदला होना।
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गदह  : पुं०=गधा।
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गदह पचीसी  : स्त्री० दे० ‘गधा-पचीसी’।
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गदह-हेंचू  : पुं० दे० गधा हेंचू।
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गदहरा  : पुं० १.=गधा। २=गद्दा।
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गदहला  : पुं०=गदहिला।
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गदहलोह  : स्त्री० [हिं० गदहा-गधा+लोटना] १. गधों की तरह इधर-उधर लोटने की क्रिया या भाव। २. कुस्ती का एक दाँव या पेंच। ३. दे० गधा लोटन।
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गदहा  : वि० [सं० गद√हा (त्याग)+क्विप्] गद अर्थात् रोग हरनेवाला। पुं० चिकित्सक। वैद्य। पुं० दे० ‘गधा’।
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गदहिया  : स्त्री०=गधी।
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गदहिला  : पुं० [सं० गर्दभी, पा० गद्रभी प्रा० गद्दही] [स्त्री० गदहिली] १. वह गधा जिस पर ईट, मिट्टी आदि ढोई जाती हैं। २. एक प्रकार का जहरीला कीड़ा।
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गंदा  : वि० [सं० गन्ध से फा० गन्दः] [स्त्री० गंदी] १. धूल, मिट्टी मैल आदि से युक्त। जैसे–गंदा कपड़ा, गंदा कमरा। २.दूषित या बुरा। निदंनीय। जैसे–गंदा आचरण, गंदे विचार।
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गदा  : स्त्री० [सं० गद+टाप्] १. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र जिसमें लंबे डंडे के आगे मोटा गोला लगा था। २. उक्त आकार की वह चीज जो कसरत या व्यायाम करने के लिए हाथों से उठाकर शरीर के इधर-उधर घुमाई जाती है। लोढ़। पुं० [फा०] १. भिक्षुक। भिखमंगा। २. फकीर।
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गदाई  : वि० [फा० गदा-फकीर+ई० (प्रत्यय)] १. तुच्छ। नीच। क्षुद्र। २. रद्दी। वाहियात। स्त्री० भिखमंगा होने की अवस्था या भाव। भिखमंगापन।
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गदाका  : पुं० [अनु०] किसी को उठाकर जमीन पर इस प्रकार पटकने की क्रिया जिसमें गद शब्द हों। वि० गदराये हुए सुडौल शरीरवाला।
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गदागद  : पुं० [सं० गद्-आ√गम् (गाना)+ड, गदाग√दैप्(शोध करना)+क] अश्विनी कुमार। अ० य० [अनु०] १. गद गद शब्द करते हुए। २. एक के बाद एक। लगातार। (मुख्यतः आघात या प्रहार के लिए) जैसे–गदागद घूँसे लगाना।
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गदाग्रज  : पुं० [सं० गद-अग्रज,ष० त० ] गद के बड़े भाई श्रीकृष्ण।
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गदाग्रणी  : पुं० [सं० गद-अग्रणी, स० त० ] क्षय या यक्ष्मा नामक रोग।
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गदांतक  : पुं० [सं० गद-अंतक,ष० त० ] अश्विनीकुमार।
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गदाधर  : वि० [सं० गदा√धृ(धारण करना)+अच्] गदा धारण करनेवाला। पुं०विष्णु जिनके हाथ में गदा रहती है।
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गंदापानी  : पुं० [फा० गंदा+हिं० पानी] १. मद्य। शराब। २. पुरुष का वीर्य। ३. स्त्री का रज।
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गदांबर  : पुं० [सं० गद-अंबर,मध्य० स० ] मेघ।
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गदाराति  : पुं० [सं० गद-अराति, ष० त० ] औषध। दवा।
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गदाला  : पुं० [हिं० गद्दा] हाथी की पीट पर कसा जानेवाला गद्दा।
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गदावारण  : पुं० [सं०] एक प्रकार का प्राचीन बाजा जिसमें बजाने के लिए तार लगे रहते थे।
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गदि  : स्त्री० [सं०√गद् (बोलना)+इन्] उक्ति। कथन।
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गदित  : भू०कृ० [सं० गद+क्त] कहा हुआ। उक्त। कथित।
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गदी(दिन्)  : वि० [सं० गद+इनि] [स्त्री० गदिनी] १. रोगी। बीमार। २. [गदा+इनि] जो गदा लिए हो। गदाधारी।
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गँदीला  : पुं० [सं० गंध] एक प्रकार की घास।
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गंदुम  : पुं० [सं० गोधूम से फा०] [वि, गंदुमी] गेहूँ।
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गंदुमी  : वि० [फा० गंदुम] १.गेहूँ के रंग का। गेहुँआ। जैसे-गंदुमी कपड़ा। २.गेहूँ या उसेक आटे का बना हुआ। जैसे-गंदुमी रोटी।
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गदेल  : पुं० =गदेला।
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गदेला  : पुं० [हिं० गद्दा] [स्त्री० अल्पा० गदेली] १. रूई आदि से भरा हुआ बहुत मोटा गद्दा। २. टाट का वह मोटा गद्दा जो हाथी की पीठ पर बिछाया जाता है। पुं० [?] छोटा लड़का। बालक।
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गदेली  : स्त्री०=गदोली (हथेली)।
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गदोरी  : स्त्री० [हिं० गद्दी] हथेली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गंदोलना  : स० [फा० गंदा] कोई चीज विशेषतः पानी गंदा करना।
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गद्गद  : वि.[सं०√गदगद(स्पष्ट न बोलना)+अच्] १.बहुत अधिक प्रेम, श्रद्धा, हर्ष आदि आवेग से इतना भरा हुआ कि अपने आपको भूल जाए और स्पष्ट बोल न सके। २. (कंठ या वाणी) जो उक्त आवेग के कारण अवरूद्ध हो। ३. बहुत अधिक प्रसन्न या हर्षित। पुं० [सं०] एक प्रकार का रोग जिसमें रोगी शब्दों का स्पष्ट उच्चारण नहीं कर सकता अथवा एक एक अक्षर का रुक-रुककर और कई बार में उच्चारण करता है। हकलाने का रोग।
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गद्द  : पुं० [अनु०] १. मुलायम चीज या जगह पर भारी के मारने से होनेवाला शब्द। मुहावरा–(किसी को) गद्द मारना=टोटका या टोना करके किसी पर ऐसा आघात करना कि वह वश में हो जाए। २. अधिक भोजन करने अथवा गरिष्ठ वस्तुएँ खाने पर होनेवाला पेट का भारीपन। मुहावरा–(किसी चीज का) गद्द करना= कोई ऐसी वस्तु खा लेना जो जल्दी पच न सकती हो और जिसके फलस्वरूप पेट भारी हो जाता हो। वि० बेवकूफ। मूर्ख।
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गद्दम  : पुं० [देश०] एक प्रकार की छोटी चिड़िया।
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गद्दर  : वि० [अनु० गद्द से] १. जो अच्छी तरह पका न हो। अधपका। २. गदराया हुआ। पुं० १.=गदा। २. गद्दार।
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गद्दा  : पुं० [हिं० गद्द से अनु०] १.बिछाने की मोटी रूईदार भारी तोशक। २. वह बिछावन जो हाथी की पीठ पर हौदा कसने से पहले रखकर बाँधा जाता है। ३.घास, रूई आदि मुलायम वस्तुओं का बोझ। ४. किसी मुलायम चीज की मार या ठोकर।
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गद्दार  : वि० [अ०] जो अपने धर्म, राज्य, शासन, संस्था आदि के विरुद्ध होकर उसे हानि पहुँचाता अथवा पहुँचाना चाहता हो। गदर करनेवाला। बागी। विद्रोही।
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गद्दारी  : स्त्री० [अ०] गद्दार होने की अवस्था या भाव।
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गद्दी  : स्त्री० [हिं० गद्दा का स्त्री० अल्पा०रूप] १.वह छोटा गद्दा जो ऊँट, घोड़े आदि की पीठ पर जीन के नीचे बिछाया जाता है। २. वह छोटा गद्दा जिस पर बैठते या लेटते हैं। ३. वह स्थान जहाँ पर गद्दी आदि बिछाकर बैठकर कोई काम या व्यवसाय किया जाए। जैसे–कोठीवाल या महाजन की गद्दी। ४. किसी स्थान पर बैठने अथवा किसी पद को सुशोभित करने की अवस्था या भाव। जैसे–(क) राजा की गद्दी। (ख) बाप-दादा की गद्दी। ५. किसी राजवंश की पीढी या आचार्य को शिष्य-परम्परा। जैसे–(क) चार गद्दी के बाद इस वंश में कोई नही रहेगा। (ख) यह अमुख गुरू की चौथी गद्दी है। ६. कपड़े आदि की कई परतों की वह मुलायम तह जो किसी चीज के ऊपर या नीचे उसे आघात, झटके आदि से बचाने के लिए रखी जाती है। ७. हाथ या पैर की हथेली। मुहावरा–गद्दी लगाना=घोड़े की हथेली या कुहनी से मलना। ८. एक प्रकार का मिट्टी का गोल बर्तन जिसमें छीपी रंग रखकर छपाई का काम करते है। पुं० [सं० गब्दिक] १. चंबा के पास का एक पहाड़ी प्रदेश। २. उक्त प्रदेश के निवासी जो प्रायः भेड़-बकरियाँ पालकर जीविका चलाते हैं। ३. गड़ेरिया।
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गद्दीनशीन  : वि० [हिं० गद्दी+फा० नशीन] [भाव० गद्दीनशीनी] १. जो राजगद्दी पर बैठा हो। २. जो किसी की गद्दी पर आकर बैठा हो अर्थात् उत्तराधिकारी।
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गद्य  : पुं० [सं०√गद् (बोलना)+यत्] १. बोल चाल की भाषा में लिखने का वह लेखन प्रकार जिसमें अलंकार, मात्रा, वर्ण, लय आदि के बन्धन का विचार नही होता। वचनिका। पद्य का विपर्याय। (प्रोज) २. ऐसी सीधी-सादी बोली या भाषा जिसमें किसी प्रकार की बनावट न हो।
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गद्य-काव्य  : पुं० [कर्म० स० ] वह गद्य जिसमें कुछ भाव या भावनाएँ ऐसी कवित्वपूर्ण सुन्दरता से व्यक्त की गई हों कि उसमें काव्य की सी संवेदनशीलता तथा सरसता आ जाय।
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गद्याणक  : पुं० [सं० गद्याण+कन्] कलिंग देश का एक प्राचीन मान।
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गद्यात्मक  : वि० [सं० गद्य-आत्मन्, ब०स० कप्] [स्त्री० गद्यत्मिका] १.गद्य के रूप में लिखा हुआ। २. गद्य-संबंधी।
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गंध  : स्त्री० [सं०√गंध्(गति)+अच्] १.कुछ विसिष्ट पदार्थों के सूक्ष्म कणों का वायु के साथ मिलकर होनेवाला वह प्रसार जिसका अनुभव या ज्ञान नाक से होता है। वास।(ओडर) विशेष-हमारे यहाँ गंध को पृथ्वी का गुण माना जाता है। २. सुगंध। ३. वह सुगंधित द्रव्य जो शरीर में लगाया जाता है। ४. बहुत ही हलके रूप में लगनेवाला किसी बात का पता। जैसे-देखो, इस बात की गंध किसी को न गलने पावे। ५.बहुत ही थोड़ा या नाम मात्र का अंश। जैसे-उसमें सौजन्य की गंध भी नहीं है।
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गंध-कंदक  : पुं० [ब० स०, कप्] कसेरू।
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गंध-काष्ठ  : पुं० [ब० स०] अगर नामक सुगंधित द्रव्य। अगरु।
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गंध-कुटी  : स्त्री० [ष० त०] मंदिर में का वह कमरा या दालान जिसमें बहुत सी देवमूर्तियाँ रखी हों।
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गंध-केलिका  : स्त्री० [सं० गंध√केल् (चालान)+ण्युल्-टाप्,इत्व] कस्तूरी।
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गंध-कोकिल  : पुं० [मध्य० स०] सुगंध कोकिल नामक गंध द्रव्य।
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गंध-गज  : पुं० [मध्य० स०] बहुत बड़ा और मस्त हाथी।
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गंध-गात  : पुं० [सं० गंधगात्र] चंदन। (हिं०)
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गंध-जात  : पुं० [ब० स०] तेज पत्ता।
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गंध-जाल  : पुं० [मध्य० स०] सुगंधित जल या पानी। जैसे–केवड़ा जल, गुलाब जल आदि।
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गंध-तूर्य  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार की तुरही। (बाजा)।
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गंध-तैल  : पुं० [मध्य० स०] वह तेल जिसमें किसी पदार्थ के कुछ ऐसे तत्त्व मिलें हों जो उस पदार्थ की गंध देते हों। गंद से युक्त किया हुआ तेल। सुगंधित तेल।
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गंध-दला  : स्त्री० [ब० स०] अजमोदा।
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गंध-दारु  : पुं० [मध्य० स०] अगरु। अगर।
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गंध-द्रव्य  : पुं० [मध्य० स०] दवाओं में डालने, शरीर में लगाने या औषधों में मिलाने का कोई सुगंधित पदार्थ।
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गंध-धूलि  : स्त्री० [ब० स०] कस्तूरी।
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गंध-नाकुली  : स्त्री० [मध्य० स०] रास्ना।
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गंध-नाड़ी  : स्त्री० [मध्य० स० ] नाक। नासिका।
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गंध-नाल  : पुं० [ष० त० ] १. नासिका। नाक। २. नाक का छेद। नथुना।
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गंध-नालिका  : स्त्री० [ष० त० ] गंधनाल।
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गंध-नाश  : पुं० [ब० स० ] एक रोग जिसमें सुगंध, दुर्गध आदि का अनुभव करने की शक्ति नष्ट हो जाती है। (एनोस्मिआ)
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गंध-पत्र  : पुं० [ब.स०] १.सफेद-तुलसी। २.बेल। बिल्व। ३.मरुआ।
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गंध-पर्णो  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] सप्तपर्णी।
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गंध-पलाशी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] हल्दी।
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गंध-पाषाण  : पुं० [मध्य० स० ] गंधक।
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गंध-पिशाचिका  : स्त्री० [तृ० त०] सुगंधित द्रव्य जलाने पर निकलने वाला धुआँ।
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गंध-पुष्प  : पुं० [मध्य० स०] १.केवड़ा। २. बेंत।
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गंध-प्रत्यय  : पुं० [ब०स०] नासिका। नाक।
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गंध-प्रसारिणी  : स्त्री० [ष० त० ] एक प्रकार का पौधा जिसके दुर्गधयुक्त पत्ते दवा के काम आते है।
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गंध-फल  : पुं० [ब० स०] कपित्थ। कैथ।
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गंध-फला  : स्त्री० [सं० गन्धफल+टाप्] प्रियुंगु।
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गंध-माता(तृ)  : स्त्री० [सं० ष० त०] पृथ्वी।
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गंध-माद  : पुं० [ब० स०] भौरा। भ्रमर।
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गंध-मार्जार  : पुं० [मध्य० स०] गंधबिलाव। (देखें)।
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गंध-मालती  : स्त्री० [तृ० त०] एक प्रकार का गंध-द्रव्य।
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गंध-मासी  : स्त्री० [मध्य० स०] जटामासी।
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गंध-मुंड  : पुं० [सं०गंध√मुंड्(निवारण करना)+णिच्+अच्] एक प्रकार की लता।
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गंध-मूल  : पुं० [ब० स०] पान की जड़। कुलंजन।
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गंध-मूषिका  : स्त्री० [मध्य० स०] छछूँदर।
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गंध-मृग  : पुं० [मध्य० स०] वह मृग जिसकी नाभि में कस्तूरी होती है। कस्तूरी मृग।
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गंध-रस  : पुं० [ब० स०] सुगंधसार नामक गंध-द्रव्य।
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गंध-राज  : पुं० [ष० त०] १. चंदन। २. नख नामक गंध-द्रव्य। ३. बेले की जाति का एक पौधा और उसका फूल। मोगरा बेला।
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गंध-सफेदा  : पुं० [सं० गंध+हिं० सफेद] १. सफेद छाल वाला एक प्रकार का लंभा वृक्ष। (यूक्लिप्टस) २. उक्त वृक्ष के फूलों में से निकलने वाला एक प्रकार का सुगंधित तेल।
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गंध-सार  : पुं० [ब० स०] १. चंदन। २. गंधराज नामक बेला। मोगरा। ३. कपूर।
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गंध-हस्ती  : पुं० [मध्य० स०] ऐसा हाथी जिसके कुंभ से मद बहता हो। मदोन्मत्त हाथी।
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गंधक  : स्त्री० [सं०गंध+अच्+कन्] [वि० गंधकी] पीले रंग का और कुछ अप्रिय तथा उग्र गंधवाला एक प्रसिद्ध दह्रा खनिज पदार्थ जिसका प्रयोग रसायन और वैद्यक में होता है।
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गंधकवटी  : स्त्री० [सं०गंध√कृ (करना)+णिनि√तल्-टाप्, इत्व] वस्त्रों, शरीर आदि में लागने के लिए सुगंधित द्रव्य तैयार करने की कला या विद्या। (परफ्यूमरी)
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गंधकाश्म (न्)  : पुं० [सं० गंधक-अश्मन्, कर्म० स० ] अपने मूल रूप में खनिज गंधक, (अपनी ज्वलनशीलता के विचार से)। (ब्रिमस्टोन)
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गंधकी  : वि० [गंधक से] १. गंधक के रंग का। हलका पीला। २. गंधक से बना हुआ। जैसे–गंधकी तेजाब। पुं० उक्त प्रकार का रंग।
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गंधज्ञा  : स्त्री० [सं० गंध√ज्ञा (जानना)+क-टाप्] नासिका। नाक।
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गंधद  : पुं० [सं० गंध√दा (देना)+क] चंदन। वि. गंध देनेवाला। जिसमें गंध हो।
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गंधन  : पुं० [सं०√गंध्+ल्युट्–अन] १. उत्साह। २. प्रकाश। ३. वध। ४. सूचना। ५. सोना। उदाहरण–गंधन मूल उपाधि बहु भूखन तन गन जान।–तुलसी।
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गंधप  : पुं० [सं०गंध√पा(पीना)+क] पितरों का एक वर्ग।
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गंधपत्रा  : स्त्री० [सं० गन्धपत्र+टाप्] कपूर कचरी।
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गंधपत्री  : स्त्री० [सं० गन्धपत्र+ङीष्.] अजमोदा।
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गंधपसार, गंधपसारी  : स्त्री० =गंधप्रसाररिणी।
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गंधफली  : स्त्री० [सं० गंधफल+ङीष्] १.प्रियंगु। २.चंपा।
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गंधबंधु  : पुं० [सं० गंध्√बंध(बाँधना)+उण्] आम का वृक्ष और उसका फल।
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गंधबबूल  : पुं० [सं० गंध+हिं० बबूल] बबूल की जाति का एक छोटा पेड़।
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गंधबिलाव  : पुं० [सं० गंध+हिं० बिलाव-बिल्ली] बिल्ली की तरह का एक जंगली जंतु जिसके अंडकोश से एक प्रकार का सुगंधित तरल पदार्थ निकलता है। गंध-मार्जर।
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गंधबेन  : पुं० [सं० गंधवेणु] रूसा या रोहिष नामक सुगंधित घास।
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गंधमादन  : पुं० [सं० गंध√मद् (प्रसन्न होना)+णिच्+ल्यु-अन] १.पुराणनुसार एक पर्वत जो इलावृत्त और भद्राश्व खंड के बीच में कहा गया है और अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था। २. एक प्रकार का गंध-द्रव्य। ३. भौरा। ४. गंधक। ५. रावण का एक नाम।
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गंधमादनी  : स्त्री० [सं० गंधमादन+ङीष्] १.मद्य। शराब। २.लाक्षा। लाख।
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गंधमादिनी  : स्त्री० [सं०गंध√मद्+णिच्+णिनि-ङीष्] लाक्षा। लाख।
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गंधमूली  : स्त्री० [सं० गंधमूल+ङीष्] कपूर कचरी।
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गंधरब  : पुं० =गंधर्व।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गंधराज-गुग्गुल  : पुं० [कर्म० स०] एक प्रकार का गुग्गुल जिसे जलाने पर वातावरण सुंगधित हो जाता है।
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गंधराजी  : स्त्री० [सं० गन्धराज+ङीष्] नख नामक गंध-द्रव्य।
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गंधरी  : स्त्री० [सं० गंधर्व] गंधर्व जाति का कन्या या स्त्री।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गंधर्व  : पुं० [सं० गंध√अर्व् (मारना)+अच्, पररूप] [स्त्री० गंधर्वी, हिं० स्त्री० गंधर्विन] १. पुराणानुसार एक प्रकार के देवता जो स्वर्ग में गाने-बजाने का काम करते है। विशेष-यह लोग सोम के रक्षक, रोगों के चिकित्सक, सूर्य के अश्वों के वाहक, स्वर्गीय ज्ञान के प्रकाशक, यम और यमी के जनक आर्य माने जाते है। इनका स्वामी वरुण है। २.एक आधुनिक जाति जिसकी लड़कियाँ गाने-नाचने का काम और वेश्या-वृत्ति करती है। ३. बालिकाओं की वह अवस्था जब उनका यौवन आरंभ होता है और उनके स्वर में माधुर्य आता है। ४. मृग। हिरन। ५. घोड़ा। ६. एकशरीर से दूसरे शरीर में गयी हुई आत्मा। ७. वैद्यक के अनुसार एक प्रकार का मानसिक रोग। ८. संगीत में एक प्रकार का ताल। ९.विधवा स्त्री का दूसरा पति।
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गंधर्व-तैल  : पुं० [मध्य० स०] रेड़ी का तेल।
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गंधर्व-नगर  : पुं० [ष० त०] १. मगर, ग्राम आदि का वह मिथ्या आभास जो कुछ विशिष्ट प्रकार की प्राकृतिक अवस्थाओं में सूर्य की किरणें पड़ने पर आकाश में या स्थल से भ्रम से दिखाई पड़ता है। २. वेदान्त में, उक्त के आधार पर किसी प्रकार का मिथ्या, भ्रम। ३. चंद्रमा के चारों ओर घेरा या मंडल। ४. संध्या के समय पश्चिम दिशा में रंग-बिरंगें बादलों में फैली हुई लाली। ५. महाभारत के अनुसार मानसरोवर के पास का एक नगर।
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गंधर्व-पुर  : पुं० [ष० त०] गंधर्व-नगर।
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गंधर्व-रोग  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का उन्माद या पागलपन।
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गंधर्व-लोक  : पुं० [ष० त०] वह जगत् या संसार जिसमें गंधर्व रहतें है।
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गंधर्व-वधू  : स्त्री० [ष० त०] एक प्रकार का गंध-द्रव्य जिसे चीडा भी कहते है।
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गंधर्व-विद्या  : स्त्री० [ष० त०] गान विद्या। संगीत।
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गंधर्व-विवाह  : पुं० [मध्य० स०] हिन्दू धर्म-शास्त्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाहों में से एक जिसमें वर तथा कन्या अपनी इच्छा से एक दूसरे का वरण करते हैं। (कलियुग में ऐसा विवाह वर्जित है)
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गंधर्व-वेद  : पुं० [ष० त०] चार उपवेदों में से एक जिसमें संगीतशास्त्र का विवेचन है।
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गंधर्व-संगीत  : पुं० [ष० त०] वैदिक युग के मध्य के वे लोक गीत जिनसे देशी संगीत (आधुनिक लोकगीत) का विकास हुआ है।
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गंधर्वा  : स्त्री० [सं० गंधर्व+टाप्] दुर्गा का एक नाम।
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गंधर्वास्त्र  : पुं० [गंधर्व-अस्त्र, मध्य० स०] एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र।
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गंधर्वी  : स्त्री० [सं० गंधर्व+ङीप्] १. गंधर्व जाति की स्त्री। २. पुराणानुसार घोड़ों की आदि माता जो सुरभी की पुत्री थी। वि० गंधर्व-संबंधी। गंधर्वो का। जैसे-गंध्रवी माया का रूप।
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गंधर्वोन्माद  : पुं० [गंधर्व-उन्माद, मध्य० स०] एक प्रकार का उन्माद।
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गंधवती  : स्त्री० [सं० गंध+मतुप्, वत्व,ङीष्] १. पृथ्वी। २. मदिरा। ३. वनमल्लिका। ४. मुरा नामक गंध द्रव्य। ५. वरुण की पुरी का नाम। ६. व्यासदेव की माता का एक नाम।
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गंधवह  : वि० [सं० गंध√वह् (ले जाना)+अच्] १. गंध ले जाने या पहुँचानेवाला। २. सुगंधित। पुं० १. वायु। हवा। २. नाक, जिससे गंध का ज्ञान होता है। (डिं०)
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गंधवाह  : पुं० [सं० गंध√वह्+अण्] वायु। हवा।
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गंधहर  : पुं० [सं० गंध√ह्र (हरण करना)+अच्] नाक। (डिं०)
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गंधा  : वि० स्त्री० [सं०√गंध+णिच्+अच्-टाप्] गंध से युक्त। (यौं० शब्दों के अंत में) जैसे-रजनी गंधा।, मत्स्य गंधा।
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गधा  : पुं० [सं० गर्दभ,प्रा० गद्दह] [स्त्री० गधी] १.घोड़े की तरह का पर उससे बहुत छोटा या प्रसिद्ध चौपाया जिस पर कुम्हार, धोबी आदि बोझ ढोते हैं। गदहा। मुहावरा–(किसी स्थान पर) गधे से हल चलवाना=पूरी तरह से उजाड़ना या नष्ट करना। (किसी को) गधे पर चढ़ाना=बहुत अधिक अपमानित करना। बदनाम और बेइज्जत करना। २. गधे की तरह निरा बुद्धिहीन। बहुत बड़ा मूर्ख या बेवकूफ।
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गधा-हेंचू  : पुं० [हिं० गधा+हेंचू(गधे की बोली)] लड़को का एक प्रकार का खेल।
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गधागधी  : स्त्री० दे० ‘गधाहेंचू’।
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गंधाजीव  : पुं० [सं० गंध-आ√जीव् (जीना)+अच्] इत्र, तेल आदि बनाने और बेचनेवाला, गंधी।
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गंधाज्ञ  : वि० [सं० गंध-अज्ञ, ष० त० ] [भाव० गंधाज्ञता] १. (व्यक्ति) जिसे गंध का अनुभव न होता हो। २. (व्यक्ति) जो गंधों के प्रकार या स्वरूप न जानता हो। जो यह न बतला सकता हो कि यह गंध किस चीज की या किस प्रकार की है।
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गंधाज्ञता  : स्त्री० [सं० गंधाज्ञ+तल्-टाप्] =गंध-नाश। (दे०)।
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गंधाढ्य  : वि० [गंध-आढ्य,तृ० त० ] जिसमें बहुत अधिक खुशबू या सुगंध हो। पुं० १. चंदन। २. नारंगी का वृक्ष। ३. एक प्रकार का गंध-द्रव्य। ४. कई प्रकार के पौधों की संज्ञा।
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गंधाना  : पुं० [हिं० गंधन] रोला छंद का एक नाम। अ० [हिं० गंध] किसी पदार्थ में से गंध या महक का फैलना। गंध छोड़ना या देना। स० गंध या महक फैलाना।
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गंधानुवासन  : पुं० [गंध-अनुवासन, तृ० त०] किसी चीज को सुगंधि से युक्त करना। सुवसित करना।
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गधापचीसी  : [हिं० गदहा+पचीसी] १६ से २५ वर्ष तक की अवस्था जिसमें प्रायः कुछ विशेष ज्ञान नहीं होता और जिसमें ऊल-जलूल काम किये जाते हैं।
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गधापन  : पुं० [हिं० गदहा+पन (प्रत्यय)] १.गधे होने की अवस्था या भाव। २. मूर्खता। बेवकूफी।
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गंधाबिरोजा  : पुं० [हिं० गंध+बिरोजा] चीड़ या साल नामक वृक्ष का गोंद या निर्यास जो प्रायः फोड़े-फुसियों पर लगाया जाता है। चंद्रस।
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गंधाम्ला  : स्त्री० [गंध-अम्ल,ब० स०] जंगली नीबू।
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गंधार  : पुं० [सं० गंध√ऋ (गति)+अण्] १. भारत के उस पश्चिमोंत्तर प्रदेश का पुराना नाम जो तक्षसिला में कुनड़ या चित्राल नदी तक था। २. दे० ‘गांधार’।
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गंधारी  : स्त्री० =गांधारी।
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गंधालिका  : स्त्री० [स०] उड़ने तथा डंक मारनेवाला उन छोटे-छोटे कीड़ों का वर्ग जिसमें बर्रे, भौरें मधुमक्खियाँ आदि सम्मिलित हैं। (वास्प)
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गंधाली  : स्त्री० [सं० गंध-आली, ब० स०] गंधप्रसारिणी लता।
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गंधालु  : वि० [सं०√गंध्+आलुच्] १. खुशबूदार। २. सुवासित।
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गधालोटन  : पुं० [हिं० गधा+लोटना] १.थकावट मिटाने के लिए या मस्त होकर गधे का जमीन पर इधर-उधर लोटना। २. वह स्थान जहाँ इस प्रकार गधा लोटा हो। (कहते है कि ऐसे स्थान पर पैर रखने से आदमी में थकावट आ जाती है)।
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गंधाशन  : पुं० [गंध-अशन, ब० स०] वायु। हवा।
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गंधाश्मा(श्मन्)  : पुं० [मध्य० स०] गंधक।
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गंधाष्टक  : पुं० [गंध-अष्टक, ष० त० ] आठ प्रकार के गंधो के मेल से बना हुआ गंध। अष्ट गंध।
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गंधिक  : वि० [सं० गंध+ठन्-इक] गंधवाला। पुं० १. गंधक। २. गंधी।
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गंधिनी  : स्त्री० [सं० गंध+इनि-ङीष्] मदिरा। शराब।
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गँधिया  : पुं० [हिं० गंध] १. एक प्रकार का छोटा बरसाती कीड़ा जिससे बहुत दुर्गन्ध निकलती है। २. हरे रंग का एक प्रकार का कीड़ा जो धान आदि की फसल में लगता है। स्त्री० १. गाँधी नाम की बरसाती घास। २. गंध-प्रसारिणी नामक लता।
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गंधी  : पुं० [सं० गांधिक, प्रा० गांधिअ, गु० पं० बँ० गाँधी, मरा० गंधे] १. वह जो सुगंधित तेल, इत्र आदि बनाता और बेचता हो। अत्तार। २. गँधिया घास। स्त्री० १. गँधिया घास। २. गँदिया कीड़ा।
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गंधी-पतंग  : पुं० [सं० व्यस्तपद] धान की बालों में लगनेवाला गँदिया नाम का कीड़ा।
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गँधीला  : वि० [हिं० गंध] १. जिसमें किसी प्रकार की गंध हों। २. अप्रिय या बुरी गंधवाला। बदबूदार। वि०=गँदला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गधीला  : पुं० [देश०] [स्त्री० गधीली] एक जंगली जाति।
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गधूल  : पुं० [?] एक प्रकार का फूल।
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गंधेज  : स्त्री० [सं० गंध] अगिया नाम की घास।
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गंधेद्रिय  : स्त्री० [सं० गंध-इंद्रिय, मध्य० स०] सूँघने की इंद्रिय। नासिका। नाक।
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गधेरा  : पुं० [हिं० गधा+एरा] गधे का मालिक। जैसे–कुम्हार, धोबी आदि। उदाहरण–उसी समय गली की मोड़ से गधेरा आया। वृंदावन लाल।
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गंधेल  : पुं० [सं० गंध] एक प्रकार का छोटा वृक्ष या झाड़।
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गंधैला  : पुं० [हिं० गंध] [स्त्री० अल्पा० गंधैली] १. एक प्रकार की चिड़िया। २. गंध-प्रसारिणी लता। वि० जिसमें से दुर्गध आती हो। बदबूदार।
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गंधोच्छल  : वि० [सं० गंध-उच्छल, तृ० त०] गंध से भरा हुआ। जिसमें से खूब गंध निकल रही हो। उदाहरण–वह शोधशक्ति जो गंधोच्छल।–निराला।
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गंधोत्कट  : पुं० [गंध-उत्कट, तृ० त० ] दौना। दमनक। (पौधा) वि० उत्कट गंधवाला।
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गंधोत्तमा  : स्त्री० [गंध-उत्तमा, तृ० त०] अंगूरी शराब।
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गंधोपजीवी (विन्)  : पुं० [सं० गंध-उप√जीव् (जीना)+णिनि] इत्रफरोश। गंधी।
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गंधोपल  : पुं० [सं० गंध-उपल, मध्य० स०] कपूर कचरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गंध्य  : वि० [सं० गंध+यत्] १. गंध-संबंधी। २. जिसमें गंध हो। गंध-युक्त।
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गंध्रप  : पुं० =गंधर्व।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गन  : पुं० =गण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [अ०] बन्दूक।
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गनक  : पुं० [सं० गणक] ज्योतिषी।
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गनकेरुआ  : पुं० [सं० गणकर्णका] एक प्रकार की घास।
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गनगनाना  : अ० [अनु० गनगन] १. (शरीर) सरदी के कारण थरथर काँपना। २. शरीर के रोओं का सरदी आदि के कारण खड़े होना। रोमांच होना।
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गनगौर  : स्त्री० [सं० गण-गौरी] राजस्थान का एक पर्व जो चैत कृष्ण प्रतिपदा से चैत्र शुक्ल तृतीया तक होता है और जिसमें कन्याएँ तथा स्त्रियाँ गणेश और गौरी की पूजा करती हैं।
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गनती  : स्त्री० =गिनती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गनना  : स्त्री० =गणना। स०=गिनना।
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गननाना  : अ० [अनु० गनगन] १. किसी स्थान का गनगन शब्द से भर जाना। गूँजना। २.चक्कर लगाना। घूमना। स० कोई स्थान गनगन शब्द से पूर्ण या युक्त करना।
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गननायक  : पुं० =गणनायक।
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गनप  : पुं० १. =गणप। २. =गणपति।
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गनपति  : पुं० =गणपति।
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गनराय  : पुं० [सं० गणराज] गणेश।
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गनवर  : स्त्री० [?] नरकट नामक घास।
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गना  : पुं० [हिं० गाय] छोटा और नाटा बैल।
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गनाना  : अ० [हिं० गिनना] १. गिना जाना। २. गिनती में आना। स० =गिनाना।
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गनाल  : स्त्री० [सं० घननाल] पुरानी चाल की एक एक प्रकार की बड़ी तोप।
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गनिक  : पुं० [सं० गणक] ज्योतिषी। उदाहरण-गनिक होइ जब देखै, कहै न भेद।–जायसी।
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गनिका  : स्त्री०=गणिका।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गनिबी  : अ० [हिं० गिनना का भविष्यत् कालिक व्रज रूप] गिना जायगा। गिनती होगी। उदाहरण–मूढ़नि में गनिबी कि तू हूठ्यो दै इठिलाहिं।–बिहारी।
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गनियारी  : स्त्री० [सं० गणिकारी] रूमी की जाति का एक प्रकार का वृक्ष।
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गनी  : वि. [अ० गनी] १. धनवान्। संपन्न। २. बहुत बड़ा दाता। उदार। स्त्री० [हिं० गिनना] गिनती। उदाहरण–इंद्र समान है जाके सेवक वर वापुरे की कहा गनी।–सूर। स्त्री० [अ०] टाट जिसके बोरे बनते हैं।
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गनीम  : पुं० [अ०] १. दूसरों का माल लूटनेवाला व्यक्ति। लुटेरा। डाकू। २. दुश्मन। वैरी। शत्रु।
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गनीमत  : स्त्री० [अ०] १. डाके या लूट का माल। २. मुफ्त में या बिना प्रयास मिलनेवाला धन। ३. बिलकुल प्रतिकूल या विपरीत स्थिति में भी होनेवाली कोई थोड़ी सी संतोषजनक या समाधानकारक बात। जैसे–वह सही सलामत घर लौट आया यहीं गनीमत हैं। मुहावरा–किसी का दम गनीमत होना=किसी का अस्तित्व विपरीत परिस्थियों में भी किसी प्रकार समाधानकारक होना। जैसे–बाबूसाहब का भी दम गनीमत।
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गनेल  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की घास।
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गनेश  : पुं०=गणेश। वि० मंगलमय। शुभ। उदाहरण–भा यह समय गनेसू।–तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गनौरी  : स्त्री० [सं० गुन्ना] नागरमोथा।
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गन्ना  : पुं० [सं० काण्ड] सरकंडे की जाति का एक प्रसिद्ध गाँठदार लंबा पौधा जिसके मीठे रस से गुड़, चीनी आदि बनाई जाती है। ईख। ऊख।
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गन्नी  : पु० [अ० गनी] १. पटसन, पाट आदि का बना हुआ टाट जिसके बोरे आदि बनते है। २. सन का बना हुआ एक प्रकार का कपड़ा।
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गप  : स्त्री० [सं० गल्प० प्रा० गप्प बँ० गप्प,गुज० मरा०और पं०गप] [वि० गप्पी] १. केवल मन बहलाने के लिए की जानेवाली इधर-उधर की बातें। मनोविनोद के लिए की जानेवाली व्यर्थ की बातचीत। मुहावरा–गप लड़ाना=आपस में इधर-उधर और प्रायः व्यर्थ की बातें करना। पद-गप-शप-इधर=उधर की बातें। बहुत ही साधारण कोटि का या व्यर्थ का वार्तालाप। २. बिलकुल कपोल कल्पित और झूठी बात अथवा ऐसी बात जिसका कुछ भी ठीक ठिकाना न हो। मुहावरा–गप उडाना=झूठी और व्यर्थ की बात का लोगों में प्राचार या प्रसार करना। ३. ऐसी अतिरंजित बातें जिसमें सत्य का अंश बहुत ही कम या नाम मात्र का हो। क्रि० प्र० –हाँकना। ४. अपना बड़प्पन प्रकट करने के लिए कही जानेवाली बहुत कुछ अतिरंजित या मिथ्या सी बात। डींग। क्रि० प्र० =मारना। पुं० [अनु०] १. कोई चीज झट से खाने अथवा निकलने की क्रिया अथवा इस क्रिया से होनेवाला शब्द। जैसे–वह गप से लडडू निगल गया। २. खाने की क्रिया या भाव। जैसे–मीठी-मीठा गप, कडुआ-कडुआ थू। ३. कोई नुकीली चीज किसी मुलायम वस्तु में जल्दी या झटके से धँसाने की क्रिया अथवा इस क्रिया से उत्पन्न होनेवाला शब्द। जैसे–डाक्टर ने गप से बाँह में सुई चुभा दी।
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गपकना  : स० [अनु० गप+हिं० करना] १. जल्दी-जल्दी खा या निगल जाना। २. हजम करना। हड़पना।
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गपछैया  : स्त्री० [?] रेगमाही।
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गपड़चौथ  : पुं० [हिं० गपोड़-बातचीत+चौथ] आपस में होनेवाली इधर-उधर की या व्यर्थ की बातचीत। वि० अंड-बंड। ऊट-पटांग।
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गपना  : स० [हिं० गप] १. मन बहलाने अथवा समय बिताने के लिए इधर-उधर की बातचीत करना। गप करना। २. झूठमूठ की अथवा मन-गढ़त बातें कहना अथवा ऐसी बातों का प्रचार करना।
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गपशप  : पुं० [हिं० गप+शप अनु०] इधर-उधर की अथवा व्यर्थ की बातें।
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गपागप  : क्रि० वि० [हिं० गप-निगलने का शब्द] १.गप गप शब्द करते हुए। जैसे–वह सारी मिठाई गपागप खा गया। २. बहुत जल्दी-जल्दी या चटपट। ३. बहुत अधिक मात्रा या मान में।
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गपिया  : वि० [हिं० गप] –गप्पी।
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गपिहा  : वि० =गप्पी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गपोड़  : पुं०=गपोड़ा। वि० गप्पी।
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गपोड़ा  : पुं० [हिं० गप+ओड़ा(प्रत्यय)] १. बहुत अधिक बड़ा-चढ़ाकर कही हुई बात। २. बिलकुल कपोल-कल्पित और मिथ्या बात। बहुत बड़ी गप।
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गपोड़िया  : वि० [हिं० गपोड़ा] बहुत बढ़ा-चढ़ाकर मन-गढ़ंत बातें कहनेवाला। गप्पी।
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गपोड़ेबाज  : वि०=गप्पी।
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गपोड़ेबाजी  : स्त्री० [हिं० गपोड़ा+फा० बाजी] १. झूठ-मूठ या व्यर्थ की बातों में समय बिताने की क्रिया या भाव। २. बकवाद।
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गप्प  : स्त्री०=गप।
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गप्पी  : वि० [हिं० गप] बहुत अधिक गप हाँकने और व्यर्थ की कपोल कल्पित बातें कहनेवाला। गपोड़िया।
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गप्फा  : पुं० [अनु० गप] १.बहुत बड़ा कौर या ग्रास। २. सहज में होनेवाला बहुत बड़ा आर्थिक लाभ।
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गफ  : वि० [सं०ग्रप्स-गुच्छा] (कपड़ा) जिसकी बुनावट बहुत ठस हो।
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गफलत  : स्त्री० [अ०] १. प्रमाद के कारण होनेवाली असावधानी या बेपरवाही। २. अचेत या बेसुध होने की अवस्था या भाव।
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गफिलाई  : स्त्री०=गफलत।
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गफूर  : वि० [अ०] १. क्षमा या माफ करनेवाला। दयालु।
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गफ्फार  : वि० [अ०] बहुत बड़ा उदार तथा दयालु (ईश्वर या व्यक्ति)।
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गबख्ख  : पुं०=गवाक्ष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गबड़ी  : स्त्री०=कबड्डी।
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गबड्डी  : स्त्री०=कबड्डी।
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गबदी  : पुं० [देश०] एक प्रकार का छोटा पेड़।
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गबद्द  : वि० [हिं० गाबदी] जड़। मूर्ख।
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गबन  : पुं० [अ०] किसी अधिकारी अथवा सेवक द्वारा शासन अथवा स्वामी का धन अपने काम में लाने के लिए अनुचित रूप से तथा चोरी से निकल या ले लेना।
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गबन  : पुं० [सं० गमन] १. गमन। जाना। २. गति। चाल। उदाहरण–छाँड़ि सुख-धाम अरु गरुड़ तजि साँवरो पवन के गवन तै अधिक धायो।–सूर। ३. दे० ‘गौना’।
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गबर  : पुं० [अं० सक्रेपर] जहाज में सब पालों के ऊपर रहनेवाला पाल। (लश०)
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गबरगंड  : वि० [हिं० गोबर+सं० गंड=मूर्ख] बहुत बड़ा मूर्ख। जड़।
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गबरहा  : वि० दे० ‘गोबरहा’।
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गबरा  : वि० =गब्बर (घमंडी)।
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गबरू  : वि० [फा० गूबरू] १. जवान। युवा। २. बोला-भाला। पुं० दूल्हा। पति।
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गबरून  : पुं० [फा० गम्बरून] एक प्रकार का मोटा धारीदार कपड़ा।
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गबीना  : पुं० [देश०] कतीरा। (गोंद)।
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गंबीरक  : वि० [सं० गम्भीर+कन] गहरा । गम्भीर।
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गबेजा  : पुं० दे० ‘गवेजा’।
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गब्बर  : वि० [सं० गर्व,पा० गब्ब] १. अभिमानी। घमंडी। २. ढीठ। हठी। ३. अड़ियल। ४. कीमती। ५. धनी। मालदार।
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गब्बी  : वि० =गब्बर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गब्बू  : पुं० =गबरू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गब्र  : पुं० [फा०] पारस देश का अग्निपूजक मूल निवासी।
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गभ  : पुं० [सं०-भग पृषो० सिद्धि] भग।
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गभरू  : पुं=गबरू।
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गभस्ति  : पुं० [सं०√गम्(जाना)+ड,ग√भस्(प्रकाशितकरना)+क्तिच्] १.किरण। रश्मि। २.सूर्य। ३.बाँह। बाहु। स्त्री० अग्नि की स्त्री, स्वाहा।
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गभस्ति-पाणि  : पुं० [ब० स० ] सूर्य।
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गभस्ति-हस्त  : पुं० [ब० स० ] सूर्य।
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गभस्तिमान्  : पुं० [सं० गभस्ति-मतुप्] १. पुराणानुसार एक द्वीप का नाम। २. एक पाताल का नाम।
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गभार  : वि० [सं० गंभीर] गहरा।
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गंभारी  : स्त्री० [सं०√गम्+भृ(धारण करना)+अण्-ङीष्] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष।
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गंभीर  : वि० [सं० गम्+ईरन्,नि० भकार] १. जिसकी गहराई की थाह जल्दी न मिलें। गहरा। जैसे–गंभीर नद या समुद्र। २. घना। सघन। ३. भारी या विकट। घोर। जैसे-गंभीर नाद। ४. (कथन या विषय) जिसे समझने के लिए बहुत सोच विचार करना पड़े। गूढ़। जटिल। दुरूह। जैसे–गंभीर समस्या। ५. चिंतित या भयभीत करनेवाला। चिंताजनक। जैसे–गंभीर स्थिति। ६. (व्यक्ति) जो किसी बात की गहराई तक जाता हो, जल्दी विचलित न होता हो और अपने मन के भाव जल्दी दूसरों पर प्रकट न होने देता हो। शांत। धीर। पुं० १. जंबीरी नीबू। २. कमल। ३. महादेव। शिव। ४. एक प्रकार का राग। (संगीत)
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गभीर  : वि० [सं० गम् (जाना)+ऊरन्,भ आदेश] =गंभीर।
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गंभीरवेदी(दिन्)  : पुं० [सं० गंभीर√विद् (जानना)+णिनि] ऐसा मस्त हाथी जो साधारण अंकुश की चोट की परवा न करे।
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गंभीरिका  : स्त्री० [सं० गंभीर+कन्-टाप्, इत्व] एक प्रकार की ढोलक।
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गभीरिका  : स्त्री० [सं० गभीर+टाप्+कन्,ह्रस्व,इत्व] बड़ा ढोल।
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गभुआर  : वि० [सं० गर्भ+हिं० आर(प्रत्यय)] १. गर्भ या जन्म के समय का (बच्चे के सिर के बाल)। २. (बालक) जिसके सिर के गर्भ या जन्म के बाल कटे न हों। जिसका मुंडन न हुआ हो। ३. अनजान। नासमझ।
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गभुराना  : अ० [सं० गहवर] मान, रोष आदि के कारण धीरे-धीरे होंठों में ही कुछ कहना। बड़बड़ाना। बुड़बुडाना।
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गभुवार  : वि० =गभुआर।
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गम  : पुं० [सं०√गम्+अप] १. चलना या जाना। गमन। २. मार्ग। रास्ता। ३. गति। चाल। ४. पहुँच। पैठ। पुं० [अ० गम] १. मन में होनेवाला गहरा या भारी दुःख। मुहावरा–
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गम खाना  : अपमानित, उत्तेचित, दुःखित अथवा पीड़ित होने पर भी प्रतिकार न करना और शांत कहना। २. शोक। ३. चिंता। परवाह। फिक्र।
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गमक  : वि० [सं०√गम्+णिच्+ण्युल्-अक]१. गमन करनेवाला। २. जानेवाला। गंता। ३. बतलाने या सूचित करनेवाला। सूचक। स्त्री० [अनु० गमगम से] १. महक। सुगंध। २.संगीत में किसी स्वर को अधिक रंजक तथा श्रुति मधुर बनाने के लिए उसमें उत्पन्न किया जानेवाला एक विशिष्ट प्रकार का कंपन। विशेष-कभी-कभी किसी स्वर को उसके ठीक ऊपर या नीचेवाले स्वर के साथ मिलाकर वेगपूर्वक उच्चारण करने से भी गमन उत्पन्न होता है। संगीतशास्त्र में इसके ये १५ भेद कहे गये है –तिरिप, स्फुरित, कम्पित, लोच, आन्दोलित, वलि, त्रिभिन्न, कुरुल, आहत उल्लासित, प्लावित, गुम्फित, मुद्रित, नमित और मिश्रित। ३. तबले की गंभीर परन्तु मधुर आवाज।
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गमकना  : अ० [हिं० गमक] गमक या महक देना। महकना।
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गमकीला  : [हिं० गमक] १. गमक से युक्त। २. सुगंधित।
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गमखोर  : वि० [फा० ग़मख्वार] [भाव० गमखोरी] दूसरों द्वारा किये गये अत्याचार, अन्याय आदि को चुपचाप सहनेवाला। गम खानेवाला।
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गमखोरी  : स्त्री० [फा० गमख्वारी] गमखोर होने की अवस्था गुण या भाव । अत्याचार, अन्याय आदि चुपचाप सहने की प्रवृत्ति।
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गमगीन  : वि० [अ०+फा० ] १. दुःखी। २. संतप्त।
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गमछा  : पुं=अँगोछा।
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गमत  : पुं० [सं० गमन या गमथ-पथिक] १. रास्ता। मार्ग। २. पेशा। व्यवसाय।
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गमतखाना  : पुं० [?] नाव में का वह नीचेवाला भाग जहाँ नदी का पानी रसकर इकट्ठा होता है। बँधाल। (लश०)
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गमतरी  : स्त्री० =गमतखाना।
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गमथ  : पुं० [सं०√गम्+अयच्] १. मार्ग। राह। २,.पथिक। ३.व्यवसाय। व्यापार। ४. आमोद-प्रमोद।
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गमन  : पुं० [सं०√गम्+ल्युट्-अन] [वि० गम्य] १.चलना या जाना। २. प्रस्थान या यात्रा करना। ३. मार्ग। रास्ता। ४. यान। सवारी। ५. स्त्री से साथ किया जानेवाला संभोग। जैसे–वेश्या गमन। ६. वैशेषिक दर्शन के अनुसार किसी वस्तु के क्रमशः एक स्थान से दूसरे स्थान को प्राप्त होने का कर्म। (पाँच कर्मों में से एक)।
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गमन-पत्र  : पुं० [ष० त०] वह पत्र जिसके द्वारा किसी को एक स्थान से दूसेर स्थान पर जाने अथवा ले जाने का अधिकार मिलता हो। चालान। रवन्ना।
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गमनना  : अ० [सं० गमन] १. गमन करना। जाना।
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गमना  : अ० [सं० गमन] १. गमन करना। जाना। २. खोना। हाथ से निकल जाना। ३. नाव में पानी रसना। (लश०)
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गमनाक  : वि० [फा०] १. गम अर्थात् दुःख या शोक उत्पन्न करनेवाला। २. गम या दुःख से पीड़ित।
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गमनागमन  : पुं० [सं० गमन-आगमन,द्व० स०] १. जाना और आना। २. एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने की क्रिया या भाव। यातायात।
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गमनीय  : वि० [सं०+गम्√गम्+अनीयर] [स्त्री० गमनीया] गमन करने योग्य। गम्य।
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गमला  : पुं० [पुर्त० से] १. नाँद के आकार का मिट्टी, धातु या लकड़ी का बना हुआ एक प्रकार का पात्र जिसमें फूल-पत्तियाँ, पौधे आदि लगाये या रखे जाते हैं। २. चीनी मिट्टी का वह बर्तन जिसमें पाखाना फिरते हैं। (कमोड)
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गमागम  : पुं० [सं० गम-आगम, द्व० स०] आना-जाना। गमनागमन।
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गमाना  : स० =गँवाना।
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गँमार  : वि० पुं०==गँवार।
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गमार  : वि० [स्त्री० गमारी] =गँवार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गंमित  : वि० [सं० गम] १. जिसके पास तक गम या पहुँच हुई हो। २. किसी जानकार द्वारा बतलाया हुआ। जैसे–गुरु गंमित ज्ञान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गमी  : स्त्री० [अ० ग़म] १. घर या परिवार के किसी आदमी की शोकजनक मृत्यु। २. ऐसी मृत्यु के उपरान्त उसका होनेवाला शोक।
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गम्मत  : स्त्री० [सं० गमथ] १. हँसी। दिल्लगी। परिहास। विनोद। २. मजेदार घटना या बात। ३. आनन्द बहार या मौज की स्थिति।
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गम्य  : वि० [सं०√गम्+यत्] [स्त्री० गम्या] १. जिस तक या जिसमें गमन हो सके। जिस तक पहुँचा जा सके। २. जिसके अंदर जा या पहुँच सकें। जिसके अंदर पैठ या प्रवेश हो सके। जैसे–बुद्धि गम्य। ३. जो पाया या प्राप्त किया जा सके। योग्य। ४. जिसका सादन हो सके। साध्य। ५. जिसके साथ गमन या संभोग किया जा सके।
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गम्यता  : स्त्री० [सं०गम्य+तल्-टाप्] गम्य होने की अवस्था या भाव।
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गय  : पुं० [सं०] १. घर। मकान। २. आकाश। ३. धन। ४. प्राण। ५. पुत्र। बेटा। ६. औलाद। संतान। ७. एक असुर जिसके नाम पर गया नामक तीर्थ बना है। ८. गया नामक तीर्थ। ९. राम की सेना का एक बन्दर। पुं० =गज (हाथी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० =गति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गय-गमणि  : वि० स्त्री० [सं० गजगामिनी] हाथी के समान झूमकर चलनेवाली।
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गय-शिर  : पुं० [ष० त० ] १. आकाश। २. एक पर्वत जो गया में है। ३. गया तीर्थ।
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गयण  : पुं० [सं० गगन, प्रा० गयण] आकाश। गगन। उदाहरण–पंखी कवण गयण लगि पहुँचै।–प्रिथीराज।
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गयंद  : पुं० [सं० गजेंद्र, प्रा० गयिंद, गरंद] १. बड़ा हाथी। २. दोहे का एक प्रकार का भेद। ३. रहस्य संप्रदाय में ज्ञान।
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गयनंग  : पुं० [सं० गगन] आकाश। उदाहरण–गनन-गनन गयनंग छलन छक्किय उछरग्गिय।–चंदवरदाई।
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गयनाल  : स्त्री० [हिं० गय+नाल-नली] हाथी पर रखकर चलाई जानेवाली एक प्रकार की तोप। गजनाल।
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गयल  : अ० [हिं० जाना क्रिया का भूतकालिक पूर्वी रूप] गया। स्त्री० =गैल। (गली)।
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गयवली  : पुं० [देश०] एक पप्रकार का पेड़।
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गयवा  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की मछली।
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गया  : अ० [सं० गत, प्रा० गअ ,अप० ,गअल; गु० गओ, मरा० गेला,पं० गिआ; मै० गेल, बँ० गेलो; सिंह० गिय] [स्त्री० गयी] हिं० जाना क्रिया का भूतकालिक एक वचन का रूप। पद–गया गुजरा या गया बीता=(क) जो बहुत ही बुरी हालत में हो। दुर्दशा ग्रस्त(ख)तुच्छ। हीन। मुहा०–गयी करन=बीती हुई बात पर ध्यान न देना। (ख) छोड़ देना। जानेदेना। स्त्री० [सं० गय+अच्-टाप्] आधुनिक बिहार राज्य का एक प्रसिद्ध तीर्थस्थान जहाँ पिँडदान आदि करने का माहात्म्य है। मुहावरा–गया करना=गया में जाकर पिंडदान, श्राद्ध आदि करना।
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गयापुर  : पुं० =गया (बिहार राज्य का एक नगर)।
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गयारी  : स्त्री० [देश०] किसी काश्तकार के मरने पर लावारिस छोड़ी हुई जोत।
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गयाल  : स्त्री० [देश०] किसी व्यक्ति के मरने पर उसकी छोड़ी हुई ऐसी संपत्ति जिसका उत्तराधिकारी कोई न हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० आसाम में पाया जानेवाला एक पशु जिसका मांस खाया जाता और जिसकी मादा का दूध पिया जाता है।
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गयावाल  : वि० [हिं० गया+बाल] गया में रहने या होनेवाला। पुं० गया या तीर्थ का पंड़ा या पुरोहित।
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गयास  : स्त्री० [अ०] १. सहायता। २२. मुक्ति। छुटकारा।
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गर  : पुं० [सं०√गृ(लीलना)+अच्] १. प्राचीन भारत में एक प्रकार का कडुआ और मादक पेयपदार्थ। २. एक प्रकार का रोग। ३. रोग। बीमारी। ४. विष। ५. वत्सनाभ। बछनाग। ६. ज्योतिष में ग्यारह करणों में से पाँचवा करण। वि० रोगी। पुं० [हिं० गला] गरदन। गला। प्रत्यय-[सं० कर (कर्त्ता) से फा०] एक प्रत्यय जो कुछ शब्दों के अंत में लगकर ये अर्थ देता है–(क) कोई काम करनेवाला अथवा कोई चीज बनाने वाला। जैसे–कारीगर, सिकलीगर, सौदागर आदि। और (ख) किसी से युक्त होने के भाव का सूचक होता है। उदाहरण–जोई गर, बँसगर, बुझगर भाई।–घाघ। अव्य० [फा० अगर का संक्षिप्त रूप] अगर। यदि।
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गर-चे  : अव्य० [फा० अगरचे] यद्यपि।
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गर-दर्प  : पुं० [ब० स०] भुजंग। साँप।
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गर-ध्वज  : पुं० [ब० स०] अभ्रक।
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गर-प्रिय  : पुं० [ब० स०] शिव।
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गर-व्रत  : पुं० [ब० स०] मयूर। मोर।
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गरई  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की छोटी मछली।
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गरँऊँ  : पुं० [देश०] चक्की के चारों ओर बना हुआ मिट्टी का घेरा जिसमें पिसा हुआ आटा आदि गिरता है। उदाहरण–गरँऊँ चून बिन सागर रीता, बाहु कहे पीसत दिन बीता।–ग्राम्यगीत।
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गरक  : वि० [अ० ग़र्क] १. डूबा हुआ। निमग्न। २. जो नदी आदि में डूबकर मर गया हो। ३. नष्ट। बरबाद। ४. मग्न। लीन।
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ग़रक़ाब  : पुं० [फा०] डूबने की क्रिया या भाव। डुबाव। वि० १. डूबा हुआ। जलमग्न। २. बहुत अधिक लीन या निमग्न।
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ग़रक़ी  : स्त्री० [अ०] १. डूबने की क्रिया या भाव। डूबना। डुबाव। मुहावरा–किसी को गरकी देना=बहुत अधिक कष्ट या दुःख देना। २. इतना अधिक बरसना या बाढ़ आना जिससे फसल डूबकर नष्ट हो जाय। बूड़ा। अतिवृष्टि। ३. पानी में डूबी हुई जमीन। ४. वह नीची भूमि जो बाढ़ में प्रायः डूब जाती हो। ५. कौपीन। लँगोटी। ६. गराड़ी।
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गरगज  : पुं० [हिं० गढ़+गजग] १. वास्तु में, वह चौड़ा और बड़ा ढलुआ रास्ता जिस पर हाथी आ जा सकते हों। २. किले का बुर्ज। ३. वह ऊँची भूमि या टीला जहाँ से शत्रु का पता लगाया जाता है। ४. नाव की छत। ५. फाँसी की टिकठी। वि० बड़ा तथा शक्तिशाली। जैसे–गरगज घोड़ा।
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गरगरा  : पुं० [अनु०] गराड़ी। घिरनी। (लश०)
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गरगवा  : पुं० [देश०] १. नर गौरैया। चिड़ा। २. एक प्रकार की घास।
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गरगाब  : पुं० वि०=गरकाब।
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गरज  : स्त्री० [सं० गर्जन] १. गरजने की क्रिया या भाव। २. बहुत गंभीर या घोर शब्द। जैसे–बादल या सिंह की गरज। स्त्री० [अ०] १. किसी उद्देश्य या प्रायोजन की सिद्धि के लिए मन में होनेवाली स्वार्थजन्य इच्छा। मुहावरा–(अपनी) गरज गाँठना=अपना स्वार्थ सिद्ध करना। पद-गरज का बावल=स्वार्थांध। २. आवश्यकता। जरूरत। अ० य० १. इतना होने पर। आखिरकार। २. तात्पर्य यह है कि।
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ग़रज़ मंद  : वि० [फा०] [भाव० गरजमंदी] १. जिसे गरज या आवश्यकता हो। जरूरतवाला। २. चाहनेवाला। इच्छुक। ३. अपना काम या मतलब निकालनेवाला। स्वार्थी।
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गरजन  : पुं० [सं० गर्जन] गरजने की क्रिया या भाव। गरज।
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गरजना  : अ० [सं० गर्ज्; प्रा० गज्ज; सिं० गाज; गु० गाजबूँ; पं० गज्जणा; मरा० गाज (णें)] १. गंभीर तथा घोर शब्द करना। जैसे–बादल या सिंह का गरजना। २. (किसी वस्तु का) चटकना, तडकना या फूटना। जैसे–मोती गरजना।
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ग़रज़ी  : वि० =गरजमंद।
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गरजुआ  : पुं० [हिं० गरजना] एक प्रकार की खुमी।
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गरजू  : वि० =गरजमंद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरट  : पुं० [सं० ग्रंथ] झुंड। समूह। उदाहरण–गजनि गज्जि गंजे गरट, रहे रोहि रण रंग।–चंदवरदाई।
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गरटना  : अ० [हिं० गरट] (पशुओं का) झुंड बनाकर चलना।
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गरट्ट  : पुं० =गरट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरट्टना  : अ० =गरटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरण  : पुं० [सं०√गृ+ल्युट्-अन] निगलने की क्रिया या भाव।
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गरथ  : स्त्री०=गथ (धन या पूँजी)।
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गरथिना  : स०=गूँथना। उदाहरण–इह करि रुक्रंन कुंडलि करहि गरथि माल पुहवै घनिय।–चंदवरदाई।
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गरद  : वि० [सं०गर√दा (देना)+क] जहर या विष देनेवाला। पुं० जहर। विष। स्त्री० [फा० गर्द] १. धूल। राख। २. मटमैले रंग का एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
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गरदन  : स्त्री० [फा०] १. जीवों प्राणियों आदि के धड़ और सिर के बीच का अंग। ग्रीवा। गला। मुहावरा-गरदन उठाना=विरोध करना। (तलवार से ) गरदन उड़ाना=सिर काटना। गरदन उतारना या काटना= (क) सिर काटना। (ख) बहुत बड़ी हानि करना। (किस की) गरदन झुकना=(क) बे-सुध या बेहोश होना। (ख) मर जाना। (किसी के आगे) गरदन झुकना=(क) अधीन होना। (ख) लज्जित होना। (किसी के) आगे गरदन झुकाना=(क) आत्मसमर्पण करना। (ख) लज्जित होकर सिर नीचा करना। गरदन ढलकना या ढलना=मरने के बहुत समीप होना या मर जाना। (किसी का) गरदन न उठाना=बीमारी के कारण बिलकुल चुप-चाप या बे-सुध पड़े रहना। (किसी की) गरदन नापना=गरदन में पकड़कर किसी को धक्का देते हुए बाहर निकालना। (अपनी) गरदन पर खून लेना=हत्या का अपराधी या दोषी बनना। (अपनी) गरदन पर जूआ रखना=मुसीबत मोल लेना। गरदन फँसना=संकट में पड़ना। गरदन मरोड़ना=गला दबाकर किसी को मार डालना। गरदन मारना=सिर काटना। गरदन में हाथ देना या डालना=कहीं से निकाल बाहर करने के लिए गरदन पकड़ना। गरदनियाँ देना। २. वह आड़ी लंबी लकड़ी जो जुलाओं की लपेट के दोनों सिरों पर आड़ी साली जाती है। साल। ३. गगरा लोटा आदि बरतनों का गरदन के आकार का ऊपरी गोल भाग।
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गरदन-घुमाव  : पुं० [हिं० गरदन+घुमाना] कुश्ती का एक पेंच।
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गरदन-तोड़  : पुं० [हिं० गरदन+तोड़ना] कुश्ती का एक दाँव।
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गरदन-तोड़ बुखार  : पुं० [हिं०+फा०] एक प्रकार का संक्रामक और सांधातिक ज्वर।
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गरदन-बंद  : पुं=गुलूबंद।
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गरदन-बाँध  : पुं० [हिं० गरदन+बाँधना] कुश्ती का एक पेंच।
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गरदना  : पु० [हिं० गरदन] १. मोटी गरदन। २. गरदन पर किया जानेवाला आघात। ३. गरदन पर का मांस। (कसाई)।
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गरदनियाँ  : स्त्री० [हिं० गरदन+इया (प्रत्यय)] किसी की गरदन को हाथ से पकड़कर उसे धक्का देते हुए कहीं से तिरस्कारपूर्वक बाहर निकालना।
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गरदनी  : स्त्री० [हिं० गरदन] १. सिले हुए कपड़े का वह अंश जो गले के चारों ओर पड़ता हैं। गरेबान। २. गले में पहनने की वह हँसली (गहना)। ३. घोड़े की पीठ पर डाला जानेवाला कपड़ा जो एक ओर उसकी गरदन में बँधा रहता है। ४. कुश्ती में कोहनी और पहुँचे के बीचवाले अंश से विपक्षी की गरदन पर किया जानेवाला आघात। कुंदा। घस्सा। रद्दा। ५. कुश्ती का एक पेंच। ६. दीवार के ऊपर की कंगनी। कारनिस। ७. दे० ‘गरदनियाँ’।
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गरदा  : पुं० [फा० गर्द] हवा के साथ उड़नेवाली धूल या मिट्टी।
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गरदान  : वि० [फा०] १. घूम-फिरकर एक ही स्थान पर आनेवाला। २. एक ही बिंदु या स्थान के चारों ओर घूमनेवाला। पुं० १. शब्दों का रूप साधन। २. वह कबूतर जो घूम-फिर कर पुनः अपने स्थान पर आ जाता है। ३. चक्कर। फेर।
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गरदानना  : स० [फा० गरदान] १. व्याकरण में किसी शब्द के भिन्न-भिन्न विकारी रूप बनाना या बतलाना। २. विस्तारपूर्वक और कई बार समझाकर कोई बात कहना। उद्धरणी करना। ३. ध्यान देना या महत्वपूर्ण समझना। जैसे–हम तुम्हें क्या गरदानते हैं।
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गरदी  : वि० [हिं० गरद] गरद नाम के कपड़े की तरह का मटमैला या पीला। टसरी। पुं० उक्त प्रकार का रंग। टसरी। (ड्रैब)
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गरदुआ  : पुं० [हिं० गरदन] पशुओं का होनेवाला एक प्रकार का ज्वर।
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गरधरन  : पुं० [सं० गरलधर] विष को धारण करनेवाला, शिव।
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गरना  : अ० [हिं० ‘गारना’ का अ०] १. गारा या निचोड़ा जाना। निचुड़ना। २. किसी चीज के निकल जाने पर उससे रहित या हीन होना। अ० १. =गड़ना। २. =गलना। उदाहरण–रकत न रहा विरह-तन गरा।–जायसी।
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गरनाल  : स्त्री० [हिं० गर+नली] चौड़े मुँह की एक प्रकार की तोप। घननाल।
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गरब  : पुं० १. =गर्व। (अभिमान)। २. =गर्भ।
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गरब-गहेला  : वि० [सं० गर्व-अभिमान+सं० गृहीत, प्रा० गहिल्ल] [स्त्री० गरब-गहेली] बहुत गर्व करनेवाला। अभिमानी। घमंडी।
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गरबई  : स्त्री०=गर्व।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरबना  : अ० [सं० गर्व] गर्व करना। इतराना। उदाहरण–कबीर कहा गरबियौ काल गहै रे केस।–कबीर।
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गरबा  : पुं० [देश०] [गुज० गरबा=घड़ा] एक प्रकार का गुजराती लोक-नृत्य जिसमें बहुत सी स्त्रियाँ कमर या सिर पर घड़ा रखकर तथा घेरा बनाकर नाचती हैं।
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गरबाना  : अ० [सं० गर्व] घमंड में आना। अभिमान करना। शेखी करना।
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गरबित  : वि०=गर्वित।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गरबीला  : वि० [सं० गर्व] जिसे गर्व हो। अभिमानी। घमंडी।
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गरभ  : पुं० १. =गर्भ। २=गर्व।
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गरभदान  : पुं० १=गर्भ। २=गर्भाधान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गरभाना  : अ० [हिं० गर्भ] १. गर्भ धारण करना। २. गर्भवती होना। ३. गेहूँ जौ, धान आदि के पौधों में बाल लगना। स० गर्भ धारण कराना।
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गरभी  : वि० [सं० गर्वी] अभिमानी। घमंडी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गरम  : वि० [सं० धर्म से फा० गर्म] [क्रि० गरमाना, भाव, गरमाहट, गरमी] १. (पदार्थ) जिसका ताप-मान जीवों या प्राणियो के सहज और स्वाभाविक ताप-मान से कुछ अधिक हो। जैसे–नहाने का गरम पानी, दोपहर की गरम हवा। २. (प्राणी या शरीर) जिसका ताप-मान सहज या स्वाभाविक से कुछ अधिक या ऊपर हो। उस प्रकार का जैसा ज्वर या बुखार में होता है। जैसे–रोज संध्या को इसका बदन गरम हो जाता है। ३. (शरीर) जिसमें सहज और स्वाभाविक ताप-मान वर्तमान हो। प्रसम ताप-मानवाला। जैसे–शरीर का गरम रहना जीवन का लक्षण है। ४. (पदार्थ) जो अग्नि, धूप आदि के संयोग से जल या तप रहा हो। जिसे छूने से शरीर में जलन होती है। जैसे–कड़ाही (या तवा) गरम है, इसे मत छूना। ५. (पदार्थ) जिसमें विद्युत की धनात्मक या सहिक धारा प्रवाहित हो रही हो। जैसे–बिजली का गरम तार छूना प्राणियों के लिए घातक होता है। ६. (प्रदेश या भू-भाग) जो विषुवत् रेखा पर या उसके पास स्थित हो और इसी लिए जहाँ गरमी अपेक्षया अधिक पड़ती हो। जैसे–अरब, चीन, भारत आदि गरम देश हैं। ७. (औषध या खाद्य पदार्थ) जो शरीर के अंदर पहुँचकर उष्णता या ताप उत्पन्न करता हो। जिसकी तासीर या प्रभाव तापकारक हो। जैसे–जायफल, मिर्च, लौग आदि मसाले गरम होते हैं। ८. (पदार्थ) जो शरीर के ऊपरी भाग पर से शीत का प्रभाव कम करके उसमें हलकी उष्णता या ताप लाता हो। जैसे–जाड़े में सब लोग गरम कपड़े पहनते हैं। ९. (प्रकृति या स्वभाव) जिसमें उग्रता, क्रोध, द्वेष आदि तीव्र बातें अधिक प्रधान तथा प्रबल रहतीं हों। जैसे–वे गरम मिजाज के आदमी हैं। मुहावरा–(किसी से) गरम पड़ना या होना=आवेश या क्रोध में आकर किसी से लड़ने-झगड़ने पर उतारू होना। १॰. जो किसी रूप में उग्र, उत्कट या तीव्र हो अथवा जो किसी कारण से ऐसा हो गया हो। जैसे–तुम्हारी ऐसी ही बातों से हमारा मिजाज गरम हो जाता है। ११. (मादा पशु) जो काम-वासना के वश में होकर गर्भ धारण करने के लिए उत्सुक या उपयुक्त हों। जैसे–कुतिया या गौ का गरम होना। १२. जिसमें आवेश, उत्साह, तीव्रता आदि बातें यथेष्ट मात्रा में हों। जिसमें अभी तक किसी प्रकार की मंदता, शिथिलता, ह्रास आदि के लक्षण न दिखाई देतें हों। जैसे–(क) अभी तुम्हारा खून गरम है, जब बड़े होगे तब तुममें सहनशीलता आवेगी। (ख) अभी यह मसाला (या विवाद) इतना गरम है कि इसका निपटारा हो ही नहीं सकता। १३. (चर्चा या बात) जिसका यथेष्ट प्रचलन हो। जैसे–आज शहर में एक नई खबर गरम है। १४. बिलकुल तुरंत या हाल का। बहुत ही ताजा। जैसे–अभी तो चोट गरम है, कुछ देर बाद दरद बढ़ेगा। १५. (बात-चीत) जिसके प्रसंग में कुछ उग्रता उत्तेजना या कटुता आ गई हो। जैसे–संसद में इस विषय में खूब गरम बहस हुई थी। १६. (बाजार या भाव) जिसमें खूब चहल पहल या तेजी हो। जो चलता हुआ या बढती पर हो। जैसे–आज सोने का बाजार गरम है। मुहावरा–(किसी चीज या बात का) बाजार का गरम होना=बहुत अधिकता, तीव्रता या प्रबलता होना। जैसे–(क) आज-कल हैजे का बाजार गरम है। (ख) शहरों में चोरियों का बाजार गरम है।
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गरम-कपड़ा  : पुं० [हिं०] शरीर गरम रखनेवाला और जाड़े में पहनने का कपड़ा। ऊनी अथवा रूईदार कपड़ा।
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गरम-पानी  : पुं० [हिं०] १. वीर्य। शुक्र। (बाजारू) २. मदिरा। शराब।
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गरम-मसाला  : पुं० [हिं०] भोजन में मिलाई जानेवाली ऐसी चीजें जो उसे चरपरा, पाचक और सुस्वादु बनाती है। जैसे–दालचीनी, धनियाँ मिर्च, लौंग आदि।
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गरमाई  : स्त्री० [फा० गरम से पंजाबी] १. गरमी। २. ऐसी वस्तु जिसके उपयोग या सेवन से शरीरिक शक्ति बढती हो। जैसे–जच्चा को गरमाई खिलाओ, तबी वह जल्दी स्वस्थ होगी।
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गरमागरम  : वि० [हिं०+गरम+गरम] १. ऐसा गरम जिसमें अभी ठंडक बिलकुल न आने पायी हो। काफी गरम। जैसे–गरमागरम चाय या दूध। २. बिलकुल ताजा या तुरन्त का। जैसे–गरमागरम खबर। ३. उत्तेजना से युक्त। जैसे–गरमागरम बहस।
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गरमागरमी  : स्त्री० [हिं०+गरमा+गरम] १. किसी काम में जल्दी से निपटाने या समाप्त करने में होनेवाली तेजी। तत्परता। मुस्तैदी। २. अन-बन या झगड़ा होने की स्थिति या भाव। ३. आवेशपूर्ण कहा-सुनी।
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गरमाना  : स० [फा० गर्म, हिं० गरम+आना (प्रत्यय)] १. कोई चीज आग पर रखकर उसे साधारण या हलका गरम करना। जैसे–पीने के लिए दूध या खाने के लिए ठंडी रोटी गरमाना। २. साधारण उष्णता या ताप से युक्त करना। जैसे–आग तापकर या धूप सेंककर हाथ-पैर गरमाना, रजाई ओढ़कर शरीर गरमाना। ३. ऐसा काम करना या ऐसी स्थिति उत्पन्न करना जिससे किसी में कुछ गरमी (आवेश, उत्तेजना, उत्साह, तीव्रता, प्रसन्नता आदि) उत्पन्न हो। जैसे–(क) कोई तीखी बात कहकर किसी आदमी को गरमाना। (ख) शराब पिलाकर भैसों को गरमाना। (ग) कुछ दूर दौड़ाकर घोड़े को गरमाना। (घ) गवैये का आरंभ में धीरे-धीरे कुछ समय तक गाकर अपना गला गरमाना। ४. किसी से जेब, हाथ आदि के संबंध में उसमें कुछ धन रखकर उसे प्रसन्न या संतुष्ट करना। जैसे–उसने थानेदार (या पेशकार) का जेब (या हाथ) गरमाकर उसे अपने अनुकूल कर लिया। अ० १. साधारण या हलकी उष्णता या ताप से युक्त होना। गरम होना। जैसे–(क) थोड़ी देर आँच पर रहने से दूध या पानी का गरमाना। (ख) आग तापने या कम्बल ओढ़ने से शरीर का गरमाना। २. आवेश, उत्तेजना आदि उग्र अथवा तीव्र मनोंभावों से युक्त होना। जैसे–जरा सी बात पर इस तरह गरमाना अच्छा नहीं होता। ३. किसी आरंभिक या औपचारिक क्रिया के प्रभाव से किसी प्राणी या उसके किसी अंग का तेजी पर आना और ठीक तरह से अपना काम करने के योग्य होना। जैसे–(क) कुछ दूर दौड़ने से घोडे का गरमाना। (ख) कुछ देर तक धीरे-धीरे गा लेने पर गवैये का गला गरमाना। ४. स्वाभाविक रूप से पशुओं आदि का उमंग में आना और काम-वासना से युक्त होना। जैसे–गौ या घोड़े का गरमाना। ५. जेब हाथ आदि के संबंध में रुपये-पैसे की उत्साह-वर्धक या सुकद प्राप्ति होना। जैसे–आज कई दिन बाद इनका जेब (या हाथ) गरमाया है।
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गरमाहट  : स्त्री० [हिं० गरम+आहट(प्रत्यय)] १. गरम होने की अवस्था या भाव। २. कुछ हलकी गरमी। जैसे–कमरे में अब गरमाहट आयी है।
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गरमी  : स्त्री० [फा०] १. गरम होने की अवस्था, गुण या भाव। जैसे–आग या धूप की गरमी। २. वर्षा से पहले या बसंत के बाद की ऋतु। ग्रीष्म काल। जेठ-असाढ़ के दिन। जैसे–इस साल गरमी में पहाड़ पर जाने का विचार है। ३. किसी प्रकार का मानसिक आवेग या उमंग। जोश। मुहावरा–(अपनी) गरमी निकालना=मैथुन या संभोग करना। (बाजारू)। (किसी की) गरमी निकालना=ऐसा कार्य करना जिससे किसी का आवेग या क्रोध सदा के लिए अथवा कुछ दिनों के लिए दूर होकर मंद या शांत पड़ जाए। ५. दृष्ट मैथुन से जननेंद्रिय में होने वाला एक भीषण रोग। आतशक या फिरंग रोग। (सिफलिस) ६. घोड़ो और हाथियों को होनेवाला एक प्रकार का रोग। ७. दे० ‘ताप’।
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गरमीदाना  : पुं० [हिं० गरमी+दाना] अधिक गरमी पड़ने के कारण शरीर पर निकलनेवाले छोटे-छोटे लाल दाने। अँभौरी। पित्ती।
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गररा  : पुं० [हिं०+गर्रा] घोड़ों की एक जाति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गरराना  : अ० [अनु०] घोर या भीषण ध्वनि करना। गरजना।
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गररी  : स्त्री० [देश०] किलँहटी या सिरोही नाम की चिड़ियाँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरल  : पुं० [सं०√गृ (निगलना)+अलच्] १. जहर। विष। २. बिच्छू, साँप आदि विषैले क्रीड़ों का जहर। ३. घास का बँधा हुआ पूला।
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गरल-धर  : वि० [ष० त० ] विष धारण करनेवाला। पुं० १. महादेव। शिव। २. साँप।
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गरलारि  : पुं० [गरल-अरि, ष० त० ] मरकत मणि। पन्ना।
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गरवा  : पुं० [सं० गुरु] १. भारी। २. महान्। पुं० दे० ‘गला’।
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गरसना  : स०=ग्रसना।
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गरह  : पुं०=ग्रह।
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गरहन  : पुं० [सं० गर√हन् (नष्टकरना)+क] काली तुलसी। बबरी। पु० =ग्रहण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरहर  : पुं० [हिं०+गर-गल+हर] वह काठ जो नटखट चौपायों के गले में बाँधकर लटकाया जाता है। कुंदा। ठेकुर।
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गरहेवड़ा  : पुं० [सं० गवेडुका] कसेई। कौडिल्ला। (पक्षी)।
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गराँ  : वि० [फा०] १. भारी। वजनी। २. कठिन। ३. अप्रिय। नागवार। ४. महँगा।
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गरा  : पुं०=गला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गराऊ  : पुं० [सं० गुरु, पुं० हिं० गुरु गरूअ] पुराना अथवा बूढ़ा भेड़ा। (गँड़ेरियों की बोली)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गराज  : पुं० [अं० गैरेज] मोटर गाड़ी या इसी तरह की और कोई सवारी रखने या रहने का घिरा हुआ स्थान। गिराज। स्त्री० =गरज (गर्जन)।
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गराड़ी  : स्त्री०=गड़ारी।
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गरांडील  : वि० [फा० गराया अं० ग्रांड?] १. जो लंब-तडंग तथा मोटा-ताजा हो। २. बहुत बड़ा या भारी।
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गराना  : स० १. दे० गलाना। २. दे० गारना।
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गरानी  : स्त्री० [फा०] १. भारीपन। गुरुता। २. महँगी। ३. भोजन न पचने के कारण होनेवाला पेट का भारीपन। स्त्री०=ग्लानि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरामी  : वि० [फा०] १. बुजुर्ग। वृद्ध। २. प्रसिद्ध। ३. सम्मानित।
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गरारा  : वि० [सं० गर्व, पुं० हिं० गारो+आर (प्रत्यय)] १. अभिमानी। घमंडी। २. प्रबल। बलवान्। ३. तेज। प्रचंड। पुं० [हिं० घेरा] १. पायजामें की ढीली मोहरी। जैसे–गरारेदार पायजामा। २. ढीली मोहरी का पायजामा। ३. खेमा तंबू आदि भरने का बड़ा थैला। पुं० [अ० गरार, अनु०] १. मुँह में पानी भरकर गर गर शब्द करके कुल्ली करना। २. चौपायों का एक रोग जिसमें उनके गले में घुर-घुर शब्द होता है।
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गरारी  : स्त्री० दे० ‘गड़ारी’।
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गराँव  : स्त्री० [हिं०+गर-गला] पशुओं के गले में बाँधी जानेवाली बटी हुई दोहरी रस्सी जिसके एक सिरे पर मुद्धी और दूसरे सिरे पर गाँठ होती है।
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गराव  : पुं० [देश०] मध्य युग की एक प्रकार की बड़ी नाव।
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गरावन  : पुं० =गड़ावन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरावना  : स० १. गड़ाना। २. =गलाना।
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गरावा  : पुं० [देश०] ऐसी भूमि जो अधिक उर्वर न हो। कम उपजाऊ जमीन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरास  : पुं०=ग्रास।
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गरासना  : स० [सं० ग्रास] १. निगलना। २. दे० ‘ग्रासना’ या ‘ग्रसना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गरिका  : स्त्री० [सं० गुरु+णिच्, गर् आदेश गरि+कन्-टाप्] नारियल की गरी।
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गरित  : वि० [सं०+इतच्] १. जहर या विष से युक्त। २. जिसमें विष मिलाया गया हो।
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गरिमता  : स्त्री० दे० गरिमा। उदाहरण-उरजनि नहिन गरिमता तैसी।–नंददास।
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गरिमा (मन्)  : स्त्री० [सं० गुरु+इमनिच्, गुरु आदेश] १. गुरुत्व। भारीपन। २. महत्व। महिमा। ३. अहंकार। घमंड। ४. आत्म-श्लाघा। शेखी। ५. आठ सिद्धियों में से एक, जिसके फल-स्वरूप मनुष्य अपने शरीर का भार जितना चाहे, उतना बढ़ा सकता है।
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गरिया  : पुं० [देश०] दक्षिण और मध्यभारत में होनेवाला एक प्रकार का वृक्ष।
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गरियाना  : अ० [हिं० गारी-गाली] गालियाँ देना। दुर्वचन कहना।
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गरियार  : वि० [सं० गुरु-भारी] १. (पशु) जो कहीं बैठ जाने पर जल्दी अपनी जगह से न हिले। फलतः मट्ठर या सुस्त। जैसे–गरियार बैल। २. काम-धंध करने में सुस्त। आलसी। उदाहरण–ढीह पतोहु धिया गरियार।–घाघ।
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गरियारा  : पुं० =गलियारा। वि० =गरियार।
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गरियालू  : पुं० [हिं० करिया से करियालू] एक प्रकार का काला नीला रंग जो ऊन रंगने के काम आता है। वि० उक्त प्रकार के रंग का। काला नीला।
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गरिष्ठ  : वि० [सं० गुरु+इष्ठन्,गर् आदेश] १. बहुत भारी। २. (खाद्य पदार्थ) जो बहुत कठिनता से या देर में पचता हो। ३. महत्वपूर्ण। पुं० १. एक प्राचीन तीर्थ। २. एक दानव का नाम।
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गरी  : स्त्री० [सं०√गृ(लीलना)+अच्+ङीप्] देवताड़। स्त्री० [सं० गुलिका, प्रा० गुड़िया] १. नारियल के अंदर का वह सफेद मुलायम गूदा जो खाया जाता है। २. किसी कड़े बीज के अंदर का मुलायम और जमा हुआ गूदा।
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गरीब  : वि० [अ० ग़रीब] [स्त्री० गरीबिन गरीबिनी, (क्व०) भाव० गरीबी] १. दीन और नम्र। २. दरिद्र। निर्धन। ३. निरुपाय। बेचारा। पुं० ईरानी संगीत में एक प्रकार का राग।
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गरीबखाना  : पुं० [फा०] (अपनी नम्रता दिखाने के लिए) इस गरीब (अर्थात् मुझ अकिंचन) के रहने का स्थान। मेरा घर।
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गरीबनिवाज  : वि० [फा० गरीब+नेवाज़] दोनों पर दया करने और दुःखियों का दुःख दूर करनेवाला। दयालु।
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गरीबपरवर  : वि० [फा०] गरीबों की परवरिश करनेवाला। गरीबों को पालनेवाला। दीन-पालक।
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गरीबी  : स्त्री० [अ० गरीब] १. गरीब होने की अवस्था या भाव। २. दीनता। नम्रता। ३. दरिद्रता। निर्धनता।
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गरीयस्  : वि० [सं० गुरु+ईयसुन,गर् आदेश] [स्त्री० गरीयसी] १. बहुत अधिक भारी। २. बहुत प्रबल और महान्। ३. महत्वपूर्ण।
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गरु  : वि० [सं० गुरु] १. भारी। वजनदार। २. गौरवशाली। ३. जिसका स्वभाव गंभीर या शान्त हो। धीर।
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गरुअत्त  : वि० [सं० गुरु] बड़ा। महान्।
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गरुआ  : वि० [सं० गुरु] [स्त्री० गरुई] १. भारी। वजनी। २. अभिमानी। घमंडी। पुं०-गडुआ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरुआई  : स्त्री० [हिं० गरुआ] गुरुता। भारीपन।
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गरुआना  : अ० [सं० गुरु] भारी या वजनदार होना। स० भारी करना या बनाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गरुड़  : पुं० [सं० गरुत्√डी (उड़ना)+ड, पृषो० तलोप] १. गिद्ध की जाति का एक प्रकार का बहुत बड़ा पक्षी जो पुराणों में विष्णु का वाहन कहा गया है। २. सफेद रंग का एक प्रकार का जल-पक्षी जिसे पड़वा ढेक भी कहते हैं। ३. प्राचीन भारत की एक प्रकार की सैनिक व्यूह-रचना। ४. गरुड़ पक्षी के आकार का एक प्रकार का प्रासाद। ५. पुराणानुसार चौदहवें कल्प का नाम। ६. श्रीकृष्ण के एक पुत्र का नाम। ७. छप्यय छंद का एक प्रकार या भेद। ८. नृत्य में, एक प्रकार की मुद्रा।
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गरुड़-घंटा  : पुं० [ष० त०] ठाकुर जी की पूजा में बजाया जानेवाला वह घंटा जिसके ऊपर गरुड़ की आकृति बनी होती थी।
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गरुड़-ध्वज  : पुं० [ब० स०] १. विष्णु। २. प्राचीनकाल के बने हुए ऐसे स्तंभ जिनपर गरुड़ की आकृति होती थी।
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गरुड़-पक्ष  : पुं० [ष० त०] नृत्य में दोनों हाथ कमर पर रखने की एक मुद्रा।
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गरुड़-पाश  : पुं० [मध्य० स०] पुरानी चाल का एक प्रकार का वह फंदा जो शत्रु को फँसाने के लिए उसके ऊपर फेंका जाता था।
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गरुड़-पुराण  : पुं० [मध्य० स०] अठारह पुराणों में से एक जिसमें यमपुर तथा अनेक प्रकार के नरकों का वर्णन है। प्रेत-कर्म का विधान भी इसी में है। विशेष–हिन्दुओं में किसी के मर जाने पर दस दिन तक इसकी कथा सुनने का माहात्म्य है।
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गरुड़-प्लुत  : पुं० [ष० त० ] नृत्य में एक प्रकार की मुद्रा।
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गरुड़-भक्त  : पुं० [ष० त० ] प्राचीन भारत का एक संप्रदाय जो गरुड़ की उपसाना करता था।
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गरुड़-यान  : पुं० [ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण।
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गरुड़-रुत  : पुं० [ष० त० ] एक वर्णवृत्त जिसके प्रत्येक चरण में क्रमशः नगण, जगण, भगण, जगण, तगण तता अंत में एक गुरु होता है।
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गरुड़-व्यूह  : पुं० [उपमि० स०] प्राचीन भारत में सैनिक व्यूह रचना का एक प्रकार जिसमें सेना का मध्य भाग अपेक्षया अधिक विस्तृत रखा जाता था।
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गरुड़-सिंह  : पुं० [उपमि० स०] प्राचीन भारतीय वास्तु में, वह कल्पित सिंह जिसका अगला भाग गरुड़ के समान तथा पिछला भाग सिंह के सामन होता था।
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गरुड़गामी (मिन्)  : पुं० [सं० गरुड़√गम् (जाना)+णिनि] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण।
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गरुड़ांक  : पुं० [गरुड़-अंक,ब० स०] विष्णु।
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गरुड़ांकित  : पुं० [गरुड़-अंकित,उपमि० स० ] दे० ‘गरुड़ाश्मा’।
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गरुड़ाग्रज  : पुं० [गरुड़-अग्रज,ष० त०] अरुण, जो गरुड़ का बड़ा भाई कहा गया है।
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गरुड़ाश्या(श्मन्)  : पुं० [गरुड़-अश्मन्,उपमि० स०] पन्ना नामक रत्न।
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गरुता  : स्त्री०=गुरुता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरुत्  : पुं० [सं०√गृ(शब्द)+डति] पंख। पर।
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गरुत्मान्(मत्)  : पुं० [सं० गरुत्+मतुप्] १. गरुड़। २. पक्षी। ३. अग्नि।
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गरुल  : पुं० [सं० गरुड़] गरुड़। उदाहरण–कंत गरुल होतहिं निरदयी।–जायसी।
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गरुवाई  : स्त्री०=गुरुता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरुहर  : वि०=गुरु (भारी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरू  : वि०=गुरु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गरूर  : पुं० [अ० ग़रूर] अभिमान। घमंड।
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गरूरत  : स्त्री०=गरूर।
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गरूरताई  : स्त्री०=ग़रूर।
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गरूरा  : वि० [फा० गरूर] [स्त्री० गरूरी] १. अभिमानी। २. घमंडी। पुं०=गरूर।
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गरेठना  : स०=गरेरना (घेरना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरेठा  : वि०टेढ़ा।
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गरेबान  : पुं० [फा०] किसी सिले हुए कपड़े का वह अंश जो गले के चारों ओर पड़ता है।
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गरेरना  : स०=घेरना (छेकना या रोकना)।
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गरेरा  : पुं०=घेरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) वि० [स्त्री० गरेरी] (वास्तु रचना) जिसमें घुमाव फिराव हो। चक्करदार। पुं० गदेला (छोटा लड़का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गरेरी  : स्त्री०=गड़ारी।
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गरेलना  : स०=गरेरना।
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गरेहुआ  : वि० [सं० गुरु] १. भारी। २. भीषण। विकट।
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गरैयाँ  : स्त्री० गराँव (पशुओं के गले में बाँधने की रस्सी)।
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गरोह  : पुं० [फा०] झुंड। जत्था।
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गर्क़  : वि० [अ०] १. डूबा हुआ। २. तल्लीन। विचारमग्न।
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गर्ग  : पुं० [सं०√गृ (स्तुति करना)+ग] १. एक वैदिक ऋषि जो आंगिरस भरद्वाज के वंशज और ऋग्वेद के एक सूक्त के मंत्र-दृष्टा थे। २. ज्योतिष शास्त्र में एक प्राचीन आचार्य। ३. धर्मशास्त्र के प्रवर्तक एक प्राचीन ऋषि। ४. बैल। ५. साँड। ६.गगोरी नाम का छोटा क्रीड़ा। ७. बिच्छू। ८. केंचुआ। ९. एक पर्वत का पुराना नाम। १॰. ब्रह्मा के एक मानस पुत्र जिनकी सृष्टि गया में यज्ञ के लिए हुई थी। ११. संगीत में, एक प्रकार का ताल।
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गर्गर  : पुं० [सं०√रा (देना)+क] १. भँवर। २. एक प्रकार का पुराना बाजा। ३. गगरा। गागर। ४. एक प्रकार की मछली।
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गर्गरी  : स्त्री० [सं० गर्गर+ङीष्]१. दही जमाने की मटकी। दहेंड़ी। २. मथानी। ३. गगरी। कलसी।
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गर्ज  : स्त्री०=गरज।
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गर्जक  : पुं० [सं०√गर्ज (गरजना)+ण्वुल्-अक] एक प्रकार की मछली। वि० गरजनेवाला।
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गर्जन  : पुं० [सं०√गर्ज+ल्युट्-अन] १. घोर ध्वनि या भीषण शब्द करने या होने की क्रिया या भाव। गरज। पद–गर्जन-तर्जन=क्रोध में आकर जोर-जोर से बोलना और डाँटना-डपटना। २. शाल की जाति का एक प्रकार का वृक्ष।
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गर्जना  : स्त्री० [सं०] गर्जन ( दे०)। अ०=गरजना।
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गर्जा  : स्त्री० [सं०√गर्ज+अङ्-टाप्] बादलों की गरज।
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गर्जित  : भू० कृ० [सं०√गर्ज+क्त] गरजा हुआ।
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गर्डर  : पुं० [अं०] लोहे का ढला हुआ वह मोटा लंबा झड़ जो बड़ी छतें आदि पाटने में शहतीर की जगह लगाया जाता है।
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गर्तकी  : स्त्री० [सं० गर्त+कन्-ङीष्] वह स्थान जहाँ कपड़े बुने जाते हैं।
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गर्ता  : [सं० गर्त+टाप्] १. बिल। २. गुफा।
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गर्ताश्रय  : पुं० [गर्त्त-आश्रय, ब० स०] बिल में रहनेवाला जंतु। जैसे–चूहा, खरगोश आदि।
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गर्तिका  : स्त्री० [सं० गर्त+ठन्-इक, टाप्] =गर्तकी।
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गर्त्त  : पुं० [सं०√गृ (लीलना)+तन्] १. गड्ढा। गड़हा। २. छेद। ३. दरार। ४. घर। ५. रथ। ६. जलाशय। ७. एक नरक का नाम। ८. एक शब्द जो स्थान-वाचक कुछ नामों में उत्तर पद के रूप में लगता है। जैसे–चक्रगर्त्त, त्रिगर्त्त आदि।
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गर्द  : स्त्री० [फा०] गरदा। धूल। मुहावरा–के लिए ‘धूल’ के मुहावरा।
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गर्द-गुबार  : पुं० [फा०] धूल और मिट्टी जो हवा के साथ उड़कर इधर-उधर गिरती है।
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गर्दखोर  : वि० [फा०] (कपड़ा या उसका रंग) जो गर्द या मिट्टी आदि पड़ने से जल्दी मैला या खराब न होता हो। जैसे–खाकी रंग। पुं० पैर पोछनें का टाट आदि।
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गर्दखोरा  : वि०=गर्दखोर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गर्दन  : स्त्री०=गरदन।
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गर्दना  : पुं० दे० ‘गरदना’।
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गर्दभ  : पुं० [सं०√गर्द (शब्द करना)+अभच्] १. गधा। गदहा। २. सफेद कुमुदनी या कोई। ३. विडंग। ४. गदहिला नाम का कीड़ा।
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गर्दभ-याग  : पुं० [तृ० त० ] अवकीर्ण याग।
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गर्दभक  : पुं० [सं० गर्दभ+कन्] १. गुबरैला नाम का कीड़ा। २. एक प्रकार का चर्म रोग।
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गर्दभंग  : पुं० [हिं० गर्द+भंग] एक प्रकार का गाँजा जिसे चूरू चरस भी कहते हैं।
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गर्दभा  : स्त्री० [सं० गर्दभ+टाप्] सफेद कंटकारी।
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गर्दभांड  : पुं० [सं० गर्दभ√अम् (जाना)+ड] पलखा या पाकर नामक वृक्ष।
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गर्दभिका  : स्त्री० [सं० गर्दभ+ङीष्+कन्-टाप्,ह्रस्व] एक प्रकार का रोग जिसमें लाल फुँसियाँ निकलती है। गदहिला।
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गर्दभी  : स्त्री० [सं० गर्दभ+ङीष्] १. गर्दभ की मादा। गधी। २. एक प्रकार का कीड़ा। ३. अपराजिता लता। ४. सफेद कंटकारी। ५. गर्दभिका या गदहिला नामक रोग।
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गर्दाबाद  : वि० [फा० गर्द+आबाद] १. गर्द या धूल से भरा हुआ। २. टूटा-फूटा। ध्वस्त। ३. उजाड़। पीरान। ४. बेसुध। बेहोश।
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गर्दालू  : पुं० [फा० गर्द+आलू] आलूबुखारा।
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गर्दिश  : स्त्री० [फा०] १. चारों ओर घूमने की क्रिया या भाव। चक्कर। २. विपत्ति या संकट में डालनेवाला दिनों (या भाग्य) का फेर।
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गर्दुआ  : पुं०=गरदुआ।
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गर्दू  : पुं० [फा०] १. आकाश। २. गाड़ी। रथ।
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गर्द्ध  : पुं० [सं० गृध् (चाहना)+घञ्] [वि० गर्द्धी,गर्द्धित] १. लालच। लोभ। २. गर्दभांड। पाकर।
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गर्द्धित  : वि० [सं० गर्द्ध+इतच्] लोभ से युक्त। लुब्ध।
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गर्नाल  : स्त्री०=गरनाल।
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गर्ब  : पुं०=गर्व।
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गर्बा  : पुं० [?] १. मिट्टी का वह पात्र जो देवी-देवताओं की पूजा के लिए मंगल कलश के रूप में सजाकर प्रस्थापित किया जाता है। २. वह गीत जो उक्त पात्र को प्रस्थापित करते समय गाया जाता है। (गुजरात)
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गर्बीला  : वि० =गर्वीला।
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गर्भ  : पुं० [सं०√गृ (सींचना)+भन्] १. पेट के अन्दर का भाग। उदर। २. स्तनपायी (मादा) प्राणियों के शरीर का वह भीतरी भाग जिसमें शुक्र और रज के संयोग से नये प्राणी उत्पन्न होते, बढ़ते, पनपते और अंत में जन्म लेते हैं। गर्भाशय। ३. उक्त के आधार पर मादा स्तनपायी प्राणियों के गर्भवती होने की अवस्था या काल। मुहावरा–गर्भ गिरना=गर्भपात होना। गर्भ रहना-पेट में बच्चा आना। ४. लाक्षणिक अर्थ में, किसी वस्तु का वह भीतरी भाग जिसमें कोई चीज छिपी या दबी रहती अथवा पनपती, बढ़ती या स्थिर रहती है। जैसे–यह बात तो अभी भविष्य के गर्भ में ही है। ५. गर्भ में आनेवाला नया जीव। (क्व०) ६. फलित ज्योतिष में नये मेघों की उत्पत्ति जिसमें वृष्टि का आगम होता है।
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गर्भ-काल  : पुं० [ष० त०] १. गर्भाधान के लिए उपयुक्त काल। ऋतुकाल। २. वह सारा समय जब तक स्त्रियों को गर्भ रहता हो। गर्भ-धारण से प्रसव तक का समय।
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गर्भ-केसर  : पुं० [ष० त० ] फूल के बीच में के वे केसर या सीकें जो उसके स्त्रीलिंग अंग के रूप में होते हैं। उसी के साथ पराग केसर का संपर्क होनेपर फल और जीव उत्पन्न होते हैं। (कार्पेल पिस्टिल)
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गर्भ-कोष  : पुं० [ष० त०] गर्भाशय।
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गर्भ-गृह  : पुं० [उपमि० स०] १. मकान के मध्य की कोठरी। बीच का घर। २. मन्दिर के बीच की वह कोठरी जिसमें प्रतिमा या मूर्ति रहती है। ३. वह कोठरी जिसमें गर्भवती स्त्री सन्तान प्रसव करती है। सौरी। ४. आँगन।
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गर्भ-चलन  : पुं० [ष० त० ] गर्भाशय में बच्चे का इधर-उधर हिलना-डोलना।
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गर्भ-च्युति  : स्त्री० [ष० त०] १. प्रसव। २. गर्भपात।
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गर्भ-जात  : वि० [ष० त० ] =गर्भज।
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गर्भ-दात्री  : स्त्री० [ष० त०]=गर्भदा।
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गर्भ-दास  : पुं० [पं० त०] [स्त्री० गर्भदासी] दासी का पुत्र अर्थात् जन्मजात दास। गोला।
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गर्भ-दिवस  : पुं० [च० त०] १. गर्भकाल। २. कार्तिकी पूर्णिमा से लेकर लगभग १९५ दिनों का समय जब कि मेघों के ग्रभ में आने अर्थात् आकाश में बनने का समय होता है। (बृहत्संहिता)
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गर्भ-द्रुत  : पुं० [ष० त०] वैद्यक में पारे की शुद्धि के लिए किये जानेवाले संस्कारों में से तेरहवाँ संस्कार।
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गर्भ-द्रुह  : वि० [सं० गर्भ√द्रुह्(बुराई सोचना)+क्विप्] [स्त्री० गर्भद्रुहा] गर्भ का द्रोही, अर्थात् गर्भ न चाहने या उसे नष्ट करनेवाला।
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गर्भ-धरा  : वि० [ष० त०] गर्भ धारण करनेवाली। गर्भवती।
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गर्भ-धारण  : पुं० [ष० त०] गर्भ में नया जीव धारण करना। गर्भवती होना।
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गर्भ-नाड़ी  : स्त्री० [ष० त०] वह नाडी जो एक ओर गर्भ के बच्चे की नाभि से और दूसरी ओर गर्भाशय से मिली होती है।
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गर्भ-नाल  : स्त्री० [ष० त०] १. फूलों के भीतर की वह पतली नाल जिसके सिरे पर गर्भ केसर होता है। २. दे० गर्भ नाड़ी।
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गर्भ-निस्रव  : पुं० [ष० त० ] वह झिल्ली जो बच्चे के जन्म लेने पर गर्भ से निकलती है। आँवल। खेड़ी।
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गर्भ-पत्र  : पुं० [ष० त०] १. कोंपल। गाभा। २. दे० ‘गर्भनाल’।
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गर्भ-पात  : पुं० [ष० त०] १. गर्भ का गिरना। पेट के बच्चे का पूरी बाढ़ के पहले गर्भ से निकलकर गिर पड़ना और व्यर्थ हो जाना। (गर्भ-स्राव से भिन्न, दे० गर्भ-स्राव)।
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गर्भ-पातक  : वि० [ष० त० ] (औषध या पदार्थ) जिसके प्रयोग या व्यवहार से गर्भपात हो जाए। गर्भ गिरानेवाला। पुं० लाल सहिंजन।
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गर्भ-पातन  : पुं० [सं० ष० त० ] जान-बूझकर पेट या गर्भ का गिराना, जिससे गर्भस्थ जीव मर जाता है। (यह विधिक दृष्टि से अपराद भी है और नैतिक तथा धार्मिक दृष्टि से पाप भी)।
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गर्भ-पातिनी  : स्त्री० [सं० गर्भपातिन्+ङीष्] १.कलिहारी। २.विशल्या नामक ओषधि।
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गर्भ-भवन  : पुं० [ष० त०] १. वह कोठरी जिसमें बच्चा प्रसव करती है। सौरी। २. दे० ‘गर्भ-गृह’।
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गर्भ-मंडप  : पुं० [ष० त०] १. गर्भ-गृह। २. पति और पत्नी का शयनगार।
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गर्भ-मास  : पुं० [ष० त०] वह महीना जिसमें स्त्री ने गर्भ धारण किया हो।
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गर्भ-वास  : पुं० [स० त०] १. बच्चे का गर्भाशय में रहना। २. गर्भाशय।
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गर्भ-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] वह विज्ञान जिसमें इस बात का विवेचन होता है कि गर्भ में कलल किस प्रकार बनता है, उसमें जीवन कासंचार कैसे होता है। (एम्ब्रायाँलोजी)
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गर्भ-व्याकरण  : पुं० [ष० त० ] आयुर्वेद का वह अंग जिसमें बालक के गर्भ में आने, बढने, जन्म लेने आदि बातों का विवेचन होता है।
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गर्भ-व्यूह  : पुं० [उपमि० स०] युद्ध में सेना की एक प्रकार का व्यूह-रचना जिसमें सेना अपने सेनापति या रक्षणीय वस्तु को चारों ओर से घेरकर खड़ी होती और लड़ती थी।
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गर्भ-शंकु  : पुं० [ष० त०] वह सँड़सी जिसमें मरा हुआ बच्चा गर्भ में से निकाला जाता था। (फर्सेप्स)
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गर्भ-शय्या  : स्त्री० [ष० त०] पेट के अंदर का वह स्थान जिस पर गर्भ स्थित रहता है।
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गर्भ-संधि  : स्त्री० [मध्य० स०] नाट्य-शास्त्र में एक प्रकार की संधि। जिस संधि में उपाय कहीं दह जाए और खोज करने पर बीज का और भी विकास हो उसे गर्भ संधि कहते हैं।–पं० विश्वनाथप्रताप मिश्र ।
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गर्भ-स्थली  : स्त्री० [मयू० स०] गर्भाशय।
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गर्भ-स्थापन  : पुं० [ष० त०] गर्भाशय में वीर्य पहुँचाकर गर्भ धारण कराना। (सेमिनेशन)
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गर्भ-स्राव  : पुं० [ष० त०] गर्भ के गिरने या नष्ट होने की वह अवस्था जब कि वह पिंड बनने से पहले बहुत कुछ तरल रूप में रहता है। (एबोर्शन) विशेष-साधारणतः तीन-चार महीने तक गर्भ तर रूप में रहता है और गर्भ-स्राव होने पर वह रक्त के रूप में बहकर निकल जाता है। पर इससे अधिक बड़े होने पर जब वह पिंड का रूप धारण करके निकलता है, तब उसे गर्भपात कहते हैं।
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गर्भ-हत्या  : स्त्री० [ष० त०] गर्भ में आये हुए जीव या प्राणी को किसी प्रकार नष्ट कर देना या मार डालना।
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गर्भक  : पुं० [सं० गर्भ√कै (शब्द)+क] १. पुत्रजीव वृक्ष। पतजिव। २. फूलों का गुच्छा जो बालों में खोंसा जाता है। [गर्भ+कन्] दो रातों और उनके बीच के दिन की अवधि।
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गर्भकार  : वि० [सं० गर्भ√कृ (करना)+अण्] (व्यक्ति) जिसके संपर्क से स्त्री ने गर्भ धारण किया हो। पुं० सामगात का एक प्रकार का भेद।
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गर्भघाती(तिन्)  : वि० [सं० गर्भ√हन्(नष्ट करना)+णिनि] [स्त्री० गर्भघातिनी] गर्भ गिराने या नष्ट करनेवाला।
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गर्भज  : वि० [सं०गर्भ√जन्(उत्पन्न होना)+ड] १. जो गर्भ से उत्पन्न हुआ हो। (अंडज, स्वेदज आदि से भिन्न) २. दे० जन्म जात।
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गर्भड  : पुं० [गर्भ-अंड,ष० त० ,पररूप] बहुत बड़ी या उभरी हुई नाभि।
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गर्भद  : वि० [सं० वृर्भ√दा (देना)+क] गर्भकार। पुं० पुत्रजीव वृक्ष।
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गर्भदंश  : पुं० =संदंश।
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गर्भदा  : स्त्री० [सं० ग्रभद+टाप्] सफेद भटकटैया।
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गर्भपाकी(किन्)  : पुं० [सं० गर्भ-पाक ष० त० +इनि] साठी धान।
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गर्भपाती(तिन्)  : वि० [सं०गर्भ√पत् (गिरना)+णिच्+णिनि] [स्त्री० गर्भपातिनी] गर्भपात करने या गिरानेवाला।
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गर्भरा  : स्त्री० [सं० गर्भ√रा (देना)+क-टाप्] प्राचीन काल की एक प्रकार की बड़ी नाव।
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गर्भवती  : स्त्री० [सं० गर्भ+मतुप्-वत्व,ङीष्] स्त्री, जिसके पेट में बच्चा हो। गर्भिणी।
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गर्भस्थ  : वि० [सं० गर्भ√स्था (ठहरना)+क] गर्भ में आया या ठहरा हुआ। (बच्चा)।
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गर्भस्रावी(विन्)  : वि० [सं० गर्भ√स्रु (बहना)+णिच्+णिनि] [स्त्री० गर्भ-स्राविनी] गर्भ-स्राव करने या करानेवाला। पुं० हिंताल नामक वृक्ष।
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गर्भाक  : पुं० [सं० गर्भ-अंक,उपमि० स०] १. नाटक के अंक का एक अंश जिसमें केवल एक घटना का दृश्य होता है। २. एक नाटक में दिखलाया जानेवाला कोई दूसरा नाटक या उसका दृश्य।
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गर्भागार  : पुं० [सं० गर्भ-आगार, उपमि० स०] १. गर्भ-गृह। २. आँगन। ३. गर्भाशय।
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गर्भाधान  : पुं० [सं० गर्भ-आधान, ष० त० ] १. स्त्री० के गर्भ या पेट में पुरुष के वीर्य से जीव या प्राणी की सृष्टि का सूत्रपात। संभोग करके वीर्य गर्भाशय में स्थित करना या होना। २. गृहसूत्र के अनुसार मनुष्य के सोलहवें संस्कारों में से पहला संस्कार जो उस समय होता है जब स्त्री ऋतुमती होने के उपरांत शुद्ध होती है।
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गर्भारि  : पुं० [सं० गर्भ-अरि,ष० त०] छोटी इलायची।
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गर्भाशय  : पुं० [सं० गर्भ-आशय, ष० त० ] स्त्रियों या मादा पशुओं के पेट में वह स्थान जिसमें वीर्य के पहुँचने पर जीव या प्राणी की सृष्टि का सूत्रपात होता है। बच्चेदानी (यूट्स)।
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गर्भिणी  : वि० [सं०गर्भ+इनि-ङीष्] स्त्री या मादा प्राणी जिसे गर्भ हो। गर्भवती। (प्रेगनैन्ट) स्त्री० १. खिरनी का पेड़। २. प्राचीन भारत में एक प्रकार की बड़ी नाव जो समुद्रों में चलती थी।
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गर्भित  : वि० [सं० गर्भ+इतच्] १. जिसने गर्भ धारण किया हो। गर्भ ये युक्त। २. जिसके गर्भ अर्थात् भीतरी भाग मे कुछ हो या छिपा हो। जैसे–सारगर्भित कथन। ३. भरा हुआ। पूरित। ४. साहित्यिक रचना का एक दोष जो किसी एक भाव के सूचक वाक्य के अन्तर्गत किसी दूसरे भाव का सूचक कोई और वाक्य भी सम्मिलित किये जाने पर होता है।
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गर्भी(र्भिन्)  : वि० [सं० गर्भ+इनि] १. गर्भवाला। २. गर्भित।
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गर्भीला  : वि० [सं० गर्भ+हिं० ईला (प्रत्यय)] १. जिसके गर्भ अथवा भीतरी भाग में कोई चीज स्थित हो। २. (रत्न) जिसके अन्दर से आभा निकलती हो।
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गर्भोदक  : पुं० [सं० गर्भ-उदक, ब० स०] पुराणानुसार एक समुद्र जिसमें श्रीकृष्ण को शेषशायी महाविष्णु के दर्शन हुए थे।
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गर्भोपघात  : पुं० [सं० गर्भ-उपघात, ष० त०] गर्भ-हत्या।
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गर्भोपनिषद्  : पुं० [सं० गर्भ-उपनिषद्, मध्य० स०] अथर्ववेद सम्बन्धी एक उपनिषद् जिसमें गर्भ की सृष्टि, अभिवृद्धि, प्रसव आदि का वर्णन है।
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गर्म  : वि० [फा०] दे० ‘गरम’।
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गर्रा  : वि० [देश०] लाख के रंग जैसा। लाखी। पुं० १. लाखी रंग। २. लाखी रंग का घोड़ा। ३. लाखी रंग का कबूतर। पुं० [अ० गर्र] १. अभिमान। घमंडी। २. कोई ऐसा उग्र कार्य जो अपने अभिमान और बल के प्रदर्शन के लिए किया गया हो। ३. सतलज नदी के एक नाम जो उसे बहावलपुर के आस-पास प्राप्त है। स्त्री०=गराड़ी। (बुन्देल०) उदाहरण–गर्रा पै डोरी डार गुइँयाँ अरी डार गुइयाँरी।–लोकगीत।
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गर्री  : स्त्री० [हिं० गरेरना] १. खलिहान में लगाई हुई डंठल की गाँज। २. तागा लपेटने का एक औजार।
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गर्व  : पुं० [सं०√गर्व् (अहंकार करना)+घञ्] [वि० गर्वित, गर्ववान] १. अपने किसी श्रेष्ट कार्य, बात, वस्तु, व्यक्ति आदि के संबंध में होनेवाली न्यायोचित अहंभावना। जैसे–हमें अपने देश, धर्म तथा संस्कृति पर गर्व है। २. अपनी शक्ति, समर्थता आदि की दृष्टि से मन में होनेवाली अयुक्तपूर्ण अहंभावना। जैसे–उन्हें अपनी डंडे बाजी पर गर्व है। ३. अभिमान। घमंड। ४. साहित्य में वह अवस्था जब मनुष्य अपने किसी गुण या विशेषता के विचार से दूसरों की अपेक्षा अपने को बहुत बड़ा-चढ़ा समझता है और कभी-कभी अपने उत्कर्ष की भावना से दूसरों की अवज्ञा भी करता है। (इसकी गणना संचारी भावों में होती है)
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गर्वर  : वि० [सं०√गृ (लीलना)+वरच्] जिसे गर्व हो।
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गर्वरी  : स्त्री० [सं० गर्वर+ङीष्] दुर्गा।
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गर्ववंत  : वि० [सं० गर्ववान्] (व्यक्ति) जिसे अपने अथवा अपनी किसी चीज, बात या व्यवहार पर गर्व हो। अभिमानी। घमंडी।
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गर्वाना  : अ० [सं० गर्व] स्वयं गर्व करना। स० किसी को गर्वित करना या कराना।
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गर्विणी  : वि० स्त्री० [सं० गर्व+इनि-ङीप्]१. गर्व करनेवाली (स्त्री०)। २. मान करने या रूठनेवाली। मानिनी।
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गर्वित  : वि० [सं०√गर्व्+क्त] [स्त्री० गर्विता] १. गर्व से युक्त। २. गर्व या अभिमान करनेवाला।
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गर्विता  : स्त्री० [सं० गर्वित+टाप्] साहित्य में वह नायिका जिसे अपने रूप, गुण आदि का अथवा अपने पति या प्रेमी के परम अनुराग का गर्व या घमंड होता है।
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गर्विष्ठ  : वि० [सं० गर्व+इष्ठन्] १. जिसे गर्व हो। गर्वीला। २. अभिमानी। घमंडी।
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गर्वी (र्विन्)  : वि० [सं० गर्व+इनि] अभिमानी। घमंडी।
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गर्वीला  : वि० [सं० गर्व+हिं० इला (प्रत्यय)] [स्त्री० गर्विली] १. गर्व करनेवाला। गर्व से युक्त। २. अभिमानी।
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गर्हण  : पुं० [सं०√गर्ह् (निंदा करना)+ल्युट्-अन] [वि० गर्हणीय,गर्हित] किसी को बहुत बुरा समझकर की जानेवाली निंदा। भर्त्सना।
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गर्हणा  : स्त्री० [सं०√गर्ह्+णिच्+युच्-अन,टाप्] =गर्हण।
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गर्हणीय  : वि० [सं०√गर्ह्+अनीयर] जिसका गर्हण या निंदा करना उचित हो। गर्हण का पात्र। (अर्थात् निंदनीय या बुरा)।
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गर्हा  : स्त्री० [सं० गर्ह्+अ-टाप्] गर्हणा। निंदा।
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गर्हित  : भू० कृ० [सं०√गर्ह्+क्त] १. जिसकी गर्हणा या निन्दा की गई हो। २. इतना दूषित या बुरा कि उसे देखने पर मन में घृणा उत्पन्न होती हो।
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गर्ह्य  : वि० [सं०√गर्ह+ण्यत्]=गर्हणीय।
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गल  : पुं० [सं०√गल् (खाना)+अप्] १. गला। कंठ। गरदन। २. एक प्रकार का पुराना बाजा। ३. गड़ाकू मछली। ४. दाल। पुं० हिं० ‘गला’ का संक्षिप्त रूप जो उसे यौगिक शब्दों के आरंभ में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे–गलफाँसी, गलबहियाँ आदि।
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गल-कंबल  : पुं० [सं० स० त०] गाय के गले के नीचे का वह भाग जो लटकता रहता है। झालर। लहर।
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गल-गंड  : पुं० [स० त०] एक प्रकार का रोग जिसमें गले की अवटुका नामक ग्रन्थियों में सूजन होती है और जो बड़ी गाँठ के रूप में बाहर निकल आती है। घेघा। (गायटर)
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गल-ग्रह  : पुं० [ष० त०] १. गले में पड़ा हुआ कष्टदायक बंधन। २. इस रूप में होनेवाली विपत्ति या संकट। ३. आई हुई वह आपत्ति जो कठिनता से टले। ४. मछली फँसाने का काँटा। ५. गले में गफ अटकने या रुकने के कारण होनेवाला एक रोग। ६. ज्योतिष के अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्थी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, त्रयोदशी, अमावस्या और प्रतिपदा।
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गल-तकिया  : पुं० [हिं० गाल+तकिया] गाल के नीचे रखा जानेवाला एक प्रकार का गोल छोटा तकिया।
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गल-शुंडी  : स्त्री० [स० त०] जीभ की जड़ के पास छोटी घंटी। कौआ। जीभी।
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गल-शोथ  : पुं० [ष० त० ] कुछ रोगों (जैसे–जुकाम, तुंदिका शोथ आदि) के कारण गले के भीतरी भाग में होनेवाली सूजन और पीड़ा। (सोर थ्रोट)।
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गल-स्तन  : पुं० [स० त०] [वि० गलस्तनी] कुछ बकरियों के गले में लटकनेवाला मांस पिंड। गलथना।
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गल-स्वर  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का प्राचीन बाजा जो मुँह से फूँककर बजाया जाता था।
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गल-हँड  : पुं०=गलगंड (रोग)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गलई  : स्त्री०=गलही।
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गलक  : पुं० [सं० गल+कन्] १. गला। २. गड़ाकू मछली। ३. मोती। उदाहरण–गुहे गलक कुंतल मँह कैसे।–जायसी।
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गलका  : पुं० [हिं० गलना] १. हाथ की उँगलियों के अगले सिरे पर होनेवाला जहरीला फोड़ा जिससे हाथ में टपक पड़ती है। इसकी गिनती चेचक या माता में होती है। २. एक प्रकार का चाबुक।
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गलकोड़ा-गलखोड़ा  : पुं० [हिं० गला+कोड़ा] १. कुश्ती का एक पेंच। २. मालखंभ की एक कसरत। ३. एक प्रकार का कीड़ा या चाबुक।
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गलगंजन  : पुं० [हिं० गल+गाँजना] १. शोर-गुल। २. डींग।
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गलगंजना  : स० [हिं० गलगंजन] १. जोर-जोर से चिल्लाना। शोर-गुल करना। २. डींग हाँकना।
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गलगल  : स्त्री० [देश०] १. मैना जाति की एक चिड़िया जो कुछ सुर्खी लिये काले रंग की होती है। गिरगोटी। गलगलिया। २. एक प्रकार का बड़ा खट्टा नीबू जिसका अचार पड़ता है। ३. चरबी की बत्ती का वह टुकड़ा जो चलते हुए जहाजों की सीसे की उस नली में लगा रहता है जिससे समुद्र की गहराई नापी जाती है। (लश०) ४. एक प्रकार का मसाला जो लकड़ियों को जोड़ने अथवा उनके छेद बंद करने के काम आता है।
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गलगला  : वि० [हिं० गलना या गीला] [स्त्री० गलगली] १. भीगा हुआ। आर्द्रा। तर। २. आँसुओं से भरा हुआ। (नेत्र) ३.बहुत ही कोमल या मुलायम।
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गलगलाना  : अ० [हिं० गलना] १. गीला या तर होना। भींगना। २. कठोर पदार्थ का बहुत कोमल हो जाना। ३. (हृदय का) आर्द्रा या दयालु होना। मन का कोमल भावों से युक्त होना। ४. हर्षित होना।
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गलगाजना  : अ० [हिं० गाल+गाजना] १. खुशी से गाल बजाना। २. शोर-गुल करना। ३. डींग मारना।
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गलगुच्छा  : पुं०=गलमुच्छा।
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गलगुथना  : वि० [हिं० गाल] जिसका शरीर खूब भरा हुआ और गाल फूलें हो। जैसे–गलगुथना बच्चा।
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गलघोंटू  : वि० [हिं० गला+घोंटना] गला घोंटने या दबानेवाला। पुं० १. ऐसा काम या बात जो गला घोटनेवाली हो। २. व्यर्थ का और कष्टदायक भार।
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गलचा  : स्त्री० [?] कंबोज देश और उसके आस-पास की बोली जानेवाली कुछ बोलियों का वर्ग या समूह।
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गलछट  : स्त्री०=गलफड़ा।
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गलजँदड़ा  : पुं० [सं० गल+यंत्र,पं० जंदरा] १. वह जो सदा पीछे या साथ लगा रहे। गले का हार। २. गले में लटकाई जानेवाली कपड़े की वह पट्टी जो चोट खाये हुये हाथ को सहारा देने के लिए बाँधी जाती है और जिसकी लपेट में हाथ या कलाई रहती है।
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गलजोड़  : पुं०=गलजोत।
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गलजोत  : स्त्री० [हिं० गला+जोत] १. वह रस्सी जिसके एक बैल का गला दूसरे बैल के गले से बाँधा जाता है। गलजोड़। २. गले में पड़ा हुआ किसी प्रकार का कष्टदायक बंधन। ३. दे० ‘गलजँदड़ा’।
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गलझंप  : पुं० [हिं० गला+झाँपना] हाथी के गले में बाँधी जानेवाली लोहे की जंजीर।
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गलत  : वि० [अ०] १. (मौखिक या लिखित प्रश्नोत्तर या हिसाब-किताब) जिसमें कलन या गणन संबंधी कोई भूल हो अथवा जो नियम या सिद्धान्त की दृष्टि से ठीक न हो। २. (लेख) जो अक्षरी व्याकरण आदि की दृष्टि से शुद्ध न हो। जिसमें किसी प्रकार की भूल या भूलें हों। ३. जो तथ्य के अनुरूप न हो। जो असत्य या झूठ हो। जैसे–तुम गलत कहतें हो मैंने कभी ऐसा नहीं कहा था। ४. जो उचित या विहित न हो। दूषित या बुरा। जैसे–उन्होंने गलत रास्ता अपनाया है।
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गलत-फहमी  : स्त्री० [अ०+फा०] किसी की कही हुई बात का अर्थ या आशय कुछ का कुछ समझना। कोई बात समझने में कुछ धोखा खाना।
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गलतंग  : वि० [सं० गलित+अंग] बेसुध। बेखबर। बेहोश।
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गलतनामा  : पुं०=शुद्धिपत्र।
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गलतनी  : स्त्री० [हिं० गला+तनना] बैल के गेराँव में बाँधी जानेवाली रस्सी। पगहा।
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गलतंस  : पुं० [सं० गलित+वंश] १. ऐसी संपत्ति जिसका कोई उत्तराधिकारी न रह गया हो। लावारिस। जायदाद। २. ऐसा व्यक्ति जिसकी संपत्ति का कोई उत्तराधिकारी न रह गया हो।
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गलताँ  : वि०=गलतान।
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गलता  : पुं० [फा० गलतान] १. एक प्रकार का बहुत चमकीलाम मोटा कपड़ा जिसका ताना रेशम का और बाना सूत का होता है। २. दीवार में बनी हुई कंगनी या छज्जी। कारनिस।
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गलताड़  : पुं० [सं० ष० त० ] जूए या जुआठे की वह खूँटी जो अन्दर की ओर होती है।
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गलतान  : वि० [फा०] १. लड़खाड़ाता या लुढ़कता हुआ। २. घूमता या चक्कर खाता हुआ। पुं० एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।
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गलती  : स्त्री० [अ० गलत+ई फा०] १. कलन या गणना संबंधी बूल। २. नियम, रीति, व्याकरण, सिद्धान्त आदि की दृष्टि से होनेवाली कोई भूल। अशुद्धि। ३. ठीक प्रकार से कोई काम न करने, न देखने या न समझने की अवस्था या भाव। पुं० [हिं० गलना] अभिषेक-घट जिसमें छिद्र होता है। उदाहरण–पुन गलती पुजारा, गाडुवा नैन ढालंती।
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गलंती,गलंतीका  : स्त्री० [सं०√गल् (क्षरण होना)+शतृ-ङीप्+कन्-टाप्] [√गल्+शतृ-ङीष्] १. छोटी कलसी। २. छेददार घड़ा जिसमें से शिवलिंग पर पानी चूता रहता है।
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गलथना  : पुं० [सं० गलस्तन, पा० गलत्थन, गलथन] कुछ बकरियों के गले में लटकाया हुआ लंबोत्तरा मांस-पिंड।
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गलथैली  : स्त्री० [हिं० गाल+थैली] पशुओं विशेषतः बंदरों के गले के अन्दर थैली के आकार का वह अंग जिसमें वे खाने की वस्तु पहले भर लेते हैं और तब बाद में धीरे-धीरे निकालकर खाते हैं।
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गलदश्रु  : वि० [सं० गलत-अश्रु, ब० स०] जिसके आँसू बह रहे हों। रोता हुआ।
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गलन  : पुं० [सं०√गल्+ल्युट्-अन] १. गलने की अवस्था, क्रिया या भाव। २. किसी तरल पदार्थ का किसी पात्र में से चूना या रिसना।
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गलनहाँ  : पुं० [हिं० गलना+नहँ-नाखून] १. हाथियों का एक रोग जिसमें उनके नाखून गलगलकर निकलने लगते हैं। २. वह हाथी जिसे उक्त रोग हो।
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गलना  : अ० [सं० गलन] १. ताप की अधिकता के कारण किसी घन पदार्थ का तरल होना। जैसे–बरफ, मक्खन या सोना गलना। २. किसी तरल पदार्थ में डाले हुए कड़े या घन पदार्थ का कोमल होकर उसमें घुल कर मिल जाना। जैसे–दूध या पानी में चीनी गलना। ३. आग पर रखकर उबाले या पकाये जाने पर किसी कड़ी वस्तु का इतना नरम हो जाना कि धीरे से उँगली से दबाने पर वह टूट-फूट या दब जाए। जैसे–तरकारी या दाल गलना। मुहावरा–(किसी की) दाल गलना=कौशल, प्रयत्न आदि में सफलता होना। (प्रायः नहिक रूप में प्रयुक्त) जैसे–यहाँ आपकी दाल नहीं गलेगी, अर्थात् प्रयत्न सफल नही होता। ४. उक्त के आधार पर किसी वस्तु का इतना नरम, (क्षीण या जीर्ण) हो जाना कि छूने भर से फट जाए। जैसे–रखे-रखे कपड़ा या कागज गलना। ५. शरीर का क्रमशः क्षीण होते होते बहुत ही दुर्बल और निस्सार होना। जैसे–चिन्ता करते-करते उनका शरीर आधा रह गया है। ६. रोग आदि के कारण शरीर के किसी अंग का धीरे-धीरे कटकर नष्ट होना। जैसे-कोढ़ से पैर या हाथ की उँगलियाँ गलना। ७. बहुत अधिक सरदी के कारण ऐसा जान पड़ना कि पैर या हाथ की उँगलियाँ तरल होकर गिर या बह जायेगी। जैसे–पूस-माघ में तो यहाँ हाथ-पैर गलने लगते हैं। ८. इच्छा न होने पर व्यर्थ व्यय होना। जैसे–सौ रुपये गल गये। ९. निष्फल अथवा व्यर्थ हो जाना। जैसे–जूए में दाँव या चौपड़ के खेल में मोहरा गलना। १॰. गड्ढ़े आदि में बनाई या रखी हुई चीज का धीरे-धीरे धँसना या बैठना। जैसे–कूँए की बनावट में जमवट गलना। ११. (किसी नक्षत्र का) वर्षा करना। पानी बरसना। जैसे–गली रेवती जल को नासै।–भड्डरी। १२. समय से पहले स्राव या पतन होना। जैसे–गर्भ गलना।
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गलफड़ा  : पुं० [फेफड़ा का अनु०] १. जल में रहनेवाले जीवों का वह अवयव जिससे वे पानी में साँस लेते हैं। (यह स्थल में रहनेवाले प्राणियों के फेफड़े का ही आरंभिक रूप है)। २. गाल का चमड़ा।
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गलफरा  : पुं०=गलफड़ा।
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गलफाँस  : स्त्री०=गलफाँसी।
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गलफाँसी  : स्त्री० [हिं० गला+फाँसी] १. गले में पड़ी हुई फाँसी या उसका फंदा। २. ऐसा बहुत बड़ा संकट जिससे छुटकारा मिलना बहुत कठिन हो। ३. मालखंभ की एक प्रकार की कसरत।
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गलफूट  : स्त्री० [हिं० गाल+फूटना] (क) अंड-बंड बकने या (ख) नींद में बड़-बड़ाने की अवस्था, क्रिया या भाव।
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गलफूला  : वि० [हिं० गाल+फूलना] [स्त्री० गलफूली] जिसके गाल फूले हुए हों। पुं० गले के फूलने या सूजने का एक रोग।
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गलफेड़  : पुं० [सं० गल-पिंड] गले के आस-पास की गिलटियाँ।
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गलबंदनी  : स्त्री०=गुलूबंद (आभूषण)।
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गलबदरी  : स्त्री० [हिं० गलना+बदरी-बादल] शीतकाल की बदली जिसमें हाथ पाँव गलने लगते है।
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गलबली  : पुं० [अनु०] १. कोलाहल। २. गड़बड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गलबहियाँ(बाहीं)  : स्त्री० [हिं० गला+बाँह] दो व्यक्तियों के परस्पर गले में हाथ डालकर आलिंगन करने की अवस्था या भाव।
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गलबा  : पुं० [अ० गल्बः] अभिभूत करनेवाली प्रबलता। जैसे–नींद का गलबा। पु०=बलवा (विद्रोह)।
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गलमँदरी  : स्त्री० [हिं० गाल+मुद्रा] १. व्यर्थ की बकवाद। २. दे० ‘गल-मुद्रा’।
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गलमुच्छा  : पुं० [हिं० गाल+मूछ] गालों पर के वे बाल जो बीच में ठोढ़ी पर के बाल मूँड दिए जाने पर भी बचाकर रखे और बढ़ाये जाते हैं।
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गलमुद्रा  : स्त्री० [सं० ष० त० ] शिव के पूजन के समय उन्हें प्रसन्न करने के लिए गाल बजाने (अर्थात् गालों की सहायता से विशिष्ट प्रकार का स्वर निकालने) की क्रिया या भाव। गलमँदरी।
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गलवाना  : स० [हिं० का प्रे० रूप] किसी वस्तु को गलाने का काम किसी दूसरे से कराना। किसी को गलाने में प्रवृत्त करना।
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गलंश  : पुं० दे० ‘गलतंस’।
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गलसिरी  : स्त्री० [सं० गल-श्री] गले में पहनने का कंठ-श्री नामक गहना।
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गलसुआ  : पुं० [हिं० गाल+सूजन] एक रोग जिसमें गाल के नीचे का भाग सूज जाता है और उससे पीड़ा होती है। कनपेड़ा।
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गलसुई  : स्त्री० १. दे० गल तकिया। २. दे० ‘गलसुआ’।
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गलही  : स्त्री० [सं० गल+हिं० ही (प्रत्यय)] नाव का वह अगला कोना जो गोलाकार और कुछ ऊपर उठा हुआ होता है।
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गला  : पुं० [सं० गल, प्रा० गल, पा० गलो, द्र० गार्, गरोर्, उ०पं० बं० गला, गु० गलु, मरा, गंठा, सि० गरो] १. शरीर का वह गोलाकार लंबोत्तर अंग जो धड़ के ऊपर और सिर के नीचे होता है और जिसके अंदर सांस लेने, स्वरों का उच्चारण करने और खाने-पीने की चीजें पेट तक पहुँचाने वाली नलिकाएँ होती हैं। गरदन। ग्रीवा। मुहावरा–(अपना या दूसरे का) गला काटना=छुरी, तलवार या धारदार औजार से काटकर सिर को धड़ से अलग करना और इस प्रकार मृत्यु का कारण बनना। गरदन काटकर हत्या करना। जैसे–चोरों ने चलते-चलाते बुढिया का भी गला काट डाला। (किसी का) गला काटना=किसी का सब कुछ छीन लेना अथवा इसी प्रकार की बहुत बड़ी हानि करना। जैसे–दूसरों का गला काट-काटकर ही तो वे बड़े आदमी बने है। (किसी का) गला घोंटना-गला दबाना ( दे० आगे)। (किसी बात या व्यक्ति से) गला छूटना=कष्ट, संकट आदि (अथवा त्रस्त करनेवाले व्यक्ति) से पीछा छूटना। छुटकारा मिलना। जान बचना। पिंड छूटना। जैसे–चलों इनके आ जाने से हमारा गला छूट गया। (किसी का) गला जकड़ना=कोई बंधन लगाकर या बाधा खड़ी करके किसी को बोलने से बलपूर्वक रोकना। (किसी से) गाल जोड़ना=मैत्री या घनिष्ट संबंध स्थापित करना। गहरा मेल-मिलाप पैदा करना। (किसी का) गला टीपना या दबाना=(क) हाथ या हाथों से इस प्रकार चारों ओर से दबाना कि उसका दम घुंट जाए या सांस रुक जाए और वह मर जाए या मरने को हो जाए। (ख) कोई काम करने या स्वार्थ साधने के लिए जबरदस्ती किसी को विवश करना। अनुचित रूप से बहुत अधिक दबाव डालना। (किसी का) गला पकड़ना=किसी को किसी बात के लिए उत्तरदायी ठहराना। जैसे–यदि इस युक्ति से हमारा काम न हुआ तो हम तुम्हारा गला पकड़ेगे। गला फँसना-किसी प्रकार के कष्टदायक बंधन में पड़ना। जैसे–तुम्हारें कारण अब इसमें हमारा भी गला फँस गया है। (किसी का) गाल रेतना=किसी को क्रमशः या निर्दयतापूर्वक बहुत अधिक कष्ट पहुँचाकर अथवा उसकी बहुत अधिक हानि करके अपना मतलब निकालना। जैसे–इस तरह दूसरों का गरा रेतकर अपना काम निकालना ठीक नहीं है। (कोई बात) गले तक आना=किसी कार्य, बात या व्यापार की इतनी अधिकता होना कि उसका निर्वाह या सहन करना बहुत अधिक कठिन हो जाए। जैसे–जब बात गले तक आ गई, तब मै भी बिगड़ खड़ा हुआ। विशेष–जब नदी या बाढ़ का पानी बढ़ता-बढ़ता आदमी के गले तक पहुँच जाता है, तब वह असह्य भी हो जाता है और आदमी अपने जीवन से निराश हो जाता है। लाक्षणिक रूप में यह मुहावरा ऐसी ही स्थिति का सूचक है। (कोई चीज या बात) गले पड़ना=इच्छा न होते हुए भी जबरदस्ती या भार रूप में आकर प्राप्त होना। जैसे–यह व्यर्थ का झगड़ा आकर हमारे गले पड़ा है। उदाहरण–गरे परि कौ लागि प्यारी कहैये। (अपने ) गले बाँधना=जान-बूझकर या इच्छापूर्वक अपने साथ या पीछे लगाना। उदाहरण–लोभ पास जेहि गर न बँधाया।–तुलसी। (किसी के) गले बाँधना, मढ़ना या लगाना=किसी की इच्छा के विरुद्ध उसे कोई चीज देना अथवा कोई भार सौंपना। (किसी को) गले लगाना= (क) आलिंगन करना। (ख) अपराध, दोष आदि का विचार छोड़कर अपना बनाना। जैसे–उच्च वर्णों के लोगों को चाहिए कि वे हरिजनों को गले लगावें। पद-गले का ढोलना या हार-ऐसी वस्तु या व्यक्ति जो सदा साथ रखा जाए अथवा रहे। जिसका या जिससे जल्दी साथ न छूटे। २. शरीर के उक्त अंग का वह भीतरी भाग जिसमें खाने, पीने बोलने साँस लेने आदि की नलियाँ रहती है। मुँह के अन्दर का वह विवर जिसका संबंध पेट, फेफड़ों आदि से होता है। मुहावरा-गला आना या पडना=गले की घंटी में पीड़ा या सूजन होना। गलांकुर रोग होना। गला उठाना या करना-गले की घंटी बढ जाने पर उसे उँगली से दबाकर और उस पर कोई दवा लगाकर उसे ऊपर उठाना। घंटी बैठाना। (किसी चीज का) गला काटना=चरपरी या तीखी चीज खानेपर उसके गले के भीतरी भाग में हल्की खुजली चुन-चुनाहट या जलन पैदा करना। जैसे–जमीकंद या सूरन यदि ठीक तरह से न बनाया जाए तो कला काटता है। गला घुटन=प्राकृतिक कारणों अथवा अस्वस्थता, रोग आदि के फलस्वरूप साँस आने-जाने में बाधा होना। दम घुटना। गला जकड़ना-गले की ऐसी अवस्था होना कि सहज में कुछ खाया पिया या बोला न जा सके। (किसी चीज का) गला पकड़ना=कसैली या खट्टी चीज खाने पर गले में ऐसा विकार या हलकी सूजन होना कि खाने-पीने, बोलने में कष्ट हो। जैसे–ज्यादा खटाई खाओगे तो गला पकड़ लेगी। गला फँसन=गले के अन्दर किसी चीज का पहुँचकर इस प्रकार अटक फंस या रुक जाना कि खाने-पीने बोलने साँस लेने आदि में कष्ट होने लगे। जैसे–अब तो पानी भी कटिनाई से गले के नीचे उतरता है। (किसी बात का) गले के नीचे उतरना= (क) ठीक प्रकार से समझ में आना। (ख) ग्राह्म, मान्य या स्वीकृत होना। जैसे–उनका उपदेश तुम्हारें गले के नीचे उतार या नहीं। ३. शरीर के उक्त अंग का वह अंश जिसमें बोलने के समय शब्दों आदि का और गाने के समय स्वरों आदि का उच्चारण होता है। स्वर-नाली। जैसे–जब तक गवैये का गला अच्छा न हो तब तक उसके गाने में रस नहीं आता। मुहावरा–गला खुलना=गले का इस योग्य होना कि उसमें से अच्छी तरह या ठीक तरह से स्वर निकल सके। गला गरमाना-गाने, भाषण देने आदि के समय आंरभ में कुछ देर तक धीरे-धीरे गाने या बोलने के बाद कंठ-स्वर का तीव्र या प्रबल होकर पूरी तरह से काम करने के योग्य होना। गला फटना-बहुत चिल्लाने, बोलने आदि से अथवा स्वर नाली में कोई रोग होने के कारण कंठ स्वर का इस प्रकार विकृत हो जाना कि उससे ठीक, सुरीला और स्पष्ट उच्चारण न हो सके। जैसे–चिल्लाते-चिल्लाते गला फट गया पर तुमने जबाव न दिया। गला फाड़ना=बहुत जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर बोलना और स्वतः अपना कंठ-स्वर कर्णकटु तथा विकृत करना। जैसे–तुम लाख गला फाड़ा करो पर वहाँ तुम्हारी सुनता कौन है। गला फिरना=गाने के समय स्वरों और उनकी श्रुतियों पर बहुत ही सहज में और सुन्दरता पूर्वक अथवा सुरीलेपन से कंठ-स्वर का उच्चरित होना अथवा ऊपर और नीचे के स्वरों पर सरलतापूर्वक आना-जाना। जैसे–हर किटिकरी तान, पलटे और फंदेपर उसका गला इस तरह फिरता था कि तबीयत खुश हो जाती थी। गला बैठना=बहुत अधिक गाने चिल्लाने बोलने आदि से अथवा कुछ प्रकृत कारणों या विकारों से कंठ-स्वर का इतना धीमा या मन्द पड़ना कि कंठ-से होने वाला शब्दों का उच्चारण सहज में दूसरों को सुनाई न पड़े। ४. कमीज, कुरते कोट आदि पहनने के कपड़ों का वह अंश जो गरदन पर और उसके चारों ओर रहता है। रेगबान। ५. घड़े, लोटे, सुराही आदि पात्रों का वह ऊपरी गोलाकार तंग और लंबोतर भाग जो उनके पेट और मुँह के बीच में पड़ता है और जिससे होकर उन पात्रों में चीजें आती-जाती (अर्थात् निकलती या भरी) जाती है। जैसे–गगरे का गला टूट गया है।
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गलाऊ  : वि० [हिं० गलाना] गलानेवाला। वि. [हिं० गलना] जो गल सकता हो। गलनशील।
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गलांकुर  : पुं० [सं० गल-अंकुर, मध्य० स०] एक रोग जिसमें गले के अंदर का कौआ या घंटी सूज जाती है। (टान्सिल)।
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गलाना  : स० [हिं० गलना का प्रे० रूप] १. किसी घन या ठोस पदार्थ को इतना अधिक गरम करना या तपाना कि वह तरल हो जाए। जैसे–मक्खन या सोना गलाना। २. कड़े और कच्चे अन्नों, तरकारियों आदि को उबाल या पकाकर नरम या मुलायम और खाये जाने के योग्य करना। जैसे–आलू या दाल गलाना। ३. तरल पदार्थ में किसी क्रिया से कोई विलेय वस्तु घुमाना। जैसे–तेजाब में चाँदी गलाना। ४. बहुत अधिक चिंता या श्रम करके अपने शरीर को क्षीण और दुर्बल बनाना। जैसे–देश की सेवा में तन या शरीर गलाना। ५. किसी प्रकार नष्ट या बरबाद करना। ६. ठंढक या सरदी का अपनी तीव्रता से हाथ-पैर गलानेवाली सरदी पड़ना। ७. वास्तु-शास्त्र में किसी खड़ी रचना पर इतना दबाव या बोझ डालना कि वह धीरे-धीरे नीचे धँस कर अदृश्य हो जाए। जैसे–पुल बनाने के लिए कोठी या खंभा गलाना।
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गलानि  : स्त्री०=ग्लानि। पुं० [सं०] एक प्रकार की मछली।
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गलार  : वि० [हिं० गाल] १. बहुत गाल बजानेवाला अर्थात् बकवादी। २. झगड़ालू। स्त्री० [?] मैना (पक्षी)। पुं० [?] एक प्रकार का वृक्ष।
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गलारी  : स्त्री० [सं० गल्प, प्रा० गल्ल] गिलगिलिया नाम की चिड़िया। गल-गलिया।
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गलावट  : स्त्री० [हिं० गलाना] १. गलने की क्रिया या भाव। २. गलने के कारण घटने या नष्ट होनेवाला अँश। ३. ऐसी वस्तु जो दूसरी वस्तुओं को गलाने में सहायक होती हो।
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गलि  : पुं० [सं० गंडि ड को ल] १. बछड़ा। २. सुस्त बैल।
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गलित  : वि० [सं०√गल्+क्त] १. (पदार्थ) जो पुराना या बासी होने के कारण गल या सड़ गया हो। गला हुआ। २. (तत्त्व या शरीर) जोस पुराना होने के कारण रस, सार आदि से रहित हो गया हो। जैसे-गलित अंग, गलित यौवन। ३. पुराने होने के कारण जो खंडित और जीर्ण-शीर्ण हो चुका हो। नष्ट-भ्रष्ट। ४. जिसमें गलने-गलाने आदि की प्रवृत्ति हो। जैसे–गलित कुष्ठ। ५. चुआ या चुआया हुआ। ६. जो आवेग, उमंग आदि की अधिकता के कारण मत्त होकर अ-वश या आपे से बाहर हो गया हो। उदाहरण–अति मद-गलित ताल पुल तें गुरु युगल उरोज उतंगनि कौ।–सूर।
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गलित-कुष्ठ  : पुं० [कर्म० स] आठ प्रकार के कुष्ठों में से एक जिसमें रोगी के अंग-गल-गलकर गिरने लगते हैं।
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गलित-यौवना  : वि० स्त्री० [ब० स०] (स्त्री०) जिसका यौवन बीत जाने के कारण बहुत कुछ नष्ट हो चुका हो।
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गलितक  : पुं० [सं० गलित√कै(प्रतीत होना)+क] नृत्य में एक प्रकार की अंग-भंगी या मुद्रा।
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गलिया  : स्त्री० [हिं० गली] चक्की के ऊपर के पाट में वह छेद जिसमें दलने या पीसने के लिए अनाज डाला जाता है। वि० [सं० गलित] (पशु) जो बहुत ही सुस्त या मट्ठर हो।
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गलियारा  : पुं० [हिं० गली+आरा(प्रत्यय)] [स्त्री० अल्पा० गलियारी] १. गली की तरह का लंबा, सीधा रास्ता। २. किसी देश में से होकर जाने वाला वह स्थल मार्ग जिसपर एकाधिकार किसी दूसरे देश का होता है। (कारिडोर)
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गलियारी  : पुं० [हिं० गलियारा] छोटी या तंग गली।
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गली  : स्त्री० [सं० गल] १. वह सँकरा मार्ग जिसके दोनों ओर घर आदि बनें होते हैं तथा जिसपर चलकर लोग प्रायः घरों को जाते हैं। (लेन) पद-गली कूचा। ( दे०) मुहावरा–गली कमाना=गली में झाड़ू देकर या उसकी नालियों, मोरियों आदि साफ करके जीविका उपार्जित करना। गली गली मारे फिरना= (क) व्यर्थ इधर-उधर घूमना। (ख) जीविका के लिए इधर-से उधर भटकना। (ग) किसी पदार्थ का चारों ओर से अधिकता से मिलना। २. किसी गली के आस-पास के घरों का समूह, मुहल्लों के नामवाचक रूप में। जैसे-कचौरी गली, गणेश गली आदि।
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गलीचा  : पुं० [फा० गालीचः(कालीन चा-तु० काली या कालीन से)] १. ऊन की बुनी हुई एक प्रकार की मोटी चादर जिसपर लोग बैठते हैं। २. कँकरीली जमीन (कहार)।
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गलीज़  : वि० [अ०] १. गँदला। मैला। २. अपवित्र। नापाक। स्त्री० १. कूड़ा-कर्कट। गंदगी। २. मल-मूत्र आदि।
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गलीत  : वि० [सं० गलित] १. गंदा या मैला। २. अनुचित या बुरा। ३. दे० गलित।
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गलीम  : पुं०=गनीम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गलू  : पुं० [सं०] एक प्रकार का पत्थर जिससे प्राचीन काल में मद्यपात्र आदि बनते थे।
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गलेफ  : पुं० =गिलाफ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गलेबाज  : वि० [हिं० गला+बाज] [भाव० गलेबाजी] १. जिसका गला बहुत अधिक या तेज चलता हो। बहुत अधिक जोर से या बढ़-बढ़ कर बातें करनेवाला। २. बहुत सी ताने और पलटे लेनेवाला और गले का काम अच्छी तरह दिखलानेवाला (गवैया)।
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गलेबाजी  : स्त्री० [हिं० गाल+बाजी] १. बहुत जोर से या बढ़-चढ़ कर बातें करने की क्रिया या भाव। २. गाते समय बहुत अधिक ताने और पलटें लेना।
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गलैचा  : पुं० =गलीचा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गलोना  : पुं० [देश०] एक प्रकार का कंधारी या काबुली सुरमा।
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गलौ  : पुं० [सं० ग्लौ] चंद्रमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गलौआ  : पुं० [हिं० गाल] बंदरों के गालों के अंदर की थैली जिसमें वे जल्दी जल्दी खाने की वस्तुएँ भर लेते हैं और बाद में फिर से उसमें से निकाल कर चबा-चबा कर खाते हैं। वि० [हिं० गलाना] १.जो गलाकर फिर से नया बनाया गया हो। २.जो गलाया जाने को हो।
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गलौध  : पुं० [स० त० ] एक प्रकार का रोग जिसमें गले के अंदर सूजन हो जाती है और साँस लेने में कठिनता होती है।
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गल्प  : स्त्री० [सं० जल्प वा कल्प] १. मिथ्या प्रलाप। गप्प। २. डींग। शेखी। ३. भावपूर्ण या विचार-प्रधान कोई छेटी घटनात्मक कहानी। ४. मृदंग के बारह प्रबंधों में से एक।
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गल्यारा  : पुं० दे० ‘गलियारा’।
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गल्ल  : पुं० [सं०√गल्+ल] गाल। कपोल। स्त्री० [सं० गल्प] १. बात। (पंजाब) २. शोर। हल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गल्लई  : स्त्री० [अ० गुल, हिं० गुल्ला] शोर गुल। वि० [हिं० गल्ला=अनाज] अनाज या गल्ले के रूप में होने अथवा दिया-लिया जानेवाला। जैसे–खेत की पैदावार का गल्लई। बँटवारा।
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गल्लक  : पुं० [सं०√गल्+क्विप्,गल्√ला(लेना)+क] १. मद्य पीने का पात्र। २. एक प्रकार का राल।
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गल्लह  : पुं० [सं०गल्ल] १.कुछ विशिष्ट प्रकार के पशुओं का झुंड। दल। जैसे-बकरियों या भेड़ों का गल्ला। २.वह थैली या संदूक जिसमें दूकानदार रोज की ब्रिकी से आनेवाला धन रखते हैं। गुल्लक। जैसे-बोहनी न बट्टा, गल्ले में हाथ। (कहा.) पुं० [अ.गल्लः] १.अनाज। अन्न। २.उतना अन्न जितना चक्की में पीसने के लिए एक बार में डाला जाता है। ३.पेड़-पौधों आदि की उपज या पैदावार। पुं० [?] एक प्रकार का बेंत जिसे मोला भी कहते हैं।
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गल्लाफऱोश  : पुं० [फा०] अनाज बेचनेवाला व्यापारी।
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गल्ली  : स्त्री०=गली।
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गल्वर्क  : पुं० [सं०√गल्+उन्,गलु-अर्क,ब० स०] प्राचीन भारत में गलू नामक पत्थर का बननेवाला मद्य-पात्र। गलू पत्थर का बना हुआ प्याला।
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गल्ह  : वि० [सं० गल्भ] धृष्ट। ढीठ। स्त्री० [सं० गल्प] बात।
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गल्हाना  : स० [हिं० गल्ह] १. बातें करना। २. बहुत बढ़-चढ़कर बातें करना। डींग हाँकना।
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गँवँ  : स्त्री० दे० ‘गौं’।
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गवँ  : स्त्री० दे० ‘गौ’।
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गव  : पुं० [सं० गवय] रामचंद्र जी की सेना का एक बन्दर।
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गँवई  : स्त्री० [हिं० गाँव] [वि० गँवइयाँ] १. छोटा गाँव। जैसे–गाँव-गँवई के लोग। २. गाँव। वि० १. गाँव का। गाँव में रहनेवाला। २. गँवार। पुं० देहाती।
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गवईस  : पुं०=गीरीश (शिव)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गवनचार  : पुं० [हिं० गवन+चार] विवाह के बाद वधू का पहले-पहल वर के घर जाना। गौना।
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गँवनना  : अ० [सं० गमन] गमन करना। जाना। स० =गँवाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गवनना  : अ० [अ० गमन] गमन करना। जाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गँवना  : अ० गमन करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गवना  : पुं० -गौना। अ०=गवनना (जाना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गवमेंट  : स्त्री०=गवर्नमेंट।
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गवय  : पुं० [सं०√गु(शब्द करना)+अप्,गव√या(जाना)+क] [स्त्री० गवयी] १. नीलगाय। २. राम की सेना का एक बंदर। ३. एक प्रकार का छंद जिसके प्रथम चरण में १९ मात्राएं होती हैं और ११ मात्राओं पर विराम होता है। इसका दूसरा चरण आधा दोहा होता है। ४. तिर्मिगिल वर्ग का एक स्तनपायी बड़ा जल-जंतु। (डयूगांग)
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गँवरदल  : वि.[हिं० गँवार+दल] गँवारों की तरह का। गँवार के समान। गँवारू। पुं० गँवारों का दल या समूह।
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गँवरमसला  : पुं० [हिं० गँवार+अ० मसल] ग्रामीणों या देहातियों में प्रचलित उक्ति या उनकी कहावत।
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गवरल  : स्त्री०=गौरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गवरि  : स्त्री०=गौरी।
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गवर्नमेंट  : स्त्री० [अ०] १. राज्य का शासन करनेवाली सत्ता। शासन। सरकार। २. उन व्यक्तियों का वर्ग या समूह जो देश का शासन और उसके कार्यों का संचालन करते हैं।
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गवर्नर  : पुं० [अ०] १. शासन करनेवाला व्यक्ति। शासक। हाकिम। २. किसी प्रांत या प्रदेश का वह सबसे बड़ा अधिकारी जो सम्राट अथवा केन्द्रीय शासन की ओर से नियुक्त हुआ हो। आज-कल का राज्यपाल।
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गवर्नर-जनरल  : पुं० [अं०] वह प्रधान शासक जिसके अधीन किसी देश के विभिन्न प्रांतों के गवर्नर काम करते हैं।
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गवर्नरी  : स्त्री० [अं० गवर्नर+हिं० ई (प्रत्यय)] गवर्नर का काम, पद या शासन। वि गवर्नर संबंधी। गवर्नर का।
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गवल  : पुं० [सं० गव√ला (लेना)+क] जंगली भैंसा। अरना।
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गवष  : पुं०=गवाक्ष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गँवहियाँ  : पुं० [सं० गोध्न=अतिथि] १. गँवार। देहाती। २. अतिथि। मेहमान।
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गँवाऊ  : वि० [हिं० गँवाना] धन-संपत्ति गँवाने या नष्ट करनेवाला। ‘कमाऊ’ का विपर्याय।
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गवाक्ष  : पुं० [सं० गो-अक्षि,ष० त० ] १. दीवारों में बना हुआ छोटा झरोखा। छोटी खिड़की। २. रामचंद्र की सेना का एक बंदर।
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गवाक्षित  : वि० [सं० गवाक्ष+इतच्] १. (दीवार) जिसमें गवाक्ष बने हों। २. खिड़कीदार (मकान)।
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गवाक्षी  : स्त्री० [सं० गवाक्ष+ङीष्] १. इंद्रवारूणी। २. अपराजिता।
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गवाख  : पुं०=गवाक्ष।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गवाची  : स्त्री० [सं० गो√अञ्च्(गति)+क्विन्-ङीष्] मछलियों की एक जाति का वर्ग।
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गवाछ  : पुं०=गवाक्ष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गवादन  : पुं० [सं० गो-अदन, ष० त०] गौओं, बैलों, भैंसों आदि के खाने की घास या चारा।
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गवाधिका  : स्त्री० [सं० गो-अधि√कै (प्रतीत होना)+क-टाप्] लाक्षा। लाख।
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गँवाना  : स० [सं० गम] १. कोई चीज असावधानी, उपेक्षा, प्रमाद आदि के कारण व्यर्थ अपने पास से निकल जाने देना। भूल, मूर्खता आदि के कारण किसी उपयोगी या मूल्यवान वस्तु से वंचित होना। खोना।जैसे–(क) जूए या सट्टे में धन गँवाना। (ख) मेले में कपड़ा या छड़ी गँवाना। २. समय के संबंध में, व्यर्थ नष्ट करना या बिताना। जैसे–लड़कों का खेल-कूद में समंय गँवाना। ३. दूर करना। निकालना। हटाना। उदाहरण–कहहिं गँवाइअ छिनकु स्रम गँवनब अबहिं कि प्रात।–तुलसी।
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गवामयन  : पुं० [सं० गवाम्-अयन, अलुक् स०] दस या बारह महीने में पूरा होनेवाला एक वैदिक यज्ञ।
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गँवार  : वि० [हिं० गाँव+आर (प्रत्यय)] [वि० गँवारी,गँवारू, स्त्री० गँवारिन] १.गाँव में रहनेवाला (व्यक्ति)। देहाती। २. उक्त कारण से जो शिष्ट सभ्य तथा सुशिक्षित न हो। असभ्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) ३. अनजान। अनाड़ी। जैसे-हम तो इन सब बातों में गँवार ठहरे।
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गवार  : वि० [फा०] गवारा का संक्षिप्त रूप जो उसे यौगिक शब्दों के अंत में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे–खुशगवार, नागवार आदि। स्त्री, दे० ‘ग्वार’।
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गँवारता  : स्त्री० =गँवारापन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गँवारपन  : पुं० [हिं० गँवार+पन (प्रत्यय)] गँवार होने की अवस्था या भाव। देहातीपन।
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गवारा  : वि० [फा०] १. जो अँगीकृत या गृहीत करने के योग्य हो। २. पचने या हजम होनेवाला। अनुकूल। रुचिकर। ३. बरदाश्त करने या लहने योग्य। सह्म।
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गवारिश  : स्त्री० [फा०] ओषधियों का चूर्ण। (इसी का अरबी रूप जबारिश है)।
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गँवारी  : वि० [हिं० गँवार] १. गँवारों की तरह का। ग्राम्य। जैसे–गँवारी पहनावा या बोली। २. दे० ‘गँवारू’। स्त्री० १. गँवारपन। देहातीपन। २. गँवारों की सी मूर्खता। ३. गाँव की रहनेवाली या गँवार की स्त्री।
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गँवारू  : वि० [हिं० गँवार+ऊ(प्रत्यय)] १. गाँव अथवा गाँव में रहनेवालों से संबंध रखनेवाला अथवा उनके जैसा। जैसे–गँवारू पहनावा, गँवारू चाल आदि। २. शिष्टता, सभ्यता आदि से रहित।
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गवालीक  : स्त्री० [सं० गो-अलीक,च.त० ] वह मिथ्या भाषण जो गौ आदि चौपायों के संबंध में हो। (जैन)।
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गवाश  : वि० पुं० [सं०गो√अश्(खाना)+अण्]=गवाशन।
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गवाशन  : वि० [सं० गो√अश्+ल्यु-अन] गौ का मांस खानेवाला। गो=भक्षी। पुं० १. चमार। २. चांडाल।
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गवास  : वि० [सं० गवाशन] गौ की हत्या करने वाला। पुं० कसाई। स्त्री० [हि० गाना] गाने की क्षणिक प्रवृत्ति या शौक। जैसे–कभी-कभी आपको भी गवास लगती है।
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गवाह  : पुं० [फा०] १. ऐसा व्यक्ति जिसने घटना स्वयं देखी हो अथवा जिसे किसी घटना, तथ्य बात आदि की ठीक और पूरी जानकारी हो। साक्षी। जैसे–बहुत से लोग इस घटना के गवाह है। २. वह व्यक्ति जो न्यायालय में अथवा किसी न्यायकर्त्ता के समझ अपनी जानकारी बतलावें तथा तथ्य का सत्यापन या समर्थन करे। साक्षी। ३. वह जो दो पक्षों में होनेवाले लेन-देन व्यवहार समझौते आदि के सचमुच घटित होने के प्रमाण किसी लेख्य पर हस्ताक्षर करे अथवा आवश्यकता होने पर उक्त घटना का सत्यापन या समर्थन करे। (विटनेस उक्त तीनों अर्थों में)।
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गवाहियाँ  : पुं० [सं० गोघ्न=अतिथि] अतिथि। मेहमान। वि०, पुं०=गँवार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गवाही  : स्त्री० [फा०] किसी घटना के संबंध में गवाह की कही हुई बात या दिया हुआ बयान। गवाह का कथन। साक्ष्य। (एविडेन्स) मुहावरा–गवाही देना=किसी साक्षी का किसी ओर से समर्थन करना या उसे ठीक बतलाना। (किसी काम या बात में) मन गवाही देना=मन या अंतःकरण का यह कहना कि यह बात ठीक है अथवा ऐसा होना चाहिए या होगा। जैसे–हमारा तन तो गवाही देता है कि वे अवश्य यहाँ आयेगे।
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गविआ  : स्त्री०=गौ। उदाहरण–बदल बिआएल गविआ बाँझे।–कबीर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गविष्टि  : स्त्री० [सं० गवेष्टि] १. इच्छा या कामना। २. लड़ने झगड़ने की इच्छा या प्रवृत्ति। वि० [ब० स०] जो गौ या गौएँ लेना चाहता हो।
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गविष्ठ  : पुं० [सं० गवि√स्था(ठहरना)+क] सूर्य।
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गवीधुक  : पुं० [सं०√गवेधुक,पृषो० सिद्धि] कौडिल्ला नामक पक्षी।
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गवीश  : पुं० [सं० गो-ईश,ष० त० ] १. गोस्वामी। २. विष्णु। ३. साँड़।
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गवेजा  : स्त्री० [सं० गवेषण?] १. बातचीत। २. वाद-विवाद। बहस।
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गवेधु  : पुं० [सं० गवे√धा (धारण करना)+कु, अलुक् स०] कसेई या कौड़िल्ला नामक पक्षी।
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गवेधुक  : पुं० [सं० गवेधु+कन्]=गेवेधु।
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गवेरुक  : पुं० [सं० गो√ईर् (गति)+उकञ्] गेरू।
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गँवेली  : स्त्री० गँवारी (गँवार स्त्री)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गवेश  : पुं०=गवीश।
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गवेष  : पुं० [सं०√गवेष्(ढूँढ़ना)+घञ्]=गवेषण।
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गवेषक  : पुं० [सं०√गवेष्+ण्युल्-अक] गवेषणा करनेवाला।
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गवेषण  : पुं० [सं०√गवेष्+ल्युट्-अन] १. खोई हुई गाय को ढूँढ़ने का काम। खोजना। २.चाहना। ३. दे० ‘गवेषणा’।
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गवेषणा  : स्त्री० [सं०√गवेष्+णिच्+ण्युल्-अन-टाप्] १. गौ पाने की इच्छा करना। २.खोई हुई गौ ढूँढ़ने निकलना। ३.कोई चीज या ढूँढ़ने का काम। ४. किसी बात या विषय का मूल रूप या वास्तविक स्थिति जानने के लिए उस बात या विषय का किया जानेवाला परिश्रम पूर्वक अध्ययन और अनुसंधान। (रिसर्च)।
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गवेषित  : भू० कृ० [सं०√गवेष्+णिनि] गवेषण करनेवाला। गवेषक।
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गवेसना  : स० [सं० गवेषणा] खोजना। ढूँढ़ना। स्त्री० गवेषणा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गवेंसी  : वि० [सं० गवेषण से] गवेषणा या खोज करनेवाला। उदाहरण–को बर बाँधि गवेसी होई।–जायसी।
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गवेसी  : वि०=गवेषी।
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गवैया  : पुं० [हि० गाना] वह जो संगीत शास्त्र का ज्ञाता हो और उसके अनुसार अच्छा गाता हो। गायक। (म्यूजीशियन)
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गवैहाँ  : वि० [हिं० गाँव+ऐहाँ(प्रत्यय)] १. ग्रामीण। देहाती। २. गँवारों की तरह का। देहाती।
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गव्य  : वि० [सं० गो+यत्] गो से उत्पन्न या प्राप्त। जैसे–दूध, दही घी गोबर गोमूत्र आदि। पद-पंच-गव्य। (देखें)। पुं० १. गौओं का झुंड। २. दे० पंच-गव्य।
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गव्या  : स्त्री० [सं० गव्य+टाप्] १. गौओं का झुंड। २. दो कोस की दूरी या नाप ३. ज्या। ४. गोरोचन।
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गव्यूति  : स्त्री० [सं० गो-यूति,ष० त० अवं आदेश] दो कोस या दो हजार धनुष की दूरी की एक प्राचीन नाप।
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गश  : पुं० [अ० गशी से फा०] किसी प्राणी के संज्ञाहीन होने की अवस्था। बेहोशी। मूर्च्छा।
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गश्त  : पुं० [फा०] सुरक्षा बनाये रखने और अनिचंत्रित बातों का पता लगाने तथा उन्हें रोकने के लिए समय-समय पर किसी अधिकारी का किसी क्षेत्र में अथवा उसके चारों ओर घूमना। क्रि० प्र०-लगाना।
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गश्तसलामी  : स्त्री० [फा० गश्त+अ० सलाम] वह भेंट या नजर जो दौरे पर आनेवाले हाकिमों को दी जाती थी।
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गश्ती  : वि० [फा०] १. चारों ओर गश्त लगानेवाला। जगह-जगह घूमता-फिरता रहनेवाला। जैसे–गश्ती पुलिस। २. जो चारों ओर सभी संबद्ध व्यक्तियों के पास भेजा जाता हो। जैसे–गश्ती चिट्ठी, गश्ती हुक्म। स्त्री० १. आवारों की तरह चारों ओर चक्कर लगानेवाली स्त्री। २. कुलटा। व्यभिचारिणी।
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गंस  : पुं० [सं० ग्रंथि] १. मन में खटकनेवाली बात। २. मन में छिपा हुआ द्वेष या बैर। ३. दे० ‘गाँसी’। (तीर की)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गस  : स्त्री०=गाँस।
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गँसना  : स० [सं० ग्रंथन] १. अच्छी तरह कसकर जकड़ना, बाँधना या लगाना । गाँठना। २. कपड़े की बुनावट में बाने को कसना या दबाना जिसमें बुनावट गफ या घनी हो। ३. कस या ठूँसकर भरना। अ० १. कसकर जकड़ा या बाँधा जाना। २. बुनावट में सूतो का खूब पास पास होना। ३. कसकर या ठसाठस भरा जाना।
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गसना  : स० [सं० कषण-कसना] १. कस या जकड़कर बाँधना। गोथना। २. बुनावट के बाने में तागों को आपस में अच्छी तरह मिलाकर बैठाना। ३. दे० गसना। स० ग्रसना।
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गँसीला  : वि० [हिं० गाँसी] [स्त्री० गँसीली] गाँस या गाँसी की तरह नुकीला और चुभने या खटकनेवाला। वि,. दे० ‘गसीला’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गसीला  : वि० [हिं० गसना] [स्त्री० गसीली] १.जकड़ा या बँधा हुआ। २.गठा हुआ। ३.(कपड़ा) जिसके सूत खूब सटे या मिले हो। गफ।
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गस्त  : स्त्री०=गश्त।
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गस्सा  : पुं० [सं,० ग्रास, प्रा.० गस्म] भोजन का कौर। ग्रास। मुहावरा–गस्सा मारना- जल्दी-जल्दी कौर या ग्रास मुँह में रखना।
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गँह  : सं० [सं० ग्रहण] ग्रहण करना। कपड़ना। उदाहरण-एकै आस एकै बिसवास प्राण गँहबास।–घनानन्द।
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गहक  : स्त्री० [हिं० गहकना] गहकनमे की क्रिया या भाव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहकना  : अ० [सं० गदगद] १. प्रबल चाह या लालसा से युक्त होना। ललकना। २. आवेश या उमंग में आना।
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गहकोड़ा  : पुं० =गाहक (दलाल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहक्कना  : अ०=गहकना।
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गहगच  : पुं० [अनु०] १. दलदल। २. जंजाल। झंझट।
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गहगड्ड  : वि० [सं० गह-गहरा+गड्ड-ढेर] १. गहरा या घोर (नशा) २. इकट्ठा और बहुत अधिक। जैसे–गहगड्ड माल मारना।
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गहगह  : वि०=गहगहा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गहगहा  : वि० [हिं० गहगहा] १. परम प्रसन्न। प्रफुल्लित । २. उमंग से भरा हुआ। ३. धूम-धाम वाला। (बाजा)
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गहगहाना  : अ० [हिं० गहगहा] १. बहुत प्रसन्न होना। आनंद से फूलना। २. फसल या हरकियाली का लबलबाना। स० बहुत अधिक प्रसन्न या प्रफुल्लित करना।
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गहगहे  : क्रि० वि० [हिं० गहगहा] १. बहुत प्रफुल्लता से। प्रसन्नतापूर्वक। बहुत अच्छी तरह। उदाहरण–ते बहुरे बोलत गहगहे। २.जोरों से। ३.धूम-धाम से।
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गहगौर  : वि० [हिं० गहगहा+गौर-गोरा] [स्त्री० गहगौरी] बहुत अधिक प्रसन्नता के कारण जिसका गौर वर्ण खूब खिला हो। उदाहरण–पूरन जोबन है गहगौरी।–नंददास।
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गहँडिल  : वि० [हिं० गड्ढा] गड्ढे में का अर्थात गँदला (पानी)।
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गहडोरना  : स० [देश] (पानी) गंदा रकरना।
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गहथा  : वि० [सं० ग्रस्त] (चंद्रमा या सूर्य) जिसे ग्रहण लगा हो। उदाहरण–गहथा आथा गहथा ऊगे।–भड्डरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहन  : वि० [सं० गाह (बिलोना)+ल्युट्, ह्रस्व] १. (जलाशय) इतना या ऐसा गहरा जिसकी थाह जल्दी न मिले। जैसे–गहन ताल या दह। २. (स्थान) जिसमें पर्वेश करना बहुत ही कठिन हो। दुर्गम। ३. (बात या विषय) जो ज्लदी सबकी समझ में न आ सके। दुरूह। जैसे–गहन विषय। ४. घना निबिड़। जैसे–गहन वन। पुं० १. गहराई। गहरापन। २. अमेद्य या दुर्गम स्थान। ३. चारों ओर से घिरा या छिपा हुआ। ४. गुफा। ५. जंगल। ६. कष्ट। दुःख। ७. जल। पानी। ८. कलंक। पुं० [सं० ग्रहण, प्रा० गहण, ग्रहण] [स्त्री० हिं० गहना] १. गहने या पकड़ने की क्रिया या भाव। २. धारण करने की क्रिया या भाव। ग्रहण। ३. जिद। टेक। हठ। ४. गहना नामक उपकरण या औजार। ५. पानी बसरने पर धान के खेतों में की जानेवली बलकी जुताई। वि० (यौ० के अंत में) पकड़नेवाला। पुं० [हिं० गहना] कोई चीज बंधक रखने की क्रिया या भाव(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०-ग्रहण।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहनता  : स्त्री० [सं० गहन+तल्-टाप्] १. गहन होने की अवस्था या भाव। २. दुरगमता। ३. गंभीरता। गहराई।
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गहना  : स० [वै० सं० गृभायति,गृहणाति,सं० ग्रह,प्रा० गिण्डजु, सिं० गिन्हणु, उ०धेनू,सिंह,गन्नवा, मरा० घेणें] १. हाथ से कस कर या अच्छी तरह से पकड़ना। जैसे–चरण गहना। मुहावरा–गह डारना=पकड़कर दबा या गिरा देना। उदाहरण–तन निनबैर भया सब हिन कै, काम क्रोध गहि डारा।–कबीर। २. धारण कनरा। जैसे–अस्त्र गहना। ३. ग्रहण करना जैसे–हठ करना। पुं० [सं० ग्रहण-धारण करना] १. शरीर पर पहनने के अंलकार या आभूषण। जेवर। मुहावरा–(कोई चीज) गहने रखना=किसी के पास बंधन या रेहत रखना। २. कुम्हारों का एक औजार जिसका प्रयोग घडे आदि बनाने में होता है। ३. एक प्राकर का उपकरण जिससे खेतों की घास निकाली जाती है। स० गाहना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहनि  : स्त्री० [हि० गहना (क्रि)] १. गहने अर्थात् धारण करने या कपड़ने की क्रिया या भाव। २. जिद। हठ। टेक।
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गहनी  : स्त्री० [?] १. मसालों से नाव के छेद आदि बंद करने की क्रिया। २. चौपायों का एक रोग जिसमें उनके दाँत हिलने लगते है। ३. गहना नामक उपकरण या औजार।
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गहनु  : वि=गहन। पुं=ग्रहण।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गहने  : क्रि० वि० [हिं० हना-बंधक] बंधक या रेहन के रूप में। वि० बंधक या रेहन रखा हुआ।
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गहबर  : वि० [सं० गह्रर] १. गंभीर। गहरा। २. दुर्गम। विकट। ३. घबराया हुआ। उद्विग्न। व्याकुल। ४. बेचैन। विकल। ५. किसी के ध्यान में इतना मग्न या वीन होना कि आस-पास की बातों की कुछ भी खबर न हो। ६. चटकीला। चमकदार। उदाहरण– गंगा गहबरि पिअरि चढ़उबै जब होईहै हो।–लोकगीत। ७. घना। नविड़। उदाहरण–जँह आवे तम पुंज कुंड गहबर तरु छाहीं।–नंददास।
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गहबरन  : स्त्री० [हिं० गहबरना] व्याकुलता। घबराहट।
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गहबरना  : अ० [हिं० गहबर] १. घबराना। २. बेचैन या विकल होना। ३. करुणा आदि से जी भर आना।
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गहबराना  : स० [हिं० गहबरना] घबडा देना। अ०=गहबरना।
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गहभरना  : स० [हिं० भरना] अच्छी तरह भरना।
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गहमह  : स्त्री० [अनु०] १. चहल-पहल। रौनक। २. जगमाहट। उदाहरण–गई रवि किरण ग्रहे थई गहमह।–प्रिथीराज।
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गहमहना  : अ० [हिं० गहगहाना] बहुत प्रसन्न होना।
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गहमागहम  : वि० [हिं० गहमना] चहल पहल। रौनक।
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गहम्मह  : वि० [सं० गहन] गहरा। उदाहरण–घटिय सेस दिन रह्रौ सबै भर भीर गहम्मह।–चंदवरदाई।
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गहर  : स्त्री० [?] देर। उदाहरण–कीजै नगहर बेग मेरौ दुख हर मेरे।–सेनापति। पुं० [सं० गह्रर] १. दुर्गम। २. गूढ़। वि०=गहरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० गहराई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गहरगूल  : वि० [हिं० गहरा] अत्यन्त गहरा।
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गहरना  : अ० [हिं० गहर-देर] देर लगाना। विलंब करना। अ० [अ० कट्टर] १. झगड़ना। २. कुढ़ना। ३. क्रोध करना।
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गहरबार  : पुं० [गहरिदेव=एक राजा] क्षत्रियों की एक जाति।
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गहरा  : वि० [सं० गंभीर, पा० गामीरो,प्रा० दहीर, उ० गहिर,पं० गैरा, सिं० गहरो,गुं० घेरु, ने० गैरो, मरागहिरा] [वि० स्त्री० गहरी] [भाव० गहराई, गहरापन] १. जिसका तल चारों ओर के स्तर या विस्तार से नीचे की ओर अधिक दूरी तक हो। जैसे–गहरा कूँआ, गहरा बरतन, गहरी नदी। २. (पानी) जिसकी थाह बहुत नीचे हो। गंभीर। उथला या छिलका का विपर्याय। ३. लाक्षणिक अर्थ में (विषय या व्यक्ति) जिसकी थाह न मिलती या न लगती हो। गूढ़। रहस्यमय। ओछा का विपर्याय। पद–गहरा पेट=ऐसा ह्रदय जिसमें छिपी हुई बातों का जल्दी औरों को पता न चले। मुहावरा–गहरे में चलना=ऐसा आचरण या व्यवहार करना जिसका भेद सहज में सबको न मालूम हो सके। ४. जो अंदर या भीतर की ओर अधिक दूरी तक चला गया हो। जैसे–गहरा मकान। ५. (रंग) जो बहुत अधिक चटकीला हो। हलका का विपर्याय। ६. (आँख) जिसमें नीद भरी हों। ७. साधारण की अपेक्षा बहुत अधिक। जैसे–गहरी दोस्ती। पद-गहरा आसामी=धनी या मालदार व्यक्ति। गहरा हाथ (क) भारी आघात। (ख) भारी रकम। गहरे लोग चतुर या सायने लोग। मुहावरा–गहरी घुटना= (क) घनिष्टता होना। (ख) गहरी माँग छनना। गहरी छनना-गहरी घुटना। ८. जिसका परिणाम या फल बहुत उग्र या तीव्र हो। जैसे-गहरा नशा, गहरी चोट। ९. विकट।
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गहराई  : स्त्री० [हिं० गहरा+ई(प्रत्यय)] १. गहरे होने की अवस्था या भाव। गहरापन। २. (विषय आदि की) गंभीरता या गहनता। ३. घनता। निबिड़ता।
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गहराना  : अ० [हिं० ग्रहण] गहरा होना। उदाहरण–संध्या का गहराया झुटपुट। भीलों का-सा धरे सिर मुकुट।–पंत। सं० गहरा करना। जैसे–कूआँ गहराना। अ० [सं० गह्रर, पुं० हिं० गभुराना] १. जिद या हट करना। अड़ना। २. मान, रोष आदि के कारण होठों से बुड़बुड़ाना। गभुराना। उदाहरण–दोऊ अधिकाई भरे, एक गौं गहराइ।–बिहारी।
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गहराव  : पुं०=गहराई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहरू  : स्त्री०=गहर (देर या विलंब)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गहरे  : क्रि० वि० [हिं० गहरा] १. अच्छी तरह। २. यथेष्ट।
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गहरेबाज  : वि० [हिं० गहरे+बाज] [भाव० गहरेबाजी] गहरे में अर्थात् तेजी से चलने या चलानेवाला (एक्का और उसका घोड़ा)।
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गहरेबाजी  : स्त्री० [हिं० गहरा+बाजी] एक्के के घोड़े की खूब तेज कदम चाल।
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गहलौत  : पुं० [?] राजपूताने के क्षत्रियों का एक वंश।
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गहवर  : पुं० [सं० गह्रर] १. कंदरा। गुफा। २. देवालय। मंदिर।
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गहवरिया  : वि० [सं० गह्रर] १. गहरा। २. सघन। उदाहरण-तरु गहवरिया थिय तरुण।– प्रिथीराज।
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गहवा  : पुं० [हिं० गहन=पकड़ना] सँड़सी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहवाना  : पुं० [हिं० गहना का प्रे०] किसी से पकड़ने का काम कराना। पकड़वाना। गहाना।
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गहवारा  : पुं० [फा०] १. झूला। २. पालना।
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गहव्वर  : वि० दे० ‘गह्रर’।
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गहाई  : स्त्री० [हिं० गहना] गहने या गहाने अर्थात् पकड़ने या पकड़वाने की क्रिया या भाव। पकड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहागड्ड  : वि०=गहगड्ड।
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गहागह  : वि०=गहगहा।
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गहाना  : स० [हिं० गहना] १. किसी को कुछ गहने या धारण करने में प्रवृत्त करना। पकड़ना। २. (कष्ट विपत्ति आदि से) ग्रस्त या युक्त कराना।
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गहासना  : स०=ग्रसना। उदाहरण–जौ चंदहिं० पुनि राहु गहासा।–जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गहिरदेव  : पुं० [हिं० गहिर+देव] काशी के एक राजकुमार जिसे गहरवार लोग अपना आदि पुरुष मानते है।
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गहिरा  : वि०=गहरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहिराई  : स्त्री०=गहराई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहिराव  : पुं०=गहराव।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहिरो  : वि०=गहरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गहिला  : वि० [हिं० गहेला] [स्त्री० गहिली] उन्मत्त। पागल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहिलाना  : स० [सं० गाहन से] १. प्रवाहित करना। बहाना। २. धोकर दूर करना या हटाना। उदाहरण–जल काजल गहिलाइ।–ढोलामारू।
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गहिलोत  : पुं०=गहलौत।
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गहीर  : वि० १. गहरा। २. गंभीर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गहीला  : वि० [हिं० गहेला] [स्त्री० गहेली] १. उन्मत। पागल। २. अभिमानी। गर्वीला।
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गहु  : स्त्री० [सं० गह्रर या गँव] तंग या सकरा मार्ग। गली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहुआ  : पुं० [हिं० गहना=पकड़ना] छोटे मुँह वाली एक प्रकार की सँड़सी।
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गहूरी  : स्त्री० [हिं० गहना] १. किसी चीज को पकड़ने या पकड़वाने की क्रिया, भाव या मजदूरी। २. किसी दूसरे के माल को अपने यहाँ हिफाजत से रखने की मजदूरी।
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गहेजुआ  : पुं० [देश०] छछूँदर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गहेलरा  : वि०=गहेला।
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गहेला  : वि० [हिं० गहना-पकड़ना+एला (प्रत्यय)] [स्त्री० गहेली] १. कोई चीज ग्रहण करने या धारण करनेवाला। जैसे–गरब गहेला। २. अभिमानी। गर्वीला। ३. उन्माद रोग से ग्रस्त। पागल। विक्षिप्त। ४. गँवार।
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गहैया  : वि० [हिं० गहना+ऐया (प्रत्यय)] १. गहने या पकड़नेवाला। २. अंगीकार, स्वीकार या ग्रहण करनेवाला।
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गह्नरी  : स्त्री० [सं० गहवर+ङीष्] कंदरा। गुफा।
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गह्वर  : पुं० [सं०√गाह् (छिपाना)-वरच् पृषो० सिद्धि] १. ऐसा अँधेरा और गहरा स्थान जिसके अंदर की चीजों या बातों का बाहर से कुछ भी पता न चले। २. दुर्भेद्य और विषम स्थान। ३. छिपने या छिपकर रहने आदि के लिए जमीन में खुदा या खोदा हुआ कोई अँधेरा और गहरा स्थान। जैसे–गुफा, बिल, बिवर आदि। ४. झाड़ियों या लताओं से घिरा हुआ स्थान। कुंज। ५. जंगल। वन। ६. बहुत ही गंभीर और गूढ़ बात का विषय। ७. दंभ, पाखंड या इसी प्रकार की कोई बात। ८. जल। पानी। ९. रुदन। रोना। वि० १. दुर्गम। विषम। २. छिपा हुआ। गुप्त। ३. गंभीर। गहरा।
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गाइ (ई)  : स्त्री०=गाय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाइन  : वि० [हिं० गाना] गानेवाला। पुं० गवैया गायक।
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गाउन  : पुं० [अ०] १. एक प्रकार का लंबा ढीला पहनावा जो प्रातः योरप अमेरिका आदि देशों की स्त्रियाँ पहनती है। २. उक्त प्रकार का वह पहनावा जो कुछ विशिष्ट लोगों (जैसे डाक्टरी वकीलों स्नातकों आदि) को कोई उच्च परीक्षा पारित करने पर उसके चिन्ह स्वरूप मिलता है।
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गाऊधप्प  : वि० [हिं० खाऊ+गप्प] १. सब कुछ खा-पी जानेवाला। २. दूसरों का माल खा या हड़प जानेवाला।
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गांकर  : स्त्री० दे० ‘गाकरी’।
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गाकरी  : स्त्री० [सं० अंगार+कर] आग पर सेंकी हुई बाटी या लिट्टी। अंगा कड़ी।
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गांग  : वि० [सं० गंगा+अण्] गंगा संबंधी। गंगा का। पुं० १. गंगा का किनारा या तट। २. भीष्म। ३. कार्तिकेय। ४. वर्षा का जल। ५. सोना। स्वर्ण। ६. धतूरा। ७. बड़ा तालाब। ताल। ८. हिलसा मछली। स्त्री० =गंगा। उदाहरण–गाँग जउँन जौ लहिजल तौ लहि अम्भरनाथ।–जायसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गांगट  : पुं० [सं० गांग√अट् (गति)+अच्] केकड़ा।
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गाँगन  : स्त्री० [?] एक प्रकार की फुँसी या छोटा फोड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गागर  : स्त्री० [सं० गर्गर] धातु या मिट्टी का बना हुआ ऊँचे गले वाला एक प्रकार का घड़ा। मुहावरा–गागर में सागर भरना= (क) थोड़े स्थान में बहुत अधिक चीजें भरना। (ख) कोई ऐसी पदावली या वाक्य बोलना या लिखना जिसमें बहुत अधिक भाव भरें हो। (साहित्य)।
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गागरा  : पुं० [स्त्री० गागरी] =गगरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गांगायनि  : पुं० [सं० गंगा+फिञ्-आयन] १. भीष्म। २. कार्तिकेय। ३. एक प्रवरकार ऋषि।
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गांगी  : स्त्री० [सं० गांग+ङीप्] दूर्गा।
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गांगेय  : वि० [सं० गंगा+ढक्-एय] १. गंगा संबंधी। २. गंगा से उत्पन्न। पुं० १. भीष्म। २. कार्तिकेय। ३. सोना। स्वर्ण। ४. धतूरा। ५. कसेरू। ६. हिसला मछली। ७. दक्षिण भारत के गंगवाड़ी प्रदेश का एक प्राचीन राजवंश।
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गांगेयी  : स्त्री० [सं० गांगेय+ङीष्] हिलसा मछली।
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गांगेरुका  : पुं० [सं० गांग√ईर् (गति)+कु+क] गोरख इमली का बीज।
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गांगेरुका  : स्त्री० [सं० गांगेरुक+टाप्] १. नागवल्ली। २. एक प्रकार का क्षुद्र अन्न। गांगेरुकी
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गांगेष्ठी  : स्त्री० [सं० गांगे√स्था (ठहरना)+क-ङीष्, अकुल् स०] एक प्रकार की लता। कटशर्करा।
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गांग्य  : वि० [सं० गंगा+व्यञ्] १. गंगा का। २. गंगा में से या गंगा से उत्पन्न होनेवाला।
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गाच  : स्त्री० [अं० गाज] १. झीनी बुनावट का एक प्रकार का पतला कपड़ा। २. फुलवर नाम का रंगीन बूटीदार कपड़ा।
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गाछ  : पुं० [सं० गच्छ] १. पेड़। वृक्ष। २. उत्तरी बंगाल में होनेवाला एक प्रकार का पान। स्त्री० गाच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाँछना  : स०=गूथना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाछी  : स्त्री० [हिं० गाछ] १. छोटा पेड़। २. छोटा बगीचा। ३. खजूर की नरम कोपल जिसे सुखाकर तरकारी बनाई जाती है। स्त्री० खुरजी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाँज  : पुं० [हिं० गाँजना] १. गाँजने अर्थात् ढेर लगाने की क्रिया या भाव। २. ढेर। राशि। जैसे–भूसे या लकड़ी का गाँज।
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गाज  : स्त्री० [सं० गर्ज, प्रा० गज्ज] १. गूँजने की क्रिया भाव या शब्द। गर्जन। पद-गाजा बाजा-कई तरह के बाजे। २. बिजली। वज्र। मुहावरा–गाज पड़ना=बिजली गिरना या वज्रपात होना। (किसी वस्तु पर) गाज पड़ना-पूरी तरह से नष्ट या बरबाद होना। गाज मारना-गाज पड़ना। पुं० [अनु० गजगज] पानी आदि का फेन। झाग। स्त्री, [?] काँच की चूड़ी।
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गाँजना  : स० [फा० गंज] ढेर या राशि लगाना। एक के ऊपर एक रखना या लगाना। जैसे–भूसा गाँजना।, लकड़ी गाँजना। स० [सं० गंजन] तोड़ना-फोड़ना। नष्ट करना। उदाहरण–अई चीत गढ़ ओर सूँ तू गाँजियो न जाए।–बाँकीदास।
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गाजना  : अ० [सं० गर्जन,पा० गज्जन] १. गर्जन करना। गरजना। २. शोर मचाना। उदाहरण–जूँ अंबर पर इंदर गाजा।–ग्राम्य गीत। ३. खूब प्रसन्न होना।
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गाजर  : स्त्री० [सं० गृंजन] मूली की जाति का एक प्रसिद्ध मीठा लंबोतरा कंद जिसका अचार, तरकारी मुरब्बा आदि बनाये जाते हैं। मुहावरा–(किसी को) गाजर मूली समझना= (क) अशक्त या असमर्थ समझना। (ख) तुच्छ या हेय समझना।
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गाँजा  : पुं० [सं० गञ्जा, गृंज; प्रा० उ० गंजा; बं० मरा० गाँजा; सिं० गाँजी, गुं० गाँजे] १. भाँग की एक जाति का एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी मादक सूखी कलियाँ या फूल चिलम में रखकर तमाकू की तरह पीये जाते हैं।
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गाजा  : पुं० [फा० गाजः] एक प्रकार का चूर्ण या लेप जो स्त्रियाँ सौंदर्य बढ़ाने के लिए मुँह पर मलती है। पुं० गाँजा। उदाहरण–गाजा पिये गुरु ज्ञान मिटे।
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गाजाधर  : पुं०=गदाधर।
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गाज़ी  : पुं० [अ०] १. मुसलमानों में वह वीर या योद्धा जो धर्म के लिए विधर्मियों से युद्ध करता हो। २. उक्त प्रकार के युद्ध में प्राण देनेवाला व्यक्ति। ३. बहुत बड़ा बहादुर या वीर।
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गाजीमर्द  : पुं० [अ०+फा०] १. बहुत बड़ा योद्धा या वीर। २. घोड़ा।
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गाजीमियाँ  : पुं० [अ०] महमूद गजनवी का भानजा सालार मसऊद जो बहराइच में श्रावस्ती के जैन राजा सुहृदेव के हाथों मारा गया था।
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गाटर  : पुं० [पुं० हिं० गटई=गला] जुआठे की वह लकड़ी जिसके इधर उधर बैल जोते जाते हैं। पुं० [?] खेत का छोटा टुकड़ा। गाटा। पुं० [अं० गर्डर] लोहे की मोटी और लंबी धरन।
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गाटा  : पुं० [हिं० कट्ठा] १. खेत का छोटा टुकड़ा। छोटा खेत। गाटर। २. बैलों की वह दौनी जो पायल का चूरा कराने के लिए होती है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाँठ  : स्त्री० [सं० ग्रन्थि, पा० गंठि] [वि० गँठीला] १. कपड़े, डोरे रस्सी आदि के सिरों को घुमाकर और एक दूसरे में फँसाकर कसने या बाँधने से बननेवाला रूप जो आस पास के तलों से कुछ उभरा हुआ, गोलाकार और मोटा होता है। ग्रंथि। गिरह। जैसे–कोई चीज बाँधने के लिए रस्सी में गाँठ लगाना। मुहावरा-गाँठ जोड़ना या बाँधना=(क) विवाह के समय अतवा उसके बाद कोई धार्मिक शुभ कार्य करने के समय वर और वधू के कपडों के पल्लें या सिरें आपस में उक्त प्रकार से बाँधना। (ख) परस्पर बहुत ही घनिष्ट संबंध स्थापित करना। २. डोरे या रस्सी के किसी अंश के घूमफिरकर फंदा बनाने और उस फंदे में उलझने या फँसने से बननेवाला उक्त प्रकार का रूप। जैसे–इस डोरे या नख में कई जगह गाँठ पड़ा गयी हैं। ३. कोई चीज बाँधकर अपने पास रखने के लिए कपड़े के पल्लों को आपस में फँसा कर दिया जानेवाला उक्त प्रकार का रूप। ४. उक्त के आधार पर कोई चीज अपने अधिकार में होने की अवस्था या भाव। उदाहरण–खोटे राम गाँठ लिअ डोलैं महँगी वस्तु मोलावै।–कबीर। मुहावरा–किसी की गाँठ कतरना या काटना=किसी की गाँठ से बँधा हुआ या किसी के पास का धन चालाकी या चोरी से ले लेना। चुरा या ठगकर ले लेना। (कोई बात) गाँठ बाँधना-किसी बात पर इस उद्देश्य से पूरा ध्यान देना कि वह सदा बहुत अच्छी तरह याद रहे। जैसे–हमारी बात गाँठ बाँध रखो, किसी समय बहुत काम आवेगी। पद–गाँठ का=अपने पास का। पल्ले का। जैसे–बात की बात में गाँठ के दस रुपये खर्च हो गये। गाँठ का पूरा=जिसके पास यथेष्ट धन हो। गाँठ से=अपने पास से। पल्ले से। जैसे–गाठ से निकालकर खर्च करना पड़े तब पता चले। ५. किसी चीज की बँधी हुई बड़ी गठरी। गट्ठर। जैसे–कपड़े या रेशम की आज चार गाँठे आयी है। ६. वानस्पतिक क्षेत्र में वृक्षों के कांडों, टहनियों आदि में बीच-बीच में होनेवाला उभारदार गोलाकार मोटा अंश या भाग। पर्व। पोर। (बल्ब) जैसे–ईख या बाँस में होनेवाली गाँठें। ७. उक्त आकार के आधार पर कोई उभारदार गोलाकार और ठोस चीज या रचना। जैसे–प्याज की गाँठ, हलदी की गाँठ। पद-गाँठ-गँठीला= (देखें)। ८. शरीर के अंगो में का जोड़ या संधि-स्थान। जैसे–आज तो हमारी गाँठ गाँठ में दरद हो रहा है। ९. उक्त के आधार पर मन में जमा या बैठा हुआ किसी प्रकार का दुर्भाव, द्वेष या वैर जो पारस्परिक सदभावना के अभाव का सूचक होता है। उदाहरण–साधू वही सराहिये जाके हिए न गाँठ। मुहावरा=मन की गाँठ खोलन=मन में छिपा हुआ दुर्भाव स्पष्टरूप से इस लिए कहना कि आगे के लिए सफाई हो जाए। मन गाँठ पड़ना=मन में दुर्भाव, द्वेष या वैर-विरोध का भाव जमना या बैठना। जैसे–मेरे पिया के जिया में पड़ गई गाँठ, कौन जतन से खोलूँ।–स्त्रियों का गीत। १॰. किसी प्रकार की उलझन या झगड़े-बखेड़े की अथवा पेचीदी बात या स्थिति। मुहावरा–गाँठ खुलना=उलझन या झंझट दूर होना। पेचीदी समस्या का निराकरण या समाधान होना। ११. कटोरी के आकार का एक प्रकार का घुँघरूदार गहना जो कोहनी के ऊपर पहना जाता है।
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गाँठ गँठीला  : वि० [हिं० गाँठ] जिसमें जगह जगह कई या बहुत सी गाँठे पड़ी हों। जैसे–टूटे से फिर जुड़े तो गाँठ गँठीला होय। (कहा०)
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गाँठकट  : पुं० [हिं० गाँठ+काटना] गाँठ काटनेवाला व्यक्ति। गिरहकट।
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गाँठगोभी  : स्त्री० [हिं० गाँठ+गोभी] गोभी की जाति का एक प्रकार का कंद जिसमें पत्तों का संपुट गोल और बड़ी गाँठ के रूप में होता है और जिसकी तरकारी बनती है।
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गाँठदार  : वि० [हिं० गाँठ+दार(प्रत्यय)] जिसमें गाँठ या गाँठे पड़ी हों। जैसे–गाँठदार लकड़ी।
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गाँठना  : स० [सं० ग्रंथन, पा० गंठन] १. गाँठ देना,बाँधना या लगाना। २. दो चीजे आपस में मिलाने या जोड़ने के लिए डोरी डोरे आदि से जोड़कर गाँठे लगाना या मोटी सिलाई करना। जैसे–जूता गाँठना। ३. किसी को अपनी ओर मिलाने के लिए उसके साथ स्वार्थपूर्ण संबंध स्थापित करना। जैसे–यदि किसी तरह उन्हें गाँठ सके तो बहुत काम हो। ४. पर-स्त्री को संभोग के लिए तैयार करना और फलतः उसके साथ संभोग करना। ५. अनुचित रूप में कोई काम पूरा या सिद्ध करना। जैसे–अपना मतलब गाँठना। ६. दबोचकर अपने अधिकार या हाथ में करना। जैसे–बिल्ली आज हमारा एक कबूतर गाँठ ले गयी। ७. आघात या वार रोककर उसे विफल करना।
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गाँठि  : स्त्री०=गाँठ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गाँठी  : स्त्री० [हिं० गाँठ] १. गाँठ। २. कोहनी पर पहनने का एक गहना।
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गाँड़  : स्त्री० [सं० गर्त, प्रा० गड्ड या कन्न० गोराडे=पुरुष की जननेद्रिंय] १. मल-त्याग करने की इंद्रिय। गुदा। गुह्य। विशेष–यद्यपि इस शब्द के साथ अनेक मुहावरे है पर वे सब अश्लील होने के सिवा आ-साहित्यिक भी है, इसलिए वे छोड़ दिये गये है। २. किसी चीज के नीचे का भाग। तल्ला। पेंदी।
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गाड़  : पुं० [सं० गर्त,प्रा० गड्ड मिलाओ अ० गार] १. जमीन में खोदा या बना हुआ गड्ढा। २. वह गड्ढा जो अनाज भरकर रखने के लिए जमीन में खोदा जाता है। ३. वह गड्ढा जिसमें ईख की खोई का बचा हुआ रस निचुड़कर इकट्ठा होता है। ४. वह गड्ढा जिसमें पानी भरकर नील भिगोंते है। ५. कूएँ का भगाड़ (देखा)। ६. खेत की मेंड़।
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गाड़ना  : स० [प्रा० गड्डा,बँ० गारा, उ०गार, गु०गाडवूँ मरा० गाड़णें] १. कोई चीज छिपाने या दबाने के लिए जमीन में खोदे हुए गड्ढे में रखना और तब उस पर इस प्रकार मिट्टी डालना या भरना कि वह ऊपर से दिखाई न दे। जैसे–जमीन में धन गाड़ना। २. उक्त प्रकार से मृत शरीर जमीन के अंदर रखकर मिट्टी आदि से दबाना। दफन करना। दफनाना। जैसे–ईसाइयों और मुसलमानों के मुरदे गाड़े जाते है। ३. कोई चीज कहीं दृढ़तापूर्वक खड़ी करने के लिए उसके नीचे का कुछ अंश जमीन में उक्त प्रकार से धँसाना या दबाना। जैसे–खंभा, झंड़ा या बाँस गाड़ना। ४. (खेमा या तंबू) खड़ा करना। ५. किसी नुकीली चीज की नोक या सिर जमीन या दीवार में इस प्रकार दबाना या धँसाना कि वह जल्दी इधर-उधर न हो सके। जैसे–कील या खूँटी गाड़ना। ६. दूसरों की दृष्टि से बचाने के लिए अथवा और किसी प्रकार चोरी से अधिक मात्रा में कोई चीज इस उद्देश्य से छिपाकर अपने पास रखना कि उपयुक्त अवसर आने पर उससे अनुचित लाभ उठाया जा सके। (होर्डिग)।
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गाँडर  : पुं० [सं० गंडाली] एक प्रसिद्ध घास जिसकी जड़ बहुत सुगंधित होती है और खस कहलाती है। गंडदूर्वा।
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गाडर  : स्त्री० [सं० गड्डरी वा गड्डरिका](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) भेड़। स्त्री० दे० गाँडर।
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गाड़रू  : पुं०=गारुड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाडव  : पुं० [सं० गडु+अण्] बादल। मेघ।
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गाँडा  : पुं० [सं० कांड या खंड] [स्त्री० गेंड़ी] १. किसी पेड़ पौधे आदि का वह निकम्मा अंश जो उससे काटकर अलग कर दिया गया हो। जैसे–ईख का गाँडा। २. ईख या ऊख की गँडेरी। ३. ईख। गन्ना। ४. चक्की के चारों ओर का घेरा। मेंडरी।
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गाड़ा  : पुं० [हिं० गाड़ी] १. बड़ी गाड़ी। २. बड़ी बैलगाड़ी। ३. बड़ा छकड़ा। पुं० [हिं० गाड़] १. जंगल का वह गड्ढा जिसमें चोर डाकू आदि छिपकर बैठते थे। २. दे० ‘गाड़’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) मुहावरा–गाड़े बैठना=(क) किसी की धात में कहीं छिपकर बैठना। (ख) चौकी या पहरे पर बैठना। पुं० [हिं० गाड़ना] १. हिंदुओं का वह वर्ग जो मुसलमानों के शासनकाल में डरकर अपने मुरदे गाड़नेलगा था। २. मुसलमान जो अपने मुरदे जमीन में गाड़ते हैं।
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गांडाली  : स्त्री० [सं० गाण्ड-आ√ला (लेना)+क-ङीष्] गाँडर नामक घास।
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गाँडी  : स्त्री० [सं० गंड]=गाँडर।
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गाडी  : स्त्री० [प्रा० गत्तिआ, गाड्डआ, दे० प्रा० गड्डी, गोडइ, उ० बँ० गारी, सिं० गाडो, गु० मरा० गाड़ी] १. पहियों पर खड़ा या बैठाया हुआ लकड़ी लोहे आदि का वह ढाँचा जिसे घोड़े बैल आदि खींचते है। और जिस पर सवारियाँ तथा सामान एक जगह से दूसरी जगह पहुँचाये जाते है। शकट। क्रि० प्र० खींचना। चलाना। हाँकना। पद-गाड़ी भर-बहुत अधिक। ढेर सा। मुहावरा–गाड़ी जोतना=गाड़ी चलाने के लिए उसके आगे घोड़े या बैल जोतना। २. रेलगाड़ी।
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गाड़ीखाना  : पुं० [हिं० गाड़ी+खाना] वह कमरा घर या स्थान जहाँ गाड़ियाँ रखी जाती हों।
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गाँडीर  : वि० [सं० गण्डीर+अण्] गंडीर पौधे से प्राप्त या उसका बना हुआ। गंडीर का।
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गांडीव  : वि० [सं० गाण्डी-ग्रन्थि+व] १. अर्जुन का वह धनुष जो उसे अग्निदेव से प्राप्त हुआ था। २. धनुष।
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गाड़ीवान  : पुं० [हिं० गाड़ी+अं० मैन का हिं० रूप वान] गाड़ी चलाने या हाँकनेवाला।
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गांडीवी (विन्)  : पुं० [सं० गाण्डीव+इनि] १. अर्जुन। २. अर्जुन का वृक्ष।
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गाँडू  : वि० [हिं० गाँड़] १. जिसे गाँड़ मारने की लत हो। गुदा-भंजन करानेवाला। २. कायर और निकम्मा।
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गाढ़  : वि० [सं०√गाह्(पैठना)+क्त] १. बहुत अधिक। अतिशय। २. दृढ़। पक्का। मजबूत। ३. गंभीर। गहरा। ४. घना। ५. तेज। प्रबल। ६. कठिन। विकट। ७. दुरूह या दुर्गम। स्त्री० कष्ट विपत्ति या संकट का समय या स्थिति। पुं० [?] जुलाहों का करघा।
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गाढ़ता  : स्त्री० [सं० गाढ़+तल्-टाप्] १. गाढ़े, गंभीर या गहन होने की अवस्था या भाव। २. कठिनता। दुरूहता।
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गाढ़ा  : वि० [सं० गाढ़] १. (पदार्थ) जिसमें तरलता अपेक्षया कम हो। जो अधिक तरल या पतला न हो। जैसे–गाढ़ा दूध, गाढ़ी भाँग (या उसका घोल)। मुहावरा–गाढ़ी छनना=गाढ़ी भाँग पीयी जाना जिसमें खूब नशा हो। २. (रंग) जो अधिक गहरा हो। बहुत हलका न हो। जैसे–गाढ़ा लाल, गाढ़ा हरा। ३. (वस्त्र) जिसके सूत परस्पर खूब मिले हो। ठस बुनावटवाला और अपेक्षया मोटा। ४. दृढ़। पक्का। उदाहरण–गयौ लंक गाढ़ौ गह्रयौ-चंदवरदाई। ५. (संबंध) जिसमें आत्मीयता, घनिष्टता आदि की अधिकता हो। जैसे–गाढ़ी दोस्ती। मुहावरा–(आपस में) गाढ़ी छनना= (क) घनिष्ट मित्रता होना। (ख) खूब घुल मिलकर परामर्श या बातें होना। ६. उग्र। प्रचंड। जैसे–गाढ़ी शत्रुता। ७. बहुत ही कठिन या विकट। जैसे–गाढ़े दि। ( दे०) उदाहरण–तिन्हहि सराप दीन्ह अतिगाढ़ा।–तुलसी। ८. जिसमें बहुत अधिक परिश्रम होता हो या हुआ हो। पद-गाढ़े की कमाई-बहुत परिश्रम से कमाया हुआ धन। ९. जिसमें कष्ट संकट आदि की अधिकता हो। जैसे–गर्भवती या प्रसूता के गाढ़े दिन। पुं० १. कष्ट विपत्ति या संकट की अवस्था प्रसंग या समय। जैसे–गाढ़े में जल्दी कोई साथ नहीं देता। २. जुलाहे का बुना हुआ देशी मोटा सूती कपड़ा। ३. मस्त हाथी।
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गाढ़े  : क्रि० वि० [हिं० गाढ़ा] १. दृढ़तापूर्वक। २. गहरा रंग लिये हुए। ३. कठिनता या संकट के समय में। उदाहरण–चोर न लेहिं घटै नहिं कबहूँ गाढ़े आवत काम।–काष्ठजिह्वस्वामी।
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गाणपत  : वि० [सं० गणपति+अण्] गणपति संबंधी। गणपति का। पुं० [सं० गणपति] गणेश जी की उपासना तथा पूजा करनेवाला एक प्राचीन संप्रदाय।
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गाणेश  : पुं० [सं० गणेश+अण्] गणेश का उपासक। वि० गणेश संबंधी।
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गात  : पुं० [सं० गात्र, पा० गत्त] १. देह। शरीर। २. स्त्रियों का यौवनकाल। मुहावरा–गात उमगना=यौवन का आगमन या आरंभ होने पर बालिका के स्तन उभरना। ३. पुरूष या स्त्री का गुप्त अंग। ४. गर्भ। मुहावरा-गात से होना=गर्भवती होना।
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गातलीन  : स्त्री० [सं० गाटलिन] जहाज में वह डोरी जो मस्तूल के ऊपर चरखी मे लगी रहती और रीगिन उठाने में काम आती है।
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गातव्य  : वि० [सं०√गै (गाना)+तव्यत्] गाने अथवा गाये जाने के योग्य।
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गाता(तृ)  : वि० [सं०√गै+तृच्] गानेवाला। पुं०=गत्ता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गातानुगतिक  : वि० [सं० गतानुगत+ठक्-इक] गतानुगति या अंध अनुसरण के रूप में होनेवाला।
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गाँती  : स्त्री०=गाती।
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गाती  : स्त्री० [सं० गात्री] १. बच्चों को सरदी से बचाने के लिए उनके शरीर पर लपेटकर गले में बाँधा जानेवाला छोटा कपड़ा। २. उक्त प्रकार से शरीर के चारों ओर चादर लपेटने का ढंग या प्रकार। ३. कपड़े का वह टुकड़ा जो लोग अपने गुप्त अंग ढकने के लिए कमर में लपेट कर उसके दोनों लिरे गले में बाँधते है।
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गांतु  : वि० [सं०√गम् (जाना)+तुन्, वृद्धि] गमन करनेवाला। चलने या जानेवाला। पुं० १. पथिक। बटोही। २. गवैया। गायक।
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गातु  : पुं० [सं०√गै+तुन्] १. गाने की क्रिया या भाव। गाना। २. गानेवाला। गायक। ३. गंधर्व। ४. कोयल। ५. भौरा। ६. पतिक। बटोही। ७. पृथ्वी।
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गात्र  : पुं० [सं०√गम् (जाना)+त्रन्, आकार आदेश] १. देह। शरीर। २. हाथी के अगले पैरों का ऊपरी भाग।
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गात्र-भंगा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] केवाँच। कौंछ।
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गात्र-रुह्  : पुं० [गात्रे√रूह् (जन्म लेना)+क] शरीर के रोएँ। रोम।
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गात्र-वर्ण  : पुं० [मध्य० स०] स्वर साधन की एक प्रणाली जिसमें सातों स्वरों में से प्रत्येक का उच्चारण तीन तीन बार किया जाता है। जैसे–सा सा सा, रे रे रे,ग ग ग आदि।
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गात्र-सम्मित  : वि० [ब० स०] (गर्भ) जो तीन महीने के ऊपर का होकर शरीर के रूप में आ गया हो।
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गात्रक  : पुं० [सं० गात्र+कन्] शरीर।
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गात्रवत्  : वि० [सं० गात्र+तुप्, वत्व] सुंदर शरीरवाला।
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गात्रानुलेपनी  : स्त्री० [गात्र-अनुलेपनी, ष० त०] अंगराग।
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गात्रावरण  : पुं० [सं० गात्र-आवण, ष० त० ] १. शरीर ढकनेवाली कोई चीज। २. युद्ध के समय शरीर को ढकनेवाले कवच जिरह-बख्तर आदि।
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गात्रिका  : स्त्री० [सं० गात्र+कन्-टाप्, इत्व] शाल की तरह की एक प्रकार की पुरानी चादर।
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गांत्री  : स्त्री० [सं० गन्त्रीड़+अण्-ङीष्] बैलगाड़ी।
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गाथ  : पुं० [सं०√गा(गाना या स्तुति)+थन्] १. गाना। गान। २. प्रशंशा। स्तुति। स्त्रोत। ३. कथा। कहानी। ४. विस्तारपूर्वक किया जानेवाला वर्णन।
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गाथक  : पुं० [सं०√गा+थकन्] गाथा कहने या लिखनेवाला।
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गाँथना  : स० १.=गूँथना। उदाहरण–मालिनि आउ मौर लै गाँथे।–जायसी। २.-गाँठना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गाथना  : स० [हिं० गथना] १. अच्छी तरह पकड़ना। २. कसना। जकड़ना। ३. गूथना। पिरोना।
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गाथा  : स्त्री० [सं० गाथ+टाप्] १. गीत, विशेषतः अपनी रमणीयता के कारण सब तरह के लोगों में गाया जानेवाला गीत। २. प्राकृत भाषा का एक छंद जिसमें उक्त प्रकार के गीत लिखे जाते थे। विशेष-इन गीतों में किसी के किए हुए यज्ञों आदि का प्रशंसात्मक उल्लेख होता था। ३. परवर्ती काल में, आर्या छंद का एक भेद या रूप जिसमें पाली, प्राकृत आदि में ऐसी रचनाएँ होती थी, जिनमें ताल स्वर आदि के नियमों का बंधन नहीं होता था। ४. छोटे-छोटे पद्यों में बहुत ही सीधे सादे ढंग सें और विस्तारपूर्वक कही हुई वह प्रभावोत्पादक कथा जिसमें प्रायः सच्ची घटनाओं या विशिष्ट तथ्यों का वर्णनहोता है। (बैलड) ५. पारसियों तथा बौद्धों के धर्मग्रंथों मे की उक्त प्रकार की रचनाएँ। ६. कोई कथा या वृत्तांत। ७. किसी की प्रशंसा या स्तुति।
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गाथाकार  : पुं० [सं० गाथा√कृ (करना)+अण्] १. गाथाएं रचनेवाला। २. महाकाव्य का रचयिता। ३. गायक।
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गाथिक  : पुं० [सं० गाथा+ठक्-इक] [स्त्री० गाथिका]-गाथक।
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गाथी(थिन्)  : पुं० [सं० गाथा+इनि] सामवेद गानेवाला।
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गाद  : स्त्री० [सं० गाध-जल के नीचे का तल] १. तरल पदार्थों के नीचे बैठी हुई गाढ़ी चीज। तलछट। २. तेल की कीट। ३. कोई गाढ़ी चीज। जैसे–गोंद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गादड़  : वि० [सं० कातर या हिं० गीदड़] मट्ठर। सुस्त। पुं० १. गीदड़। २. कायर। डरपोक। ३. वह बैल जो किसी तरह जल्दी न चलता हो। स्त्री० [सं० गड्डर] भेड़।
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गादर  : वि० [हिं० गदराना] गदराया हुआ। पुं० दे० गादड़। पुं० [हिं० कादर] वह बैल जो चलता चलता बैठ जाता हो।
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गादा  : पुं० [सं० गाधा-दलदल] १. खेत में खड़ी फसल जो अभी पकी न हो। २. उक्त फसल के अध-पके अन्न के दाने। ३. महुए का फल जो पेड़ से टपका हो। हरा महुआ।
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गांदिनी  : स्त्री० [सं० गो√दा (देना)+णिनि,पृषो० सिद्धि] १. अक्रूर की माता जो काशिराज की कन्या और श्वफल्क की भार्या ता। २. गंगा।
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गांदी  : स्त्री०=गांदिनी।
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गादी  : स्त्री० [हिं० गद्दी] १. छोटी टिकिया के आकार का एक प्रकार का पकवान। २. दे० गद्दी।
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गादुर  : पुं०=चमगादड़।
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गाद्धर्य  : पुं० [सं० गर्द्ध+ष्यञ्] लालच। लोभ।
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गाध  : पुं० [सं०√गाध् (प्रतिष्ठा)+घञ्] १. स्थान। जगह। २. जल के नीचे का स्थल। तल। ३. नदी का प्रवाह। बहाव। ४. लालच। लोभ। वि० १. (जलाशय) जो इतना छिछला या कम गहरा हो कि चल या हलकर पार किया जा सके। २. अल्प। थोड़ा।
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गांधर्व  : वि० [सं० गंधर्व+अण्] १. गंधर्व संबंधी। गंधर्व का। २. गंधर्व जाति या देश का। ३. (मंत्र) जिसका देवता गंधर्व हो। पुं० १. गान विद्या। संगीत शास्त्र। २. गंधर्व जाति। ३. भारत का एक प्राचीन भाग जिसमें गंधर्व लोग रहते थे। ४. हिन्दू धर्मशास्त्रों के अनुसार आठ प्रकार के विवाहों में से एक जो पहले गंधर्व जाति में प्रचलित था और जिसमें वर और वधू आपस में मिलकर स्वेच्छापूर्वक वैवाहिक संबंध स्थापित कर लेते थे। प्राचीन भारत में वह विवाह क्षत्रियों के लिए विहित था, पर कलियुग में वर्जित है। ५. घोड़ा।
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गांधर्व-वेद  : पुं० [कर्म० स०] सामवेद का उपवेद जिसमें सामगान के स्वर लय आदि का विवेचन है। संगीत शास्त्र।
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गांधर्विक  : वि० [सं० गन्धर्व+ठक्-इक] १. गंधर्व संबंधी। गंधर्व का। २. गंधर्व विद्या अर्थात् संगीत शास्त्र का ज्ञाता।
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गांधर्वी  : स्त्री० [सं० गान्धर्व+ङीष्] दुर्गा।
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गाधा  : स्त्री० [सं० गाध+टाप्] १. गायत्री स्वरूपा महादेवी। २. बहुत अधिक कष्ट या दुख। उदाहरण–भव-बाधा गाधा हरन राधा राधा जीय।–सत्यनारायण। पुं०-गधा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाँधार  : वि० [सं० गान्ध+ऋ (गति)+अण्] १. गंधार देश। गंधार का। २. गंधार देश में रहने या होनेवाला। पुं० १. गंधार नामक प्राचीन देश जो पेशावर से कंधार तक था। २. उक्त देश का निवासी। ३. संगीत के सात स्वरों में से तीसरा स्वर। ४. एक प्रकार का षाड़व राग जो अदभुत करुण और हास्यरस के लिए उपयुक्त कहा गया है। ५. गंधरस नामक सुगंधित द्रव्य।
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गांधार  : पुं० [कर्म० स०] गाधार नामक राग का दूसरा नाम।
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गांधार-भैरव  : पुं० [कर्म० स०] प्रातः समय गाया जानेवाला एक प्रकार का संकर राग।
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गांधारि  : पुं० [सं० गन्ध+अण्,गान्ध√ऋ+इन्] दुर्योधन के मामा शकुनि का नाम।
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गांधारी  : स्त्री० [सं० गान्धार+इञ्-ङीप्] १. गांधार देश की स्त्री। २. धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन की माता जो गांधार के राजा सुबल की पुत्री थी। ३. षाडव संपूर्ण जाति की एक रागिनी जो दिन के दूसरे पहर में गायी जाती है। ४. तंत्र तथा हठयोग के अनुसार दाहिनी आँख की एक नाड़ी। ५. जवासा। पुं० [सं० गांधारिन्] १. जैनों के एक शासन देवता। २. गाँजा।
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गाधि  : पुं० [सं०√गाध्+इन्] कुशिक राजा के पुत्र जो विश्वामित्र के पिता थे।
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गाधि-पुर  : पुं० [ष० त० ] कान्यकुब्ज। कन्नौज।
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गांधिक  : पुं० [सं० गन्ध+ठक्-इक] १. सुगन्धित द्रव्य बनाने और बेचनेवाला व्यक्ति। गाँधी। २. गंध द्रव्य। सुगंधित पदार्थ। ३. दे० ‘गाँधी’।
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गाँधी  : पुं० [सं० गंध से] १. वह जो सुगंधित तेल बनाने के काम करता हो। गाँधी। २. गुजराती वैश्यों का एक वर्ग। ३. गँधिया नाम की कीड़ा। ४. गंधिया नाम की घास। स्त्री० हींग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाँधी टोपी  : स्त्री० [गाँधी (महात्मा)+टोपी] खद्दर की बनी हुई किश्ती नुमा लंबोतरी टोपी। विशेष–महात्मा गाँधी ने पहले पहल इस प्रकार की टोपी पहनना आरम्भ किया था। इसलिए उन्हीं के नाम पर इसका नाम पड़ा।
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गाँधीवाद  : पुं० [हिं० गाँधी+सं० वाद] महात्मा गांधी की विचारधारओं पर स्थित वह वाद जिसमें सत्य अहिंसा तथा तप और त्यागपूर्ण अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अग्रसर होने की व्यवस्था है। रामराज्य की स्थापना इस वाद का चरम ध्येय है।
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गाधेय  : पुं० [सं० गाधि+ठक्-एय] गाधि ऋषि के पुत्र, विश्वामित्र।
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गाधेया  : स्त्री० [सं० गाधेय+टाप्] गाधि ऋषि की कन्या सरस्वती जिसका विवाह ऋचीक से हुआ था।
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गान  : पुं० [सं०√गै (गाना)+ल्युट्-अन] [वि० गेय, गातव्य] गाने की क्रिया या भाव। गाना। २. वह जो गाया जाए। गीत। ३. किसी प्रकार का बखान या वर्णन। जैसे–यशोगान। ४. शब्द। ५. जाना। गमन।
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गानगर  : पुं० [हिं० गान+फा० गर]=गायक।
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गानना  : स०=गाना। उदाहरण–नर अरू नारि राम गुन गानहिं।–तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गाना  : स० [सं० गानत्व] १. कविता, गीत आदि के चरणों का पदों का वह क्रमिक, मोहक और सरस उच्चारण जो सुर ताल वाले नियमों के अनुसार किसी विशिषट लय में होता है। २. पक्षियों आदि का मधुर स्वर में बोलना। कलरव करना। ३. विस्तारपूर्वक किसी विषय की चर्चा या वर्णन करना। (विशेषतः कविता या छंदों में)। मुहावरा–अपनी ही गाना=अपनी ही बात कहते चलना। (और दूसरे की ना सुनना)। ४. प्रशंसा या स्तुति करना।। ५. आराधना करना। भजना। उदाहरण–दिन द्वै लेहुँ गोविदहिं गाइ।–सूर। पुं० १. लय राग आदि में कविता पद्य आदि का उच्चारण करने की क्रिया या भाव। २. गाई जानेवाली चीज या रचना। गीत।
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गानी (निन्)  : वि० [सं० गान+इनि] १. गानेवाला। २. गमन करने या जानेवाला।
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गाफिल  : वि० [अ०] [भाव० गफलत] १. अचेत। बे-सुध। २. असावधान। ३. लापरवाह।
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गाब  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़ जिसका निर्यास नाव के पेदें की लकड़ियों पर उन्हें सड़ने गलने से बचाने के लिए लगाया जाता है।
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गाबलीन  : स्त्री० [?] जहाज पर पाल चढ़ाने की एक प्रकार की चरखी या गराड़ी।
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गाभ  : पुं० [सं० गर्भ,प्रा० पं० गब्भ,सिंह० गब,सि० गभु,मरा० गाभ] १. गर्भ विशेषतः मादा पशुओं का गर्भ। मुहावरा–गाभ डालना= (क) मादा पशु का ऐसी क्रिया करना जिससे उसका गर्भ गिर जाए। अपना गर्भ गिराना=बाहर निकालना या फेंकना। (ख) लाक्षणिक रूप में बहुत ही डर जाना। (व्यंग्य और हास्य) २. किसी चीज का मध्य. भाग। ३. दे० गाभा। ४. बरतन ढालने के लिए वह साँचा जिस पर अभी गोबरी की तह न चढ़ाई गई हो। (कमेरे)।
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गाभा  : पुं० [सं० गर्भ] १. नया कोमल पत्ता। कल्ला। मुहावरा–गाभा आना=बीच में नया पत्ता निकलना। २. पौधों वृक्षों आदि के डंठलों या शाखाओं के अंदर का कोमल भाग। ३. लिहाफ, रजाई आदि के फटने पर उनमें से निकलने वाली रूई। ४. कच्चा। अनाज। ५. किसी चीज का भीतरी भाग।
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गाभिन  : वि० स्त्री० [सं० गर्भिणी] (मादा पशु) जिसके पेट में बच्चा हो। गर्भिणी।
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गाभिनी  : वि० स्त्री०=गाभिन।
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गांभीर्य्य  : पुं० [सं० गंभीर+ष्यञ्] गंभीर होने की अवस्था गुण या भाव। गंभीरता।
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गाम  : पुं० [सं० ग्राम,पा० गाम] गाँव।
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गामचा  : पुं० [फा० गामचः] घोडे के टखने और सुम के बीच का भाग।
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गामत  : स्त्री० [सं० गमन] १. निकलने का मार्ग. निकास। २. छेद। सूराख (लश०)।
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गामा  : पुं० [सं० ग्राम] गँवार। ग्रामीण। उदाहरण–रामते अधिक नाम करतन जेहि किये नगर-गत गामों।–तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गामिनी  : स्त्री० [सं०√गम् (जाना)+णिनि-ङीष्] प्राचीन काल की एक प्रकार की बड़ी नाव जो समुद्रों में चलती थी। वि० स्त्री० सं० गामी का स्त्री०।
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गामी (मिन्)  : वि० [सं०√गम्+णिनि] [स्त्री० गामिनी] १. गमन करनेवाला। चलने या जानेवाला। जैसे–वेश्यागामी।
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गामुक  : वि० [सं०√गम्+उकच्] जानेवाला। गामी।
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गाय  : स्त्री० [सं० गो० प्रा० पा० गाबी,बँ० उ० ने० गाइ, पं० गाँ, गु० मरा० गाय] सीगोंवाला एक प्रसिद्ध मादा चौपाया जिसका दूध अत्यन्त पुष्टिकारक और स्वादिष्ट होता है और पीने तथा दही, पनीर मख्खन आदि बनाने के काम आता है। साँड़ की मादा। मुहावरा–गाय का बछिया तले और बछिया का गाय तले करना=इधर का उधर और उधर का इधर करना। हेरा-फेरा करना। २. बहुत सीधा सादा और निरीह व्यक्ति। ३. संत साहित्य में, (क) आत्मा। (ख) वाणी। (ग) माया।
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गाय-बगला  : पुं० [हिं०] एक प्रकार का बगला (पक्षी) जो प्रायः पशुओं के झुंड़ों के आस पास मँडराता रहता और उनके शरीर पर के कीड़े खाता है। सुरखिया बगला।
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गायक  : पुं० [सं० गै (गाना)+ण्वुल्-अक] [स्त्री० गायिका] १. वह व्यक्ति जो गीत गाता हो। २. वह जो गीत गाकर अपनी जीविका का निर्वाह करता हो। ३. प्रशंसा या स्तुति करनेवाला व्यक्ति।
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गायकवाड़  : पुं० [मरा०] बड़ौदा के उन महाराजाओं की उपाधि जो मराठों के उत्तराधिकारी थे।
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गायकी  : स्त्री० [सं० गान] १. गान विद्या। २. गान विद्या के अनुसार ठीक प्रकार से गाने की क्रिया या भाव। ३. गान विद्या का पूरा ज्ञान और उसके अनुसार होनेवाला गाना।
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गायगोठ  : स्त्री० [हिं० गाय+गोठ] वह स्थान जहाँ गौएँ बाँधी या रखी जाती हैं। गोशाला।
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गायण  : पुं०=गायन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गायत  : वि० [अ०] १. बहुत अधिक। २. हद दरजे का। स्त्री० १. किसी वस्तु की अधिकता। २. गरज। मतलब।
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गायताल  : पुं० [हिं० गाय+ताल] निकृष्ट या निकम्मा चौपाया। वि० निकम्मा और निकृष्ट। रद्दी।
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गायताल खाता  : पुं० [हिं०] खाते या बही का वह अंश जिसमें ऐसी रकमें लिखी जाती हैं जिनके वसूल होने की बहुत ही कम आशा होती है।
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गायत्र  : पुं० [सं० गायत्√त्रै (रक्षा करना)+क] [स्त्री० गायत्री] गायत्री छंद।
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गायत्री  : पुं० [सं० गायत्र+ङीष्] १. एक प्रकार का वैदिक छंद। २. उक्त छंद में रचित एक प्रसिद्ध मंत्र जो भारतीय आर्यों में परम पवित्र माना जाता है। सावित्री। ३. दुर्गा। ४. गंगा। ५. छः अक्षरों की एक प्रकार की वर्णिक वृत्ति जिसके कई भेद है। ६. खैर का पेड़।
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गायन  : पुं० [सं०√गै+ल्युट्-अन] १. गाने की क्रिया या भाव। २. गाई जाने वाली छन्दात्मक रचना। गीत। गान। ३. गवैया। गायक। ४. कार्तिकेय।
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गायब  : वि० [अ०] जो सहसा अन्तर्धान हो गया अथवा परोक्ष में चला गया हो। जो आँखों से ओझल हो गया हो। लुप्त। मुहावरा–(कोई चीज) गायब करना=चालाकी या चोरी से कोई चीज उठा या हटा लेना। पद–गायब गुल्ला=जो इस प्रकार अदृश्य या लुप्त हो गया हो कि जल्दी उसका पता न चले। पुं० चौसर, शतरंज आदि खेलने का वह विशिष्ट कौतुकपूर्ण प्रकार जिसमें कोई कुशल खेलाड़ी स्वंय तो आड़ में छिपा बैठा रहता है और दूसरे खेलाड़ी की चाल का रूप या विवरण सुन कर ही उस चाल के उत्तर में अपने पक्ष की चाल चलने का आदेश देता है। विसात मोहरे आदि से अलग और दूर रहकर तथा उन्हें बिना देखें खेलने का ढंग या प्रकार। मुहावरा–गायब खेलना= उक्त प्रकार से आड़ में बैठकर चौसर शतरंज या ऐसा ही कोई खेल (बिना उसके उपकरण देखे) खेलना।
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गायब-बाज  : पुं० [अ०+फा०] [भाव० गायब-बाजी] वह खेलाड़ी जो गायब (चौसर शतरंज आदि) खेलता हो।
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गायबाना  : क्रि० वि० [अ० गायबानः] १. गुप्त रीति से। छिपे छिपे। २. किसी की चोरी से या पीठ पीछे।
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गायरौन  : पुं०=गोरोचन।
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गायित्री  : स्त्री०=गायत्री।
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गायिनी  : वि० स्त्री० [सं०√गै+णिनि-ङीष्] १. गानेवाली स्त्री। २. वह स्त्री जो गाकर अपनी जीविका का निर्वाह करती हो। ३. एक प्रकार का मात्रिक छंद।
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गार  : पुं० [अ० गार] १. नीची जमीन। २. गड्ढा। ३. जंगली जानवरों के रहने की माँद। ४. कंदरा। गुफा। वि० [फा०] एक विशेषण जो संयुक्त पदों के अंत में अव्यय की तरह लगकर ये अर्थ देता है–(क) करनेवाला, जैसे–खिदमतगार, गुनहगार, सितमगार। (ख) साधन। जैसे–रोजागार (अर्थात् रोज का साधन)। स्त्री०=गाली। उदाहरण–सुनहुँ ब्रज बसि स्रवन मैं ब्रज बासिनिन की गार।–नागरीदास। पुं०=गारा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गारत  : स्त्री० [अ.] लूट-मार। वि.-ध्वस्त। नष्ट। बराबद।
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गारद  : स्त्री० [अं.गार्ड] १.सिपाहियों और सैनिकों का वह छोटा दल या दस्ता जो किसी स्थान की रक्षा के लिए नियुक्त किया गया हो। २.पहरा। मुहावरा-गारद में रखना=पहरे में रखना (अपराधियों आदि के)।
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गारना  : स० [सं० गालन] १.निचोड़ना। २. पानी के साथ घिस या रगड़कर किसी चीज या रस या सार भाग निकालना। जैसे–चंदन गारना। ३. पानी में डालकर किसी चीज को गलाना या घुलाना। ४. गिराना,निकालना या बहाना। जैसे–आँसू गारना। उदाहरण–तुम कटु गरल न गारो।–मैथिलीशरण। ५. निकाल या हटाकर अलग या दूर करना। ६. त्यागना। ७. खोना। गँवाना। ८. क्षीण या नष्ट करना। जैसे–तपस्या करके शरीर गारना। ९. किसी का अभिमान चूर्ण करना। उदाहरण–द्रौपदी को चीर बढ्यौ दुस्सासनै गारी।–सूर।
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गारभेली  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का जंगली फलसे का वृक्ष जो पूर्वी भारत तथा हिमालय की तराई में होता है।
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गारा  : पुं० [हिं० गारना] १. दीवारों आदि की जुड़ाई करने के लिए मिट्टी को पानी में सानकर तैयार किया हुआ लसदार घोल। २. उक्त काम के लिए सुर्खी, चूने आदि का तैयार किया हुआ मसाला। ३. मछलियों के खाने का वह चारा जो उन्हें फँसाने के लिए बंसी में लगाया जाता है। उदाहरण–नेह नीर बंसी नयन, बतरस गारौ लाई। विक्रम सतसई। वि० १. गीला। तर। २. उदासीन। खिन्न। मुहावरा–जी गारा करना=किसी की ओर से उदासीन या खिन्न होना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अ० गार?] वह नीची भूमि जहाँ वर्षा का पानी जमा होता हो। पुं० [?] दोपहर के समय गाया जानेवाला संकीर्ण जाति का एक राग। मुहावरा–गारा करना=विस्तारपूर्वक और बार-बारकोई बात कहना या सुनना।
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गारा कान्हड़ा  : पुं० [देश०] संपूर्ण जाति का एक संकर राग जो संध्या समय गाया जाता है।
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गारि  : स्त्री०=गाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गारी  : स्त्री०=गाली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गारु  : वि० [सं० गुरु] भारी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गारुड़  : वि० [सं० गरुड़+अण्] गरुड़ संबंधी। गरुड़ का। पुं० १. साँप का विष उतारने का एक प्रकार का मंत्र जिसके देवता गरुड़ कहे गये है। २. गरुड़ के आकार की एक प्रकार की सैनिक व्यूह रचना। ३. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र। ४. पन्ना या मरकत नामक रत्न। ५. सोना। स्वर्ण। ६. गरुड़ पुराण।
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गारुड़ि  : पुं० [सं० गरुड़+इञ्] १. संगीत में आठ प्रकार के तालों में से एक। २. दे० ‘गारुड़ी’।
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गारुड़िक  : पुं०=गारुड़ी।
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गारुड़ी(ड़िन्)  : पुं० [सं० गारुड़+इनि] १. वह व्यक्ति जो साँप का विष मंत्रबल से उतार देता हो। २. मंत्र से अथवा और किसी प्रकार साँप पकड़ने अथवा उसे वश में करनेवाला व्यक्ति। ३. सँपेरा।
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गारुत्मत  : पुं० [सं० गरुत्मत्+अण्] १. मरकत का पन्ना नामक रत्न। २. गरुड़ का अस्त्र।
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गारुरी  : पुं०-गारूड़ी। उदाहरण–जाँवत गुनी गारुरी आवे।–जायसी।
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गारो (रौ)  : पुं० [सं० गर्व] १. अभिमान। गर्व। उदाहरण–क्षुद्र पतित तुम तारि रमापति अब न करौ जिय गारौ।–सूर। २. गौरव। ३. प्रतिष्ठा। मान।
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गार्ग  : वि० [सं० गर्ग+अण्] गर्ग संबंधी।
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गार्गि  : पुं० [सं० गर्ग+इञ्] गर्ग मुनि का पुत्र या वंशज।
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गार्गी  : स्त्री० [सं० गर्ग+यञ्-ङीष्,यलोप] १. गर्ग गोत्र की एक प्रसिद्ध ब्रह्मवादिनी विदुषी जिसकी कथा वृहदारण्यक उपनिषद् में है। यह याज्ञवल्क्य की पत्नी थी। २. दूर्गा।
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गार्गीय  : वि० [सं० गर्ग+छञ्-ईय] [वि० स्त्री० गार्गेयी] १. जिसका जन्म गर्ग गोत्र में हुआ हो। २. गर्ग संबंधी।
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गार्ग्य  : वि० [सं० गर्ग+यञ्] –गार्गेय। पुं० एक प्राचीन वैयाकरण का नाम।
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गार्जर  : पुं० [सं० गर्जर+अण्] गाजर नामक कंद।
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गार्ड  : पुं० [अं०] १. पहरा देनेवाला व्यक्ति। २. रक्षा करनेवाला व्यक्ति। रक्षक। ३. देख-रेख या निगरानी करनेवाला व्यक्ति। निरीक्षक। ४. रेलवे का वह अधिकारी जो रेलगाड़ी के साथ उसकी देख-रेख और व्यवस्था करने के लिए रहता है।
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गार्डन  : पुं० [अं०] उद्यान। बगीचा।
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गार्डन-पार्टी  : स्त्री० [अं०] उद्यान-गोष्ठी।
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गार्दभ  : वि० [सं० गर्दभ+अण्] गर्दभ-संबंधी। गधे का।
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गार्ध्र  : वि० [सं० गृध्र+अण्] गृध्र-संबंधी। पुं० १. लालच। लोभ। २. तीर। बाण।
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गार्भ  : वि० [सं० गर्भ+अण्] १. गर्भ संबंधी। गर्भ का। २. गर्भ से उत्पन्न होनेवाला। पुं० वे सब काम जो गर्भ के पोषण, रक्षण आदि के लिए किये जाते हो।
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गार्हपत्य  : वि० [सं० गृहपति+ञ्य] गृहपति संबंधी। पुं० १. गृहपति होने की अवस्था पद या भाव। २. दे० गार्हपत्याग्नि।
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गार्हपत्याग्नि  : स्त्री० [सं० गार्हपत्य-अग्नि,कर्म० स०] छः प्रकार की अग्नियों में पहली और प्रधान अग्नि जिसका रक्षण गृहपति का कर्तव्य होता था।
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गार्हपात  : वि० [सं० गृहपति+अण्] गृहपति संबंधी। पुं० गृहपति का अभाव। गृहपतित्व।
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गार्हमेध  : पुं० [सं० गार्ह, गृह+अण्, गार्ह-मेध, कर्म० स०] गृहस्थ के लिए आवश्यक धार्मिक कृत्य या यज्ञ। पंच महायज्ञ।
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गार्हस्थ्य  : पुं० [सं० गृहस्थ+ष्यञ्] १. गृहस्थ होने की अवस्था या भाव। २. गृहस्थाश्रम। ३. पंच महायज्ञ।
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गार्हस्थ्य-विज्ञान  : पुं० [ष० त०] वह विज्ञान जिसमें घर के काम-काज (जैसे खाना पकाना, सीना पिरोना, बच्चे पालना आदि) संबंधी बातें बताई जाती है। (डोमेस्टिक सायन्स)
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गाल  : पुं० [सं० प्रा० द्र० पं० गल्ल, उ० बं० मरा० गाल, सि० गलु] १. मुख विवर और नासिका के दोनों ओर कनपटी तक के बाहरी विस्तार जिनसे जबड़े ढके रहते हैं। कनपटी के आस-पास नीचे और सामने का अंग। कपोल। मुहावरा–गाल फुलाना= (क) गर्व सूचक आकृति बनाना। अभिमान प्रकट करना। (ख) मौन रहकर अथवा रूठकर रोष प्रकट करना। २. उक्त अंगों के बीच का वह भाग जो मुँह के अन्दर होता है और जिससे खाने पीने बोलने आदि में सहायता मिलती है। मुहावरा–गाल में चावल भरना या भरे होना=ऐसी स्थिति होना कि जान-बूझकर चुप रहना पड़े अथवा बहुत धीरे धीरे रुक-रुक कर मुँह से बातें निकलें। (किसी के) गाल में जाना=किसी का कौर या ग्रास बनना। किसी के द्वारा खाया जाना। जैसे–काल (या शेर) के गाल में जाना। गाल में भरना=कोई चीज खाने के लिए मुँह में भरना या रखना। ३. बहुत बढ़-चढ़कर बातें करने की प्रवृत्ति या स्वभाव। मुँहजोरी। मुहावरा–गाल करना=बढ़-बढ़कर या उद्धंडतापूर्वक बातें करना। गाल फुलाकर कोई काम करना=अभिमानपूर्वक कोई काम करना। उदाहरण–बचन कहहिं सब गाल फुलाई।–तुलसी। गाल बजाना= (क) बहुत बढ़-बढ़कर व्यर्थ की बातें करना। (ख) डींग मारना। शेखी हाँकना। (ग) शिव के पूजन के समय मुँह में हवा भरकर दोनों गालों पर इस प्रकार हलका आघात करना कि बम या ऐसा ही और कुछ शब्द निकले। गाल मारना-गाल बजाना। ४. किसी चीज की उतनी मात्रा, जितनी एक बार खाने के लिए मुँह में रखी जाए। कौर। ग्रास। जैसे–(क) वह अनमने भाव से चार गाल खाकर चटपट उठ गया। (ख) वह एक एक पूरी का एक-एक गाल करता था। मुहावरा–गाल मारना=ग्रास मुख में रखना। कौर मुँह में डालना। ५. उतना अन्न जितना एक बार चक्की में पीसने के लिए मुट्ठी से डाला जाता है। झींक। ६. किसी चीज का बीचवाला अँश या भाग। पुं० [?] एक प्रकार का तमाखू का पत्ता। स्त्री०=गाली (पं० और राज०)।
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गालगूल  : पुं० [हिं० गाल+अनु०] इधर-उधर की अनाप-शनाप या व्यर्थ की बातें। गपशप।
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गालन  : पुं० [सं०√गल् (क्षरित होना)+णिच्+ल्युट्] १. गलाने की क्रिया या भाव। २. किसी तरल पदार्थ को इस प्रकार एक पात्र में से दूसरे पात्र में पहुँचाना या ले जाना कि उसमें की मैल पहलेवाले पात्र में ही रह जाए। (फिल्टरेशन) ३. निचोड़ना।
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गालना  : अ० [हिं० गाल] बाते करना। बोलना। स० गाल में रखकर खाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गालबंद  : पुं० [हिं० गाल+बंद] एक प्रकार का बंधन जिसमें चमड़े के तस्मे को किसी काँटी में फँसाकर अँटकाते है। (जहाजी)।
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गालमसूरी  : स्त्री० [हिं०] मध्य० युग का एक प्रकार का पकवान। उदाहरण-दूध बरा उत्तम दधि बाटी गालमसूरी की रुचि न्यारी।–सूर।
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गालव  : पुं० [सं०√गल् (चुआना या खाना)+घञ्, गाल√वा(गति,गंध)+क] १. एक प्राचीन ऋषि का नाम जो विश्वामित्र के शिष्य थे। २. पाणिनी से पहले के एक प्राचीन वैयाकरण। ३. एक प्राचीन स्मृतिकार आचार्य। ४. तेंदू का पेड़। ५. लोध का पेड़।
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गालव-माता  : स्त्री०=गल का (रोग)।
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गाला  : पुं० [हिं० गाल-ग्रास] १. धुनी हुई रूई का पहल जो चरखे पर सूत कातने के लिए बनाया जाता है। पूनी। पद–रूई का गाला=बहुत उज्जवल। प्रकाशमान। २. रूई का छोटा टुकड़ा जो बहुत हल्का होता और हवा में इधर-उधर उड़ जाता है। पुं० दे० गाल।
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गालित  : वि० [सं०√गल्+णिच्+क्त] १. गलाया हुआ। २. (तरल पदार्थ) जो एक पात्र में से दूसरे पात्र में इस प्रकार ले जाया गया हो कि उसमें की मैल पहलेवाले पात्र में रह गई हो। ३. निचोड़ा हुआ।
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गालिनी  : स्त्री० [सं०√गल्+णिच्+णिनि-ङीष्] तंत्र की एक मुद्रा।
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ग़ालिब  : वि० [अ०] १. जो किसी पर छाया हो। जिसने किसी पर अधिकार जमा लिया अथवा उसे अभिभूत कर लिया हो। २. विजयी। श्रेष्ठ।
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गालिबन्  : क्रि० वि० [अ०] संभावना है कि। संभवतः।
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गालिम  : वि० [अ० गालिब] १. जिसने किसी को दबा लिया हो। प्रचंड। प्रबल।
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गाली  : स्त्री० [सं० गालि] १. प्रायः क्रुद्ध होने पर किसी को कही जानेवाली कोई ऐसी अश्लील तथा गर्हणीय बात जिसमें किसी के आचरण प्रतिष्ठा स्थिति आदि पर अनुचित आक्षेप या आरोप किया गया हो। दुर्वचन। क्रि० प्र०–खाना।–देना।–निकालना।–बकना। २. विवाह आदि शुभ अवसरों पर गाये जानेवाले वे गीत जिनमें लोगों को परिहास के लिए कलंक-सूचक बातें कही जाती हैं।
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गाली-गलौज  : स्त्री० [हिं० गाली+गलौज अनु०] दोनों पक्षों का एक दूसरे को गालियाँ देना।
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गाली-गुफ्ता  : पुं०=गाली गलौच।
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गालू  : वि० [हिं० गाल] १. गाल बजानेवाला। बढ़-बढ़कर बातें करनेवाला। २. बकवादी।
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गाल्हना  : अ० स०=गालना।
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गाँव  : पुं० [सं० ग्राम,पा० प्रा०, गु० गाम, अप० गाँअ, बँ० उ० गाँ,ने०सिं० गाँउँ, मरा० गाँव, गाव] [वि० गँवार, गँपारू] १. खेती बारी आदि करनेवाले लोगों की छोटी बस्ती जिसमें १॰-२॰ या १॰॰-२॰॰ घर हों। खेड़ा। मुहावरा–गाँव मारना=गाँव में पहुँचकर डाका डालना और वहाँ के सब लोगों को लूटना। २. मनुष्यों की बस्ती। ३. जगह। स्थान। उदाहरण–एक तुम्हारे ह्रै पिय प्यारे छाँड़ि और सब गाँव।–भारतेंदु। ४. बस्ती। ५. रहस्य संप्रदाय में काया या शरीर।
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गाव  : स्त्री०=गाय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=बैल।
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गाव-कौहान  : पुं० [फा०] ऐसा घोड़ा जिसकी पीठ पर बैल की तरह कूबड़ निकला हो।
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गाव-खुर्द  : वि० [फा०] १. गायब। लापता। २. नष्ट-भ्रष्ट।
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गाव-गिल  : स्त्री० [फा०] व्योड़ी नामक रंग।
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गाव-तकिया  : पुं० [फा०] एक प्रकार का लंबा, गोल तथा मोटा तकिया जिसके सहारे प्रायःरईस लोग गद्दी पर बैठते है। मसनद।
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गाँव-पंचायत  : स्त्री०=ग्राम पंचायत।
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गाव-पछाड़  : स्त्री० [हिं० गाव-गरदन+पछाड़] कुश्ती का पेंच जिसमें विपक्षी को गले से पकड़कर गिरा दिया जाता है।
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गाँव-सभा  : स्त्री०=ग्राम पंचयात।
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गाव-सुम्मा  : पुं० [हिं० गाव+सुम-खुर] फटे हुए खुरोंवाला घोड़ा।
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गावकुशी  : स्त्री० [फा०] गोवध। (दे०)
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गावकुस  : पुं० [सं० ग्रीवा=गला+कुश=फल] (घोड़े आदि की) लगाम। (डिं०)।
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गाँवटी  : वि० [हिं० गाँव] १. गाँव में रहने या होनेवाला। गाँव का। देहाती। उदाहरण–गाँवटी और जंगली जानवरों के चरने से।–वृंदावन लाल वर्मा। २. दे० ‘गँवार’।
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गावड़  : स्त्री० [सं० ग्रीवा] गला। गर्दन। (डि०)
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गावड़ी  : स्त्री० १.=गाय। २.=गावड़।
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गावदी  : वि० [हिं० गाय+सं० धी] १. सीधा-सादा या ना समझ (व्यक्ति)। २. मूर्ख। ज़ड़।
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गावदुम  : वि० [फा०] १. जो गाय की दुम (पूँछ) की तरह एक ओर मोटा और दूसरी ओर बराबर पतला होता गया हो। २. ढालुवाँ।
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गावदुमा  : वि=गावदुम।
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गावना  : स०=गाना।
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गावल  : पुं० [?] दलाल।
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गावलाणि  : पुं०=गावल्गणि। (संजय)।
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गावली  : स्त्री०=दलाली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गावल्गणि  : पुं० [सं० गवल्गण+इञ्] संजय का एक नाम।
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गावी  : स्त्री० [देश०] बड़ी समुद्री नावों का पाल।
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गाँस  : स्त्री० [हिं० गासना] १. तीर बरछी भाले आदि हथियारों का नुकीला फल। २. उक्त फलका अथवा किसी नुकीली वस्तु (जैसे–काँटा या सुई) का वह टुकड़ा जो टूटकर घाव के अन्दर रह गया हो और बहुत कष्ट देता हो। ३. किसी के प्रति मन में बैठा हुआ द्वेष या वैर जो बदला लेने की प्रेरणा करता हो। मनोमालिन्य। मुहावरा–(मन की) गाँस निकालना=शत्रु से बदला चुकाकर अपना मन शांत करना। ४. मन में खटकने या चुभनेवाली बात। उदाहरण–प्रीतम के उर बीच भये दुलही को विलास मनोज की गासी।–मतिराम। ५. कष्ट या पीड़ा देनेवाली कोई चीज या बात। ६. किसी प्रकार का बंधन या रुकावट। मुहावरा–(किसीको) गाँस में रखना=अपने अधिकार या वश में रखना। ७. दे० ‘गाँठ’।
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गास  : पुं० [सं० ग्रास] १. विपत्ति। संकट। २. दुख। कष्ट।
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गाँसना  : स० [हिं० गाँस] १. हिन्दी ‘गँसना’ का सकर्मक रूप। २. छेद करके दो चीजों को एक में मिलाते हुए अच्छी तरह फँसाना, लगाना या सटाना। ३. किसी चीज में गाँसी या नुकीली चीज गड़ाना या धँसाना। मुहावरा–(कोई बात मन में) गाँसकर रखना=कोई अप्रिय या खटकनेवाली बात अच्छी तरह मन में जमा या बैठाकर रखना। उदाहरण–तुम वह बात गाँसि करि राखी हम कौ गई भुलाई।–सूर। गाँसकहना=गाँसकर रखना। ४. अच्छी तरह बाँधकर या रोककर अपने अधिकार, नियंत्रण या शासन में रखना। ५. किसी चीज में कुछ ठूँस या भरकर रखना। ६. जहाज के पेंदें के छेदों में उन्हें बंद करने के लिए मसाला भरना। (लश०)
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गासिया  : पुं० [अ० गाशियः] घोड़े की जीन पर बिछाने का कपड़ा। जीनपोश।
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गाँसी  : स्त्री०=गाँस।
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गाह  : स्त्री० [सं० गाथा] गाथा ( दे०) उदाहरण–छंद प्रबंध कवित्त जति साटक गाह दुहत्थ।–चंदवरदाई। पुं० [सं०√गह्(गहना+घञ्)] गहनता। गहराई। पुं० [सं० ग्राह] १.ग्राहक। २. पकड़। ३. ग्राह। मगर। स्त्री० [फा०] १. कोई विशिष्ट स्थान। जैसे–बंदरगाह, शिकारगाह। २. कोई विशिष्ट काल।
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गाँहक  : पुं०=गाहक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गाहक  : पुं० [सं०√गाह (गोता लगाना)+ण्वुल्-अक] अवगाहन करनेवाला। पुं०-ग्राहक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) मुहावरा–(किसी के) जी या प्राण का गाहक होना=किसी की जान लेने पर उतारू होना।
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गाहकताई  : स्त्री० [सं० ग्राहकता] १. ग्राहक होने की अवस्था या भाव। २. कदरदानी। गुण-ग्राहकता।
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गाहकी  : स्त्री० [हिं० गाहक] १. गाहक। ग्राहक। २. गाहक के हाथ माल बेचने की क्रिया।
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गाहटना  : स० [सं० गाह्] १. मथना। बिलोडना। २. नष्ट-भ्रष्ट करना। उदाहरण–रिण गाहटतैं राय खलाँ रिण।–प्रिथीराज।
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गाहन  : पुं० [सं० ग्रहण] पकड़ने की क्रिया या भाव। ग्रहण। पुं० [सं०√गाह्+ल्युट्-अन] पानी में पैठकर गोता लगाना।
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गाहना  : स० [सं० अवगाहन] १. पानी में पैठना या धँसना। २. पानी में गोता लगाकर थाह लेना। ३. किसी विषय या बात की गहराई की थाह लेना। अवगाहन करना। ४. जल आदि को क्षुब्ध करना। आलोड़न करना। ५. अनाज के डंठलों को डंडे से पीसकर उनके दाने गिराना या झाड़ना। उदाहरण–चैत काटा और गाहा नहीं कि भाँवर पड़वा दूँगा।–वृन्दावनलाल। ६. खेत में हेगा या पाटा चलाना। ७. चलते हुए चक्कर चलाना या दूर तक जाना। ८. कुछ ढूँढते के लिए इधर-उधर दौड़ना-धूपना और परेशान होना। ९. जहाज की दरारों में सन आदि भरना। काल-पट्टी करना। (लश०) १॰. व्यवस्था बिगाड़ना। गड़बड़ा देना।
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गाहा  : स्त्री० [सं० गाथा, प्रा० गाहा] १. किसी प्रकार का कथात्मक चरित्र वर्णन। वृत्तान्त। २. आर्या छंद का दूसरा नाम।
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गाहिता(तृ)  : वि० [सं०√गाह्+तृच्] १. गोता लगाने या स्नान करनेवाला। २. गाहन करनेवाला।
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गाहिनी  : स्त्री० [सं०√गाह्+णिनि-ङीप्] एक प्रकार का विषम वृत्त या छंद जिसके चारों चरणों में क्रम से २२, २॰, १८ और १२ मात्राएँ होती हैं। यह सिंहनी छंद का बिलकुल उलटा होता है।
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गाही  : स्त्री० [हिं० गहना-ग्रहण] वस्तुएँ (विशेषतः फल आदि) पाँच पाँच के समूहों में बाँटकर गिनने का एक मान। जैसे-१॰ गाही (अर्थात् ५॰) आम। पद-गाही के गाही=बहुत अधिक।
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गाहू  : स्त्री०=उपगीति (छन्द)।
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गाहे-बगाहे  : क्रि० वि० [फा०] १. बीच बीच में कुछ स्थानों पर। इधर-उधर। २. बीच बीच में। थोड़े थोड़े समय पर। कभी कभी।
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गिआन  : पुं०=ज्ञान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिआस  : स्त्री०=गयास।
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गिउ  : पुं०=ग्रीवा। (गला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिगनार  : पुं०=गगन। उदाहरण–चाँद चढ़यो गिगनार किरत्याँ ढल रहियाँ जी ढल रहियाँ।–राज० लोकगीत।
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गिचपिच  : वि० [अनु०] १. (लिखावट या लेख) जो स्पष्ट न हो और सटा सटाकर कर लिखा गया हो। २. एक दूसरे में भद्दी तरह से मिला हुआ।
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गिचिर-पिचिर  : वि०=गिचपिच।
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गिजई  : स्त्री० [देश०] १. सलमें के काम का एक प्रकार का तार। २. हाथ में पहनने का एक प्रकार का आभूषण।
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गिजगिजा  : वि० [अनु०] [स्त्री० गिजगिजी] १. (खाद्यवस्तु) जो मुलायम तथा गीली हो जो करारी अथवा सूखी न हो। जैसे–गिजगिजा आम, गिजगिजी रोटी। २. गुदगुदा या मांसल।
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गिँजना  : अ० [हिं० गींजना] किसी पदार्थ का हाथ आदि से ठीक प्रकार से व्यवहार या स्पर्श न किये जाने के कारणखराब या कुछ मैला होना। गींजा जाना।
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ग़िज़ा  : स्त्री० [अ०] १. खाद्यपदार्थ। खूराक। २. पौष्टिक भोजन।
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गिंजाई  : स्त्री० [हिं० गीजना] गिँजने या गीजें जाने की क्रिया या भाव। स्त्री० [सं० गृंजन] एक प्रकार का छोटा बरसाती कीड़ा। ग्वालिन। घिनौरी।
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गिटकिरी  : स्त्री० [अनु०] तान लेने में विशेष प्रकार से स्वर कँपाना जो बहुत कर्ण मधुर होता है। (संगीत) स्त्री०=गिट्टी।
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गिटपिट  : स्त्री० [अनु०] किसी के मुँह से निकलने वाले ऐसे शब्द या बातें जो सहसा श्रोताओं की समझ में न आती हों। मुहावरा–गिटपिट करना=ठीक प्रकार से कोई बात न कह पाना। टूटी फूटी या अशुद्ध भाषा में बातें करना।
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गिट्टक  : स्त्री० [हिं० गिट्टा] १. चिलम के नीचे रखने का ककंर। चुगल। २. धातु पत्थर आदि का छोटा टुकड़ा। गिट्टी। ३. फलों की गुठली। जैसे–आमकी गिट्टक। ४. गिटकिरी लेने में स्वर का वह सबसे छोटा अंश जो कंठ के एक ही कंप से या एक बार में निकलता है । दाना। (संगीत)।
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गिट्टा  : पुं० [सं० गिरिज, हिं० गेरू+टा (प्रत्यय)] १.चिलम के छेद में रखा जानेवाला ईट,पत्थर आदि का छोटा टुकड़ा। २. कंकड़ पत्थर आदि का छोटा टुकड़ा। ३. पैर के तलवे और पिडली के बीच की मोटी उभरी हुई हड्डी। टखना।
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गिट्टी  : स्त्री० [हिं० गिट्टा] १. ईट (या पत्थर) को फोड़कर उसके किये हुए टुकड़ों का सामूहिक नाम। २. मिट्टी के बरतन का टूटा हुआ छोटा टुकड़ा। ३. चिलम की गिट्टक। ४. वह फिरकी जिस पर बादले का तार लपेटा जाता है।
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गिठुआ  : पुं० [देश०] जुलाहे का करघा।
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गिठुरा  : पुं०=गेठुरा।
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गिड़  : पुं० [?] सूअर। उदाहरण–जिण बन भूल न जीवता गैद गिवल गिड़राज।–कविराजा सूर्यमल।
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गिड़गिड़ाना  : अ० [अनु०] अपनी असहाय अथवा दुःखद स्थिति की दीनतापूर्वक चर्चा करते हुए सहायता की प्रार्थना करना।
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गिड़गिड़ाहट  : स्त्री० [हिं० गिड़गिड़ाना] १. गिड़गिड़ाने की क्रिया या भाव। २. बहुत गिड़गिड़ाकर की जानेवाली प्रार्थना।
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गिडंद  : पुं० [सं,.गयंद] मतवाला हाथी। उदाहरण–जंघा कदली खंभ गिड़ंद गयवर गति डोलै।–जटमल।
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गिँड़नी  : स्त्री० [देश०] एक पौधा जिसकी छोटी किन्तु लंबोतरी पत्तियों का साग बनता है।
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गिड़राज  : पुं० [सं० ग्रहराज] सूर्य। (डिं०)।
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गिँडुरी  : स्त्री० दे० ‘इँडुआ’।
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गिँडुवा  : पुं०=तकिया।
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गिड्डा  : वि० [देश०] आकार या कद के विचार से ठिगना। नाटा।
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गिद  : पुं० [सं० अव्युत्पन्न शब्द] रथपालक देवता। स्त्री० [देश०] आँख में का कीचड़।
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गिंदर  : पुं० [देश०] फसल को हानि पहुँचाने वाला एक प्रकार का कीड़ा।
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गिंदुक  : पुं० [सं०=गेन्दुक, पृषो० सिद्धि] छोटा गेंद।
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गिँदौड़ा(दौरा)  : पुं० [फा० कंद+हिं० औड़ा (प्रत्यय)] [स्त्री० अल्पा० गिँदौड़ी] चीनी मिसरी आदि की जमाई हुई गोलाकार मोटी परत।
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गिद्दा  : पुं० [हिं० गीत] स्त्रियों के गाने के एक प्रकार के गीत। नकटा पुं०गट्टा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिद्ध  : पुं० [सं० गृध्र] १. लंबी गरदनवाला एक प्रकार का प्रसिद्ध मांसाहारी बड़ा पक्षी जो शव आदि खाता है। २. बहुत बड़ा चालाक या धूर्त। काइयाँ। ३. एक प्रकार का बड़ा कनकौआ या पतंग। ४. छप्पय छंद का एक भेद।
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गिद्धराज  : पुं० [हिं० गिद्ध+राज] जटायु।
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गिधना  : अ० दे० ‘गीधना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गिन-तारा  : पुं० [हिं० गिनना+तार] वह चौखटा जिसमें क्षैतिज या बड़े बल में कई ऐसे तार लगे होते हैं जिनमें छोटी गोलियाँ पिरोई रहती हैं। और जिनके द्वारा छोटे बच्चों को गिनती सिखाई जाती हैं। (एबेकस)।
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गिनगिनाना  : अ०=गनगनाना।
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गिनती  : स्त्री० [हिं० गिनना] १. बहुत सी चीजों का एक दो तीन करते हुए गिनने की क्रिया या भाव। जैसे–पुस्तकों या सिपाहियों की गिनती। मुहावरा–(किसी को) गिनती में लाना या समझना=आदर करने या महत्व देने के योग्य समझना। पद–गिनती के=संख्या में बहुत थोड़े। जैसे–वर्षा के कारण आज की बैठक में गिनती के ही कुछ लोग आ सके। गिनती गिनने या गिनाने के लिए-नाम मात्र को। २. तादाद। संख्या। ३. उपस्थिति की जाँच। हाजिरी। ४. एक से सौ तक की अंक माला।
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गिनना  : स० [सं० गणन] १. संख्यासूचक अंको का नियमित क्रम से उच्चारण करना। गिनती करना। २. वस्तुओं अथवा उनके समूहों की कुल संख्या जानने के लिए उनकी नियमित क्रम से गणना करना। जैसे–आम या रुपए गिनना। पद-गिन गिनकर= (क) अच्छी और पूरी तरह से। जैसे–गिन-गिनकर मारना या सुनाना। (ख) एक एक करके और बहुत कठिनता से। जैसे–गिन-गिनकर दिन बिताना। (ग) बहुत धीरे-धीरे और सावधानता से। जैसे–गिन-गिनकर पैर रखना। ३. कुछ महत्व का या महत्वपूर्ण समझना। जैसे–वह तुम्हें क्या गिनता है। (अर्थात् कुछ नहीं समझता।)
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गिनवाना  : स० [हिं० गिनना] गिनने का काम दूसरे से कराना।
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गिनाना  : स० [हिं० गिनना का प्रे०] गिनने का काम दूसरे से कराना। गिनवाना। अ० गिनती में आना। गिना जाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिनी  : स्त्री० [अं०] १. इंग्लैड़ में प्रचलित एक प्रकार का सोने का सिक्का। २. एक प्रकार की लंबी विलायती घास जो मैदानों में लगाई जाती है।
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गिन्ती  : स्त्री०=गिनती।
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गिन्नी  : स्त्री० [हिं० घिरनी] १. चक्कर। २. घुमाने का चक्कर या खिलाने की क्रिया। स्त्री०=गिनी।
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गिम  : स्त्री० [सं० ग्रीवा] गरदन। गला। उदाहरण–गिम सजों लावल मुकुता हारे।–विद्यापति।
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गिमटी  : स्त्री० [अं० डिमटी] एक प्रकार का बढ़िया मजबूत सूती कपड़ा।
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गियँ  : स्त्री०=ग्रीवा। (गला)। उदाहरण=कंचन तार बाँधि गियँ पाती,–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिय  : पुं० =गिउ। (गला)।
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गियान  : पुं० =ज्ञान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गियाह  : पुं० [सं० हय] एक प्रकार का घोड़ा। घोड़ों की एक जाति।
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गिर  : पुं० [सं० गिरि से] गिरनार काठियावाड़ के देश का भैसा। पुं०-गिरि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (गिर के यौ० के लिए दे० गिरि के० यौ०) स्त्री०=गिरा। (वाणी)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गिरई  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की छोटी मछली।
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गिरक्षण  : पुं०=गिद्ध। (राज०) उदाहरण–कायर केरे मांस को गिरक्षण कबहुँ न खाइ।–जटमल।
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गिरगट  : पुं०=गिरगिट।
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गिरगिट  : पुं० [सं० कृकलास या गलगवि] छिपकली की जाति का एक जंतु जो आवश्यकतानुसार अपना रंग बदल लेता है। मुहावरा–गिरगिट की तरह रंग बदलना=कभी कुछ और कभी कुछ करना, कहना या मानना। एक बात पर स्थिर न रहना।
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गिरगिटान  : पुं०=गिरगिट।
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गिरगिट्टी  : स्त्री० [?] एक प्रकार का छोटा पेड़ जिसकी छाल खाकी रंग की होती है।
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गिरगिरी  : स्त्री० [अनु०] चिकारे या सारंगी की तरह का एक प्रकार का खिलौना।
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गिरजा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पक्षी जो कीड़े मकोड़े खाता है। पुं० [पुर्त० इग्रिजिया] ईसाइयों का प्रार्थना मंदिर। स्त्री०=गिरिजा।
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गिंरट  : पुं० [अं० गार्नेट] १. ग्वारनट नाम की बढ़िया रेशमी कपड़ा। २. एक प्रकार का देशी मलमल।
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गिरंथ  : पुं०=ग्रंथ।
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गिरद  : अव्य० =गिर्द।
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गिंरदा  : वि० [फा० गीर-पकड़नेवाला] १. पकड़ने या पकड़कर रखनेवाला। २. फंदे में फँसने वाला। उदाहरण–हँस हँस मन मूलि लिया बे बड़ा गरीब गिरंदा है।–आनन्दघन।
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गिरदा  : पुं० [फा० गिर्द] १. घेरा। २. चक्कर। ३. तकिया। ४. हलवाइयों आदि का काठ का बडा थाल। ५. कपड़े का वह गोल टुकड़ा जो हुक्कें के नीचे रखा जाता है। ६. गतके का वार रोकने की ढाल। फरी। ७. खजरी ढोल आदि का मेंडरा।
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गिरदागिरद  : क्रि० वि० =गिर्दागिर्द।
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गिरदान  : पुं० १.=गिरगिट। २. =गरदान।
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गिरदाब  : पुं० [फा० गिर्दाब] पानी का भँवर।
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गिरदाली  : स्त्री० [फा० गिर्द] लोहारों का एक उपकरण जिससे वे गलाया हुआ लोहा के स्थान पर समेटते हैं।
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गिरदावर  : पुं० [फा०] वह अधिकारी जो किसी क्षेत्र में घूम-घूमकर कामों की जाँच या देख-रेख करता हो।
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गिरदावरी  : स्त्री० [फा०] गिरदावर का काम या पद।
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गिरदीह  : क्रि० वि० [फा० गिर्द] आस-पास। इर्द-गिर्द। उदाहरण–नरनाहाँ वर गड्ढ गाह गिरदीह दुअनधर।–चन्दवरदाई।
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गिरधर  : वि० पुं०=गिरिधर।
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गिरधारन  : पुं० दे० ‘गिरिधर’।
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गिरधारी  : पुं० दे० ‘गिरिधर’।
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गिरना  : अ० [सं० गलन] १. किसी उच्च स्तर या स्थल पर स्थित वस्तु का अचानक तीव्र गति से जमीन पर आ पड़ना। जैसे–(क) आकाश से हवाई जहाज या तारा गिरना। (ख) छत पर से लड़के का नीचे गिरना। २. किसी ऊँचे स्थान पर बँधी लगी या लटकती हुई वस्तु का अपने आधार से छूट या टूटकर नीचे के स्थल पर आ पड़ना। जैसे–(क) पेड़ से पत्ता या फल गिरना। (ख) कुएँ में बाल्टी गिराना। ३. जमीन को आधार बनाकर उस पर खड़ी होने, बैठने अथवा चलनेवाली वस्तु का जमीन पर पड़ या लेट जाना। जैसे–(क) दीवार या छत गिरना। (ख) कुरसी या मेज गिरना। (ग) चलती हुई गाडी या दौड़ता हुआ लड़का गिरना। पद–गिरता पड़ता या गिर पड़कर=बहुत कठिनाई या मुश्किल से। गिरा-पड़ा(देखें)। ४. किसी धारा या प्रवाह का नदी या समुद्र में मिलना। जैसे–गंगा नदी कलकत्ते के पास समुद्र में गिरती है। ५. किसी उच्च विभाग,श्रेणी स्थिति आदि में आना। नीचे आना। जैसे–तापमान गिरना, पारा गिरना। ६. लाक्षणिक अर्थ में प्रसम स्तर या मान्य आदेश से किसी चीज का अवनति या घटाव पर होना। जैसे–चरित्र गिरना। ७. कारोबार का कम या ठप्प होना। जैसे–बाजार गिरना। ८. किसी वस्तु के मूल्य में उतार या कमी होना। जैसे–चीजों का भाव गिरना। ९. किसी वस्तु को देखने लेने आदि के लिए बहुत से व्यक्तियों का एक साथ आ पहुँचना। जैसे–रासन की दुकान पर ग्राहकों का आ गिरना। १॰. किसी स्थान पर बहुत अधिक भीड़ जमने पर एक दूसरे को धक्के लगाना। जैसे–आदमी पर आदमी गिरना। ११. किसी ऐसे रोग का होना जिसके विषय में लोगों का विश्वास हो कि उसका वेग ऊपर से नीचे को आता है। जैसे–नजला गिरना, फालिज (लकवा) गिरना। १२. सहसा बहुत अधिक मात्रा में उपस्थित या प्राप्त होना। आ पड़ना। जैसे–(क) सिर पर विपत्ति का पहाड़ गिरना। (ख) दिसावर से आकर बाजार में माल गिरना।
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गिरनार  : पुं० [सं० गिरि+हिं० नार=नगर] गुजरात में स्थित रैवतक नामक एक पर्वत जो जैनियों का तीर्थ हैं।
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गिरनारी, गिरनाली  : वि० [हिं० गिरनार] गिरनार पर्वत का। गिरनार संबंधी। पुं० गिरनार का निवासी।
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गिरफ्त  : स्त्री० [फा०] १. कोई चीज अच्छी तरह पकड़ने की क्रिया या भाव। पकड़। २. हथियारों का वह अंग जहाँ से वे पकड़े जाते हैं। ३. अपराध दोष, भूल आदि का पता लगाने का खास ढंग या हतकंड़ा।
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गिरफ्तार  : वि० [फ़ा०] १. जो कोई अपराध या दोष करने के कारण अधिकारियों द्वारा पकड़ा गया हो। २. कष्ट संकट आदि में ग्रस्त या फँसा हुआ।
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गिरफ्तारी  : स्त्री० [फा०] १. गिरफ्तार होने की अवस्था, भाव या क्रिया। २. कोई अभियोग लगने या अपराध करने पर उसके विचार के लिए राज्य द्वारा पकड़े जाने की क्रिया अवस्था या भाव। (अरेस्ट)
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गिरबान  : पुं० [सं० ग्रीवा] गर्दन। गला। पुं०-गरेबान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिरबूटी  : पुं० [सं० गिरि+हिं० बूटी] अंगूर शेफा। (देखें)।
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गिरंम  : वि०=भारी। उदाहरण–तरकस पंच गिरंम तीर प्रति खतँग तीन सय।–चंदवरदाई।
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गिरमिट  : पुं० [अं० गिमलेट-बड़ा वरमा] लकड़ी लोहे आदि में छेद करने का बड़ा बरमा। पुं० [अं० एग्रीमेंट] इकारनामा। संविदा पत्र।
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गिरमिटिया  : पुं० [हिं० गिरमिट] किसी उपनिवेश में गया हुआ शर्तबंद हिन्दुस्तानी मजदूर।
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गिरवर  : पुं०=गिरिवर।
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गिरवान  : पुं०=गीर्वाण। पुं० [फा० गेरबान] १. कुरते आदि में गले का भाग। २. गरदन। गला।
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गिरवाना  : स० [हिं० गिराना] १. किसी को कोई चीज गिराने में प्रवृत्त करना। २. किसी से तोड़ने फोड़ने या गिराने का काम करवाना। जैसे–मकान या दीवार गिरवाना।
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गिरवी  : वि० [फा०] १. (चीज) जो गिरों या रेहन रखी गयी हो। २. रेहन रखे हुए माल के संबंध रखनेवाला। रेहन संबंधी। स्त्री० गिरों। बंधक। रेहन।
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गिरवीदार  : पुं० [फा०] वह व्यक्ति जो दूसरों को रुपए उधार देने के बदले में उनकी वस्तुएँ अपने पास बंधक रखता हो। रेहनदार।
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गिरवीनामा  : पुं० [फा०] वह लेख्य जिसमें गिरों की शर्ते लिखी हों। रेहननामा।
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गिरवीपत्र  : पुं० दे० ‘गिरवीनामा’।
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गिरस्त  : पुं० [सं० गृहस्थ] १. पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुसलमान जुलाहे (कदाचित् गृहस्थ साधुओं के वंशज होने का कारण) २. दे०=गृहस्थ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिरस्ती  : स्त्री०=गृहस्थी।
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गिरह  : स्त्री० [सं० ग्रह से फा०] १. कपड़े डोरी आदि के सिरे को एक दूसरे में फँसाकर बाँधी जानेवाली गाँठ। २. किसी कपड़े धोती आदि के पल्ले में कोई चीज विशेषतः पैसे आदि रखकर तथा लपेटकर लगाई जानेवाली गाँठ जिसे लोग प्रायः कमर में खोंसते थे। पद-गिरहकट ( दे०) ३. खरीता। खीसा। जेब। ४. गाँठ के रूप में उठा हुआ शरीर के दो अंगो का संधि स्थान। जैसे–जाँघ और टाँग के बीच का घुटने पर का जोड़। ५. गज का सोलहवाँ अंश या भाग। ६. कलाबाजी। कलैया। ७. कुश्ती का एक दाँव। पुं० गृह। उदाहरण–गिरह उजाड़ एक सम लेखौ।–कबीर।
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गिरहकट  : पुं० [फा० गिरह=जेब या गाँठ+हिं० काटना] गिरह या गाँठ में बँधा हुआ धन काटनेवाला व्यक्ति। जेबकतरा।
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गिरहथ  : पुं०=गृहस्थ।
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गिरहदार  : वि० [फा० गिरह-जेब या गाँठ] जिसमें गाँठ या गाँठें पड़ी हो। गठीला।
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गिरहबाज  : पुं० [फा०] एक प्रकार का कबूतर जो आकाश में उड़ते समय कलैया खाता है।
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गिरहर  : वि० [हिं० गिरना+हर (प्रत्यय)] जो शीघ्र ही गिर पड़ने को हो। गिराऊ।
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गिरही  : पुं० [सं० गृहिन्] १. गृहस्थ। २. देव-दर्शन के लिए आया हुआ यात्री। (पंडे और भड्डर)।
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गिराँ  : वि० [फा० गरां] १. जिसका दाम अधिक हो। बहुमूल्य। महँगा। २. भारी। ३. अप्रिय या अरुचिकर।
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गिरा  : स्त्री० [सं०√गृ (शब्द)+क्विप्-टाप्] १. वह शक्ति जिसकी सहायता से मनुष्य बातें करता या बोलता है। वाक् शक्ति। २. उक्त शक्ति की देवी, सरस्वती। ३. सरस्वती नदी। ४. जबान। जीभ। ५. कही या बोली हुई बात। ६. बोली या भाषा। जबान। ७. सुन्दर कविता।
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गिरा-पड़ा  : वि० [हिं० गिरना+पड़ना] १. जमीन पर गिरकर पड़ा हुआ। २. टूटा-फूटा। जीर्ण-शीर्ण। ३. पतित। ४. जिसका कुछ भी महत्व या मूल्य न हो।
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गिराज  : पुं० [अं० गैरेज] मोटरगाड़ी रखने के लिए बना हुआ कमरा या कोठा।
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गिराधव  : पुं० [सं०] ब्रह्मा।
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गिराधौ  : पुं० =गिराधव।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गिराना  : स० [हिं० गिरना] १. किसी उच्च स्तर या स्थान पर स्थित वस्तु को बलपूर्वक नीचे उतारना या लाना। जैसे–परदा गिराना। २. किसी आधार पर कड़ी वस्तु को आधात आदि पहुँचा कर जमीन पर लाना। जैसे–(क) किसी को चबूतरे या कुर्सी से गिराना। (ख) रेल की लाइन तोड़कर गाड़ी गिराना। ३. किसी वस्तु या रचना को तोड़ फोड़ कर उसका नाश या ध्वंस करना। जैसे–दीवार या मकान गिराना। ४. महत्व मूल्य शक्ति आदि घटाना या कम करना। जैसे–दाम गिराना। ५. धार्मिक, नैतिक आदि दृष्टियों से निम्न स्तर पर लाना। जैसे–अधिकार के पद ने ही उन्हें इतना गिराया है। ६. प्रवाह को ढाल की ओर ले जाना। जैसे–नाली में मोहरी का पानी गिराना। ७. किसी चीज को इस प्रकार हाथ से जोड़ देना कि वह नीचे जा पड़े। जैसे–लोटा या दावात गिराना। ८. किसी पात्र में रखी हुई वस्तु को जमीन पर उँडेलना। जैसे–लोटे में का पानी या दावात में की स्याही गिराना। ९. कोई ऐसा रोग उत्पन्न करना जिसके विषय में लोगों को यह विश्वास हो कि उसका वेग ऊपर से नीचे की ओर जाता या होता है। जैसे–बहुत अधिक मानसिक चिंता नजला गिराती है। १॰. उपस्थित करना। सामने ला रखना। जैसे–मकान बनाने के लिए ईंट या मसाला गिराना। ११. युद्ध या लड़ाई में बुरी तरह से घायल करना या मार डालना। जैसे–चार सिपाहियों को तो अकेले उसी ने गिराया था।
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गिरानी  : स्त्री० [फा०] १. वह स्थिति जिसमें चीजें महँगी हो जाती है। मँहगी। २. अपच आदि के कारण होनेवाला पेट का भारीपन।
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गिरापति  : पुं० [सं० ष० त०] ब्रह्मा।
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गिरापतु  : पुं० [सं० गिरा-पितृ] सरस्वती के पिता। बह्मा।
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गिरामी  : वि०=गरामी (प्रसिद्ध)।
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गिराव  : पुं० [अ० ग्रेप] तोप का वह गोला जिसमें छोटी छोटी गोलियाँ और छर्रे भी रहते हैं। पुं०=गिरावट।
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गिरावट  : स्त्री० [हिं० गिरना] १. गिरने की अवस्था क्रिया या भाव। २. अधःपात। पतन।
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गिरावना  : स०=गिराना।
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गिरास  : पु०=ग्रास।
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गिरासना  : स०=ग्रसना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिरासी  : स्त्री० [देश०] गुजरात में रहनेवाली एक उपद्रवी प्राचीन जाति।
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गिराह  : पुं० [सं० ग्राह] ग्राह या मगर नामक जलजंतु।
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गिरि  : पुं० [सं०√गृ+कि] १. पर्वत। पहाड़। २. दशनामी साधुओं के एक वर्ग की उपाधि। जैसे–स्वामी परमानन्द गिरि। ३. संन्यासियों का एक भेद या वर्ग। ४. पारे का एक दोष जो खाने वाले का शरीर जड़ कर देता है। ५. आँख का एक रोग जिसमें ढेंढर या पुतली फट या फूट जाती है।
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गिरि दुहिता(तृ)  : स्त्री० [ष० त०] पार्वती।
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गिरि-कंटक  : पुं० [ष० त०] वज्र।
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गिरि-कदंब  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का कदंब (वृक्ष)।
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गिरि-कंदर  : पुं० पहाड़ की गुफा।
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गिरि-कदली  : स्त्री० [मध्य० स०] पहाड़ी केला।
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गिरि-कर्णिका  : स्त्री० [गिरि-कर्ण, ब० स० कप्, टाप्, इत्व] १. पृथ्वी। २. अपराजिता लता। ३. अपा-मार्ग। चिचड़ा।
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गिरि-कर्णी  : स्त्री० [गिरि-कर्ण, ब० स० ङीष्] १. अपराजिता या कोयल नाम की लता। २. जवासा।
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गिरि-काण  : वि० [तृ० त० ] जो गिरि नामक नेत्ररोग के कारण काना हो गया हो।
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गिरि-कूट  : पुं० [ष० त०] पहाड़ की चोटी।
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गिरि-जाल  : पुं० [ष० त०] पर्वत माला।
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गिरि-दुर्ग  : पुं० [सं० कर्म० स०] पहाड़ी किला।
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गिरि-द्वार  : स्त्री० [ष० त०] पहाड़ की घाटी। दर्रा।
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गिरि-धातु  : पुं० [ष० त०] गेरू।
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गिरि-ध्वज  : पुं० [ब० स०] इंद्र।
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गिरि-नगर  : पुं० [सं० मध्य० स०] १. गिरनार पर्वत पर बसा हुआ एक नगर जो जैनियों का एक पवित्र तीर्थ है। २. पुराण के अनुसार रैवतक पर्वत।
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गिरि-नंदिनी  : स्त्री० [ष० त०] १. पार्वती। २. गंगा। ३. पहाड़ से निकली हुई नदी।
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गिरि-नाथ  : पुं० [ष० त०] १. महादेव। शिव। २. हिमालय। ३. गोवर्धन पर्वत।
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गिरि-नितंब  : पुं० [ष० त०] पहाड़ की ढाल।
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गिरि-पथ  : पुं० [मध्य० स०] दो पहाड़ों के बीच का मार्ग। घाटी। दर्रा।
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गिरि-पीलु  : पुं० [ष० त०] फालसा।
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गिरि-प्रस्थ  : पुं० [ष० त०] पहाड़ के ऊपर का चौरस मैदान।
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गिरि-प्रिया  : स्त्री० [ब० स०] सुरागाय।
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गिरि-बांधव  : पुं० [ष० त०] शिव।
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गिरि-मान  : पुं० [ब० स०] बहुत बड़ा हाथी।
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गिरि-मृत  : स्त्री० [ष० त०] १. पहाड़ी मिट्टी। २. गेरू।
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गिरि-राज  : पुं० [ष० त०] १. बड़ा पर्वत। २. हिमालय। ३. गोवर्धन पर्वत। ४. सुमेरू।
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गिरि-वर्तिका  : स्त्री० [मध्य० स० ] एक प्रकार का पहाड़ी हंस।
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गिरि-व्रज  : पुं० [ब० स०] १. केकय देश की राजधानी। २. जरासंध की राजधानी राजगृह।
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गिरि-शिखर  : पुं० [ष० त०] पहाड़ की चोटी।
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गिरि-संभव  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का पहाड़ी चूहा।
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गिरि-सार  : पुं० [ष० त०] १. लोहा। २. शिलाजीत। ३. राँगा। ४. मैनाक पर्वत। ५. मलय पर्वत।
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गिरि-सुत  : पुं० [ष० त०] मैनाक पर्वत।
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गिरि-सुता  : स्त्री० [ष० त०] पार्वती।
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गिरिक  : वि० [सं० गिरि+कन्] १. गिरि या पर्वत संबंधी। गिरि या पर्वत में होनेवाला। पहाड़ी। पुं० [सं० गिरि√कै (प्रकाशित होना)+क] महादेव। शिव।
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गिरिका  : स्त्री० [सं० गिरि+क-टाप्] १. चूहे का मादा। चूही। २. छोटा चूहा। चुहिया।
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गिरिचर  : पुं० [सं० गिरि√चर् (चलना)+ट] पहाड़ पर रहने या विचरण करनेवाला।
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गिरिज  : वि० [सं० गिरि√जन् (उत्पन्न होना)+ड] पहाड़ पर पहाड़ में या पहाड़ से उत्पन्न होनेवाला। पुं० १. शिलाजीत। २. लोहा। ३. अवरक। अभ्रक। ४. गेरू। ५.एक प्रकार का पहाड़ी महुआ।
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गिरिजा  : स्त्री० [सं० गिरिज-टाप्] १. हिमालय की पुत्री, पार्वती। गौरी। २. गंगा। ३. पहाड़ी केला। ४. चमेली। ५. चकोतरा। पुं०=गिरिजा (ईसाइयों का प्रार्थना मंदिर)।
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गिरिजा-कुमार  : पुं० [ष० त०] कार्तिकेय।
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गिरिजा-पति  : पुं० [ष० त०] महादेव।
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गिरिजा-बीज  : पुं० [ष० त०] गंधक।
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गिरिजा-मल  : पुं० [ष० त०] अभ्रक।
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गिरिज्वर  : पुं० [सं० गिरि√ज्वर् (रुग्ण होना)+णिच्+अच्] वज्र।
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गिरित्र  : पुं० [सं० गिरि√त्रै (रक्षा करना)+क] १. महादेव। शिव। २. समुद्र। सागर।
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गिरिधर  : पुं० [ष० त०] गिरि अर्थात् गोवर्धन पर्वत को धारण करनेवाले, श्रीकृष्ण।
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गिरिधरन  : पुं० =गिरिधर।
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गिरिधारन  : पुं०=गिरिधर।
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गिरिधारी(रिन्)  : पुं० [सं० गिरि√धृ (धारण करना)+णिनि] श्रीकृष्ण।
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गिरिपुष्पक  : पुं० [गिरि-पुष्प, ष० त० गिरिपुष्प√कै (चमकना)+की] १. पथरफोड़ नाम का पौधा। २. शिलाजीत।
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गिरिभिद्  : पुं० [सं० गिरि√भिद् (फाड़ना)+क्विप्] पाषाण भेद। वि० पहाड़ों को फोड़नेवाला (नद, नदी, झरना आदि)।
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गिरिमल्लिका  : स्त्री० [गिरि-मल्लि, स० त० +कन्-टाप्] कुटज। कोरैया।
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गिरिश  : पुं० [सं० गिरि√शी (सोना)+ड] महादेव। शिव।
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गिरिशाल  : पुं० [सं० गिरि√शल् (गति)+अण्] एक प्रकार का बाज पक्षी।
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गिरिशालिनी  : स्त्री० [सं० गिरि√शल्+णिनि-ङीष्] अपराजिता लता।
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गिरी  : स्त्री० [हिं० गरी] कुछ विशिष्ट फलों के बीजों के अंदर का मुलायम गूदा जिसकी गिनती सूखे मेवों में होती है। जैसे–खरबूजे के बीजों या बादाम की गिरी। पुं०-गिरि।
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गिरीद्र  : पुं० [गिरि-इंद्र,ष० त०] १. बहुत बड़ा पर्वत या पहाड़। २. हिमालय। ३. शिव। ४. आठ बड़े पर्वतों के आधार पर ८ की संख्या।
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गिरीश  : पुं० [गिरि-ईश, ष० त०] १. बहुत बड़ा पर्वत या पर्वतों का राजा। २. हिमालय पर्वत। ३. सुमेरू पर्वत। ४. कैलास पर्वत। ५. गोवर्धन पर्वत। ६. महादेव। शिव।
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गिरेबान  : पुं० =गरेबान।
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गिरेवा  : पुं० [सं० गिरि] १. छोटी पहाड़ी। टीला। २. पहाड़ या पहाड़ी पर की ऊँची चढ़ाई।
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गिरेश  : पुं० [सं० गिरा-ईश, ष० त०] १. ब्रह्मा। २. विष्णु।
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गिरैया  : स्त्री० [हिं० गेरना-डालना] बैलों आदि के गले में बाँधी जानेवाली रस्सी। गेराँव। पगहा। उदाहरण–तिय जानि गिरैयाँ गही बनमाल सुऐंच लला इँच्यो छावत है।–पद्माकर।
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गिरैया  : वि० [हिं० गिराना+ऐया (प्रत्यय)] १. गिरानेवाला। २. गिरनेवाला। ३. पतनोन्मुख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिरों  : पुं० [फा०] १. कोई चीज किसी के पास जमानत के रूप में रखकर उससे रुपया उधार लेना। रेहन। २. दूसरे की कोई चीज जमानत में रखकर उसके बदले में रुपये उधार देना। रेहन। पद–गिरों गट्ठा-दूसरों की चीजें अपने पास रेहन रखने का व्यवसाय। वि० (वस्तु) जो रेहन रखी गई हो।
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गिरोवर  : पुं० [सं० गिरिवर] पर्वत।
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गिर्  : स्त्री० [सं०√गृ(शब्द)+क्विप्] दे० ‘गिरा’।
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गिर्गिट  : पुं०=गिरगिट।
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गिर्जा  : पुं० दे० गिरजा। स्त्री० ‘गिरिजा’।
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गिर्जाघर  : पुं० दे० ‘गिरजा’।
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गिर्द  : अव्य० [फा०] १. आस-पास। २. चारों ओर। पद-इर्द-गिर्द (देखें)। पुं० किसी चीज की गोलाई या उसकी नाप। घेरा।
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गिर्दागिर्द  : अव्य० [अव्य०] १. आस-पास। इर्द-गिर्द। २. चारों ओर।
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गिर्दाब  : पुं० [फा०] भँवर।
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गिर्दावर  : वि० [फा०] चारों ओर घूमनेवाला। पुं० १. वह अधिकारी जो चारों ओर घूमघूमकर कामों और कर्मचारियों का निरीक्षण करता हो। २. मालविभाग का एक अधिकारी जो पटवारियों के कामों की जाँच करता हैं।
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गिल  : पुं० [सं० गिल् (लीलना)+क] १. मगर नामक जलजंतु। २. जँबीरी नीबू। वि० निगलने या खानेवावाला। स्त्री० [फा०] १. मिट्टी। २. गीली मिट्टी। ३. गारा।
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गिल-हिकमत  : स्त्री० [फा० +अ०] औषध बनाने की कपड़ौटी नाम की क्रिया। दे० कपड़ौटी।
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गिलकार  : पुं० [फा०] गारे और चूने से इमारत का काम करनेवाला कारीगर। मेमार। राज।
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गिलकारी  : स्त्री० [फा०] गारे और चूने से इमारत बनाने, विशेषतः दीवारों पर पलस्तर लगाने का काम।
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गिलकिया  : स्त्री० [देश०] नेनुवाँ या घियातोरी नामक तरकारी।
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गिलगिल  : पुं० [सं० गिल√गिल्+क] नक्र या नाक नामक जलजंतु।
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गिलगिला  : वि० [हिं० गीला-गीला] [स्त्री० गिलगिली] १. आर्द्र और कोमल। गीला और नरम। २. करुणा रोष आदि के कारण रोमांचित। उदाहरण–कोटरों से गिलगिली घृणा यह झाँकती है।–अज्ञेय। पुं० एक प्रकार का पक्षी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलगिलिया  : स्त्री० [अनु०] सिरोही नाम की चिड़िया। किलहँटी।
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गिलगिली  : पुं० [देश०] घोड़ों की एक जाति। स्त्री० गिलगिलिया या सिरोही नामक चिड़िया।
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गिलजई  : पुं० [देश०] अफगानिस्तान की एक वीर जाति।
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गिलट  : पुं० [अं० गिल्ड़-सोना चढ़ाना] १. पीतल लोहे आदि की बनी हुई ऐसी वस्तु जिस पर सोने चाँदी आदि का पानी चढ़ा हुआ हो। २. उक्त प्रकार से सोने या चाँदी का पानी चढाने की क्रिया या भाव। सफेद रंग की एक घटिया धातु।
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गिलटी  : स्त्री० [सं० ग्रंथि] १. शरीर के अंदर जोड़ों आदि के पास होनेवाली गोल गाँठ जिसमें से कई प्रकार के रस निकलकर शारीरिक व्यापारों में सहायक होते हैं। २. रक्त में विकार होने के कारण शरीर के अंदर पड़नेवाली छोटी गाँठ। ३. एक रोग जिसमें शरीर के विभिन्न अंगो में गाँठें निकल आती हैं। ४. दे० ‘ग्रंथि’।
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गिलण  : पुं०=गिलन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलन  : स० [सं०√गिले+ल्युट्-अन] [वि०गिलित] निगलने की क्रिया या भाव। पुं०-गैलन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलना  : स० [सं० गिलन] १. निगलना। २. इस प्रकार छिपा या दबा लेना कि किसी को पता न चले। ३. ग्रसना। उदाहरण–अदभुत द्रव्य ससि अहि गिल्यौ साख सुरंग मनावहीं।–चन्दवरदाई।
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गिलबिला  : वि० [अनु०] आर्द्र और कोमल। पिलपिला।
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गिलबिलाना  : अ० [अनु०] अस्पष्ट उच्चारण के कारण बोलने में गड़बड़ाना।
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गिलम  : स्त्री० [फा० गिलीम-कंबल] १. ऊन का बना हुआ मुलायम और चिकना कालीन। २. बड़ा और मोटा पर मुलायम गद्दा (बिछाने का)। वि० कोमल। नरम। मुलायम।
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गिलमाँ  : पुं० [अ० ‘गुलाम’ का बहु०] इस्लाम के अनुसार वे सुन्दर बालक जो बहिश्त में धर्मात्माओं की सेवा और भोग-विलास के लिए रहते हैं।
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गिलमिल  : पुं० [हिं० गिलम-कोमल] मध्य युग का एक प्रकार का बढ़िया मुलायम कपड़ा।
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गिलम्मा  : वि० दे० गिलम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० दे० ‘गिलमाँ’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलहरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का धारीदार मोटा सूती कपड़ा। पुं०गिलहरी का नर। पुं० =बेलहरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलहरी  : स्त्री० [सं० गिरि=चुहिया] चूहे की तरह का एक प्रसिद्ध छोटा जंतु जो प्रायः घरो और बगीचों में रहता और पेड़ों पर चढ़ सकता है।
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गिला  : पुं० [फा०] १. उपालंभ। उलाहना। २. निंदा। शिकायत।
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गिलाई  : स्त्री०=गिलहरी।
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गिलाजत  : स्त्री० [अ० गलीज का भाव०] १. गलीज या गंदे होने की अवस्था या भाव। गंदगी। २. गंदी और बुरी चीज। ३. मल। गुह।
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गिलान  : स्त्री० [हिं० गीला] गीलापन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री०=ग्लानि। उदाहरण–लखि दरिद्र विद्वान को जग-जन करै गिलान।–दीन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलाफ  : पुं० [अ० ] १. कपड़े की वह बडी थैली जो तकिये लिहाफ आदि के ऊपर उनकी रक्षा के लिए चढ़ाई जाती है। खोल। २. तलवार आदि की म्यान। कोष। पुं० लिहाफ के स्थान पर भूल से प्रयुक्त होनेवाला शब्द।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलाय  : स्त्री०=गिलहरी।
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गिलायु  : पुं० [सं० गिल+क्यङ+उ] एक रोग जिसमें गले के अंदर गाँठे बँध जाती है। इसमें बहुत पीड़ा होती है।
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गिलावा  : पुं० [फा० गिल=मिट्टी+आब=पानी] मिट्टी और पानी का बना हुआ वह गाढ़ा घोल जिससे राज मजदूर दीवारों की चुनाई करते है। गारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलास  : पुं० [अं० ग्लास] १. पीतल, लोहे, शीशे आदि का बना हुआ पानी पीने का एक प्रसिद्ध लंबोतरा छोटा बरतन। २. किसी वस्तु की उतनी मात्रा जितनी उक्त पात्र में समाती हो। जैसे–मैंने तीन गिलास पानी पीया। ३. आलू-बालू या ओलची नाम का पेड़ जिसका फल बहुत मुलायम और स्वादिष्ट होता है।
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गिलित  : भू० कृ० [सं०√गिल्+क्त] निगला हुआ।
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गिलिम  : स्त्री० वि०=गिलम।
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गिली  : वि० [फा० गिल-मिट्टी] १. मिट्टी से संबंध रखनेवाला। २. मिट्टी का बना हुआ। स्त्री०=गुल्ली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलेफ  : पुं० =गिलाफ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलोदाँ  : पुं०=गुलैदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलोय  : स्त्री० [फा०] एक प्रकार की कड़वी बेल जिसके पत्ते दवा के काम आते है। गुरूच। गुडूची।
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गिलोल  : स्त्री०=गुलेल। उदाहरण–लोल हैं कलोल ते गिलोल में लसत है।–सेनापति।
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गिलोला  : पुं० दे० ‘गुलेला’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिलौरी  : स्त्री० [देश०] लगे हुए पानों का बीड़ा। पुं० [सं० गल्प] १. ज्ञान की बातें। ज्ञान-चर्चा। २. मन-बहलाव के लिए की जानेवाली बातचीत (बाजारू)।
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गिलौरीदान  : पुं० [हिं० गिलौरी+दान] पान रखने का डिब्बा। पानदान।
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गिल्टी  : स्त्री०=गिलटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिल्यान  : स्त्री०=ग्लानि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिल्ला  : पुं०=गिला (शिकायत)। वि० =गीला।
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गिल्ली  : स्त्री०=गुल्ली।
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गिल्लो  : स्त्री०=गिलहरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिव  : स्त्री० [सं० ग्रीवा] गरदन। गला.उदाहरण-चूरहिं गिव अमरन औहारू।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिवन  : पुं० [?] गैंडा नामक पशु। (राज०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गिवल  : पुं० [?] गैंडा। उदाहरण–जिणवन भूलन जावता गैद गिवल गिड़राज।–कविराजा सूर्यमल।
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गिष्णु  : पुं० [सं०√गा (गाना)+इष्णुच्,आकार का लोप] १. मंत्र सस्वर गानेवाला व्यक्ति। २. गवैया। गायक।
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गिहथ  : पुं० [सं० गृहस्थ] [स्त्री० गिहथिन]=गृहस्थ।
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गी-रथ  : पुं० [सं० गिर्-रथ,ब० स०] १. बृहस्पति का एक नाम। २. जीवात्मा।
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गी(गिर्)  : स्त्री० [सं०√गृ(शब्द करना)+क्विप्] १. बोलने की शक्ति। वाणी। २. सरस्वती।
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गीउ  : स्त्री०=ग्रीवा (गला)।
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गींजना  : स० [सं० गृंजन] किसी कोमल या चिकनी वस्तु को हाथ से दबा मरोड़ या मसलकर खराब करना। जैसे–कपड़ा फल या फूल गींजना।
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गीठम  : पुं० [देश०] एक प्रकार का घटिया गलीचा।
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गीड़  : पुं० [हिं० कीट=मैल] आँख से निकलने वाला कीचड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गीत  : वि० [सं०√गै (गाना)+क्त] गाने के रूप में आया या लाया हुआ। गाया हुआ। पुं० वह छोटी पद्यात्मक रचना जो केवल गाने के लिए बनी हो। विशेष–(क) इसमें प्रायः एक ही भाव की अभिव्यंजना होती है। (ख) इसमें लय तथा स्वर की प्रधानता अन्य पद्यात्मक रचनाओं से अधिक होती है। २. प्रशंसा। बढ़ाई। मुहावरा–(किसी के) गीत गाना=प्रशंसा या बढ़ाई करना। ३. कथन। चर्चा। मुहावरा–(अपना) गीत गाना= बराबर अपनी ही बात कहते जाना।
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गीत-क्रम  : पुं० [ष० त० ]१. किसी गीत के स्वरों के उतार-चढ़ाव अर्थात् गाने का क्रम। २. संगीत में एक प्रकार की तान।
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गीत-प्रिय  : पुं० [ब० स०] शिव।
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गीत-प्रिया  : स्त्री० [ब० स० टाप्] कार्तिकेय की एक मातृका।
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गीत-भार  : पुं० [ष० त० ] १. गीत का पहला चरण या पद। टेक। २. उक्त (टेक) के विस्तृत अर्थ में की हुई ऐसी प्रतिज्ञा जिसका पूरा निर्वाह किया जाए। टेक।
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गीतक  : पुं० [सं० गीत+कन्] १. गीत। गाना। २. प्रशंसा। बढ़ाई। वि० १. गीत गानेवाला। २. गीत बनानेवाला।
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गीतकार  : पुं० [सं० गीत√कृ (करना)+अण्] [भाव० गीतकारिता] वह जो लोगों के लिए गीत बनाता या लिखता हो।
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गीता  : स्त्री० [सं० गीत+टाप्] १. ऐसी छंदोबद्ध कथा या वृत्तान्त जो लोगों के गाने के लिए प्रस्तुत किया गया हो। २. किसी का दिया हुआ छन्दोबद्ध और ज्ञानमय उपदेश। जैसे–रामगीता, शिवगीता आदि। ३. तारीफ। प्रशंसा। उदाहरण–एक रस रूप जाकी गीता सुनियत।–केशव। ४. भगवद्गीता। ५. संकीर्ण राग का एक भेद। ६. छब्बीस मात्राओं का एक छंद जिसमें १४ और १२ मात्राओं का विराम होता है।
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गीतातीत  : वि० [सं० गीत-अतीत, द्वि० त० ] १. जो गाया न जा सके। २. जिसका वर्णन न हो सके। अकथनीय। अनिवर्चनीय।
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गीतायन  : पुं० [सं० गीत-अयन, ष० त० ] गीत के साधन वीणा मृदंग आदि।
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गीति  : स्त्री० [सं०√गै+क्तिन्] १. गान। गीत। २. आर्या छन्द का एक भेद जिसके विषम चरणों में १२ और सम चरणों में १८ मात्राएँ होती हैं। उदगाथा। उदगाहा।
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गीति-काव्य  : पुं० [मध्य० स०] ऐसा काव्य जो मुख्यतः गाये जाने के उद्देश्य से ही बना हो।
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गीति-नाट्य  : पुं० =गीति=रूपक।
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गीति-रूपक  : पुं० [मध्य० स०] एक प्रकार का रूपक जो पूरा या बहुत कुछ पद्य में लिखा होता है। (ऑपेरा)।
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गीतिका  : स्त्री० [सं० गीति+कन्-टाप्] १. छोटा गीत। २. एक मात्रिक छंद जिसके प्रत्येक चरण में १६ और १॰ के विराम से २६ मात्राएं होती हैं। इसकी तीसरी, १॰ वीं, १७ वीं और २४ वीं० मात्राएं सदा लघु होती हैं। ३. एक वर्णिक चंद जिसके प्रत्येक चरण में सगण, जगण, भगण रगण, सगण और लघु गुरु होते हैं।
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गीती (तिन्)  : वि० [सं० गीत+इनि] गाकर पढ़ने या पाठ करनेवाला।
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गीत्यार्या  : पुं० [सं० गीति-आर्या,कर्म० स०] एक प्रकार का छंद जिसके प्रत्येक चरण में ५ नगण और एक लघु होता है। अचल धृत्ति।
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गीथा  : स्त्री० [सं०√गै+थक्-टाप्] १. वाणी। २. गति।
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गींद  : पुं०-गेंद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गीदड़  : पुं० [सं० गृध्र=लुब्ध या फा० गीदी] १. भेड़ियें या कुत्ते की जाति का एक जानवर जो लोमड़ी से मिलता जुलता होता है। यह प्रायः उजाड़ स्थानों और जंगलों में रहता है, और इसका दिखाई देना या बोलना अशुभ माना जाता है। श्रृंगार। सियार। (जैकाल) पद-गीदड़-भभकी (देखें)। मुहावरा–किसी स्थान पर गीदड़ बोलना=बिलकुल उजाड़ या निर्जन होना। २. कायर या डरपोक व्यक्ति।
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गीदड़-भभकी  : स्त्री० [हिं०] मन में डरते हुए ऊपर से दिखावटी साहस अथवा क्रोध या रोष प्रकट करते हुए कही जानेवाली बात। क्रि० प्र०–दिखाना।–देना।
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गीदड़रुख  : पुं० [हिं० गीदड़+रुख=वृक्ष] उत्तरी भारत में होनेवाला मँझोले कद का एक पेड़।
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गींदवा  : पुं० [सं० गेंडुक] छोटा गोल तकिया।(राज०) उदाहरण–मुडियाँ मिलसी गीदवों बलेन धणरी बाँह।–कविराजा सूर्यमल।
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गीदी  : वि० [फा०] १. गीथ संबंधी। २. (व्यक्ति) जिसमें शक्ति या साहस न हो। कायर। डरपोक।
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गींदुआ  : पुं०=गींदवा।
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गीध  : पुं० [सं० गृध्र] १. गिद्ध नामक प्रसिद्ध मांसाहारी पक्षी। गिद्ध। २. लाक्षणिक अर्थ में बहुत ही चतुर और लालची या लोभी व्यक्ति।
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गीधना  : अ० [सं० गृघ्र=लुब्ध] १. गिद्ध की तरह किसी काम, चीज या बात के पीछे पड़ना। २. बहुत ही बुरी तरह से लोभ करना। उदाहरण–करि अभिमान विषय रस गीध्यो, स्याम सरन नहिं आयो।–सूर। ३. एक बार कोई अनुकूल बात होते देखकर या कुछ लाभ उठाकर बराबर उसकी ताक में लगे रहना। परचना। उदाहरण–बीघें मोसों आन के गीधे गीधहिं तारि।–बिहारी। ४. किसी से बहुत मेल-जोल रखना।
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गीबत  : स्त्री० [अ०] १. अनुपस्थिति। गैर हाजिरी। २. किसी की अनुपस्थिति में उसकी की जाने वाली निन्दा या बुराई। चुगली।
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गीर  : वि० [फा०] एक प्रत्यय जो कुछ शब्दों के अंत में लगकर निम्नलिखित अर्थ देता है। (क) पकड़नेवाला। जैसे–दामनगीर राहतगीर।(ख) अपने अधिकार में रखनेवाला। जैसे–जहाँगीर। स्त्री० [सं० गिरा] वाणी।
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गीरबान  : पुं०=गीर्वाण (देवता)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गीरवाण, गौरवान  : पुं० =गीर्वाण।
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गीर्ण  : वि० [सं०√गृ (शब्द करना)+क्त] १. कथित। कहा हुआ। २. विस्तारपूर्वक बतलाया हुआ। वर्णित। ३. निगला हुआ।
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गीर्णि  : वि० [सं०√गृ+क्तिन्] १. वर्णन। २. प्रशंसा। स्तुति। ३. निगलने की क्रिया या भाव।
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गीर्देवी  : स्त्री० [गिर्-देवी,ष० त०] सरस्वती। शारदा।
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गीर्पति  : पुं० [गिर्-पति, ष० त०] १. बृहस्पति। २. पंडित। विद्वान।
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गीर्भाषा  : स्त्री० [गिर्-भाषा, कर्म० स०] दे० ‘गीर्वाणी’।
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गीर्वाण  : पुं० [गिर-वाण,ब० स०] देवता। सुर।
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गीर्वाणी  : स्त्री० [गिर्-वाणी, कर्म० स०] देवताओं की भाषा। देवभाषा। संस्कृत।
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गीला  : वि० [हिं० गलना] [स्त्री० गीली] १. जो जल से युक्त हो। भींगा हुआ। तर। नम। जैसे–गीला कपड़ा, गीली आँखें। २. जो अभी सूखा न हो। जैसे–गीला रंग। ३. जो शराब पिये हुए हो और जिस पर उसका नशा सवार हो। पुं० [?] एक प्रकार की जंगली लता।
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गीलापन  : पुं० [हिं० गीला+पन (प्रत्यय)] गीले होने की अवस्था या भाव। तरी। नमी।
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गीली  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का बहुत ऊँचा पेड़ जिसके हीर की लकड़ी चिकनी भारी और मजबूत होती तथा मेज कुर्सियाँ बनाने के काम में आती है। बरमी।
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गींव  : स्त्री० [सं० ग्रीवा] गर्दन। गला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गीव  : स्त्री०=ग्रीवा। (गरदन)।
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गीष्पति  : पुं० [गिर्-पति, ष० त० ] १. बृहस्पति। २. पंडित। विद्वान।
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गुआ  : पुं० [सं० गुवाक] एक तरह की सुपारी।
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गुआर  : स्त्री० ग्वार। (कुलथी)।
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गुआर पाठा  : पुं० दे० ‘ग्वारपाठा’।
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गुआरी  : स्त्री०=ग्वार।
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गुआलिन  : स्त्री० १.=ग्वार (कुलथी)। २. =ग्वालिन।
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गुइयाँ  : स्त्री० पुं० दे० गोइयाँ। पुं० [हिं० गोहन=साथ] १. वह व्यक्ति जो खेलकूद में किसी का साथ देता है। खेल का साथी। २. मित्र। स्त्री० सखी।
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गुंग  : वि०=गूँगा।
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गुँगबहरी  : स्त्री० [हिं० गूँगा+बहरा] साँप की तरह लंबी मछलियों की एक जाति। बरम। बाँबी।
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गुगरल  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का बत्तख।
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गुंगा  : वि० [स्त्री० गूँगा] =गूँगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुगानी  : स्त्री० [देश०] पानी की हलकी हिलोर। खलमली।(लश०)
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गुंगी  : स्त्री० [हिं० गूँगा] दो मुँहा साँप। चुकरैड़।
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गुँगुआना  : अ० [अनु०] १. गूँगे की तरह गूँ गूँ शब्द करना। २. (लकड़ी का) अच्छी तरह न जलना और बहुत धूआँ देना।
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गुगुनाना  : अ० [अनु०] १. भौंरों का गुन-गुन शब्द करना। २. इस प्रकार बोलना कि कुछ स्वर नाक से भी निकले। ३. बहुत धीरे धीरे और अस्पष्ट रूप में गाना।
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गुगुलिया  : पुं० [अनु०] बंदर नचानेवाला व्यक्ति। मदारी।
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गुग्गुर  : पुं०=गुग्गुल।
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गुग्गुल  : पुं० [सं०√गुंज् (शब्द करना)+क्विप्, गुज्√गुड (रक्षा करना)+क] १. सलई का पेड़ जिसमें धूप या राल निकलती है। २. राल जो सुगंधि के लिए जलाते हैं। ३. एक प्रकार का बड़ा कँटीला पेड़ जो दक्षिण भारत में होता है।
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गुच  : पुं० [हिं० गोछ] एक प्रकार की भेड़। (पंजाब)।
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गुंचा  : पुं० [अ० गुन्चः] १. फूल की कली। कोरक। २. आनंद-मंगल। ३. नाच-रंग। मुहावरा–गुंचा खिलना=(क) खूब नाच रंग या आनंद मंगल होना। (ख) मुख की आकृति आनंदपूर्ण और प्रफुल्लित होना। (ग) दे० गुल के अन्तर्गत मुहा० ‘गुल’ खिलना।
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गुंची  : स्त्री०=घुँघची।
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गुची  : स्त्री० [सं० गुच्छ] सौपानों की गड्डी। आधी ढोली।
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गुच्ची  : स्त्री० [अनु०] १. जमीन में खोदा हुआ वह छोटा लंबोतर गड्ढा जो लड़के गुल्ली-डंडा आदि खेलने के लिए बनाते है। २. जमीन में खोदा हुआ कोई छोटा गड्ढा। वि० बहुत छोटा। जैसे–गुच्ची सी आँख।
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गुच्चीपाला  : पुं० [हिं० गुच्ची-गड्ढा+पाला=सीमा] एक खेल जिसमें लड़के एक छोटा सा गड्ढा बनाकर उसमें कुछ दूर से कौड़ियाँ फेंकतें हैं।
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गुच्छ  : पुं० [सं०√गु (शब्द करना)+क्विप्, गुत्=शो (सूक्ष्म करना)+क] १. गुच्छा। २. ऐसा झाड़ या पौधा जिसमें मोटा तना न हो, केवल पतली टहनियाँ और पत्तियाँ हों। झाड़ी। ३. बत्तीस लड़ो का हार। ४. मोतियों की माला। ५. मोर की पूँछ। ६. घास का पूला।
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गुच्छ-पत्र  : पुं० [ब० स०] ताड़ का पेड़।
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गुच्छ-पुष्प  : पुं० [ब० स०] १. अशोक वृक्ष। २. छतिवन। ३. रीठा। ४. धव। धातकी।
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गुच्छ-फल  : पुं० [ब० स०] १. रीठा। २. निर्मली। ३. दमनक। दीना। ४. अंगूर। ५. केला। ६. मकोय।
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गुच्छक  : पुं० [सं० गुच्छ+कन्]=गुच्छ।
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गुच्छल  : पुं० [सं० गुच्छ√अल्(पर्याप्ति)+अच्,पररूप] एक प्रकार की घास।
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गुच्छा  : पुं० [सं० गच्छ] १. एक ही प्रकार की बहुत सी वस्तुओँ का ऐसा समूह जो एक साथ उगा, उपजा या बना हो। जैसे–अंगूरों का गुच्छा। २. एक साथ इकट्ठी की हुई एक प्रकार की वस्तुओं का समूह। जैसे–तालियों का गुच्छा। ३. तारों, बालों आदि की उक्त प्रकार की रचना का रूप। झब्बा। फुँदना।
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गुच्छातारा  : पुं० [हं० गुच्छा+तारा] कचपचिया नाम का तारा-पुंज।
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गुच्छार्द्ध  : पुं० [गुच्छ-अर्द्ध,ष० त०] वह हार जिसमें सोलह अथवा चौबीस लड़ होते हैं।
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गुच्छार्ध  : पुं० =गुच्छार्द्ध।
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गुच्छी  : स्त्री० [सं० गुच्छ] १. करज। कंजा। २. रीठा। ३. खुभी की जाति की एक वनस्पति जो कश्मीर और पंजाब में होती है। और जिसके बीज कोषों के गुच्छों की तरकारी बनती हैं।
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गुच्छेदार  : वि० [हिं० गुच्छा+फा० दार (प्रत्यय)] १. जो गुच्छे या गुच्छों के रूप में हो। २. जिसमें गुच्छा या गुच्छे लगें हों।
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गुंज  : स्त्री० [सं०√गुंज् (गूँजना)+घञ्] १. भौरों के गुंजन का शब्द। गुंजार। २. पक्षियों आदि का कलरव। ३. आनंद-ध्वनि। स्त्री० [सं० गुंजा](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. घुँघची। २. सोने के तारों का बना हुआ गले में पहनने का गोप नामक गहना। उदाहरण–मुसाहिब जू ने अपने गले का गुंज उतारा और पूरन को पहना दिया।–वृन्दावनलाल। पुं० [?] सलई का पेड़।
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गुज  : पुं० [देश०] बाँस आदि की वह पतली छोटी फाँक जो दो चीजों को जोड़ने के लिए उनमें जड़ी जाती है। बाँस की कील या मेख। (बढ़ई)।
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गुंज निकेतन  : पुं० [ष० त० ] भौंरा। मधुकर।
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गुंजक  : पुं० [सं०√गुंज्+ण्वुल्-अन] एक प्रकार का पौधा। वि० गुंजन करने या गूँजनेवाला।
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गुंजन  : पुं० [सं०√गुंज+ल्युट्–अन] १. भौंरों के गूँजने की क्रिया। २. गूँजने का शब्द। गुंजार।
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गुंजन  : पुं० [सं०Ö गृञ्ज् (शब्द करना)+ल्युट-अन] १. एक प्रकार का लाल रंग का लहसुन। २. शलजम।
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गुँजना  : अ० [सं० गुंजन] गूँज से युक्त होना। गूँजना।
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गुंजना  : अ० [सं० गुंजन] भौंरों का गुंजार करना। गुनगुनाना।
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गुजर  : पुं० [फा०] १. किसी बिन्दु या स्थान से होते हुए आगे बढ़ने की क्रिया या भाव। २. काल-क्षेप या जीवन यापन की दृष्टि से होनेवाला निर्वाह। जैसे–सौ रुपए में गुजर करना पड़ता है। ३. आने-जाने निकलने आदि का द्वार या मार्ग। जैसे–इस कमरे में हवा का गुजर नहीं है। ४. पहुँच। पैठ। प्रवेश। जैसे–इतने बड़े दरबार में भला हमारा गुजर कैसे हो सकता है। पद–गुजर-बसर=(देखें)।
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गुजर-बसर  : पुं० [फा०] कालक्षेप या जीवन यापन की दृष्टि से होनेवाला निर्वाह। गुजारा।
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गुजरगाह  : स्त्री० [फा०] १. किसी के गुजरने अर्थात् आने-जाने का मार्ग या स्थान। २. नदी पार करने का घाट। ३. मार्ग। रास्ता।
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गुंजरना  : अ० [हिं० गुंजार] १. भौंरो का गुंजन करना। २. (स्थान का) गुंजन या मधुर ध्वनि से युक्त होना। ३. गरजना।
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गुजरना  : अ० [फा० गुजर+ना (प्रत्यय)] १. किसी स्थान से होते हुए आगे बढ़ना। जैसे–यह सड़क बनारस से गुजरती है। २. एक स्थिति से होकर दूसरी स्थिति में पहुँचना। मुहावरा–(किसी का) गुजर जाना=मृत होना। मरना।जैसे–उनके चाचा आज गुजर गये। ३. कोई घटना या बात घटित होना। जैसे–वहाँ तुम पर क्या गुजरी। मुहावरा–किसी पर गुजरना=किसी पर विपत्ति या संकट पड़ना। ४. व्यतीत होना। बीतना। जैसे–इसी प्रकार कितने ही वर्ष गुजर गये। ५. निर्वाह होना। ६. दूर रहना। बाज आना। जैसे–हम तो ऐसे जीने से गुजरे।
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गुजरनामा  : पुं० [अ०+फा०] वह अधिकार पत्र जिसकी सहायता से कोई किसी मार्ग से होता हुआ आगे जा सकता है। राहदारी का परवाना। पार-पत्र।
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गुजरबान  : पुं० [फा०] १. नदी पार करनेवाला अर्थात् मल्लाह। माँझी। २. वह जो घाट की उतराई या कर उगाहता हो।
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गुजरात  : पुं० [सं० गुर्जर-राष्ट्र] [वि० गुजराती] भारतीय संघ के बम्बई राज्य का एक प्रदेश।
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गुजराती  : वि० [हि० गुजरात] ‘गुजरात’ प्रदेश में बनने, होने अथवा उससे संबंध रखनेवाला। जैसे–गुजराती खान-पान, पहनावा या माल। पुं० ‘गुजरात’ प्रदेश का निवासी। स्त्री० १. गुजरात की भाषा। २. देवनागिरी से मिलती हुई वह लिपि जिसमें उक्त भाषा लिखी जाती है। ३. छोटी इलायची।
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गुजरान  : स्त्री० [फा०] जीवन का निर्वाह और समय का बीतना (खाने पीने, रहने-सहने आदि के विचार से)। जैसे–हमारी भी किसी तरह गुजरान होती ही है।
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गुज़रानना  : स० [हिं० गुजर] १. किसी के सामने उपस्थिति या पेश करना। जैसे–अरजीया नजर गुजरानना। २. व्यतीत करना। बिताना। जैसे–दिन गुजरानना।
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गुजरिया  : स्त्री०=गूजरी।
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गुजरी  : स्त्री० [सं० गुर्जर, हिं० गूजर] १. कलाई पर पहनने की एक प्रकार की पहुँची। २. गूजरी नाम की रागिनी। ३. दे० गूजरी। स्त्री० [हिं० गुजरना] मध्य युग में, दोपहर के बाद सड़को के किनारे लगनेवाला छोटा बाजार।
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गुजरेटा  : पुं० [हिं० गूजर+एट=बेटा(प्रत्यय)] [स्त्री० गुजरेटी] १. गूजर का पुत्र या लड़का। २. गूजर जाति का पुरुष या व्यक्ति। गूजर। ग्वाला।
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गुंजल्क  : स्त्री० [फा०] १. कपड़े आदि की शिकन। सिलवट। २. उलझन की बात। गुत्थी। ३. गाँठ। स्त्री० [सं० गुंजा] घुँघची नाम की लता और उसके बीज।
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गुजश्ता  : वि० [फा० गुजश्तः] बीते हुए काल से संबंध रखनेवाला। गत। भूत।
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गुंजा  : स्त्री० [सं०√गुञ्ज्+अच्-टाप्] घुँघची नामक लता और उसके बीज।( दे० ‘घुँघची’)।
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गुंजार  : पुं० [सं० गुंज+हिं० आर] भौंरों की गूँज। भौरों की भनभनाहट।
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गुज़ार  : वि० [फा०] गुजारने (अर्थात् करने, देने या सामने लाने) वाला (यौ० के अंत में)। जैसे–खिदमतगुजार, मालगुजार, शुक्रगुजार आदि। पुं० वह स्थान जहाँ से होकर लोग गुजरते या आगे बढ़ते हों। जैसे–घाट,रास्त आदि।
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गुंजारना  : अ० [हिं० गुंजार] १. भौरों का गुंजार करना। २. मधुर ध्वनि उत्पन्न करना।
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गुज़ारना  : स० [फा० गुजर] १. किसी स्थान से होते हुए आगे बढ़ाना। २. (समय) काटना या बिताना। व्यतीत करना। ३. किसी बड़े के सामने उपस्थित,पेश या निवेदन करना। जैसे–अर्ज गुजारना। ४. पालन करना। जैसे–नामज गुजारना। ४. (कष्ट या विपत्ति) डालना। ढाना। उदाहरण–गजब गुजारत गरीबन की धार पै।–पद्माकर।
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गुज़ारा  : पुं० [फा० गुजारः] १. गुजरने या गुजारने की क्रिया या भाव। २. गुजर। निर्वाह। ३. जीवन-निर्वाह के लिए मिलनेवाली आर्थिक सहायता या वृत्ति। ४. वह स्थान जहाँ से लोग नाव पर चढ़कर पार जाते हों अथवा आकर उतरतें हों। ५. मार्ग में पड़नेवाला वह स्थान जहाँ कोई अधिकार-पत्र दिखाना या कर देना पड़ता हो।
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गुंजारित  : वि०=गुंजित।
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गुज़ारिश  : स्त्री० [फा०] निवेदन। प्रार्थना।
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गुज़ारिशनामा  : स्त्री० [फा०] निवेदन पत्र। प्रार्थना-पत्र।
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गुजारी  : स्त्री० [?] गले में पहनने का एक प्रकार का हार।
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गुज़ारेदार  : पुं० [फा०] वह व्यक्ति जिसे जीवन निर्वाह के लिए गुजारा या वृत्ति मिलती हो।
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गुंजित  : वि० [सं०√गुंज्+क्त] १. (स्थान) जो भौरों की गुंजार ये युक्त हो। २. (स्थान) जो गूँज या प्रतिध्वनि से भर गया हो।
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गुँजिया  : स्त्री० [हिं० गूँज=लपेटा हुआ पतला तार] कान में पहनने का एक प्रकार का गहना।
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गुजी  : स्त्री० [?] नथनों में जमा हुआ सूखा मल। नकटी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुंजी (जिन्)  : वि० [सं० गुंज+इनि] गूँजनेवाला। स्त्री०=गूँज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुजुआ  : पुं० [देश] [स्त्री० गूजी, गुजुई] गोबरैला नाम का कीड़ा।
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गुज्जर  : पुं० दे० ‘गूजर’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुज्जरवै  : पुं० [सं० गुर्ज (पति)] गुजरात का राजा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुज्जरी  : स्त्री० दे० ‘गूजरी’।
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गुज्झ  : वि० =गुह्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुज्झना  : अ० [हिं० गुज्झ] छिपना।
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गुज्झा  : पुं० [सं० गुह्यक] १. रेशेदार गूदा। २. रेशों का गुच्छा। ३. बाँस की कील या मेख। गोझा। ४. एक प्रकार की कँटीली घास। वि० [सं० गुह्य] छिपा हुआ। गुप्त।
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गुझ  : वि०=गुह्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुझबाती  : स्त्री० [सं० गुह्म+हिं० बात] १. गुप्त या छिपी हुई बात। २. ऐसी बात जिसका अर्थ या रहस्य सहज में स्पष्ट न होता हो। उदाहरण–स्याम सनेसो कबहूँ न दीन्हौ जानि बूझ गुझबाती।–मीराँ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुझरौट  : स्त्री० [हिं० गुज्झा] १. साड़ी का वह भाग जो स्त्रियाँ चुनकर नाभि के पास खोंस लेती है। उदाहरण–कर उठाय घूँघट करत उसरत पट गुझरौट।–बिहारी। २. स्त्रियों के नाभि के आसपास का भाग। पुं० [सं० गुह्य-आवर्त] कपड़े की शिकन। सिकुड़न।
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गुझिया  : स्त्री० [सं० गुह्यक, प्रा० गुज्झआ, गुज्झा] १. एक प्रकार का पकवान। कुसली। पिराक। २. खोए की बनी हुई एक प्रकार की मिठाई।
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गुझौट  : पुं० दे० ‘गुझरौट’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुट  : पुं० [सं० गोष्ठ=समूह] १. झुंड। यूथ। समूह। २. किसी विशिष्ट उद्देश्य से बनाया हुआ व्यक्तियों का वह छोटा दल जो किसी विशिष्ट पक्ष या मत का पोषण करने के लिए बनाया जाता है। जैसे–अब तो कांग्रेस में भी कई गुट हो गये हैं। क्रि० प्र०–बनाना।–बाँधना। पद–गुटबंदी (देखें)। पुं० [अनु०] कबूतरों आदि के बोलने अथवा इसी प्रकार का कोई शब्द।
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गुटकना  : अ० [अनु०] १. गुटगुट शब्द करना। जैसे–कबूतर का गुटकना, तबले का गुटकना। अ० दे० गटकना (निगलना)। स० दे० ‘गुटकाना’।
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गुटका  : पुं० [सं० गुटिका] [स्त्री० अल्पा० गुटकी] १. बहुत छोटे आकार में छपी हुई पुस्तक। जैसे–गुटका रामायण। २. कोई गोल ठोस चीज। गोला। जैसे–लट्टू। ३.गुपचुप नाम की मिठाई। ४. सूखे कत्थे में मिलाये हुए इलाइची लौंग सुपारी आदि जो मसाले के रूप में मिलाकर अथवा पान के स्थान पर खाई जाती है।
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गुटकाना  : स० [अनु०] १. गुटकना का स० रूप। गुटकने में प्रवृत्त करना। २. धीरे-धीरे किसी साधन के द्वारा गुट-गुट शब्द उत्पन्न करना। जैसे–ढोलक या तबला गुटकना।
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गुटकी  : स्त्री० [हिं० गुटिका] छोटी टिकिया। उदाहरण–गुरु मिलिया रैदास जी, दीन्हीं ग्यान की गुटकी।–मीराँ।
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गुटबंदी  : स्त्री० [हिं० गुट+फा० बंदी] १. कुछ लोगों का आपस में मिलकर एक अलग गुट या दल बनाने की क्रिया या भाव। २. पारस्परिक मतभेद, राग-द्वेष आदि के कारण किसी संस्था समुदाय आदि के लोगों का छोटे-छोटे गुट बनाना।
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गुटबैंगन  : पुं० [?] एक प्रकार का कँटीला पौधा।
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गुटरगूँ  : स्त्री० [अनु०] कबूतरों के गुट-गुट करते हुए बोलने का शब्द।
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गुंटा  : पुं० [देश०] पानी का छोटा गड्ढा या ताल।
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गुटिका  : स्त्री० [सं० वटी+क, पृषो० सिद्धि] १. छोटी गोली या टिकिया। वटिका। वटी। २. योग की एक प्रकार की सिद्धि से प्राप्त होनेवाली वह गोली जिसके संबंध में यह प्रवाद है कि इसे मुँह में रख लेने पर आदमी जहाँ चाहे वहाँ तत्काल अदृश्य होकर पहुँच सकता है.
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गुट्ट  : पुं०=गुट।
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गुट्टा  : पुं० [हि० गोटी] लाख की बनी हुई वह चौकोर गोटी जिनसे लड़कियाँ खेला करती हैं। वि० छोटे कद का। ठिंगना। नाटा। पुं० [पं०] गेंदे का पौधा और उसका फूल।
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गुट्ठलं  : वि० [हिं० गुठली] १. (फल) जिसमें बड़ी गुठली हो। २. गुठली के आकार का और कठोर या कड़ा। ३. (बात) जो जल्दी समझ में न आवे। जटिल या दुरूह। ४. (व्यक्ति) जिसकी समझ जल्दी में कोई बात न आती हो। जड़। मूर्ख। उदाहरण-ग्रंथ गथित गुट्ठल मति मूरखता जुत पंडिता।–रत्ना०। पुं० १. गुठला की तरह जमी या बंधी हुई गांठ। (क्व०) २. गिलटी।
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गुट्ठी  : स्त्री० [गिं० गुठली] १. कड़ी और मोटी गाँठ। २. पैर का टखना।
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गुंठन  : पुं० [सं०√गुंठ् (ढकना)+ल्युट्-अन] १. किसी वस्तु को दूसरी वस्तु से छिपाने ढकने लपेटने आदि की क्रिया या भाव। २. लेप लगाना।
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गुठला  : पुं० [गिं० गुठली] १. बड़ी और मोटी गुठली। २. उक्त आकार प्रकार की काई कड़ी चीज। जैसे–शरीर में मांस का गुठला। वि० [हिं० कुंठ] जिसकी धार ठीक काम करने के योग्य न रह गई हो। कुद। भाथरा। जैसे–गुठला चाकू, गुठले दाँत। पुं० [सं० अंगुस्थल, प्रा० अंगुठ्ठल] अँगूठें में पहनने का एक प्रकार का गहना।
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गुठलाना  : अ० [हिं० गुठली] १. गुठली की तरह कड़ा और गोल बनना या होना। जैसे–मांस गुठलाना। २. (अस्त्र-शस्त्र की धार का) कुंद या भोथरा होना। ३. खट्टी चीज खाने के बाद दाँतों का और कुछ खाने या चबाने के योग्य न रह जाना। स० गुठला (कुंद या भोथरा) करना।
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गुठली  : स्त्री० [सं० गुटिका] आम, जामुन आदि फलों के बीच से निकलनेवाला कड़ा तथा बड़ा बीज।
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गुंठा  : वि० [हिं० गठना] १. अच्छी तरह से गठा हुआ। २. जो आकार-प्रकार में छोटा, परन्तु गठा हुआ हो। ३. नाटा। ठिंगना। पुं० छोटे आकार का एक प्रकार का घोड़ा। टाँगन।
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गुंठित  : भू० कृ० [सं०√गुंठ्+क्त] १. ढका हुआ। २. छिपाया हुआ। ३. लेप किया हुआ। ४. चूर किया या पीसा हुआ।
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गुंड  : वि० [सं०√गुंड् (चूर्ण करना)+अच्] चूर किया या पीसा हुआ। पुं० १. चूर्ण। २. फूलों का पराग। ३. मलार राग का एक भेद। ४. कसेरू का पौधा।
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गुड़  : पुं० [सं० गुड, गुल, पा० गुलो, प्रा० पं० गुड़, बँ० उ० गुर, सि० गुरु, गु० गोड, ने० गुलियो, मरि० गुड़] १. ऊख के रस का वह रूप जो उसे पकाकर खूब गाढ़ा करने पर प्राप्त होता है, और जो बाजार में बट्टी भेली आदि के रूप में मिलता है। जैसे–गुड़ न दे तो गुड़ की सी बात तो कहे। (कहा०)। मुहावरा–गुड़ च्यूटाँ होना=(क) ऐसा पारस्परिक घनिष्ट संबंध होना जैसे गुड़ और च्यूँटे का होता है। (ख) बहुत अधिक अनुरक्त या लीन होना। गुड़ दिखाकर ढेला मारना=कुछ लालच देकर फिर ऐसा बरताव करना जिससे कुछ प्राप्त न हो उल्टे कष्ट भोगना पड़े। कुल्हिया में गुड़ फोड़ना= इस प्रकार गुप्त रूप से या छिपकर कोई काम करना कि दूसरे को पता न चले। गूँगे का गुड़ खाना=दे० ‘गूँगा’ के अन्तर्गत मुहा० पद–गुड़ भरा हँसिया=असमंजस का ऐसा काम जो बहुत अभीष्ट या प्रिय होने पर भी बहुत कठिन होने के कारण किया न जा सके। २. रहस्य संप्रदाय में, (क) मन, (ख) ईश्वर का ध्यान। (ग) गुरु का उपदेश।
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गुड़-धनिया  : पुं० [हिं० गुड़+धनिया] गुड़ में मिलाये हुए धनिये के बीज जो शुभ अवसरों पर थोड़े-थोड़े खाये खिलाये जाते है।
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गुंडई  : स्त्री० [हिं० गुंडा+ई० प्रत्यय] गुंडे होने की अवस्था, गुण या भाव। गुंड़ापन।
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गुंडक  : पुं० [सं० गुंड+कन्] १. मधुर और मंद स्वर। २. धूल। ३. तेल रखने का बरतन। ४. ऐसा आटा जिसमें धूल या मिट्टी मिली हो।
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गुड़क  : पुं० [सं० गुड़+कन्] १. गोलाकार पदार्थ। २. गेंद। ३. गुड़। ४. गुड़ में पकाकर तैयार की हुई दवा।
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गुड़गुड़  : स्त्री० [अनु०] १. वेगपूर्वक जल में से होकर वायु के बाहर निकलने पर होनेवाला शब्द। जैसे–हुक्के की गुड़गुड़, कूँए या नदी में लोटा डुबाने से होनेवाली गुड़गुड़। २. किसी बंद चीज में हवा के चलने से होनेवाला शब्द। जैसे–पेट में होनेवाली गुड़गुड़।
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गुड़गुड़ाना  : स्त्री० [अनु०] गुड़गुड़ शब्द होना। स० गुड़गुड़ शब्द उत्पन्न करना। जैसे–हुक्का गुड़गुड़ाना।
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गुड़गुड़ाहट  : स्त्री० [हिं० गुड़गुड़ाना+हट (प्रत्यय)] गुड़गुड़ शब्द करने या होने की अवस्था या भाव। गुड़गुड़ा।
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गुड़गुड़ी  : स्त्री० [हिं० गुड़गुड़ाना] १. बार-बार गुड़गुड़ शब्द होने की अवस्था या भाव। २. फरशी या और किसी प्रकार का हुक्का जिसमें तमाकू पीने के समय गुड़गुड़ शब्द होता है।
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गुड़च  : स्त्री०=गुरुच।
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गुड़धानी  : स्त्री० [हिं० गुड़+धान] १. बुने हुए गेहूँ को गुड़ में मिलाकर बनाया जानेवाला लड्डू। २. दे० गुड़-धनिया।
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गुड़ना  : स० [देश०] डंडा इस तरह फेंकना कि वह अपने सिरों के बल पलट खाते हुए कुछ दूर तक चला जाय। स० दे० ‘गुणना’। अ०=बजना। (राज०)
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गुड़रु  : पुं० [सं० गरुड़] एक प्रकार का पक्षी।
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गुड़ल  : वि० दे० ‘गँदला’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुड़लपण  : पुं०=गँदलापन। उदाहरण–पृथी पंक जलि गुड़लपण।–प्रिथीराज।
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गुंडली  : स्त्री०=कुंडली।
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गुड़ंवा  : पुं० [हिं० गुड़+आँब, आम] गुड़ (अथवा चीनी) में कच्चे आम को पकाकर बनाई जाने वाली एक तरकारी।
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गुड़हर  : पुं० [हिं० गुड़+हर] १. अड़हुल का पेड़ या फूल। जया। २. एक प्रकार का छोटा पौधा जिसकी पत्तियाँ और फूल अरहर की तरह के होते हैं।
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गुड़हल  : पुं० =गुड़हर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुंडा  : पुं० [सं० गंडक-गैडा, मि० असमी गुंड=गैंडा] [स्त्री० गुंडी] अनियंत्रित रूप से हर जगह उद्दण्डतापूर्वक आचरण या व्यवहार करनेवाला व्यक्ति।
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गुड़ा  : स्त्री० [सं० गुड़+टाप्] १. गुटिका। गोली। २. कपास। ३. थूहड़।
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गुडाकू  : पुं० [हिं० गुड़+तमाकू] गुड़ मिलाकर बनाया हुआ पीने का तमाकू।
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गुड़ाकेश  : पुं० [सं० गुड़ाका (निद्रा)-ईश ,ष० त०] १. शिव। महादेव। २. अर्जुन।
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गुंडापन  : पुं० [हिं० गुंड़ा+पन (प्रत्यय)] गुंडे होने की अवस्था या भाव।
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गुड़ासा  : पुं० [?] दे एक प्रकार का कीड़ा।
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गुंडित  : भू० कृ० [सं०√गुंड+क्त] १. चूर्ण किया या पीसा हुआ। २. धूल में मिलाया या ढका हुआ।
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गुड़िया  : स्त्री० [हिं० गुड्डा का स्त्री० अल्पा० रूप] १. बच्चों के खेलने का एक प्रकार का छोटा खिलौना जो छोटी लड़की के रूप में कपड़े,रबड़ आदि का बना होता है। पद-गुड़िया सा=बहुत छोटा परन्तु खूब सजा हुआ। जैसे–गुडिया सा घर। गुड़ियों का खेल=बहुत ही छोटा और सहज काम। मुहावरा–गुड़िया सँवारना=अपने वित्त के अनुसार जैसे–तैसे लड़की का ब्याह करना। २. कोई सुदर अथवा सजकर रहनेवाली निकम्मी और मूर्ख लड़की। स्त्री० [हिं० गोड़=पैर] छोटा पैर। (जैसे–बच्चों का)। उदाहरण-छोटी-छोटी गुड़ियाँ अँगुरियाँ छोटी।–सूर।
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गुड़िला  : पुं० [सं० गुड्, हिं० गुड्डा का पुराना रूप] १. मनुष्य की आकृति का पुतला। २. दे० ‘गुड्डा।
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गुड़ी  : स्त्री० [सं० गुड़िका] १. कोई गोल कड़ी चीज। गाँठ। गुट्ठी। २. मन में छिपा हुआ द्वेष। गाँठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० गुड्डी (पतंग)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुंडीर  : वि० [सं०√गुंड्+ईरन्] १. चूर्ण करने या पीसनेवाला। २. नष्ट-भ्रष्ट करनेवाला।
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गुड़ीला  : वि० [हिं० गुड़] १. जिसमें गुड़ मिला हो अथवा जो गुड़ के योग से बना हो। २. गुड़ के से स्वादवाला।
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गुड़ुच  : स्त्री०=गुरुच।
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गुडुची  : स्त्री० [सं०√गुड+ऊचट्-ङीप्] गुरुच। गिलोय।
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गुडुरू  : पुं० [सं० कुंडल] १. कोई ऐसी मंडलाकार रचना जिसके बीच में छोटा गड्ढा हो। २. उक्त आकार की वह लकड़ी या लोहे का टुकड़ा जिसमें किवाड़ की चूल बैठाई जाती है। ३. छोटा गड्ढा। ४. एक प्रकार का पक्षी जो प्रातःकाल मधुर स्वर में तुही-तुही बोलता है। उदाहरण–तुही-तुही कह गुडुरू खीहा।–जायसी।
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गुडुवा  : पुं० [?] [स्त्री० गुड़ई] १. बड़ी गुड़िया। २. दे० ‘गुड्डा’।
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गुड्डा  : पुं० [सं० गुड़-खेलने की गोली] [स्त्री० अल्पा० गुड़िया] १. कपड़े का बना हुआ पुतला जिसे लड़कियाँ खेलती है। मुहावरा–(किसी के नाम का) गुड़डा बनाना या बाँधना=भाँडों मिरासियों आदि का किसी जूस को अपमानित या बदनाम करने के लिए उक्त प्रकार का गुड्डा बनाना और गली-गली उसकी निंदा करते फिरना। २. उडाने के लिए पतले कागज की बड़ी गुड्डी या पतंग। ३. केवल देखने भर का, पर वस्तुतः अकर्मण्य या निकम्मा व्यक्ति। जैसे–कुसंस्कारों के गुड़्डे। ४. बड़ी पतंग।
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गुड्डी  : स्त्री० [सं० गुरु-उड्डीन] १. बहुत पतले कागज का वह चौकोर टुकड़ा जो डोर या नख की सहायता से आकाश में उड़ाया जाता है। छोटा कनकौआ या पतंग। २. घुटने पर की हड्डी। चक्की। मुहावरा–(किसी की) हड्डी-गुड्डी तोड़ना=बहुत अधिक मारना-पीटना। ३. चिड़ियों के डैनों या परों की वह स्थिति जो उड़ने के कुछ पहले होती है। कुंदा। ४. एक प्रकार का छोटा हुक्का। ५. दे० गुड़िया।
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गुड्डू  : पुं० [?] एक प्रकार का छोटा कीड़ा जो धूल में गोलाकार घर बनाकर रहता है।
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गुढ़ना  : अ० [हिं० गुण] गुण सीखना या गुणों से युक्त होना। जैसे–तुम पढ़े तो हो पर गुढ़े नही हो।
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गुढा  : पुं० [सं० गूढ़] जंगल में चोरों डाकुओं आदि के छिपाने का स्थान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुढ़ोक्ति  : स्त्री० [गूढ़-आशय, कर्म० स०] १. गूढ़ कथन या बात। २. साहित्य में एक अलंकार जिसमें कोई व्यंग्यपूर्ण बात किसी दूसरे से आदमी को सुनाने के लिए किसी उपस्थिति आदमी से कही जाए।
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गुण  : पुं० [सं०√गुण् (आमंत्रण)+अच्] १. किसी वस्तु की वह महत्वपूर्ण या विशिष्ट निजी विशेषता जिसके कारण वह दूसरी वस्तुओं से अलग मानी तथा रखी जाती है। २. किसी वस्तु का वह तत्त्व जिसके प्रभाव से खराबियाँ तथा बुराइयों दूर होती हैं। गुणकारी तथा लाभदायक तत्त्व। जैसे–औषध का गुण। (क्वालिटी,प्रापर्टी) ३. किसी व्यक्ति की वह प्राकृतिक विशेषता जिसके कारण समाज में उसकी प्रशंसा होती हो अथवा होनी चाहिए। मुहावरा–(किसी की) गुण गाना=किसी के किये हुए उपकार या अच्छे कामों का खूब चर्चा करना। गुण मानना=उपकृत होने पर कृतज्ञता प्रकट करना। उदाहरण–मानूँ रे ननदियाँ मै तेरा गुण मानू।–गीत। ४. किसी कला विद्या शास्त्र आदि में प्राप्त की जानेवाली निपुणता। प्रवीणता। ५. कला या विद्या। हुनर। ६. प्रकृति के अंतर्गत मानी जानेवाली तीन प्रकार की वृतियाँ जो जीव-जन्तुओं मनुष्यों, वनस्पतियों आदि में पाई जाती हैं। यथा–सत्त्व, रज और तम। विशेष–सत्त्व,रज और तम ये तीनों गुण सांख्य में कहे गये हैं। परन्तु योगशास्त्र में शम,दम,और तितिक्षा ये तीनो गुण कहे गये है। ७. (उक्त वृतियों के आधार पर) तीन की संख्या का सूचक शब्द। ८. राजनीति में, परराष्ट्र के साथ व्यवहार करने के ६. ढंग-संधि विग्रह, यान, आसन द्वैध और आश्रय। ९. संस्कृत व्याकरण में ‘अ’, ‘ए’, और ओ स्वर। १॰. साहित्य में वह तत्त्व जिससे काव्य की शोभा बढती है। जैसे–ओज, प्रसाद, माधुर्य आदि। ११. प्रकृति। १२. रस्सी या तागा। डोरा। 1३. धनुष की डोरी। प्रत्यय एक जो किसी संख्या के अंत में लगकर उसका उतनी ही बार और होना सूचित करता है। जैसे–द्विगुण, त्रिगुण, चतुर्गुण आदि। अव्यय के अनुसार। उदाहरण-इंगित जामै समय,गुण,बरनहु दूत अलोभ।–केशव।
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गुण-कर  : वि० [ष० त० ] गुणकारी। लाभदायक।
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गुण-कारक  : वि० [ष० त० ] गुण करनेवाला। फायेदेमंद। लाभदायक।
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गुण-गौरी  : स्त्री० [तृ० त०] १. गौरी के समान गुणवाली सौभाग्यवती स्त्री। २. स्त्रियों का एक प्रकार का व्रत और पूजन। गनगौर। (देखें)।
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गुण-ग्राहक  : पुं० [ष० त० ]१. गुण को परखकर उसका आदर और सम्मान करनेवाला व्यक्ति। कदरदान। २. गुणियों का सम्मान करनेवाला।
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गुण-दोष  : पुं० [द्व० स०] किसी वस्तु की अच्छी और बुरी बातें। अच्छाइयाँ और बुराइयाँ। (मेरिट्स)
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गुण-धर्म  : पुं० [द्व० स०] किसी पदार्थ में विषेश रूप से पाया जानेवाला उसका कोई गुण या धर्म। वस्तुगत विशेषता (प्रापर्टी)।
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गुण-वाचक  : वि० [ष० त०] जो किसी चीज या बात का गुण या विशेषता सूचित करता हो। जैसे–गुणवाचक विशेषण, गुणवाचक संज्ञा।
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गुण-वाद  : पुं० [ष० त०] मीमांसा में अर्थवाद का एक भेद।
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गुण-विधि  : स्त्री० [ष० त०] मीमांसा में वह विधि जिसमें गुण-कर्म का विधान हो।
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गुण-व्रत  : पुं० [मध्य० स०] जैनियों में मूलव्रतों की रक्षा करने वाले तीन व्रत-दिग्व्रत, भोगोपभोगनियम और अनर्थ-दंड-निषेध।
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गुण-संग  : पुं० [ष० त०] गुणों का पारस्परिक मेल या सामंजस्य।
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गुण-सागर  : वि० [ष० त०] (व्यक्ति) जिसमें बहुत से अच्छे-अच्छे गुण हों। बहुत बड़ा गुणी। पुं० एक राग जो हिंडोल राग का पुत्र कहा गया है।
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गुण-हीन  : वि० [तृ० त०] जिसमें किसी प्रकार का या कोई गुण अथवा विशेषता न हो।
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गुणक  : पुं० [सं०√गुण+ण्वुल्-अक] १. वह अंक जिससे किसी अंक को गुणा करे। (मल्टिप्लायर) २. मालाकार। माली।
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गुणकरी  : स्त्री० [सं० गुणकर+ङीष्] सबेरे के समय गाई जानेवाली एक रागिनी जो किसी के मत से भैरव राग की और किसी के मत से डिंडोल राग की भार्या है।
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गुणकली  : स्त्री०=गुणकरी (रागिनी)।
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गुणकार  : पुं० [सं०गुण√कृ(करना)अण्] १. गुणवान्। गुणी। २. संगीतज्ञ। ३. रसोइया। ४. भीमसैन जो अज्ञातवास में रसोइए का काम करते थे।
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गुणकारी (रिन्)  : वि० [सं० गुण√कृ+णिनि] =गुणकारक।
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गुणग्राही (हिन्)  : वि० [सं० गुण√ग्रह (ग्रहण करना)+णिनि] [स्त्री० गुणग्राहिणी] =गुण-ग्राहक।
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गुणघाती (तिन्)  : वि० [गुण√हन् (हिसा)णिनि] गुण न मानकर उलटे अपकार करनेवाला। कृतघ्न।
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गुणज  : वि० [सं० गुण√जन् (उत्पन्न होना)+ड] (अंक) जिसका गुणा किसी विशेष दृष्टि या प्रकार से हो सकता हो। (मल्टीपुल्) जैसे–सार्वगुणज। (कामन मल्टीपुल्)
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गुणज्ञ  : वि० [सं० गुण√ज्ञा (जानना)+क] १. गुण को जानने और पहचानने वाला। गुण का पारखी। २. (व्यक्ति) जिसमें बहुत से गुण हों।
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गुणन  : पुं० [सं०√गुण+णिच्+ल्युट्-अन] [वि० गुण्य, गुणीय, गुणित] १. गणित में, एक संख्या को दूसरी संख्या से गुणा करना। ज़रब देना। २. हिसाब करना गिनना। ३. अनुमान कल्पना या विचार करना। ४. उद्धरणी करना। रटना। ५. मनन करना। सोचना।
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गुणन-फल  : पुं० [ष० त० ] वह संख्या जो एक संख्या को दूसरी संख्या से गुणन करने पर प्राप्त होती है। (प्राडक्ट)
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गुणना  : स० [सं० गुणन] १. गुणन या गुणा करना। जरब देना। २. मन में सोचना, समझना या विचार करना। गुनना।
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गुणनिका  : स्त्री० [सं०√गुण+युच्-अन+कन्-टाप्] १. नाटक में पूर्वरंग। २. नृत्य की कला या विद्या। ३. रत्न। ४. हार। ५. शून्य।
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गुणनीय  : वि० [सं०√गुण्+अनीयर] जिसका गुणन या गुणा हो सके अथवा किया जाने को हो।
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गुणमै  : पुं०=गुणमोती। वि०=गुणमोती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुणमोती  : पुं० [सं० गुण-मौक्तिक] एक प्रकार का बहुमूल्य मोती। सर्पमणि या गजमुक्ता की भाँति राजस्थानी साहित्य में आभा एवं सौन्दर्य की दृष्टि से इसका विशेष स्थान है। उदाहरण–गुणमोती मखतूल गुण।–प्रिथीराज।
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गुणवंत  : वि० [सं० गुणवत्] [स्त्री० गुणवती] (व्यक्ति) जिसमें अनेक अच्छे गुण हों। गुण या गुणों से युक्त। गुणवान्।
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गुणवान् (वत्)  : वि० [सं०गुण+मतुप्, वत्व] [स्त्री० गुणवती] (व्यक्ति) जो अनेक प्रकार के गुणों से युक्त हो। गुणी।
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गुणा  : पुं० [सं० गुणन] [वि० गुण्य, गुणित] गणित की वह क्रिया जो यह जानने के लिए की जाती है कि किसी अंक या संख्या को एक से अधिक बार जोड़ने पर फल कितना होता है। जरब। (मल्टीप्लिकेशन) जैसे–यदि यह जानना हो कि ८ को लगातार ५ बार जोड़ने से कितना होगा तो ८ से ५ का गुणा करना पड़ेगा।
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गुणांक  : पुं० [गुण-अंक, ष० त०] गणित में वह राशि या संख्या जिसमें किसी दूसरी राशि या संख्या (गुण्यक) को गुणा किया जाता है।
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गुणाकर  : वि० [गुण-आकर, ष० त०] जिसमें अनेक गुण हों। बहुत बड़ा गुणवान। गुणों की खान।
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गुणाढ्य  : वि० [गुण-आढ्य,तृ० त०] बहुत गुणोंवाला। गुण–पूर्ण। पुं० पैशाची भाषा के एक प्रसिद्ध प्राचीन कवि।
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गुणातीत  : वि० [गुण-अतीत,द्वि० त०] १. गुणों से अल्पित,परे और भिन्न। २. जिसका सत्त्व, रज आदि गुणों से कोई संबंध न हो और जो इन सब से परे हो। (परमात्मा या ब्रह्म का एक विशेषण। पुं० परमात्मा। ब्रह्म।
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गुणानुवाद  : पुं० [गुण-अनुवाद, ष० त०] किसी के अच्छे गुणों की चर्चा या वर्णन। गुण-कथन। तारीफ। प्रशंसा।
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गुणान्वित  : वि० [गुण-अन्वित,तृ० त०] गुणों से युक्त।
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गुणालय  : वि० [गुण-आलय, ष० त०] बहुत से गुणों वाला। गुणाकर।
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गुणिका  : स्त्री० [सं०√गुण्+इन्+क-टाप्] शरीर पर होनेवाली गाँठ या सूजन।
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गुणित  : भू० कृ० [सं०√गुण् (आवृत्ति)+क्त] जिसका गुणन किया गया हो। गुणा किया हुआ।
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गुणी (णिन्)  : वि० [सं० गुण+इनि] (व्यक्ति) जिसमें अनेक गुण हों। गुणों से युक्त। पुं० १. कला-कुशल पुरुष। हुनरमंद। २. वह जिसमें विशेष या अलौकिक गुण या शक्ति हो। ३. झाड़-फूँक करनेवाला ओझा।
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गुणीभूत  : वि० [सं० गुण+च्वि√भू (होना)+क्त] १. मुख्य अर्थ से रहित। २. गौण बना हुआ।
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गुणीभूत व्यंग्य  : पुं० [कर्म० स०] काव्य में व्यंग्य का वह भेद या प्रकार जिसमें अर्थ या तो रसों आदि का अंग होता है या काकु से आक्षिप्त या वाच्यार्थ का उपपादक होता है अथवा अर्थ अस्फुट रहता है। इसमें वाच्यार्थ ही प्रधान रहता है, व्यंग्य नहीं।
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गुणेश्वर  : पुं० [गुण-ईश्वर, ष० त०] १. तीनों गुणों पर प्रभुत्व रखनेवाला। पमेश्वर। ईश्वर। २. चित्रकूट पर्वत।
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गुणोपेत  : वि० [गुण-उपेत,तृ० त०]१. गुणों से युक्त। २. गुणवान्। गुणी।
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गुण्य  : पुं० [सं० गुण+यत्] १. वह संख्या जिसका गुणन करना हो अथवा किया जा सकता हो। २. गुणी।
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गुण्यांक  : पुं० [गुण्य-अंक,कर्म० स०] वह संख्या या राशि जिसे गुणा किया जाए।
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गुतेला  : पुं० [?] एक प्रकार की मछली। बंगू।
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गुत्ता  : पुं० [देश०] १. लगान पर खेत जोतने-बोने आदि के लिए खेतिहर को देने का व्यवहार। २. लगान।
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गुत्थ  : पुं० [हं० गुथना] १. हुक्के के नैचे पर लपेटे हुए सूत की वह बुनावट जो चटाई की बुनावट की तरह होती है। २. उक्त प्रकार की बुनावट वाला नैचा।
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गुत्थम-गुत्था  : पुं० [हं० गुथना] १. दो जीवों पशुओं या व्यक्तियों में लड़ाई होते समय की वह स्थिति जिसमें एक दूसरे को कसकर दबाए अथवा पकड़े होते हैं और नीचे गिराने या पटकने की चेष्टा करते है। २. उलझाव। फँसाव।
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गुत्थी  : स्त्री० [हिं० गुथना] १. धागे, रस्सी आदि का उलझा हुआ रूप। २. किसी विषय समस्या आदि का उलझा हुआ ऐसा रूप जिसका सहसा निराकरण न हो सके। मुहावरा–गुत्थी सुलझाना=कठिन समस्या की मीमांसा करना। कठिनाइयों से बचने का मार्ग निकालना।
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गुत्स  : पुं० [सं०√गुध् (वेष्टित करना)+स,कित्] दे० गुच्छ।
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गुथना  : अ० [सं० गुत्सन० प्रा० गुत्थन] १.धागे, रस्सी आदि के अंगों का आपस में उलझ जाना। २. गूँथा या पिरोया हुआ। ३. भद्दी तरह से सीया जाना। ४. लड़ते समय एक दूसरें को कसकर दबाना या पकड़ना। पुं० गुलेल में लगी हुई वह रस्सी जिसकी सहायता से ढेला फेंका जाता है।
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गुथवाना  : स० [हिं० गूँथना का प्रे०] गुथने का काम दूसरे से करवाना।
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गुथुवाँ  : वि० [हि० गुथना] १. उलझा हुआ। २. गूथा हुआ।
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गुद  : स्त्री० [सं०√गुद् (खेलना)+क] मल-द्वार। गुदा।
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गुद-कील  : पुं० [ष० त०] अर्श या बवासीर नाम का रोग।
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गुद-गुदा  : वि० [हिं० गुदा] [स्त्री० गुदगुदी] १. (गूदेदार वस्तु) जो छूने पर मुलायम तथा भली प्रतीत हो। २. (ऐसी वस्तु) जिसमें कोई मुलायम चीज भरी हो। ३. मांसल।
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गुद-ग्रह  : पुं० [ष० त०] कोष्ठबद्धता का रोग।
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गुद-निर्गम  : पुं० [ष० त०] गुदा से काँच बाहर निकालने का रोग।
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गुद-पाक  : पुं० [ष० त०] गुदा के पक जाने का रोग,
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गुद-भ्रंश  : पुं० [ष० त०] गुदा से काँच निकलने का रोग।
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गुद-स्तंभ  : पुं० [ष० त०] पेट में से मल का जल्दी न निकलना। मलावरोध। कब्जियत।
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गुदकार  : वि०=गुदकारा।
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गुदकारा  : वि० [हिं० गुदा वा गुदार] १. जिसमें गूदा हो। गूदे से भरा हुआ। २. मुलायम और लचीला। गुदगुदा।
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गुदगर  : वि०=गुदकारा।
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गुदगुदाना  : अ० [हिं० गुदगुदा] १. किसी के कोमल या मांसल अंगों को उँगलियों से इस प्रकार खुजलाना या सहलाना कि वह हँसने लगे। गुदगुदी करना। २. विनोद या परिहास के लिए छेड़ना। ३. किसी के मन में किसी बात की इच्छा या लालसा उत्पन्न करना।
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गुदगुदाहट  : स्त्री० [हिं० गुदगुदाना+आहट (प्रत्यय] १. गुदगुदाने की क्रिया या भाव। २. मन में होनेवाली किसी बात की हलकी इच्छा। ३. दे० ‘गुदगुदी’।
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गुदगुदी  : स्त्री० [हिं० गुदगुदाना] १. किसी द्वारा गुदगुदाये जाने से शरीर में होनेवाली हलकी खुजली या सुरसुरी। २. हलकी इच्छा या वासना। ३. उल्लास। ४. संभोग की इच्छा या कामना।
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गुदड़िया  : पुं० [हिं० गूदड़] १. गुदड़ी पहनने या ओढ़नेवाला। २. गूदड़ या रद्दी चीजें खरीदकर बेचने वाला व्यापारी। ३. खेमा, दरी, फर्श आदि चीजें किरायें पर देनेवाला व्यापारी। वि० गुदड़ी या गूदड़ संबंधी।
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गुदड़ी  : स्त्री० [हिं० गूथना-मोटी सिलाई करना] १. फटे-पुराने कपड़ों की कई तहों को एक में सीकर बनाया हुआ ओढ़ना या बिछावना। २. टूटी-फूटी या फटी पुरानी वस्तुओं की संज्ञा। ३. वह स्थान जहाँ पर फटी पुरानी तथा टूटी-फूटी वस्तुएँ मिलती हो। पद-गुदड़ी बाजार=वह बाजार जिसमें पुरानी या टूटी-फूटी वस्तुएँ बिकती हो। गुदड़ी में का लाल-(क) तुच्छ स्थान में छिपी या दबी हुई उत्तम वस्तु। (ख) ऐसा गुणी जिसके रूप-रंग, वेष आदि से उसकी गुणी होने का पता न चलता हो।
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गुदनहारी  : स्त्री०=गोदनहारी।
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गुदना  : अ० [हिं० गुदना का अनु०] गोदा जाना। पुं० दे० गोदना।
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गुदनी  : स्त्री० दे० गोदनी।
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गुदमा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का मोटा और मुलायम पहाड़ी कंबल।
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गुदर  : पुं० [फा० गुजर] १. निर्वाह। २. निवदन। प्रार्थना। ३. निवेदन आदि के लिए किसी की सेवा में होनेवाली उपस्थिति। हाजिरी।
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गुदरना  : अ० [फा० गुजर+हिं० ना० (प्रत्यय)] १. गुजरना। २. सेवा में उपस्थित होना। ३. अलग रहना या होना। स० दे० गुदरानना।
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गुदरानना  : स० [फा० गुजरी+हिं० ना (प्रत्यय)] १.किसी के आगे रखना या पेश करना। २. निवेदन करना। ३. भेंट करना।
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गुदरिया  : पुं० [देश०] एक प्रकार का नीबू। स्त्री०=गुदड़ी।
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गुदरी  : स्त्री०=गुदड़ी।
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गुदरैन  : स्त्री० [हिं० गुदरना] १. याद किये हुए पाठ को दोहराना या सुनाना। २. परीक्षा।
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गुँदला  : पुं० [सं० गुंडाला] नागरमोथा नाम की घास।
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गुदवाना  : स० [हिं० गोदना] गोदने का काम दूसरे से कराना। गुदाना। जैसे–गोदना गुदवाना।
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गुदा  : स्त्री० [सं० गुद] वह इंद्रिय जिससे प्राणी मल त्याग करते हैं। मलद्वार।
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गुदांकुर  : पुं० [गुद-अंकुर, स० त०] १. गुदा में निकलनेवाले बवासीर के दाने या मसे। २. बवासीर।
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गुदाज  : वि० [फा०] १. गरदाया हुआ। गुदकारा। २. गूदेदार। ३. मांस से भरा हुआ। मांसल। मोटे दलवाला। ४. खूब चमकीला और तेज। (रंग)।
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गुदाजरंग  : पुं० [फा०] चित्रकला में, खूब चमकीला रंग।
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गुदाना  : स०=गुदवाना।
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गुदाम  : पुं० दे० ‘गोदाम’। पुं० दे० ‘बुताम’ (बटन)।
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गुदार  : वि० [हिं० गूदा] १. जिसमें अधिक गूदा हो। गूदेदार। २. मांसल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुदारना  : स० [हिं० गुदरना का स० रूप] १. गुजारना। २. सेवा में उपस्थित करना। ३. अलग करना। ४. छोड़ देना। ५. पढ़कर सुनाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुदारा  : पुं० [फा० गुजारा] १. नाव पर नदी पार करने की क्रिया। उतारा। २. वह स्थान जहाँ से लोग नाव पर सवार होते या उतरते हैं। मुहावरा–गुदारे लगना=(क) किनारे लगना। (ख) कार्य पूरा या समाप्त होना। ३. दे० ‘गुजारा’। वि०=गुदार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुदियारा  : वि०=गुदकारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुदी  : स्त्री० [देश०] नदी के किनारे का वह स्थान जहाँ टूटी फूटी नावों की मरम्मत होती तथा नई नावें बनाई जाती हैं।
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गुँदीला  : वि० [हिं० गोद+ला] (वृक्ष) जिसका निर्यास गोंद के रूप में होता हो। गोंदवाला।
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गुदुरी  : स्त्री० [हिं० गदराना] १. मटर की फली। २. मटर तथा चने की फसल में लगनेवाला एक प्रकार का कीड़ा।
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गुदौष्ठ  : पुं० [गुद-ओष्ठ, ष० त०] गुदा के मुख पर का मांस।
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गुद्दा  : पुं० [देश०] वृक्ष की मोटी डाली। पुं० =गूदा। पुं० =कुंदा (लकड़ी का)।
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गुद्दी  : स्त्री० [हिं० गूदा](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. किसी फल के बीज के भीतर का गूदा। गिरी। मगज। २. सिर का पिछला भाग। मुहावरा–आँखें गुद्दी में होना या चला जाना=ऐसी मानसिक स्थिति होना जिसमें कोई चीज ठीक तरह से दिखाई न दे अथवा कोई बात समझ में न आवे। (परिहास और व्यंग्य) गुद्दी से जीभ खींचना=(क) जबान खींचकर निकाल लेना। (ख) बहुत कड़ा दंड देना। पद-गुद्दी की नागिन=गरदन के पीछे बालों की भौरी जो बहुत अशुभ मानी जाती है। ३. हथेली पर का गुदगुदा मांसल अंश । गद्दी।
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गुंधना  : अ० [सं० गुध=क्रीड़ा] १. हिं० गूँधना का अ०। गूँधा जाना। २. पानी में मिलाकर माड़ा या साना जाना। ३. तागों, बालों की लटों आदि का गुच्छेदार लड़ी के रूप में गूँथा या पिरोया जाना। अ० दे० ‘गुथना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुँधवाना  : स० [हिं० गूँधना का प्रे०] गूँधने का काम दूसरे से करवाना। दूसरे को कोई चीज गूँधने में प्रवृत्त करना।
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गुँधाई  : स्त्री० [हिं० गूँधना] १. गूँधने की क्रिया भाव या मजदूरी।
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गुँधावट  : स्त्री० [हिं० गूँधना] गूँधने की क्रिया ढंग या भाव।
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गुध्र  : पुं० [सं० Öगृध्+क्रन्] [स्त्री० गृध्री] १. गिद्ध नाम का प्रसिद्ध शिकारी पक्षी। २. जटायु। वि० लालची लोभी।
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गुन  : पुं० [सं० गुण] १. गुण। २. ऐसा कार्य जिसे पूरा करने के लिए विसिष्ट गुण या योग्यता अपेक्षित ह। उदाहरण-काहू नर सों यह गुन होई।–जायसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुनगुना  : वि० [अनु०] (व्यक्ति) जो नाक से बोलता हो। वि०=कुनकुना (कदुष्ण)।
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गुनधुन  : स्त्री० [हिं० गुनना+धुन] सोच-विचार। चिंतन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुनना  : अ० [सं० गुणन] १. गुणों आदि से युक्त होना। जैसे–पढ़ना और गुनना। २. मन में सोच विचार करना। कुछ समझने के लिए सोचना। ३. किसी को महत्व का समझना। जैसे–वह तुम्हें गुनता है। स० १. कथन या वर्णन करना। २. गुणा करना। पुं० गुनी या विचारी हुई बात।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुनमंत  : वि०=गुणवंत।
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गुनरखा  : पुं०=गोनरखा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुनवंत  : वि०=गुणवान्।
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गुनह  : पुं० [फा०] ‘गुनाह’ का संक्षिप्त रूप। जैसे–गुनहगार।
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गुनहगार  : वि० [फा०] १. जिसने कोई गुनाह किया हो। पापी। अपराधी। ३. दोषी।
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गुनहगारी  : स्त्री० [फा०] गुनहगार होने की अवस्था या भाव।
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गुनही  : पुं०=गुनहगार। वि० दे० ‘गुनहगार’।
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गुना-प्रत्य०  : [सं० गुणन] १. एक प्रत्यय जो संख्यावाचक शब्दों के अंत में यह सूचित करने के लिए लगाया जाता है कि कोई परिमाण, मात्रा या संख्या निरंतर कई बार जोड़ने पर कितनी होती है। जैसे–चौगुना, दसगुना आदि। पुं० गणित में गुणन करने की क्रिया। गुणन। पुं,. [?] टिकिया के आकार का एक प्रकार का मीठा पकवान।
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गुनावन  : पुं० [सं० गुणन] १. मन में किसी बात पर सोच विचार करने की क्रिया या भाव। उदाहरण–लखत भूप यह साज मनहिं मन करत गुनावन।–रत्ना०। २. आपस में होने वाला परामर्श। सलाह-मशविरा।
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गुनाह  : पुं० [फा०] धर्म, विधि शासन आदि का आज्ञा या मान्यता के विरुद्ध किया हुआ ऐसा आचरण जिसके कारण उसके कर्त्ता को दण्ड का भागी बनना पड़ता है। अपराध। पाप।
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गुनाहगार  : पुं०=गुनहगार।
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गुनाही  : वि० [फा० गुनाह] अपराधी या दोषी। गुनहगार।
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गुनिया  : पुं० [हिं० गुणी] वह जिसमें कोई विशिष्ट गुण हो। गुणवान। गुणी। स्त्री० [हिं० कोण] १. वह उपकरण या औजार जिससे बढ़ई, राज आदि कोने की सीध नापते हैं। २. दे० ‘कोनिया’। पुं० [हिं० गून] नाव की गून खींचनेवाला मल्लाह। गुनरखा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुनियाला  : वि० [हिं० गुण] गुणोंवाला। गुणी। उदाहरण–प्रीति अड़ी है तुज्झ से बहु गुनियाला कंत।–कबीर।
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गुनी  : वि०, पुं०=गुणी। वि० [सं० गुण] जिसमें डोरी या रस्सी लगी हो। उदाहरण–मोहन गुनी सुनी न ऐसी प्रीति।–घनानंद।
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गुनीला  : वि० [हिं० गुणी] १. जिसमें गुण हो। गुणवान। २. गुणन या गुणा करने वाला। ३. अपने गुणों के द्वारा लाभ पहुँचाने या हित करनेवाला।
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गुनोबर  : पुं० [फा० सनोबर] देवदार या सनोबर की जाति का पेड़।
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गुन्ना  : पुं० [अ० गुन्नः] अनुस्वार का वह आधा उच्चारण जो हिंदी में अर्द्ध चंद्र से सूचित होता है। जैसे–रवाँ में नून (अनुस्वाद) गुन्ना है।
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गुन्नी  : स्त्री० [सं० गुण, हिं० गून] रस्सी को बटकर बनाया हुआ एक प्रकार का कोड़ा जिससे व्रज में होली के अवसर पर लोग एक दूसरे को मारते हैं।
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गुपचुप  : क्रि० वि० [हिं० गुप्त+चुप] बिना किसी से कुछ कहे या बतलाए हुए। पुं० १. गुलाब जामुन की तरह की एक मिठाई। २. लड़कों का एक खेल जिसमें वे गाल या मुँह फुलाकर धीरे से उस पर मुक्का मारते हैं। ३. एक प्राकर का खिलौना।
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गुपंति  : वि० =गुप्त। स्त्री०=गुप्ति।
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गुपाल  : पुं०=गोपाल।
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गुपुत  : वि० =गुप्त।
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गुप्त  : वि० [सं०√गुप् (छिपाना, रक्षा करना)+क्त] १. (कार्य या व्यवहार) जो दूसरों की जानकारी से छिपाकर किया जाय। जैसे–गुप्त दान, गुप्त मंत्रणा। २. (गुण, वस्तु आदि) जिसके संबंध में लोग परिचित न हों। जैसे–गुप्त मार्ग। ३. जिसे जानना कठिन हो। गूढ़। दुरूह। ४. जिसका पता ऊपर से देखने पर न चले। जैसे–गुप्त भार। ५. छिपाकर रखा हुआ। रक्षित। पुं० १. मगध का एक प्राचीन राजवंश जिसने सारे उत्तरीय भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। (ई० चौथी-पाँचवी शताब्दी) २. वैश्यों के नाम के साथ लगनेवाला अल्ल। जैसे–कृष्णदास गुप्त।
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गुप्त-काशी  : स्त्री० [कर्म० स०] हरिद्वार और बद्रीनाथ के बीच में पड़नेवाला एक तीर्थ।
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गुप्त-चर  : पुं० [कर्म० स०] १. प्राचीन भारत में वह व्यक्ति जो गुप्त रूप से दूसरे राज्यों के भेद जानने के लिए इधर-उधर भेजा जाता था। २. जासूस। भेदिया।
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गुप्त-दान  : पुं० [कर्म० स०] ऐसा दान जो अपना नाम, पता और दान की वस्तु का मूल्य,स्वरूप आदि बिना किसी पर प्रकट किये हुए दिया जाय।
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गुप्तक  : वि० [सं० गुप्त से] किसी चीज को छिपा तथा सँभालकर रखनेवाला रक्षक।
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गुप्ता  : स्त्री० [सं० गुप्त+टाप्] १. साहित्य में, वह परकीया नायिका जो पर-पुरुष से अपना संबंध या संभोग छिपाने का प्रयत्न करती हो। २. रखी हुई स्त्री० रखेली।
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गुप्ति  : स्त्री० [सं०√गुप्+क्तिन्] १. गुप्त रखने अर्थात् छिपाने की क्रिया या भाव। २. रक्षा करने या रक्षित करने की क्रिया या भाव। ३. तंत्र में गुरु से मंत्र लेने के समय का एक संस्कार जो मंत्र को गुप्त रखने के उद्देश्य से किया जाता है। ४. कारागार। ५. गुफा। ६. योग का यम नामक अंग।
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गुप्ती  : स्त्री० [सं० गुप्त] १. कुछ अस्त्रों में रहनेवाली वह अवस्था जिसमें आघात करने वाली चीज किसी आवरण में छिपी रहती है और खटका दबाने पर बाहर निकल आती है। २. वह छड़ी जिसके अंदर गुप्त रूप से किरच या पतली तलवार छिपी रहती है।
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गुप्तीदार  : वि० [हिं० गुप्ती+फा० दार (प्रत्य)] (अस्त्र) जो गुप्तीवाली प्रक्रिया से बना हो। जैसे–गुप्तीदार कुलंग, छड़ी या फरसा।
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गुप्तोत्प्रेक्षा  : स्त्री० [सं० गुप्त-उत्प्रेक्षा, कर्म० स०] उत्प्रेक्षा अलंकार का एक भेद जिसमें ‘मानों’ जानो आदि सादृश्यवाचक शब्द नहीं होते। प्रतीयमाना उत्प्रेक्षा।
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गुप्फा  : पुं० [सं० गुम्फ] गुच्छा।
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गुँफ  : पुं० [सं०√गुंफ् (गूँथना)+घञ्] [वि० गुंफित] १. कई चीजों में आपस से मिलकर उलझने या गुथने की क्रिया दशा या भाव। २. फूलों का गुच्छा। ३. मूँछ। ४. गल-मुच्छा। ५. कारण माला अलंकार का एक नाम।
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गुंफन  : पुं० [सं०√गुंफ्+ल्युट्-अन] [वि० गुंफित] १. डोरे, तागे आदि के रूप में होनेवाली चीजों को आपस में इस प्रकार उलझाना या फँसाना कि उनका रूप सुंदर हो जाय। गुँथना। २. डोरे आदि में पिरोना। जैसे–माला गुंफन। ३. भरने का काम। भराई। जैसे–शब्दों का गुंफन।
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गुंफना  : स्त्री० [सं०√गुंफ्+युच्–अन, टाप्] १. गुंफन या उसके फलस्वरूप प्राप्त होनेवाला रूप। २. शब्दों आदि की मधुर और सुन्दर योजना। स०=गूथना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुफा  : स्त्री० [सं० गुहा] जमीन अथवा पहाड़ के अंदर का गहरा तथा अँधेरा गड्ढा। कंदरा।
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गुंफित  : भू० कृ० [सं०√गुंफ्+क्त] १. गूँथा हुआ। २. सुन्दरतापूर्वक एक दूसरें के साथ मिलाया या लगाया हुआ।
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गुफ़्त  : वि० [फा०] कहा हुआ। स्त्री० उक्ति० कथन।
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गुफ़्तगू  : स्त्री० [फा०] दो पक्षों में होनेवाली साधारण बातचीत। वार्तालाप।
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गुफ्तार  : स्त्री० [फा०] १. बात-चीत। २. बात-चीत करने का ढंग।
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गुंबज  : पुं०=गुंबद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुंबद  : पुं० [फा०] वास्तु रचना में वह शिखर जो आधे गोले के आकार का और अंदर से पोला हो। गुंबज। जैसे–मजसिदों का गुंबद। पद-गुंबद की आवाज=प्रतिध्वनि।
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गुंबदी  : वि० [फा०] गुंबद की शकल का। पुं० गुंबद के आकार का वह गोल खेमा जिसके बीचोबीच एक ही खंभा होता है।
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गुबरैला  : पुं० [हिं० गोबर+ऐला (प्रत्य०)] सड़े या सूखे हुए गोबर में पड़ने या रहनेवाला एक प्रकार का छोटा कीड़ा।
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गुंबा  : पुं० [फा० गुंबद] सिरमें चोट लगने और उसके फलस्वरूप खून जमने से पड़नेवाली गाँठ। गुलमा।
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गुबार  : पुं० [अं०] १. गर्द। धूल। पद-गर्द गुबार=हवा में उड़नेवाली धूल या मिट्टी। २. मन में रहनेवाला दुर्भाव या मैल। मुहावरा–(मन का) गुबार निकालना=अप्रिय तथा कटु बातें कहकर मन का क्रोध या दुःख कम करना। ३. आँखों की वह अवस्था जिसमें चीजें धुँधली दिखाई देती हैं।
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गुबारा  : पुं० दे० ‘गुब्बारा’।
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गुबिंद  : पुं० =गोविन्द।
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गुब्बा  : पुं० [देश०] रस्सी में डाला हुआ फंदा। (लश०)
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गुब्बाड़ा  : पुं० =गुब्बारा।
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गुब्बार  : पुं० १ =गुबार। २. =अफशाँ।
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गुब्बारा  : पुं० [हिं० कुप्पा] १. कागज आदि का बना हुआ एक गोलाकार उपकरण जिसके बीच में जलता हुआ लत्ता बाँधने से उसके धूँए के जोर से वह आकाश में उड़ने लगता है। २. रबड़ की बनी हुई एक प्रकार की थैली जिसमें हवा से कोई हलकी गैस भरने से वह हवा में उड़ने लगती है। ३. हवा में भरी हुई उक्त आकार की एक थैली जिसकी सहायता से सैनिक लोग हवाई जहाजों पर से जमीन पर उतरते हैं। छतरी। ४. गोले के आकार की एक प्रकार की आतिशबाजी जो ऊपर आकाश की ओर फेंकने पर फट जाती है।
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गुंभी  : स्त्री० [सं० गुंफ-गुच्छा] वनस्पति का अंकुर। गाभ। स्त्री० [हिं० गून] रस्सी, विशेषतः नाव आदि का पाल खींचने की रस्सी। गून।
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गुभीला  : पुं० [हिं० गुह=मल] पेट के अंदर का सूखा हुआ मल। गोटा। सुद्दा।
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गुम  : वि० [फा०] १. जो आँखों के सामने न हो। छिपा हुआ। अप्रकट। गुप्त। २. जो भूल आदि के कारण हाथ से निकल गया हो और न मिल रहा हो। खोया हुआ। ३. जिसका पता न हो या न लगता हो। ४. जो ख्यात या प्रसिद्ध न हो। जैसे–गुमनाम। पुं० ऐसी वातावरणिक स्थिति जिसमें हवा न चल या न बह रही हो। पुं० [?] समुद्र की खाड़ी। (लश०)
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गुम-सुम  : वि० [फा० गुम+अनु० सुम] १. जो कुछ भी बोल चाल न रहा हो। २. जो बिलकुल हिल डुल न रहा हो। क्रि० वि० बिलकुल चुप चाप और बिना किसी को जतलाये हुए।
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गुमक  : स्त्री०=गमक।
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गुमकना  : अ० [सं० गम] किसी स्थान में शब्द का गूँजना।
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गुमका  : पुं० [देश०] डंठल या भूसी से दाना अलग करने का काम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुमची  : स्त्री०=घुँघची।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुमजी  : स्त्री०=गुमटी।
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गुमटा  : पुं० [सं० गुंबा+टा (प्रत्य०)] १. वह गोल सूजन जो माथे या सिर पर चोट लगने से होती है। गुलमी। २. कोई अर्द्धगोलाकार उभार। ३. कपास के डोडे नष्ट करनेवाला एक प्रकार का कीड़ा।
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गुमटी  : स्त्री० [फा० गुंबद] १. मकान के ऊपरी भाग में सीढ़ी की छत जो शेष भाग से अधिक ऊपर उठी होती है। २. रेलवे लाइन के किनारे कहीं-कहीं बना हुआ वह छोटा गोलाकार और गुंबद-नुमा कमरा जिसमें खलासी रहता है। पुं० जहाज या नाव में का पानी फेंकने वाला खलासी या मल्लाह। पुं० [हिं० गुमटा का अल्पा० रूप] छोटा गुमटा।
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गुमना  : अ० [फा० गुम] गुम हो जाना। खो जाना। स० गुम करना। खो देना।
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गुमनाम  : वि० [फा०] १. जिसे या जिसका नाम कोई न जानता हो। अप्रसिद्ध। जैसे–गुमनाम आदमी या बस्ती। २. जिसमें किसी का नाम न लिखा हो। बिना नाम का। जैसे–गुमनाम पत्र, गुमनाम शिकायत।
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गुमर  : पुं० [फा० गुबार] १. अभिमान। घमंड। शेखी। २. मन में छिपा हुआ दुर्भाव या द्वेष। गुबार।
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गुमराह  : वि० [फा०] [भाव० गुमराही] जो ठीक या सीधा रास्ता भूलकर इधर-उधर चला गया हो। भटका या भूला हुआ। पथ-भ्रष्ट।
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गुमराही  : स्त्री० [फा०] गुमराह होने की अवस्था या भाव। पथ-भ्रष्टता।
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गुमान  : पुं० [फा०] १. अनुमान। २. कल्पना। ३. अभिमान। घमंड। ४. अनुमान या कल्पना के आधार पर किया जानेवाला संदेह। शक।
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गुमाना  : स० [फा० गुम-खोया हुआ] १. गुम करना। खोना। २. हाथ से निकल जाने देना। गँवाना। अ० =गुमना (गुम होना)।
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गुमानी  : वि० [हिं० गुमान] गुमान करनेवाला। अभिमानी। घमंडी।
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गुमावण  : वि० [हिं० गुम] १. गुम करने या खोनेवाला। २. खराब या नष्ट करनेवाला। उदाहरण–काय कलाली छल कियो, सेज गुमावण रंग।–कविराजा सूर्यमल।
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गुमाश्ता  : पुं० [फा० गुमाश्तः] वह जो किसी बड़े व्यापारी या कोठीवाल की ओर से बहीखाता लिखने या माल खरीदने और बेचने का काम करता हो।
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गुमाश्तागीरी  : स्त्री० [फा०] गुमाश्ते का काम या पद।
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गुमिटना  : अ० [सं० गुम्फित] लिपटना। स०=लपेटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुम्मट  : पुं १=गुंबद। २. =गुमटा।
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गुम्मर  : पुं०=गुमटा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुम्मा  : पुं० [देश०] बड़ी और मोटी ईट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [हिं० गुम] बिलकुल गुम-सुम या चुप रहनेवाला। चुप्पा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुर  : पुं० [सं० गुरुमंत्र] १. वह अमोघ साधन या सूत्र जिससे कोई कठिन काम निश्चित रूप से चटपट तथा सरलता से संपन्न होता हो। २. बहुत अच्छी युक्ति। पुं० [सं० गुण] तीन गुणों के आधार पर तीन की संख्या। (डिं०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०-गुरु।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०-गुड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरखई  : स्त्री० [?] जमीन रेहन रखने का वह प्रकार जिसमें रेहनदार उसकी तीन चौथाई मालगुजारी देता है और एक चौथाई महाजन देता है।
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गुरखाई  : स्त्री०=गुरखई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरगा  : पुं० [सं० गुरुग] [स्त्री० गुरगी] १. गुरु का अनुगामी। चेला। शिष्य। २. टहलुआ। दास। सेवक। ३. अनुचर। ४. जासूस। भेदिया।
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गुरगाबी  : पुं० [फा०] एक प्रकार का देशी जूता।
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गुरच  : स्त्री०=गुरुच।
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गुरचना  : अ० [हिं० गुरुच] सिकुड़कर गुरुच की बेल की तरह टेढ़ा मेढ़ा होना और आपस में उलझ जाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरचियाना  : अ०=गुरचना।
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गुरची  : स्त्री० [हिं० गुरुच] १. सिकुड़न। बल। २. डोरे आदि। उलझने या फँसने से पड़नेवाली गाँठ या गुत्थी।
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गुरचों  : स्त्री० [अनु०] आपस में धीरे-धीरे होनेवाली बात-चीत काना-फूसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरज  : पुं० [फा० गुर्ज] १. किसी भवन, मीनार आदि का ऊपरी गोलाकार भाग। गुंबज। उदाहरण–सोभित सुबरन बरन मैं उरज गुरज के रूप।–मतिराम। २. एक प्रकार का गदा। गुर्ज।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरजा  : पुं० [देश०] लवा या लोवा नामक पक्षी।
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गुरझन  : स्त्री० [सं० अवरुधन, पुं० हिं० उरझन] १. पेंच की बात उलझन। २. ग्रंथि। गाँठ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरझना  : अ०=उलझना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरझाना  : स०=उलझाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरथ्थ  : पुं० [सं, गुरु+अर्थ] गंभीर बहुत बड़ा या महत्वपूर्ण अर्थ।
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गुरदा  : पुं० [फा० गुर्दः] १. रीढ़दार जीवों के पेट के अंदर के वे जो खोये हुए पदार्थों से बननेवाला रक्त साफ करते हैं और बचे हुए तर पदार्थ को पेशाब के रूप में नीचे मूत्राशय में भेजते हैं। (किडनी) साहस। हिम्मत। ३. एक प्रकार की छोटी तोप। ४. लोहे का एक प्रकार का बड़ा कलछा जिससे पकाते समय गुड चलाया जाता है।
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गुरदाह  : पुं०=गुरदा (छोटी तोप)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरदिल  : पुं० [देश०] १. जलाशयों के किनारे रहने तथा मछलियाँ खानेवाला किलकिला की जाति का पक्षी। बदामी। २. कचनार।
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गुरना  : अ०=घुलना। उदाहरण–गुरि गुरि आपु हेराई जौं मुएहु न छाँडैं पास।–जायसी।
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गुरनियालू  : पुं० [देश०] जमीकंद रतालू आदि की जाति का एक प्रकार का कंद।
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गुरँब  : पुं०=गुडंबा। उदाहरण०–औभा अंब्रित गुरँब गरेठा।–जायसी।
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गुरबत  : स्त्री० [अ०] १. विदेश का निवासी। प्रवास। २. यात्रा-काल में पथिक की दोन स्थिति। निस्सहाय होने की अवस्था। ३. उक्त अवस्था के फलस्वरूप मनुष्य की परवशता तथा विवशता।
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गुरबरा  : पुं० [हिं० गुड़+बरा] [स्त्री० अल्पा० गुरबरी] १. गुड़ डालकर पकाया हुआ मीठा बड़ा। २. गुड़ के घोल में डाला हुआ बड़ा।
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गुरंबा  : पुं० दे० ‘गुडंबा’।
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गुरबिनी  : स्त्री० [सं० गुर्विणी] १. गुरु-पत्नी। २. गर्भवती स्त्री।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरंभर  : पुं० [हिं० गुडंबा] मीठे आम का पेड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरमुख  : वि० [हिं० गुरु+मुख] जिसने गुरु से मंत्र लिया हो। दीक्षित।
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गुरमुखी  : स्त्री० [सं० गुरु+मुख+हिं० ई (प्रत्य०)] पंजाब में प्रचलित देवनागरी लिपि का वह रूप जिसे सिक्खों के पाँचवें गुरु अर्जुनदेव ने चलाया था।
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गुरम्मर  : पुं० [हिं० गुड़+अंब] १. गुड़ की तरह मीठे फलोंवाला आम का पेड़। २. दे० ‘गुडंबा’।
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गुरल  : पुं० [?] भूरे रंग की एक प्रकार की पहाड़ी बकरी जिसे कश्मीर में रोम और असम में छागल कहते हैं और जिसका मांस बहुत स्वादिष्ट होता है।
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गुरवनी  : स्त्री०=गुर्विणी (गर्भवती)।
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गुरवी  : वि० [सं० गर्व] अभिमानी। घमंडी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरसल  : पुं० [देश०] किलहँटी या गिलगिलिया नामक पक्षी।
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गुरसी  : स्त्री० =गोरसी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरसुम  : पुं० [देश०] सोनारों की एक प्रकार की छेनी।
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गुरहा  : पुं० [देश०] १. छोटी नावों के अंदर की ओर दोनों सिरों पर जड़े हुए तख्ते जिनमें से एक पर मल्लाह बैठता है और दूसरे पर सवारियाँ बैठती है। २. एक प्रकार की छोटी मछली।
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गुराई  : स्त्री० [?] तोप लादने की गाड़ी। स्त्री० गोराई (गोरापन)। उदाहरण–साँवरे छैल छुओगे जु मोहिं तो गोरे गात गुराई न रैहै।
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गुराउ  : पुं०=गोरापन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुराब  : पुं० [देश०] १. तोप लादने की गाड़ी। २. वह नाव जिसमें एक ही मस्तूल हो। वि० [सं० गुरु] १. बहुमूल्य। उदाहरण–सुनि सौमेन बधाइ दिय, है गै चीर गुराब।–चंदवरदाई। २. बड़ा या भारी। पुं०=गुराई। पुं० [हिं० गुरिया] १. चारा काटने का काम। २. चारा काटने का गँड़ासा।
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गुरायसु  : स्त्री० [सं० गुरु+हिं० आयसु] गुरुओं या बड़े लोगों की आज्ञा या आदेश।
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गुरि  : स्त्री०=गुर (युक्ति)।
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गुरिग  : स्त्री०=गोरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरिंद  : पुं० [फा० गुर्ज] गदा। (क्व०)
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गुरिंदा  : पुं० [फा० गोयंदा] जासूस। भेदिया।
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गुरिय  : स्त्री०=गोरी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरिया  : स्त्री० [सं०, गुटिका] १. धातु, लकड़ी, शीशे आदि का वह छोटा छेददार दाना जिसे माला में पिरोते हैं। मनका। २. किसी वस्तु का छोटा अंश। टुकड़ा। ३. मछली के मांस का टुकड़ा। स्त्री० [देश०] १. दरी बुनने के करघे की वह बड़ी लकड़ी जिसमें बै का बाँस लगा रहता है। झिल्लन। २. पाटे या हेंगे की वह रस्सी जो बैलों की गरदन के पास जूए के बीच में बाँधी जाती है।
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गुरिल्ला  : पुं०=गोरिल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरीरा  : वि० [हिं० गुड़+ईरा (प्रत्यय)] १. जिसमें गुड़ की-सी मिठास हो। २. उत्तम। बढ़िया।
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गुरु  : वि० [सं०√गृ (उपदेश देना) +कु] १. (वस्तु) जो तौल या भार में अधिक हो। वजनी। जैसे–गुरु भार। २. अधिक लंबाई-चौड़ाई या विस्तारवाला। ३. (शब्द या स्वर) जिसके उच्चारण या निर्वहण में किसी नियत मान से दूना समय लगता हो। जैसे–गुरु अक्षर, गुरु मात्रा। ४. महत्वपूर्ण। जैसे–गुरु अर्थ। ५. बल, बुद्धि, वय, विद्या आदि में बड़ा और फलतः आदरणीय या वंदनीय। जैसे–गुरु-जन। ६. कठिन। मुश्किल। जैसे–गुरु-कार्य। ७. कठिनता से अथवा देर में पकने या पचनेवाला। जैसे–गुरु पाक। पुं० [स्त्री० गुरुआनी] १.विद्या पढाने या कला आदि की शिक्षा देनेवाला आचार्य। शिक्षक। उस्ताद। २. यज्ञोपवीत कराने और गायत्री मंत्र का उपदेश देनेवाला आचार्य। ३. देवताओं के आचार्य और शिक्षक बृहस्पति। ४. बृहस्पति नामक ग्रह। ५. पुष्प नक्षत्र जिसका अधिष्ठाता देवता बृहस्पति ग्रह है। ६. छंदशास्त्र में, दो कलाओं या मात्राओंवाला अक्षर जिसका चिन्ह ऽ है। जैसे–का, दा आदि। ७. संगीत में, वह ताल का वह अंश जिसमें एक दीर्घ या दो लघु मात्रायें होती है और उसका चिन्ह्र ऽ है। ८. ब्रह्मा। ९. विष्णु। १॰. महेश। शिव। ११. परमेश्वर। १२. द्रोणाचार्य। १३. कोई पूज्य और बड़ा व्यक्ति। १४. कुछ हठयोगियों के अनुसार शरीर के अन्दर का एक चक्र या कमल जो अष्टकमल से भिन्न और अतिरिक्त है।
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गुरु-कुंडली  : स्त्री० [ष० त० ] फलित ज्योतिष में वह कुंडली या चक्र जिसके द्वारा जन्म नक्षत्र के अनुसार एक-एक वर्ष के अधिपति ग्रह का निरूपण होता है।
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गुरु-कुल  : पुं० [ष० त० ] १. गुरु का घराना या वंश। २. गुरु, आचार्य या शिक्षक के रहने का वह स्थान जहाँ वह विद्यार्थियों को अपने पास रखकर शिक्षा देता हो। ३. उक्त के अनुकरण पर बननेवाला एक आधुनिक विद्यापीठ जिसमें विद्यार्थियों को प्राचीन सांस्कृतिक ढंग से शिक्षा देने के सिवा उनसे ब्रह्मचर्य आदि का पालन कराया जाता है।
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गुरु-गंधर्व  : पुं० [कर्म० स०] इन्द्रजाल के छः भेदों में से एक।
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गुरु-गम  : वि० [सं०+हिं०] १. गुरु के माध्यम से प्राप्त होनेवाला। जैसे–गुरु गम ज्ञान। २. गुरु का बतलाया हुआ।
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गुरु-ग्रह  : पुं० दे० ‘गुरु कुल’ २. और ३.।
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गुरु-जन  : पुं० [कर्म० स०] माता-पिता,आचार्य आदि पूज्य और बड़े लोग।
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गुरु-तल्प  : पुं० [ष० त०] १. गुरु की शय्या। २. गुरु की पत्नी। ३. गुरु (पूज्य और बड़ी) की स्त्री के साथ किया जाने वाला संभोग जो बहुत बड़ा पाप माना जाता है।
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गुरु-तल्पग  : पुं० [सं० गुरुतल्प√गम् (जाना)+ड] गुरुतल्प नामक पाप करनेवाला व्यक्ति।
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गुरु-ताल  : पुं० [ब० स०]संगीत में एक प्रकार का ताल।
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गुरु-तोमर  : पुं० [कर्म० स०] तोमर छंद का वह रूप जो उसके प्रत्येक चरण के अन्त में दो मात्राएँ बढ़ाने से बनता है।
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गुरु-दक्षिणा  : स्त्री० [मध्य० स० ] प्राचीन भारत में सारी विद्या पढ़ चुकने के उपरान्त गुरु को दी जानेवाली उसकी दक्षिणा।
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गुरु-दैवत  : पुं० [ब० स०] पुष्प नक्षत्र।
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गुरु-पत्रक  : पुं० [ब० स०] राँगा या बंग नामक धातु।
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गुरु-पाक  : वि० [ब० स०] (खाद्य पदार्थ) जो सहज में न पकता या न पचता हो। कठिनता से अथवा देर में पकने या पचनेवाला।
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गुरु-पुष्प  : पुं० [मध्य० स०] बृहस्पति के दिन पुण्य नक्षत्र पड़ने का योग जो शुभ कहा गया है।
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गुरु-पूर्णिमा  : स्त्री० [ष० त० ] आषाढ़ की पूर्णिमा जिस दिन गुरु की पूजा करने का माहात्म्य है।
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गुरु-बला  : स्त्री० [ब० स०] संकीर्ण राग के एक भेद।
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गुरु-मंत्र  : पुं० [मध्य० स० ] १. वह मंत्र जो गुरु के द्वारा शिष्य को दीक्षा देने के समय गुप्त रूप से बतलाया जाता है। २. कोई काम करने की सबसे बड़ी युक्त जो किसी बहुत बड़े अनुभवी ने बतलाई हो।
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गुरु-मार  : वि० [सं० गुरु+हिं० मारना] १. अपने गुरु को दबाकर उसका स्थान स्वयं लेनेवाला ।(व्यक्ति) २. गुरु को भी दबा या परास्त कर सकने वाला (उपाय या साधन)। जैसे–गुरु मार विद्या।
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गुरु-मुख  : वि० [ब० स०] जिसने धार्मिक दृष्टि से किसी गुरु से मंत्र लिया या सीखा हो।
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गुरु-रत्न  : पुं० [कर्म० स०] १. पुष्पराग या पुखराज नामक रत्न। २. गोमेद नामक रत्न।
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गुरु-वर  : पुं० [स० त०] १. बृहस्पति। २. गुरुओं में श्रेष्ठ व्यक्ति।
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गुरु-वासर  : पुं० [ष० त० ] =गुरुवार।
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गुरु-सिंह  : पुं० [ब० स०] एक पर्व जो उस समय लगता है जब बृहस्पति ग्रह सिंह राशि पर आता है।
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गुरुआइन  : स्त्री०=गुरुआनी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरुआई  : स्त्री० [सं० गुरु+हिं० आई (प्रत्यय)] १. गुरु का कार्य, धर्म या पद। २. चालाकी। धूर्त्तता।
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गुरुआनी  : स्त्री० [सं० गुरु+हिं० आनी प्रत्यय] १. गुरु की पत्नी। २. विद्या सिखाने अथवा शिक्षा देनेवाली स्त्री। शिक्षिका।
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गुरुइ  : स्त्री०=गुर्वी (गर्भवती)। वि०=गुरु (भारी)। उदाहरण–बिरह गुरुइ खप्पर कै हिया।–जायसी।
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गुरुघ्न  : पुं० [सं० गुरु√हन् (हिंसा)+क] गुरू अथवा किसी गुरूजन को मार डालनेवाला व्यक्ति, अर्थात् बहुत बड़ा पापी।
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गुरुच  : स्त्री० [सं० गुडूची] पेडों पर चढ़नेवाली एक प्रकार की मोटी लता जो बहुत कड़वी होती और प्रायः ज्वर आदि रोगों में दी जाती है। गिलोय।
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गुरुच-खाप  : पुं० [?] एक उपकरण या औजार जिससे बढ़ई लकड़ी छीलकर गोल करते हैं।
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गुरुचांद्री  : वि० [सं० गुरुचंद्रीय] जो गुरु और चन्द्रमा के योग से होता हो। जैसे–गुरुचांद्री योग।
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गुरुडम  : पुं० [सं० गुरु+अं० प्रत्यय० डम] दूसरों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए गुरु बनने का ढोंग रचना।
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गुरुतल्पी(ल्पिन्)  : पुं० [गुरूतल्प+इनि] =गुरू-तल्पग।
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गुरुता  : स्त्री० [सं० गुरु+तल्-टाप्] १. गुरु होने की अवस्था या भाव। २. भारीपन। ३. बड़प्पन। महत्ता।
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गुरुत्व  : पुं० [सं० गुरु+त्व] १. गुरु होने की अवस्था या भाव। २. गुरु का कार्य या पद। ३. भारीपन। ४. बड़प्पन। महत्त्व। ५. पृथ्वी की वह आकर्षण शक्ति जो अधर में के पदार्थों को अपनी ओर अर्थात् नीचे खींचती है। (ग्रेविटी)
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गुरुत्व-केन्द्र  : पुं० [ष० त०] पदार्थ विज्ञान में किसी पदार्थ के बीच का वह बिन्दु जिस पर यदि उस पदार्थ का सारा विस्तार सिमट कर आ जाए तो भी उसके गुरुत्वाकर्षण में कोई अन्तर न पडे। (सेन्टर
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गुरुत्व-लम्ब  : पुं० [ष० त०] किसी पदार्थ के गुरुत्व केन्द्र से सीधे नीचे की ओर खींची जानेवाली रेखा।
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गुरुत्वाकर्षण  : पुं० [सं० गुरुत्व-आकर्षण, ष० त०] भौतिक शास्त्र में, वह शक्ति जिसके द्वारा कोई पिंड किसी दूसरी पिंड को अपनी ओर आकृष्ट करता है अथवा स्वयं उसकी ओर आकृष्ट होता है। पिंड़ों की एक दूसरे को आकृष्ट करने की वृत्ति। (ग्रैविटेशन)
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गुरुद्वारा  : पुं० [सं० गुरु-द्वार] १. आचार्य या गुरु रहने का स्थान। २. सिक्खों का वह पवित्र मंदिर जहाँ लोग ग्रन्थसाहब का पाठ करने जाते हैं।
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गुरुबिनी  : स्त्री० दे० ‘गुर्विणी’।
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गुरुभ  : पुं० [ष० त० ] १. पुष्प नक्षत्र। २. मीन राशि। ३. धनु राशि।
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गुरुभाई  : पुं० [सं० गुरु+हिं० भाई] दो या दो से अधिक ऐसे व्यक्ति जिन्होंने एक ही गुरु से मंत्र लिया या शिक्षा पाई हो। एक ही गुरु के शिष्य।
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गुरुमुखी  : स्त्री०=गुरमुखी (लिपि)।
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गुरुवासी(सिन्)  : पुं० [गुरूवास, स० त० +इनि] गुरु के घर में रहकर शिक्षा प्राप्त करनेवाला शिष्य। अंतेवासी।
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गुरुशिखरी (रिन्)  : पुं० [मध्य० स०+इनि] हिमालय जिसकी चोटी सब पहाड़ो की चोटियों में ऊँची है।
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गुरू  : पुं० [सं० गुरु] १. गुरू। आचार्य। २. बहुत बड़ा धूर्त। चालाक।
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गुरू-घंटाल  : पुं० [हिं० गुरू+घंटा] बहुत बड़ा चालाक या धूर्त।
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गुरू-वार  : पुं० [ष० त०] सप्ताह का पाँचवा दिन जो बुधवार के बाद और शुक्रवार से पहले पड़ता है। बृहस्पतिवार।
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गुरेट  : पुं० [हिं० गुर, गुड़+बेट] एक प्रकार का बेलन जिससे कड़ाहे में पकाया जानेवाला ईख का रस चलाया जाता है।
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गुरेर  : स्त्री० [हिं० गुरेरना] गुरेरने की क्रिया ढंग या भाव। स्त्री०=गुलेल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरेरना  : स० [सं० गुरू=बड़ा+हेरना=ताकना] आँखें फाड़कर और क्रोधपूर्वक किसी की ओर देखना। घूरना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुरेरा  : पुं० [हिं० गुरेरना] १. किसी को गुरेरने या क्रोधपूर्वक देखने की क्रिया या भाव। पद-गुरेरा=गुरेरी-एक दूसरे को क्रोधपूर्वक देखना। २.आमना-सामना। देखा-देखी।
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गुर्ज  : पुं० [फा०] १. गदा नामक पुराना शस्त्र। २. मोटा डंडा या सोंटा। पुं०=बुर्ज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुर्ज-बरदार  : पुं० [फा०] गदाधारी सैनिक।
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गुर्जमार  : पुं० [फा० गुर्ज+हिं० मार] १. हाथ में लोहे की गदा लेकर चलनेवाले मुसलमान फकीरों का एक संप्रदाय। २. उक्त संप्रदाय का फकीर।
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गुर्जर  : पुं० [सं० गुरु√जृ (जीर्ण होना)+णइच्+अण्] [स्त्री० गुर्जरी] १. गुजरात देश। २. उक्त देश का निवासी। ३. उक्त देश में रहनेवाली एक प्राचीन जाति जो अब गूजर कहलाती है।
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गुर्जराट  : पुं० [सं० गुर्जर-राष्ट्र] गुजरात देश।
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गुर्जरी  : स्त्री० [सं० गुर्जर+ङीष्] १. गुजरात देश की स्त्री। २. गुर्जर या गूजर जाति की स्त्री। ३. एक रागिनी जो भैरव राग की भार्या कही गई है। गूजरी।
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गुर्जी  : पुं० [?] १. एक प्रकार का कुत्ता। स्त्री०१=बुर्जी। २. =झोपड़ी।
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गुर्द  : पुं० [फा०] गुर्दिस्तान का निवासी।
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गुर्दा  : पुं०=गुरदा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुर्दिस्तान  : पुं० [फा०] फारस के उत्तर का एक प्राचीन प्रदेश। आजकल का कुर्दिस्तान।
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गुर्र  : वि० पुं० १.=गुर्रा। २. =गर्रा। स्त्री०=गुर्राहट।
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गुर्रा  : पुं० [अ० गुर्रः] १. मुहर्रम महीने की द्वितीया का चाँद। २. छुट्टी का दिन। ३. काम के बीच में पड़नेवाला नागा। ४. अनशन। उपवास। ५. टाल-मटोल। हीला-हवाला। क्रि० प्र०-बताना। पुं० वि० लाल और सफेद मिला हुआ। पुं० दे० गर्रा।
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गुर्राना  : अ० [अनु० ] १. गुर्र गुर्र शब्द करना। जैसे–कुत्ते का गुर्राना। २. क्रोध में आकर कर्कश स्वर में बोलना। जैसे–आपस में एक दूसरे पर गुर्राना।
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गुर्राहट  : स्त्री० [हिं० गुर्राना] गुर्राने की क्रिया या भाव।
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गुर्री  : स्त्री० [देश०] बुने हुए जौ।
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गुर्वादित्य  : पुं० [सं० गुरु-आदित्य,ब० स०] गुरु अर्थात् बृहस्पति और आदित्य अर्थात् सूर्य का एक साथ एक ही राशि में होनेवाला गमन। इसे एक प्रकार का योग माना गया है।
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गुर्विणी  : स्त्री० [सं० गुरु+इनि-ङीष्] १. गर्भवती स्त्री। २. गुरु की स्त्री। गुरु-पत्नी।
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गुर्वी  : स्त्री० [सं० गुरु+ङीष्]=गुर्विणी।
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गुल  : पुं० [फा०] १. गुलाब। जैसे–गुलकंद,गुलरोगन आदि। २. पुष्प। फूल। जैसे–गुलमेंहदी। मुहावरा–गुल कतरना=कोई अनोखा या विलक्षण काम करना या बात कहना। (परिहास और व्यग्य)। गुल खिलना=किसी प्रसंग में कोई नई मजेदार या विलक्षण घटना होना। गुल खिलाना-नई,मजेदार या विलक्षण घटित करना। ३. वह गड्डा जो हँसने के समय कुछ लोगों के गालों में पड़ता है और सौदर्यवर्धक माना जाता है। ४. पशुओं के शरीर पर होनेवाला फूल के आकार का रंग या गोल दाग। जैसे–कुत्ते या चीते का गुल। ५. गरम लोहे से दागकर शरीर पर बनाया जानेवाला उक्त प्रकार का चिन्ह्न या दाग। मुहावरा–गुल खाना=किसी चीज से अपना शरीर उक्त प्रकार से जलाना या दागना जिसमें शरीर पर उस चीज का दाग या निशान बन जाए। जैसे–प्रियतमा की अँगूठी या छल्ले से अपनी छाती या हाथ पर गुल खाना। (उर्दू कविताओं में प्रयुक्त) ६.दीए की बत्ती का वह अंश जो बिलकुल जल जाने पर छोटे से फूल का आकार धारण कर लेता है। मुहावरा–(चिराग) गुल करना= (चिराग) बुझाना या ठंढा करना। ७. जलता हुआ कोयला। अंगारा। ८. चिलम पर रखकर पीये जानेवाले तमाकू का वह रूप जो उसे बिलकुल जल जाने पर प्राप्त होता है। जट्ठा। ९. जूते के तल्ले में एड़ी के नीचे पड़नेवाला अंश जो प्रायः पान के आकार का होता है। १॰. कारचोबी की बनी हुई फूल के आकार की बड़ी टिकुली जो स्त्रियाँ सुन्दरता के लिए कनपटी पर लगाती हैं। ११. चूने की वह बड़ी गोलाकार बिंदी जो सिर में दर्द होने पर कनपटियों पर लगातें हैं। १२. कनपटी। १३. एक रंग की चीज पर दूसरे रंग का बना हुआ कोई गोल निशान। १४. आँख का डेला। (क्व०) १५. एक प्रकार का रंगीन याचलता गाना। १६. गोबर में कोयले का चूरा मिलाकर बनाया हुआ वह गोला जो अंगीठियों में जलाने के लिए बनाया जाता है। १७. युवती और सुंदर स्त्री। (बाजारू) पुं० [अ० गुल] शोर। हल्ला। जैसे–लड़कों का गुल मचाना। पुं० [देश] १. हलवाई का भट्ठा। २. खेतो में पानी ले जाने की नाली।
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गुल-अजायब  : पुं० [फा० गुल+अ० अजायब=अजीब का बहु०] १. एक प्रकार का फूलदार पौधा। २. इस पौधे का फूल।
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गुल-अब्बास  : पुं० [फा० गुल+अ० अब्बास] १. एक प्रकार का बरसाती पौधा। २. इस पौधे का पीले या लाल रंग का फूल।
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गुल-अब्बासी  : वि० [फा० गुल+अ० अब्बास+ई (प्रत्यय)] गुल-अब्बास के रंग का। पुं० एक प्रकार का रंग जो हलका कालापन लिए हुए पीला या लाल होता है।
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गुल-अशर्फी  : पुं० [फा०] १.एक प्रकार का पौधा। २. इस पौधे का फूल जो पीला होता है।
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गुल-औरंग  : पुं० [फा०] एक प्रकार का गेंदा और उसका फूल।
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गुल-केश  : पुं० [फा० गुल+केश] १. मुर्गकेश नामक पौधा। कलगा। २. उक्त पौधे का फूल।
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गुल-छर्रा  : पुं० [हिं० गोली+छर्रा] अनुचित रूप से तथा खूब खुलकर किया जानेवाला आनंद-मंगल या भोग-विलास। क्रि० प्र०=उड़ाना।
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गुल-दाउदी  : स्त्री०=गुलदावदी।
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गुल-दावदी  : स्त्री० [फा० गुल+दाऊदी] एक पौधा और उसके फूल जो गुच्छों में लगते हैं।
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गुल-दुपहिया  : स्त्री० [फा० गुल+हिं० दुपहरिया] १. एक प्रकार का पौधा। २. इस पौधे का सुंगधित फूल जो गहरे लाल रंग का होता है।
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गुल-फाम  : वि० [फा०] फूलों के समान रंगवाला, अर्थात् परम सुन्दर।
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गुल-बदन  : वि० [फा०] जिसके शरीर के रंगत फूल की समान सुंदर हो। पुं० एक प्रकार का बहुमूल्य रेशमी धारीदार कपड़ा।
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गुलउर  : पुं०=गुलौर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुलकट  : पुं० [फा० गुल+हिं० काटना] कपड़े या बेल-बूटे छापने का एक प्रकार का ठप्पा। (छीपी)।
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गुलकंद  : पुं० [फा०] चीनी या मिसरी में मिलाकर और धूप और चाँदनी में रखकर पकाई हुई गुलाब की पत्तियाँ जो प्रायः रेचक होती हैं और औषध के रूप में खाई जाती है।
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गुलकार  : पुं० [फा०] [भाव० गुलकारी] बेल-बूटे, फूल आदि बनानेवाला कारीगर।
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गुलकारी  : स्त्री० [फा०] तरह-तरह के बेल-बूटे या फूल-पत्तियाँ बनाने का काम। २. किसी चीज पर बनाये हुए बेल-बूटे या फूल पत्तियाँ।
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गुलखैरू  : पुं० [फा० गुल+खैरू] १. एक प्रकार का पौधा। २. इस पौधे का फूल जो नीलेरंग का होता है।
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गुलगचिया  : स्त्री० दे० गिलगिलिया।
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गुलगपाड़ा  : पुं० [अ० गुल+हिं० गप्प] बहुत से लोगों का एक साथ बोलने तथा हँसने से होनेवाला शब्द। शोर-गुल। हो-हल्ला।
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गुलगीर  : पुं० [फा०] वह कैची जिससे दीए आदि की बत्ती का गुल काटा जाता है। गुल काटने की कैची।
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गुलगुल  : वि०=गुलगुला।
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गुलगुला  : वि० [अनु०] [स्त्री० गुलगुली] कोमल। नरम। मुलायम। पुं० १.गोली के आकार का एक प्रकार का पकवान। २. कनपटी। पुं० [?] ऊसर में होनेवाली एक प्रकार की घास।
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गुलगुलाना  : स० [हिं० गुलगुल] किसी कड़ी और गूदेदार चीज को दबा-दबाकर मुलायम करना। अ० नरम या मुलायम पड़ना। पिचपिचा होना।
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गुलगुलिया  : पुं० [?] मदारी, विशेषतः बंदर नचानेवाला मदारी।
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गुलगुली  : स्त्री० [देश०] पहाड़ी झरनों में रहनेवाली एक प्रकार की काँटेदार बड़ी मछली।
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गुलगोथना  : वि०=गल-गुथना।
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गुलंच  : पुं० [सं० गुड√अञ्च (गति)+अण्,शक,पररूप] एक प्रकार का कंद।
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गुलचना  : स० [हिं० गुलचा] गुलचा मारना। हलकी, चपत लगाना।
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गुलचमन  : पुं० [फा०] फूलों का बाग।
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गुलचला  : पुं० [हिं० गोला+चलाना] तोप का गोला चलानेवाला। तोपची।
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गुलंचा  : पुं० =गुरुच।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुलचा  : पुं० [हिं० गाल] १. प्रेमपूर्वक किसी के गाल पर लगाई जानेवाली हलकी चपत। २. कोई छोटी,गोल मुलायम चीज।
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गुलचाँदनी  : स्त्री० [फा० गुल+हिं० चाँदनी] १. एक प्रकार का पौधा जिसमें फूल लगते हैं। २. इस पौधे का सफेद फूल जो प्रायः रात के समय खिलता है।
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गुलचाना  : स० [हिं० गुलचा+ना] १. हलकी चपत लगाना। २. आघात करना।
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गुलचिआना  : स०=गुलचाना।
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गुलची  : स्त्री० [?] लकड़ी में गलता बनाने का बढ़ाइयों का एक औजार।
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गुलचीन  : पुं० [?] १. एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जो बारहों महीने फूलता है। २. उक्त वृक्ष का फल जो अन्दर की ओर पीला और बाहर सफेद होता है।
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गुलजलील  : पुं० [फा०] असबर्ग का फूल जिससे रेशम रँगा जाता है।
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गुलज़ार  : पुं० [फा०] बाग। वाटिका। वि० १. हरा-भरा। २. सब तरह से भरा-पूरा और सुन्दर। आनंद और शोभा से युक्त। जैसे–गुलजार होना। ३. जिसमें खूब चहल पहल और रौनक हो। जैसे–गुलजार शहर।
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गुलझटी  : स्त्री० [हिं० गोल+झट-जमाव] १.तागों आदि के उलझने से पड़नेवाली गाँठ। २. मन में रहनेवाला द्वेष या वैर-भाव। मन की गाँठ। ३. कपड़े की सिकुड़न। सिलवट।
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गुलझड़ी  : स्त्री०=गुलझटी।
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गुलझरी  : स्त्री०=गुलझटी।
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गुलतराश  : पुं० [फा०] १. वह जो कपड़े, कागज आदि के टुकड़े काटकर उनके फूल बनाता हो। २. वह माली जो पौधे आदि को काट-छाँटकर उन्हें गमले, घोड़े, हाथी आदि की आकृतियों में लाता हो। ३. वह नौकर जो दीपकों के गुल काटने का काम करता हो। ४. दीए की बत्ती पर का गुल काटने की कैंची। गुलगीर। ५. बढ़इयों, संगतराशों आदि का वह औजार जिससे लकड़ी, पत्थर आदि पर बेल-बूटे या फूल-पत्तियाँ बनाते हैं।
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गुलता  : पुं० [हिं,.गोल] मिटटी की वह छोटी गोली जो गुलेल में रखकर चलाई या छोड़ी जाती है।
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गुलतुर्रा  : पुं० [फा०] कलगा नाम का पौधे के फूल जो गहरे लाल रंग का होता है। मुर्गकेश। जटाधारी।
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गुलत्थी  : स्त्री०=गुलथी।
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गुलथी  : स्त्री० [हिं० गोल+सं०अस्थि] १. किसी गाढ़ी चीज की जमी हुई गाँठ या गुठली। २. मांस की जमी हुई गाँठ। गिल्टी। ३. दे० ‘गुत्थी’।
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गुलदस्ता  : पुं० [फा० गुलदस्तः] १. कई प्रकार के फूलों तथा पत्तियों को विशेष क्रम से सजाकर बाँधा हुआ गुच्छा। २. लाक्षणिक अर्थ में उत्कृष्ट तथा चुनी हुई वस्तुओं का संग्रह या समूह। ३. दे० ‘गुलदान’।
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गुलंदाज  : पुं०=गोलंदाज।
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गुलदान  : पुं० [फा०] गुलदस्ता रखने का पात्र। फूलदान।
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गुलदाना  : पुं० [फा०] बुंदिया नाम की मिठाई जिसके लड्डू भी बनते हैं।
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गुलदार  : वि० [फा०] १. (पौधा या वृक्ष) जिसमें फूल लगें हो। २. (कपड़ा, कागज, पत्थर आदि) जिस पर फूल काढ़े, लिखे या खोदे हुए हों। पुं. १. वह जानवर जिसके शरीर पर फूल के गोल चिन्ह हों। २. एक प्रकार का कसीदा।
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गुलदुम  : स्त्री० [फा०] बुलबुल।
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गुलनरगिस  : स्त्री० [फा०] एक प्रकार की लता।
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गुलनार  : पुं० [फा०] १. अनार का फूल। २. एक प्रकार का अनार जिसमें सुन्दर फूल ही होते हैं फल नहीं लगते। ३. एक प्रकार का गहरा लाल रंग जो अनार के फूल की तरह का होता है।
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गुलपपड़ी  : स्त्री० [फा० गुल+हिं० पपड़ी] सोहन हलुए की तरह की एक प्रकार की मिठाई।
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गुलफानूस  : पुं० [फा०] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जो शोभा के लिए बगीचों में लगाया जाता है।
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गुलफिरकी  : स्त्री० [फा० गुल+हिं० फिरकी] १. एक प्रकार का बड़ा पौधा जिसमें गुलाबी रंग के फूल लगते हैं। २. उक्त पौधे के फूल।
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गुलफुँदना  : पुं० [हिं० गोल+फुँदना] एक प्रकार की घास।
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गुलबकावली  : स्त्री० [फा० गुल+सं० बकावली] १. हल्दी की जाति का एक पौधा जो प्रायः दलदलों या नम जमीन में होता है। २. इस पौधे का लंबोतरा फूल जो कई रंगों का और बहुत सुंगधित होता है। (यह आँखों के रोगों में उपकारी माना जाता है)
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गुलबक्सर  : पुं० [फा० गुल+देश० बक्सर] ताश के पत्तों में खेले जाने वाले नकश नामक खेल की एक बाजी।
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गुलबादला  : पुं० [फा०] एक प्रकार का पेड़ जिसके रेशों को बटकर रस्से बनाये जाते हैं। ऊदल।
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गुलबूटा  : पुं० [फा० गुल+हिं० बूटा] (किसी चीज पर) खोदे, छापे बनाये या लिखे हुए फूल, पत्ते, पौधे आदि।
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गुलबेल  : स्त्री० [फा० गुल+हिं० बेल] एक प्रकार की लता।
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गुलमा  : पुं० [सं० गुल्म] [स्त्री० गुलमी] १. चोट लगने के कारण होनेवाली गोल कड़ी सूजन। २. कीमा भरकर पकाई हुई बकरी की आँत। दुलमा। पुं०-गुलाम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुलमेख  : स्त्री० [फा०] वह कील जिसका ऊपरी सिरा फूल के आकार का गोल और चौड़ा होता है। फुलिया।
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गुलमेंहदी  : स्त्री० [फा० गुल+हिं० मेंहदी] १. एक प्रकार का छोटा पौधा जिसके तने में कई रंगों के फूल लगते हैं। २. उक्त पौधे के फूल।
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गुलरेज  : पुं० [फा०] आतिशबाजी में, वह अनार या फुलझडी जिससे कई प्रकार के फूल झड़ते हैं।
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गुलरोगन  : पुं० [फा०+अ०] गुलाब की पत्तियों के योग से बनाया हुआ तेल।
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गुललाला  : पुं० [फा०] १. पोस्ते के पौधे की तरह का एक पौधा। २. इस पौधे का फूल जो गहरे लाल रंग का और बहुत सुन्दर होता है।
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गुलशकरी  : स्त्री० [फा०] १. चीनी और गुलाब के फूल के योग से बनी हुई एक प्रकार की मिठाई। २. दे० गँगेरन (पक्षी)।
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गुलशन  : पुं० [फा०] वह छोटा बगीचा जिसमें अनेक प्रकार के फूल खिले हों। फुलवारी।
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गुलशब्बो  : पुं० [फा०] १. लहसुन से मिलता-जुलता एक प्रकार का छोटा पौधा। २. इस पौधे के सफेद रंग के सुगंधित फूल जो प्रायः रात के समय खिलते हैं। रजनीगंधा। सुगंधराज। ३. रात के समय अँधेरे में खेला जानेवाला एक खेल जिसमें एक दूसरे को चपत लगाते हैं।
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गुलसुम  : पुं० [फा० गुल+हिं० सुमन] सुनारों का एक औजार जिससे वे गहनों पर बेल-बूटे आदि बनाते हैं।
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गुलसौसन  : पुं० [फा०] १. एक प्रकार का पौधा। २. इस पौधे का फूल जो हलके आसमानी रंग का होता है।
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गुलहजारा  : पुं० [फा०] एक प्रकार का गुललाला। (पौधा और फूल)।
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गुलहथी  : स्त्री०=गुलथी।
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गुलाब  : पुं० [फा०] १. एक प्रकार का प्रसिद्ध कँटीला पौधा जो कभी-कभी लता के रूप में भी होता है। इसके सुगंधित फूलगुलाबी, लाल, पीले, सफेद आदि अनेक रंगों के होते हैं। २. इस पौधे या लता का फूल जो अनेक रंगों का, बहुत सुन्दर और बहुत सुंगधित होता है। ३. गुलाब-जल। मुहावरा–गुलाब छिड़कना=गुलाब-जल छिड़कना।
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गुलाब-चश्म  : पुं० [फा०] एक प्रकार की चिड़िया जिसके पैर लाल, चोंच काली और बाकी शरीर खैरे रंग का होता है।
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गुलाब-छिड़काई  : स्त्री० [फा० गुलाब+हिं० छिड़कना] १. विवाह की एक रीति जिसमें वर पक्ष और कन्या पक्ष के लोग एक दूसरे पर गुलाब-जल छिड़कते हैं। २. उक्त रीति के समय मिलनेवाला नेग।
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गुलाब-जल  : पुं० [फा० +सं०] गुलाब के फूलों का भभके से उतारा हुआ सुगंधित अरक।
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गुलाब-तालू  : पुं० [फा० गुलाब+तालू] वह हाथी, जिसके तालू का रंग गुलाबी हो। (ऐसा हाथी बहुत अच्छा समझा जाता है)
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गुलाब-बाड़ी  : स्त्री० [फा० गुलाब+हं० बाड़ी] आनंद-मंगल का वह उत्सव जिसमें आस-पास के स्थान और चीजें गुलाब के फूलों से सजाई गई हों।
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गुलाबजम  : पुं० [?] एक प्रकार की झाड़ी जिसकी पत्तियों में से एक प्रकार का भूरा रंग निकलता है। सोना फूल।
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गुलाबजामुन  : पुं० [फा० गुलाब+हिं० जामुन] १. घी में तली हुई तथा शीरे में भिगोई हुई खोये की एक प्रसिद्ध मिठाई। २. एक प्रकार का फलदार वृक्ष। ३. उक्त वृक्ष का फल जो बहुत स्वादिष्ट होता है।
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गुलाबपाश  : पुं० [फा०] झारी के आकार का एक प्रकार का लम्बा पात्र जिसमें गुलाब-जल आदि भरकर शुभ अवसरों पर लोगों पर छिड़कते हैं।
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गुलाबपाशी  : स्त्री० [फा०] गुलाब-जल छिड़कने की क्रिया या भाव।
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गुलाबा  : पुं० [फा० गुलाब] एक प्रकार का बरतन।
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गुलाबाँस  : पुं०=गुल-अब्बास।
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गुलाबी  : वि० [फा०] १. गुलाब-संबंधी। गुलाब का। २. गुलाब के रंग का। ३. गुलाब के फूल की तरह का। ४. गुलाब अथवा गुलाब-जल से सुगंधित किया हुआ। ५. बहुत थोड़ा या हलका। जैसे–गुलाबी नशा, गुलाबी सरदी। पुं० गुलाब के फूल की तरह का रंग। (रोज) स्त्री० १, शराब पीने की प्याली। २. गुलाब की पंखड़ियों से बनी हुई एक प्रकार की मिठाई। ३. एक प्रकार की मैना जो ऋतु-भेद के अनुसार अपना रंग बदलती है।
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गुलाम  : पुं० [अ०] १. मोल लिया या खरीदा हुआ नौकर। दास। २. बहुत ही तुच्छ सेवाएँ करनेवाला नौकर। ३. ताश का वह पत्ता जिसपर गुलाम की आकृति बनी रहती है। ४. गंजीफे के पत्तों में, एक प्रकार का रंग।
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गुलाम-गर्दिश  : स्त्री० [अ+फा०] १. वह छोटी दीवार जो जनानखाने में अन्दर की ओर सदर दरवाजे के ठीक सामने अथवा ओट या परदे के लिए बनाई जाती है। २. किसी बड़ी कोठी के आस-पास बने हुए वे छोटे मकान जिनमें नौकर-चाकर रहते हैं।
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गुलाम-चोर  : पुं० [अ+हि०] एक प्रकार का ताश का खेल।
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गुलाम-जादा  : पुं० [अ०+फा०] गुलाम या दास की सन्तान।
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गुलाम-माल  : पुं० [अ०] १. सस्ती या हलके दरजे की वह चीज जो बहुत दिनों तक काम देती हो। जैसे–मोटा कंबल या दरी। २. बहुत थोड़े दाम पर खरीदी हुई बढ़िया चीज।
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गुलामी  : स्त्री० [अ० गुलाम+ई (प्रत्यय)] १. गुलाम होने की अवस्था या भाव। दासता। २. बहुत ही तुच्छ सेवाएँ। चाकरी। ३. परतंत्रता। पराधीनता। वि० गुलाम-सम्बन्धी। गुलाम या उसकी तरह का। जैसे–गुलामी आदत।
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गुलाल  : पुं० [फा० गुल्लाला] एक प्रकार की लाल बुकनी या चूर्ण जिसे होली के दिनों में हिंदू एक दूसरे पर छिड़कते हैं।
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गुलाला  : पुं० [हिं० गुल्ली] महुए के बीज की गिरी या मींगी। वि० गुली या महुए के बीज से निकाला हुआ। पुं० दे० ‘गुल्लाला’।
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गुलाली  : स्त्री० [हि० गुलाल+ई (प्रत्यय)] चित्रकारी में काम आनेवाला। गहरे लाल रंग का एक प्रकार का चूर्ण या बुकनी। किरमिजी। (कारमाइन)
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गुलिका  : स्त्री० [सं० गुड+ठन्-इक-टाप्,‘ड’ को ‘ल’] १. खेलने का छोटा गेंद। २. गोली। ३. गुल्ली।
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गुलियाना  : स० [सं० गिल-निगलना] बाँस आदि के चोंगे में भरकर पशुओं को औषधि आदि पिलाना। ढरका देना। स० [हि० गोल] गोले या गोली के रूप में बनाना या लाना।
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गुलिस्ताँ  : पुं० [फा०] फूलों का बाग। फुलवारी। बाग।
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गुली  : स्त्री०=गुल्ली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुलुफ  : पुं०=गुल्फ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुलू  : पुं० [देश०] १. एक प्रकार का जंगली बड़ा पेड़ जिसका गोंद कतीरा कहलाता है। २. एक प्रकार का बटेर। स्त्री० एक प्रकार की मछली। पुं० [फा०] १. गरदन। गला। २. कंठ-स्वर।
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गुलूबंद  : पुं० [फा०] १. लंबी पट्टी के आकार का बना हुआ वह कपड़ा जो जाड़े से बचने के लिए गले में, कानों तथा सिर पर लेपटा जाता है। २. गले में पहनने का एक गहना जो लंबी पट्टी के आकार का होता है।
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गुलूला  : पुं०=गुलेला।
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गुले  : पुं० [देश०] उत्तरी भारत का एक प्रकार का छोटा पेड़।
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गुले-राना  : पुं० [फा० गुल+अ० रअनः] १. एक प्रकार का पौधा। २. उक्त पौधे का सुन्दर फूल जो अन्दर की ओर लाल और बाहर पीला होता है।
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गुलेटन  : पुं० [हि० गोल] सिकलीगरों का मसाला रगड़ने का छोटा गोल पत्थर।
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गुलेंदा  : पुं० [हि० गोल] महुए का पका हुआ फल। कोलेंदा।
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गुलेनार  : पुं०=गुलनार (अनार का फूल)।
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गुलेल  : स्त्री० [फा० गिलूलः] एक प्रसिद्ध छोटा उपकरण जिसमें लगी हुई डोरी की सहायता से मिट्टी की छोटी गोलियाँ दूर तक फेंकी जाती है और जिससे छोटी चिडियाँ आदि मारी जाती है। पुं० =गुरुच।
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गुलेलची  : पुं० [हिं० गुलेल+ची (प्रत्यय)] वह जो गुलेल चलाने में अभ्यस्त हो। गुलेल चलानेवाला शिकारी।
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गुलेला  : पुं० [फा० गुलूला] १. मिट्टी की वह गोली जिसकी गुलेल से फेंककर चिड़ियों का शिकार किया जाता है। २. दे० ‘गुलेल’।
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गुलैंदा  : पुं० =गुलेंदा।
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गुलोह  : स्त्री० [फा० गिलोय] गुरुच।
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गुलौर  : पुं० [सं० गुल-गुड़+हिं० औरा (प्रत्य)] वह स्थान जहाँ रस पकाकर गुड़ पकाया जाता हो।
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गुलौरा  : पुं० =गुलौर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुल्गा  : पुं० [देश०] जलाशयों के किनारे होनेवाली एक प्रकार की लता।
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गुल्फ  : पुं० [सं०√गल् (बुआना)+फक्, उत्व] एड़ी के ऊपर की गाँठ।
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गुल्म  : पुं० [सं०√ Öगुड़ (वेष्टित करना)+मक्, ‘ड’ को ‘ल’] १. ऐसी वनस्पति जिसकी जड़ या नीचे का भाग गोल बड़ी गाँठ के रूप में होता है और जिसमें कोमल डंठलोंवाली अनेक शाखाएँ निकलती है। जैसे–ईख, बाँस आदि। २. पेट में होनेवाला एक रोग जिसमें वायु के कारण गाँठ सी पड़ जाती या गोला सा बँध जाता है। ३. रोग के रूप में शरीर के ऊपर बनने वाली किसी प्रकार की गाँठ। ४. प्राचीन भारत में, सेना की वह टुकड़ी जिसमें ९ रथ, ९ हाथी, २७. घोड़े और ४५. पैदल सैनिक होते थे। ५.किला। दुर्ग।
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गुल्म-बात  : पुं० [ब० स० ] तिल्ली या प्लीहा में होनेवाला एक रोग।
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गुल्म-शूल  : पुं० [ब० स०] पेट में होनेवाली वह पीड़ा जो अन्दर गुल्म रोग होने के कारण होती है।
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गुल्मी (ल्मिन्)  : वि० [सं० गुल्म+इनि] [स्त्री० गुल्मिनी] १. गुल्म या गाँठ के रूप में होनेवाला। २. गुल्म रोग से पीड़ित। स्त्री० [सं० गुल्म+चर्-ङीष्] १. पेडो़ या पौधों का झुरमुट। झाड़ी। २. इलायची का पेड़। ३. आँवले का पेड़। ४. खेमा। तंबू।
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गुल्मोदर  : पुं० [सं० गुल्म-उदर, मध्य० स०] दे० गुल्मवात। (रोग)।
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गुल्लक  : स्त्री० =गोलक।
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गुल्लर  : पुं० =गूलर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुल्ला  : पुं० [अ० गुल या हिंदी हल्ला का अनु०] शोर। हल्ला। जैसे–हल्ला-गुल्ला। पुं० [सं० गुलिक] १. ईख आदि का कटा हुआ छोटा टुकड़ा। गँडेरी। २. कालीन, दरी आदि बुनने के करघों में लगनेवाला बाँस का टुकड़ा। ३. लकड़ी का कोई बड़ा टुकड़ा। बड़ी बल्ली। ४. रूई ओटने की चरखी में लोहे का वह छड़ जो उसके खूँटे को इधर-उधर हिलने नहीं देता। ५. गोटा, पट्ठा, आदि बननेवालों का एक प्रकार का मोटा डोरा। पुं० [देश०] एक प्रकार का ऊँचा पहाड़ी पेड़ जिसके हीर की लकड़ी सुगंधित, हलकी और भूरे रंग की होती है। इसे ‘सराय’ भी कहते हैं। पुं० १. =गुलेला। २. रस-गुल्ला। (बँगला मिठाई)।
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गुल्लाला  : पुं० [फा० गुलेलाल] गुललाला नामक पौधा और उसका फूल। वि० उक्त फूल की तरह गहरा लाल। पुं० एक प्रकार का गहरा लाल रंग। उदाहरण–जेहि चंपक बरनी करै, गुल्लाला रंग।–बिहारी।
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गुल्ली  : स्त्री० [सं० गुलिका-गुठली] १. धातु, लकड़ी आदि का कोई गोलाकार, छोटा लंबोत्तरा टुकड़ा। जैसे–डंडे के साथ खेलने की गुल्ली, छापेखाने में फरमा कसने की गुल्ली, हथियारों पर का मोरचा खुरचने की गुल्ली। २. उक्त आकार और रूप में ढाला हुआ धातु का टुकड़ा। पासा। जैसे–चाँदी या सोने की गुल्ली। ३. मक्के की वह बाल जिसके दाने झाड़ लिये गये हों। खुखड़ी। ४. केवड़े का फूल जो गोलाकार लंबा होता है। ५. ऊख या गन्ने के कटे हुए टुकड़े। गँडेरी। ६. मधुमक्खी के छत्ते का वह भाग जिसमें शहद इकट्ठा होता है। ७. फल के अन्दर की गुठली। क्रि० प्र० -बँधना। मुहावरा–गुल्ली बँधना=युवावस्था में शरीर के अन्दर वीर्य का एकत्र होकर पुष्ट होना। ८. एक प्रकार की मैना (पक्षी) जिसे ‘गंगा मैना’ भी कहते हैं।
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गुल्ली-डंडा  : पुं० [हिं०] १. हाथ भर लंबा डंडा और चार छः अंगुल गोल लंबोतरी गुल्ली, जिससे बच्चे खेलते हैं। २. लड़कों का एक प्रसिद्ध खेल जिसमें काठ की उक्ति गु्ल्ली डंडे से मारकर दूर फेंकी जाती है। मुहावरा–गु्ल्ली डंडा खेलनाखेल-कूद अथवा इधर-उधर के फालतू कामों में समय नष्ट करना।
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गुवा  : पुं० दे० ‘(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)गुवाक’।व
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गुवाक  : पुं० [सं०√ Öगु (अव्यक्त शब्द करना)+आक, नि० सिद्धि] सुपारी, विशेषतः चिकनी सुपारी।
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गुवार  : पुं० =ग्वाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुवारपाठा  : पुं० =ग्वारपाठा।
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गुवाल  : पुं० =ग्वाल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुविंद  : पुं० =गोविन्द।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुष्टि  : स्त्री० गोष्ठी।
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गुसल  : पुं० [अ० गुस्ल] नहाने की क्रिया। स्नान। सारे शरीर से नहाना।
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गुसलखाना  : पुं० [अ० गुस्ल+फा० खानः] नहाने-धोने का कमरा या कोठरी। स्नानागार।
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गुसा  : पुं० =गुस्सा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गुसाँई  : पुं० =गोसाई या गोस्वामी।
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गुसैयाँ  : पुं० =गोसाई।
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गुसैल  : वि० =गुस्सैल।
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गुस्ताख  : वि० [फा०] [भाव० गुस्ताखी] (व्यक्ति) जो बड़ों की आज्ञा को शिरोधार्य न करता हो और अनुचित रूप से तथा अशिष्टतापूर्वक उत्तर देता हो। उद्दंड। बे-अदब।
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गुस्ताखी  : स्त्री० [फा०] १. गुस्ताख होने की अवस्था या भाव। धृष्टता। उद्ददंडता। २. उद्दण्डता का परिचायक कोई कार्य।
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गुस्ल  : पुं० =गुसल।
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गुस्लखाना  : पुं० =गुसलखाना।
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गुस्सा  : पुं० [अ०] १. किसी के द्वारा कोई अनुचित कार्य, विरोध या हानि होने पर मन में होनेवाली वह उग्र भावना जिसमें उस वस्तु या व्यक्ति को तोड़ने-फोड़ने, मारने-पीटने या उसकी किसी प्रकार की हानि करने की इच्छा होती है। क्रोध। विशेष–इसमें मनुष्य स्वयं अपने पर नियंत्रण खो बैठता है और कभी-कभी अपनी हानि भी कर बैठता है। मुहावरा–(किसी पर) गुस्सा उतारना किसी को अपने क्रोध की प्रतिक्रिया या पात्र बनाना। (किसी पर) गुस्सा चढ़ना किसी पर क्रोध आना। गुस्सा निकालना क्रुद्र होने पर हानि करनेवाले की हानि करना। गुस्सा पीना=गुस्सा आने पर भी किसी से कुछ न कहना।
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गुस्सैल  : वि० [अ, गुस्सा+हिं० ऐल (प्रत्यय)] (व्यक्ति) जिसे स्वभावतः बात बात पर गुस्सा आता हो। क्रोधी।
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गुह  : पुं० [सं०√Öगुह् (रक्षा करना, छिपाना)+क] १. विष्णु। २. कार्तिकेय। ३. गौतम बुद्ध। ४. घोड़ा। ५. मेढ़ा। ६. कंदरा। ७. हृदय। ८. माया। ९. शालिपर्णी। सरिवन। १॰. निषाद जाति का एक नायक जो राम को वनवास के समय मिला था और जिसने उन्हें श्रृंगबेरपुर में गंगा के पार उतारा था। ११. एक प्रकार के बंगाली कायस्थों का अल्ल या उपाधि। पुं० [सं० गूथ=मैल] गुदा मार्ग से निकलनेवाला मल। पाखाना। मुहावरा–(किसी पर) गुह उछालना किसी के निंदनीय कार्यों का प्रचार करना। गुह उठाना (क) पाखाना साफ करना। (ख) तुच्छ से तुच्छ सेवा करना। गुह खाना बहुत ही बुरा या अनुचित काम करना। (किसी का) गुह मूत करना =बच्चे का पालन-पोषण करना। (किसी को गुह में घसीटना=बहुत ही अपमान या दुर्दशा करना। गुह में ढेला फेंकनानीच के साथ ऐसा व्यवहार करना जिससे अपना ही अहित या बुराई होती हो। (किसी को) गुह में नहलाना बहुत अधिक दुर्दशा करना। वि० [सं० गुह्य] रहस्यमय। गूढ़। उदाहरण–बेंधि बार मार हवै गो ग्यान गुह गाँसी।–मीराँ।
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गुह-षष्ठी  : स्त्री० [मध्य० स०] अगहन सुदी छठ जो कार्तिकेय की जन्मतिथि कही गई है।
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गुहज्य  : वि० [सं० गुह्य] छिपा हुआ। गुप्त। उदाहरण–गुहज्य नाम अमीरस मीठाजो षोजै सो पावै।–गोरखनाथ।
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गुहड़ा  : पुं० [देश०] चौपायों का खुरपका नामक रोग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहना  : स० गूथना (पिरोना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहराना  : स० गोहराना (पुकारना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहवाना  : स० [हिं० गुहना का प्रे०] गुहने या गूँथने का काम कराना। गुँथवाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहा  : स्त्री० [सं० गुह+टाप्] १. गुफा। कंदरा। २. जानवरों के रहने की माँद। चुर। ३. चोरों डाकुओं के छिपकर रहने की जगह। ४. अंतःकरण। हृदय। ५. बुद्धि। ६. शालपर्णी। ७. वह कल्पित मूल स्थान जहाँ से सारी सृष्टि का उदभव तथा विकास माना गया है। उदाहरण–किस गहन गुहा से अति अधीर।–प्रसाद।
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गुहा-मानव  : पुं० [सं० मध्य० स०] इतिहास पूर्व काल के वे मनुष्य जो पाषाण युग में पर्वतों आदि की कदंराओं में रहते थे। (केव-मैन)।
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गुहाई  : स्त्री० [हिं० गुहना] गुहने (गूँथने) की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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गुहाचर  : पुं० [सं० गुहाचर् (गति)+ट] ब्रह्य।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहाँजनी  : स्त्री० [सं० गुह्य-अंजन] आँख की पलक पर होनेवाली फुँसी। बिलनी। अंजनहारी।
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गुहाना  : स० गुहवाना।
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गुहार  : स्त्री० गोहार।
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गुहारना  : स० [हिं० गुहार] रक्षा या सहायता के लिए पुकार मचाना। उदाहरण–दीन प्रजा दुःख पाइ आई नृप-द्वार गुहारति।–रत्नाकर।
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गुहाल  : स्त्री०==गोशाला।
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गुहाशय  : पुं० [सं०√ गुहाशी(सोना)+अच्] १. बिल या माँद में रहनेवाला जंतु। २. परमात्मा।
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गुहिन  : पुं० [सं०√Öगुह्+इनन्] जंगल। वन।
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गुहिर  : वि०=गंभीर।
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गुहेरा  : पुं० [हिं० गूहना=गूँथना] गहने आदि गूथने का काम करनेवाला व्यक्ति। पटवा। पुं० =गोध (जन्तु)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुहेरी  : स्त्री० [सं० गौधेरिका] गुहाँजनी (बिलनी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गुह्य  : वि० [सं०Ö गुह+यत्] १. गुप्त रखने या छिपाये जाने के योग्य। २. (अलौकिक या रहस्यमय बात या वस्तु) जिसका ठीक-ठीक अर्थ या स्वरूप समझना कठिन हो। जिसे जानने या समझने के लिए विशेष आध्यात्मिक ज्ञान की आवश्यकता हो। (एसोट्रिक) ३. रहस्यमय। पुं० १. छल। कपट। २. भेद। रहस्य। ३. ढोंग। ४. शरीर के गुप्त अंग। जैसे–गुदा, भग, लिंग आदि। ४. कछुआ। ६. विष्णु। ७. शिव।
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गुह्य  : वि० [सं० गृह+यत्] १. घर या घर-बार से संबंध रखनेवाला। घर का। २. घर में किया जाने या होनेवाला। जैसे–गृह्य-कर्म। पुं० १. घर में रहनेवाली अग्नि या आग। २. दीपक। दीआ। उदाहरण–देखौ पतंग गृह्य मन रीझा।–जायसी। वि०[सं० Öग्रह् (पकड़ना) +क्यप्] १. ग्रहण किये जाने के योग्य। जिसे ग्रहण कर सके। २. पकड़कर घर में रखा या पाला हुआ। पालतू।
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गुह्य-दीपक  : पुं० [सं० कर्म० स०] जुगनूँ।
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गुह्य-द्वार  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. मल-द्वार। गुदा। २. चोर-दरवाजा।
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गुह्यक  : पुं० [सं०√Öगुह्+ण्वुल्-अक,पृषो० सिद्धि] किन्नर, गंधर्व, यक्ष आदि देवताओं की तरह की एक देव योनि जो कुबेर की संपत्ति आदि की रक्षा करती है।
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गुह्यकेश्वर  : पुं० [सं० गुह्यक-ईश्वर, ष० त०] कुबेर।
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गूँ  : पुं० [फा०] १. रंग। जैसे–गुलगँ=गुलाब के रंग का। २. ढंग। प्रकार। ३. वर्ग।
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गू  : पुं०==गुह (मल)।
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गूगल, गूगुल  : पुं० =गुग्गुल।
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गूँगा  : वि० [फा० गुँग=जो बोल न सके] [वि० स्त्री० गूँगी] १. (व्यक्ति) जिसकी वाक्-शक्ति ऐसी विकृति हो कि कुछ भी बोल न सके। जैसे–गूँगा लड़का। २. जिसमें मनुष्य की तरह शब्दों का उच्चारण करने की शक्ति न हो। जैसे–पशु-पक्षी गूँगे होते हैं। पुं० वह जो बोल न सकता हो। पद–गूँगे का गुड़ =ऐसी स्थिति जिसमें उसी प्रकार अनुभूति का वर्णन न हो सके, जिस प्रकार गूँगा व्यक्ति गुड़ खाने पर भी उसकी मिठास का वर्णन नही कर सकता। गूँगे का सपना=गूँगे का गुड़। गूँगी पहेली वह पहेली जो मुँह से न कही जाए, इशारों से कही जाय। मुहावरा–गूँगे का गुड़ खानाकोई ऐसा अनुभव करना जिसका वर्णन न हो सकता हो।
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गूँगी  : स्त्री० [हिं० गूँगा] पैर में पहनने का एक प्रकार का छल्ला।
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गूँच  : स्त्री० [सं० गुञ्ज] गुंजा। घुँघची।
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गूँछ  : स्त्री० [देश०] गहरे पानी में रहनेवाली एक प्रकार की बड़ी मछली। बूँछ।
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गूँज  : स्त्री० [सं० गुंज] १. भौंरों का गुन-गुन शब्द करना। गुंजन। २. मक्खियों के भिनभिनाने का शब्द। ३. किसी तल या सतह से परावर्तित होकर सुनाई पड़नेवाला शब्द या ध्वनि। ४. किसी स्थान में होनेवाली किसी बात की विस्तृत चर्चा। धूम। जैसे–शहर में इस बातकी गूँज है। ५. किसी प्रकार के कार्य की प्रतिक्रिया। (ईको) ६. किसी स्थान पर किसी विशिष्ट बात के होने की अधिक या विस्तृत चर्चा। जैसे–आज-कल शहर में इस बात की बहुत गूँज हैं। ७. लट्टू में नीचे की ओर जड़ी हुई वह लोहे की कील जिस पर लट्टू घूमता है। ८. नथ, बाली, आदि में सुन्दरता के लिए लपेटा हुआ छोटा पतला तार।
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गूँजना  : अ० [सं० गुंजन] १. भौरों का गुंजारना। गुंजन करना। २. मक्खियों का भिनभिनाना। ३. किसी शब्द का किसी तल से टकरा कर फिर से सुनाई पड़ना। प्रतिध्वनि होना। ४. (किसी चर्चा का) किसी स्थान में फैलना।
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गूजर  : पुं० [सं० गुर्जर] [स्त्री० गुजरी, गुजरिया] १. गुर्जर देश में रहनेवाली एक प्राचीन जाति। २. अहीर। ग्वाला। ३. क्षत्रियों का एक भेद।
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गूजरी  : स्त्री० [सं० गुर्जरी] १. गूजर जाति की स्त्री। २. ग्वालिन। ३. पैरों में पहने जाने का एक प्रकार का गहना। ४. गुर्जरी नाम की रागिनी।
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गूजी  : स्त्री० [हिं० गुजुवा की स्त्री०] काले रंग का एक प्रकार का छोटा कीड़ा।
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गूँझ  : स्त्री०==गूँज।
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गूझना  : अ०=छिपना। स० ==छिपाना।
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गूझा  : पुं० [सं० गुह्यक, प्रा० गुज्झा] [स्त्री० गुझिया] १. बड़ी गुझिया (पकवान)। २. मलद्वार। गुदा। पुं० =गुज्झा (रेशा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गूटी  : स्त्री० [देश०] १. लीची का पेड़ लगाने का एक ढंग या प्रकार। २. चौपायों का एक रोग।
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गूँठ  : पुं० [हिं० गोठा=छोटा, नाटा] एक प्रकार का छोटा कद का पहाड़ी टट्टू।
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गूड़ी  : स्त्री० [सं० गुहा वा गुह्य] अनाज की बाली में का वह गड्ढा जिसमें से दाना निकाल लिया गया हो।
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गूढ़  : वि० [सं०√Öगुह (छिपाना)+क्त] १. छिपा हुआ। गुप्त। जैसे–गूढ़ापाद। २. (किलष्ट या पेचीदा बात) जिसका अभिप्राय या आशय सहज में लोग न समझ सकते हों। अर्थ-गर्भित। जटिल। दुरूह। जैसे–गूढ़ विषय। ३. जिसमें कोई विशेष अभिप्राय छिपा हो। गंभीर। पुं० १. स्मृति में पाँच प्रकार के साक्षियों में से वह जिसे अर्थी ने प्रत्यर्थी की बात बतला या सुना दी हो। २. गूढ़ोक्ति नामक अलंकार। (साहित्य)
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गूढ़-चारी (रिन्)  : वि० पुं० [सं० गूढ़√Öचर् (गति)+णिनि, उप० स०]=गूढ़चर।
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गूढ़-जात  : पुं० [पं० त०]=गूढ़ज।
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गूढ़-जीवी (विन्)  : पुं० [सं० गूढ़√जीव्(जीना)+णिनि, उप० स०] वह जिसकी जीविका के साधन का किसी को पता न चले।
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गूढ़-नीड़  : पुं० [ब० स०] खंजन पक्षी।
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गूढ़-पत्र  : पुं० [ब० स०] १. करील वृक्ष। २. अंकोट वृक्ष। ३. [कर्म० स०] मतदान-पत्र (बैलेट)।
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गूढ़-पथ  : पुं० [कर्म० स०] १. छिपा हुआ रास्ता। जैसे–सुंरग। २. [ब० स०] अंतःकरण या अंतरात्मा।
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गूढ़-पद,गूढ़-पाद  : पुं० [ब० स०] सर्प। साँप।
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गूढ़-पुरुष  : पुं० [कर्म.स० ] जासूस। भेदिया।
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गूढ़-पुष्प  : पुं० [ब० स०] १. पीपल, बड़, गूलर, पाकर इत्यादि वृक्ष जिनमें फूल नहीं होते अथवा नहीं दिखाई देते। २. मौलसिरी।
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गूढ़-भाषित  : पुं० [कर्म० स०] ऐसे शब्दों में कही हुई बात जो सब की समझ मे न आती हो।
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गूढ़-मंडप  : पुं० [कर्म० स०] देव मन्दिर के अंदर का बरामदा या दालान।
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गूढ़-मार्ग  : पुं० [कर्म० स०] सुरंग।
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गूढ़-मैथुन  : पुं० [ब० स०] काक। कौआ।
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गूढ़-लेख  : पुं० [कर्म० स०] लिखने या संवाद भेजने की गुप्त लिपि प्रणाली। (साइफर)।
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गूढ़-व्यंग्य  : पुं० [कर्म० स०] काव्य में एक प्रकार की लक्षणा जिसमें व्यंग्य का अभिप्राय जल्दी सब की समझ में नहीं आ सकता।
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गूढ़-संहिता  : स्त्री० [ष० त०] वह संग्रह जिसमें गूढ़-लेख के नियमों, संकेतों सिद्धान्तों आदि का विवेचन हो। (साइफर कोड)।
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गूढ़चर  : पुं० =गुप्तचर। उदाहरण–इन्द्रिय अगूढ़ चोर मारि दै।–देव। वि० छिपकर घूमने-फिरनेवाला।
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गूढ़ज  : पुं० [सं० गूढ़जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] वह पुत्र जिसे पति के घर रहते हुए भी पत्नी ने अपने किसी सवर्ण जार से पैदा किया हो।
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गूढ़ता  : स्त्री० [सं० गूढ़+तल्-टाप्] गूढ़ होने की अवस्था या भाव।
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गूढ़त्व  : पं० [ब० स०] गूढ़ता।
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गूढ़ा  : स्त्री० [सं० गूढ़] १. ऐसी बात जिसका अर्थ जल्दी सब की समझ में न आवे। २. पहेली। (राज)
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गूढांग  : पुं० [गूढ़-अंग, कर्म० स०] १. इन्द्रिय, गुदा आदि गुप्त अंग। २. [ब० स०] कछुआ।
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गूढ़ाशय  : पुं० [गूढ़-आशय, कर्म० स०]=गूढ़-पुरुष (जासूस)।
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गूढ़ोक्तर  : स्त्री० [गूढ़-उत्तर,कर्म० स०] साहित्य में उत्तर अलंकार का एक भेद जिसमें किसी बात का दिया जानेवाला उत्तर अपने में कोई और गूढ़ अर्थ छिपाये होता है।
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गूँथना  : स० गूथना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गूथना  : स० [सं० ग्रंथन] १. डोरे, तागे आदि के रूप की चीजों को समेट कर सुंदरतापूर्वक आपस में बाँधना। जैसे–चोटी या सिर के बाल गूथना। २. बिखरी हुई अथवा कई चीजों को पिरोकर एक में मिलाना। जैसे–फूलों या मोतियों की माला गूथना। ३. आपस में जोड़ने या मिलाने के लिए मोटे-मोटे टाँके लगाना। गाँथना। जैसे–गुदड़ीगूथ ना।
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गूद  : स्त्री० [सं० गूढ़ या हिं० गोदना] १. गड्ढा। गर्त्त। २. कम गहरा चिन्ह या रेखा। पुं० =गूदा।
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गूदड़  : पुं० [हिं० गूथना] [स्त्री० गुदड़ी] जीर्ण-शीर्ण या फटा-पुराना कपड़ा जो काम में आने के योग्य न रह गया हो। पद–गूदड़शाह वा गूदड़शाँई-फटे-पुराने कपड़े सीकर पहनने वाला साधु।
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गूँदना  : स० =गूँथना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गूदर  : पुं०=गूदड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गूँदा  : पुं०==गोंदा।
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गूदा  : पुं० [सं० गुप्त, प्रा० गुप्त] [स्त्री० गूदी] १. फल आदि के अन्दर का कोमल और गुदगुदा सार भाग। जैसे–आम, इमली या नारंगी का गूदा। २. किसी चीज के अन्दर का गीला गाढ़ा सार भाग। मज्जा। (पिथ्)। ३. किसी चीज को कूटकर तैयार किया हुआ उसका कुछ गीला पिंड या रूप। (पल्प)। ४. खोपड़ी का सार भाग। भेजा। ५. गिरी। मींगी।
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गूँदी  : स्त्री० [?] गँधेला नाम का पेड़ जिसकी जड़, छाल और पत्तियाँ औषध के काम में आती हैं।
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गूदेदार  : वि० [हिं० गूदा+फा० दार] जिसके अन्दर गूदा रहता हो।
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गूँधना  : स० [सं० गुध=क्रीड़ा] १. किसी प्रकार के चूर्ण में थोड़ा-थोड़ा पानी (अथवा कोई तरल पदार्थ) मिलाते तथा हाथ से मलते हुए उसे गाढ़ा अवलेह के रूप में लाना। माँड़ना। सानना। जैसे–आटा गूँथना। २. दे० ‘गूँधना’।
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गून  : स्त्री० [सं० गुण=रस्सी] १. नाव खींचने की रस्सी। २. रीहा नामक घास।
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गूना  : पुं० [फा० गूनः=रंग] एक प्रकार का सुनहरा रंग जो धातु की बनी हुई चीजों पर चढ़ाया जाता है।
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गूनी  : स्त्री० गोनी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गूमट  : पुं० =गुम्मट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गूमड़ा  : पुं०==गुमड़ा या गुम्मड़।
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गूमना  : स० [?] १. गूँधना। माँड़ना। सानना। २. कुचलना। रौदना।
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गूमा  : पुं० [सं० कुंभा, गुंभा] एक प्रकार का पौधा जिसकी गाँठों पर सफेद फूलों के गुच्छे लगते हैं। कुंभा। द्रोणपुष्पी।
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गूरा  : पुं० =गुल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गूल  : पुं० =गुल्म (सेना का)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गूलर  : पुं० [सं० उदुंबर] १. पीपल, बरगद आदि की जाति का एक बड़ा पेड़ जिसकी डालों आदि से एक प्रकार का दूध निकलता है और जिसका फल औषधि, तरकारी आदि के रूप में खाया जाता है। उदुंबर। २. उक्त वृक्ष का फल। पद-गूलर का फूल (क) दुर्लभ वस्तु। (ख) असंभव बात। (गूलर में फूल होता ही नहीं, इसी आधार पर यह पद बना है)। मुहावरा–गूलर का पेट फड़वाना=गुप्त या दबी हुई बात का प्रकट कराना। भेद खुलवाना। पुं०=मेढ़क।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गूलर-कबाब  : पुं० [हिं० गूलर+फा० कबाब] एक प्रकार का कबाब जो उबले और पिसे हुए मांस से गूलर के फल के आकार का होता या गोलियों के रूप में बनाया जाता है,
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गूलू  : पुं० [देश०] एक प्रकार का वृक्ष। पुंड्रक।
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गूवाक  : पुं० =गुवाक।
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गूषणा  : स्त्री० [सं० गु√उष् (जलाना)+युच्-अन, टाप्] मोर की पूँछ पर बना हुआ अर्द्धचन्द्र चिन्ह्र। मोर-चंद्रिका।
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गूह  : पुं० [सं० गूथ] गुह। मल। मुहावरा के लिए दे० गुह के मुहा०।
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गूहन  : पुं० [सं०Ö गूह्+ल्युट्-अन] छिपाने का कार्य।
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गूहा छीछी  : स्त्री० [हिं० गूह+छीछी] ऐसा गंदा झगड़ा या लड़ाई जिससे देखने-सुनने वाले तक के मन में घृणा उत्पन्न होती हो।
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गृत्स  : वि० [सं०Ö गृध् (चाहना)+स] चतुर तथा योग्य (व्यक्ति)। मेधावी।
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गृधु  : वि० [सं० Öगृध्+कु] कामुक। पुं० कामदेव।
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गृध्य  : पुं० [सं०Ö गृध्+क्यप्] १. इच्छा। कामना। २. लालच। लोभ।
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गृध्र-कूट  : पुं० [ब० स०] राजगृह के पास का एक पर्वत।
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गृध्र-व्यूह  : पुं० [मध्य० स०] प्राचीन भारत में सेना की एक प्रकार की व्यूह-रचना जो गिद्ध के आकार की होती थी।
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गृध्रसी  : स्त्री० [सं० गृध्र√Öसो (नष्ट करना)+क-ङीप्] एक बात रोग जिससे कमर, कूल्हों और टाँगों में दर्द होता है। (स्याटिका)। विशेष–गृध्रस्या एक नाड़ी का नाम है। कहते है कि उसी में बात का प्रकोप बढ़ने से यह रोग होता है।
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गृध्रस्या  : स्त्री० [सं० गृध्र+ङीष्+कन्-टाप्] एक बात-नाड़ी।
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गृध्रिका  : स्त्री० [सं० गृध्र+ङीष्+कन्–टाप्,ह्रस्व] कश्यप की पुत्री जो गिद्धों की आदि माता थी।(पुराण)।
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गृम  : स्त्री० [सं० ग्रीवा] गला। उदाहरण–फूटल बलय टूटल गृम-हार।–विद्यापति।
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गृष्टि  : स्त्री० [सं०√ग्रह् (ग्रहण करना)+क्तिच्, पृषो० सिद्धि] १. वह गाय, जिसे एक ही बच्चा हुआ हो। २. वह स्त्री जिसे एक ही सन्तान हुई हो।
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गृह  : पुं० [सं० Öग्रह+क] १. ईट, पत्थर, चूने, सीमेन्ट आदि से बना हुआ वह निवास-स्थान जहाँ कोई व्यक्ति (अथवा परिवार) रहता हो। घर। मकान। जैसे–राजगृह। २.विस्तृत क्षेत्र में, वह क्षेत्र,शहर या राज्य जिसमें कोई रहता हो। ३. राज्य या राष्ट्र के भीतरी कामों का क्षेत्र। जैसे–गृह-मंत्री। वि० १. (यौ० के आरम्भ में) घर में रखकर पाला हुआ। जैसे–गृह कपोत,गृह-दास। २. गृह या घर से संबंध रखनेवाला। जैसे–गृहशास्त्र। ३. देश के भीतरी भाग से संबंध रखनेवाला। जैसे–गृह-युद्ध।
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गृह-उद्योग  : पुं० [मध्य० स०] जीविका उपार्जन करने के लिए घर में बैठकर किये जानेवाले रचनात्मक कार्य। जैसे–करघे से कपड़ा बुनना, बाँस की खपचियों से टोकरियाँ बनाना, रस्सी बटना आदि आदि।
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गृह-कन्या  : स्त्री० [ष० त०] घीकुवार। ग्वारपाठा।
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गृह-कर्मन्  : पुं० [ष० त०] घर-गृहस्थी के काम-धन्धे।
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गृह-कलह  : पुं० [स० त० ] १. घर के लोगों में आपस में होनेवाला झगड़ा या लड़ाई। २. किसी देश या राष्ट्र के निवासियों में आपस में होनेवाला झगड़ा या लड़ाई।
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गृह-कार्य  : पुं० [ष० त०] घर-गृहस्थी के काम-धन्धे।
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गृह-कुमारी  : स्त्री० गृहकन्या।
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गृह-गोधा  : स्त्री० [ष० त० ] छिपकली।
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गृह-गोधिका  : स्त्री० [ष० त० ] छिपकली।
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गृह-जन  : पुं० [ष० त० ] घर में रहने वाले आपस के सब लोग। कुंटुंबी।
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गृह-जात  : वि० [स० त० ] जो घर में उत्पन्न हुआ हो। पुं० सात प्रकार के दासों में से वह जो घर में रखे हुए दास या दासी से उत्पन्न हुआ हो।
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गृह-ज्ञानी (निन्)  : वि० [स० त० ] जिसका सारा ज्ञान घर के अन्दर ही सीमित हो। बाहर का कुछ भी हाल न जाननेवाला। कूप-मंडूक।
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गृह-त्याग  : पुं० [ष० त०] विरक्त होकर और घर छोड़कर कहीं निकल जाना।
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गृह-दाह  : पुं० [ष० त० ] १. घर में आग लगाने या भस्म करने की क्रिया या भाव। २. ऐसा लड़ाई-झगड़ा जिससे घर का सब-कुछ नष्ट हो जाय।
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गृह-दीर्घिका  : स्त्री० [मध्य० स०] प्राचीन भारत में धवल-गृह के आस-पास की नहर जो राजाओं और रानियों के जल-विहार के लिए बनी होती थी।
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गृह-देवता  : पुं० [ष० त०] घर के भिन्न-भिन्न कार्यों के देवता जिनकी संख्या ४५ कहीं गई है।
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गृह-देवी  : स्त्री० [ष० त०] घर की स्वामिनी। गृहिणी।
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गृह-नीड़  : पुं० [ब० स०] गौरैया। (पक्षी)।
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गृह-पति  : पुं० [ष० त०] [स्त्री० गृहपत्नी] १. वह व्यक्ति जिसके पास घर या मकान हो। घर या मकान का मालिक। २. किसी घर अर्थात् घर में रहनेवाले परिवार का मुख्य व्यक्ति। ३. अग्नि। आग। ४. कुत्ता।
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गृह-पत्नी  : स्त्री० [ष० त०] ==गृहिणी।
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गृह-पशु  : पुं० [ष० त०] १. घर में पाला हुआ पशु। पालतू जानवर। २. कुत्ता।
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गृह-पाल  : पुं० [सं० गृहपाल (रक्षा करना)+णिच्+अण्, उप० स०] १. घर की रखवाली करनेवाला चौकीदार। २. कुत्ता।
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गृह-पालित  : भू० कृ० [स० त०] जो घर में पाला पोसा गया हो। जैसे–गृह पालित दास या पशु।
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गृह-प्रवेश  : पुं० [स० त० ] १. नये बनवाये या खरीदे हुए मकान में, विधिपूर्वक पूजन आदि करने के उपरांत, पहले-पहल बाल-बच्चों सहित उसमें प्रवेश करना। २. उक्त अवसर पर होने वाला समारोह और धार्मिक कृत्य। वास्तु-पूजन।
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गृह-बलि  : स्त्री० [मध्य० स०] घर में ही नित्य दी जानेवाली बलि। वैश्व-देव।
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गृह-भूमि  : स्त्री० [ष० त० या मध्य० स०] वह भूमि जिस पर मकान बना हो या जो मकान बनाने के लिए उपयुक्त हो। (कृषि भूमि से भिन्न)
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गृह-भेद  : पुं० [ष० त०] घर के लोगों का आपस में लड़-झगड़कर एक दूसरे से अलग होना।
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गृह-भेदी(दिन्)  : वि० [सं० गृह√Öभिद् (फाड़ना)+णिनि,उप० स०] घर के लोगों में आपस में लड़ाई-झगड़ा करानेवाला।
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गृह-मणि  : पुं० [ष० त०] दापक। दीया।
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गृह-मंत्रालय  : पुं० [ष० त० ] १. वह मंत्रालय जिसमें किसी राज्य या राष्ट्र के गृह-संबंधी कार्यों की देख-भाल करनेवाले लोग काम करते हैं। गृहमंत्री का कार्यालय। (होममिनिस्टरी) २. उक्त मंत्रालय का अधिकारी वर्ग।
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गृह-मंत्री(त्रिन्)  : पुं० [ष० त०] राज्य या राष्ट्र के भीतरी मामलों (तथा शांति, रक्षा आदि) की व्यवस्था करनेवाला मंत्री। (होम मिनिस्टर)
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गृह-माचिका  : स्त्री० [सं० गृह√Öमच् (छिपकर रहना)+ण्वुल्-अक+टाप्, इत्व, उप० स० ] चमगादड़।
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गृह-मृग  : पुं० [स० त०] कुत्ता।
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गृह-मेध  : पुं० [ष० त०] पंच महायज्ञ।
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गृह-मेधी(धिन्)  : पुं० [सं० गृहमेध+इनि] १. गृह-मेध करनेवाला। २. गृहस्थ।
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गृह-युद्ध  : पुं० [स० त० ] १. घर में ही आपस के लोगों में होनेवाला लड़ाई-झगड़ा। २. किसी एक ही राज्य या राष्ट्र के विभिन्न प्रदेशों के निवासियों या राजनीतिक दलों का आपस में होनेवाला युद्ध। (सिविल वार)
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गृह-रक्षक  : पुं० [ष० त० ] १. एक प्रकार का अर्द्ध सैनिक संघटन जो स्वंतंत्र भारत में स्थानिक शांति और सुरक्षा के उद्देश्य से बनाया गया है। २. इस संघटन का कोई अधिकारी या सदस्य। (होमगार्ड)।
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गृह-लक्ष्मी  : स्त्री० [ष० त० ] घर की स्वामिनी, सती और सुशीला स्त्री।
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गृह-वाटिका  : स्त्री० [मध्य० स०] घर में ही लगा हुआ छोटा बाग।
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गृह-वासी (सिन्)  : वि० [सं० गृहवस् (बसना)+णिनि, उप० स०] घर बनाकर उसमें रहनेवाला। पुं० गृहस्थ।
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गृह-वित्त  : पुं० [ब० स०] गृह-स्वामी।
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गृह-सचिव  : पुं० [ष० त०] गृह मंत्रालय का प्रधान शासनिक अधिकारी। (होम सेक्रेटरी)
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गृह-सज्जा  : स्त्री० [ष० त०] घर की सजावट या उसकी सामग्री।
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गृह-स्वामी(मिन्)  : पुं० [ष० त०] [स्त्री० गृह-स्वामिनी] घर का मालिक जो गृहस्थी के सब लोगों का पालन-पोषण और देख-रेख करता हो।
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गृहज  : वि० [सं० गृह√जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] जो घर में उत्पन्न हुआ हो। पुं० घर में पैदा होनेवाला दास। गोला।
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गृहणी  : स्त्री० [सं० गृहनी (ले जाना)+क्विप्,णत्व] १. काँजी। २. प्याज। स्त्री० दे० ‘गृहिणी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गृहत्यागी (गिन्)  : वि० [सं० गृहत्याग+इनि] जो घर-बार छोड़कर और विरक्त होकर गृहस्थाश्रम से निकल आया हो।
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गृहप  : पुं० [सं० गृ√हपा (रक्षा करना)+क, उप० स०] १. घर का स्वामी। गृहपति। २. चौकीदार। पहरेदार। ३. अग्नि। आग। ४. कुत्ता।
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गृहस्त  : पुं० =गृहस्थ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गृहस्थ  : पुं० [सं० गृह√Öस्था (ठहरना)+क] १. वह जो घर-वार बनाकर उसमें अपने परिवार और बाल-बच्चों के साथ रहता हो। पत्नी और बाल-बच्चों वाला आदमी। घरबारी। २. हिंदू धर्म-शास्त्रों के अनुसार वह जो ब्रह्मचर्य का पालन समाप्त और करके विवाह करके दूसरे आश्रम में प्रविष्ट हुआ हो। ज्येष्ठाश्रमी। ३. खेती-बारी आदि से जीविका चलानेवाला व्यक्ति। ४. जुलाहा।
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गृहस्थाश्रम  : पुं० [सं० गृहस्थ-आश्रम, ष० त० ] हिंदू धर्मशास्त्रों के अनुसार चार आश्रमों में से दूसरा आश्रम जिसमे लोग ब्रह्मचर्य के उपरांत विवाह करके प्रवेश करते थे और स्त्री-पुत्र आदि के साथ रहते और उनका पालन करते थे।
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गृहस्थाश्रमी (मिन्)  : पुं० [सं० गृहस्थाश्रम+इनि] गृहस्थाश्रम में रहनेवाला व्यक्ति।
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गृहस्थी  : स्त्री० [सं० गृहस्थ+हिं० ई (प्रत्य)] १. प्रत्येक व्यक्ति की दृष्टि से उसका घर,परिवार के सब लोग और उसमें रहनेवाली जीवन निर्वाह की सब सामग्री। घर-बार और बाल-बच्चे। २. घर का सब सामान। माल-असबाब। जैसे–इतनी बड़ी गृहस्थी उठाकर कहीं ले जाना सहज नहीं है। ३. खेती-बारी और उससे संबंध रखने वाला काम-धंधे। ४. गृहस्थाश्रम। ५. खेती-बारी।
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गृहाक्ष  : पुं० [सं० गृह-अक्षि, ष० त० टच् प्रत्यय] घर में बनी हुई खिड़की या झरोखा।
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गृहागत  : भू० कृ० [सं०गृह-आगत,द्वि.त०] घर में आया हुआ। पुं० अतिथि। मेहमान।
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गृहाराम  : पुं० [सं० गृह-आराम, मध्य० स०] घर के चारों ओर या सामने लगाया हुआ बाग।
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गृहाश्रम  : पुं० [सं० गृह-आश्रम, कर्म० स०] ==गृहस्थाश्रम।
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गृहाश्रमी(मिन्)  : पुं० [सं० गृहाश्रम+इनि] =गृहस्थाश्रमी।
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गृहासक्त  : वि० [गृह-आसक्त, स० त० ] १. घर से दूर रहने या होने के कारण जो चिंतित तथा दुःखी हो। (होम सिक) २. हर दम जिसे घर-गृहस्थी, बाल-बच्चों आदि की चिंता लगी रहती हो।
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गृहिणी  : स्त्री० [सं० गृह+इनि-ङीप्] १. घर की मालकिन जो गृहस्थी के सब कामों की देख-रेख करती हो। २. जोरू। पत्नी। भार्या।
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गृही(हिन्)  : पुं० [सं० गृह+इनि] [स्त्री० गृहिणी] १. गृहस्थ। गृह-स्थाश्रमी। २. दर्शनों आदि के लिए तीर्थ में आया हुआ व्यक्ति।(पंडे और भड्डर)
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गृहीत  : भू० कृ० [सं० Öग्रह् (पकड़ना)+क्त] [स्त्री० गृहीता] १. जो ग्रहण या प्राप्त किया गया हो। २. लिया, पकड़ा या रखा हुआ। ३. जिसने कोई चीज धारण की हो। जैसे–
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गृहीतगर्भा  : (गर्भवती स्त्री)। ४. जिसपर किसी उग्र मनोविकार का प्रभाव पड़ा हो। जैसे– गर्व-गृहीत। ५. जाना या समझा हुआ।
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गृहीतार्थ  : वि० [सं० गृहीत-अर्थ, ब० स०] जिसने अर्थ समझ लिया हो। पुं० किसी पद या वाक्य का गृहीत या प्रचलित अर्थ।
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गृहोद्यान  : पुं० [सं० गृह-उद्यान, मध्य० स०] बहुत बड़े मकान या महल के सामने या अगल-बगल का बगीचा।
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गृहोपकरण  : पुं० [सं० गृह-उपकरण, ष० त०] घर-गृहस्थी के सब सामान।
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गृह्य-कर्म(न्)  : पुं० [कर्म० स०] हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार वे सब कर्म जो प्रत्येक गृहस्थ के लिए आवश्यक कर्त्तव्य के रूप में बतलाये गये हैं। जैसे–अग्निहोत्र, बलि, १६ संस्कार आदि।
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गृह्य-सूत्र  : पुं० [ष० त०] वे विशिष्ट वैदिक ग्रंथ जिनमें सब प्रकार के गृह्य-कर्मों,संस्करों आदि के विधान बतलाये गये हैं। जैसे–आश्वलायन, कात्यायन अथवा गोमिलीय गृह्य-सूत्र।
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गृह्यक  : वि० [सं० गृह्य+कन्] १. जिसने घर में आकर आश्रय लिया हो। आश्रित। २. जो घर में रखकर पाला-पोसा गया हो।
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गे  : अव्य० [सं० हे] संबोधन का चिन्ह्र (पूरब)।
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गेंगटा  : पुं० [सं० कर्कट] केकड़ा।
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गेगम  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार का धारीदार या चारखानेदार कपड़ा। सींकिया।
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गेगला  : पुं० [?] १. मसूर की जाति का एक प्रकार का जंगली पौधा। २. छोटा बच्चा। ३. निबुद्धि या मूर्ख व्यक्ति।
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गेगलापन  : पुं० [हिं० गेगला] १. लड़कपन। २. मूर्खता।
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गेज  : पुं० [अ०] १. किसी चीज को नापने या मापने का कोई साधन। २. रेल की दोनों पटरियों के बीच का विस्तार जो साधारणतः ५६½ इंच होता है। विशेष-मानक गेज ५६½ इंच ही माना जाता है, वैसे छोटे तथा बड़े गेजों में भी पटरियाँ होती हैं।
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गेजुनिया  : पुं० [देश०] गुलदुपहिया। (पौधा और फूल)।
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गेटिस  : पुं० [अं० गेटर] १. सैनिकों आदि के पहनने का कपड़े या चमड़े का वह आवरण जिससे पिंडलियाँ ढकी या बाँधी जाती है। २. कपडे, रबर आदि का वह छोटा तस्मा या पतली पट्टी जिससे पहने हुए मोजे का ऊपरी भाग इसलिए कसा जाता है कि मोजा नीचे न गिरने पावे।
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गेंठी  : स्त्री० [सं० गृष्टि, प्रा० गिट्ठि, गेठ्ठि] वाराही कंद।
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गेंड  : पुं० [सं० गोष्ठ] १. डंठलों, पत्तियों आदि से बनाया हुआ वह घेरा जिसमें खेतिहर अपना अनाज रखते हैं। २. घेरा। मंडल। ३. ऊख के ऊपर के पत्ते। अगौरा। ४. दे० ‘गेंड़’।
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गेंड़  : स्त्री० [हिं० गेंड़ना] गेंड़ने की क्रिया या भाव। २. मंडलाकार बनाया हुआ गड्ढा, या खींची हुई रेखा। दे० ‘गेंड़’।
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गेंड़ना  : स० [हिं० गेंड़] १. खेतों की सीमा निर्धारित करने के लिए उनके चारों ओर मेंड़ बनाना। २. बाढ़ आदि लगाकर चारों ओर से घेरना। ३. अन्न रखने के लिए गेंड़ या घेरा बनाना। ४. लकड़ी के टुकड़े काटने के लिए कुल्हाड़ी से चारों ओर छेव लगाना। ५. दे० ‘गेंड़ना’।
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गेड़ना  : स० [सं० गंड==चिन्ह्र] १. किसी चीज को घेरने के लिए उसके चारो ओर गड्ढा, मेंढ़ या और किसी प्रकार का रेखा बनाना। २. किसी चीज के चारों ओर घूमना। परिक्रमा करना। ३. रहट चलाने के लिए उसका हत्था पकड़कर चारों ओरचक्कर लगाना। ४. दे० ‘गेंड़ना’।
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गेंडली  : स्त्री० [सं० कुंडली] मंडलाकार घेरा। कुंडली। (साँपों आदि की।)
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गेंड़ा  : पुं० [सं० कांड] १. ईख के ऊपर के पत्ते। अगौरी। २. ईख। गन्ना। ३. ईख के छोटे-छोटे टुकड़े। गँडेरी। ४. धातु के टुकड़े पीटने की पत्थर की निहाई। पुं० दे० गैड़ा।
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गेंड़ी  : स्त्री० [सं० गंड-चिन्ह] १. गेंड़ने की क्रिया या भाव। २. लड़कों का एक खेल जिसमें किसी मंडलाकार रेखा के बीच में लकड़ी का एक टुकड़ा रखकर और उस पर आघात करके उसे रेखा के बाहर निकालने का प्रयत्न किया जाता है। ३. उक्त खेल की वह लकड़ी जो मंडलाकार रेखा के बीच में रखी जाती हैं।
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गेंड़ु  : पुं० [सं०] कंदुक। गेंद।
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गेंडुआ  : पुं० [सं० गेंदुक-गेंद] १. बड़ा गेंद। २. सिर के नीचे रखने का गोल तकिया।
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गेंडुक  : पुं० [सं० गेंदुक, पृषो० सिद्धि] कंदुक। गेंद।
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गेंडुरी  : स्त्री० [सं० कुंडली] १. कपड़े या रस्सी का बना हुआ वह मेंड़रा जिस पर घड़ा रखते हैं अथवा जिसे बोझ उठाने के समय सिर पर रखते हैं। ईडुरी। २. कुंडली या फेंटा (साँपो आदि का)।
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गेंडुली  : स्त्री० =गेंड़ुरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेणा  : पुं० =गहना या आभूषण। (राज०) उदाहरण–गेणोतो म्हाँरे माला दोवड़ी और चन्दन की कुटकी।–मीराँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेंती  : स्त्री० [?] १. एक प्रकार का छोटा वृक्ष। २. एक प्रकार की कुदाल।
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गेंद  : पुं० [सं० पा० गेन्डुक, प्रा० गेन्दुआ, उ० गेण्डु, सिं० खेनुरी, प्रा० गेन्दु, चेण्ड,गु० ने० मरा० गेंद] १. बच्चों के खेलने के लिए कपड़े,चमड़े,रबड़,लकड़ी आदि का बना हुआ एक प्रसिद्ध छोटा गोला। २. वह कलबूत जिसपर रखकर टोपियां,पगड़ियाँ आदि बनाई जाती थी। कालिब। ३. तारों आदि का बना हुआ वह गोलकार घेरा जिसके अन्दर रखकर दीया जलाते थे।
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गेंदई  : वि० [हिं० गेंदा] १. गेंदे से संबंध रखनेवाला। गेंदे का २. गेंदे के फूल के रंग का। पीला। पुं० उक्त प्रकार का पीला रंग।
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गेंदघर  : पुं० [हिं० गेंद+घर] वह स्थान जहाँ लोग गेंद से तरह-तरह के खेल खेलते हैं।
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गेंदतड़ी  : स्त्री० [हिं० गेंद+तड़ीचोट या मार] लड़कों का एक खेल जिसमें वे एक दूसरे को गेंद मारते हैं।
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गेंदबलल्ला  : पुं० [हिं० गेंद+बल्ला] १. गेंद और उस पर आघात करने या लकड़ी का बल्ला। २. गेंद, बल्ले तथा यष्टियों से खेला जानेवाला एक प्रसिद्ध खेल जिसमें ग्यारह-ग्यारह खेलाड़ियों की दो टोलियाँ होती हैं और एक दूसरे से अधिक दौंड़े बनाकर विजय प्राप्त करती है। (क्रिकेट)।
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गेंदवा  : पुं० १. =गेंड़ुआ (तकिया)। २. =गेंद।
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गेंदा  : पुं० [हिं० गेंद] १. एक प्रकार का छोटा पौधा जिसमें पीले, लाल, नारंगी आदि रंगों के फूल लगते हैं। २. उक्त पौधे के फूल जिनकी मालाएं बनती हैं।
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गेदा  : पुं० [?] चिड़िया का वह छोटा बच्चा जिसके पर अभी तक न निकलें हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेंदिया  : स्त्री० [हिं० गेंद+ईया(प्रत्यय)] फूलों को मालाओं के नीचे लटकनेवाला फूल -पत्तों आदि का गुच्छा।
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गेंदुक  : पुं० [सं०√गम् (जाना)+ड, ग-इंदु, कर्म० स० गेंदु+कन्] कन्दुक। गेंद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गेंदुवा  : पुं० =गेंड़ुआ।
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गेंदौरा  : पुं० =गिँदौड़ा।
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गेन  : पुं० =गगन। (आकाश) उदाहरण–कोपि कन्ह धायौ वली जनु अग्नि विच्छुटी गेन।–चन्दबरदाई।
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गेनुर  : स्त्री० दे० ‘गोनर’।
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गेबा  : पुं० [देश०] करघे में, कंघी की वे तौलियाँ जिनके बीच में से ताने के सूत आपस में उलझने से बचाने के लिए निकाले जाते हैं।
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गेय  : वि० [सं०√Öगै (गाना)+यत्] १. गाये जाने के योग्य। २. जो गाया जा सके। जैसे–गेय पद। ३. प्रशंसनीय। श्रेष्ठ।
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गेरना  : स० [हिं० गिराना का पुराना रूप] १. (गले आदि के ऊपर से) डालना। उदाहरण–माला पै लाल गुलाल गुलाब सों गेरि गरे गजरा अलबैलौ।–पद्याकर। २. गिराना। स० दे० गेंड़ना।
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गेरवाँ  : पुं० दे० ‘गेराँव’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेराँई  : स्त्री० =‘गेराँव’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेराँव  : पुं० [हिं० गर-गला] १. चौपायों के गले में बाँधी जानेवाली रस्सी। पगहा। २. उक्त रस्सी का वह मंडलाकार अंश जो चौपायों के गले में पड़ा रहता है। पुं० हिं० गांव का अनु०। जैसे–गाँव-गेराँव की चीज।
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गेरुआ  : वि० [हिं० गेरू+आ (प्रत्यय)] १. गेरू के रंग का। मटमैलापन लिए लाल रंग का। २. गेरू-मिट्टी के रंग से रंगा हुआ। गैरिक। जोगिया। भगवा। पुं० १. गेरू से तैयार किया हुआ रंग। जोगिया। (सैमन) २. गेरू के रंग का एक छोटा क्रीड़ा जो फसल की हानि करता है। ३. गेहूँ के पौधे का एक रोग जिससे उनकी पेड़ी बहुत कमजोर हो जाती है।
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गेरुआ बाना  : पुं० [हिं०] त्यागियों, योगियों अथवा साधु-संन्यासियों का पहनावा जो गेरुए रंग का होता है।
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गेरुई  : स्त्री० [हिं० गेरू] फसल या पौधों को होनेवाला एक रोग जो प्रायः उनकी जड़ों में एक प्रकार के गेरुए रंग के कीड़े लगने से उत्पन्न होता है।
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गेरुल  : पुं०=गेंद।
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गेरुला  : पुं० [?] जुड़ा या वेणी। (स्त्रियों की)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेरू  : पुं० [सं० गैरिका, पा० गेरुकम्, प्रा० गेरिअ, गैरुष, पं० बं० गेरी, उ० गु० ने० सि० मरा० गेरू] एक प्रसिद्ध खनिज लाल मिट्टी जो प्रायः कपड़े, दीवारे आदि रंगने में और कभी-कभी दवाओं के काम आती है।
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गेला  : वि० [हिं० गेया, या गया (बीता) ?] [स्त्री० गेली] १. नासमझ। मूर्ख। २. गया-बीता। तुच्छ। हेय। उदाहरण–गेली दुनियाँ बावली ज्याँ कूँ राम न भावे।–मीराँ।
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गेली  : स्त्री० [अं०] छापेखाने में धातु या लकड़ी की वह छिछली किश्ती जिसपर छापे के अक्षर जोड़ या बैठाकर रखे जाते है। पद–गेली प्रूफ इस प्रकार उक्त किश्ती में जोड़कर रखे हुए अक्षरों पद से छापा जाने वाला कागज जिस पर बैठाये हुए अक्षरों की भूलें ठीक की जाती हैं।
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गेल्हा  : पुं० [देश०] तेल रखने का चमड़े का बड़ा कुप्पा। (तेली)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेंवर  : पुं० [सं० गज-वर] १. हाथी। २. बड़ा हाथी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेवर  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पेड़। गँगवा।
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गेवल  : वि० [हिं० गाँव] [स्त्री० गवेली] १. गाँव या देहात संबंधी। २. गँवार। देहाती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गेसू  : पुं० [फा०] बालों की लट। जुल्फ।
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गेह  : पुं० [सं० ग-ईह, ब० स०] १. रहने की जगह। २. घर। मकान।
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गेह-पति  : पुं० [ष० त० ] घर का मालिक। गृहपति।
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गेहनी  : स्त्री० [हिं० गेह] १. घर की मालिक स्त्री। गृह-स्वामिनी। गृहिणी। २. पत्नी। भार्या।
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गेही(हिन्)  : पुं० [सं० गेह+इनि] घर-बार बनाकर उसमें रहनेवाला व्यक्ति। गृहस्थ। उदाहरण–गेही संग्रह परिहरै, संग्रह करै विरक्त।–भगवत-रसिक।
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गेहुँअन  : पुं० [हिं० गेहूँ] मटमैले रंग का एक प्रकार का बहुत जहरीला फनदार साँप।
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गेहुँआ  : वि० [हिं० गेहूँ] १. गेहूँ के रंग का। हलका बादामी। २. (शरीर या वर्ण) जो न बहुत गोरा हो और न बहुत साँवला।
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गेहूँ  : पुं० [सं० गोधूम, पा० गोधूमो, प्रा० गहूअँ, गहूम, पं० ग्यूँ, गु० घऊँ० बं० गोम, उ० गहम्, मरा० गेहूँ] १. एक प्रसिद्ध पौधा जिसकी बालों में लगनेवाले दाने छोटे, लंबोतरे बीजों के रूप में होते हैं और जिनके आटे या चूर्ण से कचौरी, पूरी, रोटी आदि पकवान बनते हैं। २. उक्त पौधे के छोटे लंबोतरे दाने या बीज।
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गेहे-शूर  : पुं० [सं० त० सप्तमी का अलुक्] वह जो घर में बहादुरी दिखानेवाला हो, बाहरी लोगों के सामने कायर हो।
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गै  : पुं० [सं० गज, प्रा० गय] हाथी।
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गै-रखी  : स्त्री० [हिं० गै=गला+रखी] सुनारों की बोली में हँसुली।
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गैगहण  : वि० [अनु० गहगहाना] आकाश को गुँजानेवाला (शब्द)। पुं० आकाश गुँजानेवाला शब्द। उदाहरण–होइ वीर हक गैगहण।–प्रिथीराज।
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गैंटा  : पुं० [देश०] कुल्हाड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गैंडा  : पुं० [सं० गण्डक, पा० गण्डको, प्रा० गण्डअ, गु० गंडो, मरा० गेंड़ा] भैंसे के आकार का एक प्रसिद्ध शाकाहारी स्तनपायी जंगली पशु जिसके थुथने पर एक या दो सींग होते हैं। प्राचीन काल में इसके चमड़े से ढालें बनाई जाती थीं। (रेहाइनोसेरस)।
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गैति  : स्त्री० [सं० गजगय>गै+?] हाथियों का झुंड। स्त्री० =गैंती।
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गैती  : स्त्री० [देश०] १. जमीन खोदने की कुंदाल। २. एक पेड़ जिसकी लकड़ी का रंग लाल होता है।
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गैंद  : पुं० [सं० गयंद] हाथी। उदाहरण–जिण बन भूल न जावता, गैंद गिनल गिड़राज।-कविराजा सूर्यमल। पुं० =गेंद।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गैन  : पुं० [सं० गमन] १. गमन करना। जाना। २. गैल। मार्ग। ३. कदम। पग। उदाहरण–कबहुँक ठाढ़े होत टेकि कर चल न सकै इक गैन-सूर। पुं० =गगन (आकाश)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =गयंद (हाथी)। उदाहरण–कोऊ नहिं बरजैं, जो इनको बनै मत्त जिमि गैन।–भारतेंदु।
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गैनी  : वि० स्त्री० =गामिनी। (गामी का स्त्री रूप)। जैसे–गज-गैनी।
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गैफल  : पुं० [?] जहाज के आगे की तरफ का एक छोटा पाल। (लश०)
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गैफल-कँजा  : पुं० [?] गैफल नामक पाल को चढ़ाने-उतारने की रस्सी। (लश०)
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गैब  : पुं० [अं०] १. वह लोक जो सामने दिखाई न देता हो। अदृश्य लोक। २. परोक्ष।
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गैबत  : स्त्री० [अं०] किसी के पीठ-पीछे की जानेवाली शिकायत। निन्दा। चुगली।
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गैबदाँ  : वि० [अ०] [भाव० गैबदानी] ऐसी बातों का जानने वाला जो प्रत्यक्ष और अनुमान द्वारा न जानी जा सकें। परोक्षा की बातों का ज्ञाता।
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गैबर  : पुं० [देश०] लकलक की जाति की एक चिड़िया जिसके डैने और पीठ सफेद, दुम काली तथा चोंच और पैर लाल होते हैं। पुं० [सं० गजवर] बड़ा हाथी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गैबी  : वि० [अ० गैब] १. गैब या परोक्ष से संबंध रखनेवाला। गैब का। २. छिपा हुआ। गुप्त। ३. किसी अज्ञात देश या स्थान से आया हुआ। ४. बिलकुल नया और अपरिचित।
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गैयर  : पुं० [सं० गजवर] हाथी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) बड़ा हाथी। वि० [हिं० गैया] गौ की तरह सीधे स्वभाववाला। उदाहरण–मन मतग गैयर हने मनसा भई सिचान–कबीर। स्त्री० दे० ‘नीलगाय’।
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गैया  : स्त्री० [सं० गो] गाय। गौ।
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ग़ैर  : वि० [अ०] १. प्रस्तुत से भिन्न। कुछ और या कोई और। जैसे–गैर मौरूस=मौरूसी से भिन्न। २. अन्य। दूसरा। ३. जिसके साथ आत्मीयता का संबंध न हो। जैसे–गैर आदमी, गैरमर्द। ४. दूसरे या दूसरों से संबंध रखनेवाला। जैसे–गैर इलाके या गैर मुल्क का। मुहावरा–गैर करना (क) गैरों या परायों का सा व्यवहार करना। (ख) वैर-विरोध या शत्रुता करना। ५. कथित से भिन्न होने के कारण ही विपरीत या विरूद्ध। जैसे–गैर जरूरी, गैर मुमकिन, गैर वाजिब, गैर हाजिर आदि। पुं० दे० गैयर। स्त्री० १. दे० ‘गैल’। २. दे० ‘घर’।
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ग़ैर-आबाद  : वि० [अ०+फा०] १. (प्रदेश) जिसमें मनुष्यों की बस्ती न हो। २. (भूमि) जो जोती-बोई न गयी हो या न जाती हो।
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ग़ैर-इंसाफी  : स्त्री० [अ०] अन्याय।
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ग़ैर-जरूरी  : वि० [अ०] अनावश्यक।
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ग़ैर-जिम्मेदार  : वि० [अ०+फा०] [भाव० गैर-जिम्मेदारी] १. जो जिम्मेदार या जबावदेह न हो। २. जो अपनी जिम्मेदारी या उत्तरदायित्व न समझता हो। अनुत्तदायी।
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ग़ैर-दखीलदार  : पुं० [अ०+फा०] वह असामी (या खेतिहर) जिसे दखीलकारी वाले अधिकार प्राप्त न हो। (नान्आँकुपेन्सी टेनेन्ट)।
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ग़ैर-मजरूआ  : वि० [अ०] (भूमि) जो जोती-बोई न गयी हो या न जाती हो।
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ग़ैर-मनकूला  : वि० [अ०] (पदार्थ या सम्पत्ति) जिसे एक स्थान से उठाकर दूसरे स्थान पर न ले जाया जा सके। अचल। स्थावर।
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ग़ैर-मामूली  : वि० [अ०] १. नित्य या नियम से भिन्न। २. असाधारण।
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ग़ैर-मिसिल  : वि० [अ०] १. जो मिसिल में न हो, बल्कि उसके बाहर हो। २. किसी दूसरे वर्ग या विभाग का। ३. अनुचित। ४. जो उपयुक्त अवसर पर न हो। बे-मौके। ५. अशिष्टतापूर्वक या अश्लील। (परहास, व्यंग्य आदि के संबंध में प्रयुक्त) जैसे–गैरमिसिल। दिल्लगी।
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ग़ैर-मुनासिब  : वि० [अ०] जो मुनासिब अर्थात् उचित न हो। अनुचित।
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ग़ैर-मुमकिन  : वि० [अ०] जो मुमकिन अर्थात् संभव न हो। असंभव।
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ग़ैर-मुल्की  : वि० [अ०] १. गैर या दूसरे देश का। विदेशी। २. दूसरे राज्यों या राष्ट्रों से संबंध रखनेवाला। पर-राष्ट्रीय।
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ग़ैर-रस्मी  : वि० [अ०+फा०] (कार्य या व्यवहार) जो परंपरा, रीति आदि के अनुसार न किया गया हो।
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ग़ैर-वसली  : स्त्री० [अ०] कच्चे मकानों की छत छाने की वह प्रणाली जिसमें बाँस की पतली कमाचियों को दृढ़तापूर्वक केवल बुन देते हैं और उन्हें रस्सियों से नहीं बाँधते।
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ग़ैर-वसूल  : वि० [अ०] [भाव० गैर-वसूली] जो वसूल या प्राप्त न हुआ हो, अभी वसूल होने को बाकी हो।
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ग़ैर-वाजिब  : वि० [अ०] अनुचित। नामुनासिब।
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ग़ैर-सरकारी  : वि० [अ०] १. जो सरकारी या राज्यकीय न हो बल्कि उससे भिन्न हो। अराजकीय। २. जिसके लिए सरकार उत्तरदायी न हो। (वक्तव्य आदि)।
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गैर-हाजिर  : वि० [अ०] जो हाजिर या उपस्थित न हो। अनुपस्थित।
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गैर-हाजिरी  : स्त्री० [अ०] हाजिर या उपस्थित न होने की अवस्था या भाव। अनुपस्थिति।
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ग़ैरत  : स्त्री० [अ०] मन में होनेवाली अपने ही संबंध में वह खेदजनक भावना जो कोई अनुचित या अशोभन काम करने पर उत्पन्न होती है या होनी चाहिए। लज्जा। शर्म।
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ग़ैरतदार  : वि० [अ०+फा०] लज्जाशील।
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ग़ैरतमंद  : वि० ==गैरतदार।
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गैरिक  : पुं० [सं० गिरि+ठञ्–इक] १. गेरू। २. सोना। स्वर्ण। वि० १. गेरू के रंग में रंगा हुआ। २. गेरू के रंग का।
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गैरियत  : स्त्री० [अ०] गैर (पराया या भिन्न) होने की अवस्था या भाव।
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गैरी  : स्त्री० [सं०] लांगलिका वृक्ष। विषलाँगला। वि० [?] कूड़ा-करकट भरकर खाद बनाने का गड्ढा। २. खेत से काटकर लाए हुए डंठलों आदि का ढेर। खरही।
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गैरीयत  : स्त्री० गैरियत।
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गैरेय  : पुं० [सं० गिरि+ढक्–एय] शिलाजीत।
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गैल  : स्त्री० [हिं० गली] १. मार्ग। रास्ता। २. गली। मुहावरा–(किसी को) गैल करना =रास्तें में जाने के लिए किसी को साथ कर देना। (किसी की) गैल जाना=(क) किसी के बतलाये हुए रास्ते पर जाना अनुकरण या अनुसरण करना। (ख कोई ऐसा काम करना जिससे किसी का सामना हो या विरोध करना पड़े। (किसी को) गैल बताना दे० रास्ता के अंतर्गत मुहा–(रास्ता बताना।) (किसी को) गैल लेना =रास्तें में चलने के लिए किसी व्यक्ति को अपने साथ लेना।
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गैलड़  : पुं० [अ० गैर+हिं० लड़का] वह लड़का जिसे उसकी माँ अपने साथ दूसरे पति या यार के यहाँ चली आई हो।
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गैलन  : पुं० [अ०] तरल पदार्थ मापने का एक अँगरेजी मान जो तीन सेर के लगभग होता है।
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गैलरी  : स्त्री० [अं० ]१. सीढ़ियों की तरह ऊपर-नीचे बनी हुई कोई ऐसी रचना जिसपर बहुत से लोग बैठतें या चीजें रखी जाती हो। २. उक्त कार्यों के लिए ऊपर के खंड में बनी हुई कोई समतल रचना।
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गैला  : पुं० [हिं० गैल] १. गाडी के पहियों की लीक। २. बैलगाड़ियों आदि के चलने का रास्ता। ३. गैल या रास्तें में चलनेवाला। बटोही। यात्री। उदाहरण–गैल चलत गैला हूँ मारे घायल पड़े गरियाले में।–ग्राम्यगीत। वि० [हिं० गया] [स्त्री० गैली] गया-बीता। उदाहरण–गैली दीखे मीराँ बावली, सुपना आल जँजाल।–मीराँ।
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गैलारा  : पुं० =गैला।
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गैस  : स्त्री० [अं०] १. किसी पदार्थ (या द्रव्य) का प्राकृतिक अथवा रासायनिक क्रिया से बना हुआ वह वायुवत् रूप जो अत्यंत प्रसरणशील होता है। २. वह दह्य जिसे जलाकर रोशनी की जाती है तथा चीजें गरम की जाती है। ३. बड़ी लालटेन की तरह का वह उपकरण जिसमें गैस जलाकर रोशनी उत्पन्न की जाती है। ४.पाखाने आदि में से निकलनेवाली तीव्र गंधयुक्त वायु।
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गैस-मापी  : पुं० [अं०+हिं०] गैस के आधान के मुँह पर लगा हुआ वह उपकरण जो गैस बाहर निकलने पर उसका मान या माप बतलाया है। (गैसोमीटर)
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गैसा  : वि० [?] [स्त्री० गैसी]=गहरा। उदाहरण–सुनहु सूर तुम्हरे छिन छिन मति बड़ी पेट की गैसी हौ।–सूर।
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गो  : स्त्री० [सं० Öगम् (जाना)+डो] १. गाय। गौ। २. वृष राशि। ३. वृषभ नामक ओषधि। ४. इंद्रिय। ५. वाणी। ६. सरस्वती। ७. जिह्रा। जीभ। ८. प्रकाश या उसकी किरण। उदाहरण–ध्वांत ठौर तजि गो दिसि जाहीं।–जायसी। ९. देखने की शक्ति। दृष्टि। १॰. बिजली। ११. पृथ्वी। १२.दिशा। १३.जननी। माता। १४. दूध देनेवाले पशु। जैसे–बकरी, भैस आदि। पुं० [सं०] १. बैल। २. शिव का नंदी नामक गण। ३. घोड़ा। ४. चंद्रमा। ५. शिव। ६. आकाश। ७. स्वर्ग। ८. तीर। बाण। ९. वह जो किसी की प्रशंसा करता या यश गाया हो। १॰. गवैया। गायक। ११. जल। पानी। १२. वज्र। १३. शरीर के रोएँ। रोम। १४. शब्द। १५. नौ की संख्या। अव्य० [?] संख्यावाचक विशेषणों के साथ प्रयुक्त होनेवाला एक अव्यय जो गिनती पर जोर देने के लिए ‘ठो’ की तरह आता है। (पूरब)। जैसे–चार गो कपड़ा। स्त्री० [फा०] गाय। गौ। पद–गोकुशी (देखें)। अव्य० [फा०] यद्यपि। पद–गो कि=यद्यपि। वि० [फा०] १. कहने या बोलनेवाला। जैसे–दरोग-गो-झूठ। बोलनेवाला। २. बतलाने, समझाने या व्याख्या करनेवाला। जैसे–कानूनगो-नियम या विधान बतलाने वाला। अ० भूतकालिक गया क्रिया का स्थानिक रूप। प्रत्यय-हिं० ‘गा’ प्रत्यय का स्थानिक रूप।(व्रज०)
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गो-कंटक  : पुं० [ष० त० ] गोक्षुर। गोखरू।
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गो-कन्या  : स्त्री० [ष० त०] कामधेनु।
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गो-कर  : पुं० [ब० स०] सूर्य।
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गो-कर्ण  : वि० [ब० स०] जिसके काम गऊ के कानों की तरह लंबे हों। पुं.[ष० त०] १. गौ के कान। २. [ब० स०] खच्चर, जिसके कान गौ के कानों की तरह लंबे होते हैं। ३. एक तरह का हिरन। ४. एक तरह का तीर या बाण। ५. एक प्रकार का साप जिसके कान की तरह के अंग होते है। ६. दक्षिण भारत का एक प्रसिद्ध शैव तीर्थ। ७. उक्त तीर्थ में स्थापित शिव की मूर्ति। ८. शिव के एक गण का नाम। ९. नाप के लिए बित्ता। बालिश्त। १॰. नृत्य में हाथ की एक प्रकार की मुद्रा।
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गो-कील  : पुं० [ष० त०] १. हल। २. मूसल।
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गो-कुंजर  : पुं० [स० त०] १. खूब मोटा-ताजा और बलिष्ठ बैल या साँड। २. शिव का एक गण।
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गो-कुल  : पुं० [ष० त० ] १. गौओं का झुंड। गो-समूह। २. गोशाला। ३. मथुरा के पास की वह बस्ती जहाँ नंद और यसोदा ने श्रीकृष्ण और बलराम को पाला था।
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गो-कुशी  : स्त्री० [फा०] गौ का मांस खाने के लिए किया जाने वाला गौ का वध। गो-हत्या। गोवध।
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गो-कृत  : पुं० [तृ० त०] गोबर।
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गो-क्षीर  : पुं० [ष० त०] गौ का दूध।
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गो-खुर  : पुं० [ष० त०] १. गौ का पैर। २. जमीन पर पड़ा हुआ गौ के खुरों का निशान।
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गो-गृह  : पुं० [ष० त०] गोशाला।
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गो-ग्रथि  : स्त्री० [मध्य० स०] १. गोबर। २. [ब० स०] गोशाला। ३. [ष० त० ] गोजिह्यिका नामक औषधि।
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गो-ग्रास  : पुं० [ष० त०] भोजन का वह थोड़ा सा अंश जो खाने से पहले गौ को देने के उद्देश्य से निकाल कर अलग रख दिया जाता है।
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गो-घात  : पुं० [सं० गो√हन् (हिंसा)+अण्, उप० स०] १. दे० गोघातक। २. [ष० त० ] गो-हत्या।
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गो-घातक  : पुं० [ष० त० ] १. गौ की हत्या करनेवाल। २. कसाई।
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गो-घाती(तिन्)  : पुं० [सं० गोहन्+णिनि,उप० स०]-‘गोघातक’।
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गो-घृत  : पुं० [ष० त०] गौ के दूध से तैयार किया हुआ घी।
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गो-घोख  : पुं० [सं० गो-घोष] गोशाला। उदाहरण–घर हट ताल भमर गोघोष-पृथीराज।
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गो-चंदन  : पुं० [मध्य० स,] एक प्रकार का चंदन।
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गो-चर  : वि० [सं० गो√चर् (गति)+अच्, उप० स०] जिसका ज्ञान इंद्रियों द्वारा हो सके। पुं० १. वे सब चीजें या बातें जिनका ज्ञान इँद्रियों से होता अथवा हो सकता हो। उदाहरण-गो गोचर जहँ लगि मन जाई।–तुलसी। २. गौओं के चरने का स्थान। चरागाह। चरी। (पास्चर लैंड) ३. प्रदेश। प्रांत। ४. फलित ज्योतिष में वह गणना जो मनुष्य की जन्मपत्री के अभाव में उसके प्रसिद्ध नाम के आधार पर की जाती और वास्तविक से कुछ भिन्न तथा स्थूल होती है।
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गो-चार (रिन्)  : पुं० [सं० गोचर्+णिच्+णिनि,उप०स० ] =गोचारक।
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गो-चारक  : पुं० [ष० त०] वह जो गौएँ चराने का काम करता हो।
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गो-चारण  : पुं० [ष० त०] गौएँ-भैसें आदि चराने का काम।
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गो-जर  : पुं० [स० त०] बुड्डा बैलया साँड। पुं० दे० ‘कनखजूरा’।
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गो-जल  : पुं० [ष० त०] गो मूत्र।
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गो-जिह्वा  : स्त्री० [सं० ष० त०] बनगोभी नामक घास जो ओषध के काम आती है।
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गो-जीत  : वि० [सं० गोजित्] जिसने इंद्रियों को जीत लिया हो। जितेंद्रिय।
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गो-तीर्थ  : पुं० [मध्य० स०] गोशाला।
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गो-दान  : पुं० [ष० त०] १. शास्त्रीय विधि से संकल्प करके ब्राह्मण को गौ दान करने की क्रिया जिसका विधान कुछ विशिष्ट शुभ अवसरों पर अथवा प्रायश्चित आदि के लिए किया गया है। २. एक धार्मिक संस्कार जो विवाह से पहले ब्राह्मण कुमार को १६ वर्ष, क्षत्रिय को २२ वर्ष और वैश्य को २४ वर्ष की अवस्था में करना चाहिए। केशांत।
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गो-दारण  : पुं० [सं०गो√दृ (विदारण)+णिच्+ल्यु-अन, उप०स०] १.जमीन खोदने की कुंदाल। २. जमीन जोतने का हल।
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गो-दुह  : पुं० [सं० गो√गुह् (दूहना)+क्विप्, उप० स०] १. गौ दुहनेवाला। २. ग्वाला।
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गो-दोहन  : पुं० [ष० त०] गौ का दूध दुहने की क्रिया या भाव।
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गो-द्रव  : पुं० [ष० त०] गौ या बैल या मूत्र। गोमूत्र।
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गो-धन  : पुं० [ष० त०] १. गौओं का झुंड या समूह। २. [कर्म० स०] गौ या गौओं के रूप में होनेवाली संपत्ति। ३. [गो धन-शब्द० ब० स०] चौड़े फलवाला एक प्रकार का तीर। ४. जलाशयों के पास रहनेवाला एक प्रकार का पक्षी जिसका सिर भूरा,पैर हरे और चोच लाल होती है। पुं० गोवर्धन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गो-धर  : पुं० [सं० Öधृ (धारण)+अच्, गो-धर, ष० त०] पर्वत। पहाड़।
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गो-धर्म्म  : पुं० [ष० त०] पशुओँ की भाँति पराये पुरुषों या स्त्रियों से संभोग करना।
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गो-धूलि  : स्त्री० [मध्य० स०] १. गौओं के चलने-फिरने या दौड़ने से उड़नेवाली धूल। २. सायंकाल का वह समय जब जंगल से चरकर लौटती हुई गौओँ के खुरों से धूल उड़ती है और जो शुभ कार्यों के लिए उपयुक्त समझा जाता है।
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गो-धेनु  : स्त्री० [कर्म० स०] वह गौ जो दूध देती है और जिसके साथ उसका बच्चा भी हो।
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गो-नस  : पुं० [सं० गो-नासिका, ब० स०, नस, आदेश] १. एक प्रकार का साँप। २. वैक्रांत मणि।
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गो-नाथ  : पुं० [ष० त०] १. गोस्वामी। २. बैल।
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गो-निष्यंद  : पुं० [सं० निस्यन्द् (बहना)+अच्गो-निष्यंद, ष० त०] गोमूत्र।
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गो-पति  : पुं० [ष० त०] १. शिव। २. विष्णु। ३. श्रीकृष्ण। ४. सूर्य। ५. राजा। ६.नौ उपनंदों में से एक। ७. बैल या साँड़। ८. ग्वाला। अहीर। ९. ऋषभ नामक ओषधि। १॰. वह जो बहुत बोलता हो। मुखर। वाचाल।
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गो-पथ  : पुं० [ष० त०] अथर्ववेद का एक ब्राह्माण।
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गो-पद  : पुं० [ष० त०] १. गौओं के रहने का स्थान। २. गौ का खुर। ३. गौ के खुरों का या पैरों का चिन्ह्र या निशान। ४. गौ के खुर से जमीन में पड़नेवाला गड्ढा। उदाहरण-गो-पद जल बूड़हिं० घट जोनी।–तुलसी।
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गो-पाल  : पुं० [सं० गो√पाल् (पालन करना)+णिच्+अण्, उप० स०] १. गौ का पालक, रक्षक और स्वामी। २. अहीर। ग्वाला। ३. श्रीकृष्ण। ४. मन जो इंद्रियों का पालन और रक्षा करता है। ५. राजा। ६. एक प्रकार का छंद जिसका प्रत्येक चरण १५ मात्राओं का होता है। इसमें ८ और ७ पर यति होती है।
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गो-पालक  : पुं० [ष० त०] १. गौओं का पालन करनेवाला। गो-पाल। ग्वाला। २. शिव। ३. राजा।
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गो-पालि  : पुं० [सं० गोपाल+णइच्+इन, उप० स०] १. एक प्रवर। २. महादेव। शिव।
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गो-पीत  : पुं० [सं० गो=गोरोचना-पीत, उपमि० स०] एक प्रकार का खंजन पक्षी।
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गो-पुच्छ  : पुं० [ष० त०] १. गौ की पूँछ। गाय की दुम। २. एक प्रकार का बंदर। ३. एक प्रकार का गावदुम हार। ४. एक प्रकार का पुराना बाजा।
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गो-पुटा  : स्त्री० [ब० स० टाप्] बड़ी इलायची।
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गो-पुत्र  : पुं० [ष० त०] १. सूर्य के पुत्र। कर्ण। २. गाय का बछड़ा।
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गो-प्रचार  : पुं० [ष० त०] गौओं के घूमने-फिरने और चरने की जगह। चरागाह। चरी।
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गो-प्रवेश  : पुं० [ब० स०] गौओं के चरकर लौटने का समय। संध्या। गोधूलि।
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गो-फण  : स्त्री० [सं०?] जख्म, फोड़े आदि पर बाँधने की एक प्रकार की पट्टी या बंधन। (सुश्रुत)।
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गो-बंधन  : पुं० [ष० त०] बंधन (रस्सी या साँकल) जिससे गाय बाँधी जाय। उदाहरण–गोबंधन कंधन पै धारे फेंटा झुकि रह्यो माथ।–हरिश्चन्द्र।
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गो-भुज  : पुं० [सं० गो√भुज् (पालनकरना)+क, उप० स०] राजा।
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गो-भृत  : पुं० [सं० गोभृ (धारण करना)+क्विप्, उप० स०] पर्वत। पहाड़।
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गो-मक्षिका  : स्त्री० [मध्य० स०] कुकुरमाछी। कुकरौंछी।
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गो-मत्स्य  : पुं० [उपमि० स०] एक प्रकार की मछली। (सुश्रुत)।
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गो-मल  : पुं० [ष० त०] गोबर।
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गो-मांस  : पुं० [ष० त०] गाय का मांस जिसे खाना हिंदू शास्त्रों में वर्जित है।
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गो-मुखी  : स्त्री० [सं० गोमुख+ङीष्] १. कपड़े की वह कोणाकार थैली जिसमें हाथ डालकर जप करते समय माला फेरते हैं। जप-गुथली। २. गंगा का उदगम स्थान जो गौ के मुख के आकार का है। ३. गौ के मुँह के आकार की घोड़ों की भौंरी। ४. चमड़े से मढ़ा हुआ एक प्रकार का पुराना बाजा। ५. राढ़ देश की एक नदी जिसे आज-कल गोमुखी कहते हैं।
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गो-मूत्र  : पुं० [ष० त०] गौ का मूत्र जो हिंदुओं में बहुत पवित्र तथा अनेक रोगों की औषधि माना गया है।
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गो-मूत्रिका  : स्त्री० [सं० गोमूत्र+ठन्-इक] १. एक विशेष प्रकार का चित्रकाव्य जो लहरियेदार रेखा के रूप में होता है। विशेष–इस चित्र काव्य का नाम इसलिए गो-मूत्रिका पड़ा है कि इसकी पंक्तियाँ प्रायः वैसी ही होती है जैसी गौ या बैल के चलते-चलते जमीन पर मूतने से बनती है। २. अंकन,चित्रण आदि में लहरियेदार बैल। बैलमुतनी। बरधमुतान। (मिएन्डर) ३. सुगंधित बीजोंवाली एक प्रकार की घास।
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गो-मृग  : पुं० [मध्य० स०] नील गाय।
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गो-मेद  : पुं० [सं० गो√मिद् (चिकना करना)+णिच्+अच्, उप० स०]=गोमेदक।
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गो-मेध  : पुं० [सं०√Öमेथ् (हिंसा)+घञ्,गौ-मेध,ब० स०] अश्वमेध की तरह का एक यज्ञ जिसमें गौ के मांस से हवन किया जाता था और जो कलियुग में वर्जित है।
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गो-यान  : पुं० [मध्य० स०] वह गाड़ी जिसे गाय या बैल खींचते हों।
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गो-रंकु  : पुं० [तृ० त०] १. वह जो मंत्रों का पाठ करता हो। २. दिगम्बर साधु। ३. कैदी। ४. एक प्रकार का जल-पक्षी।
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गो-रक्ष  : पुं० [सं०√Öरक्ष् (रक्षा करना)+घञ्,गो-रक्ष,ष० त०] १.गौ की रक्षा करने का काम। २. [गोरक्ष्+अण्,उप० स०] ग्वाला। ३. नेपाल देश का निवासी। गोरखा। ४. नारंगी।
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गो-रक्षक  : वि० [ष० त० ] गौओँ की रक्षा करनेवाला। पुं० १. गोपाल। २. ग्वाला।
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गो-रक्षी(क्षिन्)  : वि० [सं० गो√रक्ष्+णिनि, उप० स०] [स्त्री० गोरक्षिणी] गोरक्षक।
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गो-रज (स्)  : स्त्री० [मध्य० स०] गौओं के चलते समय उनके खुरों से उड़नेवाली धूल जो पवित्र मानी गयी है।
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गो-रव  : पुं० [ब० स०] केसर।
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गो-रस  : पुं० [ष० त०] १. गौ का दूध। २. दही। ३. छाछ। मठा। ४. इन्द्रियों के सुख-भोग से मिलनेवाला आनन्द।
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गो-राष्ट्र  : पुं० [मध्य० स०] प्राचीन भारत का एक प्रदेश जिसमें अधिकतर गोप जाति के लोग रहते थे।
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गो-रूप  : पुं० [ब० स०] महादेव।
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गो-रोच  : पुं० [सं० गो√रुच् (दीप्ति)+अच्, उप० स० ] हरताल।
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गो-रोचन  : पुं० [मध्य० स०] एक पीला सुंगधित द्रव्य जो गौ के पित्ताशय से निकलता और पवित्र माना जाता है।
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गो-रोचना  : स्त्री० [मध्य० स०] गोरोचन।
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गो-लांगून  : पुं० [सं० ब० स०] एक प्रकार का बंदर जिसकी पूँछ गौ की पूँछ की तरह होती है।
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गो-लाँमी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] १. सफेद दूब। २. वेश्या।
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गो-लोक  : पुं० [मध्य० स०] १. विष्णु या कृष्ण का निवास स्थान जो पुराणानुसार ब्रह्मांड़ में सब लोकों से ऊपर और श्रेष्ठ माना गया है। २. स्वर्ग। ३. ब्रजमंडल।
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गो-वध  : पुं० [सं० ष० त०] गौ को मार डालना जो हिन्दुओं में बहुत बड़ा पाप समझा जाता है।
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गो-वर्द्धन  : पुं० [ष० त०] १. गौओं का पालन, रक्षण और वृद्धि करने का काम। २. [गो√Öवृध् (बढ़ना)+णइच्+ल्यु-अन] वृदावन का एक प्रसिद्ध पर्वत। कहते है अति वर्षा से व्रज की रक्षा के लिए श्रीकृष्ण ने इसे उँगली पर उठा लिया था। ३. उक्त पर्वत के पास की एक बस्ती।
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गो-वीथी  : स्त्री० [ष० त०] चन्द्रमा के मार्ग का वह अंश जिसमें भाद्रपद, रेवती और आश्विनी तथा किसी किसी के मत से हस्त, चित्रा और स्वाती नक्षत्रों का समूह है।
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गो-वैद्य  : पुं० [ष० त० ] १. पशुओं की चिकित्सा करनेवाला वैद्य। २. [उपमि० स०] अनाड़ी या ना-समझ चिकित्सक। (परिहास)
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गो-व्रज  : पुं० [ष० त०] १. गौओं का झुंड या समूह। गोठ। २. गोचर भूमि। चरागाह।
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गो-व्रत  : पुं० [सं० त०] गोहत्या लगने पर उसके प्राश्चित्त के लिए किया जानेवाला व्रत जिसमें बराबर एक मास तक किसी गौ के पीछे-पीछे घूमना और केवल गौ का दूध पीकर रहने का विधान है।
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गो-शाला  : स्त्री० [ष० त०] वह स्थान जहाँ गौएँ पाली तथा रखी जाती हों। बहुत सी गौओं के रहने का स्थान।
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गो-शीर्ष  : पुं० [ब० स०] १. एक पर्वत का प्राचीन नाम। २. उक्त पर्वत पर होनेवाला चंदन। ३. एक प्रकार का प्राचीन अस्त्र।
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गो-श्रृंग  : पुं० [ब० स०] १. एक प्राचीन ऋषि। २. एक प्राचीन पर्वत। ३. कीकर। बबूल।
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गो-सर्ग  : पुं० [ष० त० वा० ब० स०] वह समय जब गौएँ चरने के लिए खोलकर छोड़ी जाती है, अर्थात् प्रातःकाल।
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गो-सुत  : पुं० [ष० त०] गौ का बच्चा। बछड़ा।
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गो-सूक्त  : पुं० [सं० ष० त०] अथर्ववेद का वह अंश जिसमें ब्रह्माण्ड की रचना का गौ के रूप में वर्णन किया गया है। गोदान के समय इसका पाठ किया जाता है।
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गो-स्तनी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] दाख। मुनक्का।
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गो-स्वामी (मिन्)  : पुं० [ष० त०] १. वह जिसने अपनी इंद्रियों को वश में कर लिया हो। जितेन्द्रिय। २. वैष्णव संप्रदाय में आचार्यों के वंशधर या उनकी गद्दी के अधिकारी।
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गो-हत्या  : स्त्री० [ष० त०] गौ को मार डालना, जो बहुत बड़ा पापी माना गया है।
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गोअर  : वि० दे० ‘गँवार’। उदाहरण–सखि हे बुझल कान्ह गोअर।–विद्यापति। पुं०-ग्वाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोइ  : पुं० [?] गेंद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गोइँजी  : स्त्री० [देश०] एक प्रकार की मछली जिसका मुँह और सिर देखने में बहुत कुछ एक जैसा लगता है।
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गोंइठा  : पुं० [सं० गो-विष्ठा] १. गाय के गोबर का सूखा हुआ उपला या चिप्पढ़। गोहरा। २. उपला। गोहरा।
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गोइँठा  : पुं० [सं० गो+विष्ठा] उपला। गोहरा। कंडा।
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गोइँठौरा  : पुं० [हिं० गोइँठा+औरा (प्रत्यय)] व्यक्ति जो उपले या गोहरे बनाता तथा बेचता हो।
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गोंइड़  : पुं० [हिं० गाँव+मेंड़] १. गाँव की सीमा। २. उक्त सीमा के आस-पास का क्षेत्र या भूमि।
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गोइँड़ा ( ा )  : पुं० [सं० गोष्ठ=ग्राम] १. गाँव की सीमा २. गाँव की सीमा के पास की जमीन। ३. किसी स्थान के आस-पास का प्रदेश।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोइंदा  : पुं० [फा० गोयन्दः] गुप्त चर से समाचार एकत्र करके किसी के पास पहुँचानेवाला व्यक्ति। गुप्तचर। जासूस। भेदिया।
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गोँइयाँ  : उभय०=गोइयाँ
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गोइयाँ  : उभय० [हिं० गोहनियाँ] बराबर साथ में रहनेवाला संगी या साथी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोइयार  : पुं० [देश०] खाकी रंग का एक प्रकार का पक्षी।
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गोंईं  : स्त्री० [हिं० गोहने] बैलों की जोड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोई  : स्त्री० [फा०] १. कहने की क्रिया या भाव। २. वह जो कुछ कहा जाए। कथन। उक्ति। स्त्री० =गोइयाँ। स्त्री० [?] १. रूई की पूनी। २. बैलों की जोड़ी।
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गोऊ  : वि० [हिं० गोना+ऊ (प्रत्यय)] १. कोई चीज या बात किसी से छिपानेवाला। २. छीनने या हरण करनेवाला।
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गोकर्णी  : स्त्री० [सं० गोकर्ण+ङीष्] मूर्वा या मुरहरी नाम की लता। वि० जिसका आकार या रूप गौ के कान की तरह समकोणिक त्रिभुज की तरह का हो।
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गोका  : स्त्री० [सं० गो+कन्-टाप्] १. छोटी गाय। २. नील गाय। वि० [हिं० गौ+का] गाय का। जैसे–गौ का दूध। (पश्चिम)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोकिराटी  : स्त्री० [सं० गोकिरा=वाणी√Öअट् (गति)+अच्-ङीष्] सारिका। पक्षी।
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गोकुंद  : स्त्री० [देश०] दक्षिण भारत की नदियों में पाई जानेवाली एक प्रकार की मछली।
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गोकुल-नाथ  : पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण।
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गोकुल-पति  : पुं० [ष० त०] श्रीकृष्ण।
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गोकुलस्थ  : पुं० [सं० गोकुलस्था (ठहरना)+क] १. वल्लभी गोस्वामियों का एक भेद। २. तैलंग ब्रह्माणों का एक भेद।
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गोकोक्ष  : पुं० [?] जोंक नामक कीड़ा।
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गोकोस  : पुं० [सं० गो-क्रोश] १. उतनी दूरी जहाँ तक गाय के रँभाने का शब्द पहुँचता हो। २. छोटा या हलका कोस।
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गोक्ष  : पुं० [सं० गो-अक्ष,ष० त० ] =गोकोक्ष। (जोंक)।
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गोक्षुर  : पुं० [ष० त०] १. गौ का खुर। २. गोखरू नामक क्षुप और उसका फल।
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गोख  : पुं० [सं० गवाक्ष] झरोखा। (राज०) उदाहरण–ऊखी गोख अवेखियौ पेलां रौदल सेर।–कविराजा सूर्यमल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोखग  : पुं० [सं० गो और खग] पशु और पक्षी।
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गोखरू  : पुं० [सं० गोक्षुर] १. एक प्रकार का क्षुप जिसके चने के आकार के बराबर कड़े और कँटीले फल लगते हैं। २. उक्त क्षुप के फल जो दवा के काम आते है। ३. उक्त फलों के आकार के धातु के बने हुए वे कँटीले दाने जो मस्त हाथियों को वश में करने के लिए उनके रास्ते में बिछाये जाते है। ये दाने हाथी के पैरों में चुभकर उन्हें चलने या भागने नही देते। ४. गोटे और बादले से बनाया हुआ उक्त आकार का वह साज जो कपड़ों में शोभा के लिए टाँका जाता है। ५. शरीर के किसी अंग में काँटा गड़ने या कोई रोग होने के कारण बना हुआ कड़ा गोलाकार उभार। ६. पौधों की बाल। ७. हाथ में पहनने के कड़े के आकार का एक गहना। ८. कान में पहनने का एक प्रकार का गहना।
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गोखा  : पुं० [सं० गवाक्ष] झरोखा। पुं० [सं०गो से] गौ या बैल का कच्चा चमड़ा।
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गोखुरा  : पुं० [सं० गोक्षुर] साँप।
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गोगा  : पुं० [देश०] [स्त्री० अल्पा० गोगी] छोटा काँटा। मेख।
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गोगापीर  : पुं० एक पीर जिसकी पूजा प्रायः छोटी जातियों के हिंदू और मुसलमान करते हैं। पश्चिम)।
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गोघ्न  : वि० [सं० गोहन्+क] १. गौ को मारने या उसका वध करनेवाला। पुं० अतिथि या मेहमान जिसका सत्कार करने के लिए किसी समय गौ का वध करने की प्रथा थी।
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गोंच  : स्त्री० [सं० गोचदना] जोंक।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोचंदना  : स्त्री० [सं० गोचन्दन+अच्+टाप्] एक प्रकार की जहरीली जोंक।
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गोचना  : पुं० [हिं० गेहूँ+चना] ऐसा गेहूँ जिसमें आधे के लगभग चना मिलाया गया हो। स० [?] गति में बाधक होना। रास्ता। रोकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोचनी  : स्त्री० =गोचना (गेहूँ और चना)।
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गोचर-भूमि  : स्त्री० [कर्म० स०] गौओं के चरने के लिए छोड़ी हुई भूमि। चरागाह। चरी (पास्चर लैंड)।
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गोचरी  : स्त्री० [सं० गोचर से] भिक्षावृत्ति। स्त्री० =गोचर-भूमि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोचर्म (र्मन्)  : पुं० [ष० त०] १. गौ का चमड़ा। २. जमीन की एक पुरानी नाप जो २१॰॰ हाथ लंबी और इतनी ही चौड़ी होती थी। चरम। चरसा।
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गोची  : स्त्री० [सं० गोअच् (गति)+क्विप्+ङीष्,नलोप,अलोप] एक प्रकार की मछली। २. हिमालय की एक पत्नी का नाम।
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गोंछ  : स्त्री० [हिं० गलमोछ] १. गलमुच्छा। २. बहुत बड़ी मूँछ।
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गोज  : वि० [सं० गो√जन् (जन्म लेना)+ड, उप० स०] गौ से उत्पन्न,निकला या बना हुआ। पुं० १. दूध से बना हुआ एक प्रकार का खाद्य पदार्थ। २. एक प्रकार के प्राचीन क्षत्रिय जो राज्यभिषेक के अधिकारी नहीं होते थे। पुं० [फा०] १. अपानवायु। पाद। २. चिल्गोआ।
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गोजई  : स्त्री० [हिं० गेहूँ+जौ] ऐसा गेहूँ जिसमें आधे के लगभग जौ मिला हो।
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गोंजना  : स० [?] १. भद्दी तरह से मिला जुलाकर खराब या गंदा करना। २. घँघोलना। ३. खोंसना।
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गोजा  : पुं० [सं० गजावन] छोटे पौधों का नया कल्ला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =बड़ी गोजी(छड़ी या डंडा)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोजागरिक  : पुं० [सं० गो-स्वार्थ जागर-सावधानी,स० त० गोजागर+ठन्-इक] १. कँटियारी नाम का क्षुप। २. सुख और सौभाग्य।
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गोंजिया  : स्त्री० =गोभी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोजिया  : स्त्री० [सं० गोजिह्वा] बनगोभी नाम की घास।
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गोजी  : स्त्री० [सं० गजावन] १. पशुओँ विशेषतः गौओं को हाँकने की लकड़ी। २. बड़ी और मोटी लाठी। ३. उक्त लाठियों से खेला जानेवाला एक खेल जिसमें लाठी चलाने और लाठी रोकने का अभ्यास किया जाता है।
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गोज्जल  : पुं० [सं०] छोटे जलाशयों में रहनेवाली एक प्रकार की मछली।
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गोझनवट  : स्त्री० [देश०] स्त्रियों की साड़ी के अंचल या पल्ले का उतना अंश जो पीठ और सिर पर रहता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोझा  : पुं० [सं० गुह्यक] [स्त्री० अल्पा० गोझिया, गुझिया] १. गुझिया नामक पकवान। २. जेब। खलीता। ३. जोंक। ४. दे० ‘गुज्झा’।
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गोट  : स्त्री० [सं० गोष्ठ] चुनरी, धोती, लिहाफ आदि के किनारों पर सुन्दरता के लिए लगाई जानेवाली कपड़े की पट्टी। मगजी। स्त्री० [सं० गोष्ठी] गोष्ठी। स्त्री० [सं० गुटक] गोटी( दे०)। स्त्री० [सं० गोष्ठ] गोठ। गोशाला। पुं० छोटा गाँव। खेड़ा।
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गोट-बस्ती  : स्त्री० [हिं० गोट+बस्ती] १. छोटा गाँव। २. छोटी बस्ती।
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गोंटा  : पुं० [?] एक प्रकार का छोटा पेड़। पुं० दे० गोटा।
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गोटा  : पुं० [हिं० गोट] १. रूपहले या सुनहले तारों की बनी हुई वह पट्टी जो गोट के रूप में सिले हुए कपड़ों के किनारों पर टाँकी जाती है। पद-गोटा-पट्ठा (देखें)। २. भुना हुआ धनिया अथवा उसका बीज। ३. भोजन के बाद खाने के लिए एक में मिलाये हुए इलायची, खरबूजे, सुपारी आदि के कतरे हुए छोटे-छोटे टुकड़े। ४. गरी या नारियल का गोला। ५. पेट के अन्दर सूखा हुआ मल। कंडी। पुं० =गोला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) उदाहरण–(क) चंदा गोटा टीका करि लै सूरा करि लै बाटी।–गोरखनाथ। (ख) औ घूटहिं तँह ब्रज के गोटा।–जायसी। वि० १. पूरा। समूचा। २. कुल। सब। (पूरब)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोटा-पट्ठा  : पुं० [हिं० गोटा+पट्ठा] गोटा या पट्ठा नामक बादले की पट्टियाँ जो कपड़ों पर प्रायः साथ-साथ टाँकी जाती है।
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गोटिया-चाल  : स्त्री० [हि० गोटी+चाल] १. कंकड़,पत्थर इत्यादि का छोटा टुकड़ा जिससे लड़के कई तरह के खेल खेलते है। २. लकड़ी हाथीदाँत आदि के बने हुए वे विशिष्ट आकार-प्रकार के टुकड़े जिनसे चौपड़, शतरंज आदि खेलते हैं। नरद। मोहरा। ३. कार्य सिद्ध होने का उपयुक्त अवसर। उदाहरण–सतरू कोटि जो पाइअ गोटी।–जायसी। ४. कार्य सिद्ध करने के लिए चली जानेवाली चाल या की जानेवाली युक्ति। मुहावरा–गोटी जमना या बैठनाचली हुई चाल या की हुई युक्ति का ठीक बैठना और कार्य सिद्ध होने का निश्चय या संभावना होना। गोटी लाल होनायुक्ति ठीक बैठने के कारण कार्य पूरी तरह से सिद्ध होना या पूरा लाभ होना। ५. एक प्रकार का खेल जो ९, १५, १८ या इससे अधिक गोटियों से भूमि पर एक दूसरी को काटती हुई कई आड़ी और सीधी रेखाएँ बनाकर खेला जाता है। पद-गोटियाचाल (देखें)।
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गोंठ  : स्त्री० [सं० गोष्ठ] धोती की वह लपेट जो कमर पर रहती है। मुर्री।
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गोठ  : स्त्री० [सं० गोष्ठ, पा० प्रा० गोट्ठ, बं० ने० उ० गोठ, सि० गोठु, गु० गोठो, मरा० गोठा] १.गौएँ बाँधकर रखने का घेरा या स्थान। गोशाला। २. गोष्ठी नामक श्राद्ध। ३. नगर या बस्ती के बाहर किसी रमणीक स्थान में की जानेवाली वह सैर जिसमें लोग वहीं भोजन आदि बनाकर घूमते-पिरते हैं। (पिकनिक)
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गोंठना  : स० [सं० कुंठन] (शस्त्र आदि की) धार या नोंक कुंठित या भोथरी करना। स० [सं० गोष्ठ] १. चारों और रेखा या लकीर बनाकर घेरना। २. पकवान के अंदर मसाले, मेवे आदि भरकर उनका मुँह इस प्रकार मोड़ कर बंद करना कि वे मसाले या मेवे बाहर न गिरने पावें।
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गोंठनी  : स्त्री० [हिं० गोंठना] लोहे, पीतल का एक छोटा औजार जिससे पकवानों का मुँह गोंठतें यामोड़कर बंद करते हैं।
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गोठा  : पुं० [सं० गोष्ठी] परामर्श। सलाह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोठि  : स्त्री० १.=गोठ। २. =गोष्ठी।
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गोठिल  : वि० [हिं० गुठला] १. जिसमें गुठले पड़े हो। गुट्ठल। २. जिसकी धार या नोंक मुड़कर बेकाम हो गयी हो। कुंद। भोथरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोंड़  : पुं० [सं० गोण्ड] १. एक असम्य जंगली जाति जो प्रायः गोंड-वाना प्रदेश (मध्य० भारत) में रहती थी और अब चारों ओर फैल गयी है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) २. उक्त जाति का कोई व्यक्ति। ३. वर्षाऋतु में गाया जानेवाला एक राग। पुं० [सं० गोरणु] १. नाभि के ऊपर का निकला हुआ मांस-पिंड। २. वह व्यक्ति जिसका उक्त मांस-पिंड असाधारण रूप से बड़ा या मोटा हो। पुं० [सं० गोष्ट] १. गायों के रहने का स्थान। २. लंगर के ऊपर का गोलाकार भाग।
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गोड़  : पुं० [सं० गम, गो] १. पाँव। पैर। (पूरब)। क्रि० प्र० –दबाना। मुहावरा-(किसी के) गोड़ पड़ना या लगनाचरण छूना। प्रणाम करना। गोड़ भरना-पैरों में आलता या महावर लगाना। २. टाँग। ३.जहाज के लंगर का फाल जिसके सहारे वह जमीन पर टिकता या ठहरता है। पुं० [?] भड़भूँजों की एक जाति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोड़-सँकर  : पुं० [हिं० गोड़+साँकर] पैरों में पहनने का एक प्रकार का गहना।
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गोड़-सिहा  : वि० [हिं० गोड़+सिहाना-ईर्ष्या करना] सिहाने अर्थात् डाह करनेवाला। ईर्ष्यालु।
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गोड़-हरा  : पुं० [हिं० गोड़+हरा (प्रत्यय)] पैर में पहनने का कोई गहना। जैसे–कड़ा, पाजेब आदि।
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गोड़इत  : पुं० [हिं० गोइँड़+ऐत(प्रत्यय)] १.मध्ययुग में चिट्ठियाँ आदि ले जानेवाला हरकारा। २. आज-कल गाँव देहातों में पहरा देनेवाला राजकीय चौकीदार।
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गोड़ई  : स्त्री० [हिं० गोड़+पाई] करघे की वे लकड़ियाँ जो पाई करने में पाई के दोनों ओर खड़ी की जाती है। (जुलाहे)। स्त्री० गोड़ाई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोड़गाव  : पुं० [हिं० गोड़-पैर+गाव] वह छोटी रस्सी जिसे गिरावँ की तरह बनाकर और पिछाड़ीवाली रस्सी के सिरों पर बाँधकर घोड़े के पिछले पैर में फँसाते हैं।
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गोड़न  : पुं० [देश०] वह प्रक्रिया जिससे ऐसी मिट्टी से भी नमक बनाया जा सकता है जो नोनी नहीं होती।
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गोड़ना  : स० [हिं० कोड़ना] फावड़े से अखाड़े, खेत आदि की मिट्टी इस प्रकार खोदना तथा उसे उलट-पलट करना कि वह पोली, भुरभुरी और मुलायम हो जाए।
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गोंडरा  : पुं० [सं० कुंडल] [स्त्री० गोंडरी] १. चरसे या मोट के ऊपर का काठ का घेरा। मेंडरा। २. गोल आकार की कोई वस्तु। मेंडरा। ३. गोल घेरा। ४. चारों ओर खींची हुई मंडलाकार रेखा या लकीर।
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गोंडरी  : स्त्री० [सं० कुंडली] १. कुंडल की तरह की कोई गोलाकार रचना या वस्तु। २. दे० ‘ईडुरी’। स्त्री० [हिं० गोंड़] गोंडवाने की बोली। गोंड़वानी।
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गोंड़ला  : पुं०==गोंडरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोड़ली  : उभय० [कर्णाटी] वह जो संगीत विशेषतः नृत्य में पारंगत हो।
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गोंडवाना  : पुं० [हिं० गोंड़] मध्यभारत का वह प्रदेश जिसमें मूलतः गींड़ जाति के लोग रहते थे।
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गोड़वाना  : स० [हिं० गोड़ना का प्रे०] दूसरे को खेत आदि में गोड़ने में प्रवृत् करना। गोडने का काम दूसरे से कराना।
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गोंडवानी  : स्त्री० [हिं० गोंडवाना] गोंड़वाना प्रदेश की बोली। वि० गोंडवाने का।
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गोड़वाँस  : पुं० [हिं० गोड़-पैर+वाँस(प्रत्यय)] पैर विशेषतः पशुओं के पैर बाँधने की रस्सी।
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गोंड़ा  : पुं० [सं० गोष्ठ] १. घेरा हुआ स्थान। बाड़ा। २. गाँव या ऐसी कोई छोटी बस्ती। ३. किसी एक किसान के वे सब खेत या उनका घेरा जो एक ही स्थान पर एक दूसरे से सटे हुए हों। ४. घर के बीच का आँगन। ५. विवाह के समय की परछन नामक रीति। मुहावरा–गोंड़ा सीजनादरवाजे पर बारात आने के समय कन्या-पक्ष से कुछ धन निछावर करके बाँटना या लुटाना। पुं० [?] साल के जंगलों में होनेवाली एक प्रकार की लता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोडा  : पुं० [हिं० गोड़-पैर] पैर और जाँघ के बीच का जोड़। घुटना। (पश्चिम)। मुहावरा–गोड़े थकना परिश्रम,वृद्धावस्था आदि के कारण बहुत शिथिल होना।
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गोड़ा  : पुं० [हिं० गोड़-पैर] १. चौकी, तिपाई, पलंग आदि का पाया। २. वह रस्सी जिसमें पानी सींचने की दौरी बाँधी जाती है। ३. वृक्ष का थाँवला या थाला।
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गोड़ाई  : स्त्री० [हिं० गोडना] गोड़ने की क्रिया, भाव या मजदूरी।
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गोड़ाँगी  : स्त्री० [हिं० गोड़+अंगी] १. पायजामा। २. जूता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोड़ाना  : स० [हिं० गोड़ना का प्रे०] खेत आदि की गोड़ाई दूसरे आदि से कराना। अ० खेत आदि का गोड़ा जाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोड़ापाई  : स्त्री० [हं० गोड़ना+पाई (जुलाहों की)] बार-बार कहीं आते जाते रहना।
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गोड़ारी  : स्त्री० [हिं० गोड़-पैर+आरी (प्रत्य)] १. खाट, पलंग आदि का वह भाग जिधर पैर रखे जाते हैं। पैताना। २. जूता। स्त्री० [हिं० गोड़ना ?] तुरंत खोदकर निकाली हुई घास।
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गोड़िया  : स्त्री० [हिं० गोड़=पैर का अल्पा०] १. छोटा गोड़ा। २. छोटा पैर। वि० पुं० [हिं० गोटी ?] तरह-तरह की युक्तियाँ लगाने और जोड़-तोड़ बैठानेवाला। काइयाँ। चालाक। पुं० [?] १. मल्लाह। २. सँपेरा। उदाहरण–कलपै अकबर काय, गुण पूंगीधर गोड़िया।–दुरसाजी।
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गोंड़ी  : स्त्री० [हिं० गोंड़] गोंड़वाना प्रदेश में बोली जानेवाली गोड़ जाति की बोली। गोंड़वानी।
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गोड़ी  : स्त्री० [हिं० गोटी] किसी युक्ति के फलस्वरूप उत्पन्न ऐसी स्थिति जिसमें कुछ लाभ की संभावना हो। प्राप्ति का डौल। मुहावरा–गोड़ी जमना या बैठनाफायदे के लिए जो चाल चली गई हो उसका सफल होना। गोड़ी हाथ से जानाउक्त प्रकार का प्रयत्न विफल होना। स्त्री० =गोड़ (चरण या पैर)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) मुहावरा–(कहीं किसी की) गोड़ी आना या पड़नाकिसी का कहीं आकर उपस्थिति होना या पहुँचना।
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गोढ़  : पुं० =गोठ (गोशाला)।
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गोणी  : स्त्री० [सं०√Öगुण् (आवृत्ति)+घञ् ? ङीष्] १. दोहरे टाट का बोरा। २. अनाज आदि की पुरानी नाप या तौल। ३. ऐसा पतला कपड़ा जिसमें कोई चीज छानी जा सके।
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गोत  : पुं० [सं० गोत्र] १. गोत्र। २. कुल, परिवार, वश। जैसे–नात का न गोत का, बाँटा माँगे पोत का।–कहा, ३. समूह। उदाहरण–मनु कागदि कपोत गीत के उड़ाये।–रत्नाकर। स्त्री० [हिं० गोतना](यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) १. गोते या डुबोये जाने की क्रिया या भाव। २. तंद्रा। ३. चिंता। फिक्र।
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गोतम  : पुं० [सं० ब० स० पृषो० सिद्धि] १. एक गोत्र-प्रवर्तक ऋषि जो अहल्या के पति थे। २. एक मंत्रकार ऋषि। ३. दे,.‘गौतम’।
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गोतमी  : स्त्री० [सं० गोतम+ङीष्] गोतम ऋषि की पत्नी,अहल्या।
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गोता  : पुं० [अ० गोतः] १. गहरे जलाशय में उतर कर अपने शरीर को जल में इस प्रकार डुबाना कि बाहर कोई अंग न रह जाए। डुबकी। क्रि.प्र. =मारना। लगाना। मुहावरा–(किसी को) गोता देना किसी को जल में उक्त प्रकार से डुबाना और निकालना। २. नदी, समुद्र आदि के तल में पड़ी हुई चीजें निकालने के लिए उक्त प्रकार से उसके तल तक जाने की क्रिया या भाव। ३. किसी अथाह या बहुत गहरी चीज या बात में से किसी तत्त्व का पता लगाने का प्रयत्न। जैसे–साहित्य में गोता लगाना। ४. इस प्रकार कहीं से अनुपस्थित या गायब हो जाना कि किसी को कुछ पता न चले। जैसे–यह धोबी तो महीने-महीने भर का गोता लगाया करता है। ५. सहसा होनेवाली कोई बहुत बड़ी भूल। (क्व०) मुहावरा-गोता खाना (क) कोई बहुत बड़ी भूल या हानि कर बैठना। (ख) धोखे में आना। छल में फँसना। पुं० [सं०गोत्र] समान गोत्र या वंश । जैसे–नाते-गोते के लोग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोताखोर  : पुं० [अं०] १. वह जो गहरे पानी में गोता लगाकर नीचे की चीजें निकाल लाने का व्यवसाय करता हो। (डाइवर) २. जल के अंदर गोतालगाकर चलनेवाली डुबकनी नाव। (सब मेरीन)
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गोतामार  : पुं० ==गोताखोर।
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गोतिया  : वि० [सं० गोत्र] १. गोत्र संबंधी। २. अपने गोत्र का। गोती।
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गोती  : वि० [सं० गोत्रीय] [स्त्री० गोतिन, गोतिनी] (व्यक्ति) जो अपने ही गोत्र का हो।
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गोतीत  : वि० [गो-अतीत,द्वि० त०] जो इंद्रियों द्वारा न जाना जा सके। पुं० ईश्वर।
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गोतीर्थक  : पुं० [सं० गोतीर्थ+कन्] सुश्रुत के अनुसार फोड़े आदि चीरने का ढंग या प्रकार।
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गोत्र  : पुं० [सं० गो√त्रै (पालन करना)+क] १. संतति। संतान। २. नाम। संज्ञा। ३. क्षेत्र। ४.वर्ग। समूह। ५. राजा का छत्र। ६. बढ़ती। वृद्धि। ७. धन-संपत्ति। दौलत। ८. पर्वत। पहाड़। ९. बंधु। भाई। १॰. कुल। वंश। ११. भारतीय आर्यों में किसी कुल या वंश का एक प्रकार का अल्ल या संज्ञा जो किसी पूर्वज अथवा कुल गुरू ऋषि के नाम पर होती है। वंश-नाम। जैसे–काश्यप, शडिल्य भारद्वाज आदि गोत्र।
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गोत्र-कार  : पुं० [सं० गोत्र√Öकृ (करना)+अण्, उप० स०] वह ऋषि जो किसी गोत्र के प्रवर्तक माने जाते हों।
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गोत्र-प्रवर्तक  : वि० [ष० त०] (ऋषि) जो किसी गोत्र के मूल पुरूष माने जाते हों। जैसे–भारद्वाज, वसिष्ठ आदि।
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गोत्र-सुता  : स्त्री० [ष० त०] पार्वती।
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गोत्रज  : वि० [सं० गोत्र√Öजन् (उत्पन्न होना)+ड,उप.स०] १. किसी के गोत्र में उत्पन्न। २.वे जो एक ही गोत्र में उत्पन्न हुए हो। गोती।
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गोत्रा  : स्त्री० [सं० गोत्र+टाप्] १. गौओं का झुंड या समूह। २. पृथ्वी।
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गोत्री(त्रिन्)  : वि० [सं० गोत्र+इनि] एक ही अर्थात् समान गोत्र में उत्पन्न होनेवाले व्यक्ति। गोती।
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गोत्रोच्चार  : पुं० [गोत्र-उच्चार, ष० त० ] १. विवाह के समय वर और वधू के वंश, गोत्र और पूर्वजों आदि को दिया जानेवाला परिचय। २. किसी के पूर्वजों तक को दी जानेवाली गालियाँ (परिहास और व्यंग्य)।
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गोंद  : पुं० [सं० कुंदुरु वा हिं० गूदा] १. कुछ विशिष्ट पौधों तथा वृक्षों में से निकलनेवाला चिपचिपा या लसीला तरल निर्यास जो जमकर डलों या दानों के रूप में हो जाता है। २. उक्त निर्यास को पानी में घोलकर तैयार किया हुआ वह रूप जिससे कागज आदि चिपकाये जाते हैं। स्त्री० दे० ‘गोंदी’।
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गोद  : स्त्री० [सं० क्रोड़] १. बैठे हुए व्यक्ति का सामने का कमर और घुटनों के बीच का भाग जिसमें बच्चों आदि को लिया जाता है। २. खड़े हुए मनुष्य का वक्षःस्थल और कमर के बीच का वह स्थान जिस पर बच्चों को बैठाकर हाथ के घेरे से सँभाला जाता है। पद-गोद का बच्चा ऐसा छोटा बच्चा जो प्रायः गोद में ही रहता हो। मुहावरा–(किसीको) गोद बैठाना या लेनाकिसी को अपना दत्तक पुत्र बनाना। ३. स्त्रियों की साड़ी का वह भाग जो पेट तथा वक्षःस्थल पर रहता है। अंचल। मुहावरा–(किसी के आगे) गोद पसाकर बिनती करना या माँगना अत्यन्त अधीरता से माँगना या प्रार्थना करना। अपनी असहाय तथा दीन अवस्था बतलाते हुए किसी से किसी बात की प्रार्थना करना। गोद भरना (क) सौभाग्यवती स्त्रियों के अंचल में मंगल कामना से नारियल,मिठाई आदि रखना जो शुभ समझा जाता है। (ख) संतान होना। औलाद होना। ४. कोई ऐसा स्थान जहाँ किसी को माँ की गोद का सा आराम तथा सुख मिले, जैसे–प्रकृति की गोद में आपका लालन-पालन हुआ था।
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गोद-गुदाली  : पुं० [देश०] गूलू नाम का पेड़।
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गोदंत  : पुं० [ष० त०] गोदंती हरताल।
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गोदंती  : स्त्री० [सं० गोदन्त+ङीष्] वह कच्ची और सफेद हरताल जो अभी शुद्ध न की गई हो।
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गोदनहर  : स्त्री० =गोदनहारी।
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गोदनहारा  : पुं० [हिं० गोदना+हरा(प्रत्य)] १. गोदना गोदने का व्यवसाय करनेवाला व्यक्ति। २. वह व्यक्ति जो माता छापता या टीका (सूई) लगाता हो।
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गोदनहारी  : स्त्री० [हिं० गोदना+हारी(प्रत्य)] कंजड़ या नट जाति की स्त्री जो गोदना गोदती है।
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गोदना  : स० [हिं० खोदना==गड़ाना] १.कोई नुकीली तथा कड़ी चीज निरर्थक किसी कोमल तल में गड़ाना या चुभाना। जैसे–चमड़े में सूई गोदना। २. बिलकुल निरर्थक रूप में अक्षर, चिह्न आदि बनाना। जैसे–लड़का लिखता क्या है,यों ही बैठा-बैठा गोदा करता है। ३. किसी को उत्तेजित या प्रेरित करनेवाली कोई क्रिया करना या बात कहना। ४. चुभती या लगती हुई कोई कड़ुवी या कड़ी बात कहना। ५. हाथी के मस्तक में अंकुश गड़ाना। स० =गोड़ना (जमीन)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० १. तिल के आकार का वह विशिष्ट प्रकार का चिन्ह्र या बिंदी जो शरीर के किसी अंग पर सुन्दरता, पहचान आदि के लिए नील या कोयले के पानी में डुबाई हुई सूई बार-बार गड़ाकर बनाई जाती है। विशेष–ऐसी एक या अनेक बिदियाँ प्रायः गाल, कलाई आदि पर यों ही अथवा कुछ विशिष्ट आकृतियों के रूप में बनाई जाती है। २. वह सूई जिसकी सहायता से अनेक प्रकार के रोगों (जैसे–प्लेग,शीतला,हैजा आदि) से रक्षित रखने के लिए कुछ विशिष्ट औषधियाँ शरीर में पृविष्ट की जाती हैं। सूई। ३. खेत गोड़ने का कोई उपकरण।
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गोंदनी  : स्त्री० दे० ‘गोंदी’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोदनी  : स्त्री० [हिं० गोदना] १. कोई ऐसी चीज जिससे गोदा जाय। २. गोदना गोदने की सूई।
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गोंदपँजीरी  : स्त्री० [हिं० गोंद+पँजीरी] वह पँजीरी जिसमें गोंद भी मिलाया गया हो।
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गोंदपाग  : पुं० [हिं० गोंद+पाग] गोंद और चीनी के मेल से बनी हुई एक प्रकार की मिठाई। पपड़ी।
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गोदर  : वि० [हिं० गदराना] १. गदराया हुआ। २. पूरी तरह से युवा अवस्था में आया हुआ।
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गोंदरा  : पुं० [सं० गुंद्र=एक] १. गोनरा नामक घास। २. नरम घास या पयाल का बना हुआ एक प्रकार का छोटा आसन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोंदरी  : स्त्री० [सं० गुंद्रा] १. एक प्रकार का मुलायम लंबी घास जो पानी में होती है। गोनी। २. उक्त घास की बनी हुई चटाई।
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गोंदला  : पुं० [सं० गुद्रा] १. नागरमोथा नामक घास की एक जाति। २.गोनरा या गोनी नामक घास।
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गोंदवानी  : स्त्री० [हिं० गोंद+फा० दान] वह पात्र जिसमें गोंद भिगोकर रखा रहे।
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गोंदा  : पुं० [हिं० गूँधना] १. बुलबुलों को खिलाई जानेवाली गूँधे हुए भुने चने के बेसन की छोटी-छोटी गोलियाँ। मुहावरा–गोंदा दिखाना (क) बुलबुलों को लड़ाने के लिए उनके आगे गोंदा फेंकना। (ख) दो पक्षों में लड़ाई लगाना। २. गीली मिट्टी के वे पिंड जो कच्ची दीवारें बनाने के समय एक पर एक रखे जाते हैं। गारा। उदाहरण–उसको मिट्टी के गोंदों की ऊँचाई देकर फूस से ढक दिया।–वृन्दावनलाल वर्मा।
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गोदा  : स्त्री० [सं० गो√दा (देना)+क-टाप्] १. गोदावरी नदी। २. गायत्री स्वरूपा महादेवी। पुं० [हिं० गोदना] चित्रकला में वे छोटे-छोटे बिन्दु जो आकृतियों आदि के स्थान और रूप-रेखा स्थिर करने के लिए लगाये जाते हैं। पुं० [?] १. कटवाँसी बाँस। २. वृक्ष की नई डाल या साखा। ३. गूलर, पीपल, बड़ आदि के पके हुए फल।
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गोदान  : स० [हिं० गोदना] (गोदना) गोदने का काम किसी से कराना।
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गोदाम  : पुं० [अं० गोडाउन] वह घर या कमरा जहाँ पर बिक्री के लिए खरीदी हुई वस्तुएँ जमा करके रखी जाती है।
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गोदावरी  : स्त्री० [सं०गो√दा(देना)+वनिप्-ङीष्,र] दक्षिण भारत की एक प्रसिद्ध पवित्र नदी जो नासिक के पास से निकल कर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
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गोदिनका  : स्त्री० [बं०] बेंत की जाति का एक वृक्ष जो पूर्वीय बंगाल औरल आसाम में बहुत होता है। इसकी टहलियों से चटाइयाँ बनाई जाती हैं।
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गोंदी  : स्त्री० [सं० गुन्द्रा] एक प्रकार की घास जिसके डठंलों से चटाइयाँ बनती हैं। गोंदरी।
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गोदी  : स्त्री० =गोद। स्त्री० [मरा०] समुद्र का घाट जहाँ से जहाजों पर माल चढाया उतारा जाता है। (डाक) पुं० [देश] एक प्रकार का बबूल जो प्रायः नहरों केकिनारे बाँधों पर लगाया जाता है।
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गोदी-मजदूर  : पुं० [मरा०+फा०] जहाजों पर से माल उतारने तथा चढ़ाने का काम करने वाला मजदूर।
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गोंदीला  : वि० [हिं० गोंद+ईला (प्रत्यय)] [स्त्री० गोंदीली] १. (वृक्ष) जिसमें से गोंद निकलती हो। २. जिसमें गोंद लगी हो। गोंद से युक्त।
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गोदोहनी  : स्त्री० [सं० दोहन+ङीष्, गो-दोहनी, ष० त०] वह बरतन जिसमें गौ का दूध दुहा जाता है।
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गोध  : स्त्री० [सं० गोधा] छिपकली की तरह का गोह नामक जंगली जानवर।
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गोधना  : पुं० [सं० गोधन] भाई दूज के दिन का एक कृत्य जिसमें स्त्रियाँ गोबर से भाई के शत्रु की आकृति बनाकर उसे मूसल से मारती हैं।
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गोधरी  : स्त्री० [देश०] गुजरात में होनेवाली एक प्रकार की कपास।
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गोधा  : स्त्री० [सं० Öगुध् (लपेटना)+घ टाप्] छिपकली की तरह का एक जंगली जानवर। गोह।
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गोधा-पदी  : स्त्री० [ब० स० ङीष्] १. मूसली नाम की औषधि। २. हंसपदी लता।
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गोधावती  : स्त्री० [सं० गोधा+मतुप्, वत्व, ङीष्]=गोधापदी।
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गोधिका  : स्त्री० [सं० Ö√गुध्+ण्वुल्-अक, टाप्, इत्व] १. छिपकली। २. घड़ियाल की मादा।
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गोधिकात्मज  : पुं० [गोदिका-आत्मज, ष० त०] गोह की तरह का छोटा एक जानवर।
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गोधिया  : स्त्री० दे० ‘गोइयाँ’।
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गोधी  : स्त्री० [सं० गोधूम] एक प्रकार का गेहूँ जो दक्षिण में अधिकता से होता है और जिसकी भसी जल्दी नहीं छूटती।
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गोधूम  : पुं० [सं०√Öगुध्+ऊम] १. गेहूँ। २. नारंगी।
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गोधूमक  : पुं० [सं० गोधूम-क=शिर, ब० स०] गेहूँअन नाम का साँप।
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गोधूली  : स्त्री०==गोधूलि।
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गोध्र  : पुं० [सं० गोधृ (धारण)+क] पहाड़। पर्वत।
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गोन  : स्त्री० [सं० गोणी, गु० बं० गुण,सि० गूणी, मरा० गोण] १. वह दोहरा बोरा जो अनाज आदि भरकर बैलों की पीठ पर लादा जाता है। २. अनाज आदि भरने का बोरा। ३. कोई बड़ा थैला। ४. अनाज आदि की एक पुरानी तौल जो १६ मानी (२५६ सेर) की होती थी। स्त्री० [?] एक प्रकार का साग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० दे० ‘गून’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० =गमन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गोनंद  : पुं० [सं० गो√नन्द् (प्रसन्न होना)+णिच्+अण्] १. कार्तिकेय के एक गण का नाम। २. एक प्राचीन देश।
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गोनर  : पुं० =गोनरा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोनरखा  : पुं० [हिं० गोनरस्सी+रखना] १. नाव का वह मस्तूल जिसमें गोन बाँधकर उसे खींचते हैं। २. उक्त मस्तूल में रस्सी बाँधकर नाव को खीचनेवाला मल्लाह या मजदूर।
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गोनरा  : पुं० [सं० गुंद्रा] उत्तरी भारत में होनेवाली एक प्रकार की लंबी घास जो पशुओं के खाने और चटाइयाँ बनाने के काम आती है।
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गोनर्द  : पुं० [सं० गोनर्द (शब्द)+अच्] १. उत्तर-पश्चिमी भारत का एक प्राचीन देश जहाँ महर्षि पतंजलि का जन्म हुआ था। २. महादेव। शिव। ३. नागरमोथा। ४. सारस पक्षी।
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गोनर्दीय  : पुं० [सं० गोनर्द+छ-ईय] महर्षि पतंजलि जो गोनर्द देश के थे।
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गोना  : स० [सं० गोपन] १. छिपाना। लुकाना। उदाहरण–होइ मैदान परी अब गोई।–जायसी। २. चुराना। उदाहरण–नगर नवल कुँवर बर सुंदर मारग जात लेत मन गोई।–सूर।
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गोनास  : पुं० =गोनस।
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गोनिया  : स्त्री० [सं० गोण, हिं० कोना+इया (प्रत्य)] बढ़ई, लोहार आदि का एक समकोण जिससे वे दीवार, लकड़ी आदि की सिधाई जाँचते हैं। पुं० [हिं० गोन] वह जो अपनी या बैलों की पीठ पर गोन, अर्थात् बोरा लादकर ढोता हो। पुं० [हिं० गोन-रस्सी+इया (प्रत्य)] रस्सी बाँधकर उससे नाव खींचनेवाला मल्लाह।
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गोप  : पुं० [सं० गोपा (पालना)+क] १. गौओं का पालन करनेवाला और स्वामी। २. ग्वाला। अहीर। ३. गोशाला का अध्यक्ष। ४. राजा। ५. उपकारक, रक्षक और सहायक। ६. गाँव का मुखिया। ७. बोल या मुर नामक औषधि। पुं० [सं० गुंफ] सिकरी या जंजीर की तरह की गले में पहनने की माला।
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गोप-ज  : वि० [सं० गोप√Öजन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] [स्त्री० गोपजा] गोप से उत्पन्न। पुं० गोप जाति का पुरुष।
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गोप-बल  : पुं० [गोपद√Öला (लेना)+क, उप० स०] १. सुपारी का पेड़।
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गोप-राष्ट्र  : पुं० [मध्य० स०] आधुनिक ग्वालियर का प्राचीन नाम।
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गोपक  : पुं० [सं० गोप+कन्] १. गोप जाति का व्यक्ति। २. बहुत से गाँवों का मालिक या सरदार। ३. [√गुप् (रक्षा करना, छिपाना)+ण्वुल्-अक] रक्षा करनेवाला व्यक्ति। वि० १. गोपन करने या छिपाने वाला। २. रक्षक।
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गोपजा  : स्त्री० [सं० गोपज+टाप्] १. गोप जाति की स्त्री। २. राधिका।
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गोपदी(दिन्)  : वि० [सं० गोपद+इनि] गाय के खुर के समान बहुत छोटा।
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गोपन  : पुं० [सं० Öगुप् (रक्षी करना)+ल्युट्
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गोपना  : स० [सं० गोपन] १. छिपाना। २. मन की बात प्रकट न करना।
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गोपनीय  : वि० [सं०√Öगुप्+अनीयर] १. (वस्तु) जिसे दूसरों से छिपाकर रखना आवश्यक हो। २. (बात या रहस्य) जिसे दूसरों पर प्रकट न करना चाहिए।
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गोपयिता  : (तृ)–वि० [सं०√Öगुप्+णिच्+तृच्] छिपानेवाला।
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गोपा  : वि० [सं० गोपक से] १. छिपानेवाला। २. जो मन की बात न बतलाता हो अथवा रहस्य प्रकट न करता हो। स्त्री० [सं० गोप+टाप्] १. गोप जाति की स्त्री। २. अहीरिन। ग्वालिन। ३. श्यामा नाम की लता। ४. गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा का दूसरा नाम।
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गोपांगना  : स्त्री० [गोप अंगना, ष० त०] १. गोप जाति की स्त्री। गोपी। २. अनंतमूल नाम की ओषधि।
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गोपाचल  : पुं० [सं० गोप अचल, मध्य० स०] १. ग्वालियर के पास के पर्वत का पुराना नाम। २. ग्वालियर।
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गोपायक  : वि० [सं०√Öगुप्+आय्+ण्वुल्-अक] १. छिपानेवाला। २. रक्षा करनेवाला।
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गोपायन  : पुं० [सं०√गुप्+आय्+ल्युट्-अन] १. गोपन। २. रक्षण।
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गोपाल-कक्षा  : स्त्री० [ष० त०] महाभारत के अनुसार पश्चिम भारत का एक प्राचीन देश।
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गोपाल-तापन, गोपाल-तापनीय  : पुं० [सं०√तप्+णिच्+ल्यु-अन, गोपाल-तापन, ष० त०] [गोपाल-तापनीयसेव्य, ब० स०] एक उपनिषद् जिसकी टीका शंकराचार्य तथा अन्य कई विद्वानों ने की है।
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गोपाल-मंदिर  : पुं० [ष० त०] वैष्णवों का वह बड़ा मन्दिर जिसमें गोपाल जी की मूर्ति रहती है।
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गोपालिका  : स्त्री० [सं० गोपालक+टाप्, इत्व] १. ग्वालिन। अहीरिन। २. सारिवा नाम की औषधि। ३. ग्वालिन नामक बरसाती कीड़ा। गिंजाई।
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गोपाली  : स्त्री० [सं० गोपाल+ङीष्] १. गौ पालने वाली स्त्री। कार्तिकेय की एक मातृका।
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गोपाष्टमी  : स्त्री० [गोप अष्टमी, मध्य० स०] कार्तिक शुक्ला अष्टमी। कहते हैं कि इसी दिन श्रीकृष्ण ने गोचारण आरंभ किया था। इस दिन गोपूजन गो प्रदक्षिणा आदि का माहात्म्य कहा गया है।
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गोपिका  : स्त्री० [सं० गोपी+कन्-टाप्, ह्रस्व] १. गोप जाति की स्त्री। गोपी। २. अहीरिन। ग्वालिन। वि० स्त्री० ‘गोपक’ का स्त्री रूप।
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गोपिका-मोदी  : स्त्री० [सं० गोपिका√मुद् (प्रसन्न होना)+णिच्+अण्, ङीष्, उप० स०] एक संकर रागिनी जो कामोद और केदारी के योग से बनती है।
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गोपित  : भू० कृ० [सं०√Öगुप्+णिच्+क्त] १. छिपा या छिपाया हुआ। गुप्त। २. रक्षित।
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गोपिनी  : स्त्री० [सं० गोपी] १. गोप जाति की स्त्री। गोपी। २. [सं०√Öगुप्+णिनि-ङीप्] श्याम लता। ३. तांत्रिको की तंत्र पूजा के समय की नायिका। वि० स्त्री० छिपानेवाली।
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गोपिया  : स्त्री० [हि० गोफन] गोफन। ढेलवाँस। (दे०)।
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गोपी-चंदन  : पुं० [मध्य० स०] द्वारका के सरोवर की वह पीली मिट्टी जिसका तिलक वैष्णव लगाते हैं (आज कल यह नकली भी बनने लगी है)।
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गोपी-नाथ  : पुं० [ष० त०] गोपियों के स्वामी, श्रीकृष्ण।
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गोपी(पिन्)  : वि० [सं०√Öगुप्+णिनि] [स्त्री० गोपिनी] १. छिपाने वाला। २. बचाने या रक्षा करनेवाला। स्त्री० [सं० गोप+ङीष्] १. गोप जाति की स्त्री। २. अहीर या ग्वाले की स्त्री। ३. ब्रज की उक्त जाति की प्रत्येक स्त्री जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थी। ४. [√गुप्+अच्-ङीष्] सारिवा नाम की ओषधि।
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गोपीता  : स्त्री० =गोपी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गोंपीथ  : पुं० [सं० गो√पा (पीना, रक्षा करना)+थक्, नि० ईत्व] १. वह सरोवर जहाँ गौएँ जल पीती हों। २. एक प्राचीन तीर्थ। ३. पालन-पोषण या रक्षण। ४. राजा।
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गोपुर  : पुं० [सं०Ö गुप् (रक्षा)+उरच्] १. बड़े किले, नगर, मंदिर आदि का ऊँचा, बड़ा और मुख्य द्वार। २. बड़ा दरवाजा। फाटक। ३. गोलोक। स्वर्ग।
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गोपेंद्र  : पुं० [गोप-इंद्र, ष० त०] १. गोपों का राजा या स्वामी। २. श्रीकृष्ण।
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गोप्ता (प्तृ)  : वि० [सं० Öगुप्+तृच्] १. छिपानेवाला। २. रक्षक। पुं० विष्णु। स्त्री० गंगा।
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गोप्य  : वि० [सं०√Öगुप्+ण्यत्] १. गुप्त रखने या छिपानेलायक। गोपनीय। २. बचाकर या रक्षित रखे जाने के योग्य। ३. छिपा या बचाकर रखा हुआ। गुप्त। पुं० १. दास। सेवक। २. दासी से उत्पन्न हुई संतान। ३. कोई चीज रेहन या गिरवी रखने का वह प्रकार जिसमें रेहन रखी हुई चीज के आय-व्यय पर उसके स्वामी का ही अधिकार रहता हो और जिसके पास चीज रेहन रखी जाय वह केवल सूद लेने का अधिकारी हो। दृष्टबंधक। ४. [गोपी+यत्] गोपियों का वर्ग या समूह।
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गोफ  : पुं० [?] गले में पहनने का सोने का एक प्रकार का गहना।
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गोफन (ा)  : पुं० [सं० गोफण] छींके की तरह का एक प्रकार का जाल जिसमें भरे हुए छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर उसे रस्सी से बाँधकर घुमाने पर चारों ओर वेग से गिरते है और चोट पहुँचाते हैं। ढेलवाँस।
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गोफा  : पुं० [सं० गुम्फ] १. अरुई, केले, सूरन आदि का नया मुँह-बँधा कल्ला। २. एक हाथ की उँगलियों को दूसरे हाथ की उँगलियों में फँसाने से बनने वाली मुद्रा। क्रि० प्र०–
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गोबर  : पुं० [सं० गोमय] गाय का मल या विष्टा जो हिंदुओं में पवित्र माना जाता और सूख जाने पर ईधन के रूप में जलाया जाता है। क्रि० प्र० पाथना। मुहावरा–गोबर खानाएक बार अनुपयुक्त ढंग से काम करने पर तथा अपनी भूल मालूम होने या सफलता न मिलने पर भी फिर से उपयुक्त ढंग से काम न करना।
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गोबर-गणेश  : वि० [हि० गोबर+सं० गणेश] १. जो आकार-प्रकार या रूप-रंग की दृष्टि से बहुत ही भद्दा हो। २. निरा मूर्ख (व्यक्ति)।
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गोबर-गिद्धा  : पुं० [हिं० गोबर+गिद्धा] गिद्ध जाति का एक पक्षी।
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गोबर-धन  : पुं०=गोवर्धन।
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गोबरहारा  : पुं० [हिं० गोबर+हारा (प्रत्यय)] गोबर उठाने तथा पाथनेवाला व्यक्ति।
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गोबराना  : स० [हिं० गोबर+ना (प्रत्य)] जमीन या दीवार पर गोबर पोतना या लीपना।
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गोबरिया  : पुं० [हिं० गोबर] बछनाग की जाति का एक पहाड़ी पौधा।
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गोबरी  : स्त्री० [हिं० गोबर+ई (प्रत्य०)] १. उपला। कंडा। गोहरा। २. जमीन या दीवार पर गोबर से की जाने वाली लिपाई या पोताई। क्रि० प्र०= करना।–फेरना। स्त्री० [देश०] जहाज के पेंदे का छेद। (लश०)। मुहावरा-गोबरी निकालना=जहाज के पेदें में छेद करना।
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गोबरैला  : पुं० [हि० गोबर+ऐसा या औला (प्रत्य०)] गोबर में उत्पन्न होने और रहने वाला एक छोटा कीड़ा।
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गोबरौला,गोबरौला  : पुं० गोबरैला।
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गोबिया  : पुं० [देश०] आसाम की पहाड़ियों में होनेवाला एक प्रकार का छोटा बाँस।
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गोबी  : स्त्री०==गोभी।
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गोभ  : पुं० [सं० गुंफ वा हिं० गोफा] पौधों का एक रोग जिसमें उनकी जड़ों में से नये-नये अंकुर निकलने के कारण उनकी बाढ़ रुक जाती है।
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गोभा  : स्त्री० [?] १. पानी के तरंग। लहर। २. मन की तरंग। उमंग। उदाहरण०–जसुमति ढोटा ब्रज की सोभा देखि कछु औरे गोभा।–सूर। पु० दे० ‘गाभा’।
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गोभिल  : पुं० [सं०] सामवेदीय गुह्यसूत्र रचयिता एक प्रसिद्ध ऋषि ।
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गोभी  : स्त्री० [सं० गोजिह्र=बन गोभी का गुंफ=गुच्छा] १. एक प्रकार की जंगली घास। २. एक प्रसिद्ध पौधा जिसमें सफेद रंग का बड़ा फूल लगता है और जिसकी तरकारी बनाई जाती है। ३. उक्त पौधे का फूल
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गोम  : पुं० [सं० गमन] आकाश। उदाहरण–मिली सेन दूनों निजरि गज्जे गोम निसान।–चंदवरदाई। स्त्री० [देश०] १. घोड़ों की नाभि पर होनेवाली एक प्रकार की भँवरी। २. पृथ्वी। (डिं०)
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गोमंत  : पुं० [सं०] १. सह्यद्रि के अंतर्गत एक पहाड़ी जहाँ गोमती देवती का स्थान है। यह सिद्धपीठ माना जाता है। २. वह जो कुत्ते पालता और बेचता हो।
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गोमती  : स्त्री० [सं० गो+मतुप्-ङीप्] १. उत्तर प्रदेश की एक नदी जो सैदपुर गंगा में मिलती है। २. बंगाल की एक नदी। ३. एक देवी जिसका प्रधान स्थान गोमंत पर्वत पर है। ४. एक वैदिक मंत्र। ५. ग्यारह मात्राओँ का एक छंद।
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गोमती-शिला  : स्त्री० [मध्य० स०] हिमालय की एक चट्टान या पहाड़ी। विशेष–कहते है कि अर्जुन का शरीर यहीं पहुँचने पर गला था।
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गोमथ  : पुं० [सं० गो√मथ् (बिलोना)+अच्] गोप। ग्वाला।
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गोमय  : पुं० [सं० गो+मयट्] गाय का मल या विष्ठा। गोबर।
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गोमर  : पुं० [हिं० गौ+मर (प्रत्य०)=मारनेवाला] १. गौ को मारनेवाला व्यक्ति। २. कसाई। बूचर।
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गोमा  : स्त्री० [देश०] गोमती नदी। पुं० [फा०] १. एक प्रकार का वृक्ष जिसके फूलों का रस कान की पीड़ा दूर करता है। २. उक्त वृक्ष का फूल।
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गोमाय  : पुं०==गोमायु।
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गोमायु  : पुं० [सं०गो√मा (शब्द करना)+उण्, युक् आगम] १. गीदड़। श्रृगाल। २. एक प्रकार का मेढ़ ।
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गोमी-(मिन्)  : पुं० [सं० गो+मिनि] गीदड़। (श्रृगाल)। स्त्री० [?] पृथ्वी। (डिं०)
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गोमुख  : पुं० [ष० त०] १. गौ का मुँह। २. [ब० स०] मगर नामक जलजंतु। ३. योग में एक प्रकार का आसन। ४. टेढ़ा-मेढ़ा घर। ५. ऐपन। ६. एक यक्ष का नाम। ७. इंद्र के पुत्र जयंत का सारथी। ८. नरसिंहा नामक बाजा। वि० गौ के समान मुँह वाला। जिसका मुँह गौ के समान हो। जैसे–गोमुख नाली या शंख, गोमुख संधि या सेंध। पद-गोमुख नाहर या व्याध्र ऐसा परम क्रूर और हिंसक व्यक्ति जो ऊपर से देखने में गौ के समान निरीह और सीधा-सादा जान पड़े।
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गोमेदक  : पुं० [सं० गोमेद+कन्] १. एक प्रकार का रत्न या बहुमूल्य पत्थर जो कई रंगों का होता है। राहुमणि। (जर्कन) २. काकोल नामक विष। ३. पत्रक का साग। ४. कबाबचीनी। शीतलचीनी।
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गोय  : पुं० दे० गेंद (खेलने का)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गोयँड़  : स्त्री० [सं० गोष्ठ अथवा हिं० गाँव+मेड़] गाँव के आस-पास की भूमि।
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गोयंदा  : पुं० =गोइंदा।
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गोया  : अव्य० [फा०] १. जैसे। २. मानों।
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गोर  : स्त्री० [फा०] जमीन में खोदा जानेवाला वह गड्ढा जिसमें मुसलमान आदि मुर्दा गाड़ते है। कब्र। पुं० [अ० गोर] [वि० गोरी] फारस देश का एक पुराना प्रान्त।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) वि० [सं० गौर] १. गौर वर्ण का। गोरा। २. सफेद।
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गोर-चकरा  : पुं० [देश०] सन की जाति का एक जंगली पौधा।
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गोर-मदाइन  : स्त्री० [?] इंद्रधनुष (बुंदेल०)
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गोरका  : पुं० [देश०] अरैल नाम का वृक्ष।
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गोरख  : पुं० =गोरखनाथ (योगी)।
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गोरख-इमली  : स्त्री० [हिं० गोरख+इमली] बहुत बड़ा और मोटे तनेवाला एक प्रकार का पेड़।
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गोरख-ककड़ी  : स्त्री० [हिं० गोरख+ककड़ी] फूट नामक ककड़ी या फल। गोरखी।
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गोरख-डिब्बी  : स्त्री० [हिं० गोरख+डिब्बी] पानी का वह कुंड या स्रोत जिसमें से गरम तथा खनिज पदार्थों से युक्त जल निकलता हो।
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गोरख-धंधा  : पुं० [हिं० गोरखनाथ+धंधा] १. ऐसा कठिन और जटिल काम या बात जिसका निराकरण सहज में न हो सकता हो। २. ऐसी झंझट या बखेड़ा जिससे जल्दी छुटकारा न हो। ३. कई तारों, कड़ियों या लकड़ी के टुकड़ों का वह समूह या रचना जिसे जोड़ने या अलग-अलग करने के लिए विशेष बुद्धिबल की आवश्यकता होती है। विशेष-ये एक प्रकार के खिलौने से होते हैं।
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गोरख-नाथ  : पुं० [गोरक्षनाथ] ई० १५ वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध अवधूत महात्मा और हठयोगी जिनका चलाया हुआ गोरखपंथ नामक संप्रदाय है। इन्हीं के नाम पर गोरखपुर शहर बसा है।
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गोरख-पंथ  : पुं० [हिं० गोरखनाथ+पंथ] महात्मा गोरखनाथ द्वारा प्रस्थापित एक पंथ या संप्रदाय।
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गोरख-पंथी  : वि० [हिं० गोरखनाथ+पंथी] गोरखनाथ के चलाये हुए पंथ का अनुयायी।
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गोरख-मुडी  : स्त्री० [सं० मुण्डी] एक प्रकार की घास जिसमें घुण्डी के तरह के छोटे गोल फल लगते हैं, ये फल रक्तशोधन के लिए बहुत गुणकारी कहे गये हैं।
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गोरखर  : पुं० [फा०] गधे की जाति का एक प्रकार का जंगली पशु जो गधे से बडा़ और घोड़े से छोटा होता तथा उत्तर-पश्चिमी भारत में पाया जाता है।
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गोरखा  : पुं० [सं० गोरक्ष अथवा हिं० गो+रखना] १. नेपाल देश का एक प्रदेश। २. उक्त प्रदेश में रहनेवाली एक वीर जाति। ३. उक्त जाति का पुरुष।
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गोरखाली  : स्त्री० [हिं० गोरख] गोरखा नामक जाति और प्रदेश की बोली।
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गोरखी  : स्त्री० गोरख-ककड़ी।
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गोरटा  : वि० [हिं० गोरा] [स्त्री० गोरटी] गोरे रंगवाला। गोरा।
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गोरड़ा  : वि० [स्त्री० गोरड़ी] =गोरटा। (राज०) उदाहरण-तियाँ तिहारी गोरड़ी, दिन दिन लाख लहाइ।–ढोलामारू। पुं० [हिं० गोड़ना] ईख। ऊख। (अधवी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोरन  : पुं० [देश०] १. कुछ नदियों तथा समुद्र के किनारे पर होनेवाला एक प्रकार का पेड़ जिसकी लकड़ी का रंग लाल होता है। २. उक्त वृक्ष की लकड़ी जो नावें बनाने के काम आती है। ३. उक्त वृक्ष का छाल जो चमड़ा सिझाने के काम आती है।
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गोरया  : पुं० [देश०] अगहन में होनेवाला एक प्रकार का धान।
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गोरल  : पुं० [देश०] एक प्रकार का जंगली बकरा। वि० =गोरा (गौर वर्णवाला)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० गौरी। पार्वती। (राज०) उदाहरण–म्हाँना गुरु गोविन्द री आण, गोरल ना पूजाँ।–मीराँ।
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गोरवा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का बाँस जिसकी छोटी तथा पतली टहनियों से हुक्कों के नैचे बनाये जाते हैं।
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गोरसर  : पुं० [देश०] बाँस के पंखों में डंडी के पास लगाई जानेवाली कमाची।
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गोरसा  : पुं० [सं० गोरस] [स्त्री० गोरसी] वह बच्चा जो गाय का दूध पीकर पला हो।
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गोरसी  : स्त्री० [सं० गोरस+ई (प्रत्यय)] एक प्रकार की छोटी अँगीठी जिसपर दूध गरम किया जाता है।
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गोरा  : वि० [सं० गौर, प्रा० गोर, बं० उ० पं० मरा० गोरा, सिं० गोरो, गु० गोरू, ने० गोरो] (व्यक्ति) जिसके शरीर का वर्ण बरफ की तरह सफेद और स्वच्छ हो। गौर-वर्णवाला। पद-गोरा भभूका बहुत अधिक गोरा-चिट्टा। पुं० [स्त्री० गोरी] अमेरिका, य़ूरोप आदि ठंडे देशों में रहनेवाला ऐसा व्यक्ति जिसका वर्ण गौर हो। पुं० [देश०] १. एक प्रकार की कल जिससे नील के कारखाने में बट्टियाँ काटी जाती हैं। २. एक प्रकार का नीबू।
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गोरा-पत्थर  : पुं० [हिं० गोरा+पत्थर] सफेद रंग का एक प्रकार का चिकना तथा मुलायम पत्थर। घीया पत्थर। संग-जराहत। (सोप स्टोन)।
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गोराई  : स्त्री० [सं० गौर+हिं० आई] १. गोरे होने की अवस्था या भाव। गोरापन। २. व्यक्ति का रूप सम्बन्धी सौन्दर्य ।
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गोराटी  : स्त्री० [सं० गो√रट् (रटना)+अण्-ङीष्] मैना। पक्षी।
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गोराडू  : पुं० [देश०] ऐसी मिट्टी जिसमें बालू का भी अँश हो।
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गोरामूँग  : पुं० [हि० गोरा+मूँग] एक प्रकार का जंगली मूँग।
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गोरिल्ला  : पुं० [अफ्रिका] अफ्रीका के जंगलों में रहनेवाला एक प्रकार का बनमानुस।
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गोरी  : स्त्री० [सं० गौरी] १. वह स्त्री जिसका वर्ण गौर हो। २. रूपवती स्त्री। सुन्दरी। वि० [अ० गोर देश] फारस के गोर नामक देश का। जैसे–मुहम्मद गोरी।
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गोरू  : पुं० [सं० गोरूप, पा० गोरूप, बं० गरू, उ० ने० गोरु, पं० गोरु.मरा० गुरूँ] गौ, बकरी, भैंस आदि सींगवाले पालतू पशु। (कैटिल)। पुं० [सं० गोरुत] दो कोस की दूरी। (राज०)
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गोरू-चोर  : पुं० [हिं० गोरू+चोर] दूसरों की गौएँ, बकरियाँ, भैंसें आदि चुरानेवाला व्यक्ति। (ए बैक्टर)।
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गोर्खा  : पुं० =गोरखा।
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गोर्खाली  : स्त्री० =गोरखाली।
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गोर्द, गोर्ध  : पुं० [सं०Ö√गुर् (उद्यम)+ददन्, नि० सिद्धि] मस्तिष्क।
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गोल  : पुं० [सं०√गुड् (रक्षण)+अच्, डस्यल] १. मंडलाकार या वृत्ताकार बनावट या रचना। २. गोलाकार पिंड। गोला। ३. ज्योतिष में, गोल यंत्र। ४. विधवा का जारज पुत्र। गोलक। ५. मदन या मैनफल नामक वृक्ष। ६. मुर नामक औषधि। ७. मिट्टी का गोलाकार घड़ा। ८. दक्षिण-पश्चिमी यूरोप के कुछ विशिष्ट भागों का पुराना नाम। वि० १. जिसकी गोलाई वृत्त के समान हो। (सर्कुलर) जैसे–अँगूठी, पहिया, सूर्य आदि। २. जो बहुत कुछ वृत्ताकार हो। जैसे–गोल मुँह, गोलसिर । ३. (वस्तु) जिसके बाहरी तल का प्रत्येक बिन्दु उसके केन्द्र से बराबर दूरी पर हो। (स्फेरिकल)। जैसे–खेलने का गेंद, फेंकने का गोला। ४. (वस्तु) जिसकी आकृति बेलन जैसी हो। जैसे–गोल गिलास, गोल पाया। पुं० [सं० गोल-योग] उपद्रव। खलबली। पद–गोल बात =ऐसे रूप में कहीं जानेवाली बात जिसका ठीक-ठीक आशय या भाव किसी की समझ में न आता हो। कई अर्थोंवाली बात। मुहावरा–गोल करना =कोई चीज कई चुपके से हटा देना। गायब करना। गोल रहना–बिलकुल चुप रहना। गोल होना-कहीं से चुपचाप हट जाना। खिसक जाना। पुं० हिं० गोला का संक्षिप्त रूप जो उसे समस्त पदों में लगने पर प्राप्त होता है। जैसे–गोलंदाज, गोलंबर। पुं० [फा० गोल] १. एक ही जाति के बहुत से पशुओं का समूह। जैसे–भेड़ों का गोल। २. एक ही प्रकार या वर्ग के बहुत से लोगों का झुंड। क्रि० प्र०–बाँधना। पुं० [अं०] १. फुटबाल, हाकी आदि खेलने के मैदानों का वह भाग जहाँ एक दल के खेलाड़ी गेंद पहुँचाकर दूसरे दल को हराते हैं। २. उक्त स्थान में गेंद पहुँचाने की अवस्था या भाव।
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गोल-कलम  : स्त्री० [हिं० गोल+कलम] एक प्रकार की छेनी जो धातुओं पर नक्काशी करने के काम में आती हैं।
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गोल-कली  : स्त्री० [हिं० गोल+कली] एक प्रकार का अंगूर और उसकी लता।
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गोल-गप्पा  : पुं० [हिं० गोल+अनु० गप] घी, तेल आदि में तली हुई एक प्रकार की छोटी फुलकी जो खटाई के रस में डुबाकर खायी जाती है। वि० (उक्त के आधार पर) जो गोल गप्पे के समान गोलाकार और फूला हुआ हो।
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गोल-पंजा  : पुं० [हिं० गोल+पंजा] पुरानी चाल का वह जूता जिसकी नोंक ऊपर की ओर मुड़ी नहीं होती थी। मुंडा जूता।
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गोल-पत्ता  : पुं०=गोल-फल।
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गोल-फल  : पुं० [देश०] गुलगा नामक ताड़ (वृक्ष) का फल। [सं० ब० स०] मदन वृक्ष।
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गोल-मटोल  : वि० [हिं० गोल+मटोल (अनु०)] १. बहुत कुछ गोलाकार। २. नाटे कद तथा भारी शरीरवाला।(व्यक्ति)।
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गोल-माल  : पुं० [सं० गोल (योग)] ऐसी अव्यवस्था या गड़बड़ी जो जान-बूझकर और दुष्ट उद्देश्य से की गई हो।
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गोल-मिर्च  : स्त्री० [हिं० गोल+मरिच्] काली मिर्च।
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गोल-मुँहाँ  : पुं० [हिं० गोल+मुँह] कसेरों की एक प्रकार की गोल मुँह वाली हथौड़ी।
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गोल-मेज  : स्त्री० [हिं० गोल+फा० मेज] वह गोल मेज (या मेजों का मंडलाकार विन्यास) जिसके चारों ओर बैठकर कुछ दलों या देशों के प्रतिनिधि पूर्ण समानता के भाव से किसी समस्या पर न्यायोचित रूप से और सबको सन्तुष्ट करने के उद्देश्य से विचार करें।
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गोल-मेथी  : स्त्री० [हिं० गोल+मोथा] मोथे का जाति का एक पेड़ जिसके डंठलों से चटाइयाँ बनाई जाती हैं।
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गोल-यंत्र  : पुं० [कर्म० स०] ज्योतिषियों का एक प्रकार का यंत्र जिससे सूर्य, चन्द्र, पृथिवी आदि ग्रहों और नक्षत्रों की गति-विधि,स्थिति अयन, परिवर्तन आदि का पता लगाते हैं। और जो प्राचीन भारत में बाँस की तीलियों आदि से बनता था।
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गोल-योग  : पुं० [कर्म० स०] १. ज्योतिष में एक योग जो एक ही राशि के छः या सात ग्रहों के एकत्र होने से होता और बहुत अनिष्टकारक माना जाता है। २. गड़बड़ी। गो-माल।
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गोल-विद्या  : स्त्री० [ष० त०] ज्योतिष विद्या का वह अंग जिसमें आकाशस्थ पिडो़ और ग्रहों के आकार-विस्तार, ऋतु-परिवर्तन, गति-विधि आदि का विचार तथा विवेचन होता हैं।
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गोलक  : पुं० [सं० गोल+कन् वा√गुड्+ण्वुल्-अक,डस्य.लः] १. किसी प्रकार का गोल पिंड या डला। २. विधवा स्त्री की वह संतान जो उसके जार या यार से उत्पन्न हो। ३. मिट्टी का बहुत बड़ा घड़ा। कुंडा। ४. फूलों का निकाला हुआ सुंगधित सार भाग। ५. आँख का डेला। ६. आँख की पुतली। ७. वह थैली या सन्दूक जिसमें किसी विशेष कार्य के लिए धन संग्रह किया जाए। गुल्लक। ८. वह थैली या सन्दूक जिसमें दूकानदार रोज की ब्रिकी के रुपए-पैसे रखते हैं। ९. गुंबज या उसके आकार की कोई गोल रचना। उदाहरण–गिर रहा निस्तेज गोलक जलधि में असहाय।–प्रसाद। १॰. दे० गो-लोक।
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गोलंदाज  : पुं० [फा०] वह व्यक्ति जो तोप में गोला भरकर चलाता हो।
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गोलंदाजी  : स्त्री० [फा०] तोप से गोला चलाने का काम या कला।
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गोलंबर  : पुं० [हिं० गोल+अंबर] १. वास्तु में किसी प्रकार की गोलाकार रचना। जैसे्–गुबंद ,बगीचों आदि में बना हुआ गोल चबूतरा। २. गोलाई। ३. कलबूत जिसपर रखकर जूता,टोपी आदि चीजें सींते हैं। (कालिब)।
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गोलर  : पुं० [देश०] कसेरू।
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गोलरा  : पुं० [देश०] एक प्रकार का लंबा सुन्दर पेड़ जिसके हीर की लकड़ी चमकीली और बहुत कड़ी होती है। इसके पत्तों से चमड़ा सिझाया जाता है और लकड़ी से नावें, जहाज आदि और खेती के औजार बनाये जाते हैं।
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गोला  : पुं० [सं० गोल] [स्त्री० गोली] १. गेंद की तरह का कोई गोलाकार पिंड या वस्तु। २. धागों, रस्सियों आदि को लपेटकर बनाया हुआ उक्त आकार का पिंड। जैसे–डोरी या सूत का गोला। ३. किसी पिसी हुई वस्तु के चूर्ण को भिगोकर या पानी आदि में सानकर बनाया जानेवाला पिंड। जैसे–आटे या भाँग का गोला। ४. लोहे का वह गोल पिंड जिसे व्यायाम करते समय लोग हाथ में उठाकर दूर फेकते हैं। मुहावरा–गोला उठाना=प्राचीन काल में अपनी सत्यता प्रमाणित करने के लिए जलता हुआ लोहे का गोला इस प्रतिज्ञा से उठाना कि यदि हम निर्दोष हैं तो हमारा हाथ नहीं जलेगा। ५. धड़ाके से फटनेवाला एक प्रकार का रासायनिक विस्फोटक पिंड। पद–गोला बारूद==युद्ध में शत्रुओं का नाश करनेवाली सामग्री। अस्त्र-शस्त्र आदि। (अम्यूनिशन्स) ६. वास्तु में, खंभे, दीवार आदि के ऊपर की गोलाकार रचना। ७. मिट्टी, काठ आदि का गोलाकार ढाँचा जिसके ऊपर कपड़ा लपेटकर पगड़ी तैयार की जाती है। ८. नारियल का वह भाग जो उसके ऊपर की जटा छीलने के बाद बच रहता है। गरी का गोला। ९. कुछ विशिष्ट प्रकार की लकड़ियों का वह लंबा तना या लट्ठा जो छाजन आदि के काम के लिए छतों पर रखा जाता है। १॰. एक प्रकार का ठोस बाँस जो डंडे, छडियाँ आदि बनाने के काम आता है। मुहावरा–गोला लाठी करना=लड़कों का हाथ पैर बाँधकर दोनों घुटनों के बीच में डंडा डालना। (दुष्टता करने पर दिया जानेवाला एक प्रकार की दंड या सजा)। ११. पेट में होनेवाला एक प्रकार का एक रोग जिसमें थोड़ी-थोडी देर पर पेट के अन्दर नाभि से गले तक वायु का एक गोला आता-जाता हुआ जान पड़ता हैं। १२. अनाज, किराने आदि का बड़ा बाजार या मंडी। १३. घास का गट्ठर। १४. जंगली कबूतर। १५. कुएँ के ऊपर की गोलाकार जगत। १६. तालाब या नदी के किनारे का घाट। १७. एक प्रकार का बेंत जो बहुत लंबा तथा मुलायम होता है। तथा टोकरे आदि बनाने के काम में आता है। स्त्री० [सं०] १. बच्चों के खेलने का गेंद या गोली। २. छोटा घड़ा या मटकी। ३. गोदावरी नदी। ४. दुर्गा। ५. सखी। सहेली। ६. स्याही। मसि। ७. मैनसिल। ८. मंडली। वि० वृत्त के आकार का गोल। पुं० [अ० गोलझुंड] पशु-पक्षियों आदि का झुंड। पुं० [हिं० गोलीदासी] गोली (अर्थात् दासी) के गर्भ से उत्पन्न लड़का या व्यक्ति। विशेष–मध्ययुग में राजपूताने (राजस्थान) में ऐसे लोगों की अलग जाति या वर्ग ही बन गया था। पुं० [अ० गुलाम] ताश में का गुलाम नाम का पत्ता।
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गोलाई  : स्त्री० [हिं० गोल+आई (प्रत्यय)] १. किसी वस्तु के गोल होने का भाव या स्थिति। २. किसी गोल वस्तु के किनारे पर का बाहरी गोल घेरा।
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गोलाकार  : वि० [गोल-आकार ब० स०] जिसकी आकृति गोल हो। गोल आकारवाला जैसे–गोलाकार चबूतरा।
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गोलाधार  : वि० [हिं० गोला+धार] मूसलाधार। (वर्षा)।
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गोलाध्याय  : पुं० [गोल-अध्याय, ब० स०] भास्कराचार्य का एक ग्रंथ जिसमें भूगोल और खगोल का वर्णन है।
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गोलार्द्ध  : पुं० [गोल-अर्द्ध, ष० त०] १. किसी प्रकार के गोले का आधा भाग। २. गोल या पृथ्वी का आधा भाग। (हेमिस्फियर) विशेष-भूमध्य रेखा पृथ्वी को उत्तरी और दक्षिणी गोलार्द्ध में विभाजित करती है और खमध्य रेखा पृथ्वी को पूर्वी तथा पश्चिमी गोलार्द्धों में। ३. उक्त किसी आधे भू-भाग का मानचित्र।
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गोलासन  : पुं० [गोल-आसन=क्षेपण, ब० स०] पुरानी चाल की एक प्रकार की तोप।
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गोलियाना  : स० [हिं० गोल या गोला] १. कोई चीज गोल करना। गोले के रूप में बनाना या लाना। २. छोटी-छोटी गोलियाँ बनाना। ३. पशुओँ को औषध आदि गोली के रूप में बनाकर जबरदस्ती खिलाना। ४. जबरदस्ती कोई चीज या बात किसी के गले में उतारना। ५. कोई चीज कहीं से गायब करना। गोल करना। उड़ाना।
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गोली  : स्त्री [हिं० गोला का स्त्री० और अल्पा०] १. कोई छोटा गोला या गोलाकार पिंड। वटिका। जैसे–दवा की गोली, बंदूक की गोली, रेशम या सूत की गोली। २. मिट्टी का वह छोटा गोलाकार पिंड जिससे बच्चे कई तरह के खेल खेलते हैं। ३. उक्त पिड़ों से खेला जानेवाला खेल। ४. उक्त प्रकार का शीशे का वह गोलाकार या लंबोतरा पिंड जो तमंचों, बंदूकों आदि से शत्रुओं को मारने अथवा पशु-पक्षियों का शिकार करने के लिए चलाया जाता है। मुहावरा–गोली खाना बंदूक आदि की गोली का आघात सहना। (किसी काम या व्यक्ति को) गोली मारना =उपेक्षा या तिरस्कार पूर्वक दूर हटाना। जैसे–गोली मारो ऐसे नौकर को। ५. किसी प्रकार का घातक वार। मुहावरा–गोली बचाना किसी संकट या आपत्ति से धूर्ततापूर्वक अपना बचाव कर लेना। स्त्री० [?] मिट्टी का छोटा घडा। ठिलिया। २. पीले या बादामी रंग की गौ। ३. पशुओं का एक प्रकार का रोग। स्त्री० [सं० गोला=सखी] १. मध्ययुग में वह स्त्री जो वधुओं की सहेली के रूप में उसके साथ ससुराल भेजी जाती थी। विशेष–ऐसी स्त्रियाँ प्रायः दासी वर्ग की होती थीं। आगे चलकर राजस्थान आदि में ऐसी दासियों की एक अलग जाति या वर्ग ही बन गया था, जो पूर्ण रूप से दास ही माना जाने लगा था। भारत में स्वराज्य होने और सामंतशाही का अंत होने पर समाज का यह वर्ग भी स्वतन्त्र हो गया। २. छोटी-मोटी सेवाएँ या टहल करनेवाली दासी। पुं० [अ० गोल] फुटबाल, हाकी आदि का वह खिलाड़ी जो गोल में खड़ा होता है तथा उसमें गेंद जाने से रोकता है। (गोलकीपर)
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गोलीय  : वि० [सं० गोल+छ-ईय] १. गोल-संबंधी। २. खगोल भूगोल आदि से संबंध रखनेवाला।
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गोलैंदा  : पुं० [देश०] महुए का फल। कोइंदा।
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गोलोक-वास  : पुं० [स० त०] परलोक वास। (मृत्यु के लिए आदरार्थक)
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गोलोकेश  : पुं० [गोलोक-ईश, ष० त०] श्री कृष्णचन्द्र।
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गोलोचन  : पुं० =गोरोचन।
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गोलौआ  : पुं० [हिं० गोल] बाँस आदि का बड़ा टोकरा।
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गोंवड़ा  : पुं० [हिं० गाँव] गाँव के आस-पास के खेत।
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गोवना  : स० =गोना (छिपाना)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गोवर्धन-धारी(रि्न्)  : पुं० [गोवर्धन√धृ (धारण करना)+णिनि, उप० स०] श्रीकृष्ण।
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गोवल  : पुं० [सं० गोवल, ब० स०] गोप। ग्वाला। उदाहरण–जिम गोवल माँहि सोहइ गोव्यंद।–नरपतिनाल्ह।
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गोवि  : पुं० [सं०?] संकीर्ण राग का एक भेद।
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गोविंद  : पुं० [सं० गोविद् (लाभ)+श, नुम्] १. परब्रह्म। परमात्मा। २. तत्त्व शास्त्र और वेदान्त का अच्छा ज्ञाता या पंडित। ३. गौओं या गोशाला का मालिक। ४. श्रीकृष्ण। ५. बृहस्पति। ६. शंकराचार्य के गुरु का नाम।
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गोविंद-द्वादशी  : स्त्री० [मध्य० स०] फागुन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि।
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गोविंद-पद  : पुं० [ष० त०] मोक्ष। निर्वाण।
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गोश  : पुं० [फा०] सुनने की इंद्रिय। कान।
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गोश-गुजार  : वि० [फा०] किसी के कानों तक पहुँचाया हुआ। (विवरण या समाचार)।
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गोशपेंच  : पुं० [फा०] कान में पहनने का एक प्रकार का गहना।
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गोशम  : पुं० दे० ‘कोसम’।
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गोशमायल  : पुं० [फा०] मोतियों का वह गुच्छा जो कान के पास लटकाया जाता था।
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गोशमाली  : स्त्री० [फा०] १. किसी को दंड देने के लिए उसके कान उमेठना या मलना। २. चेतावनी मिली हुई भर्त्सना। ताड़ना।
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गोशवारा  : पुं० [फा०] १. खंजक नामक पेड़ का गोंद जो मस्तगी का सा होता है और मस्तगी ही की जगह काम में लाया जाता है। २. कान में पहनने का कुंडल या बाला। ३. ऐसा बड़ा मोती जो सीप में से अकेला ही निकला हो। ४. कलगी। तुर्रा। ५. कलाबत्तू या बना हुआ पगड़ी का आँचल जो प्रायः झब्बे के रूप में कान के पास लटकता है। ६. संख्याओं का योग। जोड़। ७. वह संक्षिप्त लेखा जिसमें हर मद का आय-व्यय अलग अलग दिखाया गया हो। ८. पंजी, बही आदि में भिन्न मदों या विभागों का शीर्षक।
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गोशा  : पुं० [फा० गोशः] १. अंतराल। कोण। कोना। २. एकान्त स्थान। ३. कमान की नोक। धनुष की कोटि। ४. ओर। दिशा।
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गोशा-नसीन  : वि० [फा०] [भाव० गोशा-नशीनी] घर–गृहस्थी या संसार से विरक्त होकर एकान्त वास करनेवाला।
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गोश्त  : पुं० [फा०] १. शरीर के अंदर का मांस। २. मारे हुए पशु का मांस जो लोग खाते हैं। जैसे–बकरी या भेंड़ का गोश्त।
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गोष्ठ  : पुं० [सं० गो√Öस्था (ठहरना)+क] १.गौओं के रहने का स्थान। गोशाला। २. [गोष्ठी+अच्] एक ही प्रकार के पशुओं के रहने का स्थान। जैसे–अश्व-गोष्ठ। ३. एक प्रकार का प्राचीन श्राद्ध जो बहुत से लोग मिलकर करते थे। ४. परामर्श, सलाह, मशविरा। ५. दल। मंडली।
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गोष्ठ-शाला  : स्त्री० [ष० त०] वह स्थान जहाँ लोग मिलकर परामर्श आदि करते हों। सभा का भवन या स्थल।
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गोष्ठागार  : पुं० [गोष्ठ-आगार, ष० त०]=गोष्ठ-शाला।
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गोष्ठी  : स्त्री० [सं० गोष्ठ+ङीष्] १. छोटा गोष्ठ। २. परिचितों की मंडली या समुदाय। ३. औपचारिक रूप से होनेवाली ऐसी बैठक जिसमें किसी विषय पर विचार-विमर्श करने के लिए मित्र-मंडली के सदस्य भाग लेते हैं। जैसे–उद्यान गोष्ठी, सान्ध्य गोष्ठी। ४. इस प्रकार होनेवाला विचार-विमर्श। ५. एक प्रकार का एकांकी नाटक जिसमें ५ या ७ स्त्रियाँ और ९ या १॰. पुरुष हों।
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गोष्पद  : पुं० [सं० ष० त० सुट, नि० व गो√पद् (गति)+अच्] १. गौओं के रहने का स्थान। गोष्ठ। २. वह गड्ढा जो गीली जमीन पर गौ का खुर पड़ने से बनता हो। ३. प्रभास क्षेत्र के अन्तर्गत एक प्राचीन तीर्थ। ४. दे० ‘गोपद’।
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गोस  : पुं० [?] १. एक प्रकार का झाड़ जिसमें से गोंद निकलता है। २. तड़का। प्रभात। पुं० [फा० गोस] १. कान। २. जहाज के रुख इस प्रकार कुल टेढ़ा करना कि उसे ठीक प्रकार से हवा लगे। (लश०)
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गोसई  : स्त्री० [देश०] कपास के पौधों का एक रोग जिसके कारण उनमें फूल नहीं लगते।
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गोसठ  : स्त्री० =गोष्ठी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गोसमावल  : पुं० =गोशमावल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोसली  : स्त्री० दे० ‘गोधूलि’।
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गोसल्ल  : पुं० [अ० गुस्ल] स्नान। उदाहरण–करि गोसल्ल पवित्र होइ चिन्त्यौ रहमानम्।–चंदवरदाई।
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गोसव  : पुं० [सं० गोसू (हिंसा)+अप् (आधारे)] गोमेध-यज्ञ।
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गोसहस्री  : स्त्री० [गो-सहस्र, ष० त० +अच्-ङीष्] ज्येष्ठ और कार्तिक मासों की अमावास्याएँ।
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गोसा  : पुं० [सं० गो] उपला। कंड़ा पुं० =गोशा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोसाई  : पुं० [सं० गोस्वामी] १. उत्तर भारत की एक जाति जो गृहस्थ होने पर भी प्राय गेरुए वस्त्र पहनती हैं (कदाचित ऐसे त्यागियों के वंशज जो फिर गृहस्थ आश्रम में आ गये थे)। २. साधु-सन्यासियों और त्यागियों के लिए सम्बोधन। ३. जितेंद्रिय। ४. मालिक। स्वामी। ५. ईश्वर। वि० बड़ा। श्रेष्ठ।
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गोसाली  : स्त्री० [फा० गोशा] विपरीत दिशा में चलनेवाली हवा जो जहाज के मार्ग में बाधक होती हैं। (लश०)
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गोसी  : स्त्री० [देश०] समुद्र में चलनेवाली एक प्रकार की नाव जिसमें कई मस्तूल होते हैं।
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गोसी-परवान  : पुं० [देश०] जहाज के मस्तूल में पाल के ऊपरी छोर को हटाने-बढ़ाने के लिए लगाया जानेवाला धातु का लंबा छड़।
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गोसैयाँ  : पुं० [सं० गोस्वामी, हिं० गोसाई] १. गौओं का स्वामी। गोस्वामी। २. मालिक। स्वामी। ३. ईश्वर। प्रभु।
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गोस्तना  : स्त्री० [ब० स० टाप्] द्राक्षा। दाख। मुनक्का।
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गोह  : स्त्री० [सं० गोधा] छिपकली की जाति का एक बड़ा जंगली (लगभग डेढ़ फुट लंबा) जंतु जिसकी फुफकार विषैली होती हैं।
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गोहटा  : पुं० [हिं० गोह+टा (प्रत्य०)] गोह का बच्चा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोहन  : पुं० [?] १. संगी। साथी। २. संग। साथ। क्रि० वि० संग में। साथ-साथ। उदाहरण–और तोहि गोहन झाँझ मँजीरा।–जायसी।
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गोहनियाँ  : पुं० [हिं० गोहन+इया (प्रत्य)] संगी। साथी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोहने  : क्रि० वि० [हिं० गोहन] साथ में। संग मिलाकर। उदाहरण–गोहनै गुपाल फिरूँ ऐसी आवत मन में।–मीराँ।
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गोहर  : पुं० [सं० गोधा] बिसखोपरा नामक जंतु।
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गोहरा  : पुं० [हिं० गो+ईल्ल या गोहल्ल] [स्त्री० अल्पा० गोहरी] गोबर पाथ कर धूप में सुखाया हुआ उसका गोलाकार पिंड जो ईधन का काम देता है। उपला। कंडा।
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गोहराना  : अ० [हिं० गोहार] १. पुकारना। बुलाना। आवाज देना। २. जोर से चिल्लाना। उदाहरण–धरु-धरु मारु मारु गोहरावहिं।–तुलसी।
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गोहरोरा  : पुं० [हिं० गोहरी+ओरा (प्रत्य)] १. गोहरों अर्थात् उपलों या कंडो का ढेर। २. वह स्थान जहाँ उक्त प्रकार का ढेर लगा रहता है।
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गोहलोत  : पुं० [गोह (नाम)] =गहलौत (क्षत्रिय का वर्ग)।
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गोहानी  : स्त्री० दे० ‘गोइंड़’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोहार  : स्त्री० [सं० गो+हार (हरण)] १. प्राचीन भारत में वह चिल्लाहट या पुकार जो अपनी गौओं के छिन जाने या लुटेरों द्वारा लुट जाने पर मचाई जाती थी। २. कष्ट, संकट, हानि आदि के समय अपनी रक्षा या सहायता के लिए मचाई जानेवाली पुकार। मुहावरा–गोहार मारना=सहायता के लिए पुकार मचाना। गोहार लड़ना–पहलवानों आदि का अखाड़ें में उतरकर तथा दूसरे पहलवानों आदि को ललकार कर उनसे लड़ना। ३. चिल्लाकर लोगों को इकट्ठा होने के लिए पुकारना। चिल्लाहट। ४. शोर। हल्ला।
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गोहारी  : स्त्री० [हिं० गोहार] १. गोहार। २. किसी की क्षति पूरी करने के लिए दिया जानेवाला धन। (लश०) ३. बन्दरगाह में उचित से अधिक समय तक ठहरने के बदले में दिया जानेवाला धन। (लश०)
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गोही  : स्त्री० [सं० गोपन] १. दुराव। छिपाव। २. गुप्त या छिपी हुई बात-चीत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) स्त्री० [?] फलों की गुठली या बीज।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोहुवन  : पुं० =गेहुँअन। (साँप)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गोहूँ  : पुं० =गेहूँ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौं  : स्त्री० [सं० गम्, प्रा० गवँ] १. अपने स्वार्थ या हित के साधन की प्रबल इच्छा। प्रयोजन। मतलब। जैसे–वह अपनी गौं को आवेगा। पद–गौं का यार-मतलबी। स्वार्थी। मुहावरा-गौं गाँठना या निकालना अपना मतलब निकालना। स्वार्थ साधन करना। गौं पड़ना-मतलब होना। २. प्रयोजन, स्वार्थ आदि सिद्ध होने का उपयुक्त समय। उदाहरण–समय सयानी कीन्ही जैसी आई गौं परी।–तुलसी। मुहावरा–गौं ताकनास्वार्थ साधने के लिए उपयुक्त अवसर की ताक में रहना। ३. ढंग। ढब। ४. तरह। प्रकार। उदाहरण–भोग करौ जोई गौं–सूर। ५. पार्श्व। पक्ष।
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गौ  : स्त्री० [सं० गो] १. गाय। गैया। २. रहस्य संप्रदाय में, (क) मन की वृत्ति। (ख) आत्मा और (ग) इंद्रियाँ तथा मन। अ० हिं० ‘गया’ का स्थानिक रूप। उदाहरण–अलपै लाभ मूलगौ खाई।–कबीर।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गौख  : पुं० =गौखा (गवाक्ष)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौखा  : पुं० [सं० गवाक्ष] १. छोटी खिड़की। २. आला। ताखा। ३. देहाती मकानों में दरवाजे के पास का छोटा दालान या बैठक। पुं० [हिं० गौ-गाय] १. गाय या बैल का चमड़ा। २. गावदी। मूर्ख।
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गौखी  : स्त्री० [हिं० गौखा] १. गाय या बैल की खाल काबना हुआ जूता। २. जूता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौंगा  : पुं० [अ०] १. सोर। गुल-गपाड़ा। हल्ला। २. अफवाह। जनश्रुति।
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गौंच  : स्त्री० कौंछ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौचरी  : स्त्री० [हिं० गौ+चरना] मध्ययुग में, वह कर जो जमींददार अपने खेतों में गौएँ आदि चरानेवाले किसानों,चरवाहों आदि से वसूल करता था।
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गौंजिक  : पुं० [सं० गुञ्जा+ठक्-इक] १. जौहरी। २. सुनार। वि० गुंजा या घुँघची से संबंध रखनेवाला।
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गौंट  : पुं० [?] एक प्रकार का छोटा वृक्ष जिसकी लकड़ी बहुत कड़ी होती हैं।
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गौंटा  : पुं० [हिं० गाँव+टा (प्रत्य)] १. छोटा गाँव। २. गाँव से सब लोगों से लिया जानेवाला चन्दा। बेहरी। ३. गाँव की गली या पगडंडी। ४. बरात के घर लौट आने पर गाँव के लोगों को दिया जानेवाला दान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौड़  : पुं० [सं० Öगुड् (रक्षण)+घञ्] १. वंग देश का वह प्राचीन विभाग जो किसी के मत से मध्य बंगाल से उड़ीसा की उत्तरी सीमा तक और किसी के मत के वर्तमान बर्दवान के आस-पास था। २. उक्त देश का निवासी। ३. पुराणानुसार ब्राह्मणों का एक वर्ग जिसके अन्तर्गत सारस्वत, कान्यकुब्ज, उत्कल, मैथिल और गौड़ ये पाँच भेद हैं और इसी लिए जिन्हें पंच गौंड़ भी कहते हैं। ४. उक्त वर्ग के अंतर्गत ब्रह्मणों की एक जाति जो दिल्ली के आस-पास तथा राजपूताने में रहती है। ५. राजपूतों के ३६ कुलों या वर्गों में से एक। ६. कायस्थों की एक उपजाति। ७. सम्पूर्ण जाति का एक राग जिसमें सब शुद्ध स्वर लगते हैं और जो तीसरे पहर तथा संध्या के समय गाया जाता है।
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गौड़-नट  : पुं० [ब० स०] गौंड़ और नट के योग से बना हुआ एक संकर राग (संगीत)।
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गौड़-पाद  : पुं० [ब० स०] स्वामी शंकराचार्य के गुरु के गुरु का नाम।
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गौंड़-सारंग  : पुं० [ब० स०] गौंड़ और सारंग के योग से बना हुआ एक संकर राग जो दिन के तीसरे पहर में गाया जाता है।
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गौड़िक  : वि० [सं० गुड़+ठक्-इक] १. गुड़-संबंधी। २. गुड़ का बना हुआ। ३. जिसमें गुड़ मिला हुआ हो। पुं० १. ईख। २. गुड़ से बनी हुई शराब।
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गौड़िया  : वि० पुं० =गौड़ीय।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौंड़ी  : स्त्री० [सं० गुड़+अण्-ङीप्] १. गुड़ को सड़ाकर बनाई हुई शराब २. काव्य में एक प्रकार की रीत या वृत्ति जो ओज गुण प्रधान मानी जाती है तथा जिसमें द्वित्व, टवर्गीय, संयुक्त आदि वर्ण तथा लंबे-लंबे समास अधिक होते हैं। ३. संध्या के समय तथा रात के पहले पहर में गाई जानेवाली सम्पूर्ण जाति की एक रागिनी।
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गौंड़ीय  : वि० [सं० गौड़+छ–ईय] १. गौड़ संबंधी देश। गौड़ देश का। २. (साहित्यिक रचना) जिसमें गौड़ी वृत्ति के तत्त्व हों। पुं० चैतन्य महाप्रभु का चलाया हुआ एक प्रसिद्ध वैष्णव संप्रदाय। स्त्री० गौड़ देश की बोली या भाषा।
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गौड़ेश्वर  : पुं० [गौड़-ईश्वर, ष० त०] महात्मा कृष्ण चैतन्य जिन्हें गौराग महाप्रभु भी कहते हैं।
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गौण  : वि० [सं० गुण+अण्] १. जो किसी की तुलना में महत्व, मान आदि के विचार से कुछ घटकर हो। जो प्रधान या मुख्य न हो। २. (शब्द का अर्थ) जो मुख्य या मूल अर्थ से भिन्न हो। लाक्षाणिक (अर्थ)। ३. बहुत ही सामान्य रूप से पूरक या सहायक बनने या होनेवाला।
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गौण-चान्द्र  : पुं० [कर्म० स०] वह चांद्र मास जिसका आरंभ कृष्ण प्रतिपदा से माना जाता है।
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गौणिक  : वि० [सं० गुण+ठक्-इक] १. गुण-संबंधी। गुण या गुणों का। जैसे–पदार्थों की गौणिक समानता। २. सत्त्व रज और तम इन तीनों गुणों से संबंध रखनेवाला। ३. गुणवान्। गुणी।
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गौणी  : स्त्री० [सं० गौण+ङीष्] साहित्य में अस्सी प्रकार की लक्षणाओं में से एक जिसमें किसी पद का अर्थ केवल गुण, रूप आदि के सादृश्यवाले (उसके कार्य, कारण या अंगांगी भाववाले संबंध से भिन्न) तत्त्व से निकलता है। जैसे–यदि कहा जाए कि देवदत्त सिंह है तो शब्दार्थ के विचार से होना असंभव है, पर समझनेवाला लक्षणा के द्वारा इससे यह समझता है कि देवदत्त सिंह के समान बलवान् या पराक्रमी है। वि० सं० गौण का स्त्री रूप। (क्व०)।
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गौतम  : पुं० [सं० गोतम+अण्] १. गोतम ऋषि के वंशज। २. पुराणों आदि के अनुसार एक ऋषि जिन्होंने अपनी स्त्री अहिल्ला को इन्द्र के साथ अनुचित संबंध के कारण शाप देकर पत्थर की तरह जड़ कर दिया था और जिसका उद्धार भगवान् श्री रामचन्द्र ने किया था। ३. न्यायशास्त्र के प्रसिद्ध आचार्य और प्रणेता एक ऋषि जो ईसा से प्रायः ६॰॰ वर्ष पहले हुए थे। ४. बौद्ध धर्म के प्रवर्तक बुद्धदेव का एक नाम। ५. एक स्मृतिकार ऋषि। ६. कृपाचार्य। ७. सप्तर्षि मंडल में का एक तारा। ८. नासिक के पास का वह पर्वत जिससे गोदावरी नदी निकलती है। ९. क्षत्रियों का एक वंश या वर्ग। १॰. भूमिहारों का एक वंश या वर्ग। ११. एक प्रकार का विष।
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गौतमी  : स्त्री० [सं० गौतम+ङीष्] १. गोतम ऋषि की पत्नी अहल्ला। २. कृपाचार्य की स्त्री। ३. गोदावरी नदी। ४. गौतम ऋषि की बनाई हुई स्मृति। ५. दुर्गा।
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गौद (ा)  : पुं० दे० ‘घौद’।
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गौदान  : पुं० =गोदान।
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गौदुमा  : वि०=गावदुम।
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गौन  : पुं० [देश०] खेत में वह छायादार स्थान जहाँ बैल बाँधे जाते हैं। पुं०=गाउन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [सं० गमन] १. जाना। २. गति। पैठ। ३. प्रवेश।
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गौनई  : स्त्री० [सं० गायन ] गायन। संगीत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौनर्द  : पुं० [गोनर्द+अण्] पतंजलि ऋषि जो गोनर्द देश के थे।
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गौनहर  : स्त्री० गौनहारी।
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गौनहाई  : स्त्री० [हिं० गौना+हाई (प्रत्यय)] वह वधू जो गौना होने के बाद ससुराल के पहले-पहल आई हो।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौनहार  : स्त्री० [हिं० गौन+हार (प्रत्य०)] १. वह स्त्री जो दुलहिन का गौना होने पर उसके साथ ससुराल जाए। २. दे० ‘गौनहारी’।
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गौनहारिन  : स्त्री०==गौनहारी।
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गौनहारी  : स्त्री० [हिं० गावना=गाना+हारी (प्रत्य)] निम्न कोटि की गानेवाली स्त्रियों का एक वर्गया समाज। इस वर्ग की स्त्रियाँ प्रायः टोली बनाकर गाती और वेश्यावृति भी करती हैं।
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गौना  : पुं० [सम० गमन] विवाह के बाद की एक रसम जिसमें वर अपनी ससुराल से वधू को पहले पहल अपने साथ अपने घर लाता है। द्विरागमन। मुकलावा। क्रि० प्र०–देना।–माँगना।–लाना। पुं० [स्त्री० गौनी] बारहसिंघा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौपिक  : वि० [सं० गोपिका+अण्] गोपी संबंधी। पुं० गोपी का वशज या संतान।
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गौपुच्छ  : वि० [सं० गोपुच्छ+अण्] गाय की पूँछ के समान। गावदुम।
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गौप्तेय  : पुं० [सं० गुप्ता+ढक्-एय] गुप्त जाति नामवाले (अर्थात् वैश्य) का पुत्र।
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गौमुख  : पुं० =गोमुख।
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गौमुखी  : स्त्री०=गोमुखी।
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गौमेद  : पुं० =गोमेद।
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गौर  : वि० [सं० गु (जाना)+र नि० सिद्ध] १ .गौर वर्ण का। गोरे रंग का। गोरा। २. उज्ज्वल। स्वच्छ। ३. श्वेत। सफेद। पुं० १. सफेद या गोरा रंग। २. लाल रंग। ३. पीला रंग। ४. चंद्रमा। ५. सोना। स्वर्ण। ६. प्राचीन काल का एक प्रकार का बहुत छोटा मान जो तीन सरसों के बराबर होता था। ७. एक प्रकार का हिरन। ८. केसर। ९. धौ का पेड़। १॰. सफेद सरसों। ११. बंगाल के प्रसिद्ध वैष्णव महापुरुष चैतन्य महाप्रभु का एक नाम जो उनके शरीर के गौर वर्ण के कारण पड़ा था। १२. कैलास के उत्तर का एक पर्वत। १३. पद्य केसर। १४. बृहस्पति ग्रह का नाम। स्त्री० [सं० गौरी] हिंदुओं में कहीं कहीं प्रचलित एक प्रथा जिसमें विवाह निश्चित हो जाने पर कन्या के संबंधी उसकी पूजा करते हैं। पुं० [?] ऊँचे कद का एक सुन्दर शाकाहारी जंगली पशु जो भूरे रंग का होता है। पुं० दे० ‘गौड़’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं० [अ०] १. सोच-विचार। चिंतन। २. खयाल। ध्यान।
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गौर-ग्रीण  : पुं० [ब० स०] पुराणानुसार एक देश जो कूर्म्म विभाग के मध्य में है।
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गौर-तलब  : वि० [अ०] (विषय) जिस पर विचार करना आवश्यक हो। विचारणीय।
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गौर-मदाइन  : पुं० [?] इंद्रधनुष (बुदेल०)।
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गौर-शाक  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का महुआ और उसका फल।
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गौर-शालि  : पुं० [कर्म० स०] एक प्रकार का शालि धान्य।
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गौर-सुवर्ण  : पुं० [ब० स०] एक प्रकार का साग जिसके पत्ते छोटे, सुनहले और सुगंधित होते हैं।
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गौरक्ष्य  : पुं० [सं० गोरक्ष+ष्यञ्] गौएं पालने तथा उनकी रक्षा करने का काम। गो-रक्षण।
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गौरंड  : पुं० [सं० गौरांग] गोरों अर्थात् अंगरेजों का देश। विलायत। उदाहरण–कला कलित गोरंड देस के दिव्य बनाए।–रत्नाकर।
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गौरता  : स्त्री० [सं० गौर+तल्+टाप्] १. गौर अर्थात् गोरे होने की अवस्था या भाव। गोराई। गोरापन। २. सफेदी।
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गौरव  : पुं० [सं० गुरु+अण्] १. गुरु अर्थात् भारी होने की अवस्था या भाव। गुरुता। भारीपन। २. गुरु अर्थात् बड़े होने की अवस्था या भाव। बड़प्पन। महत्त्व। ३. आदर। इज्जत। सम्मान। ४. अम्युत्थान। उत्कर्ष। उन्नति। ५. गंभीरता। गहराई।
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गौरवा  : पुं० [सं० गौर, गौरववत्] गौरैया का नर। चिड़ा पक्षी। उदाहरण–जाहि बया गहिं कंठ लवा। करे मेराउ सोई गौरवा।–जायसी। वि० गौरवयुक्त।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गौरवान्वित  : वि० [गौरव-अन्वित, तृ० त०] गौरव या महिमा से युक्त। सम्मानित।
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गौरा  : स्त्री० [सं० गौर+टाप्] १. गोरे रंग की स्त्री। २. पार्वती। गौरी। ३. हल्दी। ४. संगीत में एक प्रकार की रागिनी।
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गौरांग  : पुं० [गौर-अंग, ब० स०] १. विष्णु। २. श्रीकृष्ण। ३. चैतन्य महाप्रभु। वि० [स्त्री० गौरांगी] गोरे अंग या शरीरवाला। जैसे–अमेरिका या यूरोप के निवासी।
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गौरार्द्रक  : पुं० [गौर-आर्द्रक, कर्म० स०] अफीम, संखिया, कनेर आदि स्थावर विष।
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गौरावित  : वि० [सं० गौरव+इतच्] १. जिसका गौरव हुआ हो। २. जो गौरव से युक्त हो। सम्मानित।
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गौरास्य  : पुं० [गौर-आस्य, ब० स०] एक प्रकार का बंदर जिसके शरीर का रंग काला और मुँह गोरे रंग का होता है।
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गौराहिक  : पुं० [गौर-अहि, कर्म० स०+कन्] एक प्रकार का साँप।
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गौरि  : पुं० [सं० गौर+इञ् ] आंगिरस ऋषि। स्त्री०=गौरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौरिक  : वि० [ सं० गौर+ठन्-अक] गोरा। पुं० सफेद सरसों।
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गौरिका  : स्त्री० [सं० गौरी+कन्-टाप्,ह्वस्व] आठ वर्ष की कन्या। गौरी।
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गौरिया  : पुं० [?] १. मिट्टी का बना हुआ छोटा हुक्का। २. एक प्रकार का मोटा कपड़ा। स्त्री० दे० ‘गौरैया’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौरिल  : पुं० [सं० गौर+इलच्] १. सफेद सरसों। २. लोहे का चूरा।
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गौरी  : स्त्री० [सं० गौर+ङीष्] १. गोरे रंग की स्त्री। २. पार्वती। ३. वरुण की पत्नी। ४. आठ साल की कन्या। ५. तुलसी। ६. मल्लिका। ७. चमेली। ८. हलदी। ९. दारु हल्दी। १॰. मंजीठ। ११. सफेद दूब। १२. संध्या समय गाई जानेवाली संपूर्ण राग की एक रागिनी। १३.चित्रों आदि में दिखाई जानेवाली उज्ज्वलता या प्रकाश। १४. भारत (अखंड) की पश्चिमोत्तर सीमा पर बहनेवाली एक प्राचीन नदी। स्त्री० दे० ‘गौड़ी’।
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गौरी बेंत  : पुं० [?] एक प्रकार का बेंत जिसे पक्का बेंत भी कहते हैं।
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गौरी-चंदन  : पुं० [मध्य० स०] लाल चंदन।
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गौरी-पुष्प  : पुं० [ब० स०] प्रियंगु नाम का वृक्ष।
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गौरी-ललित  : पुं० [उपमि० स०] हरताल।
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गौरी-शंकर  : पुं० [मध्य० स०] १. शिव का वह रूप जिसमें उनके साथ गौरी अर्थात् पार्वती भी रहती हैं। २. हिमालय की एक बहुत ऊँची चोटी।
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गौरीज  : पुं० [सं० गौरीजन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] १. गौरी के पुत्र कार्तिकेय और गणेश। २. अभ्रक। वि० गौरी से उत्पन्न।
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गौरीश  : पुं० [गौरी-ईष, ष० त०] शिव।
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गौरीसर  : पुं० [?] हंसराज नाम की बूटी। सँमल पत्ती।
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गौरुतल्पिक  : पुं० [सं० गुरु-तल्प+ठक्-इक] वह शिष्य जिसका गुरु पत्नी से अनुचित संबंध हों।
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गौरैया  : स्त्री० [?] १. काले रंग का एक प्रकार का जल पक्षी जिसका सिर भूरा और गरदन सफेद होती है। २. हर जगह घरों में रहनेवाली एक प्रसिद्ध छोटी चिड़िया। चिड़ी। पुं० मिट्टी का बना हुआ एक प्रकार का छोटा हुक्का।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौलक्षणिक  : पुं० [सं० गो-लक्षण, ष० त० +ठक्-इक] गाय-बैलों के भले-बुरे लक्षण पहचाननेवाला।
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गौलना  : अ० [?] अनुभूत होना।
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गौला  : स्त्री० गौरी। (पार्वती)।
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गौलिक  : पुं० [सं० गुड़+ठक्-इक, ‘ड’ को ‘ल’] १. मुष्कक नामक वृक्ष। २. एक प्रकार का लोध।
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गौल्मिक  : पुं० [सं० गुल्म+ठक्-इक] सैनिकों के गुल्म का नायक। वि० गुल्म-संबंधी।
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गौशाला  : पुं०==गोशाला।
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गौश्रृंग  : पुं० [सं० गोशृंग+अण्] एक प्रकार का साम गान।
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गौषी  : स्त्री० [सं० गवाक्ष] खिड़की।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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गौंस  : स्त्री० =गौं।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौसम  : पुं० [हिं० कोसम] १. कोसम नामक वृक्ष और उसका फल। २. उक्त पेड़ की लकड़ी।
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गौहर  : पुं० [फा०] मोती। पुं० [सं० गोष्ठ] गोशाला। गोठ।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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गौंहाँ  : वि० [हिं० गाँव+हा (प्रत्य)] गाँव का। गाँव-संबंधी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्याति  : स्त्री० १=ज्ञाति। २=जाति।
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ग्यान  : पुं० =ज्ञान।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्यांबिर  : पुं० [देश०] कीकर की जाति का एक वृक्ष जिसकी लकड़ियों से पपडियाँ खैर बनाया जाता हैं।
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ग्यारस  : स्त्री० [हिं० ग्यारह] चांद्र मास के कृष्ण या शुक्ल की ग्यारहवीं तिथि। एकादशी।
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ग्यारह  : वि.[सं०एकादशन्, पा० पै० एकादस, एकारस, अर्धमा, एक्कारस, प्रा० अप, एग्गारह, एआरह, गुं० अगिआर,सिं० यारहं, पं० ग्यासँ; बं० उ० एगार] जो गिनती में दस और एक हो। पुं० उक्त अंक की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है-११।
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ग्रंथ  : पुं० [सं० Ö√ग्रंथ् (रचना, बाँधना)+घञ्] १. गाँठ। ग्रंथि। २. किताब या पुस्तक जिसके पन्नें या पृष्ठ पहले गाँठ बाँधकर रखे जाते थे। ३. धार्मिक या साहित्यिक दृष्टि से कोई महत्त्वपूर्ण बड़ी पुस्तक। जैसे–गुरु ग्रंथ साहब। ४. गाँठ में का अर्थात् अपने पास का धन। जमा, पूँजी।
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ग्रंथ-कर्त्ता(र्त्तृ)  : पुं० [ष० त०] ग्रंथ या पुस्तक का रचयिता। लेखक।
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ग्रंथ-कार  : पुं० [ग्रंथ√कृ (करना)+अण्, उप० स०] दे० ‘ग्रंथ-कर्त्ता’।
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ग्रंथ-चुंबक  : पुं० [ष० त०] वह जो ग्रंथो या पुस्तकों को यों ही सरसरी तौर पर देख जाता हो, उसमें प्रतिपादित विषयों का अध्ययन न करता हो।
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ग्रंथ-चुंबन  : पुं० [ष० त०] ग्रंथ या पुस्तक यों ही सरसरी तौर पर देख जाना, उसमें प्रतिपादित विषय का ठीक ज्ञान प्राप्त न करना।
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ग्रंथ-माला  : स्त्री० [ष० त०] एक ही स्थान से समय-समय पर प्रकाशित होनेवाली एक ही प्रकार अथवा वर्ग की अनेक पुस्तकों की अवली या श्रृंखला।
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ग्रंथ-संधि  : स्त्री० [ष० त०] ग्रंथ का कोई विभाग। जैसे–सर्ग, परिच्छेद, अध्याय, अंक, पर्ञ्व आदि।
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ग्रंथ-साहब  : पुं० [हिं० ग्रंथ+साहब] सिक्खों का धर्म-ग्रंथ जिसमें नानक कबीर आदि गुरुओं की वाणियाँ संगृहीत हैं।
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ग्रंथन  : पुं० [सं०√Öग्रंथ+ल्युट्-अन] १. गाँठ लगाकर जो़ड़ना, बाँधना या मिलाना। २. गूँथना। ३. ग्रंथ या पुस्तक की रचना करना। ग्रंथ बनाना।
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ग्रथन  : पुं० [सं० ग्रन्थन] [भू० कृ० ग्रन्थित] १. ग्रंथि या गाँठ लगाकर बाँधना। २. ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत करना। रचना। ३. गूथना। पिरोना।
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ग्रंथना  : स०==गूथना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्रंथालय  : पुं० [ग्रंथ-आलय,ष० त०] १. वह स्थान जहाँ पुस्तकें रखी जाती हों। २. वह कमरा या घर जिसमें लोगो के पढ़ने के लिए पुस्तकें रखी गई हों। पुस्तकालय।
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ग्रंथावलि (ली)  : स्त्री० [ग्रंथ-आवलि (ली) ष० त०] ग्रंथमाला।
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ग्रंथि  : स्त्री० [सं० Öग्रंथ+इन्] १. धागें, रस्सी आदि में पड़ने या डाली जानेवाली गाँठ। २. गाँठ के आकार की कोई कड़ी गोलाकार रचना या वस्तु। ३.वायु आदि के विकार कारण शरीर के किसी अंग में बननेवाली गाँठ। ४. शरीर के अंदर कोषाणुओं के योग से बनी हुई कई प्रकार की गाँठों में से हर एक। विशेष–ये ग्रंथियाँ शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में अनेक आकार-प्रकार की होती हैं और इनमें से ऐसे तरल तत्त्व या रस निकलते हैं जो शरीर की रक्षा और वृद्धि के लिए उपयोगी होते या अनुपयोगी तत्त्वों को शरीर के बाहर निकालते हैं। जैसे–बीज ग्रंथि, लस ग्रंथि आदि (दे०) ५. कोई बाँधने वाली चीज। बंधन। ६. आध्यात्मिक या धार्मिक क्षेत्र में वे बातें जो मनुष्य को इस संसार के साथ बाँधे रहती हैं और उसे आध्यात्मिक दिशा में जाने से रोकती है। ७. कुटिलता। टेढ़ापन। ८. आलू। ९. पिपरामूल। १॰. भद्रमुस्तक। ११. ग्रंथिपर्णी। गठिवन।
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ग्रंथि-दूर्व्वा  : स्त्री० [मध्य० स०] गाडर दूब।
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ग्रंथि-पत्र  : पुं० [ब० स०] चोरक नामक गंध-द्रव्य।
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ग्रंथि-पर्ण  : पुं० [ब० स०] गठिवन का पेड़।
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ग्रंथि-फल  : पुं० [ब० स०] १. कैथ का पेड़ या फल। २. मैनफल।
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ग्रंथि-बंधन  : पुं० [ष० त०] १. गाँठ बाँधकर अथवा ऐसी ही और किसी क्रिया से दो या अधिक चीजें एक साथ करना या लगाना। २. विवाह के समय वर और कन्या के कपड़ों के पल्लों को गाँठ देकर आपस में बाँधने की क्रिया जो पारस्परिक घनिष्ठ, संबंध स्थापित करने की सूचक होती हैं। गँठ-बंधन।
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ग्रंथि-मूल  : पुं० [ब० स०] ऐसी वनस्पतियाँ जो गाँठों के रूप में होती हैं। कंद। जैसे–गाजर, मूली, शलजम आदि।
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ग्रंथि-मोचक  : पुं० [ष० त०] गिरहकट। जेब-कतरा।
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ग्रंथिक  : पुं० [सं० ग्रंथ+ठक्-इक] १. पिपरामूल। २. ग्रंथिपर्णी। गठिवन। ३. गुग्गुल। ४. करील। ५. ज्योतिषी। ६. सहदेव पाण्डव। का वह नाम जो उन्होंने अज्ञातवास के समय धारण किया था।
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ग्रंथित  : भू० कृ० [सं० ग्रंथ+इतच्] १. जिसमें गाँठ लगी हो। २. गाँठ लगाकर बाँधा हुआ। ३. गूथा हुआ।
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ग्रथित  : भू० कृ० [सं० Öग्रन्थ् (गूथना)+क्त] १. जिसका ग्रथन हुआ हो। गठा या बँधा हुआ। २. बनाया या रचा हुआ। रचित। ३. गूथा या पिरोया हुआ। ४. जिसमें जमने के कारण गाँठें पड़ गई हों। ५. दबाया या जीता हुआ। पुं० दे० ‘अर्बुद’।
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ग्रंथिपर्णी  : स्त्री० [सं० ग्रंथिपर्ण+ङीष्] गाडर दूब।
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ग्रंथिल  : वि० [सं० ग्रंथि+लच्] जिसमें गाँठ या गाँठे हों। गाँठदार। पुं० १. करील का वृक्ष। २. पिपरामूल। ३. अदरक। आदी। ४. विकंकत वृक्ष। ५. चौलाई का साग। ६. आलू या ऐसा ही और कोई गोल कंद। ७.चोरक नामक गंध-द्रव्य।
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ग्रंथिला  : स्त्री० [सं० ग्रन्थिल+टाप्] १. गाडर दूब। २. माला दूब। ३. भद्रमुस्तक। भद्रमोथा।
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ग्रंथीक  : पुं० [सं०=ग्रन्थिक, पृषो० सिद्धि] पिपरामूल।
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ग्रब्ब  : पुं० =गर्व।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्रभ-मोक्ष  : पुं० [ष० त०] प्रसव।
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ग्रमाधान  : पुं० [ग्राम-आधान, ष० त०] आखेट। मृगया। शिकार।
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ग्रंस  : पुं० [सं० ग्रंथि-कुटिलता] १. कुटिलता। टेढ़ापन। २. कुटिलता या छलकपट से भरा हुआ आचरण या व्यवहार। ३. मन में रखा जानेवाला द्वेष। ४. दे० ‘गाँसी’।
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ग्रसन  : पुं० [सं०√Öग्रस् (खाना)+ल्युट-अन] १.ग्रसने या पकड़ने की क्रिया या भाव। कपड़। २. खाना या निगलना। भक्षण। ३. बुरी तरह से अपने चंगुल में फँसाना। ४. कौर। ग्रास। ५. ग्रहण। ६. फलित ज्योति में दस प्रकार के ग्रहणों में से एक खंड ग्रहण जिसके फलस्वरूप अभिमानियों का पतन या नाश होता हैं।
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ग्रसना  : स० [सं० ग्रसन] १. इस प्रकार किसीको पकड़ना कि वह जल्दी छूटने, निकलने या भागने न पावे। अच्छी तरह से दबाते हुए पकड़ना। २. काम निकालने के लिए बहुत तंग करना या पीछे पड़ना।
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ग्रसपति  : पुं० [ष० त०] प्राचीन वास्तु-कला में मनुष्य के मुख की वे आकृतियाँ जो एक पंक्ति में किसी पत्थर में खुदी हुई हों।
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ग्रसित  : भू० क=ग्रस्त।
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ग्रसिष्णु  : वि० [सं० Öग्रस्+इष्णुच्] १. जो ग्रसन करने पर उद्यत हो या उसका अभ्यस्त हो। २. निगलने या हड़पनेवाला। पुं० परमात्मा।
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ग्रस्त  : भू० कृ० [सं०√Öग्रस्+क्त] १. खाया या निगला हुआ। २. ग्रसा या पकड़ा हुआ। जैसे–ग्रह-ग्रस्त। ३. कष्ट, रोग आदि से युक्त। पीड़ित। जैसे–ज्वर-ग्रस्त। ४. किसी के नियंत्रण में आया हुआ।
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ग्रस्ता(स्तृ)  : वि० [सं० Öग्रस्+तृच्] १. ग्रसन करने या पकड़नेवाला। २. भक्षक।
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ग्रस्तास्त  : वि० [सं० ग्रस्त-अस्त, कर्म० स०] (चंद्रमा या सूर्य) जो ग्रहण लगे रहने की दशा में ही अस्त हो जाए। पुं० ऐसा ग्रहण जो चंद्रमा या सूर्य के अस्त होने के समय तक न छूटा हो।
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ग्रस्ति  : स्त्री० [सं० Öग्रस्+क्तिन्] १. निगलने की क्रिया या भाव। २. ग्रसने या पकड़ने की अवस्था, क्रिया या भाव। ग्रास।
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ग्रस्तोदय  : पुं० [ग्रस्त-उदय, ष० त०] ऐसा ग्रहण जिसमें चंद्रमा या सूर्य ऐसी अवस्था में उदित हों कि उस पर ग्रहण लगा हुआ हों।
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ग्रस्य  : वि० [सं० Öग्रस्+यत्] १. जिसे खाया या निगला जा सके। २. जिसे ग्रसा जा सके। ग्रस्त होने का पात्र।
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ग्रह  : पुं० [सं० Öग्रह (ग्रहण करना)+अप्] १. ग्रहण करने, पकडने, लेने या वश में करने की क्रिया या भाव। २. [√ग्रह्+अच्] वह जो किसी को पकड़ता, वश में करता या प्रभावित करता हो। ३. वह आकाशस्थ पिंड जो किसी सौर जगत् के सूर्य की परिक्रमा करता हो। (प्लैनेट) जैसे–पृथ्वी, बुध, शुक्र आदि। विशेष–कुछ आकाशस्थ पिंड़ों का नाम ग्रह कदाचित इसलिए पड़ा था कि वे मनुष्य के भाग्यों को वश में रखने और प्रभावित करनेवाले माने जाते थे। ४. हमारे सौर जगत में चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु जो सूर्य की परिक्रमा करनेवाले पिंड माने गये थे और जिनमें स्वयं भूमि को भी सम्मिलित करके नौ ग्रहों की कल्पना की गयी थी। विशेष–आधुनिक ज्योतिषियों ने अनुसंधान करके दो-तीन और भी ऐसे छोटे तारों और तारा पुंजों का पता लगाया है जो हमारे सूर्य की परिक्रमा करते हैं, और इसीलिए जिनकी गिनती ग्रहों में होने लगी हैं। ५. उक्त नौ ग्रहों के आधार पर नौ की संख्या का सूचक शब्द। ६. राहु जो ग्रहण के समय चन्द्रमा अथवा सूर्य को ग्रसनेवाला माना गया है। ७. बालकों को होनेवाले अनेक प्रकार के छोटे-मोटे रोग जो पहले भूत-प्रेत आदि बाधा के फल समझे जाते थे। बाल-ग्रह। (देखें)।
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ग्रह-कल्लोल  : पुं० [स० त०] राहु नामक ग्रह।
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ग्रह-कुष्मांड  : पुं० [कर्म० स०] एक देव-योनि। (पुराण)।
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ग्रह-गोचर  : पुं० [ष० त०] दे० ‘गोचर’।
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ग्रह-ग्रस्त  : भू० कृ० [तृ० त०] जिस पर भूत-प्रेत आदि की बाधा हो।
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ग्रह-ग्रामणी  : पुं० [ष० त०] ग्रहों का स्वामी, सूर्य।
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ग्रह-चिंतक  : पुं० [ष० त०] ग्रहों की गति, स्थिति आदि का विचार करनेवाला व्यक्ति। ज्योतिषी।
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ग्रह-दशा  : स्त्री० [ष० त०] १. गोचर ग्रहों की स्थिति। २.ज्योतिष के अनुसार ग्रहों के किसी विशिष्ट स्थिति में होने के फलस्वरूप होने के फलस्वरूप मनुष्य की होनेवाली अवस्था (प्रायः कष्टप्रद या दुःखद अवस्था) ३. अभाग्य। दुर्भाग्य।
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ग्रह-दाय  : स्त्री० [ष० त०] फलित ज्योतिष में किसी की वह आयु जो उसके जन्म लेने के समय के ग्रहों की स्थिति के अनुसार निश्चित की जाती है।
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ग्रह-दुम  : पुं० [मध्य० स०] काकड़ासींगी।
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ग्रह-दृष्टि  : स्त्री० [ष० त०] फलित ज्योतिष में, जन्म कुंडली के विभिन्न घरों में स्थित ग्रहों का एक दूसरे पर पड़नेवाला प्रभाव। विशेष–शुभ ग्रह की दृष्टि का फल शुभ और अशुभ ग्रह की दृष्टि का फल अशुभ माना जाता है।
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ग्रह-नायक  : पुं० [ष० त०] सूर्य।
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ग्रह-पति  : पुं० [ष० त०] १. सूर्य। २. शनि। ३. आक या मदार का पौधा।
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ग्रह-पीड़ा  : स्त्री० [मध्य० स०] ग्रह-बाधा।
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ग्रह-बाधा  : स्त्री० [मध्य० स०] फलित ज्योतिष में ग्रहों की क्रूर दृष्टि या स्थिति के कारण होनेवाला भौतिक कष्ट या पीड़ा।
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ग्रह-मर्द  : पुं० [ष० त०]==ग्रह-युद्ध।
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ग्रह-मैत्री  : स्त्री० [ष० त०] वर और कन्या के स्वामियों की मित्रता या अनुकूलता जिसका विचार हिन्दुओं में विवाह के समय किया जाता है। (फलित ज्योतिष)
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ग्रह-यज्ञ  : पुं० [ष० त०] ग्रहों की उग्रता या कोप की शांति के लिए किया जानेवाला एक प्रकार का पूजन या यज्ञ।
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ग्रह-युति  : स्त्री० [स० ष० त०] एक राशि के एक ही अंश पर एक ही समय में दो या कई ग्रहों का एकत्र होना।
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ग्रह-युद्ध  : पुं० [ष० त०] सूर्य सिद्धांत के अनुसार बुध, बृहस्पति शुक्र शनि या मंगल में से किसी एक ग्रह का चंद्रमा के साथ अथवा उक्त ग्रहों में से किसी दो ग्रहों का एक साथ एक राशि के एक अंश पर इस प्रकार एकत्र होना कि उस पर ग्रहण लगा हुआ जान पड़े। इसका फल भयंकर कहा गया है।
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ग्रह-युद्धभ  : पुं० [ग्रह-युद्ध, ब० स०, ग्रहयुद्ध-भ, कर्म० स०] वह नक्षत्र जिस पर कोई दो ग्रह एक साथ एकत्र हों। ग्रह-युद्ध का केन्द्र।
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ग्रह-योग  : पुं० [ष० त०] ==ग्रहयुति।
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ग्रह-राज  : पुं० [ष० त०] १. सूर्य। २. चंद्रमा। ३. बृहस्पति।
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ग्रह-वर्ष  : पुं० [मध्य० स०] वह सारा समय जितने में कोई ग्रह अपनी सूर्य की एक परिक्रमा पूरी करता है। विशेष-ग्रहों की कक्षाओं के अलग-अलग विस्तारों के अनुसार ही यह वर्ष या समय छोटा या बड़ा होता है।
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ग्रह-विप्र  : पुं० [मध्य० स०] बंगाल और दक्षिण में होनेवाले एक प्रकार के ब्राह्मण जो कुछ विशिष्ट क्रियाओं से ग्रहों के शुभाशुभ फल बतलाते हैं। २. ग्रहों का फल तथा स्थिति बतलाने वाला ब्राह्मण। ३. ज्योतिषी।
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ग्रह-वेध  : पुं० [ष० त०] शास्त्रीय विधि से वेध (देंखे) करके ग्रहों की स्थिति आदि का ठीक पता लगाना।
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ग्रह-शांति  : स्त्री० [ष० त०] १. वह पूजन जो ग्रहों का प्रकोप शांत करने के उद्देश्य से किया जाता है। २. ग्रहों का प्रकोप शांत होने की अवस्था या भाव।
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ग्रह-श्रृंगाटक  : पुं० [ष० त०] बृहत्संहिता के अनुसार ग्रहों का एक प्रकार का योग जिसके फल अवस्थानुसार कभी शुभ और कभी अशुभ होते हैं।
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ग्रह-समागत  : पुं० [ष० त०] किसी राशि में चंद्रमा के साथ मंगल, बुध आदि ग्रहों का योग।
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ग्रह-स्वर  : पुं० [ष० त०] संगीत में वह स्वर जिससे किसी राग का आरंभ होता है।
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ग्रहक  : वि० [सं० ग्राहक] ग्रहण करनेवाला। पुं० १. ग्राहक। २. कैदी।
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ग्रहण  : पुं० [सं० ग्रह+ल्युट-अन] १. पकड़ने या लेने की क्रिया या भाव। २. कोई बात ठीक समझकर मान लेना। ३. अंगीकार या स्वीकार करना। ४. सूर्य या चंद्रमा पर क्रमशः चंद्रमा या पृथ्वी की छाया पड़ने की वह स्थिति जिसमें उन का कुछ अथवा पूरा बिंब अँधेरा या ज्योंति विहीन सा प्रतीत होने लगता है। (इक्लिप्स) ५. उक्त के आधार पर किसी वस्तु, व्यक्ति आदि की वह स्थिति जिसमें उसकी उज्ज्वलता, महत्व, मान आदि पर किसी प्रकार का धब्बा लगा हो। ६. ऐसी वस्तु जिसके कारण किसी की उज्ज्वलता, महत्व, मान आदि का बुरा प्रभाव पड़ता हो। ७. तात्पर्य। मतलब।
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ग्रहणा  : स० गहना। (पकड़ना)।
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ग्रहणांत  : पुं० [ग्रहण-अंत, ष० त०] अध्ययन का समाप्ति पर होना।
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ग्रहणि, ग्रहणी  : स्त्री० [सं० Öग्रह+अनि] [ग्रहणि+ङीष्] १. पक्वाशय और आमाशय के बीच की एक नाड़ी जो अग्नि या पित्त का प्रधान आधार मानी गयी है। (सुश्रुत) २. उक्त नाडी़ में विकार होने के कारण होनेवाली दस्तों की एक बीमारी। संग्रहणी।
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ग्रहणीय  : वि० [सं०√ग्रहग्रह+अनीयर] १. ग्रहण अर्थात् अंगीकार किये जाने के योग्य। २. नियम या विधि के रूप में माने जाने के योग्य।
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ग्रहनाश  : पुं० [सं० ग्रह√Öनश् (नष्ट होना)+णिच्+अण्, उप०स,] सतिवन नामक पेड़। वि० ग्रहों का प्रभाव नष्ट करनेवाला।
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ग्रहनेमि  : पुं० [ष० त०] १. चंद्रमा। २. चंद्रमा के मार्ग का वह भाग जो मूल और मृगशिरा नक्षत्रों के बीच में पड़ता है। ३. आकाश (डिं०)
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ग्रहा  : स्त्री० ग्रहिणी। उदाहरण–सुख्खं धामय तेज दीपक कला, तारुण्य लच्छी ग्रहा।–चन्द्रवरदाई।
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ग्रहागम  : पुं० [ग्रह-आगम, ष० त०] ग्रहों या भूत-प्रेतों आदि की कष्ट दायक बाधा होना।
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ग्रहाचार्य्य  : पुं० =ग्रहविप्र।
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ग्रहाधार  : पुं० [ग्रह-आधार, ष० त०] ध्रुव नक्षत्र।
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ग्रहाधीश  : पुं० [ग्रह-अधीश,ष० त०] सूर्य।
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ग्रहामय  : पुं० [ग्रह-आमय, मध्य० स०] ग्रहों या भूत-प्रेतों की बाधा के कारण होनेवाले रोग। (मिरगी, मूर्च्छा, आदि रोग इसी के अंतर्गत माने जाते हैं)।
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ग्रहावर्त  : पुं० [ग्रह-आवर्त, ब० स०] जन्मपत्री।
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ग्रहाश्रय  : पुं० [ग्रह-आश्रय, ष० त०]=ग्रहाधार।
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ग्रहाह्वय  : पुं० [सं० ग्रह-आह्रे (स्पर्धा)+श] भूतांकुश नामक पौधा।
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ग्रहिल  : वि० [सं० ग्रह+इलच्] १. जिसे किसी ने ग्रस्त या बुरी तरह से पकड़ा हो। २. जो किसी ग्रह या भूत-प्रेत की बाधा से पीड़ित हो। ३. दुराग्रही। हठी। ४. किसी विषय का अनुरागी या रसिक,
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ग्रहीत  : वि० दे० ‘गृहीत’।
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ग्रहीतव्य  : वि० [सं०√Öग्रहÖ√तव्यत्] दे० ‘गृहीतव्य’।
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ग्रहीता  : वि० [सं०√ग्रह-उपराहग,ष० त० ] दे० ‘गृहीता’।
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ग्रहोपराग  : पुं० [सं० ग्रह+यत्] ग्रहों को लगनेवाला ग्रहण।
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ग्रह्वा  : पुं० [सं० ग्रह+यत्] एक प्रकार का यज्ञपात्र। वि० ग्रह-संबंधी।
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ग्रा० गीत।  :
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ग्रांडील  : वि० [अँ० गैंड=विशाल] १. ऊँचे कद का। २. लंबा, चौड़ा और ऊँचा। ३. खूब मोटे-ताजे शरीरवाला।
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ग्राम  : पुं० [सं०√Öग्रस् (खाना)+मन् आत्व] १. मनुष्यों का समूह या उनके रहने का स्थान। आबादी। बस्ती। २. छोटी बस्ती। गाँव। ३. ढेर। राशि। समूह। जैसे–गुण ग्राम। ४. शिव। ५. षंडूज से निषाद तक क्रम से सातों स्वरों का समूह। सप्तक। वि० १.गाँव या बस्ती में रहनेवाला। २. पालतू। जैसे–ग्राम शूकर। ३. गँवार। देहाती।
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ग्राम-कंटक  : पुं० [ष० त०] वह जो गाँव या बस्ती में तरह-तरह के उत्पात या उपद्रव करके सब लोगों को कष्ट पहुँचाता या दुःखी रखता हो।
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ग्राम-कर्म(न्)  : पुं० [कर्म० स०] स्त्री० प्रसंग। मैथुन।
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ग्राम-कुंकुम  : पुं० [कर्म० स०] बर्रे का पौधा या फूल। कुसुंभ।
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ग्राम-कुक्कुट  : पुं० [ष० त०] पालतू मुरगा।
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ग्राम-कूट(क)  : पुं० [ष० त०] शूद्र।
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ग्राम-गीत  : पुं० [सं० मध्य० स०] गाँवों में गाये जानेवाले गीत। लोक-गीतों के अंतर्गत ग्रामगीतों और जंगली लोगों के गीतों को सम्मिलित किया या माना जाता है।
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ग्राम-गेय  : पुं० [स० त०] एक प्रकार का साम। वि० गांव में गाया जानेवाला ।
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ग्राम-घात  : पुं० [ष० त०] गाँव को लूटना।
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ग्राम-चर  : वि० [सं० ग्रामचर् (गति)+ट, उप० स०] गाँव में रहनेवाला।
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ग्राम-चर्या  : स्त्री० [ष० त०] स्त्री के साथ किया जानेवाला संभोग या सहवास।
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ग्राम-चैत्य  : पुं० [ष० त०] गाँव का पवित्र या पूज्य वृक्ष।
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ग्राम-जात  : वि० [पं० त०]==ग्रामज।
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ग्राम-देव  : पुं० [ष० त०]==ग्राम देवता।
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ग्राम-देवता  : पुं० [ष० त०] गाँव का वह स्थानिक प्रधान देवता जो उसका रक्षक माना जाता है और जिसकी पूजा गाँव के सब लोग करते हैं।
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ग्राम-धर्म  : पुं० [ष० त०] स्त्री-संभोग। मैथुन।
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ग्राम-पंचायत  : स्त्री० [सं०+हिं० ] गाँव के चुने हुए लोगों की वह पंचायत जो गाँव भर के झगड़ों बखेड़ों का निर्णय करती है और वहाँ की सब प्रकार से सुव्यवस्था करती है।
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ग्राम-पाल  : पुं० [सं० ग्राम√Öपाल् (रक्षक करना)+णिच्+अण्,उप.स०] १.गाँव का मालित या स्वामी। २. गाँव का प्रधान अधिकारी या रक्षक।
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ग्राम-प्रेष्य  : पुं० [ष० त०] वह जो गाँव के सब लोगों की सेवा करता हो। मनु के अनुसार ऐसा मनुष्य यज्ञ और श्राद्ध आदि कार्यों में सम्मिलित नहीं किया जाना चाहिए।
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ग्राम-मुख  : पुं० [ब० स०] गाँव का बाजार। हाट।
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ग्राम-मृग  : पुं० [ष० त०] १. गाँव में रहने वाले पशु। २. कुत्ता।
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ग्राम-याजक  : पुं० [ष० त०] वह ब्राह्मण जो ऊँच-नीच सभी तरह के लोगों का पुरोहित हो। (ऐसा व्यक्ति प्रायः पतित माना जाता है।)।
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ग्राम-याजी(जिन्)  : पुं० [सं० ग्राम√Öयज् (पूजा)+णिच्+णिनि, उप० स०]==ग्राम याजक।
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ग्राम-युद्ध  : पुं० [ष० त०] गाँव या बस्ती भर में होनेवाला उपद्रव और मार-पीट।
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ग्राम-वल्लभा  : स्त्री० [ष० त०] १. वेश्या। रंडी। २. पालक का साग।
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ग्राम-वासी(सिन्)  : वि० [सं० ग्राम√वस् (बसना)+णिनि० उप० स०] १. गाँव में बसने या रहनेवाला। २. पालतू।
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ग्राम-सिंह  : पुं० [ष० त०] कुत्ता।
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ग्राम-सुधार  : पुं० [सं० ग्राम+हिं० सुधार] गाँव के दोष दूर करने तथा सब क्षेत्रों में उसकी उन्नति करने का काम। गाँव की अवस्था सुधारने का काम। (रूरल अपलिफ्ट)
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ग्राम-हासक  : पुं० [ष० त०] बहनोई, जिससे गाँव भर के लोग हँसी मजाक करते हैं।
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ग्रामज  : वि० [सं० ग्राम√जन् (उत्पन्न होना)+ड, उप० स०] गाँव में उत्पन्न होनेवाला। ग्राम में उत्पन्न।
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ग्रामणी  : पुं० [सं० ग्राम√नी(ले जाना)+क्विप्, उप० स०] १. गाँव के मालिक। २. गाँव का मुखिया। ३. लोगों का नेता या प्रधान व्यक्ति। ४. विष्णु। ५. यक्ष। ६. नाई। हज्जाम। स्त्री० १. वेश्या। २. नील का पौधा।
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ग्रामाचार  : पुं० [ग्राम-आचार, ष० त०] किसी गाँव की विशिष्ट प्रथाएँ तथा रीति-रिवाज।
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ग्रामाधिप, ग्रामाध्यक्ष  : पुं० [ग्राम-अधिप, ग्राम अध्यक्ष, ष० त०] गाँव का प्रधान अधिकारी। मुखिया।
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ग्रामिक  : वि० [सं० ग्राम+ठञ्-इक] १. गाँव में उपजने या होनेवाला। २. ग्रामवासियों से संबंधित। पुं० १. गाँव का चुना या माना हुआ प्रधान या मुखिया। २. ग्रामवासी।
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ग्रामिणी  : स्त्री० [सं० ग्राम+इनि-ङीष्] नील का पौधा।
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ग्रामी (मिन्)  : वि० [सम० ग्राम+इनि] १. (व्यक्ति) जो गाँव में रहता हो। २. ग्राम्य। पुं० १. ग्रामवासी। देहाती। २. गाँव में रहनेवाले पशु। जैसे–कुत्ता, कौआ मुरगा आदि। स्त्री० १. पालक का साग। २. नील का पेड़।
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ग्रामीय  : वि० [सं० ग्राम+छ-ईय] ग्राम्य।
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ग्रामेय  : पुं० [सं० ग्राम+ढ़क्-एय] ग्रामवासी। वि० ग्राम्यवासी।
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ग्रामेयी  : स्त्री० [सं० ग्रामेय+ङीष्] वेश्या।
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ग्रामेश,ग्रामेश्वर  : पुं० [सं० ग्राम-ईश,ग्राम-ईश्वर,ष० त०] गाँव का प्रधान या मुखिया।
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ग्राम्य  : वि० [सं० ग्राम+यत्] १. गाँव से संबंध रखनेवाला। गाँव का। जैसे–ग्राम्य-गीत, ग्राम्य-सुधार। २. गाँव में रहने या पाया जानेवाला। ३. ग्रामवासियों के रीति-रिवाज, स्वभाव, व्यवहार आदि से संबंध रखनेवाला। जैसे–ग्राम्य व्यवहार। ४.जो ग्रामवासियों की प्रकृति, स्वभाव, व्यवहार आदि का सा हो। असभ्य या अरुचिपूर्ण। ५. अश्लील। ६. जिसमें किसी प्रकार का संशोधन या सुधार न हुआ हो। अनमढ़ और प्रकृत। ७. (जीव या पशु) जो पाला पोसा और गाँव या बस्ती में रखा गया हो अथवा रहता आया हो। जैसे–कुत्ता, गधा, गौ आदि ग्राम्य पशु। पुं० १. अनाड़ी। बेवकूफ। मूर्ख। २. मैथुन की एक मुद्रा या रतिबंध। ३. काव्य का एक दोष, जो किसी साहित्यिक रचना में (क) गँवारू शब्दों के प्रयोग अथवा (ख) गँवारू विषयों के वर्णन के कारण उत्पन्न माना गया है। ४. यह शब्दगत और अर्थगत दो प्रकार का होता है। ४. अशिष्ट और अश्लीलतापूर्ण कथन या बात। ५. स्त्री-प्रसंग। मैथुन। ६. मिथुन राशि।
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ग्राम्य-देवता  : पुं० [कर्म० स०]==ग्रामदेवता।
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ग्राम्य-दोष  : पुं० [कर्म० स० ] काव्य का ग्राम्य नामक दोष। ( दे० ‘ग्राम्य’)।
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ग्राम्य-धर्म  : पुं० [ष० त०] मैथुन। स्त्री० प्रसंग।
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ग्राम्य-पशु  : पुं० [कर्म० स०] पालतू जानवर।
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ग्राम्य-मृग  : पुं० [कर्म० स०] कुत्ता।
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ग्राम्य-वल्लभा  : स्त्री० =ग्राम-वल्लभा।
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ग्राम्या  : स्त्री० [सं० ग्राम्य+टाप्] १.नील का पौधा। २.तुलसी।
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ग्राव-स्तुत  : पुं० [सं० ग्रावस्तु(स्तुति करना)+क्विप्, उप० स०] सोलह ऋत्विजों में से तेरहवाँ ऋत्विज्। अच्छावाक।
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ग्राव-हस्त  : पुं० [ब० स०] यज्ञ करनेवाला वह ऋत्विज् जिसके हाथ में अभिषव का पत्थर रहता है।
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ग्राव(न्)  : पुं० [सं०Ö ग्रस् (भक्षण)+ड-ग्र-आवन्(संलग्न होना)+विच्] १.पत्थर। २.पहाड़। ३. ओला। ४. बादल। वि० कठोर। कड़ा।
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ग्रावह  : पुं० [सं० ग्रावा] पत्थर की कील। उदाहरण–परि मै प्रसन्न परतीत करि तव काढ़त ग्रावह जुही।–चन्दवरदाई।
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ग्रावायण  : पुं० [सं०ग्राव+फक्-आयन] एक प्रवर का नाम।
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ग्रास  : पुं० [सं० Öग्रस्+घञ्] १. ग्रसने अर्थात् बुरी तरह से पकड़ने या दबाने की क्रिया या भाव। २.चं द्रमा या सूर्य को लगनेवाले ग्रहण की स्थिति जो उसके ग्रस्त अंश के विचार से कही जाती है। जैसे–खग्रास,सर्व-ग्रास। ३. उतना भोजन जितना एक बार मुँह में डाला जाय। कौर। निवाला।
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ग्रासक  : वि० [सं० Öग्रस्+ण्वुल्-अक] १. ग्रस्त करने या बुरी तरह से पकड़नेवाला। २. ग्रास के रूप में खाने या मुँह में रखनेवाला। ३. भक्षक। ४. छिपाने या दबाने वाला।
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ग्रासना  : पुं० [सं०ग्रास] १. ग्रस्त करना। बुरी तरह से पकडना। २. निगलना। ३. कष्ट पहुँचाना। पीड़ित करना।
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ग्राह  : पुं० [सं०√Öग्रह (पकड़ना)+ण] १. मगर। घड़ियाल। २. भक्त समाज में, वह विशिष्ट मगर जिसके पंजे से भगवान् ने गज को छुड़ाया था। ३. [√ग्रह+घञ्] चंद्रमा आदि को लगनेवाला ग्रहण। ४. ग्रहण करने, पकडने या लेने की क्रिया या भाव। ग्रहण। ५. ज्ञान। ६. [√ग्रह+ण] ग्राहक।
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ग्राह-मुख  : वि० [सं० ब० स०] जिसका मुख घड़ियाल का-सा हो।
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ग्राहक  : पुं० [सं०√Öग्रह+ण्वुल्-अक०] १. ग्रहण करने या लेनेवाला। २. वह जो मूल्य देकर कोई चीज लेता या लेना चाहता हो। खरीददार। ३. आदरपूर्वक कुछ पाने या लेने की इच्छा या प्रवृत्ति रखनेवाला। जैसे–गुण-ग्राहक। ४. वह ओषधि जिसके सेवन से पतला दस्तआना जल्द बन्द हो जाय और बँधा पैखाना होने लगे। ५. बाज नामक पक्षी। ६. चौपतिया नामक साग। ७. विष आदि के प्रकोपों की चिकित्सा करनेवाला वैद्य। विष-वैद्य। वि० ग्रहण करनेवाला। जैसे–ग्राहक यंत्र।
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ग्राहक-यंत्र  : पुं० [कर्म० स०] एक वैज्ञानिक उपकरण जो प्रेषक यंत्र द्वारा भेजे गये संदेश ग्रहण करता है। (रिसीवर)
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ग्राहना  : स० [सं० ग्रहण] १.ग्रहण करना। लेना। उदाहरण-पै केवल निज नगर माँहि प्रचलित मत ग्राहैं।–रत्ना. २.ग्रस्त करना। पकड़ना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्राहिका  : स्त्री० [सं० ग्राहक+टाप्, इत्व] त्रिबली का तीसरा बल।
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ग्राही (हिन्)  : वि० [सं० Öग्रह+णिनि] १. ग्रहण या स्वीकार करनेवाला। लेनेवाला। २. आदरपूर्वक मानने या लेनेवाला। जैसे–गुण-ग्राही। ३. (औषध या खाद्य पदार्थ) जो मलरोकता हो। कब्ज करनेवाला।
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ग्राह्य  : वि० [सं०Ö√ ग्रह+ण्यत्] १.जो ग्रहण किये जाने को हो अथवा किये जाने के योग्य हो। २.जो प्राप्त किया या लिया जा सकता हो। ३.जो ठीक होने के कारण माना जा सकता हो। ४.जिसे इंद्रियाँ देख, सुन,पहचान या समझ सकती हों।
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ग्राह्य-व्यक्ति  : पुं० [कर्म० स०] १.वह प्रमुख व्यक्ति जिसे और लोग या दूसरे देश वाले भी प्रमुख माने और उसकी बातें या मत ग्रहण कर सकें। २.आधुनिक राजनीति में,विदेशी दूतावास का ऐसा अधिकारी जो अपनी ईमानदारी और सच्चाई के कारण ग्राह्य हो। (पर्सना ग्रैटा)
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ग्रिह  : पुं० १. दे० ग्रह। २. दे० ‘गृह’।
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ग्रीक  : वि० [अ० ] यूनान देश अथवा इसके वासियों से संबंद रखनेवाला यूनानी। पुं० यूनान देश का निवासी। स्त्री० यूनान देश की प्राचीन भाषा।
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ग्रीखम  : पुं० =ग्रीष्म।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्रीध  : पुं० [सं० गृध्र] [स्त्री० ग्रीधणी] गीध। उदाहरण–चारौ पल ग्रीधणी चिड़।–प्रिथीराज।
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ग्रीवा  : स्त्री० [सं,√गृ (निगलना)+वन्,नि.सिद्धि] सिर और धड़ को जोडनेवाला अंग। गरदन। गला।
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ग्रीवी(विन्)  : वि० [सं० ग्रीवा+ईनि] लंबी गरदनवाला। पुं० ऊँट।
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ग्रीषम  : पुं० =ग्रीष्म।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्रीष्म  : स्त्री० [सं०Ö√ग्रस्+मक्,नि.सिद्धि] [वि.ग्रैष्म,ग्रैष्मिक] १.छः ऋतुओं में से दूसरी ऋतु जिसमें बहुत अधिक गरमी पड़ती है। जेठ और आषाढ़ के दिन। २.गरमी । ताप। वि० उष्ण। गरम।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्रीष्म-ऋतु  : स्त्री० [ष० त०] गरमी के दिन। जेठ और आषाढ़ के महीने।
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ग्रीष्म-काल  : पुं० =ग्रीष्म-ऋतु।
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ग्रीष्म-भवा  : स्त्री० [सं० ग्रीष्म√Öभू (होना)+अच्-टाप्] नेवाली का फूल।
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ग्रीष्मावकास  : पुं० [सं० ग्रीष्म-अवकाश,ष० त०] कुछ विशिष्ट गरम प्रदेशों में कड़ी गरमी के दिन होनेवाली छुट्टियाँ। गरमी की छुट्टियाँ। (समर वोकेशन)
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ग्रीष्मी  : स्त्री० [सं० ग्रीष्म+अच्-ङीष्]=ग्रीष्मभवा।
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ग्रीस  : पुं० [अं०] [वि० ग्रीक] यूनान देश।
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ग्रेन  : पुं० [अं०] एक पाश्चात्य तौल जो प्रायः एक जौ के बराबर होती है।
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ग्रेनाइट  : पुं० [अं०] हलके भूरे रंग का एक तरह का आग्नेय पत्थर जो बहुत कड़ा होता है।
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ग्रेह*  : पुं०==गेह(घर)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्रेही*  : पुं० [सं० गृही] घर-घरवाला अर्थात् संसारी व्यक्ति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्रैजुएट  : पुं० [अं०] वह जिसने उच्च कोटि की शिक्षा प्राप्त की हो। स्नातक।
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ग्रैम  : पुं० [अं०] एक पाश्चात्य तौल जो लगभग १५½ ग्रेन (या औंस के अट्ठाइसवें भाग) के बराबर होती है।
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ग्रैवेयक  : पुं० [सं० ग्रीवा+ढकञ्-एय] १.गले में पहनने का कोई गहना। जैसे–हार, माला, हैकल आदि। २.हाथी के गले में बाँधी जानेवाली जंजीर ३.जैनों के एक प्रकार के नौ देवता जो लोक पुरूष की गरदन पर स्थित माने गये हैं।
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ग्रैष्म  : वि० [सं० ग्रीष्म+अण्] १. ग्रीष्म-संबंधी। २. ग्रीष्मऋतु में होनेवाला। जैसे–ग्रैष्म रोग। ३. ग्रीष्म ऋतु में बोया जानेवाला।
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ग्रैष्मिक  : वि० [सं० ग्रीष्म+ठञ्-इक]=ग्रैष्म।
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ग्लान  : वि० [सं०√Öग्लै (अप्रसन्नता)+क्त] १. ज्वर आदि रोगों से पीड़ित। बीमार। रोगी। २. थका हुआ। शिथिल। ३. कमजोर। दुर्बल। स्त्री० =ग्लानि।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्लानि  : स्त्री० [सं० Öग्लै+क्तिन्] १. मानसिक या शारीरिक शिथिलता। विशेष-साहित्य में एक संचारी भाव माना जाता और अनाहार, निद्रा, परिश्रम, प्यास, रोग, संभोग आदि के कारण होता है। इसके अनुभाव है-शिथिलता,निर्बलता,मंद गति कांतिहीन दृष्टि आदि आदि। २.अपने ही किसी कार्य का अनौचित्य मालूम होने पर मन में होनेवाला खेद या हल्का दुःख। मानसिक खेद।
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ग्लास  : पुं० दे० ‘गिलास’।
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ग्लौ  : पुं० [सं० Öग्लै+डौ] १. चंद्रमा। २. कपूर। ३. पृथ्वी।
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ग्वाँड़ा  : पुं० [सं०गुण्ड] १. घेरा। वृत्त। २. घिरा हुआ स्थान। बाड़ा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्वार  : स्त्री० [सं० गोराणी] एक प्रकार का पौधा जिसकी फलियों की तरकारी और उसकी फलियों में से निकलनेवाले बीजों की दाल बनती है।
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ग्वार-नट  : स्त्री० [अं० गारनेट] एक प्रकार का बढ़िया रंगीन रेशमी कपड़ा।
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ग्वार-पाठा  : पुं० [सं० कुमारी-पाठा] घी-कुआँर।
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ग्वारी  : स्त्री० दे० ‘ग्वार’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्वाल  : पुं० [सं० गोपाल, प्रा० गोवाल, बं० गोयाल, गुं० गोवाड़, मरा० गवडी, पं० गवाल] [स्त्री० ग्वालिन] गौएँ पालने तथा दूध आदि बेचने का व्यवसाय करनेवाला व्यक्ति। अहीर।
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ग्वाल-ककड़ी  : स्त्री० [हिं० ग्वाल+ककड़ी] एक वनस्पति जिसकी जड़ें पत्ते, बीज आदि दवा के काम आते हैं।
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ग्वाल-गीत  : पुं० [हिं० ग्वाल+गीत] वे गीत जो ग्वाले या चरवाहे पशु चराते समय गाते हैं। (पैस्चोरल सांग)।
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ग्वाल-दाड़िम  : पुं० [हिं० ग्वाल+दाडि़म] मालकंगनी की जाति का एक छोटा पेड़।
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ग्वाल-बाल  : पुं० [हिं० ग्वाल+बाल] १. अहीरों के लड़के। २. कृष्ण के बाल सखा।
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ग्वाला  : पुं० [सं० गोपाल, प्रा० गोवाल] १. अहीर। ग्वाला। २. एक प्रकार का वृक्ष जिसकी लकड़ी बहुत मुलायम होती है और जिस पर चित्रों आदि की उकेरी या खुदाई होती है।
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ग्वालिन  : स्त्री० [हिं० ग्वाल] १. ग्वाल जाति की स्त्री। २. ग्वाले की पत्नी। ३. ग्वार नामक पौधा। ४. गिंजाई नामक बरसाती कीड़ा।
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ग्वाह  : पुं० =गवाह।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्वैंठना  : स० [सं० गुँठन, हिं० गुमेठना] १. मरोड़ना। २. दे० ‘गोठना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्वैंठा  : पुं०=गोइठा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्वैंड़ा  : पुं० [हिं० गाँव+इड़ा] १. गाँव के आस पास की भूमि। २. खेत या गाँव की सीमा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्वैंड़े  : क्रि० वि० [हिं० ग्वैड़ा] १. गाँव के आस-पास। गाँव के नजदीक। २. निकट। पास। करीब।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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ग्वैंयाँ  : स्त्री० दे० ‘गोइयाँ’। वि० [हिं० गाँव+ऐयाँ (प्रत्य०)] गाँव में रहने या होनेवाला। पुं० देहाती।
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