आ/aa

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आँ  : अव्य० [अनु०] ऐं ! है ! (आश्चर्य सूचक) पुं० बच्चों के रोने का शब्द। जैसे—लगे बच्चों की तरह आँ आँ करने !
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आँक  : पुं० [सं० अंक] १. संख्या का सूचक अंक। उदाहरण—कहत सबै बेदी दिए आँक दस गुनों होत।—बिहारी। २. चिन्ह। लक्षण। ३. अक्षर। वर्ण। उदाहरण—गुण पै अपार साधु कहै आँक चारिही में अर्थ विस्तारि कविराज टकसार है।—प्रिया। ४. दृढ़ निश्चय। उदाहरण—एकहिं० आँक इहइ मन मांही। प्रातकाल चलिहउँ प्रभु पाही।—तुलसी। ५. अंश। भाग। हिस्सा। ६. अँकवार। गोद। उदाहरण—पीछे ते गहि लाँकरी गही आँकरी फेरि। श्रं० त। ७. बैलगाड़ी की बल्लियों के नीचे का ढाँचा जिसमें पहिए की धुरी लगी रहती है। ८. नौ मात्राओं वाले छंदों की संज्ञा। ९. लकीर। १. किसी चीज पर संकेत के रूप में लिखा हुआ उसका मूल्य या पहचान। स्त्री० [हिं० आँकना] १. आँकने की क्रिया या बात। २. मन-गढ़ंत बात।
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आँकड़ा  : पुं० [सं० अंक, हिं० आँक+डा(प्रत्यय)] १. अंक। अदद। २. पाश। फंदा। ३. पशुओं का एक रोग। पुं० [अ-नहीं,+कण-दाना] बिना दाने की ज्वार की बाल की खुखड़ी।
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आँकड़े  : पुं० [हिं० आँकड़ा] गणित से किसी विषय या विभाग के संबंध में स्थिर किए हुए अंक जो उस विषय या विभाग का कोई पक्ष या स्थिति सूचित करते है। (स्टैटिस्टिक्स) जैसे—आँकड़ों के आधार पर जन्म और मृत्यु की संख्या का अनुपात स्थिर करना।
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आँकना  : स० [सं० अंकन] १. अंक या चिन्ह्र लगाना। निशान लगाना। २. चित्र० रूप-रेखा आदि अंकित करना। ३. मान, मूल्य आदि का अनुमान करना। अंदाज लगाना। कूतना। ४. महत्त्व, स्थिति या ऐसी ही किसी और बात का अनुमान करना या अंदाज लगाना। स० [सं० अंक] गले लगाना। आलिंगन करना। उदाहरण—होइ करि ताहिं को आँको भरि।—सूरदास मदनमोहन।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आँकर  : वि० [सं० आकर-खान] १. गहरा। २. बहुत अधिक। स्त्री० खेत की गहरी जुताई। सेव (उथली जोताई) का विपर्याय। वि० [सं० अक्रय्य] अकरा। (महँगा)।
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आँकरा  : वि० =आँकर। (बहुत अधिक)। पुं० १. आँकड़ा। २. -अंकुर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आँकल  : पुं० [सं० अंक, हिं० आँक] दागा हुआ साँड़। (डिं०) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आँकुड़ा  : पुं० =अँकुड़ा।
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आँकुशिक  : पुं० [सं० अंकुश+ठक्-इक] अंकुश से हाथी चलानेवाला महावत।
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आँकुस  : पुं० =अंकुश।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आँकू  : वि० पुं० [हिं० आँक+ऊ(प्रत्यय)] आँकने या कूतनेवाला।
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आँख  : स्त्री० [सं० अक्षिन्, प्रा० अक्खि, गुं० आँख, सिं० अख, पं० अक्ख० का अछ, बँ० आँकि, सिंह० अक्] १. (क) प्राणियों की वह इंद्रिय जिससे उन्हें दूसरों जीवों और पदार्थों के आकार-प्रकार आयत-विरतार रूप-रंग भेद-विभेद,पारस्परिक दूरी आदि का ज्ञान होता है। देखने की इंद्रिय। चक्षु। नयन। नेत्र। (ख) उक्त इंद्रिय का कार्य और उसके द्वारा होनेवालापरिज्ञान जिसमें चीजें दिखाई देती है। देखने की क्रिया भाव या शक्ति। दृष्टि। निगाह। (ग) लाक्षणिक रूप में, मनोभाव व्यक्त या सूचित करनेवाली भंगिमा, रंग-ढंग, संचालन आदि के विचार से उक्त इंद्रिय या उसके द्वारा होनेवाला कार्य या व्यापार। विशेष—(क) स्तनपायी जीवों के सिर के सामने भाग में माथे या ललाट के नीचे और नाक के ऊपर दोनों ओर कुछ संबोतरी दो आँखे होती है। बीच का सारा काला भाग और उसके चारों ओर का सफेद भाग दोनों मिलकर डेरा कहलाते है। बड़े काले भाग को पुतली और उसके ठीक बीच की बिन्दी को तारा या तिल कहते है। प्रकाश की सहायता से तारे और पुतली पर बाहरी पदार्थों का जो प्रतिबिंब पड़ता है उसका परिज्ञान अदर के संवेदन सूत्रों के द्वारा मस्तिष्क को होता है। इसी को (चीज) दिखाई देना कहते है। डेले के ऊपर और नीचे चमड़े के जो आवरण या परतें होती है उन्हें पलकें कहते है और उन पलकों के आगे वाले बालों की पंक्ति बरौनी कहलाती है। निम्न कोटि के जीवों में आँखों की संख्या ४, ६ या ८ तक भी होती है। उनमें इनकी ऊपरी बनावट भी कुछ प्रकार की भिन्न होती है और वे शरीर के भिन्न-भिन्न भागों में स्थिर होती है। (ख) प्रयोग के क्षेत्र में कुछ अवस्थाओं में इस शब्द का केवल एकवचन में, कुछ अवस्थाओं में केवल बहुवचन में और कुछ अवस्थाओं में विकल्प से दोनों में से किसी वचन में व्यवहार होता है। मुहावरा—आँख आना=एक रोग जिसमें आँख लाल होती सूजती और दुखती है। आँख उठने या उठने आना=दे० ऊपर आँख आना (रोग)। (किसी ओर) आँख या आँखे उठना=दृष्टि या निगाह पड़ना। जैसे—जिधर आँख उठेगी उधर चल पड़ेगे। आँख उठाना=जिस समय आँखे बंद हो या नीचे की ओर झुकी हों, उस समय देखने के लिए आँखे खोलना या ऊपर करना। जैसे—दिन भर बाद अब बच्चे ने आँख उठाई है। (किसी चीज की ओर) आँख उठाना=प्राप्ति की इच्छा या लोभ-भरी दृष्टि से देखना। जैसे—यह लड़का दूसरे की खाने-पीने की चीजों की तरफ कभी आँख नहीं उठाता। (किसी व्यक्ति की ओर) आँख उठाना या उठाकर देखना=किसी को हानि पहुँचाने के उद्देश्य या विचार से उसकी ओर देखना। जैसे—हमारे रहते हुए कोई तुम्हीर तरफ आँख उठाकर नहीं देख सकता। (किसी व्यक्ति के सामने) आँख या आँखे उठाना=साहसपूर्वक किसी की ओर देखना। निगाह मिलाना। सामना करना। जैसे—उनकी मजाल नहीं कि वे मेरे सामने आँख उठाये। आँख या आँखे उलटना=बेहोश होने पर या मरने के समय आँखों की पुतलियों का कुछ ऊपर चढ़ जाना। (किसी के सामने) आँख या आँखें ऊँची करना—दे० ऊपर। (किसी के सामने) आँख उठाना=आँख या आँखें कडुआना—अधिक जागने धुँआ लगने या लगातार चक लगाकर देखते रहने से आँखों में जलन थकावट या दर्द होना। (किसी की) आँख या आँखों का काँटा बनना या होना—किसी की दृष्टि में बहुत ही अप्रिय या अवांछित होना। (आँखों में खटकना या गड़ना की अपेक्षा बहुत उग्र विरक्ति का सूचक) आँख या आँखों का काजल चुराना—ऐसी चालाकी या सफाई से तथा चोरी से अपना काम निकालना कि किसी को पता न चले। (अपनी) आँख या आँखों का तेल निकालना=निरंतर कोई ऐसा बारीक काम करते रहना कि आँखों से पानी निकलने लगे। आँख या आँखों का पानी ढलना—किसी की मर्यादा का ध्यान या लज्जाशीलता न रह जाना। निर्लज्ज हो जाना। जैसे—जब आँख का पानी ढल गया तब नंगे होकर नाच भी सकते हो। आँख किरकिराना=आँख में बालू आदि का कण पड़ने से उसमें कसक या खटक होना। आँख या आँखों के आगे अधेरा छाना=आघात निराशा भय शोक आदि के कारण आँखों और बुद्धि का ठीक तरह से काम न करना। सामने अँधेरा दिखाई देना। आँख या आँखों के सामने या आगे नाचना=मन में ध्यान बना रहने के कारण किसी व्यक्ति की आकृति य़ा घटना का दृष्य रहरहकर काल्पनिक रूप से सामने आना। आँख खटकना=आँख में कोई चीज पड़ने पर उसमें खटक होना। आँख किरकिराना। उदाहरण—देखो लला मेरी आँखन खटकै कौने तरह से रंग फेंकत हो री। (होली) आँख या आँखें खुलना=(क) नींद टूटना। जागना। (ख) लाक्षणिक रूप में अज्ञान प्रेम मोह आदि दूर होना और उसके फलस्वरूप वास्तविक रूप या स्थिति का ज्ञान होना। जैसे—उनकी आज की बातों से मेरी आँखें खुल गई। (किसी की) आँख या आँखें खोलना=ऐसा काम करना जिससे किसी का अज्ञान भ्रम या मोहदूर हो और उसे वास्तविकता का ज्ञान हो। आँख गड़ना=आँख में कोई चीज पड़ने या पलक में फुंसी सूजन आदि होने पर हलकी खटक चुनचुनाहट या पीड़ा होना। (किसी ओर या किसी चीज पर) आँख गड़ना=(क) ध्यानपूर्वक देखने के समय निगाह जमना। (ख) कोई चीज पाने के लिए उस पर ध्यान लगा रहना। जैसे—तुम्हारी कलम पर हमारी आँख गड़ी है। आँख या आँखे चमकाना, नचाना या मटकाना=स्त्रियों का (या स्त्रियों की तरह) भाव-भंगी प्रकट करने केलिए पलकें और पुतलियाँ चलाना या हिलाना। (किसी से) आँख या आँखें चुराना या छिपाना-लज्जा, संकोच आदि के कारण किसी का सामना करने से बचना या हिचकना। आँख चूकना=दृष्टि या ध्यान का कुछ समय के लिए नियत स्थान से हटकर इधर-उधर होना। जैसे—जरा-सी आँख चूकते ही वह पुस्तक उठा ले गया। (किसी से) आँख या आँखें छिपाना=दे० ऊपर। आँख या आँखें चुराना। (किसी चीज पर) आँख या आँखें जमाना=ध्यानपूर्वक देखने के समय निगाह जमाना। दृष्टि स्थिर होना। (किसी की) आँख जाना—आँख में देखने की शक्ति न रह जाना। जैसे—एक आँख तो गई अब दूसरी तो बचाओं। (किसी चीज या बात की ओर) आँख जाना=दृष्टि या निगाह पड़ना। आँख झपकना=(क) आंख पर की पलक गिरना। जैसे—आँख झपकते ही उसने कलम उठा ली। (ख) थोड़े समय के लिए नींद आना। झपकी आना। जैसे—आज राज भर आँख नहीं झपकी। आँख या आँखें झेपना=दोषी या लज्जित होने के कारण निगाह नीची करना या सामने न देखना। आँख या आँखें टोरना=लज्जा से आँखे या निगाह नीची करना। आँख या आँखें टेकना=दे० ऊपर। या आँखें उलटना आँख=(किसी ओर या किसी चीज पर) आँख डालना-दृष्टिपात करना। देखना। आँख या आँखे तरेरना=आखें इस प्रकार कुछ तिरछी करना कि उनसे क्रोध या रोष सूचित हो। आँख तले आना=(क) दिखाई देना। जैसे—अभी तक तो ऐसी पुस्तक हमारी आँख तले नहीं आई। (ख) देखने में अच्छा लगना। जँचना। उदाहरण—अब न आँख तर आवत कोऊ।—तुलसी। (किसी को) आँख या आँखें दिखाना=क्रोध के आवेश में होकर या डराने-धमकाने के लिए किसी की ओर उग्र दृष्टि से देखना। उदाहरण—बहुत भाँति तिन्ह आँख दिखाए।—तुलसी। आँख या आँखें दुकने आना=दे० ऊपर। आँख आना या उठना। (किसी बड़े की) आँख या आँखें देखे हुए होना=संगति या सामना करने का अनुभव या सौभाग्य होना। जैसे—हम भी बड़े-बड़े उस्तादों की आँखें देखे हुए हैं। आँख या आँखें दौड़ना—कुछ ढूढ़ने या देखने के लिए दूर तक दृष्टि या ध्यान ले जाना। जैसे—चारों ओर आँखें दौड़ाने पर भी कोई दिखाई न दिया। आँख न उठना=दे० नीचे। आँख न खोलना। आँख या आँखें न खोलना=रोगजन्य शिथिलता के कारण आँखें बन्द करके तंद्रा में पड़े रहना। जैसे—आज दिन भर बच्चे ने आँख नहीं खोली। आँख या आँखें नचाना=दे० ऊपर। आँख या आँखें चमकाना। (किसी पर) आँख न ठहरना=तीव्र गति, दीप्ति, विशेष शोभा आदि के कारण किसी चीज पर निगाह न जमना। (किसी की) आँख या आँखें निकालना=दंड़ स्वरूप अंधा करने के लिए किसी की आँखों के गोलक या डेले काटकर अलग करना। (किसी के सामने) आँख या आँखें निकालना=क्रोधपूर्वक आँखें तरेरकर या ला पीले होकर देखना। उदाहरण—आँखें निकालिएगा जरा देखभाल कर।—कोई शायर। (किसी के सामने) आँख या आँखे नीची होना=लज्जा संकोच आदि के कारण ऐसी स्थिति में होना कि सिर न उठ सके। जैसे—तुमने उनसे रुपये उधार लेकर सदा के लिए उनके सामने मेरी आँख नीची कर दी। आँख पटपटाना=आँख या देखने की शक्ति नष्ट होना। (किसी पर) आँख पडना=दृष्टि या निगाह पड़ना। दिखाई देना। आँख या आँके पथराना=(क) मरने के समय आँखों की चमक और पारदर्शिता नष्ट होने के कारण उनका कठेर और निश्चल होना। (ख) प्रतीक्षा आदि में टक लगाकर देखते रहने के कारण आँखें कठोर और निश्चल होना। आँख या आँखों पर पट्टी बँधना या परदा पड़ना=भ्रम, मोह आदि के कारण भले-बुरे या हानि लाभ का ठीक ठीक ज्ञान न हो सकना। जैसे—उस समय मेरी आँखों पर पट्टी बँधी थी। (या परदा पड़ा था) जिससे मैने तुम्हारे सदभाव का तिरस्कार किया था। आँख या आँखें पसीजना=अनुराग दया आदि के कारण आँखों में कुछ जल भर आना। आँखे आर्द्र होना। आँख फड़कना=पलक या भौंह के कुछ अंश का कुछ देर तक रह—रहकर फड़क उठना या हिलना जो उक्त अंग की एक क्षणिक प्राकृतिक क्रिया और सामुदिक के अनुसार शुभ या अशुभ फल की सूचक है। (किसी की ओर से) आँख या आँखे फिरना या फिर जाना=पहले का सा अनुराग कृपा या सद्व्यवहार न रह जाना। आँख फूटना=आघात रोग आदि के कारण आँख इस प्रकार बिगड़ जाना कि देखने की शक्ति नष्ट हो जाए। आँख पसारना या फैलाना=अच्छी तरह ध्यानपूर्वक देखना या देखने का प्रयत्न करना। जैसे—आँख पसारकर देखो घड़ी मेज पर ही रखी है। (किसी की ओर से) आँख या आँखे फेरना या फोड़ना=बहुत देर तक लगातार ऐसा बारीक या परिश्रम साध्य काम करते रहना जिसमें आँखों को बहुत कष्ट हो या उन पर बहुत जोर पड़े। जैसे—कसीदा काढ़ने या लेखों का संसोधन करने में आँख फोड़ना। (किसी की) आँख या आँखें फोड़ना=दंड देने के लिए आँखों पर आघात करके किसी को अंधा करना। आँख या आँखें बंद करके कुछ करना=बिना कुछ भी ध्यान दिये या सोचे-समझे कोई काम करना। (किसी ओर या बात से) आँखें बंद करना या मूँदना=अभिमान, अरुचि संकोच आदि के कारण जान-बूझकर किसी होते हुए काम या बात पर ध्यान न देना। जान-बूझकर अनजान बनना। (किसी की) आँख या आँखें बंद होना=जीवन का अंत या मृत्यु होना। जैसे—पिता की आँखें बंद होते ही लड़कों में मुकदमें बाजी होने लगी। (किसी की) आँख बचाकर कुछ करना=इस प्रकार चोरी से कोई काम करना कि किसी उद्दिष्ट व्यक्ति का ध्यान उधर न जाने पावे। (किसी की) आँख बचाना=ऐसे प्रयत्न में रहना कि किसी उद्दिष्ट व्यक्ति का सामना न हो। (किसी की) आँख बदलना=पहले का-सा कुछ अनुराग या सद्भाव न रह जाना। उदाहरण—चीन्हत नाहीं बदल गये नैना।—गीत। (किसी से) आँख या आँखें बदलना=कुछ क्रोध या शील-संकोच किसी की ओर देखना। जैसे—अपना रुपया लीजिए आँखे क्या बदलते हैं। आँख बनना=शल्यक्रिया के द्वारा मोतियाबिन्दु संबलबाई आदि रोगों की ऐसी चिकित्सा होना कि आँखे ठीक तरह से काम देने लगे। आँख बनवाना=शल्य द्वारा मोतियाबिंदु या इसी प्रकार का आँख का कोई और रोग अच्छा कराना। आँख बनाना=उक्त आँख बनना=का संकर्मक रूप। (किसी की आँख या आँखें बराबर करना या मिलाना=सामना होने पर अच्छी तरह किसी की ओर देखना। दृष्टि या निगाह मिलाना। आँख बिगड़ना=रोग या उसकी अनुपयुक्त चिकित्सा के कारण आँख का ऐसी स्थिति में होना कि वह ठीक या पूरा काम न दे सके। जैसे—चेचक होने (या तेजाब पड़ने) से उनकी आँख बिगड़ गई। (किसी के आगे) आँखे बिछाना=आगत व्यक्ति का बहुत अधिक आदर-सत्कार करना। आँख बैठना=रोग आदि के कारण देखने की शक्ति नष्ट हो जाना। आँख भरकर देखना=अच्छी तरह दृष्टि जमाकर या ध्यान से देखना। आँख भर देखना=कुछ समय तक अच्छी तरह ध्यान से इस प्रकार देखना कि मन को तृप्ति या शांति हो। जैसे—हम उन्हें आँख भरकर देखने भी न पाए और वे चले गये। आंख या आँखें मटकाना=दे ऊपर। आँख या आँखें चमकाना=आँख मारना या मिचकाना—पलक और पुतली हिलाकर कुछ संकेत करना। आँख या आँखें मूदना=(क) आँखें बंद करना जिससे कुछ दिखाई न पड़े। उदाहरण—मूँदहुँ आँख कतहुँ कछु नाहीं।—तुलसी। (ख) मर जाना। मृत्यु होना। जैसे—जहाँ उन्होंने आँखें मूदी, सब चौपट हो जायेगा। (किसी ओर या बात से) आँख या आँखें मूदना—दे० ऊपर। (किसी ओर या बात से) ‘आँखें बंद करना’। आँख या आँखों से खटकना या गड़ना=अनुराग के अभाव, दोष, द्वेष आदि के कारण अनुचित, अप्रिय या अवांछित जान पड़ना। (आँखों का काँटा होना’ या ‘आँखों में चुभना’ की अपेक्षा कुछ हलकी विरक्ति का सूचक) जैसे—अब तो उनकी हर बात हमारी आँखों में खटकने लगी है। आँख या आँखों में खून उतरना या उत्तर आना=(क) बहुत अधिक क्रोध के कारण आँखें बहुत लाल हो जाना (दूसरों के संबंध में) जैसे—उस समय उनकी आँखों में खून उतर आया। (ख) बहुत अधिक क्रोध या रोष होना (स्वयं वक्ता के पक्ष में) जैसे—उसकी पाशविकता देखकर मेरी आँखों में खून उतर आया। आँख या आँखों में घर करना=बहुत ही प्रिय या सुन्दर होने के कारण बराबर अकाल्पनिक रूप में आँखों के सामने या ध्यान में बना रहना। आँख या आँखों में चरबी छाना=इतना अभिमान होना कि सब चीजें या लोग तुच्छ या हीन जान पड़ें। आँखों में टेसू या सरसों फूलना =स्वयं प्रसन्न या सुखी रहने के कारण दूसरों के कष्ट या दुःख से बिलकुल अनभिज्ञ या उदासीन रहना। (किसी की) आँख या आँखों में धूल झोंकना=स्वार्थ-साधन के लिए किसी को बहुत बड़ा धोखा देना या भ्रम में डालना। जैसे—आँखों में धूल झोंककर वह दस रुपए की चीज के बीस रुपए ले गया। आँख या आँखों में फिरना =सामने न होने पर भी प्रायः प्रत्यक्ष-सा दिखाई देता रहना। जैसे—आँखों में फिरती है सूरत किसी की।—कोई शायर। आँख या आँखों में बसना =दे० ऊपर ‘आँखों में घर करना’। उदा०—बसो मेरे नैनन में नँदलाल।—गीत। आँखों में सरसों फूलना=दे० ऊपर ‘आँखों में टेसू फूलना।’ (किसी व्यक्ति पर) आँख रखना=किसी व्यक्ति की गतिविधि पर सतर्क रहकर दृष्टि या ध्यान रखना। (किसी ओर) आँख या आँखें लगाना =किसी की ओर दृष्टि या ध्यान जमाना या स्थिर होना। जैसे—किसी की प्रतीक्षा में दरवाजे पर आँख लगाना। (किसी की) आँख लगना=(क) थोड़े समय के लिए हलकी नींद आना। झपकी लगना। जैसे—दो दिन बाद आज भइया की जरा आँख लगी है। (किसी चीज पर) आँख लगना =श्रृंगारिक प्रसंग में, काम-वासना की तृप्ति के लिए किसी से प्रायः अनुरागपूर्ण देखा-देखी या सम्पर्क होना। (किसी से) आँख लड़ना =(क) अचानक या संयोग से देखा-देखी होना। जैसे—आँख लड़ते ही वह घूमकर गली में घुस गये। (ख) दे० ऊपर (किसी व्यक्ति से) ‘आँख लगना’। (किसी से) आँख या आँखें लड़ाना=श्रृंगारिक प्रसंग में, प्रायः रह-रहकर कुछ देर तक अनुरागपूर्वक एक-दूसरे को देखते रहना। आँख या आँखें लाल करना=क्रोध से भरकर इस प्रकार आँखें गड़ाकर देखना कि उनमें खून आया या भरा जान पड़े। आँख या आँखें सफेद होने को आना=इतनी अधिक प्रतीक्षा करना कि आँखें ज्योतिहीन हो जायँ और उनमें देखने की शक्ति न रह जाय। आँख या आँखें सेंकना=तृप्त होने या लालसा पूरी करने के लिए सुंदर रूप की ओर रह-रहकर देखना। आँख या आँखों से खून टपकना =(क) दे० ऊपर ‘आँखों में खून उतरना’। (ख) बहुत अधिक दुःख के कारण इस प्रकार आँसू निकलना कि मानों कलेजा फटने के कारण उसमें से खून टपक रहा हो। खून के आँसू रोना। (किसी की) आँख या आँखों से चिनगारियाँ छूटना=आँखों से बहुत अधिक क्रोध या रोष के लक्षण प्रकट होना। आँख या आँखों से नीर (या नील) ढलना=मरने के समय आँखों से अंतिम बार जल निकलना। आँख या आँखों से लगाना=कोई चीज मिलने पर उसके प्रति आदर या स्नेह दिखाने के लिए उसे आँखों से स्पर्श कराना। आँख होना =(क) कोई चीज पहचानने या कोई बात समझने की योग्यता या शक्ति होना। उदा०—भई तक आँखें दुख सागर कोई चाखैं, अब वही हमें राखें, भाखैं वारो धन माल हो।—प्रिया। (ख) किसी बात का अनुभव या परख होना। आँखें घुलाना=एक-दूसरे को रह-रहकर प्रेमपूर्वक बराबर देखते रहना। आँखें चढ़ना=(क) नशे के कारण आँखें लाल और भारी होना। (ख) अप्रसन्नता, क्रोध आदि के कारण भौंहें तनना। त्योरी चढ़ना। आँखें चार करना=किसी की दृष्टि से दृष्टि मिलाना। आमने-सामने होकर एक दूसरे को देखना। आँखें चार होना=किसी से देखा-देखी और सामना होना। आँखें ठंढी होना=किसी को देखने से परम प्रसन्नता या संतोष होना। आँखें डबडबाना=दुःख के कारण आँखों में आँसू भर आना। आँखें तरसना=किसी को देखने की अत्यंत अभिलाषा और उत्कंठा होना। आँखें फाड़कर देखना=अविश्वास अथवा आश्चर्य होने की दशा में अथवा कुछ ढूँढ़ने के लिए देखने की सारी शक्ति एकाग्र करके देखना। (किसी के लिए) आँखें बिछाना =बहुत अधिक आदर और प्रेमपूर्वक स्वागत करना। आँखें भर आना=दे० ऊपर ‘आँखों डबडबाना’। आँखों की सूइयाँ निकालना=किसी बहुत कठिन और बड़े काम का अंतिम और सहज अंश पूरा करके सारे काम का यश और श्रेय प्राप्त करना। (एक प्रसिद्ध कहानी के आधार पर) जैसे—अब सारा काम हो चुका, तब आप आँखों की सूइयाँ निकालने आये हैं। (किसी की) आँखों में आँखें डालना=जो इस ओर देख रहा हो, उसकी आँखों की ओर सारी शक्ति लगाकर प्रेमपूर्वक देखना। (किसी को) आँखों में पालना या रखना=सदा अपने साथ रखकर परम प्रेम से और बहुत ही यत्नपूर्वक पालन-पोषण करना। आँखों में रात काटना या बिताना=सारी रात जागकर बिताना। (किसी की) आँखों में मलाई फेरना=दंडस्वरूप अंधा करने के लिए लोहे की सलाई गरम करके उसे सुरमे की सलाई की तरह आँखों में लगाकर उन्हें जलाना। (किसी को) आँखों पर बैठाना=आये हुए व्यक्ति का बहुत अधिक आदर-सत्कार करना। फूटी आँख या आँखों न सुहाना=किसी अवस्था में भी अच्छा न लगना। बहुत ही अप्रिय जान पड़ना। पद—आँख का अंधा=वह जिसे कुछ भी ज्ञान न हो। परम मूढ़। आँख का तारा या तिल=आँख की पुतली=आँख का वह सारा काला भाग जिसके बीच में तारा या तिल होता है। आँखों के डोरे=आँखों में एक सिरे से दूसरे सिरे तक दिखाई देनेवाली लालधारियाँ जो सौंदर्य बढ़ानेवाली होती हैं। आँखें चरने हई हैं=आँखें या दृष्टि कुछ भी काम नहीं कर रही हैं ! (आश्चर्य-सूचक अथला व्यंग्यात्मक) जैसे—तुम्हारी आँखें तो चरने गई हैं; सामने रखी हुई चीज तुम्हें कैसे दिखाई दे। आँख वाला=(क) चतुर। होशियार। (ख) गुणग्राहक। पारखी। २. वह शक्ति जिससे मनुष्य अच्छी बातें समझकर उन्हें ग्रहण करता है। धारणा और विचार की शक्ति। जैसे—हिये की आँख। ३. किसी के संबंध में मन में होनेवाली धारणा, मत या विचार। दृष्टि। निगाह। जैसे—जनता की आँख या आँखों में अब वे बहुत गिर गये हैं। ४. गुणदोष आदि परखने की शक्ति। निगाह। परख। पहचान। जैसे—उन्हें कपड़े (या जवाहरात) की अच्छी आँख है। ५ वस्तु, व्यक्ति आदि पर रखा जानेवाला ठीक और पूरा ध्यान। सतर्कतापूर्ण दृष्टि। निगाह। जैसे—(क) इस लड़के पर आँख रखना; कुछ लेकर भाग न जाय। (ख) आज-कल उनपर पुलिस की आँख है। ६. प्राप्ति की इच्छा से होनेवाली लोभपूर्ण दृष्टि। जैसे—गठरी या बक्स पर चोर की आँख होना। ७. कृपापूर्ण दृष्टि। दयाभाव। जैसे—जब इन पर आपकी आँख है, तो यह भी कुछ हो जायेंगे। ८. आकार, रूप, स्थिति आदि के विचार से आँखों से मिलती-जुलती कोई चीज या बनावट। जैसे—अन्नास, आलू, या ऊख की आँख, मोर-पंख पर की आँख आदि। ९. आँख के आकार का कोई ऐसा छोटा छेद जिसमें कोई दूसरी चीज डाली या पहनाई जाती हो। जैसे—सूई की आँख (छेद या नाका)। (आई, उक्त सभी अर्थों के लिए)
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
आँख-फोड़ टिड्डा  : पुं० [सं० आक-मदार+हिं० फोड़ना] १. हरे रंग का एक फतिंग जो प्रायः मदार के पौधों पर रहता है। २. वह जो दूसरों का अपकार या हानि करता-फिरता हो।
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आँख-मिचौनी  : स्त्री०=आँख-मिचौली।
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आँख-मिचौली (मिचौली)  : स्त्री० [हिं० आँख+मीचना] बच्चों का एक खेल जिसमें एक लड़का किसी दूसरे लड़का की आँख मूदता है। इस बीच और लड़के छिप जाते है तब आँख मुदानेवाले की आँखे खोल दी जाती है और वह लड़कों को ढूंढ़कर छूता है।
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आँख-मीचली  : स्त्री०=आँख-मिचौली। (खेल) उदाहरण—कहुँ खेलत मिलि ग्वाल मंडली आँख-मिचौली खेल-सूर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आँख-मुँदाई  : स्त्री०=आँख-मिचैनी।
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आँखड़ी  : पुं०=आँख।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आँखा  : पुं० वि० -आखा।
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आँग  : पुं० [सं० अङ्] १. अंग। २. प्रति चौपाये के हिसाब से ली जानेवाली चराई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आंगक  : वि० [सं० अंग+वुञ्-अक] अंग देश से संबंध रखनेवाला। अंग देश का।
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आँगन  : पुं० [सं० अंगण√अञ्ज्, प्रा० मरा० अंगण, गु० आंगुणु, आंगनियु० सिं० अङणु, बँ० उ० पं० अं (आं) गन] १. घर के अंदर या सामने का खुला चौकोर स्थान जो ऊपर से छाया हो। चौक। सहन। २. रहस्य संप्रदाय में अंतःकरण।
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आँगरी  : स्त्री०=उँगली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आंगारिक  : वि० [सं० अंगार+ठक्-इक] १. अंगार-संबंधी। २. अंगारों पर पकने या बननेवाला (खाद्य पदार्थ)।
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आंगिक  : वि० [सं० अंग+ठक्-इक] १. अंग या अंगो से संबंध रखनेवाला। २. शारीरिक क्रियाओं, चेष्टाओं या संकेतों द्वारा अभिव्यक्त होनेवाला। जैसे—आंगिक अनुबाव आंगिक अभिनय आदि। ३. दे० ‘कायिक’। पुं० वह जो मृदंग बजाता हो। पखावजी।
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आंगिक-अभिनय  : पुं० [सं० कर्म० स०] ऐसा अभिनय जिसमें नट या नर्तक अपनी शारीरिक क्रियाओं, चेष्टाओं, संकेतों आदि से ही अपने मनोगत भावों की अभिव्यक्ति करता अथवा कोई स्थिति दिखाता हो। अभिनय के चार भेदों में से एक (शेष तीन अंग है—आहार्य, वाचिक और सात्त्विक)।
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आंगिरस  : पुं० [सं० अंगिरस+अण] १. अँगिरा ऋषि के तीन पुत्र-बृहस्पति, उतथ्य तथा संवर्त। २. अंगिरा के गोत्र का व्यक्ति। वि० अंगिरा संबंधी अंगिरा का।
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आँगी  : स्त्री०=अँगिया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आँगुर  : स्त्री०=उँगली(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आँगुरी  : स्त्री०=उँगली।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आँगुल  : पुं० [सं० अंगुल+अण] दे० ‘अंगुल’।
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आँघी  : स्त्री० [सं० घृ-क्षरण, झरना] मैदा आदि चलाने की चलनी।
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आँच  : स्त्री० [सं० अर्चिस्-ष् (आग की लपट), प्रा० अच्चा, सि० गु० बँ० आच, कान, इचु] १. अग्नि। आग। जैसे—चूल्हें आँच, न घड़े पानी। कहा। २. आग की लपट। ३. आग से निकलनेवाली गरमी या ताप। ४. आग पर पकाये जाने की क्रिया। जैसे—अभी इसमें एक आँच की कसर है। मुहावरा—आँच खाना=(क) किसी चीज का आग पर चढ़कर उसका ताप सहना। आँच दिखाना=(ख) गरम करने के लिए आँच के पास रखना। ५. किसी प्रकार का कष्ट या हानि। उदाहरण—इन पाँचन को बस करै ताहि न आवै आँच।—कबीर। ६. कोई कष्टदायक या घातक चीज या बात। जैसे—तलवार की आँच। ७. किसी मनोवेग की उग्र या तीव्र अनुभूति। जैसे—काम-वासना या ममता की आँच। ८. विपत्ति। संकट। मुहावरा—आँच आना=अपकार या हानि होना। संकट में पड़ना। ९. प्रेम। मुहब्बत। १. काम-वासना।
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आंचन  : पुं० [सं० अञ्जन+अण] [√आञ्छ्(ठीक करना)+ल्युट्-अन] १. हड्डी के टूटने अथवा किसी अंग में मोट पड़ने पर उसे जोड़ना अथवा ठीक करना। २. शरीर में धँसी कोई चीज विशेषतः काँटा, बाण आदि निकालना। अ० १. गरम होना। तपना। २. ताप से पीड़ित होना।
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आँचर  : पुं० =आँचल।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आँचल  : पुं० [सं० अञ्चल] १. मनुष्य (विशेषतः स्त्री) द्वारा पहने हुए वस्त्र (जैसे—धोती, साड़ी या दुपट्टा) का वह छोर या सिरा जो प्रायः छाती या वक्षस्थल पर पड़ता है। पल्ला। मुहावरा—(किसी के आगे) आँचल ओड़ना या पसारना=किसी के कुछ माँगने के लिए दीनतापूर्वक उसके आगे कपड़े का पल्ला फैलाना। आँचल देना=(क) स्त्री का बच्चे को दूध पिलाना। (ख) आँचल से हवा करना। (ग) किसी स्त्री को यों ही घर में पत्नी के रूप में रख लेना। (मुस०) (कोई बात) आंचल में बाँधना—अच्छी तरह और सदा के लिए याद रखना। जैसे—हमारी यह बात आँचल में बाँध रखो। आंचल लेना=(क) घर में आयी हुई बड़ी स्त्री का आँचल छूकर उसका सत्कार तथा स्वागत करना। स्त्रियाँ। (ख) स्त्रियों का आंचल से अपना वक्षस्थल ढकना। २. कपड़े का कोई छोर या सिरा। पद—आँचल पल्लू-धोती, साड़ी आदि पर टाँका हुआ ठप्पेदार, चौड़ा पट्टा। ३. कपड़े का छोटा टुकड़ा। उदाहरण—सोभित दूलह राम सीस पर आँचर हो।—तुलसी। ४. दे० ‘अंचल’।
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आंचलिक  : वि० [सं० अंचल+ठक्-इक] १. अंचल संबंधी। अंचल का। २. किसी अंचल (प्रदेश या प्रांत)में होनेवाले या उसेस संबंध रखनेवाला।
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आँचू  : पुं० [देश] एक प्रकार की कँटीली झाड़ी जिसमें शरीफे के आकार के फल लगते है।
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आँजन  : =अंजन।
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आँजना  : स० [सं० अञ्जन] आँखों में अंजन लगाना।
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आंजनी  : स्त्री० [सं० अंजन+अण्-ङीष्] आँखों में लगाने का अंजन।
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आंजनेय  : पुं० [सं० अंजना+ढक्-एय] अंजना के पुत्र। हनुमान।
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आँजू  : पुं० [देश] फसल की बाढ़ रोकनेवाली एक घास।
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आँट  : पुं० [हिं० अंटी] १. तर्जनी और अँगूठे के बीच का स्थान। घाई। २. दाँव। पेच। मुहावरा— आँट पर चढ़ना=दाँव लगाना। ३. वैर-विरोध। लाग-डाँट। मुहावरा—आंट पड़ना=मन मुटाव होना। ४. गाँठ। गिरह। ५. गट्ठा। पूला। ६. ऐंठन। स्त्री० दे० अंटी और आँटी। स्त्री० [सं० आनद्ध] सोना को परखने के लिए कसौटी पर उससे लगाया हुआ निशान। कस।
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आँट-साँट  : पुं० [हिं० आँट+साँटना] १. षड्यंत्र। २. मेल-जोल। वि०=अंट-संट।
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आँटना  : अ०=अँटना (समान)। स० [हिं० अंटी] १. अंटी बनाना। अँटियाना। २. (किसी को) अपने अधिकार या पक्ष में करना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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आँटी  : स्त्री० [सं० ऋतु>प्रा०अट्ट>आँट, आँटी] परंपरा। रीति। उदाहरण—देवन्ह चलि आई असि आँटी। सुजन कँचन दुर्जन भा माँटी।—जायसी। स्त्री० [सं० अण्ड] १. घास-पात का छोटा गड्ढा। पूला। २. सूत आदि की लच्छी। ३. लड़कों के खेलने की गुल्ली। ४. दे० अंटी। ५. कुश्ती का एक दाँव जिसमें पहलवान अपने विपक्षी की टाँग में टाँग अड़ाकर उसे चित्त पटकते है। ६. दे० ‘अंटी’।
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आँठी  : स्त्री० [सं० अष्टि, प्रा० अट्ठि] १. दही, मलाई आदि का लच्छा। २. गाँठ। गिरह। ३. गुठली। ४. गुठली की तरह का कोई कड़ी और गोल चीज। ५. नवोढ़ा के स्तन।
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आँड़  : पुं० [सं० अण्डम्, प्रा० गुं० मरा० अंड, पं० का० आंड, सिं० आनो० उ० बं० आंडा] १. अंडकोश।२. हिरण्यगर्भ।
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आँडज  : वि० [सं० आंड√जन् (उत्पन्न होना)+ड] अंडज।
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आँड़ी  : स्त्री० [सं० अण्ड] १. अंटी। गाँठ। २. गाँठ के रूप में होनेवाला कंद। जैसे—प्याज या लहसुन की आँड़ी। ३. कोल्हू की जाठ का गोल सिरा। ४. पहिए की सामी या हल। बंद।
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आँड़ू  : वि० [सं० अण्ड-अण्डकोश] (पशु) जो बधिया न किया गया हो। जिसके अंडकोश वर्त्तमान हों। (अन्-कैस्ट्रेटेड)।
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आँत  : स्त्री० [सं० अन्त्र, प्रा० गु० अंतर, सिं० अंदरू, पं० आँदराँ] आमाशय के अंदर की वह लंबी नली जो प्राणियों की नाभि से गुदा तक गई है तथा जिससे होकर मन बाहर निकलता है। अँतड़ी। लाद। (इन्टेस्टाइन्स) मुहावरा—आंत उतरना=एक रोग जिसमें आँत ढीली होकर अँडकोश में उतर आती और बहुत कष्ट देती है। आँतें कुलकुलाना=बहुत भूख लगने के कारण व्याकुल होना। आँते मुँह में आना=संकट में पड़ने के कारण बहुत अधिक कष्ट होना। आँते गले में आना—कष्ट या विपत्ति से बहुत अधिक दुःखी तथा व्यग्र होना। आँते समेटना=बहुत अधिक भूख लगने पर भी उसे दबाये रखना। आँतों का बल खुलना—बहुत समय तक भूखे रहने के बाद जी भर के भोजन करना। आँतो में बल पड़ना=पेट में दर्द होना। उदाहरण—हँसते-हँसते आँतो में बल पड़ने लगा।
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आँत कट्टू  : पुं० पशुओं का एक रोग जिसमें उन्हें पतले दस्त आते है।
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आँतर  : पुं० [सं० अन्तर-भीतर] १. अंतर। भद। २. दूरी। ३. खेत का वह भाग जो किसी निश्चित समय में या एक बार जोता जाए। ४. पान के भीटे में क्यारियों के बीच का रास्ता। ५. कपड़े के तानों में दोनों सिरों की खूटियों के बीच साँथी अलग करने के लिए थोड़ी-थोड़ी दूर पर गाड़ी जानेवाली लकड़ियाँ। (जुलाहे)। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आँतर  : वि० [सं० अंतर्+अण] १. अंदर का। भीतरी। २. किसी क्षेत्र या सीमा के अंदर होने या उससे संबंध रखनेवाला। ३. किसी वस्तु व्यक्ति आदि के निजी गुण महत्त्व विशेषता आदि से संबंध रखनेवाला। (इँट्रिडिंक) जैसे—आंतर मूल्य। (अंकित मूल्य से भिन्न) (इंट्रिजिंक वैल्यू)
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आंतरागारिक  : वि० [सं० अन्तरागार+ठक्-इक] घर के भीतरी भाग, विशेषतः अंतपुर से संबंध रखनेवाला। पुं० १. भंडारी। २. कोषाध्यक्ष।
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आंतरिक  : वि० [सं० अंतर+ठक्-इक] १. अंदर का। भीतरी। २. किसी देश की घरेलू या भीतरी बातों से संबंध रखनेवाला। जैसे—आंतरिक नीति या आंतरिक व्यवस्था। (इन्टर्नल) ३. किसी निश्चित क्षेत्र या सीमा में होनेवाला। ४. अंतःकरण से होनेवाला। सच्चा। वास्तविक। जैसे—आंतरिक वेदना।
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आंतरिक्ष  : वि० [सं० अन्तरिक्ष+अण्] अंतरिक्ष संबंधी।
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आंतर्गेहिक  : वि० [सं० अनतर्गेह+ठक्-इक]=आंतरागारिक।
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आंतर्वेश्मिक  : वि० [सं० अन्तर्वेस्म+ठक्-इक]=आँतरागारिक।
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आँतिक  : वि० [सं० अंत+ठक्-इक] [भाव० अंतिकता, आँतिक्य] जो किसी के अंत में या समाप्ति पर हो तथा उसकी पूर्णता विस्तार या वृद्धि की सीमा का सूचक हो। (टरमिनल) जैसे—आंतिक कर आंतिक परीक्षा आदि।
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आंतिक-हेतु  : पुं० [सं० कर्म०स०] यह दार्शनिक सिद्धांत कि सृष्टि की रचना एक विशिष्ट उद्देश्य से और पूरी योजना के अनुसार हुई है।
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आंतिका  : स्त्री० [सं० अन्तिका+अण्-टाप्] बड़ी बहन।
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आंतिक्य  : पुं० [हिं० आंतिक+ण्यत्] आंतिक होने की अवस्था, गुण या भाव। आँतिकता।
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आंत्र  : वि० [सं० अन्त्र+अण्] आँत-संबंधी। पुं० आँत।
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आंत्रिक  : वि० [सं० अन्त्र+ठञ्-इक] आँतो में होनेवाला। आँत-संबंधी। जैसे—आंत्रिक रोग।
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आंत्रिक-ज्वर  : पुं० [सं० कर्म० स०] एक प्रकार का विकट और प्रायः घातक ज्वर जो आँतों में विकार होने से उत्पन्न होता है और प्रायः तीन-चार सप्ताह तक निरंतर बना रहता है। (टाइफ़ॉयड)
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आंदू  : पुं० [सं० अन्दू-बेड़ी] १. बेड़ी। २. साँकल। ३. हाथी के पाँव में बाँधने का सीकड़। उदाहरण—पगन लाज आँदू परी चढ्यौं महावत तेह।—मतिरास।
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आंदोल  : पुं० [सं०√आन्दोल् (बार-बार चलाना)+घञ्] आँदोलन।
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आंदोलक  : वि० [सं०√आन्दोल्+ण्युल्-अक] १. झूलने या झूलानेवाला। २. आंदोलन करने या हलचल मचानेवाला। पुं० झूला।
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आंदोलन  : पुं० [सं०√आन्दोल्+ल्युट्-अन] १. इधर-उधर झूलना, लहराना या हिलना। २. कंपन करना। ३. लोगों को उत्तेजित करने के लिए अथवा कोई आवेगपूर्ण या असांत परिस्थिति बनाने के लिए किया जानेवाला कार्य या प्रयास। (एजीटेशन)
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आंदोलनकारी (रिन्)  : पुं० [सं० आन्दोलन√कृ (करना)+णिनि] वह जो आंदोलन करता या हलचल मचाता हो।
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आंदोलित  : भू० कृ० [सं०√आन्दोल्+क्त] १. जो खूब हिलाया या झुलाया गया हो। २. आवेगपूर्ण। उत्तेजित या हलचल से भरा हुआ।
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आँध  : स्त्री० [सं० अन्ध] १. अँधेरा। २. रतौधी। वि० -अंधा।
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आँधना  : अ० [हिं० आँधी] अकस्मात् तथा वेग से आक्रमण या धावा करना। आँधी की तरह किसी पर टूट पड़ना।
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आँधर, आँधरा  : वि० [सं० अन्ध] [स्त्री० आँधरी] अंधा। नेत्रहीन।
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आंधसिक  : पुं० [सं० अन्धस्+ठक्-इक] रसोइया।
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आँधारंभ  : पुं० [सं० अन्ध-अधंकार, अंधेर+आरम्भ] बिना समझे-बूझे कोई कार्य करना।
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आँधी  : स्त्री० [सं० अन्ध-अँधेरा] १. हवा का वह वेगपूर्ण रूप जो धूल मिट्टी आदि से युक्त होता है तथा जिसके चारों ओर प्रायः अंधकार सा छा जाता है। अंधड़। (विंड-स्टार्म)। मुहावरा—आँधी उठना=आंदोलन करना या हलचल मचाना। आँधी होना—बहुत तेज चलना। आँदी के आम-(क) बिना परिश्रम किये मुफ्त में या सस्ते में मिली हुई कोई वस्तु।(ख) जिसका अस्तित्व कुछ ही दिनों तक हो। २. वह जिसमें आँधी जैसा तेजी हो। बहुत ही जल्दी में या आवेश में काम करनेवाला।
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आंधै  : स्त्री०=आँधी।
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आंध्य  : पुं० [सं० अन्ध+ण्यत्] १. अंधे होने की अवस्था या भाव। अंधापन। २. अंधकार। अँधेरा।
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आंध्र  : पुं० [सं० आ√अन्ध् (अंधा होना)+रन्] १. स्वतंत्र भारत का एक राज्य जो दक्षिण भारत में स्थित है तथा जहाँ तेलगू भाषा बोली जाती है। २. उक्त प्रदेश का निवासी। ३. दक्षिण भारत की एक प्राचीन जाति, जो बाद में आर्यों से मिल गई थी। वि० उक्त देश में होने या उससे संबंध रखनेवाला।
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आँब  : पुं० =आम (वृक्ष और फल)।
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आंबा हलदी  : स्त्री० [सं० आम्र-हरिद्रा, प्रा० अवंहलद्दा, मरा० अंबहलद] एक प्रकार का पौधा जिसकी जड़ हलदी की तरह होती और दवा के काम में आती है।
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आंबिकेय  : पुं० [सं० अंबिका+ढक्-एय]=अंबिकेय।
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आँय बाँय शाँय  : वि० [सं० अतिपात, शान्ति या विशुद्ध अनु०] व्यर्थ का। बिना सिर-पैर का और असंबद्ध (कथन या प्रलाप)।
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आँयँ-बाँयँ  : पुं० [अनु०] आँय-बाँय-शाँय।
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आँव  : पुं० [सं० आम्र या आमय, मरा० आव, आँव, सिं० अमु० का० ओम] १. अधपके या कच्चे अन्न या फल के पेट में न पचे होने की स्थिति अथवा उक्त के फलस्वरूप होनेवाला रोग जिसमें पेट में ऐंठन और पीड़ा होती है तथा थोड़ा-थोड़ा करके लसीला मल निकलता है। २. उक्त रोग में पेट से निकलनेवाला लसीला मल।
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आँवठ  : पुं० [सं० ओष्ठ, हिं० ओठ] १. किनारा। तट। २. किसी चीज की कुछ ऊँची उठी हुई बाढ़। ३. कपड़े आदि का किनारा या हाशिया।
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आँवड़ना  : अ०=उमड़ना।
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आँवड़ा  : वि० [सं० अव-गर्त्त] गहरा।
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आँवन  : पुं० [सं० आनन-मुँह] १. पहिए में लोहे की वह सामी जिसके अंदर से धुरी जाती है। २. लोहारों का वह औजार जिससे वे लोहे में छेद बड़ा करते है।
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आँवरा  : पुं०=आँवला।
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आँवल  : पुं० [सं० उल्वम्-जरायु] वह झिल्ली जिसमें गर्भ में बच्चे लिपटे रहते हैं। खेड़ी। जेरी।
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आँवल-नाल  : स्त्री०=आँवला।
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आँवलगट्टा  : पुं० [हिं० आँवला+गट्टा या गाँठ] आँवले का सूखा हुआ फल। सूखा आँवला।
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आँवला  : पुं० [सं० आमलक, प्रा० आमलग, बँ० आम्ला, गु० आंवला, सि० आंविशे, का ओम (म्) मरा० अवला] १. इमली की तरह की छोटी पत्तियोंवाला वृक्ष जिसमें गोल छोटे फल लगते है। २. उक्त फल जो स्वाद में खट्टे और खाने तथा दवा के काम आते है। ३. कुश्ती का एक दाँव या पेंच।
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आँवलापत्ती  : स्त्री० [बिं० आँवला+पत्ती] सिलाई का एक प्रकार जिसमें सीयन के दोनों ओर पत्ती जैसे तिरछे टाँके लगते हैं।
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आँवलासार गंधक  : स्त्री० [हिं० आँवला+सं० सारगंधक] साफ की हुई गंधक जो औषध आदि के काम में आती है।
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आंवष्ठ  : वि० [सं० अम्बष्ठ+अण्] अंबष्ठ देश में होने या उनसे संबंध रखनेवाला। पुं० अंबष्ठ देश का निवासी।
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आँवाँ  : पुं० [सं० आपाक] विशेष प्रकार से बनाया हुआ वह गड्ढा जिसमें मिट्टी की कच्ची ईटें बरतन आदि पकाते जाते है। मुहावरा—आँवा बिगड़ना=किसी वर्ग या विषय की सभी बातें खराब हो जाना।
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आँशिक  : वि० [सं० अंश+ठक्-इक] १. अंश या भाग से संबंध रखनेवाला। २. केवल अंश या भाग के रूप में होनेवाला। कुछ या थोड़ा। (पार्शिअल)।
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आंशुक-जल  : पुं० [सं० अंशुक+अण्, आंशुक-जल, कर्म० स०] ताँबे के बरतन में रखा हुआ वह जल जो दिन भर धूप में और रात भर चाँदनी में पड़ा रहा हो।
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आंश्य  : वि० [सं० अंश+ष्यञ्]-आंशिक।
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आंषु  : [सं० आखु] चूहा। मूसा। उदाहरण—आँषु धरन हित दुष्ट मँजारी।—नंददास।
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आंस  : स्त्री० [हिं० गाँस] हलकी पीड़ा या वेदना। कसक। स्त्री० [?] १. डोरी। रस्सी। २. रेशा। ३. मूँछों के निकलने का आरंभिक रूप। रेख। (बुदे०) पुं० १. अंश। २. -आँसू।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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आँसना  : अ० [हिं० आँस] कष्टकारी सिद्ध होना। खटकना। गड़ना। उदाहरण—लगान थोड़ा होने पर भी आँसता था।—वृन्दावनलाल वर्मा। स० कष्ट देना।
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आँसला  : वि० [हिं० आँसू] जिसकी आँखों में आँसू भरे हो। वि० [हिं० आँस] जिसके ह्रदय में वेदना हो। उदाहरण—पटक्योई परै यह अंकुर आसंली, ऐसे कछु रस रीति घुरी।—घनानंद।
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आँसी  : स्त्री० [सं० अंश-भाग] बैने या भेंट के रूप में किसी को दिया जाने वाला अंश या भाग। उदाहरण—काम किलोलनि में मतिराम लगे मनो बाँटन मोद की आँसी।
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आँसू  : पुं० [सं० अंश्रु, पा० अस्सु, प्रा० गु० आंजु, आंसु, ने० आँसु, सि० इंज, पं० अंझू, का० ओश, सिंह० अस, मरा० अँसू] आँखो की अश्रुग्रंथि में से स्रवित होने वाली बूँदे। विशेष—आँसू प्रायः दुख के आवेग या क्षोभ और कभी-कभी विशेष हर्ष के कारण भी निकलते है। मुहावरा—आँसू गिराना=रोना। आँसू डबडबाना—आँखों में आँसू भर आना। आँसू ढालना—रोना। आँसू पीकर रह जाना—कष्टपूर्ण आवेग मन में ही रोक रखना और प्रकट न होने देना। (किसी के) आँसू पोंछना=(क) आश्वासन देना। ढ़ाढस बँधाना। (ख) ऐसा काम करना, जिससे किसी का दुःख या पाश्चाताप कम हो। जैसे—सौ रूपये देकर उनके भी आँसू पोंछ दों। आँसूओं का तार बँधना=रोने का क्रम निरंतर चलते रहना। आँसूओं में मुँह धोना—इतना अधिक रोना कि सारे चेहरे पर आँसू फैल जाएँ।
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आँसूढाल  : पुं० [हिं० आँसू+ढालना] चौपायों का एक रोग जिसमें उनकी आँखों से प्रायः आँसू या जल बहता रहता है।
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आँहड़  : पुं० [सं० आ+भांड] १. मिट्टी का बरतन। २. पात्र। बरतन।
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आँहाँ  : अव्य० [अनु०] १. निषेधसूचक शब्द। ऐसा मत करो। २. अस्वीकृतिसूचक शब्द। यह या ऐसी बात नहीं है।
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